हदीस
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हदीस और सुन्नत - शरीअत के मूलस्रोत के रूप में (हदीस लेक्चर-3)
डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी [ये ख़ुतबात (अभिभाषण) जिनकी संख्या 12 है, इस में इल्मे-हदीस (हदीस-ज्ञान) के विभिन्न पहुलुओं पर चर्चा की गई है । इसमें इल्मे-हदीस के फ़न्नी मबाहिस (कला पक्ष) पर भी चर्चा है । इलमे-हदीस के इतिहास पर भी चर्चा है और मुहद्दिसीन (हदीस के ज्ञाताओं) ने हदीसों को इकट्ठा करने, जुटाने और उनका अध्ययन तथा व्याख्या करने में जो सेवाकार्य किया है, उनका भी संक्षेप में आकलन किया गया है।]
इल्मे-हदीस - आवश्यकता एवं महत्व (हदीस लेक्चर-2)
इल्मे-हदीस की आवश्यकता तथा इसके महत्व पर चर्चा दो शीर्षकों से की जा सकती है। एक शीर्षक जिसपर आज चर्चा करना मेरा उद्देश्य है, वह इल्मे-हदीस की आम ज़रूरत और इस्लामी ज्ञान एवं कला में विशेषकर तथा मानवीय चिंतन के क्षेत्र में आम तौर पर उसके महत्व का मामला है। दूसरा पहलू इस्लामी क़ानून और शरीअत के एक मूलस्रोत के रूप में हदीस और सुन्नत के महत्व एवं स्थान का है। इस्लाम का हर अनुयायी जानता है कि पवित्र क़ुरआन और सुन्नते-रसूल मुसलमानों के लिए शरीअत (इस्लामी धर्म-विधान) और क़ानून बनाने का सर्वप्रथम तथा आरंभिक स्रोत है। सुन्नत पवित्र क़ुरआन के साथ शरीअत का स्रोत किस प्रकार है? किन मामलों में यह स्रोत है? इससे अहकाम (आदेश एवं निर्देश) कैसे निकाले जाते हैं? इसपर कुछ विस्तार से आगे चर्चा होगी।
इल्मे-हदीस - एक परिचय (हदीस लेक्चर-1)
आज की चर्चा का विषय है— इल्मे-हदीसः एक परिचय। इल्मे-हदीस के परिचय की आवश्यकता इसलिए पड़ती है कि आम तौर से मुसलमान हदीस से तो परिचित होता है, उसको यह भी मालूम होता है कि हदीस क्या है? और इस्लाम में हदीस का महत्व क्या है? लेकिन बहुत-से लोगों को यह पता नहीं होता कि कलात्मक दृष्टि से इल्मे-हदीस का क्या अर्थ है? हदीस और उससे मिलती-जुलती इस्तिलाहात (पारिभाषिक शब्दों) का अर्थ क्या है? इन इस्तिलाहात का प्रयोग इल्मवालों के यहाँ किन-किन अर्थों में हुआ है? यह और इस प्रकार की बहुत-सी कला-संबंधी जानकारी ऐसी है जिसे बहुत-से लोग अनजान हैं। इस अनभिज्ञता के कारण बहुत-सी समस्याएँ और ख़राबियाँ पैदा होती हैं।
पैग़म्बर की बातें
मौजूदा हालात में ज़रूरत महसूस की जा रही है कि अल्लाह के आख़िरी पैग़म्बर (अन्तिम ईशदूत) हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की शिक्षाओं (हदीसों) का एक ऐसा संग्रह प्रकाशित किया जाए जिससें आम लोग शिक्षाओं को जान सकें। प्रस्तुत पुस्तक ‘‘पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बातें'' को तैयार करने का उदे्दश्य भारत के लाखों-करोड़ों भाइयों और बहनों को यह बताना है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) किसी ख़ास देश और क़ौम के लिए नहीं, बल्कि समस्त मानवजाति के लिए पैग़म्बर (ईशदूत) बनाए गए थे। उनकी शिक्षाएं, जिन्हें हदीस कहा जाता है केवल मुसलमानों के लिए नहीं हैं, बल्कि इसमें समस्त मानवजाति को जीवन गुज़ारने का तरीक़ा सिखाया गया है। इस पुस्तक में कुछ ऐसी हदीसों को इकट्ठा किया गया है जो यह बतीती हैं कि समाज में रहने वाले हरेक व्यक्ति का एक-दूसरे पर कुछ अधिकार है, और एक-दूसरे के प्रति कुछ कर्तव्य और ये अधिकार और कर्तव्य धर्म, जाति, रंग, वंश, क्षेत्रीयता आदि में सीमित नहीं हैं। इसमें शामिल विषयों को देखकर पढ़नेवाले ख़ुद महसूस करेंगे कि यह किताब वक़्त की एक अहम ज़रूरत है।
हदीस: एक परिचय
इस्लामी परिभाषा में ‘हदीस', पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) के कथनों, कर्मों, कार्यों को कहते हैं। अर्थात् 40 वर्ष की उम्र में ईश्वर की ओर से सन्देष्टा, (पैग़म्बर) नियुक्त किए जाने के समय से, देहावसान तक, आप (सल्ल॰) ने जितनी बातें कीं, जितनी बातें दूसरों को बताईं, जो काम किए उन्हें इस्लाम की शब्दावली में हदीस कहा जाता है। क़ुरआन के साथ-साथ हदीस भी इस्लाम का मुख्य स्रोत है। क़ुरआन में जो नियम लंक्षेप में दिए गए हैं, उनकी व्याख्या और वर्णन हदीसों में हैं। इस लेख में हम देखेंगे कि हदीस क्या हैं, इनका क्या महत्व है और इनके महत्वपूरण संग्रह कौन कौन से हैं।