मर्कज़ जमाअत-ए-इस्लामी हिंद, नई दिल्ली में गत दिनों “LGBTQ+ मूवमेंट का वैचारिक विश्लेषण” शीर्षक से एक व्यापक प्रोग्राम आयोजित किया गया। प्रोग्राम में जाने-माने बुद्धिजीवियों और स्कॉलर्स ने वैचारिक, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सा और सोशियो-राजनीतिक दृष्टिकोण से LGBTQ+ मूवमेंट के बहुआयामी विश्लेषण पर आधारित प्रेज़ेंटेशंस दिए। JIH के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने ‘इस्लामिक प्रतिमान और LGBTQ+ की बहस’ पर बात की, जो LGBTQ+ मूवमेंट से संबंधित इस्लाम के समग्र दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने आगे कहा कि आज की सभा इस संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक शुरुआत मात्र है, और निकट भविष्य में इस मामले के बारे में और ज़्यादा समझ और बहस होगी। हुसैनी ने स्पष्ट किया कि इस्लामी दृष्टिकोण से, यौन और नैतिकता अल्लाह के आदेशों द्वारा परिभाषित की जाती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस्लाम केवल विषमलैंगिक विवाह की सीमाओं के भीतर यौन संबंधों को ईश्वरीय कानून द्वारा स्वीकृत मानता है, जो व्यक्तिगत अधिकारों पर पश्चिमी सोच के विपरीत है।
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में हदीस-सौरभ, भाग-5 को, जो हदीस-सौरभ का अंतिम भाग है, प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। इस भाग में धर्म-आमंत्रण और आह्वान करने के विभिन्न पक्षों से सम्बद्ध हदीसें और उनकी व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। उन अध्यायों में हदीसों के प्रकाश में मानव के वैचारिक और व्यावहारिक जीवन पर एक गहरी दृष्टि डालते हुए यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य की सफलता और असफलता की धारणा जो हदीसों में प्रस्तुत की गई है, वह हर प्रकार के दोषों और त्रुटियों से मुक्त है। मनुष्य की वास्तविक सफलता इसमें नहीं है कि दुनिया में उसे सुख-सुविधापूर्ण जीवन प्राप्त हो, बल्कि मनुष्य की वास्तविक सफलता इसमें है कि सांसारिक जीवन में वह एक उच्चतम चरित्र का प्रतिरूप हो और अपने विचार और कर्म द्वारा दुनिया को वह मार्ग दिखाए जो सत्य, सफलता और कल्याण का मार्ग है, इसी मार्ग को क़ुरआन ने सिराते-मुस्तक़ीम (सीधा मार्ग) कहा है। अल्लाह से प्रार्थना है कि वह इस सेवा को स्वीकृति प्रदान करे और अधिक-से-अधिक लोग इससे लाभ उठाएँ।
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में 'हदीस सौरभ, का भाग-4' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। इस पुस्तक के भाग-1 से 3 तक में धारणा, उपासना, नैतिकता, और सामाजिक शिक्षाओं से सम्बन्धित हदीसों का संकलन प्रस्तुत किया गया है। चौथे भाग में इस्लामी अर्थव्यवस्था और इस्लामी राजनीति से सम्बन्धित हदीसों का संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अध्ययन से इसका भली-भाँति अनुमान किया जा सकता है कि वास्तव में इस्लाम एक पूर्ण धर्म और समस्त मानव-जीवन के लिए एक संग्राहक जीवन-व्यवस्था है। इस्लाम की अन्य शिक्षाओं की तरह अर्थ और राजनीति से सम्बन्धित इसकी शिक्षाएँ और आदेश भी न्याय पर आधारित हैं। इन शिक्षाओं से समस्त मानवजाति लाभान्वित हो सकती है।
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में 'हदीस सौरभ, का भाग-3' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। हदीस सौरभ, भाग-1 में मौलिक धारणाओं और इबादतों तथा हदीस सौरभ, भाग-2 में नैतिकता से सम्बन्धित हदीसों और उनकी व्याख्याओं को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई थी। हदीस सौरभ, भाग-3 का सम्बन्ध सामाजिकता से है। इसमें उन हदीसों का चयन और उनकी व्याख्या करने की कोशिश की गई है जिनका सम्बन्ध सामाजिकता के सिद्धान्तों एवं समस्याओं से है। अतएव इस भाग में सामाजिक संगठन, सामाजिक मूल्य, परिवार निर्माण, सम्बन्धों की व्यापक परिधि, सामूहिक हित-चेतना, सामाजिक जीवन के आचार और इस्लामी सभ्यता व संस्कृति से सम्बन्धित हदीसों को प्रस्तुत किया गया है और इस सम्बन्ध में चित्रकारी, संगीत, ज्योतिषविद्या और दवा-इलाज या वैद्यक इत्यादि के विवरण भी आए हैं। हमें उम्मीद है कि हदीस सौरभ के दूसरे भाग की तरह तीसरे भाग को भी हमारे पाठक पसन्द करेंगे और इसे उपयोगी पाएँगे। इन शिक्षाओं से समस्त मानवजाति लाभान्वित हो सकती है।
प्रस्तुत है, हदीस सौरभ भाग-2। इससे पूर्व इस पुस्तक का प्रथम भाग प्रस्तुत किया जा चुका है। प्रथम भाग में इस्लाम की मौलिक धारणाओं और इबादतों से सम्बन्धित हदीसों को संगृहीत किया गया है और हदीस सौरभ भाग-2 में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नैतिक शिक्षाओं का सविस्तार वर्णन किया गया है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि वे चीज़ें क्या हैं जो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की दृष्टि में अनैतिक हैं, जिनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।
उत्पादन मनुष्य द्वारा किया जाता है, जितने मनुष्य होंगे उसी अनुपात में उत्पादन होगा और आर्थिक विकास की दर बढ़ेगी । डेढ़ सदी पहले तक दुनिया इसी सीधी सोच पर क़ायम थी फिर यह सोच टेढ़ी हो गई और दुनिया भर में लोगों के मन में यह बात बिठा दी गई, कि ‘बस एक या दो बच्चे होते हैं घर में अच्छे। हालाँकि यह एक सीधी सी बात है कि ज़्यादा बच्चे, यानी ज़्यादा आबादी, ज़्यादा आबादी यानी ज़्यादा उत्पादन, ज़्यादा उत्पादन यानी ज़्यादा ख़ुशहाली। जनसंख्या का सीधा और सकारात्मक प्रभाव आर्थिक विकास पर पड़ता है ।
यह पुस्तक वास्तव में भारत के महान इस्लामी विद्वान मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ ख़ाँ साहब के उर्दू लेखों का हिन्दी अनुवाद है। वे लेख भारत की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। उन लेखों को पाठकों ने बहुत पसन्द किया। लेखों की अहमियत को देखते हुए फ़ैसला किया गया कि उन्हें जमा करके किताब के रूप में प्रकाशित किया जाए। अतः उर्दू में एक किताब “रमज़ान : तब्दीली और इन्क़िलाब का महीना" नाम से प्रकाशित हो गई। प्रस्तुत है उसी उर्दू किताब का हिन्दी अनुवाद।
इतिहास की यह पुस्तक पाकिस्तान के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं इतिहासकार सरवत सौलत साहब ने उस दृष्टिकोण को सामने रखकर लिखी है, जो उद्देश्यपूर्ण और सैद्धान्तिक है। इसमें किसी भी प्रकार के पक्षपात से ऊपर उठकर, मानव मात्र की प्रगति एवं विकास के उद्देश्य को सामने रखकर घटनाओं एवं परिस्थितियों का विश्लेषण किया जाता है और नतीजे निकाले जाते हैं। उस किताब का आसान हिन्दी अनुवाद पेश है। यह अनुवाद सहज एव सरल रखा गया है। और इसमें जिन ऐतिहासिक व्यक्तियों और स्थानों के नाम आए हैं उन्हें विशुद्ध रूप में ही स्वीकार किया गया है। इसके लिए बिरादरम ख़ालिद निज़ामी साहब ने जो सतर्कता दिखाई है और उन्होंने जो परिश्रम किया है वह अत्यन्त सराहनीय है। आशा है कि हम सब इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे। अल्लाह हमें इसकी तौफ़ीक़ दे, आमीन!
हदीस सौरभ के इस भाग में मौलिक धारणाओं और इबादतों से सम्बन्धी हदीसें प्रस्तुत की गई हैं। नैतिकता, समाज, शासन एवं राजनीति, अर्थनीति एवं अर्थव्यवस्था, सत्य का आह्वान और सत्य-प्रचार आदि से सम्बन्धित हदीसें पुस्तक के अन्य भागों में प्रस्तुत की जाएँगी।
इनसान के शरीर में ज़ुबान का महत्व बहुत ज़्यादा है।किसी आदमी की अच्छी या बुरी पहचान बनाने में ज़बान की भूमिका सब से बढ़कर है। परिवार और समाज में बिगाड़ फैलने का एक बड़ा कारण ज़बान ही है। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की एक हदीस के मुताबिक़ बहुत से लोग केवल अपनी ज़बान की कारकर्दगी के कारण जहन्नम में डाले जाएंगे। इस लिए इस्लाम में ज़बान की हिफ़ाज़त करने और उसे क़ाबू में रखने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। इस किताब में क़ुरआन और हदीस के हवाले से ज़बान की हिफ़ाज़त, की ज़रूरत और उसके फ़ायदे पर बात की गई है।
इस्लाम ने बताया है कि अगर इनसान अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलेगा यानी वे काम करेगा जिनको करने का अल्लाह की किताब क़ुरआन मजीद और अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हुक्म दिया है और उन कामों और बातों से बचेगा जिनसे रोका गया है तो फिर वह मरने के बाद अल्लाह की बनाई हुई जन्नत में दाख़िल होगा। क़ुरआन मजीद में ऊपर लिखी हुई सिफ़ात को बयान करने के लिए बहुत-से अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल किया गया है। उन्हीं में से एक लफ़्ज़ 'तज़किया' है। तज़किया क़ुरआन मजीद की एक 'इस्तिलाह' (शब्दावली) है जो अपने अन्दर बहुत सारे मानी रखती है। तज़किए का ताल्लुक़ इनसान की पूरी ज़िन्दगी से है। इसमें रूह को पाक रखने के मानी भी पाए जाते हैं और उसे परवान चढ़ाने और बुलन्द करने के मानी भी। इस दौर के मशहूर आलिमे-दीन मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी साहब ने इस छोटी-सी किताब में तज़किये की शक्लें क़ुरआन मजीद की रौशनी में बयान की हैं। इनको पढ़कर इनसान के लिए यह आसान हो जाता है कि वह दुनिया और आख़िरत की कामयाबी के लिए तज़किये की सिफ़ात अपने अन्दर पैदा करे।
लेखक एक हिंदू चिंतक तथा विचारक हैं, पंजाब के निवासी हैं। उनको ज्ञान तथा कला में विशेष रुचि है। अपने जीवन का एक भाग मध्यपूर्व के इस्लामी संस्कृति के गढ़ में बिताने के कारण उन्हें उसे निकट से देखने-समझने का अवसर मिला है, इसीलिए इस्लाम की विशेष जानकारी रखने वालों में उनकी गणना होती है। उनकी एक और पुस्तक 'इस्लाम और औरत' भी है, जो अति लोकप्रिय है।पुस्तक लेख 'दयामूर्ति का रवैया अपने शत्रुओं के साथ' के शीर्षक से पहले लेख-माला के रूप में 'फ़ारान' उर्दू मासिक, कराची में प्रकाशित हुआ था। उन्हीं लेखों के इस संग्रह को बाद में पुस्तक रूप दिया गया, जिसका अनुवाद यहां प्रस्तुत है।
क़ुरआन मजीद इस ज़मीन पर अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है क्योंकि क़ुरआन ने इन्सान की बुनियादी आवश्यकता की पूर्ति की है। वह आवश्यकता है जीवन-यापन के ऐसे मार्ग की जानकारी जिस पर चल कर आदमी इन्सान बन सके, एक संतुलित और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हो सके और आख़िरत में कामियाबी मिले। क़ुरआन की इस अहमियत का तक़ाज़ा यह है कि मानव जाति का एक-एक व्यक्ति इस महान ग्रन्थ से परिचित कराया जाए। यह पुस्तक इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए लिखी गई है। इसके लिखने का मक़सद यह है कि लोग क़ुरआन के अध्ययन के महत्व को महसूस कर लें और उसका हक़ अदा करने की कोशिश करें। यह पुस्तक मुसलमानों से ज़्यादा ग़ैर-मुस्लिम भाइयों की ज़रूरत को सामने रखकर तैयार की गई है, इसलिए इसमें कुछ ऐसी बातें भी आ गई हैं जो मुसलमानों के लिए ज़रूरी नहीं हैं मगर क्योंकि एक ग़ैर-मुस्लिम के लिए उनका जानना बहुत ज़रूरी है इस लिए उन पर चर्चा की गई।
इस्लाम को तफ़सील से समझने और सही मायनों में उसकी पैरवी का हक़ अदा करने के लिए अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के काम और उनकी बातें (कथन) जिन्हें 'हदीस' कहा जाता है, से वाक़िफ़ होना बहुत ज़रूरी है। इसके बिना ख़ुद क़ुरआन मजीद को भी सही ढंग से नहीं समझा जा सकता। क़ुरआन की तरह हदीस की मूल भाषा भी चूंकि अरबी है, और अरबी जानने वाले बहुत थोड़े लोग हैं, अत: बाक़ी सभी लोगों को इस बड़ी नेमत का बोध कराने के लिए इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं कि दूसरी ज़बानों में इसका तर्जुमा कराया जाए। यह किताब इसी प्रकार की एक मुबारक कोशिश का नतीजा है। इसमें सैकड़ों उनवानात (शीर्षकों) के तहत ऐसी चुनिंदा हदीसों को मुनासिब ढंग से जमा कर दिया गया है जो इंसान और इंसानी समाज के लगभग सभी पहलुओं को अपने अंदर समेट लेती हैं।
इक्कीसवीं शताब्दी विभिन्न धर्म व संस्कृतियों के आपसी परिचय और मिलन का युग है। विभिन्न धर्म-दर्शनों के दृष्टिकोणों, संस्कारों व विचारों को देखने, जानने और समझने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जो उज्जवल भविष्य का प्रतीक है। वर्तमान पीढ़ी यह जानना चाहती है कि अनेक धर्म और उनके धर्म ग्रन्थों का विभिन्न समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण क्या है और वे क्या निवारण पेश करते हैं? उनका मार्ग-दर्शन किसी विशेष समुदाय, देश एवं सीमित काल के लिए है या सम्पूर्ण मानवजाति, समस्त जगत तथा युग-युगांतर के लिए है। प्रस्तुत पुस्तक 'क़ुरआन की शिक्षाएँ- मानवजाति के लिए अनमोल उपहार' आधुनिक पीढ़ी की इन्हीं जिज्ञासाओं को शान्त करने और उस श्रोत का परिचय कराने की दिशा में एक प्रयास है, जिसे ईश्वर की अन्तिम वाणी अर्थात 'पवित्र क़ुरआन' के नाम से जाना जाता है, जो मानव जाति की विभिन्न मौलिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है।