इस्लाम का संवैधानिक और प्रशासनिक कानून एक विस्तृत विषय है, जो न केवल शासन प्रणाली को निर्धारित करता है, बल्कि सामाजिक, नैतिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी मार्गदर्शन प्रदान करता है। प्रस्तुत व्याख्यान में इस्लामी कानून (फिक़्ह) की मूल अवधारणाओं, उद्देश्यों और इसकी व्यावहारिकता पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस्लामी कानून की नींव अल्लाह की संप्रभुता और मनुष्य की खिलाफत पर आधारित है। इस दृष्टिकोण से, इस्लाम केवल एक धार्मिक प्रणाली नहीं, बल्कि एक पूर्ण सामाजिक और संवैधानिक व्यवस्था प्रदान करता है, जिसमें न्याय, अनुशासन और नैतिकता का विशेष स्थान है। इस व्याख्यान में इस्लामी शासन के चार प्रमुख कर्तव्यों—नमाज़ की स्थापना, ज़कात की व्यवस्था, भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना—पर गहराई से चर्चा की गई है। साथ ही, यह स्पष्ट किया गया है कि इस्लामी राज्य का उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि एक आदर्श समाज की स्थापना करना है। यह दस्तावेज़ इस्लामी कानून की बुनियादी समझ प्रदान करने के लिए अत्यंत उपयोगी है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो इस्लामिक संवैधानिक प्रणाली और प्रशासनिक कानून की गहराई को समझना चाहते हैं।
शरीअत के उद्देश्य (मक़ासिदे-शरीअत) और इज्तिहाद दो अलग विषय हैं, लेकिन इनमें गहरी संगति है। शरीअत के सभी आदेशों के पीछे कुछ स्पष्ट या छिपे हुए उद्देश्य होते हैं, जिनका अध्ययन शरीअत की तत्वदर्शिता के तहत किया जाता है। मुसलमान शरीअत के आदेशों को सिर्फ इसलिए मानते हैं क्योंकि वे अल्लाह और उसके रसूल (सल्ल०) के आदेश हैं। साथ ही आदेशों की हिकमत (तत्वदर्शिता) मालूम हो जाए तो इससे ईमान में और मज़बूती आ जाती है। हालांकि शरीअत को बुद्धि की कसौटी पर परखना सही रवैया नहीं, बल्कि अल्लाह और रसूल के आदेशों पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए।अधिकांश विद्वान मानते हैं कि हर आदेश के पीछे इंसान की भलाई, न्याय और संतुलन जैसी हिकमतें मौजूद हैं। शरीअत का हर आदेश इंसान की भलाई के लिए है, चाहे उसकी हिकमत समझ में आए या न आए। इज्तिहाद का उद्देश्य भी इन्हीं उद्देश्यों को समझकर नई समस्याओं का समाधान निकालना है। संक्षेप में, यह पाठ इस्लामी शिक्षाओं के अनुरूप एक आदर्श जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है, जहाँ ज्ञान, सत्य, धैर्य और नैतिकता को सर्वोपरि माना गया है।
इस लेक्चर में इस्लामी कानून (फ़िक़्ह) की मूलभूत अवधारणाओं पर चर्चा की गई है। फ़िक़्हे-इस्लामी के सभी विभागों में ये मौलिक सिद्धांत कार्यरत होते हैं और उनके आदेशों को संगठित करते हैं। इस्लामी कानून में न्याय, नैतिकता और सामूहिक भलाई को प्राथमिकता दी जाती है। संपत्ति और अधिकारों के संबंध में इस्लाम ने स्पष्ट रूप से संतुलित नियम निर्धारित किए हैं, जो व्यक्तिगत और सामाजिक हितों की रक्षा करते हैं।
इस लेख में इस्लामी फ़िक़्ह के सम्पादन और फ़क़ीहों के कार्य प्रणाली पर चर्चा की गई है। यह बताया गया कि इस्लाम में क़ानून (शरीअत) पहले से अस्तित्व में था और राज्य को इसका पालन कराने का माध्यम समझा गया। जब इस्लामी राज्य फैला, तो विभिन्न क़ौमों की नई समस्याओं का समाधान फ़िक़्ह और शरीअत के आधार पर किया गया। इस्लामी फ़िक़्ह सहाबा (रज़ि०) के इज्तिहाद और मार्गदर्शन पर विकसित हुआ। बाद में आने वाले फ़क़ीहों ने इन्हीं सिद्धांतों को आगे बढ़ाया और विस्तृत रूप दिया। मतभेदों के बावजूद, फ़िक़्ह का मूल आधार पवित्र क़ुरआन और सुन्नत ही रहा।
इस लेक्चर में फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी न्यायशास्त्र) के विभिन्न विभागों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें फ़िक़्ह के विकास, इसके उप-विभागों और इसके व्यावहारिक पहलुओं पर चर्चा की गई है। फ़िक़्ह सिर्फ़ धार्मिक कृत्यों तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक और राजनीतिक मामलों को भी कवर करता है। न्यायशास्त्र का विकास समय के साथ हुआ और इसमें नए-नए विषय जुड़ते गए। अंतरराष्ट्रीय क़ानून पर सबसे पहले इस्लामिक फ़ुक़हा (धर्मशास्त्रियों) ने विस्तार से लिखा, पश्चिमी विद्वानों से बहुत बाद में इसे अपना विषय बनाया। यह व्याख्यान फ़िक़्हे-इस्लामी के मूल सिद्धांतों और इसकी शाखाओं का विस्तृत परिचय प्रदान करता है। इसमें यह स्पष्ट किया गया कि कैसे इस्लामी न्यायशास्त्र एक संपूर्ण जीवन-व्यवस्था है जो व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक और कानूनी मामलों को समाहित करता है।
यह लेख, वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, जो इस्लामी फ़िक्ह (इस्लामी क़ानून) के परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने आम पढ़े लिखे लोगों को फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) से परिचित कराने के लिए बारह शीर्षकों के तहत अलग-अलग लेक्चर दिए हैं। यह उस श्रृंखला के तीसरे लेक्चर का लिखित रूप है। इस में इस्लामी फ़िक़्ह (क़ानून) की विशिष्टताओं और गुणों पर चर्चा की गई है। उदाहरण देकर बताया गया है कि इस्लामी क़ानून गतिशील और जीवंत क़ानून हैं। नैतिकता पर आधारित इस्लामी क़ानून में स्वतंत्रता, समानता, संतुलन, लचीलापन, आसानी और नरमी जैसे गुण पाए जाते हैं। इस्लामी फ़िक़्ह केवल एक धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए मार्गदर्शक हो सकती है।
यह लेख, जो वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, फ़िक़्हे-इस्लामी के एक सामान्य परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) को समझाने के लिए बारह शीर्षकों के तहत अलग-अलग लेक्चर दिए हैं। यह उस श्रृंखला के दूसरे लेक्चर का लिखित रूप है। इस में इस्लामी फ़िक़्ह (क़ानून) के सिद्धांत पर बात की गई है। इस्लामी क़ानून के सिद्धांत का परिचय कराते हुए उसका महत्व और इतिहास बताया गया है। शरई आदेश क्या हैं, उनका मूल स्रोत क्या है ये सब बताने के बाद इजमा, इज्तिहाद और क़यास पर भी रौशनी डाली गई है।
यह लेख, जो वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, फ़िक़्हे-इस्लामी के एक सामान्य परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को बारह शीर्षकों के तहत समेटने की कोशिश की है। यह इस सिलसिले का पहला लेक्चर है। इस पहले लेक्चर में सबसे पहले इस्लामी फ़िक़्ह के बारे में फैली ग़लतफ़हमियों को दूर करने की कोशिश की गई है। फिर इस्लामी क़ानूनों का परिचय कराते हुए दूसरे प्रचलित क़ानूनों से इसकी तुलना की गई है और इस्लामी क़ानूनों की विशेषताओं पर तर्क के साथ चर्चा की गई है। यह लेक्चर #1 इस्लामी न्यायशास्त्र (फ़िक़्हे-इस्लामी) की व्याख्या करता है, उसके महत्व को स्पष्ट करता है, और उसे अन्य कानूनी व्यवस्थाओं से अलग दिखाता है। निष्कर्ष: फ़िक़्हे-इस्लामी केवल कानून नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवन-व्यवस्था है। यह केवल न्याय ही नहीं, बल्कि नैतिकता, आध्यात्मिकता और समाज को संतुलित रखने का साधन भी है। यह पूरी तरह से क़ुरआन और सुन्नत पर आधारित है और किसी भी अन्य क़ानूनी व्यवस्था से प्रभावित नहीं है।
मर्कज़ जमाअत-ए-इस्लामी हिंद, नई दिल्ली में गत दिनों “LGBTQ+ मूवमेंट का वैचारिक विश्लेषण” शीर्षक से एक व्यापक प्रोग्राम आयोजित किया गया। प्रोग्राम में जाने-माने बुद्धिजीवियों और स्कॉलर्स ने वैचारिक, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सा और सोशियो-राजनीतिक दृष्टिकोण से LGBTQ+ मूवमेंट के बहुआयामी विश्लेषण पर आधारित प्रेज़ेंटेशंस दिए। JIH के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने ‘इस्लामिक प्रतिमान और LGBTQ+ की बहस’ पर बात की, जो LGBTQ+ मूवमेंट से संबंधित इस्लाम के समग्र दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने आगे कहा कि आज की सभा इस संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक शुरुआत मात्र है, और निकट भविष्य में इस मामले के बारे में और ज़्यादा समझ और बहस होगी। हुसैनी ने स्पष्ट किया कि इस्लामी दृष्टिकोण से, यौन और नैतिकता अल्लाह के आदेशों द्वारा परिभाषित की जाती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस्लाम केवल विषमलैंगिक विवाह की सीमाओं के भीतर यौन संबंधों को ईश्वरीय कानून द्वारा स्वीकृत मानता है, जो व्यक्तिगत अधिकारों पर पश्चिमी सोच के विपरीत है।
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में हदीस-सौरभ, भाग-5 को, जो हदीस-सौरभ का अंतिम भाग है, प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। इस भाग में धर्म-आमंत्रण और आह्वान करने के विभिन्न पक्षों से सम्बद्ध हदीसें और उनकी व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। उन अध्यायों में हदीसों के प्रकाश में मानव के वैचारिक और व्यावहारिक जीवन पर एक गहरी दृष्टि डालते हुए यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य की सफलता और असफलता की धारणा जो हदीसों में प्रस्तुत की गई है, वह हर प्रकार के दोषों और त्रुटियों से मुक्त है। मनुष्य की वास्तविक सफलता इसमें नहीं है कि दुनिया में उसे सुख-सुविधापूर्ण जीवन प्राप्त हो, बल्कि मनुष्य की वास्तविक सफलता इसमें है कि सांसारिक जीवन में वह एक उच्चतम चरित्र का प्रतिरूप हो और अपने विचार और कर्म द्वारा दुनिया को वह मार्ग दिखाए जो सत्य, सफलता और कल्याण का मार्ग है, इसी मार्ग को क़ुरआन ने सिराते-मुस्तक़ीम (सीधा मार्ग) कहा है। अल्लाह से प्रार्थना है कि वह इस सेवा को स्वीकृति प्रदान करे और अधिक-से-अधिक लोग इससे लाभ उठाएँ।
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में 'हदीस सौरभ, का भाग-4' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। इस पुस्तक के भाग-1 से 3 तक में धारणा, उपासना, नैतिकता, और सामाजिक शिक्षाओं से सम्बन्धित हदीसों का संकलन प्रस्तुत किया गया है। चौथे भाग में इस्लामी अर्थव्यवस्था और इस्लामी राजनीति से सम्बन्धित हदीसों का संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अध्ययन से इसका भली-भाँति अनुमान किया जा सकता है कि वास्तव में इस्लाम एक पूर्ण धर्म और समस्त मानव-जीवन के लिए एक संग्राहक जीवन-व्यवस्था है। इस्लाम की अन्य शिक्षाओं की तरह अर्थ और राजनीति से सम्बन्धित इसकी शिक्षाएँ और आदेश भी न्याय पर आधारित हैं। इन शिक्षाओं से समस्त मानवजाति लाभान्वित हो सकती है।
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में 'हदीस सौरभ, का भाग-3' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। हदीस सौरभ, भाग-1 में मौलिक धारणाओं और इबादतों तथा हदीस सौरभ, भाग-2 में नैतिकता से सम्बन्धित हदीसों और उनकी व्याख्याओं को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई थी। हदीस सौरभ, भाग-3 का सम्बन्ध सामाजिकता से है। इसमें उन हदीसों का चयन और उनकी व्याख्या करने की कोशिश की गई है जिनका सम्बन्ध सामाजिकता के सिद्धान्तों एवं समस्याओं से है। अतएव इस भाग में सामाजिक संगठन, सामाजिक मूल्य, परिवार निर्माण, सम्बन्धों की व्यापक परिधि, सामूहिक हित-चेतना, सामाजिक जीवन के आचार और इस्लामी सभ्यता व संस्कृति से सम्बन्धित हदीसों को प्रस्तुत किया गया है और इस सम्बन्ध में चित्रकारी, संगीत, ज्योतिषविद्या और दवा-इलाज या वैद्यक इत्यादि के विवरण भी आए हैं। हमें उम्मीद है कि हदीस सौरभ के दूसरे भाग की तरह तीसरे भाग को भी हमारे पाठक पसन्द करेंगे और इसे उपयोगी पाएँगे। इन शिक्षाओं से समस्त मानवजाति लाभान्वित हो सकती है।
प्रस्तुत है, हदीस सौरभ भाग-2। इससे पूर्व इस पुस्तक का प्रथम भाग प्रस्तुत किया जा चुका है। प्रथम भाग में इस्लाम की मौलिक धारणाओं और इबादतों से सम्बन्धित हदीसों को संगृहीत किया गया है और हदीस सौरभ भाग-2 में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नैतिक शिक्षाओं का सविस्तार वर्णन किया गया है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि वे चीज़ें क्या हैं जो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की दृष्टि में अनैतिक हैं, जिनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।
उत्पादन मनुष्य द्वारा किया जाता है, जितने मनुष्य होंगे उसी अनुपात में उत्पादन होगा और आर्थिक विकास की दर बढ़ेगी । डेढ़ सदी पहले तक दुनिया इसी सीधी सोच पर क़ायम थी फिर यह सोच टेढ़ी हो गई और दुनिया भर में लोगों के मन में यह बात बिठा दी गई, कि ‘बस एक या दो बच्चे होते हैं घर में अच्छे। हालाँकि यह एक सीधी सी बात है कि ज़्यादा बच्चे, यानी ज़्यादा आबादी, ज़्यादा आबादी यानी ज़्यादा उत्पादन, ज़्यादा उत्पादन यानी ज़्यादा ख़ुशहाली। जनसंख्या का सीधा और सकारात्मक प्रभाव आर्थिक विकास पर पड़ता है ।
यह पुस्तक वास्तव में भारत के महान इस्लामी विद्वान मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ ख़ाँ साहब के उर्दू लेखों का हिन्दी अनुवाद है। वे लेख भारत की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। उन लेखों को पाठकों ने बहुत पसन्द किया। लेखों की अहमियत को देखते हुए फ़ैसला किया गया कि उन्हें जमा करके किताब के रूप में प्रकाशित किया जाए। अतः उर्दू में एक किताब “रमज़ान : तब्दीली और इन्क़िलाब का महीना" नाम से प्रकाशित हो गई। प्रस्तुत है उसी उर्दू किताब का हिन्दी अनुवाद।