फ़िक़्ह
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इस्लामी वाणिज्यिक और वित्तीय क़ानून (लेक्चर #10)
परिचय: यह दस्तावेज़ इस्लामी वित्तीय व्यवस्था और फ़िक़्ह (इस्लामी क़ानून) के अंतर्गत आर्थिक नियमों पर केंद्रित है। इसमें ब्याज (रिबा) की निषेधता, ज़कात की अनिवार्यता, और इस्लामिक बैंकिंग की अवधारणा पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस्लामी वित्तीय प्रणाली को पारंपरिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से अलग बताते हुए, इसमें मुदारबा और मुशारका जैसे व्यावसायिक साझेदारी के सिद्धांतों की व्याख्या की गई है। इसके अलावा, दस्तावेज़ में धोखाधड़ी (ग़रर) और अनिश्चितता से बचने की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जिससे एक न्यायसंगत और नैतिक आर्थिक व्यवस्था बनाई जा सके। इस्लामी अर्थव्यवस्था की सामाजिक न्याय, धन के समान वितरण और नैतिकता पर आधारित संरचना को उजागर करते हुए, यह दस्तावेज़ आधुनिक पूंजीवाद (कैपिटलिज़्म) और इस्लामी आर्थिक सिद्धांतों के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है।

अपराध और सज़ा का इस्लामी क़ानून (लेक्चर #-9)
यह दस्तावेज़ "इस्लामी न्याय प्रणाली और शरीअत के सिद्धांतों" पर केंद्रित है, जिसमें अपराध और सज़ा से संबंधित इस्लामी दृष्टिकोण पर गहराई से चर्चा की गई है। इसमें हद (निर्धारित दंड) और ताज़ीर (निर्णयात्मक दंड) की अवधारणाओं को स्पष्ट किया गया है और यह बताया गया है कि शरीअत में दंड देने का उद्देश्य केवल सज़ा देना नहीं, बल्कि समाज में न्याय, नैतिकता और शांति की स्थापना करना है। इसके अतिरिक्त, दस्तावेज़ में इस्लामी क़ानून और पश्चिमी न्याय प्रणाली के बीच तुलना प्रस्तुत की गई है, यह दर्शाते हुए कि इस्लामी दंड संहिता कैसे सामाजिक सुरक्षा और नैतिक मूल्यों को बनाए रखने में सहायक होती है। इसमें यह भी बताया गया है कि शरीअत की सख़्त सज़ाएँ किस तरह अपराधों की रोकथाम में प्रभावी भूमिका निभाती हैं। इस दस्तावेज़ का उद्देश्य इस्लामी न्याय प्रणाली के सिद्धांतों को स्पष्ट करना और यह दर्शाना है कि इस्लामिक क़ानून केवल कठोरता पर आधारित नहीं, बल्कि न्याय और दया के संतुलन पर आधारित हैं।

इस्लाम का संवैधानिक और प्रशासनिक क़ानून (फ़िक़्हे इस्लामी: लेक्चर 8)
इस्लाम का संवैधानिक और प्रशासनिक कानून एक विस्तृत विषय है, जो न केवल शासन प्रणाली को निर्धारित करता है, बल्कि सामाजिक, नैतिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी मार्गदर्शन प्रदान करता है। प्रस्तुत व्याख्यान में इस्लामी कानून (फिक़्ह) की मूल अवधारणाओं, उद्देश्यों और इसकी व्यावहारिकता पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस्लामी कानून की नींव अल्लाह की संप्रभुता और मनुष्य की खिलाफत पर आधारित है। इस दृष्टिकोण से, इस्लाम केवल एक धार्मिक प्रणाली नहीं, बल्कि एक पूर्ण सामाजिक और संवैधानिक व्यवस्था प्रदान करता है, जिसमें न्याय, अनुशासन और नैतिकता का विशेष स्थान है। इस व्याख्यान में इस्लामी शासन के चार प्रमुख कर्तव्यों—नमाज़ की स्थापना, ज़कात की व्यवस्था, भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना—पर गहराई से चर्चा की गई है। साथ ही, यह स्पष्ट किया गया है कि इस्लामी राज्य का उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि एक आदर्श समाज की स्थापना करना है। यह दस्तावेज़ इस्लामी कानून की बुनियादी समझ प्रदान करने के लिए अत्यंत उपयोगी है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो इस्लामिक संवैधानिक प्रणाली और प्रशासनिक कानून की गहराई को समझना चाहते हैं।

शरीअत के उद्देश्य और इज्तिहाद (फ़िक़्हे इस्लामी: लेक्चर 7)
शरीअत के उद्देश्य (मक़ासिदे-शरीअत) और इज्तिहाद दो अलग विषय हैं, लेकिन इनमें गहरी संगति है। शरीअत के सभी आदेशों के पीछे कुछ स्पष्ट या छिपे हुए उद्देश्य होते हैं, जिनका अध्ययन शरीअत की तत्वदर्शिता के तहत किया जाता है। मुसलमान शरीअत के आदेशों को सिर्फ इसलिए मानते हैं क्योंकि वे अल्लाह और उसके रसूल (सल्ल०) के आदेश हैं। साथ ही आदेशों की हिकमत (तत्वदर्शिता) मालूम हो जाए तो इससे ईमान में और मज़बूती आ जाती है। हालांकि शरीअत को बुद्धि की कसौटी पर परखना सही रवैया नहीं, बल्कि अल्लाह और रसूल के आदेशों पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए।अधिकांश विद्वान मानते हैं कि हर आदेश के पीछे इंसान की भलाई, न्याय और संतुलन जैसी हिकमतें मौजूद हैं। शरीअत का हर आदेश इंसान की भलाई के लिए है, चाहे उसकी हिकमत समझ में आए या न आए। इज्तिहाद का उद्देश्य भी इन्हीं उद्देश्यों को समझकर नई समस्याओं का समाधान निकालना है। संक्षेप में, यह पाठ इस्लामी शिक्षाओं के अनुरूप एक आदर्श जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है, जहाँ ज्ञान, सत्य, धैर्य और नैतिकता को सर्वोपरि माना गया है।

इस्लामी क़ानून की मौलिक धारणाएँ (फ़िक़्हे इस्लामी: लेक्चर 6)
इस लेक्चर में इस्लामी कानून (फ़िक़्ह) की मूलभूत अवधारणाओं पर चर्चा की गई है। फ़िक़्हे-इस्लामी के सभी विभागों में ये मौलिक सिद्धांत कार्यरत होते हैं और उनके आदेशों को संगठित करते हैं। इस्लामी कानून में न्याय, नैतिकता और सामूहिक भलाई को प्राथमिकता दी जाती है। संपत्ति और अधिकारों के संबंध में इस्लाम ने स्पष्ट रूप से संतुलित नियम निर्धारित किए हैं, जो व्यक्तिगत और सामाजिक हितों की रक्षा करते हैं।

फ़िक़्ह का सम्पादन और फ़क़ीहों के तरीक़े (फ़िक़्हे इस्लामी: लेक्चर 5)
इस लेख में इस्लामी फ़िक़्ह के सम्पादन और फ़क़ीहों के कार्य प्रणाली पर चर्चा की गई है। यह बताया गया कि इस्लाम में क़ानून (शरीअत) पहले से अस्तित्व में था और राज्य को इसका पालन कराने का माध्यम समझा गया। जब इस्लामी राज्य फैला, तो विभिन्न क़ौमों की नई समस्याओं का समाधान फ़िक़्ह और शरीअत के आधार पर किया गया। इस्लामी फ़िक़्ह सहाबा (रज़ि०) के इज्तिहाद और मार्गदर्शन पर विकसित हुआ। बाद में आने वाले फ़क़ीहों ने इन्हीं सिद्धांतों को आगे बढ़ाया और विस्तृत रूप दिया। मतभेदों के बावजूद, फ़िक़्ह का मूल आधार पवित्र क़ुरआन और सुन्नत ही रहा।

इल्मे-फ़िक़्ह के विभिन्न विषय (फ़िक़्हे इस्लामी : लेक्चर 4)
इस लेक्चर में फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी न्यायशास्त्र) के विभिन्न विभागों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें फ़िक़्ह के विकास, इसके उप-विभागों और इसके व्यावहारिक पहलुओं पर चर्चा की गई है। फ़िक़्ह सिर्फ़ धार्मिक कृत्यों तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक और राजनीतिक मामलों को भी कवर करता है। न्यायशास्त्र का विकास समय के साथ हुआ और इसमें नए-नए विषय जुड़ते गए। अंतरराष्ट्रीय क़ानून पर सबसे पहले इस्लामिक फ़ुक़हा (धर्मशास्त्रियों) ने विस्तार से लिखा, पश्चिमी विद्वानों से बहुत बाद में इसे अपना विषय बनाया। यह व्याख्यान फ़िक़्हे-इस्लामी के मूल सिद्धांतों और इसकी शाखाओं का विस्तृत परिचय प्रदान करता है। इसमें यह स्पष्ट किया गया कि कैसे इस्लामी न्यायशास्त्र एक संपूर्ण जीवन-व्यवस्था है जो व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक और कानूनी मामलों को समाहित करता है।

फ़िक़्हे-इस्लामी की विशिष्टताएँ (फ़िक़्हे इस्लामी : लेक्चर 3)
यह लेख, वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, जो इस्लामी फ़िक्ह (इस्लामी क़ानून) के परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने आम पढ़े लिखे लोगों को फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) से परिचित कराने के लिए बारह शीर्षकों के तहत अलग-अलग लेक्चर दिए हैं। यह उस श्रृंखला के तीसरे लेक्चर का लिखित रूप है। इस में इस्लामी फ़िक़्ह (क़ानून) की विशिष्टताओं और गुणों पर चर्चा की गई है। उदाहरण देकर बताया गया है कि इस्लामी क़ानून गतिशील और जीवंत क़ानून हैं। नैतिकता पर आधारित इस्लामी क़ानून में स्वतंत्रता, समानता, संतुलन, लचीलापन, आसानी और नरमी जैसे गुण पाए जाते हैं। इस्लामी फ़िक़्ह केवल एक धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए मार्गदर्शक हो सकती है।

इल्मे-उसूले-फ़िक़्ह : बुद्धि एवं पुस्तकीय ज्ञान का अनूठा उदाहरण (फ़िक़्हे इस्लामी : लेक्चर 2)
यह लेख, जो वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, फ़िक़्हे-इस्लामी के एक सामान्य परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) को समझाने के लिए बारह शीर्षकों के तहत अलग-अलग लेक्चर दिए हैं। यह उस श्रृंखला के दूसरे लेक्चर का लिखित रूप है। इस में इस्लामी फ़िक़्ह (क़ानून) के सिद्धांत पर बात की गई है। इस्लामी क़ानून के सिद्धांत का परिचय कराते हुए उसका महत्व और इतिहास बताया गया है। शरई आदेश क्या हैं, उनका मूल स्रोत क्या है ये सब बताने के बाद इजमा, इज्तिहाद और क़यास पर भी रौशनी डाली गई है।

फ़िक़्हे-इस्लामी : इस्लामी ज्ञान का महत्वपूर्ण अंग (फ़िक़्हे-इस्लामी : लेक्चर- 1)
यह लेख, जो वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, फ़िक़्हे-इस्लामी के एक सामान्य परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को बारह शीर्षकों के तहत समेटने की कोशिश की है। यह इस सिलसिले का पहला लेक्चर है। इस पहले लेक्चर में सबसे पहले इस्लामी फ़िक़्ह के बारे में फैली ग़लतफ़हमियों को दूर करने की कोशिश की गई है। फिर इस्लामी क़ानूनों का परिचय कराते हुए दूसरे प्रचलित क़ानूनों से इसकी तुलना की गई है और इस्लामी क़ानूनों की विशेषताओं पर तर्क के साथ चर्चा की गई है। यह लेक्चर #1 इस्लामी न्यायशास्त्र (फ़िक़्हे-इस्लामी) की व्याख्या करता है, उसके महत्व को स्पष्ट करता है, और उसे अन्य कानूनी व्यवस्थाओं से अलग दिखाता है। निष्कर्ष: फ़िक़्हे-इस्लामी केवल कानून नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवन-व्यवस्था है। यह केवल न्याय ही नहीं, बल्कि नैतिकता, आध्यात्मिकता और समाज को संतुलित रखने का साधन भी है। यह पूरी तरह से क़ुरआन और सुन्नत पर आधारित है और किसी भी अन्य क़ानूनी व्यवस्था से प्रभावित नहीं है।

हज और उसका तरीक़ा (विस्तार से)
यह किताब हज करनेवालों के लिए लिखी गई है। इसमें इस बात की पूरी कोशिश की गई है कि हज के सभी मक़सद और उसकी हक़ीक़त व रूह के तमाम पहलू, जो क़ुरआन और सुन्नत से साबित हैं, पढ़नेवालों के सामने आ जाएँ, साथ ही उन अमली तदबीरों की भी निशानदेही कर दी गई है जिनको अपनाकर उन मक़सदों को हासिल किया जा सकता है और ये सबकुछ ऐसे ढंग से लिखा गया है कि हज की हक़ीक़त और रूह खुलकर सामने आने के साथ दीन के बुनियादी तक़ाज़े भी पूरी तरह उभरकर सामने आ जाते हैं। इस तरह यह किताब दीन की बुनियादी दावत पेश करने के मक़सद को भी बड़ी हद तक पूरा करती है।

हज कैसे करें (संछिप्त)
इस संक्षिप्त पुस्तिका में हज करने का तरीक़ा स्पष्ट रूप से बयान किया गया है। साथ ही इसमें मदीना मुनव्वरा की हाज़िरी का बयान भी है। हज करनेवालों को ऐसी किताबें ज़रूर पढ़नी चाहिए जिनसे हज का मक़सद, उसकी हक़ीक़त और उसकी रूह के सभी पहलू उनके सामने आ जाएँ।

अज़ान और नमाज़ क्या है
हमारे यहां जिसे नमाज़ कहा जाता है,वह अरबी के शब्द ‘सलात’ का फ़ारसी अनुवाद है। सलात का अर्थ है दुआ। नमाज़ इस्लाम का दूसरा स्तंभ है। मुसलमान होने का पहला क़दम शहादत (गवाही) का ऐलान करना है। यानी यह ऐलान कि मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं। हर बालिग़ मुसलमान पर प्रति दिन पाँच वक़्त की नमाज़ें अदा करना फ़र्ज़ (अनिवार्य) है। हर नमाज़ को उस के निर्धारित समय पर अदा करना ज़रूरी है।साथ ही मर्दों के लिए ज़रूरी है कि वे प्रति दिन पाँच नमाज़ें मस्जिद में जमाअत के साथ अर्थात सामूहिक रूप से अदा करें।

तयम्मुम करने का सही तरीका
तयम्मुम इस्लामी मान्यता के अनुसार पाकी हासिल करने का एक वैकल्पिक तरीक़ा है। नमाज़ इस्लाम का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इस्लाम के माननेवालों के लिए हर हाल में नमाज़ अदा करना अनिवार्य है और नमाज़ अदा करने के लिए पाकी हासिल करना ज़रूरी है। लेकिन ऐसे हालात हो सकते हैं, जब ग़ुस्ल या वुज़ू के लिए पानी उपलब्ध न हो या किसी रोग आदि के कारण पानी छूना वर्जित हो, तो ऐसी हालत में अल्लाह ने आसानी पैदा करते हुए तयम्मुम करने की अनुमति दी है। अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तयम्मुम करके मुसलमानों के सामने उसका व्यवहारिक उदारणपेश कर दिया और उलका तरीक़ा भी बता दिया।

स्नान करने का तरीक़ा
स्नान करना या नहाना, इसे इस्लामी शब्दावली में ग़ुस्ल करना कहते हैं। इसका मतलब है पूरे शरीर को पानी से धोना। आम तौर से इबादत करने के लिए ग़ुस्ल करना ज़रूरी है।ग़ुस्ल करके शरीर को पवित्र और पाक व साफ़ किया जाता है। इस्लाम अपने माननेवालों से अपेक्षा करता है कि वे हर वक़्त पाक और साफ़ रहें। जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो सब से पहले उसे ग़ुस्ल दिया जाता है, यानी नहाया जाता है। फिर जब किसी व्क्ति की मौत होती है तो उसे ग़ुस्ल देकर दफ़्न किया जाता है। इसी तरह जब कोइ व्यक्ति इस्लाम क़ुबूल करता है तो उसे इस्लामी तरीक़े से ग़ुस्ल देकर कलिमा पढ़ाया जाता है।