फ़िक़्ह
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फ़िक़्हे इस्लामी : लेक्चर 3
यह लेख, वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, जो इस्लामी फ़िक्ह (इस्लामी क़ानून) के परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने आम पढ़े लिखे लोगों को फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) से परिचित कराने के लिए बारह शीर्षकों के तहत अलग-अलग लेक्चर दिए हैं। यह उस श्रृंखला के तीसरे लेक्चर का लिखित रूप है। इस में इस्लामी फ़िक़्ह (क़ानून) की विशिष्टताओं और गुणों पर चर्चा की गई है। उदाहरण देकर बताया गया है कि इस्लामी क़ानून गतिशील और जीवंत क़ानून हैं। नैतिकता पर आधारित इस्लामी क़ानून में स्वतंत्रता, समानता, संतुलन, लचीलापन, आसानी और नरमी जैसे गुण पाए जाते हैं। (संपादक)
फ़िक़्हे इस्लामी : लेक्चर 2
यह लेख, जो वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, फ़िक़्हे-इस्लामी के एक सामान्य परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) को समझाने के लिए बारह शीर्षकों के तहत अलग-अलग लेक्चर दिए हैं। यह उस श्रृंखला के दूसरे लेक्चर का लिखित रूप है। इस में इस्लामी फ़िक़्ह (क़ानून) के सिद्धांत पर बात की गई है। इस्लामी क़ानून के सिद्धांत का परिचय कराते हुए उसका महत्व और इतिहास बताया गया है। शरई आदेश क्या हैं, उनका मूल स्रोत क्या है ये सब बताने के बाद इजमा, इज्तिहाद और क़यास पर भी रौशनी डाली गई है। (संपादक)
फ़िक़्हे-इस्लामी : लेक्चर- 1
यह लेख, जो वास्तव में एक लेक्चर का लिखित रूप है, फ़िक़्हे-इस्लामी के एक सामान्य परिचय पर आधारित है। जाने माने स्कॉलर डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी ने फ़िक़्हे-इस्लामी (इस्लामी क़ानून) के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को बारह शीर्षकों के तहत समेटने की कोशिश की है। यह इस सिलसिले की पहला लेक्चर है। इस पहले लेक्चर में सबसे पहले इस्लामी फ़िक़्ह के बारे में फैली ग़लतफ़हमियों को दूर करने की कोशिश की गई है। फिर इस्लामी क़ानूनों का परिचय कराते हुए दूसरे प्रचलित क़ानूनों से इसकी तुलना की गई है और इस्लामी क़ानूनों की विशेषताओं पर तर्क के साथ चर्चा की गई है। (संपादक)
हज और उसका तरीक़ा (विस्तार से)
यह किताब हज करनेवालों के लिए लिखी गई है। इसमें इस बात की पूरी कोशिश की गई है कि हज के सभी मक़सद और उसकी हक़ीक़त व रूह के तमाम पहलू, जो क़ुरआन और सुन्नत से साबित हैं, पढ़नेवालों के सामने आ जाएँ, साथ ही उन अमली तदबीरों की भी निशानदेही कर दी गई है जिनको अपनाकर उन मक़सदों को हासिल किया जा सकता है और ये सबकुछ ऐसे ढंग से लिखा गया है कि हज की हक़ीक़त और रूह खुलकर सामने आने के साथ दीन के बुनियादी तक़ाज़े भी पूरी तरह उभरकर सामने आ जाते हैं। इस तरह यह किताब दीन की बुनियादी दावत पेश करने के मक़सद को भी बड़ी हद तक पूरा करती है।
हज कैसे करें (संछिप्त)
इस संक्षिप्त पुस्तिका में हज करने का तरीक़ा स्पष्ट रूप से बयान किया गया है। साथ ही इसमें मदीना मुनव्वरा की हाज़िरी का बयान भी है। हज करनेवालों को ऐसी किताबें ज़रूर पढ़नी चाहिए जिनसे हज का मक़सद, उसकी हक़ीक़त और उसकी रूह के सभी पहलू उनके सामने आ जाएँ।
अज़ान और नमाज़ क्या है
हमारे यहां जिसे नमाज़ कहा जाता है,वह अरबी के शब्द ‘सलात’ का फ़ारसी अनुवाद है। सलात का अर्थ है दुआ। नमाज़ इस्लाम का दूसरा स्तंभ है। मुसलमान होने का पहला क़दम शहादत (गवाही) का ऐलान करना है। यानी यह ऐलान कि मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं। हर बालिग़ मुसलमान पर प्रति दिन पाँच वक़्त की नमाज़ें अदा करना फ़र्ज़ (अनिवार्य) है। हर नमाज़ को उस के निर्धारित समय पर अदा करना ज़रूरी है।साथ ही मर्दों के लिए ज़रूरी है कि वे प्रति दिन पाँच नमाज़ें मस्जिद में जमाअत के साथ अर्थात सामूहिक रूप से अदा करें।
नमाज़ का आसान तरीक़ा
हमारे यहां जिसे नमाज़ कहा जाता है,वह अरबी के शब्द ‘सलात’ का फ़ारसी अनुवाद है। सलात का अर्थ है दुआ। नमाज़ इस्लाम का दूसरा स्तंभ है। मुसलमान होने का पहला क़दम शहादत (गवाही) का ऐलान करना है। यानी यह ऐलान कि मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं। हर बालिग़ मुसलमान पर प्रति दिन पाँच वक़्त की नमाज़ें अदा करना फ़र्ज़ (अनिवार्य) है। हर नमाज़ को उस के निर्धारित समय पर अदा करना ज़रूरी है।साथ ही मर्दों के लिए ज़रूरी है कि वे प्रति दिन पाँच नमाज़ें मस्जिद में जमाअत के साथ अर्थात सामूहिक रूप से अदा करें। नमाज़ अदा करना इस्लामी आस्था का अनिवार्य हिस्सा है । हर नमाज़ में पढ़ी जाने वाली रकअत की संख्या निर्धारित है। हर नमाज़ के लिए रकअत की सही संख्या को समझना ज़रूरी है ताकि कोई अपनी नमाज़ सही तरीक़े से अदा कर सके। नमाज़ की तैयारी के लिए सही तरीक़े से वुज़ू करना चाहिए और साफ़ और शांत जगह का चुनाव करना चाहिए। हर नमाज़ में क़ुरआन की कुछ आयतें पढ़नी ज़रूरी हैं। नमाज़ एक शारीरिक इबादत है जिसमें खड़े होना, झुकना, बैठना और सजदा करना शामिल है, हर हालत में अलग अलग दुआएं पढ़ी जाती हैं।बालिग़ होने से पहले नमाज़ की पूरी तरकीब सीख लेनी ज़रूरी है।
मोज़े पर मसह
मोज़ा चमड़े या कपड़े से बनाए गए वस्त्र को कहते हैं जो पांव के साथ टखने को छुपाए। सर्दी के दिनों में या सफ़र के दौरान नमाज़ के लिए वुज़ू करते समय मोज़े को उतार कर दोनों पांवों को धोना और फिर उन्हें सुखाकर दोबारा मोज़े पहनना कई बार बहुत कठिन होता है, इस लिए अल्लाह की ओर से यह छूट दी गई है कि ऐसी हालत में मोज़े पर मसह किया जा सकता है। मसह का तरीक़ा यह है कि हाथ की उंगलियों को पानी से गीला करके मोज़ों पर फेर लिया जाए। पुरूष तथा महिला के लिए मोज़े पर मसह करना जाइज़ है। चाहे गर्मी का समय हो या जाड़े का, चाहे व्यक्ति सफ़र में हो या अपने घर में, चाहे वह रोगी हो या स्वस्थ।
स्नान करने का तरीक़ा
स्नान करना या नहाना, इसे इस्लामी शब्दावली में ग़ुस्ल करना कहते हैं। इसका मतलब है पूरे शरीर को पानी से धोना। आम तौर से इबादत करने के लिए ग़ुस्ल करना ज़रूरी है।ग़ुस्ल करके शरीर को पवित्र और पाक व साफ़ किया जाता है। इस्लाम अपने माननेवालों से अपेक्षा करता है कि वे हर वक़्त पाक और साफ़ रहें। जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो सब से पहले उसे ग़ुस्ल दिया जाता है, यानी नहाया जाता है। फिर जब किसी व्क्ति की मौत होती है तो उसे ग़ुस्ल देकर दफ़्न किया जाता है। इसी तरह जब कोइ व्यक्ति इस्लाम क़ुबूल करता है तो उसे इस्लामी तरीक़े से ग़ुस्ल देकर कलिमा पढ़ाया जाता है।
तयम्मुम करने का सही तरीका
तयम्मुम इस्लामी मान्यता के अनुसार पाकी हासिल करने का एक वैकल्पिक तरीक़ा है। नमाज़ इस्लाम का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इस्लाम के माननेवालों के लिए हर हाल में नमाज़ अदा करना अनिवार्य है और नमाज़ अदा करने के लिए पाकी हासिल करना ज़रूरी है। लेकिन ऐसे हालात हो सकते हैं, जब ग़ुस्ल या वुज़ू के लिए पानी उपलब्ध न हो या किसी रोग आदि के कारण पानी छूना वर्जित हो, तो ऐसी हालत में अल्लाह ने आसानी पैदा करते हुए तयम्मुम करने की अनुमति दी है। अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तयम्मुम करके मुसलमानों के सामने उसका व्यवहारिक उदारणपेश कर दिया और उलका तरीक़ा भी बता दिया।
वुज़ू कैसे करें ?
नमाज़ सबसे महान इबादत है। नमाज़ के माध्यम से, एक व्यक्ति खुद को अपने स्रष्टा और स्वामी के सामने हाज़िर होता है। अल्लाह के सामने हाज़िर होने के लिए कुछ प्रोटोकॉल हैं। वुज़ू सबसे महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल है। यह अपने दिल, दिमाग़ और शरीर को शुद्ध, पवित्र और एकाग्र करने का इस्लामी तरीका है। क़ुरआन में स्वयं अल्लाह ने नमाजड के लिए वुज़ू करने का आदेश दिया है :