
अज़ान और नमाज़ क्या है
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फ़िक़्ह
- at 14 April 2020
हमारे यहां जिसे नमाज़ कहा जाता है,वह अरबी के शब्द ‘सलात’ का फ़ारसी अनुवाद है। सलात का अर्थ है दुआ। नमाज़ इस्लाम का दूसरा स्तंभ है। मुसलमान होने का पहला क़दम शहादत (गवाही) का ऐलान करना है। यानी यह ऐलान कि मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं। हर बालिग़ मुसलमान पर प्रति दिन पाँच वक़्त की नमाज़ें अदा करना फ़र्ज़ (अनिवार्य) है। हर नमाज़ को उस के निर्धारित समय पर अदा करना ज़रूरी है।साथ ही मर्दों के लिए ज़रूरी है कि वे प्रति दिन पाँच नमाज़ें मस्जिद में जमाअत के साथ अर्थात सामूहिक रूप से अदा करें।-संपादक
आज बहुत-सी समस्याओं की असल वजह एक-दूसरे के बारे में सही जानकारी का न होना है। यह बड़े दुख की बात है कि जानकारी हासिल करने के इतने अधिक संसाधन मौजूद होते हुए भी हम सभ्य एवं शिक्षित कहे जानेवाले लोग परस्पर एक-दूसरे के बारे में अंधरे में रहते हैं। जानकारी न होने और द्वेष के कारण ऐसा भी होता है कि मुनष्य ऐसी बात का दुश्मन हो जाता है जो वास्तव में उसकी भलाई और कल्याण की है। ऐसा ही कुछ इस्लाम और उसकी शिक्षाओं के साथ हुआ है और बराबर हो रहा है।
नसीम ग़ाज़ी
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम।
‘‘ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
दो शब्द
अज़ान और नमाज़ के बारे में जानकारी न होने की वजह से बड़ी भ्रान्तियाँ पाई जाती हैं। यह बात उस समय और अधिक दुखद हो जाती है जब बिना सही जानकारी के इस्लाम की इस पवित्र एवं कल्याणकारी उपासना के बारे में बेझिझक अनुचित टीका-टिप्पणी कर दी जाती है और उसके बार में सही जानकारी प्राप्त करने का कष्ट तक नहीं किया जाता इस नीति को अपनाने वाले समाज के अनेक वर्गों के लोग हैं- शिक्षित भी हैं और जन-सामान्य भी। बहुत-से लोग अज्ञानतावश यह समझते हैं कि अज़ान में अकबर बादशाह को पुकारा जाता है। कबीरदास जैसे महापुरुष तक ने भी अपनी अनभिज्ञता के कारण अज़ान के बारे में यह कह डालाः
कंकर पत्थर जोर के मस्जिद लिया बनाय।
तापे मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।
आज बहुत-सी समस्याओं की असल वजह एक-दूसरे के बारे में सही जानकारी का न होना है। यह बड़े दुख की बात है कि जानकारी हासिल करने के इतने अधिक संसाधन मौजूद होते हुए भी हम सभ्य एवं शिक्षित कहे जानेवाले लोग परस्पर एक-दूसरे के बारे में अंधरे में रहते हैं। जानकारी न होने और द्वेष के कारण ऐसा भी होता है कि मुनष्य ऐसी बात का दुश्मन हो जाता है जो वास्तव में उसकी भलाई और कल्याण की है। ऐसा ही कुछ इस्लाम और उसकी शिक्षाओं के साथ हुआ है और बराबर हो रहा है।
इस पुस्तिका में नमाज़ का महत्व और अज़ान का मूल अर्थ बताया गया है, ताकि इनका सही स्वरूप आम लोगों के सामने आ सके और इनके बारे में भ्रान्तियाँ दूर हो सकें ।
हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि नमाज़ में आप अपने दिलों की शान्ति और आँखों की ठंढक पाएँगे।
नसीम गाज़ी
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नमाज़ का महत्व
हमें और सम्पूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर ने पैदा किया है। जीवन-यापन के लिए हमें जितनी चीज़ों की आवश्यकता है उन सभी को उसी ने जुटाया है। जीवन और मृत्यु उसी के हाथ में है। वही पालनहार है। जीविका उसी के दिए मिलती है। विनती और प्रार्थनाओं का सुननेवाला और मुसीबत में मदद करनेवाला वही है। वास्तव में उसके सिवा कोई हमें लाभ या हानि पहुँचाने की शक्ति नहीं रखता। दुनिया में जो कुछ है उसका वास्तविक स्वामी ईश्वर ही है। वास्तविक शासक भी वही है। दुनिया का यह कारख़ाना उसी के चलाए चल रहा है। उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का कोई साझीदार नहीं- न उसके अस्तित्व में, न उसके गुणों में और न उसके अधिकारों में। मरने के बाद हमारे जीवन का हिसाब भी वही लेगा और कर्म के अनुसार बदला देगा। हम मनुष्यों के मार्गदर्शन और प्रथप्रदर्शन के लिए ईश्वर ने अपने सन्देष्टा और पैग़म्बर भेजे, इन पैग़म्बरों ने ईश्वर के आदेशानुसार लोगों को जीने का ढंग बताया। इन सभी पैग़म्बरों की शिक्षा एक ही थी- ईश आज्ञापालन और समर्पण। हमारे पालनहार प्रभु ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) को अपना अन्तिम संदेष्टा बनाकर भेजा और उनके द्वारा क़ुरआन रूपी ग्रंथ प्रदान करके हमारे पूर्ण मार्गदर्शन और पथ-प्रदर्शन की व्यवस्था की। इसी मार्गदर्शन का नाम इस्लाम है। इस्लाम नाम किसी व्यक्ति विशेष, किसी देश या किसी अन्य वस्तु के नाम पर नहीं, बल्कि अपने विशेष गुणों के कारण रखा गया है। इस्लाम का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आज्ञापालन और समर्पण'। इस्लाम वास्तव में नाम है स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित करने और उसके आदेशों का स्वेच्छापूर्वक पालन का। इस्लाम की मूल शिक्षा यह है कि बन्दगी और आज्ञापालन केवल ईश्वर ही का किया जाए। ईश्वर ही को उपास्य बनाया जाए, उसी की पूजा और उपासना की जाए। किसी अन्य के आगे अपना सिर न झुकाया जाए और सम्पूर्ण जीवन प्रेमपूर्वक ईश्वर की दासता और उसके आज्ञापालन में व्यतीत हो।
इन बातों को हमेशा याद रखने, ईश्वर की दासता का कर्तव्य निभाने, उसके उपकारों पर आभार व्यक्त करने, ईश्वर के सामने अपनी दासता का प्रदर्शन करने तथा ईश्वर की महानता और सत्ता को स्वीकार करने की अभिव्यक्ति के लिए इस्लाम ने जो उपासना-पद्धति निर्धारित की है उसमें सबसे महत्वपूर्ण उपासना ‘नमाज़' है। नमाज़ का महत्व और उसकी आवश्यकता का उल्लेख ईश्वरीय ग्रन्थ क़ुरआन और पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल०) के कथनों (हदीसों) में बहुत ज़्यादा हुआ है। दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़नी इस्लाम के प्रत्येक अनुयायी (स्त्री और पुरुष) के लिए अनिवार्य है। इस्लाम के किसी अनुयायी के लिए नमाज़ का छोड़ना अधर्म ठहराया गया है। सच्ची बात तो यह है कि नमाज़ के बिना इस्लाम का अनुयायी होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
नमाज़ अगर सोच-समझकर और पूरे होश के साथ पढ़ी जाए तो वह न केवल यह कि मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन को विकसित करती है, उसे ईश्वर का सामीप्य प्रदान करती और उसका प्रिय उपासक बनाती है, बल्कि मनुष्य के सांसारिक जीवन को बुराइयों और दुर्गुणों से मुक्त करने और उसे एक उत्तरदायी और सज्जन पुरुष बनाने की भी अपने अन्दर शक्ति रखती है। सच तो यह है कि नमाज़ इन्सान को इस योग्य बना देती है कि वह अपना पूरा जीवन अपने सृष्टा और पालनहार ईश्वर के आदेशों और निर्देशों के अनुसार सहज रूप से व्यतीत कर सके। यह तथ्य नमाज़ के पूरे स्वरूप से अभिलक्षित होता है। क़ुरआन में नमाज़ का उद्देश्य बताते हुए ईश्वर ने कहा हैः
‘‘ निस्संदेह नमाज़ अश्लील कर्मों और बुरी बातों से रोक देती है।''
(क़ुरआन 29: 45)
जो लोग यूँ देखने में तो नमाज़ पढ़ते हैं किन्तु नमाज़ की आत्मा और उसकी अपेक्षाओं से अनभिज्ञ और बेपरवाह हैं उनके बारे में कुरआन कहता हैः-
‘‘तबाही है ऐसे नमाज़ियों के लिए जो अपनी नमाज़ों (की अपेक्षाओं) से बेपरवाह हैं। ऐसे लोग सिर्फ़ दिखावा करने वाले हैं, और उनका हाल यह है कि (ज़रूरतमंदो को) छोटी-छोटी चीज़ें तक देने से इंकार कर देते हैं।''
(कुरआन 107: 4-7)
ईशभक्त पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल०) का कथन है:
‘‘जिसकी नमाज़ ने उसे अश्लील और बुरे कर्मों से न रोका, उससे तो वह ईश्वर से और अधिक दूर हो गया। ''
इस्लाम को अपेक्षित यह है कि मानव-जीवन नमाज़ के अनुकूल हो, नमाज़ जीवन का सारांश और मानव जीवन नमाज़ की व्याख्या सिद्ध हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि नमाज़ समझ-बूझकर पढ़ी जाए। नमाज़ पढ़ते समय मनुष्य को यह ध्यान रहे कि वह अपने पालनहार प्रभू के समक्ष खड़ा है और उसी से वह विनती-प्रार्थना कर रहा है। यह ध्यान तो अवश्य मन में रहना चाहिए कि ईश्वर उसे देख रहा है और उसकी बातें सुन रहा है। नमाज़ से पूरा लाभ उठाने के लिए यह भी आवश्यक है कि मनुष्य अपना आत्मनिरीक्षण करता रहे और नमाज़ में उसने अपने प्रभु को जो भी वचन दिए है उनको पूरा करने का भरसक प्रयत्न करे।
नमाज़ पढ़ने के लिए मन की शुद्धता के अलावा मनुष्य के शरीर, वस्त्र और स्थान का स्वच्छ होना भी अनिवार्य है।
अज़ान और नमाज़ में जो कुछ पढ़ा जाता है मूल सहित उसका हिन्दी अनुवाद अगले पृष्ठों पर प्रस्तुत किया जा रहा है।
अज़ान- दिन में पाँच बार हर नमाज़ से पहले अज़ान दी जाती है। कुछ लोग जानकारी न होने की वजह से यह समझते हैं कि अज़ान में चीख़-चीख़कर ईश्वर को पुकारा जाता है। यह विचार बिलकुल ग़लत और अज्ञानता पर आधारित है। परिभाषा में ‘अज़ान' का अर्थ है ‘लोगों को नमाज़ के लिए बुलाना'। एक व्यक्ति, जिसे ‘मुज़्ज़िन’ यानी अज़ान देनेवाला कहा जाता है बुलन्द आवाज़ से ईश्वर का वास्ता देकर लोगों को सामूहिक रूप से मसजिद में नमाज़ पढ़ने के लिए पुकारता है।
अज़ान के बोल-
अज़ान देनेवाला अज़ान में निम्न बोल बोलता हैः
अल्लाहु-अकबर । अल्लाहु-अकबर।
‘‘ईश्वर ही महान है। ईश्वर ही महान है।''
अश्हदु-अंल्ला इला-ह इल्लल्लाह। अशहदु अंल्ला इला-ह इल्लल्लाह।
‘‘मैं गवाही देता हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है। मैं गवाही देता हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है।''
अश्हदु अन-न मुहम्मदर-रसूलुल्लाह। अश्हदु अन-न मुहम्मदर-रसूलुल्लाह।
‘‘ मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्ल०) ईश्वर के सन्देष्टा हैं।
मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्ल०) ईश्वर के सन्देष्टा हैं।
हय-य अलस्सलाह। हय-य अलस्सलाह।
‘‘ आओ नमाज़ की ओर। आओ नमाज़ की ओर''।
हय-य अलल फ़लाह। हय-य अलल फ़लाह।
‘‘आओ सफलता एवं कल्याण की ओर। आओ सफलता एवं कल्याण की ओर।''
अल्लाहु-अकबर। अल्लाहु-अकबर।
‘‘ईश्वर ही महान है। ईश्वर ही महान है।''
ल इला-ह इल्लल्लाह
‘‘ईश्वर के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है।''
नोट: सूर्योदय से पूर्व की नमाज़ के लिए जो अज़ान दी जाती है उसमें ये बोल शामिल किए जाते है:
अस्सलातु ख़ैरुम्मिनन-नौम। अस्सलातु ख़ैरुम्मिनन-नौम।
‘‘नमाज़ नींद से उत्तम है। नमाज़ नींद से उत्तम है।''
यह है अज़ान और उसके मंगलकारी बोल। इसके द्वारा उन सभी लोगों को नमाज़ के लिए पुकारा जाता है जो एक ईश्वर में आस्था रखते हैं और मुहम्मद (सल्ल०) को ईश्वर का पैग़म्बर और सन्देष्टा मानते हैं।
नमाज़ में क्या पढ़ते हैं?
नमाज़ के लिए खड़े होने के बाद सबसे पहले दिल में यह इरादा किया जाता है कि हम दुनिया से कटकर ईश्वर के सामने नमाज़ के लिए खड़े हैं। फिर नमाज़ शुरू की जाती है। नमाज़ में जो कुछ पढ़ा जाता है, उसके अरबी बोल और उनका अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा हैः
खड़े होकर पढ़ते हैं:-
अल्लाहु-अकबर
‘‘ईश्वर ही महान है।''
सुब्हा-न कल्ला हुम-म व बि हमदि-क व तबा-र कस्मु-क व तआला जददु-क वला इला-ह ग़ैरु-क
‘‘ऐ परमेश्वर, तू महिमावान है। प्रशंसा तेरे ही लिए है। तेरा नाम शुभ और मंगलकारी है। तेरी शान सर्वोच्च है। तेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभू नहीं है।''
अऊज़ू बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम।
‘‘ मैं धुतकारे हुए शैतान से बचने के लिए ईश्वर की शरण में आता हूँ।''
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम।
‘‘ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आ-लमीन। अर्रहमा-निर्रहीम। मालिकि यौमिददीन। इय्या-क-नअबुदु व इय्या-क- नस्तईन। इहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम। सिरातल्लज़ी-न अन अम-त अलैहिम,ग़ैरिल मग़ज़ूबि अलैहिम वलज़्ज़ाल्लीन।
आमीन!
‘‘स्तुति एवं प्रशंसा ईश्वर ही के लिए है, जो सारे जहानों का रब (स्वामी, पालनहार एवं शासक) है। अत्यन्त कृपाशील बड़ा ही दयावान है। फ़ैसले के दिन (प्रलय दिवस) का स्वामी वही है। (ऐ प्रभू!) हम तेरी ही उपासना करते हैं और तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें संमार्ग दिखा। उन लोगों का मार्ग जिनपर तेरी अनुकम्पा रही, जिन पर तेरा प्रकोप नहीं हुआ और जो पथभ्रष्ट नहीं हुए।''
‘‘ऐ प्रभु ऐसा ही हो! हमारी प्रार्थना सुन ले।''
इसके बाद क़ुरआन का कुछ भाग पढ़ते हैं। यहाँ क़ुरआन के कुछेक अंश प्रस्तुत हैं:
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
वल अस्र, इन्नल इन्सा-न लफ़ी ख़ुस्र, इल्लल-लज़ी-न आ-मनू व अमिलुस्सालिहाति व तवासौ बिलहक़्क़ि व तवासौ बिस्सब्र।
‘‘ ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
‘‘ज़माना गवाह है कि वास्तव में मनुष्य बड़े घाटे में है। सिवाय उन लोगों के जो आस्थावान हैं और भले और अच्छे कर्म करते हैं। एक-दूसरे को सत्य का उपदेश देते हैं और एक-दूसरे को धैर्य का उपदेश देते हैं।''
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
क़ुल हुवल्लाहु अहद। अल्लाहुस्समद। लम यलिद व लम यूलद। व-लम यकुंल्लहू कुफ़ुवन अहद।
‘‘ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
‘‘ कहो, वह परमेश्वर है अकेला (उस जैसा कोई अन्य नहीं)। परमेश्वर किसी का मोहताज नहीं (और सब उसके मोहताज हैं) उसकी कोई संतान नहीं और न वह किसी की संतान है, और उसके समकक्ष कोई नहीं।''
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
क़ुल अऊज़ू बि रब्बिल फ़लक़, मिन शर्रि मा ख़लक़, व मिन शर्रि ग़ासिक़िन इज़ा वक़ब, व मिल शर्रिन-नफ़्फ़ासाति फ़िल उक़द, व मिन शर्रि हासिदिन इज़ा हसद।
‘‘ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
कहो, मैं शरण लेता हूँ सुबह के प्रभू की, हर उस वस्तु की बुराई से बचने के लिए जो उसने पैदा की, और रात के अंधकार की बुराई से बचने के लिए जबकि वह छा जाए, और गाँठों में फूँकनेवालों (फूँकनेवालियों) की बुराई से, और ईर्ष्या करने वाले की बुराई से बचने के लिए, जब वह ईर्ष्या करे।''
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
क़ुल अउज़ू बि रब्बिन्नास, मलिकिन्नास, इलाहिन्नास, मिन शर्रिल वस्वासिल ख़न्नास, अल-लज़ी युवस्विसु फ़ी सुदूरिन्नास, मिनल जिन्नति वन्नास।
‘‘ ईश्वर के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील, बड़ा ही दयावान है।''
‘‘कहो, मै शरण लेता हूँ मनुष्यों के प्रभु की, मनुष्यों के सम्राट की, मनुष्यों के उपास्य की, उस वसवसे (भ्रष्ट विचार) डालने वाले की बुराई से बचने के लिए जो बारम्बार पलटकर आता है जो मुनष्यों के मन में वसवसे (भ्रष्ट विचार) डालता है, चाहे वह जिन्न हो या मनुष्य।''
यह पढ़ने के बाद ‘‘अल्लाहु-अकबर'' ( ईश्वर ही महान है) कहते हुए ईश्वर के समक्ष घुटनों पर हाथ रखकर झुक जाते हैं और निम्न शब्दों में उसका गुणगान करते हैं।
सुब्हा-न रब्बियल अज़ीम। सुब्हा-न रब्बियल अज़ीम। सुब्हा-न रब्बियल अज़ीम।
‘‘मेरा महान प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा महान प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा महान प्रभु बड़ा ही महिमावान है।''
फिर खड़े होते हुए यह पढ़ते हैं:
समिअल्लाहुलिमन हमिदह
‘‘ ईश्वर ने उसकी सुन ली जिसने उसका गुणगान एवं स्तुति की।''
फिर खड़े-खड़े प्रभू का इन शब्दों में गुणगान एवं स्तुति करते हैं:
रब्बना ल-कल हम्द।
‘‘ ऐ हमारे प्रभु! तेरे ही लिए प्रशंसा है।''
अब ‘‘अल्लाहु अकबर'' (ईश्वर ही महान है) कहते हुए अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को प्रभु के समक्ष डाल देते हैं और अपना माथा धरती पर टेककर ईश्वर का गुणगान इन शब्दों में करते हैं:
सुब्हा-न रब्बियल आला। सुब्हा-न रब्बियल आला। सुब्हा-न रब्बियल आला।
‘‘ मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है।''
इसके बाद ‘‘ अल्लाहु-अकबर'' (ईश्वर ही महान है) कहते हुए धरती से माथा उठाते हैं और बैठकर प्रभु से प्रार्थना करते हैं:
अल्लाहुम्मग़फ़िरली वर-हमनी वहदिनी व आफ़िनी वरज़ुक़नी।
‘‘हे परमेश्वर, मुझे क्षमा कर और मोक्ष प्रदान कर, मुझपर दया कर, मुझे संमार्ग पर रख मुझे शान्ति और सुरक्षा दे और मुझे जीविका प्रदान कर।''
अपने पालनहार प्रभु, वास्तविक शासक और स्वामी से यह विनती और प्रार्थना करने के पश्चात ‘‘ अल्लाहु-अकबर'' (ईश्वर ही महान है) कहते हुए उस वास्तविक सम्राट के आगे फिर माथा टेक देते हैं और उस परमेश्वर का गुणगान करते हैं:
सुब्हा-न रब्बियल आला। सुब्हा-न रब्बियल आला। सुब्हा-न रब्बियल आला।
‘‘ मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है। मेरा सर्वोच्च प्रभु बड़ा ही महिमावान है।''
इसके बाद ‘‘ अल्लाहु-अकबर'' (ईश्वर ही महान है) कहते हुए बैठ जाते हैं और फिर यह पढ़ते हैं:
अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस्स-ल-वातु अस्सलामु अलै-क अय्युहन-नबीयु व रहमतुल्लाहि व बरकातुह। अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्लाहिस-सालिहीन, अशहदु अंल्लाइला-ह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन-न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुह।
‘‘ समस्त मौखिक उपासनाएँ, समस्त शारीरिक उपासनाएँ और समस्त आर्थिक उपासनाएँ ईश्वर के लिए हैं। हे सन्देष्टा! आप पर सुख-शान्ति हो और ईश्वर की कृपा और उसकी अनुकम्पा हो। सुख-शान्ति हो हम पर और ईश्वर के समस्त सदाचारी भक्तों पर। मैं गवाही देता हूँ कि ईश्वर के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है, और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके दास (भक्त) और सन्देष्टा हैं।''
अल्लाहुम-म सल्लि अला मुहम्मदिवॅ व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लै-त अला इबराही-म व अला आलि इबराही-म इन्न-क हमीदुम्मजीद।
‘‘ हे परमश्वर! दया और अनुकम्पा कर मुहम्मद पर और उनकी संतति और अनुयायियों पर, जिस प्रकार तूने दया और अनुकम्पा की इबराहीम पर और इबराहीम की संतति और अनुयायियों पर। निस्संदेह तू सर्वथा प्रशंसनीय और महान है।''
अल्लाहुम-म बारिक अला मुहम्मदिवॅ व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक-त अला इबराही-म व अला आलि इबराही-म इन्न-क हमीदुम्मजीद।
‘‘हे परमेश्वर ! बरकत कर मुहम्मद पर और उनकी सन्तति और अनुयायियों पर, जिस प्रकार तूने बरकत की इबराहीम पर और इबराहीम की संतति और अनुयायियों पर। निस्सन्देह तू सर्वथा प्रशंसनीय और महान है।''
इसके बाद क़ुरआन और हदीस में उल्लिखित विनतियों में से कोई विनती करते हैं। जैसे:
रब्बना आतिना फ़िददुन्या ह-स-न-तवॅ व फ़िल आख़िरति ह-स-न-तवॅ व क़िना अज़ाबन्नार।
‘‘ ऐ हमारे प्रभु! हमें दुनिया में भी भलाई दे और आख़िरत (परलोक) में भी भलाई दे, और हमें नरक की यातना से बचा।''
इसके बाद दाईं और बाईं ओर मुँह करके कहते हैं:
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह।
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह।
‘‘ सुख शान्ति हो तुम पर और ईश्वर की कृपा।''
‘‘ सुख शान्ति हो तुम पर और ईश्वर की कृपा।''
इस प्रकार नमाज़ पूर्ण हो जाती है। सूर्यास्त के लगभग डेढ़ घंटे बाद, दिनभर की अन्तिम नमाज़ (इशा की नमाज़) में सोने से पूर्व अपने स्रष्टा, पालनहार और अन्तर्यामी परमेश्वर के सामने गिड़गिड़ाकर यह प्रतिज्ञा भी करते हैं।
अल्लाहुम-म इन्ना नस्तईनु-क व नस्तग़फ़िरु-क व नुअमिनु बि-क, व न-त-वक्कलु अलैक, व नुस्नी अलैकल ख़ैर व नशकुरु-क व ला नकफ़ुरु-क, व नख़लउ व नतरुकु मंय्यफ़-जुरु-क। अल्लाहुम-म इय्या-क नअबुदु, व ल-क-नुसल्ली, व नस्जदु, व इलै-क नसआ, व नहफ़िदु, व नरजू रह-म-तक, व नख़शा अज़ाब-क इन-न अज़ाब-क बिल कुफ़्फ़ारि मुलहिक़।
‘‘ हे परमेश्वर! हम तुझी से सहायता चाहते हैं। तुझी से क्षमा और मोक्ष माँगते हैं। तुझ पर ही आस्था रखते हैं। तुझपर ही भरोसा करते हैं। भलाई के साथ तेरा ही गुणगान करते हैं। तेरा आभार प्रकट करते हैं। तेरी अवज्ञा नहीं करते और जो तेरी अवज्ञा करता है उसका संग हम छोड़ देते हैं और उससे अलग हो जाते हैं । ऐ परमेश्वर! हम तेरी ही उपासना करते हैं। तेरे ही लिए नमाज़ पढ़ते हैं। तेरे समक्ष ही माथा टेकते हैं। हम तेरी ही ओर लपकते हैं और तेरी ही आज्ञा का पालन करते हैं। हम तेरी अनुकम्पा की आशा रखते हैं। हम तेरी यातना से डरते हैं। निस्सन्देह तेरी यातना उन लोगों को मिलकर रहेगी जो तेरी बात नहीं मानते हैं।'
नमाज का आसान तरीका
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