Hindi Islam
Hindi Islam
×

Type to start your search

मुस्लिम उम्मत - पहचान और विशेषताएं

मुस्लिम उम्मत - पहचान और विशेषताएं

संसार के रचयिता ईश्वर की मंशा है कि समस्त मानवजाति संतुलन का मार्ग अपना ले। हर कोई उसके बताए हुए तरीक़े पर जीवन बिताए और सांसारिक संसाधनों का पूरा आनंद ले। कोई किसी पर अत्याचार न करे, कोई किसी का अधिकार हनन न करे। इस तरह संसार सुख शांति का केंद्र बन जाए। परलोक में भी मनुष्य को इसका अच्छा बदला मिले और वह शाश्वत सुख के स्वर्ग में जगह पाए। इस लिए ईश्वर ने आरंभ से ही मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए अपने पैग़म्बरों को खड़ा किया। फिर एक समय पर उसने अपनी तत्वदर्शिता से पैग़म्बरों का सिलसिला बंद कर दिया और यह ज़िम्मेदारी अंतिम पैग़म्बर के अनुयायियों पर डाल दी कि वे रहती दुनिया तक मनुष्यों का उसके बताए हुए तरीक़े पर मार्गदर्शन करते रहें।      -संपादक

मुस्लिम उम्मत एक सन्तुलन-प्रिय समुदाय है। क़ुरआन में इसका यह गुण बताया गया:

 “और इसी तरह तो हमने तुम मुसलमानों को एक ‘‘सन्तुलन पर रहने वाला समुदाय” बनाया है ताकि तुम दुनिया के लोगों पर गवाह रहो और रसूल तुम पर गवाह हों।‘‘  ( क़ुरआन, 2-143)

यह एक आस्था और एक सन्देश को थामने वाला समुदाय है। यह समुदाय किसी विशेष वंश से सम्बन्धित नहीं है, न ही यह कोई क्षेत्राीय समुदाय है जो पूर्व या पश्चिम के किसी देश या क्षेत्र से सम्बन्ध रखता हो। इस समुदाय का सम्बन्ध किसी विशेष भाषा से भी नहीं है। 

यह एक विश्व समुदाय है जिसके व्यक्ति भिन्न-भिन्न रंग, वंश, भाषा और देश के होने के बावजूद एक आस्था एक शरीअत, साझे की सभ्यता और एक क़िबला से एक साथ जुड़े हुए हैं। संसार के विभिन्न देशों में फैले हुए इस समुदाय की भिन्न- भिन्न भाषाओं के अतिरिक्त एक विशेष भाषा भी है। अरबी भाषा जो सारे मुसलमानों के बीच संपर्क स्थापित करने वाली अकेली भाषा है। यह इनके बीच इबादत, इस्लामी संस्कृति और इस्लामी सभ्यता की वह अद्भुत भाषा है जिसे उन हज़ारों प्रतिष्ठित लेखकों ने अपनी-अपनी रचनाओं से माला-माल किया है जिनमें से अधिकतर अरबवासी नहीं थे। 

इस उम्मत में अरबवासी भी हैं, और वे भी जो अरब नहीं हैं, गोरे भी हैं और काले भी, पूर्वी भी हैं और पश्चिमी भी,अफ्रीकी भी हैं और यूरोपीय भी, एशियाई भी हैं और अमेरिकी भी, इसी तरह आस्ट्रेलियाई भी और इनके अलावा भी। इस्लाम इन सबको एक ‘कलिमा’ से जोड़ता है। उनके भीतर से इन्सानों को बांटने वाले रंग, वंश, भाषा व क्षेत्रा के भेदभाव को मिटा देता है। इस्लाम सारे मुसलमानों को एक समुदाय घोषित करता है और उन्हें एक मज़बूत भाईचारे में बांध देता है। इस भाईचारे की बुनियाद एक रब, एक किताब, एक रसूल और एक व्यवस्था पर ईमान है। यही बुनियाद इसे संगठित करती है और इसके आपसी रिश्तों को मज़बूती से जोड़ती है। अल्लाह तआला का फ़रमान है :

‘‘साथ ही उसका आदेश यह है कि यही मेरा सीधा मार्ग है अतः तुम इसी पर चलो और दूसरे मार्गों पर न चलो कि वह उसके मार्ग से हटाकर तुम्हें बिखेर देंगे। यह है वह आदेश जो तुम्हें अल्लाह ने दिया है, कदाचित तुम भ्रष्टता से बचो।’’  ( क़ुरआन, 6:153)

एक मुसलमान अपने देश और अपनी क़ौम से मुहब्बत और उनपर गर्व करने में कोई संकोच नहीं करता किन्तु शर्त यह है कि उसकी देश और क़ौम से मुहब्बत और उसका देश और क़ौम पर गर्व उसके दीन से मुहब्बत और दीन पर गर्व से टकराव और मुस्लिम समुदाय के टूटने का कारण न बने। क्योंकि इस्लाम क़ौम, देश, वंश जैसे सारे इन्सानी सीमाओं को अपने अन्दर समेट लेने की विशेषता रखता है और उसकी दृष्टि में समस्या उस समय होती है जब ये इन्सानी सीमाएं इस्लाम विरोधी धारणाओं की हों या फिर पक्षपात की भावना से ग्रस्त हो जाएं।

इस समुदाय की बुनियाद अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने डाली है। इस उम्मत की विशेषता अल्लाह के आदेश के अनुसार यह है:

‘‘अब संसार में वह उत्तम समुदाय तुम हो जिसे समस्त मानवजाति के मार्गदर्शन और सुधार के लिए मैदान में लाया गया है।’’ (क़ुरआन, 3:110)

यह एक ऐसा समुदाय है जिसे अपने लिए नहीं बल्कि मानवजाति के लिए, उसकी भलाई के लिए, उसके मार्गदर्शन के लिए और उसके विकास व कल्याण के लिए उत्पन्न किया गया है। इसका कल्याणकारी होना अल्लाह के इस आदेश के अनुसार है:

‘‘तुम भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो।’’  (क़ुरआन, 3:110)

अतः इस समुदाय की स्थिति एक ईश्वरीय संदेश और मानवीय व नैतिक गुण रखने वाले एक विश्व समुदाय की है।

इसके संदेश का सार निम्नलिखित दो विषयों पर है:

प्रथम: एक अल्लाह पर ईमान (एकेश्वरवाद)

इसमें तीन बुनियादी विषय शामिल हैंµ

  1. अल्लाह के सिवा किसी को रब न मानना।
  2. अल्लाह के सिवा किसी को कार्यसाधक (बिगड़ी बनाने वाला) न बनाना।
  3. अल्लाह के सिवा किसी को अन्तिम निर्णायक न बनाना।

ये एकेश्वरवाद के तीन मूलतत्व हैं जो सारी दुनिया के मुसलमानों में आस्था की बुनियाद समझे जाते हैं।

द्वितीय: यह समुदाय मानवजाति को सत्य, भलाई और उच्च नैतिक मूल्यों की ओर बुलाने पर नियुक्त है। क़ुरआन में इसी दायित्व को अम्र बिल मारूफष् व नहि अनिल मुनकर (नेकी का आदेश देना और बुराई से रोकना) कहा गया है।

मारुफ़ अर्थात ‘भलाई’ एक व्यापक विषय है। इसमें मौलिक आस्था से सम्बन्धित सारे मूल तत्व, कथन एवं वचन में सच्चाई, परामर्श में यथार्थ (शुद्धता) और कर्म में भलाई और शुद्धता सब शामिल हैं।

इसके विपरीत मुनकर अर्थात बुराई के विषय में तमाम झूठी आस्थाएं, कथन एवं वचन में झूठ, परामर्श में और कर्म में बिगाड़ और भटकाव एवं विचलन सम्मिलित हैं।

इस समुदाय को अपनी यह ज़िम्मेदारी इस तरह निभानी है कि मानव जीवन के सारे विभागों में टेढ़ का सुधार और बिगाड़ का अन्त हो सके।

अल्लाह का फ़रमान है:

‘‘तुममें  कुछ लोग तो ऐसे अवश्य ही रहने चाहिएं जो नेकी की ओर बुलाएं, भलाई का आदेश दें और बुराइयों से रोकते रहें। जो लोग ये काम करेंगे वही सफल होंगे।’’  (क़ुरआन, 3:104)

 

स्रोत

 

----------------------

Follow Us:

FacebookHindi Islam

TwitterHindiIslam1

E-Mail us to Subscribe E-Newsletter:
HindiIslamMail@gmail.com

Subscribe Our You Tube Channel

https://www.youtube.com/c/hindiislamtv

LEAVE A REPLY

Recent posts

  • रमज़ान तब्दीली और इन्क़िलाब का महीना

    रमज़ान तब्दीली और इन्क़िलाब का महीना

    20 June 2024
  • ज़बान की हिफ़ाज़त

    ज़बान की हिफ़ाज़त

    15 June 2024
  • तज़किया क़ुरआन की नज़र में

    तज़किया क़ुरआन की नज़र में

    13 June 2024
  • इस्लाम की बुनियादी तालीमात (ख़ुतबात मुकम्मल)

    इस्लाम की बुनियादी तालीमात (ख़ुतबात मुकम्मल)

    27 March 2024
  • रिसालत

    रिसालत

    21 March 2024
  • इस्लाम के बारे में शंकाएँ

    इस्लाम के बारे में शंकाएँ

    19 March 2024