क़ुरआन समस्त मानवजाति के लिए दुनिया में जीवन बिताने का मार्गदर्शन बना कर भेजा गया है। इसमें जीवन के हरेक विबाग से संबंधित शिक्षाएं मौजूद हैं। चूंकि क़ुरआन जगत के स्रष्टा की रचना है, इसलिए इसकी शिक्षाएं कभी आउटडेटेड होनेवाली नहीं है।दुनिया चाहे कितनी भी विकसित हो जाए, ङालात चाहे कितने भी बदल जाएं, क़ुरआन से लोगों को मार्गदर्शन मिलता रहेगा। प्रस्तुत लेख में क़ुरआन की उन शिक्षाओं को जमा करने का प्रयास किया गया है, जिनका संबंध माता-पिता और सन्तान से है। आइए देखते हैं कि क़ुरआन में दोनों पक्षों के अधिकारों और दायित्वों को कितने तार्किक ढंग से और कितने विस्तार से बयान किया गया है। -संपादक
- क़ुरआन में माता-पिता और सन्तान से संबंधित शिक्षाएं
तुम्हारे रब ने फै़सला कर दिया है कि तुम लोग किसी की बन्दगी न करो मगर सिर्फ़ उस (यानी अल्लाह) की, और माता-पिता के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करो। अगर उनमें से कोई एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उन्हें (गु़स्सा या झुंझलाहट से) ‘ऊंह’ तक भी न कहो, न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो। और उनके आगे दयालुता व नम्रता की भुजाएं बिछाए रखो, और दुआ किया करो कि ‘‘मेरे रब जिस तरह से उन्होंने मुझे बचपने में (दयालुता व ममता के साथ) पाला-पोसा है, तू भी उन पर दया कर। (17:23,24)
- तुम्हारे रब ने फै़सला कर दिया है कि तुम लोग किसी की बन्दगी न करो मगर सिर्फ़ उस (यानी अल्लाह) की, और माता-पिता के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करो। अगर उनमें से कोई एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उन्हें (गु़स्सा या झुंझलाहट से) ‘ऊंह’ तक भी न कहो, न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो। और उनके आगे दयालुता व नम्रता की भुजाएं बिछाए रखो, और दुआ किया करो कि ‘‘मेरे रब जिस तरह से उन्होंने मुझे बचपने में (दयालुता व ममता के साथ) पाला-पोसा है, तू भी उन पर दया कर। (17:23,24)
- और हमने इन्सान को उसके अपने माता-पिता के बारे में आदेश दिया है उसकी मां ने निढाल पर निढाल होकर उसे पेट में रखा, और दो वर्ष उसके दूध छूटने में लगे–कि मेरे प्रति कृतज्ञ हो, और अपने मां-बाप के प्रति भी। अंततः तुम्हें (मृत्यु-पश्चात्) मेरी ही और पलट कर आना है (तब माता-पिता के प्रति तुम्हारे व्यवहार का प्रतिफल हमारी ओर से तुम्हें मिलना ही है)। (31:14)
- लेकिन अगर वे (यानी तुम्हारे माता-पिता) तुझ पर दबाव डालें कि तुम मेरे साथ (ईश्वरत्व में) किसी को साझी बनाओ जिसका ज्ञान तुझे नहीं (अर्थात् जिसके, मेरे साथ शरीक होने का ज्ञान तुझे नहीं है) तो उनकी बात हरगिज़ न मानना। और (उनकी बात रद्द करते हुए भी) उनसे अच्छा व्यवहार ही करना...। (31:15)
- लोगो! अपने रब की नाफ़रमानी (और प्रकोप) से बचो और उस दिन से, जो (परलोक में, इस जीवन के कर्मों के हिसाब-किताब और) प्रतिफल का दिन होगा, डरो; जब न कोई बाप अपनी संतान की ओर से बदला देगा और न ही कोई संतान अपने बाप की ओर से कोई बदला देने वाली होगी। अल्लाह का वादा सच्चा है अतः यह सांसारिक जीवन तुम्हें धोखे में न डाले और न धोखाबाज़ (शैतान) तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखा देने पाए। (31:33)
- और याद करो जबकि इसराईल की संतान से हमने वचन लिया: ‘‘अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करोगे; और मां-बाप के साथ, और नातेदारों के साथ, और अनाथों, और मुहताजों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे...।’’ (2:83)
- जब तुम में से किसी की मौत का वक़्त क़रीब आ जाए, और वह कुछ माल छोड़ रहा हो तो मां-बाप और नातेदारों के लिए विधिवत तौर पर वसीयत करे, यह अनिवार्य है (ईश्वर की नाफ़रमानी व प्रकोप से) बचने वालों पर। फिर जिन्होंने वसीयत सुनने के बाद उसे बदल डाला उसका पाप उन्हीं पर होगा। निःसन्देह अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है। (2:180)
- लोग पूछते हैं हम क्या (और किन पर, पुण्य कार्य व सेवाभाव से) ख़र्च करें? उनसे कहो कि जो कुछ भी ख़र्च करो अपने मां-बाप पर, नातेदारों पर, अनाथों, मुहताजों और (सहायता व सहयोग के हक़दार) मुसाफि़रों पर ख़र्च करो। जो भलाई भी तुम करोगे अल्लाह उसे ख़ूब जान रहा होगा (अर्थात् तुम्हें उसका अच्छा बदला देगा)। (2:215)
- हमने मनुष्य को उसके अपने माता-पिता के साथ उत्तम व्यवहार करने का आदेश दिया। उसकी मां ने उसे (पेट में) तकलीफ़ के साथ उठाये रखा और उसे जना भी तकलीफ़ के साथ। और उसे गर्भ की अवस्था में रहने और दूध छूटने की मुद्दत तीस महीने है। यहां तक कि जब वह पूरी शक्ति को पहुंचा और चालीस वर्ष का हुआ तो उसने दुआ मांगी: ‘‘ऐ मेरे रब! मुझे संभाल कि मैं तेरी उस कृपा के प्रति कृतज्ञता (एहसानमन्दी) दिखाऊं जो तू ने मुझ पर और मेरे मां-बाप पर की है। और यह कि मैं ऐसे अच्छे कर्म करूं जो तुझे प्रिय हों और मेरी संतान को भी नेक बनाकर मुझे सुख दे। मैं तेरे आगे तौबा करता हूं और तेरे आज्ञाकारी (मुस्लिम) बन्दों में से हूं।’’ (46:15)
- (ऐ नबी!) कह दो, ‘‘आओ, मैं तुम्हें सुनाऊं कि तुम्हारे रब ने तुम्हारे ऊपर क्या पाबन्दियां लगाई हैं: यह कि किसी भी चीज़ को उसका साझीदार न ठहराओ, और माता-पिता के साथ सद्व्यवहार करो, और निर्धनता के कारण (यानी आर्थिक कारणों से) अपनी संतान की हत्या न करो (चाहे उस हत्या का रूप कैसा भी हो), हम तुम्हें भी रोज़ी देते हैं उन्हें भी। और अश्लील कामों के निकट भी न जाओ चाहे वे खुले हों या छिपे......। (6:51)
- और प्रत्येक माल के लिए, जो मां-बाप और नातेदार (मृत्यु-पश्चात्) छोड़ जाएं, हम ने वारिस (Inheritence) ठहरा दिए हैं......। (4:33)
- अल्लाह की बन्दगी करो और उसके साथ किसी को साझी न बनाओ और उत्तम व्यवहार करो अपने मां-बाप के साथ......। (4:36)
- ऐ ईमान वालो! अल्लाह के लिए गवाही देते हुए इन्साफ़ पर मज़बूती से जमे रहो चाहे वह (गवाही) स्वयं तुम्हारे अपने मां-बाप और नातेदारों के विरुद्ध ही क्यों न हो......। (4:135)
- पुरुषों का उस माल में एक हिस्सा है जो उनके (मृत) मां-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो, और स्त्रियों का भी उस माल में एक हिस्सा है जो उनके मां-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो–चाहे वह थोड़ा हो या ज़्यादा–यह हिस्सा निश्चित किया हुआ है। (4:7)
- उपरोक्त के अतिरिक्त, मौत पा जाने वाले व्यक्ति के कुछ तयशुदा नातेदारों को, उसकी छोड़ी हुई धन-सम्पत्ति में से ‘विरासत’ की हिस्सेदारी, उस के मां-बाप, बेटों, बेटियों, भाइयों तथा उसकी पत्नी या पति आदि को मिलने का निर्धारण। (4:11,12)
स्रोत
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