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हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) और भारतीय धर्म-ग्रंथ

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) और भारतीय धर्म-ग्रंथ

डॉ एम. ए. श्रीवास्तव

सत्य हमेशा स्पष्ट होता है। उसके लिए किसी तरह के प्रमाण की ज़रूरत नहीं होती। यह बात और है कि हम उसे न समझ पाएं या कुछ लोग हमें उससे दूर रखने की कोशिश करें। अब यह बात छिपी नहीं रही कि वेदों, उपनिषदों और पुराणों में इस सृष्टि के अंतिम पैग़म्बर (संदेष्टा) हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के आगमन की भविष्यवाणियां की गई हैं। मानवतावादी सत्यगवेषी विद्वानों ने ऐसे अकाट्य प्रमाण पेश कर दिए, जिससे सत्य खुलकर सामने आ गया है।

वेदों में जिस उष्ट्रारोही (ऊंट की सवारी करनेवाले) महापुरुष, के आने की भविष्यवाणी की गई है, और जिस का नाम ‘नराशंस’ बताया गया है वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही हैं। ‘नराशंस’ का अरबी अनुवाद ‘मुहम्मद’ होता है। ‘नराशंस’ के बारे में वर्णित समस्त क्रियाकलाप हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के आचरणों और व्यवहारों से आश्चर्यजनक समानता रखते हैं। पुराणों और उपनिषदों में कल्कि अवतार की चर्चा है, जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही सिद्ध होते हैं। कल्कि का व्यक्तित्व और चारित्रिक विशेषताएं अंतिम पैग़म्बर (सल्ल॰) के जीवन-चरित्र को पूरी तरह निरूपित करती हैं। यही नहीं उपनिषदों में साफ़ तौर से हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का नाम आया है और उन्हें अल्लाह का रसूल (संदेशवाहक) बताया गया है। पुराण और उपनिषदों में यह भी वर्णित है कि ईश्वर एक है। उसका कोई भागीदार नहीं है। इनमें ‘अल्लाह’ शब्द का उल्लेख कई बार किया गया है। बौद्धों और जैनियों के धर्म-ग्रंथों में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के बारे में भविष्यवाणियां की गई हैं।
इन सच्चाइयों के आलोक में मानव मात्र को एक सूत्र में बांधने और मानव एकता एवं अखंडता को मज़बूत करने के लिए सार्थक प्रयास हो सकते हैं। यह समय की मांग भी है। वैमनस्य और साम्प्रदायिकता के इस आत्मघाती दौर में ये सच्चाइयां मील का पत्थर साबित हो सकती हैं और एक आदर्श समाज का निर्माण कर सकती है । इन्हीं उद्देश्यों को लेकर सभी सच्चाइयों को एक साथ आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। इस कोशिश में हमें कितनी सफलता मिली यह आप ही बताएंगे। उम्मीद है कि ये सच्चाइयां दिल की गहराइयों में उतरकर हम सभी को मानव कल्याण के लिए प्रेरित करेंगी। प्रस्तुत पुस्तिका में डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय के शोध ग्रंथों ‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ और ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के अलावा अन्य स्रोतों से प्राप्त तथ्यों एवं सामग्रियों का समावेश किया गया है।

मुहम्मद (सल्ल॰) और वेद

वेदों में नराशंस या मुहम्मद (सल्ल॰) के आने की भविष्यवाणी कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है, बल्कि धर्मिक ग्रंथों में ईशदूतों (पैग़म्बरों) के आगमन की पूर्व सूचना मिलती रही है। यह ज़रूर चमत्कारिक बात है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के आने की भविष्यवाणी जितनी अधिक धार्मिक ग्रंथों में की गई है, उतनी किसी अन्य पैग़म्बर के बारे में नहीं की गई। ईसाइयों, यहूदियों और बौद्धों के धार्मिक ग्रंथों में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के अंतिम ईशदूत के रूप में आगमन की भविष्यवाणियां की गई हैं।
वेदों का ‘नराशंस’ शब्द ‘नर’ और ‘आशंस’ दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘नर’ का अर्थ मनुष्य होता है और ‘आशंस’ का अर्थ ‘प्रशंसित’। सायण ने ‘नराशंस’ का अर्थ ‘मनुष्यों द्वारा प्रशंसित’ बताया है।1 यह शब्द कर्मधारय समास है, जिसका विच्छेद ‘नरश्चासौ आशंसः’ अर्थात प्रशंसित मनुष्य होगा। डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय कहते हैं कि ‘‘इसीलिए इस शब्द से किसी देवता को भी न समझना चाहिए। ‘नराशंस’ शब्द स्वतः ही इस बात को स्पष्ट कर देता है कि ‘प्रशंसित’ शब्द जिसका विशेषण है, वह मनुष्य है। यदि कोई ‘नर’ शब्द को देववाचक मानें तो उसके समाधान में इतना स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि ‘नर’ शब्द न तो देवता का पर्यायवाची शब्द ही है और न तो देवयोनियों के अंतर्गत कोई विशेष जाति।’’ 2
‘नर’ शब्द का अर्थ मनुष्य होता है, क्योंकि ‘नर’ शब्द मनुष्य के पर्यायवाची शब्दों में से एक है। ‘नराशंस’ की तरह ‘मुहम्मद’ शब्द का अर्थ ‘प्रशंसित’ होता है। ‘मुहम्मद’ शब्द ‘हम्द’ धतु से बना है, जिसका अर्थ प्रशंसा करना होता है। ऋग्वेद में ‘कीरि’ नाम आया है, जिसका अर्थ है ईश्वर-प्रशंसक। अहमद शब्द का भी यही अर्थ है। अहमद, मुहम्मद साहब का एक नाम है।3
वेदों में ऋग्वेद सबसे पुराना है। उसमें ‘नराशंस’ शब्द से शुरू होने वाले आठ मंत्र हैं। ऋग्वेद के प्रथम मंडल, 13वें सूक्त, तीसरे मंत्र और 18वें सूक्त, नवें मंत्र तथा 106वें सूक्त, चैथे मंत्र में ‘नराशंस’ का वर्णन आया है। ऋग्वेद के द्वितीय मंडल के तीसरे सूक्त, दूसरे मंत्र, 5वें मंडल के पांचवें सूक्त, दूसरे मंत्र, सातवें मंडल के दूसरे सूक्त, दूसरे मंत्र, 10वें, मंडल के 64वें सूक्त, तीसरे मंत्र और 142वें सूक्त, दूसरे मंत्र में भी ‘नराशंस’ विषयक वर्णन आए हैं। सामवेद संहिता के 1319वें मंत्र में और वाजसनेयी संहिता के 28वें अध्याय के 27वें मंत्र में भी ‘नराशंस’ के बारे में ज़िक्र आया है। तैत्तिरीय आरण्यक और शतपथ ब्राह्मण ग्रंथों के अलावा यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी ‘नराशंस’ का उल्लेख किया गया है।

नराशंसकी चारित्रिक विशेषताओं की 
हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) से साम्यता

वेदों में ‘नराशंस’ की स्तुति किए जाने का उल्लेख है। वैसे ऋग्वेद काल या कृतयुग में यज्ञों के दौरान ‘नराशंस’ का आह्नान किया जाता था। इसके लिए ‘प्रिय’ शब्द का इस्तेमाल होता था। ‘नराशंस’ की चारित्रिक विशेषताओं की हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) से तुलना इस प्रकार है—

(1) वाणी की मधुरता

ऋग्वेद में ‘नराशंस को ‘मधुजिह्न’ कहा गया है4, यानी उसमें वाणी की मधुरता होगी। मधुर-भाषिता उसके व्यक्तित्व की ख़ास पहचान होगी। सभी जानते हैं कि मुहम्मद (सल्ल॰) की वाणी में काफ़ी मिठास थी।

(2) अप्रत्यक्ष ज्ञान रखनेवाला

‘नराशंस’ को अप्रत्यक्ष ज्ञान रखनेवाला बताया गया है। इस ज्ञान को रखनेवाला कवि भी कहलाता है। ऋग्वेद संहिता में ‘नराशंस’ को कवि बताया गया है।5 हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को अल्लाह ने कुछ अवसरों पर परोक्ष बातों की जानकारी प्रदान की थी, अतः पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल॰) ने रोमियों और ईरानियों के युद्ध में रूमियों की हार और नव वर्ष के अन्दर ही रूमियों की होनेवाली विजय की पूर्व जानकारी दी थी। नीनवा की लड़ाई में रूमियों की जीत 657 ई॰ में हुई थी। पवित्र क़ुरआन की सूरा रूम इसी से संबंधित है। रूमियों की पराजय के पश्चात पुनः विजय प्राप्त कर लेने का उल्लेख आया है। इसके साथ ही निकट भविष्य में इन्कार करनेवालों पर मुसलमानों के विजयी होने की भविष्यवाणी की गई है।
वे ईश्वर को सबसे अध्कि प्यारे और उसे जाननेवाले थे। वे नबी थे। ‘नबी’ शब्द ‘नबा’ धातु से बना हुआ शब्द है, जिसका अर्थ सन्देश देनेवाला होता है। आप (सल्ल॰) ईश्वर के सन्देशवाहक थे। आचार्य रजनीश के शब्दों में ‘आप ईश्वर तक पहुंचने की बांसुरी’ हैं जिसमें फूंक किसी और की है।’’

(3) सुन्दर कान्ति के धनी

‘नराशंस को सुन्दर कान्तिवाला बताया गया है। इस विशेषता का उल्लेख करते हुए ऋग्वेद में ‘स्वर्चि’ शब्द आया है।6
‘स्वर्चि’ शब्द का विच्छेद है ‘शोभना अर्यिर्यस्य सः’ यानी सुन्दर दीप्ति या कान्ति से युक्त। इस शब्द का तात्पर्य यह है कि इतने सुन्दर स्वरूप का व्यक्ति जिसके चेहरे से रौशनी-सी निकलती हो। ऋग्वेद में ही बता दिया गया है कि वह अपने महत्व से घर-घर को प्रकाशित करेगा।7 स्पष्ट है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने घर-घर में ज्ञान की ज्योति जलाई, अज्ञान को ख़त्म कर दिया और अंधकार में भटक रहे लोगों को नई रौशनी दी।
ऋग्वेद में ही कहा गया है कि, ‘अहमिद्धि पितुष्परि मेधमृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।। (ऋग्वेद: 8, 6, 10)
सामवेद में भी है: ‘अहमिध पितुः परिमेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।। (सामवेद प्र॰ 2 द॰ 6 मं॰ 8) अर्थात, अहमद (मुहम्मद) ने अपने रब से हिकमत से भरी जीवन व्यवस्था को हासिल किया। मैं सूरज की तरह रौशन हो रहा हूं।
मुहम्मद साहब इतने सुन्दर थे कि लोग स्वतः आपकी तरफ़ खिंच आते थे। इस संदर्भ में रेवरेंड बासवर्थ स्मिथ ने ‘मुहम्मद एंड मुहम्मेदनिज़्म’ में लिखा है कि मुहम्मद साहब के विरोधी भी उनकी आकर्षण शक्ति तथा उनकी गरिमा से प्रभावित होकर उनका सम्मान करने को बाध्य हो जाते थे। तमाम बाधाओं और विरोध के बावजूद मुहम्मद साहब घर-घर में ज्ञान की ज्योति प्रकाशित करते रहे।’’

(4) पापों का निवारक

ऋग्वेद में नराशंस को ‘पापों से लोगों को हटानेवाला’ बताया गया है।8 यह कहने की ज़रूरत ही नहीं है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की समस्त शिक्षाएं और आप (सल्ल॰) पर अवतरित क़ुरआन समग्र जीवन को पापों से उबार देता है। यह सन्मार्ग का आईना (दर्पण) है जिसे ‘देखकर’ और उस पर अमल करके व्यक्ति को तमाम पापों से छुटकारा मिल जाता है। उसकी दुनियावी (सांसारिक) और मरने के बाद की ज़िन्दगी ख़ुशहाल हो जाती है। इस्लाम जुआ, शराब और अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से लोगों को रोकता है तथा अवैध कमाई से प्राप्त धन को खाने, ब्याज लेने और किसी का हक़ मारने को निषिद्ध ठहराता है। वह अत्याचार, दमन और शोषण से मुक्त समाज की स्थापना करता है।

(5) पत्नियों की साम्यता

‘नराशंस’ के पास 12 पत्नियां होंगी, इस बात की पुष्टि भी अथर्ववेद के उसी मंत्र से होती है जिस मंत्र में उसके सवारी के रूप में ऊंट के प्रयोग करने की बात का उल्लेख है। यह मंत्र इस प्रकार है—
उष्ट्रा यस्य प्रवाहिणो वधूमन्तो द्विर्दश।
वर्ष्मा रथस्य नि जिहीडते दिव ईषमाणा उपस्पृशः।
—अथर्ववेद कुन्ताप सूक्त: 20/127/2
अर्थात, जिसकी सवारी में दो ख़ूबसूरत ऊंटनियां हैं। या जो अपनी बारह पत्नियों समेत ऊंटों पर सवारी करता है उसकी मान-प्रतिष्ठा की ऊंचाई अपनी तेज़ रफ्तार से आसमान को छूकर नीचे उतरती है।
इस मंत्र के अनुरूप हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की बारह पत्नियां थीं।
आप (सल्ल॰) की पत्नियों के नाम क्रम से इस प्रकार हैं—1. हज़रत ख़दीजा (रज़ि॰), 2. हज़रत सौदा (रज़ि॰), 3. हज़रत आइशा (रज़ि॰), 4. हज़रत हफ्सा (रज़ि॰), 5. हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰), 6. हज़रत उम्मे हबीबा (रज़ि॰), 7. हज़रत ज़ैनब बिन्त जहश (रज़ि॰), 8. हज़रत ज़ैनब बिन्त ख़ुज़ैमा (रज़ि॰), 9. हज़रत जुवैरिया (रज़ि॰), 10. हज़रत सफीया (रज़ि॰), 11. हज़रत रैहाना (रज़ि॰) और 12. हज़रत मैमूना (रज़ि॰)9 उल्लेखनीय है कि और किसी भी धार्मिक व्यक्ति की बारह पत्नियां नहीं थीं। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में कुछ महापुरुषों के पास सैकड़ों पत्नियां होने का विवरण मिलता है।

(6) स्थानगत साम्यता

अथर्ववेद के उपर्युक्त मंत्र में नराशंस द्वारा सवारी के रूप में ऊंटों के उपयोग की जो बात कही गई है, उससे नराशंस की पहचान के साथ उसके आगमन के स्थान का भी बोध होता है। ऊंट की सवारी का अर्थ यह हुआ कि नराशंस जिस स्थान में पैदा होगा वहां ऊंटों की प्रचुरता होगी। ऊंट रेगिस्तानी क्षेत्र में अध्कि पाए जाते हैं। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का जन्म अरब के रेगिस्तानी क्षेत्र में हुआ।

(7) अन्य साम्यताएं

अथर्ववेद में अन्योक्ति अलंकार के माध्यम से नराशंस के बारे में पहचान की कतिपय बातें भी बताई गई हैं।
कुन्ताप सूक्त में है—
इदं जना उप श्रुत नराशंस स्तविष्यते।
इसका अर्थ बताते हुए पं॰ क्षेम करण दास त्रिवेदी लिखते हैं—‘‘हे मनुष्यो! यह आदर से सुनो कि मनुष्यों में प्रशंसा वाला पुरुष बड़ाई किया जाएगा।’’ 10
एक अन्य मंत्र में कहा गया है—
एष इषाय मामहे शतं निष्कान् दश स्रजः।
त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्रा दश गोनाम्।। (अथर्ववेद: 20/127/3)
अर्थात, ईश्वर मामहे ऋषि को सौ सोने के सिक्के देगा, दस हज़ार गायें देगा, तीन सौ अरबी घोड़े देगा और दस हार ।
यहां मामहे ऋषि से मतलब मुहम्मद (सल्ल॰) से है। आप (सल्ल॰) को ईश्वर द्वारा सौ स्वर्ण मुद्राएं देने का तात्पर्य ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति से है जो रत्नवत महत्व के हों। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) जो शिक्षाएं लोगों को देते थे उनकी सुरक्षा का कार्य सौ व्यक्ति करते थे। ये अस्हाबे सुफ्फ़ः कहलाते थे। ये लोगों को शिक्षाओं की जानकारी भी देते थे और शिक्षाओं की रक्षा भी करते थे।
इसी प्रकार दस हज़ार गो प्रदान किए जाने का अर्थ ‘अच्छे व्यक्ति दिए जाने से है। ‘गो’ अलंकारिक शब्द है, जो साधारणतया अच्छे व्यक्ति के अर्थ में प्रयुक्त होता है। मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के अनुयायियों की संख्या आपके जीवन काल के अंतिम चरण में दस हज़ार थी। मक्का को जीतने के लिए मदीना से जाते समय आपके सहायकों की संख्या दस हज़ार थी। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के दस हज़ार अनुयायी जब मक्का पहुंचे तो वहां न किसी प्रकार का युद्ध हुआ न ही किसी अनुयायी ने किसी को नष्ट किया, इसी कारण से उन दस हज़ार लोगों को गो कहा गया।
नराशंस को तीन सौ अर्वन की प्राप्ति का अर्थ ऐसे वीर योद्धाओं की प्राप्ति है जो घोड़े की तरह तेज़ हों। ‘अर्वन शब्द का शाब्दिक अर्थ घोड़ा होता है। यह भी गो की भांति अलंकारिक शब्द है। बद्र की लड़ाई में मुहम्मद (सल्ल॰) के साथियों (सहाबा) की संख्या तीन सौ थी।
नराशंस को दस स्रजः या गले का हार दिए जाने से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति हैं, जो गले के हार के समान हों और नराशंस को प्रिय हों। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के दस ऐसे व्यक्ति थे, जो उन पर अपने प्राणों को भी समर्पित करने को तैयार रहते थे। वे गले के हार की तरह मुहम्मद (सल्ल॰) के चारों तरफ़ हमेशा रहते थे। ये दसों व्यक्ति अशरः मुबश्शरः कहे जाते हैं। ये हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के वे साथी (सहाबी) हैं, जिन्हें जन्नत की ख़ुशख़बरी दी गई।
इनके नाम हैं—हज़रत अबूबक्र (रज़ि॰), हज़रत उमर (रज़ि॰), हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रज़ि॰), हज़रत तलहा (रज़ि॰), हज़रत अली (रज़ि॰), हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि॰), हज़रत सईद बिन ज़ैद (रज़ि॰), हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ (रज़ि॰), हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह (रज़ि॰) और हज़रत ज़ुबैर (रज़ि॰)।
अथर्ववेद के एक मंत्र में कहा गया है कि ‘ऐ लोगो, यह (ख़ुशख़बरी) ध्यानपूर्वक सुनो, नराशंस की प्रशंसा की जाएगी। साठ हज़ार नब्बे दुश्मनों में इस हिजरत करनेवाले, अमल फैलानेवाले को हम (सुरक्षा) में लेते हैं। ऋग्वेद के एक मंत्र में भी मामहे ऋषि के दस हज़ार साथियों (सहाबा) का ज़िक्र आया है। मंत्र इस प्रकार है—
अनस्वन्ता सतपतिर्मामहे मे गावा चेतिष्ठो असुरो मघोनः।
त्रैवृष्णो अग्ने दशभिः सहस्त्रैर्वैश्वानरः त्र्यरुणाश्चिकेत।।
(ऋग्वेद म॰ 5, सू॰ 27, मंत्र 1)
अर्थात, हक़परस्त, अत्यंत विवेकशील, शक्तिशाली, दानी मामहे ऋषि ने कलाम (वाणी) के साथ मुझे सुशोभित किया। सर्वशक्तिमान, सब ख़ूबियां रखनेवाला, सारे संसार के लिए कृपामय’ दस हज़ार सहयोगियों (सहाबा) के साथ मशहूर हो गया।
मामहे ऋषि हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही हैं। डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी मामहे ऋषि को मुहम्मद (सल्ल॰) ही माना है।

संदर्भ

  1. नराशंसः यो नरैः प्रशस्यते। (सायण भाष्य, ऋग्वेद संहिता, 5/5/2)। मूल मंत्र इस प्रकार है—‘‘नराशंसः सुषूदतीमं यज्ञमदाभ्यः। कविर्हि मधुहस्त्य।’’ ‘‘नराशंस’’ शब्द का अर्थ स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी मनुष्यों द्वारा प्रशंसित बताया है।
    (ऋग्वेद हिन्दी भाष्य, पृ॰ 25, प्रकाशक: सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा)
    2. ‘नराशंस और अंतिम ऋषि’, पृ॰ 5
    3. पं॰ रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी ‘कान्ति’ के 28 अक्तूबर-4 नवम्बर 1990 के अंक में। ऋग्वेद का मूल श्लोक यह है—यो रघ्रस्योचोदितायः कृशस्य यो ब्रह्मणो नाधमानस्य कीरेः।। (ऋग्वेद, 2/12/6)
    4. नराशंस मिहप्रियम स्मिन्यज्ञ उप ह्नये। मधुजिह्नं हविष्कृतम्। (ऋग्वेद संहिता, 1/13/3)
    5. नराशंसः सुदूषूदतीमं यज्ञमदाम्यः। कविर्हि मधुहस्त्यः। (ऋग्वेद संहिता, 5/5/2)
    6. नराशंसः प्रतिधमान्यञ्ञन तिस्रो दिवः प्रति मह्रा स्वर्चिः।। (ऋग्वेद संहिता, 2/3/2)
    7. नराशंसः प्रतिधमान्यञ्ञन तिस्रो दिवः प्रति मह्रा स्वर्चिः।। (ऋग्वेद संहिता, 2/3/2)
    8. नराशंसं वाजिनं वाजयन्निह क्षयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे।
    रथं न दुर्गाद् वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अहंसो निष्पिपर्तन।। 
    (ऋग्वेद, 1/106/4)
    9. अल्लामा इब्ने ज़री की किताब में यही क्रम है।
    10. अथर्ववेद हिन्दी भाष्य, पृ॰ 1401, सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली।

पुराणों के प्रमाण

भविष्य पुराण और हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)
केवल वेद ही नहीं बल्कि पुराणों में भी हज़रत मुहम्मद साहब का कार्यस्थल रेगिस्तानी क्षेत्र में होने का उल्लेख आता है। भविष्य पुराण में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ‘एक-दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आएंगे। उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तानी क्षेत्र में आएंगे।1 इस अध्याय का श्लोक 6,7,8 भी मुहम्मद साहब के विषय में है। पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल॰) के जन्म स्थान सहित अन्य साम्यताएं कल्कि अवतार से भी मिलती हैं, जिसका वर्णन कल्कि पुराण में है। इसकी चर्चा बाद में की जाएगी।
यहां यह उल्लेख कर देना उचित होगा कि भविष्य पुराण में कई नबियों (ईशदूतों) की जीवन-गाथा है। इस्लाम पर भी विस्तृत अध्याय है। इस पुराण में बिल्कुल सटीक तौर पर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के विषय की बातें आती हैं। इसमें जहां महामद आचार्य के नाम की मुहम्मद शब्द से निकटता है, वहीं पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल॰) की पहचान की अन्य बातें बिल्कुल सत्य उतरती हैं। इनमें ज़रा भी व्याख्या की ज़रूरत नहीं है। भविष्य पुराण के अनुसार, शालिवाहन (सात वाहन) वंशी राजा भोज दिग्विजय करता हुआ समुद्र पार (अरब) पहुंचेगा। इसी दौरान (उच्च कोटि के) आचार्य शिष्यों से घिरे हुए महामद (मुहम्मद सल्ल॰) नाम से विख्यात आचार्य को देखेगा। भविष्य पुराण (प्रतिसर्ग पर्व 3, अध्याय 3, खंड 3, कलियुगीयेतिहास समुच्चय) भविष्य पुराण में कहा गया है—

लिंड्गच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः।
उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम ।25।
विना कौलं च पशवस्तेषां भक्ष्या मता मम।
मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति।26।।
तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः।। (श्लोक 25-27)

इन श्लोकों का भावार्थ इस प्रकार है—‘हमारे लोगों का ख़तना होगा, वे शिखाहीन होंगे, वे दाढ़ी रखेंगे, ऊंचे स्वर में आलाप करेंगे यानी अज़ान देंगे। शाकाहारी और मांसाहारी (दोनों) होंगे, किन्तु उनके लिए बिना कौल यानी मंत्र से पवित्र किए बिना कोई पशु भक्ष्य (खाने योग्य) नहीं होगा (वे हलाल मांस खाएंगे)। इस प्रकार हमारे मत के अनुसार हमारे अनुयायियों का मुस्लिम संस्कार होगा। उन्हीं से मुसलवन्त यानी निष्ठावानों का धर्म फैलेगा और ऐसा मेरे कहने से पैशाच धर्म का अंत होगा।’ 2
भविष्य पुराण की इन भविष्यवाणियों की हर चीज़ इतनी स्पष्ट है कि ये स्वतः ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) पर खरी उतरती हैं। अतः आप (सल्ल॰) की अंतिम ऋषि (पैग़म्बर) के रूप में पहचान भी स्पष्ट हो जाती है। ऐसी भी शंका नहीं है कि इन पुराणों की रचना इस्लाम के आगमन के बाद हुई है। वेद और इस तरह के कुछ पुराण इस्लाम से काफी पहले के हैं।

पं॰ धर्मवीर उपाध्याय का शोध

डॉ॰ कमला कांत तिवारी और डॉ॰ रमेश प्रसाद गर्ग ने अपनी प्रकाशित पुस्तक ‘कलयुग के अंतिम नबी’ में संस्कृत के उद्भट विद्वान पं॰ धर्मवीर उपाध्याय की पुस्तक ‘अंतिम ईशदूत’3 के कतिपय अंशों को उद्धृत करते हुए लिखा है—
‘‘पंडित जी ने एक और अनोखी बात लिखी है कि कागभुसुन्डी एवं गरुड़ दोनों ही श्री रामचंद्र की सेवा में दीर्घकाल तक रहे एवं उनके उपदेशों को न केवल सुनते ही रहे अपितु अन्य जिज्ञासु श्रोताओं को सुनाते भी रहे। इन उपदेशों की चर्चा श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘संग्राम पुराण’ के अनुवाद में (जिसमें ईश्वर ने अपने पुत्र शण्मुख को आने वाले धर्म और अवतार के प्रति भविष्य वाणी की है) लिखा है, जिसका अनुपाद इस प्रकार से है—
यहां न पक्षपात कछु राखहुं। वेद पुराण संत मत भाखहुं।।
अर्थात् मैंने यहां किसी का पक्ष न लेकर वेदों, पुराणों और संतों के मत को प्रकट किया है।
संवत् विक्रम दोउ अनड़्गा। महांकोक नस चतुर्पतड़्ग।।
अर्थात्, सातवीं विक्रम सदी के चारों सूर्यों की ज्योति के साथ वह जन्म लेगा।
राजनीति भव प्रीति दिखावे। आपन मत सबका समझावै।।
अर्थात् राज्य करने में जैसी स्थिति हो प्रेम से अथवा कठोरता से अपना मत सभी को समझा सकेगा।
सुरन चतुसुदर शतचारी। तिनको वंश भयो अतिभारी।।
अर्थात् उनके चारों देव साथ होंगे जिनकी सहायता से उसके अनुयायियों की संख्या बढ़ेगी।
तब तक सुंदरमाद्दिकोंया। बिना महामद पार न होए।।
जब तक उसका पत्र रहेगा महामद के बिना पार नहीं होगा—
तबसे मानहु जन्तु भिखारी। समरथ नाम एहि ब्रत धारी।।
अर्थात्, मानव, भिक्षुक एवं जन्तु सभी इस व्रतधारी का नाम जपते4 ईश्वर के भक्त हो जाएंगे।
हर सुंदर निर्माण का होई। तुलसी वचन सत्य सच सोई।।
अर्थात् फिर कोई उसकी तरह जन्म न लेगा गोस्वामी तुलसी जी वह कह रहे हैं जो सत्य है। (संग्राम पुराण, स्कन्द 12 काण्ड 6)।
पं॰ धर्मवीर जी ने इसी प्रकार अन्य कथा भी लिखी है वह इस प्रकार है—जब श्री शंकर जी पृथ्वी को त्याग हिमालय पर्वत की ओर जाने लगे तो उन लोगों को संबोधित करते हुए बोले, जिन्होंने उन्हें सताया होगा कि आप लोग कुमार्ग पर न चलें अपितु सद्मार्ग पर चलें अन्यथा द्वापर के अंत में एक ऐसा ईश्वर-भक्त जन्म लेगा जो आप जैसे आततायियों का अंत कर देगा।
जब श्री शंकर जी कैलाश पर्वत की चोटी पर पहुंच कर ध्यानावस्थित हुए तो किसी दिन उनकी प्रिय पत्नी पार्वती जी ने प्रश्न पूछा कि हे महादेव! द्वापर के अंत में ऐसा पराक्रमी कौन होगा जो धर्मभ्रष्टों का अंत करेगा। श्री शंकर जी ने उन्हें उत्तर दिया आदाम (आदम) के 6000 वर्षों बाद शम्बल द्वीप के समीप मंदरीने में ईश्वर का अंश आदम की संतान चमत्कारिक रूप में अवतरित होगा जिस धरती पर वह जन्म लेगा वह मेरी प्रिय धरती होगी। उसके सिर पर मेघ आच्छादित रहेंगे और धरती पर उसकी परछाई नहीं पड़ेगी।
उपरोक्त कथा को श्री रामचन्द्र के गुरु (श्री वशिष्ठ मुनि) ने भगवान शंकर जी से सुनकर रामचंद्र जी को बतलाया। मुनि वशिष्ठ श्री शिव के भक्त तो थे ही, रामचंद्र के गुरु भी थे। श्री हरगोविन्द लाल ने अपनी लिखित ‘रामकथा’ के पृष्ठ 112 पर इन सभी बातों की चर्चा की है। पंडित धर्मवीर जी भागवत पुराण, स्कन्द दस के अन्तर्गत लिखते हैं कि कल्कि अवतार की सवारी विद्युत सरीखी तीव्रगामी होगी एवं उसका मुखमंडल स्त्री की भांति एवं शेष शरीर घोड़े की तरह होगा।
अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के पूर्व अध्यक्ष लाला हंसराज ने बतलाया है कि राजा सामरी की अन्तिम इच्छा केरल के एक मठ में लिखित प्रमाण स्वरूप सुरक्षित है, जिसका अवलोकन करने से ही स्पष्ट हो जाता है कि राजा मदीना गया था एवं राजा ने हज़रत मुहम्मद के धर्म को स्वीकार किया।’’
(‘कलयुग के अंतिम ऋषि’, पृ॰ 7-9 प्रकाशक, हिन्दी-उर्दू साहित्य संगम, (रजिस्टर्ड) ए 25/42, मछोदरी, वाराणसी, 221001)

संदर्भ

  1. एतस्मिन्नन्तिरे म्लच्छ आचार्य्योंण समन्वितः।।
     महामद इति ख्यातः शिष्य शाखा सममन्विः।।
    2.  ‘Similarities Between Hinduism & Islam’ (By Dr. Zakir Naik, p. 37, Publisher : M.S.S., New Delhi-25), ‘अन्तिम सन्देष्टा कब कहां और कौन?’ पृष्ठ, 52 53 लेखक: मुफ़्ती मुहम्मद सरवर फ़ारूक़ी नदवी (आचार्य, बी॰एच॰यू॰, वाराणसी) प्रकाशक: मक्तबा पयामे अमन, 504/38/2 फ़ारूक़ी मंज़िल, नदवा रोड, लखनऊ (उ॰प्र॰)
    3.  यह पुस्तक 1927 ई॰ में नेशनल प्रिंटिंग प्रेस, दरिया गंज, दिल्ली से सर्वप्रथम प्रकाशित हुई थी।
    1.  मूल पाठ में ‘मानहु’ शब्द प्रयुक्त हुआ है, अतः इसका अर्थ ‘मानना’ हुआ। इसलिए अर्थ यह होगा कि ‘इस व्रत धारी को मानते ही ईश्वर के भक्त हो जाएंगे।’

कल्कि अवतार और हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)

संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय ने अपने एक शोध पत्र में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को कल्कि अवतार बताया है। कल्कि और मुहम्मद (सल्ल॰) की विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करके डॉ॰ उपाध्याय ने यह सिद्ध कर दिया है कि कल्कि का अवतार हो चुका है और वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही हैं। इस शोध पत्र की भूमिका में वे लिखते हैं—
‘‘वैज्ञानिक अणु विस्फोटों से जो सत्यानाश संभव है, उसका निराकरण धार्मिक एकता संबंधी विचारों से हो जाता है। जल में रहकर मगर से बैर उचित नहीं, इस कारण मैंने वह शोध किया जो धार्मिक एकता का आधार है। राष्ट्रीय एकता के समर्थकों द्वारा इस शोध पत्र पर कोई आपत्ति नहीं होगी। आपत्ति होगी तो कूपमण्डूक लोगों को, यदि वे कूप के बाहर निकलकर संसार को देखें तो कूप को ही संसार मानने की उनकी भावना हीन हो जाएगी।’’...‘‘मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शोध पुस्तक के अवलोकन से भारतीय समाज में ही नहीं, बल्कि अखिल भूमण्डल में एकता की लहर दौड़ पड़ेगी और धर्म के नाम पर होने वाले कलह शांत होंगे।’
यहां पर इस शोध पत्र की ख़ास बातें और अन्य स्रोतों से प्राप्त तद् विषयक सामग्री पेश की जा रही है।

अवतार का तात्पर्य

अवतार शब्द ‘अव’ उपसर्गपूर्वक ‘तृ’ धातु में ‘घञ्’ प्रत्यय लगाकर बना है। इसका अर्थ पृथ्वी पर आना है। ’ईश्वर का अवतार’ शब्द का अर्थ है—सबको संदेश देनेवाले महात्मा का पृथ्वी पर जन्म लेना। कल्कि अवतार को ईश्वर का अंतिम अवतार बताया गया है। ‘ईश्वर का अवतार’ शब्द में ‘का’ शब्द संबंधकारक चिन्ह है, अतः ज़ाहिर है कि ईश्वर से संबद्ध व्यक्ति का अवतीर्ण होना। ईश्वर से संबद्ध कौन है? उसका भक्त ही सबसे संबद्ध हो सकता है। ऋग्वेद में ऐसे व्यक्ति को ‘कीरि’ कहा गया है। हिन्दी में ‘कीरि’ शब्द का अर्थ ‘ईश्वर का प्रशंसक’ और अरबी में ‘अहमद’ होता है। लेकिन क्या ईश्वर का प्रशंसक ‘कीरि’ या ‘अहमद’ एक नहीं हो सकता। हर देश और समय के लिए अलग-अलग अवतार हुए हैं, क्योंकि एक अवतार से पूरे विश्व का कल्याण नहीं हो सकता था। क़ुरआन में है कि हर भाग में रसूल (संदेशवाहक) भेजे गए। अंतिम अवतार कल्कि की अलग विशेषता है। वे किसी एक हिस्से के लिए नहीं वरन् समग्र विश्व के लिए भेजे गए।
जब लोग वास्तविक धर्म से विमुख होकर अधर्म की राह पकड़ लेते हैं या धर्म को अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ देते हैं, तो उन्हें फिर सही मार्ग दिखाने के लिए ईश्वर अपने अवतार या पैग़म्बर भेजता है।

अंतिम अवतार के आने का लक्षण

कल्कि के अवतरित होने का समय उस माहौल में बताया गया है, जबकि बर्बरता का साम्राज्य होगा। लोगों में हिंसा व अराजकता का बोलबाला होगा। पेड़ों का न फलना, न फूलना। अगर फल-फूल आएं भी तो बहुत कम। दूसरों को मारकर उनका धन लूट लेना और लड़कियों को पैदा होते ही पृथ्वी में गाड़ देना। एक ईश्वर को छोड़कर कई देवी-देवताओं की पूजा, पेड़-पौधों एवं पत्थरों को भगवान मानने की प्रवृत्ति, भलाई की आड़ में बुराई करने की प्रवृत्ति, असमानता आदि। ऐसे ही नाज़ुक दौर में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) भेजे गए थे।
सातवीं शताब्दी के शुरू में रोमन और पर्सियन साम्राज्यों की जितनी बुरी अवस्था थी, उतनी शायद कभी नहीं हुई। बाइजेन्टाइन साम्राज्य के क्षीण हो जाने से संपूर्ण शासन भ्रष्ट हो चुका था। पादरियों के दुष्कर्मों और दुष्टताओं के फलस्वरूप ईसाई धर्म बहुत गिर गया था। पारस्परिक संघर्षों और शत्रुता के कारण अफरा-तफरी का आलम था। ऐसे समय में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) भेजे गए। इस्लाम धर्म रोमन साम्राज्य के संघर्षों से दूर था। इस धर्म के भाग्य में यही लिखा था कि यह तूफान की तरह से संपूर्ण पृथ्वी पर छा जाएगा और अपने समक्ष बहुत-से साम्राज्यों, शासकों और प्रथाओं को इस तरह उड़ा देगा जैसे कि आंधी मिट्टी को उड़ा देती है।1 इसी प्रकार ‘‘सेल’’ ने क़ुरआन के अनुवाद की प्रस्तावना में लिखा है—‘‘गिरजाघर के पादरियों ने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे और शांति प्रेम एवं अच्छाइयां लुप्त हो गई थीं। वे मूल धर्म को भूल गए थे। धर्म के विषय में अपने तरह-तरह के विचार बनाए हुए परस्पर कलह करते रहते थे। इसी पृथ्वी में रोमन गिरजाघरों में बहुत-सी भ्रम की बातें धर्म के रूप में मानी जाने लगीं और मूर्ति-पूजा बहुत ही निर्लज्जता से की जाने लगी।2 इसके परिणामस्वरूप एक ईश्वर के स्थान पर तीन ईश्वर हो गए और मरयम को ईश्वर की मां समझा जाने लगा। अज्ञानता के इस दौर में अल्लाह ने अपना अंतिम रसूल भेजा।
दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि अंतिम अवतार उस समय होगा, जबकि युद्धों में तलवार का इस्तेमाल होता होगा और घोड़ों की सवारी की जाती हो। भागवत पुराण में उल्लेख है कि ‘देवताओं द्वारा दिए गए वेगगामी घोड़े पर चढ़कर आठों ऐश्वर्यों और गुणों से युक्त जगत्पति तलवार से दुष्टों का दमन करेंगे।3 तलवारों और घोड़ों का युग तो अब समाप्त हो चुका है। आज से लगभग चैदह सौ वर्ष पूर्व तलवारों और घोड़ों का प्रयोग होता था। उसके लगभग सौ वर्ष बाद से बारूद का निर्माण सोडा और कोयला मिलाकर होने लगा था। वर्तमान समय में तो घोड़ों और तलवारों का स्थान टैंकों और मिसाइलों आदि ने ले लिया है।

कल्कि का अवतार-स्थान

कल्कि के अवतार का स्थान शंभल ग्राम में होने का उल्लेख कल्कि एवं भागवत पुराण में किया गया है। यहां पहले यह निश्चय करना आवश्यक है कि शंभल ग्राम का नाम है या किसी ग्राम का विशेषण। डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय के मतानुसार ‘शंभल’ किसी ग्राम का नाम नहीं हो सकता, क्योंकि यदि केवल किसी ग्राम विशेष को ‘शंभल’ नाम दिया गया होता तो उसकी स्थिति भी बताई गई होती। भारत में खोजने पर यदि कोई ‘शंभल’ नामक ग्राम मिलता है तो वहां आज से लगभग चैदह सौ वर्ष पहले कोई पुरुष ऐसा नहीं पैदा हुआ जो लोगों का उद्धारक हो। फिर अंतिम अवतार कोई खेल तो नहीं है कि अवतार हो जाए और समाज में ज़रा-सा परिवर्तन भी न हो, अतः ‘शंभल’ शब्द को विशेषण मानकर उसकी व्युत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है।
(1) ‘शंभल’ शब्द ‘शम्’ (शांत करना) धातु से बना है अर्थात, जिस स्थान में शांति मिले।
 (2) सम् उपसर्गपूर्वक ‘वृ’ धातु में अप् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न शब्द ‘संवर’ हुआ। वबयोरभेदः और रलयोरभेदः के सिद्धांत से शंभल शब्द की निष्पत्ति हुई, जिसका अर्थ हुआ ’जो अपनी ओर लोगों को खींचता है या जिसके द्वारा किसी को चुना जाता है।’
(2) ‘शम्वर’ शब्द का निघण्टु (1/12/88) में उदकनामों के पाठ हैं। ‘र’ और ‘ल’ में अभेद होने के कारण शंभल का अर्थ होगा जल का समीपवर्ती स्थान’।4
इस प्रकार वह स्थान जिसके आसपास जल हो और वह स्थान अत्यंत आकर्षण एवं शांतिदायक हो, वही शंभल होगा। अवतार की भूमि पवित्र होती है। ‘शंभल’ का शाब्दिक अर्थ है—शांति का स्थान। मक्का को अरबी में ‘दारुल अमन’ कहा जाता है, जिसका अर्थ शांति का घर होता है। मक्का में प्राचीन काल से कअबा स्थित था जो मक्कावासियों के समक्ष प्रतिष्ठित व आदरणीय भी था तथा श्रद्धा व आस्था का पात्र भी। अतः वहां रक्तपात व युद्ध निषिद्ध था। मक्का मुहम्मद (सल्ल॰) का कार्य स्थल रहा है।

जन्म तिथि

कल्कि पुराण में अंतिम अवतार के जन्म का भी उल्लेख किया गया है। इस पुराण के द्वितीय अध्याय के श्लोक 15 में वर्णित है—
द्वादश्यां शुक्ल पक्षस्य, माधवे मासि माधवम्।
जातो ददृशतुः पुत्रं पितरौ हृष्टमानसौ।।
अर्थात ‘‘जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शुक्ल पक्ष और रबी फसल में चन्द्रमा की 12वीं तिथि को होगा।’’ एक अन्य श्लोक में है कि कल्कि शंभल में विष्णुयश नामक पुरोहित के यहां जन्म लेंगे।5
हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल॰) का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता है: मधुमास का हर्षोल्लास का महीना। आप (सल्ल॰) मक्का में पैदा हुए। विष्णुयशसः कल्कि के पिता का नाम है, जबकि मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अब्दुल्लाह का। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा=अर्थात् अल्लाह का बन्दा=अब्दुल्लाह।
इसी तरह कल्कि की माता का नाम सुमति (सोमवती) आया है जिसका अर्थ है—शांति एवं मननशील स्वभाववाली। आप (सल्ल॰) की माता का नाम भी आमिना था जिसका अर्थ है शांतिवाली।

अंतिम अवतार की विशेषताएं

कल्कि की विशेषताएं हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल॰) के जीवन (सीरत) से मिलती-जुलती हैं। इन विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन यहां पेश किया जा रहा है।
1. अश्वारोही और खड्गधरी : पहले लिखा जा चुका है कि भागवत पुराण में अंतिम अवतार के अश्वारोही और खड्गधरी होने का उल्लेख है। उसकी सवारी ऐसे घोड़े की होगी जो तेज़ गति से चलनेवाला होगा और देवताओं द्वारा प्रदत्त होगा। तलवार से वह दुष्टों का संहार करेगा। घोड़े पर चढ़कर तलवार से दुष्टों का दमन करेगा। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को भी फ़रिश्तों द्वारा घोड़ा प्राप्त हुआ था, जिसका नाम बुर्राक़ था। उस पर बैठकर अंतिम रसूल (सल्ल॰) ने रात्रि को तीर्थ यात्रा की थी। इसे ‘मेराज’ भी कहते हैं। इस रात आपकी अल्लाह से बातचीत हुई थी और आपको बैतुल-मक़्दिस (यरुशलम) भी ले जाया गया था।
मुहम्मद साहब को घोड़े अधिक प्रिय थे। आपके पास सात घोड़े थे। हज़रत अनस (रज़ि॰) से रिवायत है कि मैंने हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को देखा कि घोड़े पर सवार थे और गले में तलवार लटकाए हुए थे।6 आपके पास नौ तलवारें थीं। कुल परम्परा से प्राप्त तलवारें जुल्फिक़ार नामक तलवार, क़लईया नामवाली तलवार।
2. दुष्टों का दमनकल्कि के प्रमुख विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि यह दुष्टों का ही दमन करेगा।7 धर्म के प्रसार और दुष्टों के दमन में मदद के लिए देवता भी आकाश से उतर आएंगे।8 हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने दुष्टों का दमन किया। उन्होंने डकैतों, लुटेरों और अन्य असामाजिक तत्वों को सुधारकर मानवता का पाठ पढ़ाया और उन्हें सत्य मार्ग दिखाया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने ऐसे कुसंस्कृत लोगों को सुसंस्कार से रहना सिखाया। औरतों को उनका हक़ दिलाया। एकेश्वर के साथ तमाम देवताओं के घालमेल का आपने ज़ोरदार खंडन अर्थात् प्राचीनतम एकेश्वरत्व को पूर्णतया शुद्ध किया तथा कहा कि इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है, बल्कि सनातन धर्म है। दुष्टों के दमन में आपको फ़रिश्तों की मदद मिली। क़ुरआन मजीद में अल्लाह कहता है कि अल्लाह ने तुमको बद्र की लड़ाई में मदद दी और तुम बहुत कम संख्या में थे, तो तुमको चाहिए कि तुम अल्लाह ही से डरो और उसी के शुक्रगुज़ार होओ। जब तुम मोमिनों से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफी नहीं है कि तुम्हारा रब तुमको तीन हज़ार फ़रिश्ते भेजकर मदद करे, बल्कि अगर उस पर सब्र करो और अल्लाह से डरते रहो, तो अल्लाह तुम्हारी मदद पांच हज़ार फ़रिश्तों से करेगा।9
सूरः अहज़ाब में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को ईश्वर की मदद मिलने का उल्लेख है। इस सूरः की आयत संख्या 9 में वर्णित है कि ‘‘ऐ ईमानवालो! अल्लाह की उस कृपा का स्मरण करो, जब तुम्हारे विरुद्ध सेनाएं आईं तो हमने भी उनके विरुद्ध  आंधी और ऐसी सेनाएं भेजीं, जिनको तुम नहीं देखते थे, और जो कुछ तुम कर रहे थे, वह अल्लाह देख रहा था।’’ इस प्रकार दुष्टों का नाश करने में ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की मदद के लिए अपने फ़रिश्ते और अपनी सेनाएं भेजी।
3. जगत्पतिपति शब्द ‘पा’ (रक्षा करना) धातु में उति ‘प्रत्यय’ के संयोग से बना है। जगत का अर्थ है संसार। अतः जगत्पति का अर्थ हुआ संसार की रक्षा करनेवाला। भागवत पुराण में अंतिम अवतार कल्कि को जगत्पति भी कहा गया है।10
हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) जगत्पति11 हैं, क्योंकि उन्होंने पतनशील समाज को पतनग्रस्त होने से बचाया। उसकी रक्षा की और संमार्ग दिखाया। आप सारे संसार के लोगों के लिए ईश्वर का संदेश लेकर आए। क़ुरआन में है—‘‘ऐ मुहम्मद एलान कर दो कि सारी दुनिया के लिए नबी होकर तुम आए हो।’’ 12 एक अन्य स्थान पर है—‘‘अत्यंत बरकत वाला है वह जिसने अपने बंदे पर पवित्रा ग्रंथ क़ुरआन उतारा ताकि संपूर्ण संसार के लिए (पाप व दुष्कर्म के भीषण परिणाम से) सचेत करने वाला हो।13
4. चार भाइयों के सहयोग से युक्त : कल्कि पुराण के अनुसार चार भाइयों के साथ कल्कि कलि (शैतान) का निवारण करेंगे।14
हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने भी चार साथियों के साथ शैतान का नाश किया था। ये चार साथी थे—हज़रत अबू बक्र (रज़ि॰), हज़रत उमर (रज़ि॰), हज़रत उस्मान (रज़ि॰) और हज़रत अली (रज़ि॰)।
5. अंतिम अवतार : कल्कि को अंतिम युग का अंतिम अवतार बताया है।15 मुहम्मद (सल्ल॰) ने भी एलान किया था कि मैं अंतिम रसूल हूं।
‘कल्कि’ शब्द का अर्थ ‘वाचस्पत्यम्’ तथा ‘शब्दकल्पतरु’ में अनार का फल खानेवाले तथा कलंक को धोनेवाले किया गया है। पैग़म्बर (सल्ल॰) भी अनार और खजूर का फल खाते थे तथा आपने प्राचीन काल से चले आ रहे मिश्रण (शिर्क) और नास्तिकता (कुफ्र) के कलंक को मानवी आस्था पहल से धो दिया।16
6. उपदेश और उत्तर दिशा की ओर जाना : कल्कि पैदा होने के पश्चात् पहाड़ी की तरफ़ चले जाएंगे और वहां परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे। बाद में उत्तर की तरफ़ जाकर फिर लौटेंगे। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) भी जन्म के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ़ चले गए और वहां जिबरील (अलैहि॰) के ज़रिए अल्लाह का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद वे उत्तर मदीने जाकर वहां से फिर दक्षिण (मक्का) लौटे और अपने पूर्व स्थान को जीत लिया। पुराणों में कल्कि के बारे में ऐसा भी लिखा है।
7. आठ सिद्धियों और गुणों से युक्त : कल्कि अवतार को भागवत पुराण 12 स्कंध, द्वितीय अध्याय में ‘अष्टैश्वर्यगुणान्वितः’ (आठ ईश्वरीय गुणों से युक्त) बताया गया है। ये आठ ईश्वरीय (ईशप्रदत्त) गुण महाभारत में भी उल्लेख किए गए हैं। ये गुण निम्न हैं—

  1. वह महान ज्ञानी होगा।
    2. वह उच्च वंश का होगा।
    3. वह आत्मनियंत्रक होगा।
    4. वह श्रुतिज्ञानी होगा।
    5. वह पराक्रमी होगा।
    6. वह अल्पभाषी होगा।
    7. वह दानी होगा और
    8. वह कृतज्ञ होगा।17

निम्नालिखित निरीक्षण से क्रमवार उपरोक्त गुणों से पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल॰) के गुणों की साम्यता सिद्ध होती है।

  1. मुहम्मद (सल्ल॰) महान ज्ञानी थे। उनमें पज्ञा दृष्टि थी। आप (सल्ल॰) ने भूत और भविष्य की अनेक बातें बताईं, जो एकदम सत्य सिद्ध हुईं। पहले उल्लेख किया गया है कि रूमियों की हार और बाद में उनकी जीत की भविष्यवाणी मुहम्मद (सल्ल॰) ने की थी। आपकी दूरदर्शिता से संबंधित अनेक उदाहरण हैं, जो आपके उच्च ज्ञान को सिद्ध करते हैं।
  2. हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) उच्च वंश में पैदा हुए। आपका जन्म 571 ई॰ में कु़रैश की पंक्ति में हाशिम परिवार में हुआ था, जो अरब के निवासियों द्वारा माननीय और काबा का परम्परागत संरक्षक था।
  3. हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को आत्मनियंत्रण का ईश्वरीय गुण भी प्राप्त था। आप आत्म प्रशंसा से हीन, दयालु, शांत, इन्द्रियजीत और उदार थे।18
  4. आप श्रुतिज्ञानी भी थे। श्रुत का अर्थ है, ‘जो ईश्वर के द्वारा सुनाया गया और ऋषियों द्वारा सुना गया हो।’ मुहम्मद (सल्ल॰) पर जिबरील (अलैहि॰) नामक फ़रिश्ते के ज़रिए ईश्वरीय ज्ञान भेजा जाता था। लेनपूल अपनी पुस्तक “Introduction; Speeches of Muhammad” में लिखते हैं कि मुहम्मद (सल्ल॰) को देवदूत की सहायता से ईश्वरीय वाणी का भेजा जाना निस्संदेह सत्य है। सर विलियम म्योर ने भी लिखा है कि वे सन्देष्टा और ईश्वर के प्रतिनिधि थे।19
  5. हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) काफी पराक्रमी भी थे। आपके पराक्रम को दर्शाते हुए डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय ने एक घटना का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है—
    ‘किसी गुफा में अकेले उपस्थित रुकाना नामक पहलवान से जो क़ुरैश से संबंधित था, मुहम्मद (सल्ल॰) ने ईश्वर से न डरने और ईश्वर पर विश्वास न करने का कारण पूछा, जिस पर पहलवान ने सत्य की स्पष्टता के लिए कहा। तब मुहम्मद (सल्ल॰) ने कहा कि तू बड़ा वीर है, यदि कुश्ती में मैं तुझे नीचा दिखाऊं तो क्या विश्वास करेगा? उसने स्वीकारात्मक उत्तर दिया। तब हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने उसे हरा दिया। (अल्लामा क़ाज़ी सलमान मंसूरपुरी ने अपनी सीरत की किताब ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ में ‘‘शिफ़ा’’ नामक पुस्तक के पृष्ठ 64 के हवाले से लिखा है कि आप (सल्ल॰) ने उसे तीन बार हराया, फिर भी उस पहलवान ने मुहम्मद (सल्ल॰) को पैग़म्बर न माना तथा ईश्वर की सत्यता पर विश्वास न किया।
  6. आठ गुणों में अल्पभाषी होना एक विशिष्ट गुण है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) कम बोलते थे। अधिकतर मौन रहते परन्तु जो कुछ बोलते थे, वह इतना प्रभावोत्पादक होता था कि लोग आपकी बातें नहीं भूलते थे।20
  7. दान देना महापुरुषों का एक प्रमुख गुण रहा है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) दान देने में सदा आगे रहे। आप में दान के मामले में अत्यंत विशाल हृदयता थी। यही कारण था कि आपके घर से कभी कोई ज़रूरतमन्द निराश होकर नहीं लौटा।
  8. मुहम्मद (सल्ल॰) में कृतज्ञता भी थी। वे किसी के उपकार को नहीं भूलते। अनसार के प्रति कहे गए वाक्य आपकी कृतज्ञता का प्रमाण पेश करते हैं।21 इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि मुहम्मद (सल्ल॰) में आठों ईशप्रदत्त गुणों का समावेश था।
  9. शरीर से सुगंध का निकलना : भागवत पुराण में भविष्यवाणी की गई है कि कल्कि के शरीर से ऐसी सुगंध निकलेगी, जिससे लोगों के मन निर्मल हो जाएंगे। उनके शरीर की सुगंध हवा में मिलकर लोगों के मन को निर्मल करेगी।22 शिमायल तिरमिज़ी में लिखा है कि मुहम्मद (सल्ल॰) के शरीर की ख़ुशबू तो प्रसिद्ध ही है। मुहम्मद (सल्ल॰) जिससे हाथ मिलाते थे, उसके हाथ से दिन भर सुगंध आती रहती थी।23
    एक बार उम्मे सुलैम ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के शरीर का पसीना एकत्र किया। आप (सल्ल॰) के पूछने पर उन्होंने बताया कि इसे हम ख़ुशबूओं में मिलाते हैं क्योंकि यह सभी सुगंध से बढ़कर है।
  10. अनुपम कान्ति से युक्त : कल्कि अनुपम कान्ति से युक्त होंगे।24 बुख़ारी शरीफ़ की हदीस के अनुसार मुहम्मद (सल्ल॰) सभी व्यक्तियों में अधिक सुन्दर थे और सभी मनुष्यों में अधिक आदर्शवान एवं योद्धा थे।25 सर विलियम म्योर ने भी मुहम्मद (सल्ल॰) को बहुत सुन्दर स्वरूप वाला, पराक्रमी और दानी बताया है।26
  11. ईश्वरीय वाणी का उपदेष्टा : डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के पृष्ठ 50,51 पर लिखते हैं कि ‘कल्कि के विषय में यह बात भारत में प्रसिद्ध ही है कि वह जो धर्म स्थापित करेंगे वह वैदिक धर्म होगा और उनके द्वारा उपदिष्ट शिक्षाएं ईश्वरीय शिक्षाएं होगी। मुहम्मद (सल्ल॰) के द्वारा अभिव्यक्त क़ुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें। क़ुरआन में जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विद्यमान हैं, वही वेद में भी है। क़ुरआन में मूर्ति पूजा का खंडन, एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा, परस्पर प्रेम के व्यवहार का उपदेश है। वेद में ‘एकम् सत्’ तथा विश्वबंधुत्व की उत्कृष्ट घोषणा है। वेदों में ईश्वर की भक्ति का आदेश है और क़ुरआन की शिक्षा के द्वारा मुसलमान दिन में पांच बार नमाज़ अवश्य पढ़ते हैं। (जबकि ब्राह्मण वर्ग में बिरले लोग ही त्रिकाल संध्या करने वाले मिलेंगे।)

यहां यह तथ्य उजागर करना उचित होगा कि वेदों और क़ुरआन की शिक्षाओं में भी बहुत कुछ समानता है। मिसाल के तौर पर वेद, गीता और स्मृतियों में एक ईश्वर की भक्ति करने का आदेश है और अपनी की हुई बुराइयों की क्षमा मांगने के लिए भी उसी ईश्वर से प्रार्थना करने का आदेश है। क़ुरआन में है : ‘‘ऐ नबी! कह दो, मैं तो केवल तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूं। मेरी ओर वह्य (प्रकाशना) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य अकेला पूज्य है, तो तुम सीधे उसी की ओर मुख करो और क्षमा भी उसी से मांगो।27 डॉ॰ उपाध्याय कहते हैं कि कल्कि और मुहम्मद (सल्ल॰) के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला उसे देखकर आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे आ गए और वही हज़रत मुहम्मद साहब हैं।28

संदर्भ

  1. ‘Apology for Mohammed’, by Gofrey Higgins, Pages-2
    2.  Translation of the Qur’an, by Gorage Sale, First Translation/Preface on pages-25/26
    3. अश्वमाशुगमारुह्य देवदत्तं जगत्पतिः।
     असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्य गुणान्वितः।।
    (भागवत् पुराण, 12 स्कंध, 2 अध्याय, 19वां श्लोक)
    4. कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, (पृ॰ 30)
    5. शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
     भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यिति।।
    (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, 2 अध्याय, 18वां श्लोक)
    6. बुख़ारी शरीफ़ की हदीस
    7. भागवत पुराण 12-2-19
    8. यात यूयं भुवं देवाः स्वांशावतरणे रताः। (कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 7)
    9. क़ुरआन, सूरा आले इमरान, आयत संख्या 123, 124 और 125
    10. भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 19वां श्लोक।
    11. संस्कृत के व्याकरणाचार्य वामन शिवराम आप्टे ने ‘‘पति’’ शब्द का अर्थ ‘‘प्रधानता करने वाला’’ भी बताया है (देखिए, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ॰ 568, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स संस्करण 1989)। इस प्रकार जगत्पति का अर्थ हुआ: संसार में प्रधानता करने वाला। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) जिस इस्लाम धर्म को लेकर आए, वह यद्यपि मानव जीवन के आरंभ से विद्यमान था, परन्तु आप (सल्ल॰) के ज़रिए इसे पूर्णता और प्रधानता प्राप्त हुई। क़ुरआन में अल्लाह का कथन है: ‘‘आज मैंने तुम्हारे दीन को तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, और तुम्हारे लिए इस्लाम को ‘‘दीन’’ (धर्म) की हैसियत से पसन्द किया।’’ (5:3)
     अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने संसार में सत्य को प्रधानता दी, उसे फैलाया और लोगों को इसके लिए उभारा कि स्वयं भी सत्य का अनुसरण करें और दूसरों तक सत्य-संदेश पहुंचाएं। आप (सल्ल॰) के द्वारा नेकियों और अच्छाइयों को प्रधानता मिली। अच्छे शील स्वभाव और नैतिकता की पूर्ति हुई। एक हदीस में आप (सल्ल॰) ने कहा: ‘‘अल्लाह ने मुझे नैतिक गुणों और अच्छे कामों की पूर्ति के लिए भेजा है।’’ (शरहुस्सुन्नह)
    12. क़ुरआन, सूरा आराफ़, आयत संख्या, 158
    13. क़ुरआन, सूरा फ़ुरक़ान, आयत संख्या, 1
    14. चतुर्भिभ्र्रातृभिर्देव करिष्यामि कलिक्षयम्। (कल्कि पुराण अध्याय 2, श्लोक 5)
    15. भागवत पुराण के 24 अवतारों के प्रकरण में कल्कि सबसे अंतिम अवतार हैं।
     (भा॰पु॰ प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय, 25वां श्लोक)
    16. कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ॰ 41
    17.  अष्टौगुणाः पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम श्रुतंच।
     पराक्रमश्चा बहुभाषिता च, दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च। —महाभारत
    18.  Modesty and kindliness, patience, self deanial and riveted the affections off all around him, p. 525, Life of Mohammed’ by Sir Willaim Muir.
    19.  He was now the servant, the Prophet, the vicegerent of God.
    20.  Introduction the speeches of Mohammed by Lane-Pool, page-24
    21. असह उस सियर, पृ॰ 343
    22. अथ तेषां भविष्यन्ति मनांसि विशदानि वै।
     वासु देवांगरागाति पुण्यगंधानिल स्पृशाम्।
    (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 21वां श्लोक)
    23. पृष्ठ 208, शिमाएल तिरमिज़ी, अनुवाद: मौलाना मुहम्मद ज़करिया।
    24. विचरन्नाशुना क्षोण्यां हयेनाप्रतिमद्युतिः।
     नृपलिंगच्छदो दस्यून्कोटिशोनिहनिष्यति।।
    (भा॰पु॰, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक)
    25. हज़रत अनस (रज़ि॰) की रिवायत, जमउल फ़वायद, पेज-178
    26. ‘He was’ says an admiring followen, the handsomest and bravest, the bright faced and most generous of men, p. 523, The Life of Mohammed’
    27. हा॰ मीम॰ अस-सजदा, आयत संख्या-6
    28. कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ॰ 59

उपनिषद् में भी मुहम्मद (सल्ल॰) की चर्चा

उपनिषद् में भी मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में जहां-तहां उल्लेख मिलता है। नागेन्द्र नाथ बसु द्वारा संपादित विश्वकोष के द्वितीय खंड में अल्लोपनिषद के वे श्लोक दिए गए हैं, जो इस्लाम और पैग़म्बर (सल्ल॰) से ताल्लुक़ रखते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ प्रस्तुत किए जा रहे हैं, ताकि पाठकों को वास्तविकता का पता चल सके—

अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्ते।
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्द्ददु।
हया मित्रो इल्लां इल्लल्ले इल्लां वरुणो मित्रस्तेजस्कामः।।1।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः।
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण ब्रह्माणं अल्लाम्।।2।।
अल्लोरसूलमहामदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्।।3।।
(अल्लोपनिषद: 1,2,3)

अर्थात, ‘‘इस देवता का नाम अल्लाह है। वह एक है। मित्रा वरुण आदि उसकी विशेषताएं हैं। वास्तव में अल्लाह वरुण है जो तमाम सृष्टि का बादशाह है। मित्रो! उस अल्लाह को अपना पूज्य समझो। वह वरुण है और एक दोस्त की तरह वह तमाम लोगों के काम संवारता है। वह इन्द्र है, श्रेष्ठ इन्द्र। अल्लाह सबसे बड़ा, सबसे बेहतर, सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्र है। मुहम्मद (सल्ल॰) अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं। अल्लाह आदि, अंत और सारे संसार का पालनहार है। तमाम अच्छे काम अल्लाह के लिए ही हैं। वास्तव में अल्लाह ही ने सूरज, चांद और सितारे पैदा किए हैं।’’
उपर्युक्त उद्धरणों से यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट हुआ कि सर्वशक्तिमान अल्लाह एक है और मुहम्मद (सल्ल॰) उसके सन्देशवाहक (पैग़म्बर) हैं। इस उपनिषद् के अन्य श्लोकों में भी इस्लाम और मुहम्मद (सल्ल॰) की साम्यगत बातें आई हैं। इस उपनिषद् में आगे कहा गया है—

आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखातकम्।।4।।
अल्लो यज्ञेन हुत हुत्वा। अल्ला सूर्य्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः।।5।।
अल्लो ऋषीणां सर्वदिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परममन्तरिक्षा।।6।।
पृथिव्या अन्तरिक्षं विश्वरूपम्।।7।।
इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः।।8।।
ओम् अल्लाइल्लल्ला अनादिस्वरूपाय अथर्वणश्यामा हुंहीं जनान पशून सिद्धान् जलचरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट्।।9।।
असुरसंहारिणी हुंहीं अल्लोरसूलमहमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम, इल्लल्लेति इल्लल्ला।।10।।
इत्यल्लोपनिषद् समाप्ता

अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। ऐ पुजारी! कह दे, अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं। अल्लाह अनादि से है। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करनेवाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’’1

संदर्भ

  1. बहुत थोड़े से विद्वान, जिनका संबंध विशेष रूप से आर्य समाज से बताया जाता है, अल्लोपनिषद् की गणना उपनिषदों में नहीं करते और इस प्रकार इसका इन्कार करते हैं, हालांकि उनके तर्कों में दम नहीं है। इस कारण से भी हिन्दू धर्म के अधिकतर विद्वान और मनीषी अपवादियों के आग्रह पर ध्यान नहीं देते। गीता प्रेस (गोरखपुर) का नाम हिन्दू धर्म के प्रामाणिक प्रकाशन केन्द्र के रूप में अग्रगण्य है। यहां से प्रकाशित ‘‘कल्याण’’ (हिन्दी पत्रिका) के अंक अत्यंत प्रामाणिक माने जाते हैं। इसकी विशेष प्रस्तुति ‘‘उपनिषद् अंक’’ में 220 उपनिषदों की सूची दी गई है, जिसमें अल्लोपनिषद् का उल्लेख 15वें नम्बर पर किया गया है। 14वें नम्बर पर अमृत बिन्दूपनिषद् और 16वें नम्बर पर अवधूतोपनिषद् (पद्य) उल्लिखित है। डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी अल्लोपनिषद् को प्रामाणिक उपनिषद् माना है। ‘देखिए: वैदिक साहित्य: एक विवेचन, प्रदीप प्रकाशन, पृ॰ 101, संस्करण 1989

प्राणनाथी (प्रणामी) सम्प्रदाय की शिक्षा

हिन्दुओं के वैष्णव समुदाय में प्राणनाथी सम्प्रदाय उल्लेखनीय है। इसके संस्थापक एवं प्रवर्तक महामति प्राणनाथ थे। आपका जन्म का नाम मेहराज ठाकुर था। प्राणनाथजी का जन्म 1618 ई॰ में गुजरात के जामनगर शहर में हुआ था। आपने इन्सानों को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी और एक ही निराकार ईश्वर की पूजा-उपासना पर बल दिया। आपने नुबूवत अर्थात् ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया और इसे सही ठहराया। प्राणनाथ जी कहते हैं—

कै बड़े कहे पैगमंर, पर एक महमंद पर खतम।

अर्थात्, (धर्म-ग्रंथों) में अनेक पैग़म्बर बड़े कहे गए, किन्तु मुहम्मद साहब पर ईशदूतों की श्रृंखला समाप्त हुई। रसूल मुहम्मद (सल्ल॰) आख़िरी पैग़म्बर हुए।1

प्राणनाथ जी ने एक स्थान पर लिखा—
रसूल आवेगा तुम पर, ले मेरा फुरमान।
आए मेरे अरस की, देखी सब पेहेचान।।

अर्थात्, (ईश्वर ने कहा:) मेरा रसूल मुहम्मद तुम्हारे पास मेरा संदेश लेकर आएगा। वह संसार में आकर तुम्हें मेरे अर्श या परमधाम की सब तरह से पहचान कराने के लिए कुछ संकेत देगा।2

संदर्भ

  1. मारफ़त सागर, पृ॰ 39, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।
    2.  मारफ़त सागर, पृ॰ 19, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) और बौद्ध धर्म-ग्रंथ
अंतिम बुद्ध मैत्रेय और मुहम्मद (सल्ल॰)

बौद्ध ग्रंथों में जिस अंतिम बुद्ध मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है, वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही सिद्ध होते हैं। ‘बुद्ध’ बौद्ध धर्म की भाषा में ऋषि होते हैं। गौतम बुद्ध ने अपने मृत्यु के समय अपने प्रिय शिष्य आनन्दा से कहा था कि ‘‘नन्दा! इस संसार में मैं न तो प्रथम बुद्ध हूं और न तो अंतिम बुद्ध हूं। इस जगत में सत्य और परोपकार की शिक्षा देने के लिए अपने समय पर एक और ‘बुद्ध’ आएगा। वह पवित्र अन्तःकरण वाला होगा। उसका हृदय शुद्ध होगा। ज्ञान और बुद्धि से संपन्न तथा समस्त लोगों का नायक होगा। जिस प्रकार मैंने संसार को अनश्वर सत्य की शिक्षा प्रदान की, उसी प्रकार वह भी विश्व को सत्य की शिक्षा देगा। विश्व को वह ऐसा जीवन-मार्ग दिखाएगा जो शुद्ध तथा पूर्ण भी होगा। नन्दा! उसका नाम मैत्रेय होगा।1 ‘बुद्ध’ का अर्थ ‘बुद्धि से युक्त’ होता है। बुद्ध मनुष्य ही होते हैं, देवता आदि नहीं।2 मैत्रेय का अर्थ ‘दया से युक्त’ होता है।

मैत्रेय की मुहम्मद (सल्ल॰) से समानता

अंतिम बुद्ध मैत्रेय में बुद्ध की सभी विशेषताओं का पाया जाना स्वाभाविक है। बुद्ध की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं—

  1. वह ऐश्वर्यवान एवं धनवान होता है।
    2. वह संतान से युक्त होता है।
    3. वह स्त्री और शासन से युक्त रहता है।
    4. वह अपनी पूर्ण आयु तक जीता है।3
    5. वह अपना काम ख़ुद करता है।4
    6. बुद्ध केवल धर्म प्रचारक होता है।
    7. जिस समय बुद्ध एकांत में रहता है, उस समय ईश्वर उसके साथियों के रूप में देवताओं और राक्षसों को भेजता है।5
    8. संसार में एक समय में केवल एक ही बुद्ध रहता है।6
    9. बुद्ध के अनुयायी पक्के अनुयायी होते हैं, जिन्हें कोई भी उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता।7
    10. उसका कोई व्यक्ति गुरु न होगा।8
    11. प्रत्येक बुद्ध अपने पूर्णवर्ती बुद्ध का स्मरण कराता है और अपने अनुयायियों को ‘मार’ से बचने की चेतावनी देता है।9 मार का अर्थ बुराई और विनाश को फैलाने वाला होता है। इसे शैतान कहते हैं।
    12. सामान्य पुरुषों की अपेक्षा बुद्धों की गर्दन की हड्डी अत्यधिक दृढ़ होती थी, जिससे वे गर्दन मोड़ते समय अपने पूरे शरीर को हाथी की तरह घुमा लेते थे।

अंतिम बुद्ध मैत्रेय की इनके अलावा अन्य विशेषताएं भी हैं। मैत्रेय के दयावान होने और बोधि वृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करनेवाला भी बताया गया है । इस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है।
डॉ॰ वेद प्रकाश उपाध्याय ने यह सिद्ध किया है कि ये सभी विशेषताएं मुहम्मद (सल्ल॰) के जीवन में मिलती हैं तथा अंतिम बद्ध मैत्रेय हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही हैं। डॉ॰ उपाध्याय द्वारा इस विषय में प्रस्तुत तथ्य जहां ज्यों के त्यों प्रस्तुत किए जा रहे हैं—
‘क़ुरआन में मुहम्मद साहब के ऐश्वर्यवान और धनवान होने के विषय में यह ईश्वरीय वाणी है कि ‘तुम पहले निर्धन थे, हमने तुमको धनी बना दिया।’ मुहम्मद साहब ऋषि पद प्राप्त करने के बहुत पहले धनी हो गए थे।10 मुहम्मद साहब के पास अनेक घोड़े थे। उनकी सवारी के रूप में प्रसिद्ध ऊंटनी ‘अलकसवा’ थी, जिस पर सवार होकर मक्का से मदीना गए थे और बीस की संख्या में ऊंटनियां थीं, जिसका दूध मुहम्मद साहब और उनके बाल-बच्चों के पीने के लिए पर्याप्त था, साथ ही साथ सभी अतिथियों के लिए भी पर्याप्त था। ऊंटनियों का दूध ही मुहम्मद साहब व उनके बाल- बच्चों का प्रमुख आहार था। मुहम्मद साहब के पास सात बकरियां थीं, जो दूध का साधन थीं। मुहम्मद साहब दूध की प्राप्ति के लिए भैंसें नहीं रखते थे, इसका कारण यह है कि अरब में भैंसें नहीं होतीं।11 उनकी सात बाग़ खजूर के थे जो बाद में धार्मिक कार्यों के लिए मुहम्मद साहब द्वारा दे दिए गए थे।
मुहम्मद साहब के पास तीन भूमिगत संपत्तियां थीं, जो कई बीघे के क्षेत्र में थीं। मुहम्मद साहब के अधिकार में कई कुएं भी थे। इतना स्मरणीय है कि अरब में कुआं का होना बहुत बड़ी संपत्ति समझी जाती थी, क्योंकि वहां रेगिस्तानी भू-भाग है। मुहम्मद साहब की 12 पत्नियां, चार लड़कियां और तीन लड़के थे । बुद्ध के अंतर्गत पत्नी और संतान का होना द्वितीय गुण है। मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती भारतीय बुद्धों में यह गुण नाम मात्र को पाया जाता था, परन्तु मुहम्मद साहब के पास उसका 12 गुना गुण विद्यमान था।12
मुहम्मद साहब ने शासन भी किया। अपने जीवनकाल में ही उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं को पराजित करके उनपर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अरब के सम्राट होने पर भी उनका भोज्य पदार्थ पूर्ववत् था।13
मुहम्मद साहब अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहे। अल्पायु में उनका देहावसान नहीं हुआ और न तो वे किसी के द्वारा मारे गए।
मुहम्मद साहब अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने जीवन भर धर्म का प्रचार किया। उनके धर्म प्रचारक स्वरूप की पुष्टि अनेक इतिहासकारों ने भी की है।14
मुहम्मद साहब ने भी अपने पूर्ववर्ती ऋषियों का समर्थन किया, इस बात के लिए आप पूरा क़ुरआन देख सकते हैं। उदाहरण के रूप में क़ुरआन में दूसरी सूरा में उल्लेख है—
‘‘ऐ आस्तिको! (मुसलमानो) तुम कहो कि हम ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हैं और जो पुस्तक हम पर अवतीर्ण हुई, उस पर और जो-जो कुछ इब्राहीम, इस्माईल और याक़ूब पर और उनकी संतान (ऋषियों) पर और जो कुछ मूसा और ईसा को दी गई उन पर भी और जो कुछ अनेक ऋषियों को उनके पालक (ईश्वर) की ओर से उपलब्ध हुई, उन पर भी हम आस्था रखते हैं और उन ऋषियों में किसी प्रकार का अन्तर नहीं मानते हैं, और हम उसी एक ईश्वर के मानने वाले हैं।’’15
मुहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों को शैतान से बचने की चेतावनी बार-बार दी थी। क़ुरआन में शैतान से बचने के लिए यह कहा गया है कि जो शैतान को अपना मित्र बनाएगा, उसे वह भटका देगा और नारकीय कष्टों का मार्ग प्रदर्शित करेगा।16
मुहम्मद साहब के अनुयायी कभी भी मुहम्मद साहब के बताए हुए मार्ग से विचलित न होते हुए उनकी पक्की शिष्यता अथवा मैत्री में आबद्ध रहते हैं। मुहम्मद साहब के अनुयायियों ने आमरण उनका संग नहीं छोड़ा, भले ही उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ा हो। संसार में जिस समय मुहम्मद साहब बुद्ध थे, उस समय किसी भी देश में कोई अन्य बुद्ध नहीं था। मुहम्मद साहब के बुद्ध होने के समय संपूर्ण संसार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बहुत ही ख़राब थी।
मुहम्मद साहब का संसार का कोई व्यक्ति गुरु नहीं था। मुहम्मद साहब पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसी लिए उन्हें ‘उम्मी’ भी कहा जाता है। ईश्वर द्वारा मुहम्मद साहब के अंतःकरण में उतारी गई आयतों की संहिता क़ुरआन है। प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। किसी बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अश्वत्थ (पीपल), किसी के लिए न्यग्रोध (बरगद) तथा किसी बुद्ध के लिए उदुम्बर (गूलर) प्रयुक्त हुआ है। बुद्ध के लिए जिस बोधिवृक्ष का होना बताया गया है, वह कड़ी और भारयुक्त काष्ठ वाला वृक्ष है।17
हज़रत मुहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदैबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मुहम्मद साहब ने सभा भी की थी।
‘मैत्रय’ का अर्थ होता है—दया से युक्त। 16 अक्तूबर सन् 1930 ‘लीडर’ पृ॰-7 कॉलम 3 में एक बौद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। मुहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण मुहम्मद साहब को ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ कहा जाता है।18 जिसका अर्थ है—‘समस्त संसार के लिए दया से युक्त।’ (‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ पृष्ठ 54 से 58)
स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है। कहा गया है कि बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने भी जन्नत में एक वृक्ष देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी ओर विद्यमान था। यह वृक्ष इतने बड़े क्षेत्र में था जिसे कि घृड़सवार लगभग सौ वर्षों में भी उसकी छाया को पार नहीं कर सकता।19 हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने भी स्वर्गीय वृक्ष को आंख गड़ाए हुए देखा था।
मैत्रेय के बारे में यह भी कहा गया है कि किसी भी तरफ़ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। मुहम्मद साहब भी किसी मित्र की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे।20
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि बौद्ध ग्रंथों में जिस मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है वह हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही हैं।

संदर्भ

  1.  Gospel of Buddha, by Carus, p. 217
    2.  It is only a human being that can be a Buddha, a deity can not. (Mohammed in the Buddist Scriptures, p.1)
    3.  Warren, p. 79
    4.  The Dhammapada, S.B.E. Vol. X, p. 67
    5.  The Tathagatas are only preachers. (The Dhammapada S.B.E. Vol. X, p. 67
    6.  Saddharma-Pundrika, S.B.E. Vol. XXI, p. 225
    7.  The life and teaching of Buddha, Anagarika Dhammapada, p. 84
    8.  Dhammapada, S.B.E., Vol. X, p. 67
    9.  Romantic History of Buddha, by Beal, p. 241
    10.  Dhammapada, S.B.E. Vol. XI, p.64
    11. ‘व-व-ज-द-क आ-इलन फ़अग्ना’ (और तुमको निर्धन पाया, बाद में तुमको धनी कर दिया)
    12.  Life of Mahomet-Sir William Muir (Cambridge Edition) p. 545-54
    13.  Life of Mahomet-Sir William Muir (Cambridge Edition) p. 547
    14. ‘The fare of the desert seemed most congenial to him, even when he was sovereign of Arabia.’
     The Speeches an table talk of the Prophet Mohammed by Lanepoole
    15.  Mohammad and Mohammadenism by Bosworth Smith. P. 98
    16. क़ुरआन, सूरा-2, आयत 136
    17. क़ुरआन, सूरा-22, आयत 4
    18.  According to some of the modern Buddhist Scholars the Bo-tree of the Buddha Maiterya is the Iron wood-tree (Mohammed in the Buddhist Scriptures, p. 64)
    19. वमा अर्सल्ना-क इल्ला रहमतल लिल आलमीन (क़ुरआन, सूरा-11, आयत 107)
     (ऐ मुहम्मद! हमने तुमको सारी दुनिया के लिए दया बनाकर भेजा।)
    20.  In Paradise there is a tree (such) that a rider can not cross its shade even in hundred years. (Mohammad in the Buddhist Scriptures, page 79)
    21.  If he turned in conversation towards a friend he turned not partially but with his full face and his whole body. (The Life of Mahommat by William Muir, page 511,512)

जैन धर्म और हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)

डॉ॰ पी॰एच॰ चैबे ने लिखा है—
‘‘मैं हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को कल्कि अवतार मानता हूं। पुराणों में इस अवतार (पैग़म्बर) का वर्णन है। कहा गया है कि कल्कि अवतार बुद्धावतार के बाद होगा, जिसका जन्म शम्भल नामक नगर में एक पुजारी परिवार में होगा, उसकी सवारी घोड़ा और हथियार तलवार होगा। वह संपूर्ण पृथ्वी पर अपने सत्य धर्म की विजय करेगा।’’ (विस्तृत विवरण के लिए देखें ‘कल्कि पुराण’)
जैन धर्म के ग्रंथकारों ने भी कल्कि अवतार का वर्णन किया है और उसके आने का काल महावीर स्वामी के निर्वाण के एक हज़ार वर्ष बाद माना है। महावीर स्वामी के निर्वाण का वर्ष प्रायः 571 ई॰पू॰ निश्चित किया जाता है। इस प्रकार एक हज़ार वर्ष बाद कल्कि अवतार का आगमन होता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का जन्मकाल वही वर्ष पड़ता है, जो कल्कि अवतार के आने का काल है। कल्कि अवतार की अन्य विशेषताएं और उसके गुण हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) से साम्यता रखते हैं। एक प्रसिद्ध जैन लेखक जिसने अपने ग्रंथ हरिवंश पुराण में लिखा है कि महावीर के निर्वाण के 605 वर्ष 5 माह बाद शकराज का जन्म हुआ तथा गुप्त संवत 231 वर्ष के शासन के बाद कल्कि अवतार का जन्म हुआ। इस आशय का श्लोक इस प्रकार है—
‘‘......गुप्तानां चश्त द्वयम।
एक विंवश च वर्षणि कालविद् भिरुदा हृतम।।490।।
चित्वा रिंश देवातः कल्किराजस्य राजता।
ततोड जिटंजयों राजा स्यादिन्द्रपुर संस्थितः।।491।।
—जिनसेन कृत हरिवंश पुराण अ॰ 60
दूसरे जैन ग्रंथकार गुणभद्र ने उत्तर पुराण में लिखा है कि महावीर निर्वाण के 1000 वर्ष बाद कल्किराज का जन्म हुआ। (Indian Antiquary Vol. X V.P. 143)
तीसरे जैन ग्रंथकार नेमिचन्द्र अपने ग्रंथ ‘त्रिलोकसागर’ में लिखते हैं, ‘‘शकराज निर्वाण के 605 वर्ष 5 माह बाद तथा शककाल से 394 वर्ष 7 माह पश्चात कल्कि राज पैदा हुआ।’’ इस ग्रंथ में इस भाव का वाक्य है—
‘‘पणछस्सयं वस्संपण मासजदं गमिय वीर णिवुइ दो।
सगराजो सो कल्कि चतुणवतिय महिप सगमासं।।’’ —त्रिलोकसार, पृ॰ 32
इस प्रकार ऐसा लगता है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) वही थे, धर्माचार्यों ने जिनके बारे में बताया।
सचमुच जिस प्रकार जब तक एक शासक शासन करता है तब तक उसके द्वारा बताए नियम का पालन जनता करती है, परन्तु उसके शासन के समाप्त होते ही दूसरे शासक के आदेशों को लोग शिरोधार्य करते हैं, ठीक उसी प्रकार जब तक जिस शास्ता, अवतार, पैग़म्बर का काल रहता है उसकी आज्ञाओं, उपदेशों का फैलाव होता है परन्तु उसके उपदेशों में विकृति आते ही ईश्वर की तरफ़ से जब दूसरा पैग़म्बर, अवतार आता है तो उसका शासन चलता है। इस लिहाज़ से आज हम हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) अन्तिम ‘रसूल’ अथवा आख़िरी अवतार ‘कल्कि’ के ‘शासनकाल’ में हैं और अब प्रलय (क़ियामत) तक उनका शासन रहेगा, जिसका प्रमाण पुराण, क़ुरआन और अन्य ग्रंथ दे चुके हैं। अतएव हमारे लिए इस अंतिम शास्ता (हज़रत मुहम्मद) के ही ‘शासन’ में रहकर आपके उपदेशों व आचारों का अनुगमन करना ही आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों पक्षों से उचित है। इससे हमारा संसार व परलोक दोनों सुधर सकता है।
अतः अंतिम संदेष्टा, पैग़म्बर, ‘कल्कि अवतार’ हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के उपदेशों का अनुगमन ही आपके प्रति सही एवं सच्चे अर्थों में श्रद्धा-अर्पण होगा। यही ईश समर्पण के लिए सच्चा मार्ग होगा।’’1

संदर्भ

  1. कान्ति मासिक (दिल्ली), जुलाई 1997, पृ॰ 33-34

 

स्रोत

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