108. अल-कौसर
(मक्का में उतरी—आयतें 3)
परिचय
नाम
'इन्ना आतैना-कल कौसर' (हमने तुम्हें कौसर प्रदान कर दिया) के शब्द अल-कौसर को इसका नाम क़रार दिया गया है।
उतरने का समय
इब्ने-मर्दूया ने हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०), अब्दुल्लाह-बिन-ज़ुबैर (रज़ि०) और हज़रत आइशा सिद्दीक़ा (रज़ि०) से रिवायत की है कि यह सूरा मक्की है और आम तौर पर सभी टीकाकारों का कथन भी यही है। लेकिन हज़रत हसन बसरी, इक्रिमा, मुजाहिद और क़तादा (रह०) इसको मदनी कहते हैं। इमाम सुयूती (रह०) ने 'इतक़ान' में इसी कथन को सही ठहराया है और इमाम नबवी ने शरह मुस्लिम में इसी को प्राथमिकता दी है। वजह इसकी वह रिवायत है जो इमाम अहमद, मुस्लिम और बैहक़ी आदि हदीस के आलिमों ने हज़रत अनस-बिन-मालिक (रज़ि०) से नक़ल की है। [लेकिन यह कोई मज़बूत दलील नहीं है। सत्य यह है कि] हज़रत अनस (रज़ि०) की यह रिवायत अगर संदेह पैदा करने का कारण न हो तो सूरा कौसर की पूरी वार्ता स्वतः इस बात की गवाही देती है कि यह मक्का मुअज़्ज़मा में उतरी है और उस समय उतरी जब नबी (सल्ल०) को अत्यन्त निराश कर देनेवाले हालात का सामना करना पड़ रहा था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इससे पहले सूरा 93 'अज़-ज़ुहा' और सूरा 94 'अल-इनशिराह' (अलम-नशरह) में आप देख चुके हैं कि नुबूवत के आरंभिक काल में जब अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) सख़्त परेशानियों से गुज़र रहे थे और दूर तक कहीं सफलता के चिह्न दिखाई नहीं पड़ रहे थे, उस वक़्त आपको तसल्ली देने और साहस बढ़ाने के लिए अल्लाह तआला ने कई आयतें उतारी। ऐसे ही हालात थे जिनमें सूरा कौसर उतारकर अल्लाह तआला ने नबी (सल्ल०) को तसल्ली भी दी और आपके विरोधियों के विनाश की भविष्यवाणी भी की। क़ुरैश के इस्लाम विरोधी कहते थे कि मुहम्मद (सल्ल०) सारी क़ौम से कट गए हैं और उनकी हैसियत एक अकेले और बेसहारा इंसान की-सी हो गई है। इक्रिमा (रज़ि०) की रिवायत है कि जब हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) नबी बनाए गए और आपने क़ुरैश को इस्लाम की। दावत देनी शुरू की तो क़ुरैश के लोग कहने लगे कि 'बति-र मुहम्मदुन मिन्ना’ (इब्ने-जरीर), अर्थात् मुहम्मद अपनी क़ौम से कटकर ऐसे हो गए हैं जैसे कोई पेड़ अपनी जड़ से कट गया हो और संभावना इसी की हो कि कुछ समय बाद वह सूखकर मिट्टी में मिल जाएगा। मुहम्मद-बिन-इस्हाक़ कहते हैं कि मक्का के सरदार आस-बिन-वाइल सहमी के सामने जब अल्लाह के रसूल (सल्ल०) की चर्चा की जाती तो वह कहता- "अजी! छोड़ो उन्हें, वह तो एक अबतर (जड़ कटे) आदमी हैं। उनकी कोई नर सन्तान नहीं, मर जाएँगे तो कोई उनका नामलेवा भी न होगा।" शिमर-बिन-अतीया का बयान है कि उक़्बा-बिन-अबी-मुऐत भी ऐसी ही बातें नबी (सल्ल०) के बारे में कहा करता था (इब्ने-जरीर)। अता कहते हैं कि जब नबी (सल्ल०) के दूसरे बेटे का देहान्त हुआ तो नबी (सल्ल०) का अपना चचा अबू-लहब (जिसका घर बिल्कुल नबी सल्ल० के घर से मिला हुआ था) दौड़ा हुआ मुशरिकों के पास गया और उनको यह 'शुभ-सूचना' दी कि "आज रात मुहम्मद निस्सन्तान हो गए या उनकी जड़ कट गई।" [यही हाल आस-बिन-वाइल और अबू-जहल आदि क़ौम के दूसरे सरदारों का भी था।] ये थीं वे अत्यन्त हतोत्साहित कर देनेवाली परिस्थितियाँ जिनमें सूरा कौसर नबी (सल्ल०) पर उतारी गई और अल्लाह तआला ने आपको इस अत्यन्त संक्षिप्त सूरा के एक वाक्य में वह शुभ-सूचना दी जिससे बड़ी शुभ-सूचना दुनिया के किसी इंसान को कभी नहीं दी गई, और साथ-साथ यह फ़ैसला भी सुना दिया कि आपका विरोध करनेवालों ही की जड़ कट जाएगी।
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