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سُورَةُ المَسَدِ

111. अल-लह्ब

(मक्का में उतरी—आयतें 5)

परिचय

नाम

पहली आयत के शब्द 'लहब' को इस सूरा का नाम क़रार दिया गया है।

उतरने का समय

इसके मक्की होने में तो टीकाकारों के बीच कोई मतभेद नहीं है, लेकिन ठीक-ठीक यह निश्चित करना कठिन है कि मक्काकाल के किस समय में यह उतरी थी। अलबत्ता अबू-लहब का जो आचरण अल्लाह के रसूल (सल्ल०) और आपके सत्य-संदेश के विरुद्ध था उसको देखते हुए यह अनुमान किया जा सकता है कि यह सूरा उस समय उतरी होगी जब वह नबी (सल्ल०) की शत्रुता में सीमा पार कर गया था और उसकी नीति इस्लाम की राह में एक बड़ी रुकावट बन रही था।

परिप्रेक्ष्य

क़ुरआन मजीद में यह एकमात्र जगह है जहाँ इस्लाम के शत्रुओं में से किसी आदमी का नाम लेकर उसकी निंदा की गई है, हालाँकि मक्का में भी और हिजरत के बाद मदीना में भी बहुत से लोग ऐसे थे जो इस्लाम और मुहम्मद (सल्ल०) की दुश्मनी में अबू-लहब से किसी तरह कम न थे। [इसका कारण अबू-लहब का वह विशेष दुराचरण है जो उसने नबी (सल्ल०) के विरुद्ध अपना रखा था।] अरब समाज के नैतिक मूल्यों में ‘सिलारहमी' (अर्थात् रिश्तेदारों के साथ अच्छे व्यवहार) को बड़ा महत्त्व प्राप्त था और रिश्तों को तोड़ने को बहुत बड़ा पाप समझा जाता था। अरब की इन्हीं परंपराओं का यह प्रभाव था कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) जब इस्लाम की दावत लेकर उठे तो क़ुरैश के दूसरे परिवारों और उनके सरदारों ने तो नबी (सल्ल०) का सख़्त विरोध किया, मगर बनी-हाशिम और बनी-मुत्तलिब (हाशिम के भाई मुत्तलिब की सन्तान) ने न केवल यह कि आपका विरोध नहीं किया, बल्कि वे खुल्लम-खुल्ला आपका समर्थन करते रहे, हालांकि उनमें से अधिकतर लोग आपकी नुबूवत पर ईमान नहीं लाए थे। क़ुरैश के दूसरे परिवार स्वयं भी नबी (सल्ल०) के इन ख़ूनी रिश्तेदारों की मदद को अरब की नैतिक परंपराओं के ठीक मुताबिक़ समझते थे। इस नैतिक नियम को, जिसे अज्ञानता काल में भी अरब के लोग मान-सम्मान के योग्य समझते थे, सिर्फ़ एक आदमी ने इस्लाम की शत्रुता में तोड़ डाला और वह था अब्दुल-मुत्तलिब का बेटा अबू-लहब। यह अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) का चचा था। इब्ने-अब्बास (रजि०) से कई सनदों के साथ यह रिवायत हदीस के आलिमों ने नक़्ल की है कि जब अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) को आम दावत पेश करने का हुक्म किया गया और क़ुरआन मजीद में यह हिदायत आई कि आप अपने क़रीब से क़रीब नातेदारों को सबसे पहले अल्लाह के अज़ाब से डराएँ, तो आपने सुबह-सवेरे सफ़ा की पहाड़ी पर चढ़कर ऊँची आवाज़ से पुकारा, 'या सबा हाह!' (हाय सुबह की आफ़त।)। जब सब जमा हो गए तो आपने कुरैश के एक-एक परिवार का नाम ले-लेकर पुकारा, “ऐ बनी-हाशिम! ऐ बनी-अब्दुल-मुत्तलिब! ऐ बनी फ़िह्‍र की सन्तान! ऐ बनी-फ़ुलाँ! ऐ बनी-फ़ुलाँ! अगर मैं तुम्हें यह बताऊँ कि पहाड़ के पीछे एक फ़ौज तुमपर हमला करने के लिए तैयार है तो तुम मेरी बात सच मानोगे?” लोगों ने कहा, “हमने कभी तुमसे झूठ नहीं सुना है।” आपने फ़रमाया, “तो मैं तुम्हें सचेत करता हूँ कि आगे कठोर अज़ाब आ रहा है।” इसपर इससे पहले कि कोई और बोलता, नबी (सल्ल०) के अपने चचा अबू-लहब ने कहा, “नाश हो तेरा, क्या इसी लिए तूने हमें जमा किया था? एक रिवायत में यह भी है कि उसने पत्थर उठाया, ताकि अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) पर खींच मारे। (हदीस मुस्नदे-अहमद, बुख़ारी, मुस्लिम, तिर्मिज़ी, इब्ने-जरीर आदि) मक्का में अबू-लहब नबी (सल्ल०) का सबसे क़रीबी पड़ोसी था। इसके अलावा हकम-बिन-आस (मरवान का बाप), उक़बा-बिन-अबी-मुऐत, अदी-बिन-हमरा और इब्नुल-अस्दाइल-हुज़ली भी आपके पड़ोसी थे। ये लोग घर में भी नबी (सल्ल०) को चैन नहीं लेने देते थे। आप कभी नमाज़ पढ़ रहे होते तो ये ऊपर से बकरी का ओझ आप पर फेंक देते। कभी आँगन में खाना पक रहा होता तो ये हाँडी पर गन्दगी फेंक देते। नबी (सल्ल०) बाहर निकलकर इन लोगों से फ़रमाते, "ऐ बनी-अब्दे-मुनाफ़! यह कैसा पड़ोस है?" अबू-लहब की बीवी उम्मे-जमील (अबू-सुफ़ियान की बहन) ने तो यह स्थायी नीति ही अपना ली थी कि रातों को आपके घर के दरवाज़े पर काँटेदार झाड़ियाँ लाकर डाल देती, ताकि सुबह-सवेरे जब आप या आपके बच्चे बाहर निकलें तो कोई काँटा पाँव में चुभ जाए (हदीस बैहक़ी, इब्ने-अबी-हातिम, इब्ने-जरीर, इब्ने-असाकिर-बिन-हिशाम)। अल्लाह के रसूल (सल्ल०) जहाँ-जहाँ भी इस्लाम की दावत देने के लिए तशरीफ़ ले जाते, यह आपके पीछे-पीछे जाता और लोगों को आप (सल्ल०) की बात सुनने से रोकता। तारिक़-बिन-अब्दुल्लाह अल-महारबी कहते हैं, मैंने ज़ुल-मजाज़ के बाज़ार में देखा कि अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) लोगों से कहते जाते हैं कि 'लोगो! लाइला-ह इल्लल्लाह (अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं) कहो, सफल हो जाओगे', और पीछे एक आदमी है जो आपको पत्थर मार रहा है, यहाँ तक कि आपकी एड़ियाँ ख़ून से तर हो गई हैं, और वह कहता जाता है कि यह झूठा है, इसकी बात न मानो। मैंने लोगों से पूछा, यह कौन है? लोगों ने कहा, यह उनका चचा अबू-लहब है। (हदीस तिर्मिज़ी)

नुबूवत के सातवें साल जब क़ुरैश के तमाम परिवारों ने बनी-हाशिम और बनी-मुत्तलिब का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार किया और ये दोनों परिवार अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के समर्थन पर जमे रहते हुए अबू-तालिब की घाटी में क़ैद कर दिए गए तो तनहा यही अबू-लहब था जिसने अपने परिवार का साथ देने के बजाय क़ुरैश के इस्लाम विरोधियों का साथ दिया। ये उस आदमी की हरकतें थीं जिसकी वजह से इस सूरा में नाम लेकर उसकी निन्दा की गई। मुख्य रूप से इसकी ज़रूरत इसलिए थी कि मक्का के बाहर [से आनेवालों पर उसका चरित्र स्पष्ट हो जाए और वे यह विचार करके कि कोई चचा अपने भतीजे को बेवजह पत्थर नहीं मार सकता, न वह उसे बुरा-भला कह सकता है, नबी (सल्ल०) के बारे में सन्देह में न पड़ जाया करें] इसके अलावा नाम लेकर जब आपके चचा की निन्दा की गई तो लोगों की यह आशा सदा के लिए समाप्त हो गई कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) दीन के मामले में किसी का लिहाज़ करके कोई नर्मी बरत सकते हैं। जब खुल्लम-खुल्ला रसूल (सल्ल०) के अपने चचा की ख़बर ले लो गई तो लोग समझ गए कि यहाँ किसी लाग-लपेट की गुंजाइश नहीं है। पराया अपना हो सकता है, अगर ईमान ले आए और अपना पराया हो सकता है, अगर कुफ़्र (इनकार) करे। इस मामले में ख़ूनी रिश्ता कोई चीज़ नहीं है।

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سُورَةُ المَسَدِ
111. अल-लहब
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
تَبَّتۡ يَدَآ أَبِي لَهَبٖ وَتَبَّ ۝ 1
टूट गए अबू-लहब के दोनों हाथ और वह स्वयं भी विनष्ट हो गया!॥1॥
مَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُ مَالُهُۥ وَمَا كَسَبَ ۝ 2
न उसका माल उसके काम आया और न वह कुछ जो उसने कमाया।॥2॥
سَيَصۡلَىٰ نَارٗا ذَاتَ لَهَبٖ ۝ 3
वह शीघ्र ही प्रज्वलित भड़कती आग में पड़ेगा, ॥3॥
وَٱمۡرَأَتُهُۥ حَمَّالَةَ ٱلۡحَطَبِ ۝ 4
और उसकी स्‍त्री भी ईधन लादनेवाली, ॥4॥
فِي جِيدِهَا حَبۡلٞ مِّن مَّسَدِۭ ۝ 5
उसकी गरदन में खजूर के रेसों की बटी हुई रस्सी पड़ी होगी।॥5॥