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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

17. बनी-इसराईल

(मक्का में उतरी-आयतें 111)

परिचय

नाम

इस सूरा की आयत 4 के वाक्य “व क़ज़ैना इला बनी इसराई-ल फ़िल-किताब” से लिया गया है। यह नाम भी अधिकतर क़ुरआनी सूरतों की तरह केवल निशानी के रूप में रखा गया है।

उतरने का समय

पहली ही आयत इस बात की निशानदेही कर देती है कि यह सूरा मेराज के मौक़े पर अर्थात् मक्की दौर के अन्तिम काल में उतरी थी। मेराज की घटना हदीस और सीरत (नबी सल्ल० को जीवन-चर्या) की अधिकतर रिवायतों के अनुसार हिजरत से एक साल पहले घटित हुई थी।

पृष्ठभूमि

उस समय नबी (सल्ल०) को तौहीद (एकेश्वरवाद) की आवाज़ बुलन्द करते हुए 12 साल बीत चुके थे। विरोधियों की डाली तमाम रुकावटों के बावजूद आपकी आवाज़ अरब के कोने-कोने में पहुँच गई थी। अब वह समय क़रीब आ गया था जब आप (सल्ल०) को मक्का से मदीना की ओर चले जाने और बिखरे मुसलमानों को समेटकर इस्लामी सिद्धातों पर एक राज्य स्थापित कर देने का अवसर मिलनेवाला था - इन हालात में मेराज पेश आई और वापसी पर यह सन्देश नबी (सल्ल०) ने दुनिया को सुनाया।

विषय और वार्ताएँ

इस सूरा में चेतावनी, समझाना-बुझाना और शिक्षा, तीनों को एक संतुलित शैली में इकट्ठा कर दिया गया है।

चेतावनी मक्का के विधर्मियों को दी गई है कि बनी-इसराईल और दूसरी कौमों के अंजाम से सबक़ लो और इस दावत को स्वीकार कर लो, वरना मिटा दिए जाओगे। साथ ही बनी-इसराईल को भी जिन्हें हिजरत के बाद बहुत जल्द वह्य द्वारा सम्बोधित किया जानेवाला था, यह चेतावनी दी गई है कि पहले जो सज़ाएँ तुम्हें मिल चुकी हैं उनसे शिक्षा लो और अब जो अवसर मुहम्मद (सल्ल०) के पैग़म्बर बनाए जाने से तुम्हें मिल रहा है उससे फ़ायदा उठाओ। यह अन्तिम अवसर भी अगर तुमने खो दिया तो दर्दनाक अंजाम से दो-चार होगे।

समझाने-बुझाने के अंदाज़ में बड़े दिलनशीं तरीक़े से बताया गया है कि इंसान के सौभाग्य एवं दुर्भाग्य और सफलता एवं विफलता की निर्भरता वास्तव में किन चीज़ों पर है। तौहीद, आख़िरत, नुबूवत और क़ुरआन के सत्य पर होने के प्रमाण दिए गए हैं, उन सन्देहों को दूर किया गया है जो इन बुनियादी सच्चाइयों के बारे में मक्का के इस्लाम-विरोधियों की ओर से पेश किए जाते थे।

शिक्षा के पहलू में नैतिकता एवं सभ्यता के वे बड़े-बड़े उसूल बयान किए गए हैं जिनपर जीवन की व्यवस्था को स्थापित करना हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की दावत (अह्वान) के समक्ष था। यह मानो इस्लामी घोषणा-पत्र था जो इस्लामी राज्य की स्थापना से एक साल पहले अरबवालों के सामने प्रस्तुत किया गया था।

इन सब बातों के साथ नबी (सल्ल०) को निरदेश दिया गया है कि कठिनाइयों के इस तूफ़ान में दृढ़ता के साथ अपनी नीति पर जमे रहें और कुफ़्र (अथर्म) के साथ समझौते का ख़याल तक न लाएँ। साथ ही मुसलमानों को बताया गया है कि पूरे धैर्य और शान्ति के साथ परिस्थितियों का मुक़ाबला करते रहें और प्रचार तथा सुधार के काम में अपनी भावनाओं पर क़ाबू रखें। इस सिलसिले में आत्म-सुधार और उसे शुद्ध बनाने के लिए उनको नमाज़ का नुस्ख़ा बताया गया है। रिवायतों से मालूम होता है कि यह पहला मौक़ा है जब पाँच वक़्त की नमाज़ समय की पाबंदी के साथ मुसलमानों पर फ़र्ज़ की गई।

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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
17. बनी-इसराईल
سُورَةُ الإِسۡرَاءِ
17. बनी-इसराईल
سُبۡحَٰنَ ٱلَّذِيٓ أَسۡرَىٰ بِعَبۡدِهِۦ لَيۡلٗا مِّنَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ إِلَى ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡأَقۡصَا ٱلَّذِي بَٰرَكۡنَا حَوۡلَهُۥ لِنُرِيَهُۥ مِنۡ ءَايَٰتِنَآۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡبَصِيرُ ۝ 1
क्या ही महिमावान है वह जो रातों-रात अपने बन्दे (मुहम्मद) को प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से दूरवर्ती मस्जिद (अक़्सा) तक ले गया, जिसके चतुर्दिक (माहौल) को हमने बरकत दी, ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएँ। निस्संदेह वही सब कुछ सुनता, देखता है॥1॥
وَءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ وَجَعَلۡنَٰهُ هُدٗى لِّبَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ أَلَّا تَتَّخِذُواْ مِن دُونِي وَكِيلٗا ۝ 2
हमने मूसा को किताब दी थी और उसे इसराईल की संतान के लिए मार्गदर्शन बनाया था कि "हमारे सिवा किसी को कार्य-साधक न ठहराना।"॥2॥
ذُرِّيَّةَ مَنۡ حَمَلۡنَا مَعَ نُوحٍۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَبۡدٗا شَكُورٗا ۝ 3
ऐ उनकी संतान जिन्हें हमने नूह के साथ (नौका में) सवार किया था! निश्चय ही वह एक कृतज्ञ बन्दा था॥3॥
وَقَضَيۡنَآ إِلَىٰ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ فِي ٱلۡكِتَٰبِ لَتُفۡسِدُنَّ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَرَّتَيۡنِ وَلَتَعۡلُنَّ عُلُوّٗا كَبِيرٗا ۝ 4
और हमने किताब में इसराईल की सन्तान को इस फ़ैसले की ख़बर दे दी थी, "तुम धरती में अवश्य दो बार बड़ा फ़साद मचाओगे और बड़ी सरकशी दिखाओगे।"॥4॥
فَإِذَا جَآءَ وَعۡدُ أُولَىٰهُمَا بَعَثۡنَا عَلَيۡكُمۡ عِبَادٗا لَّنَآ أُوْلِي بَأۡسٖ شَدِيدٖ فَجَاسُواْ خِلَٰلَ ٱلدِّيَارِۚ وَكَانَ وَعۡدٗا مَّفۡعُولٗا ۝ 5
फिर जब उन दोनों में से पहले वादे का मौक़ा आ गया तो हमने तुम्हारे मुक़ाबले में अपने ऐसे बन्दों को उठाया जो युद्ध में बड़े बलशाली थे। तो वे बस्तियों में घुसकर हर ओर फैल गए, और यह वादा पूरा होना ही था॥5॥
ثُمَّ رَدَدۡنَا لَكُمُ ٱلۡكَرَّةَ عَلَيۡهِمۡ وَأَمۡدَدۡنَٰكُم بِأَمۡوَٰلٖ وَبَنِينَ وَجَعَلۡنَٰكُمۡ أَكۡثَرَ نَفِيرًا ۝ 6
फिर हमने तुम्हारी बारी उनपर लौटाई कि उनपर प्रभावी हो सको। और धनों और संतानों से तुम्हारी सहायता की और तुम्हें बहुसंख्यक लोगों का एक जत्था बनाया॥6॥
إِنۡ أَحۡسَنتُمۡ أَحۡسَنتُمۡ لِأَنفُسِكُمۡۖ وَإِنۡ أَسَأۡتُمۡ فَلَهَاۚ فَإِذَا جَآءَ وَعۡدُ ٱلۡأٓخِرَةِ لِيَسُـُٔواْ وُجُوهَكُمۡ وَلِيَدۡخُلُواْ ٱلۡمَسۡجِدَ كَمَا دَخَلُوهُ أَوَّلَ مَرَّةٖ وَلِيُتَبِّرُواْ مَا عَلَوۡاْ تَتۡبِيرًا ۝ 7
"यदि तुमने भलाई की तो अपने ही लिए भलाई की और यदि तुमने बुराई की तो अपने ही लिए की।" फिर जब दूसरे वादे का मौक़ा आ गया (तो हमने तुम्हारे मुक़ाबले में ऐसे प्रबल को उठाया) कि वे तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें और मस्जिद (बैतुल-मक़दिस) में घुस जाएँ, जैसे पहली बार वे उसमें घुसे थे और ताकि जिस चीज़ पर भी उनका ज़ोर चले विनष्ट कर डालें॥7॥
عَسَىٰ رَبُّكُمۡ أَن يَرۡحَمَكُمۡۚ وَإِنۡ عُدتُّمۡ عُدۡنَاۚ وَجَعَلۡنَا جَهَنَّمَ لِلۡكَٰفِرِينَ حَصِيرًا ۝ 8
हो सकता है तुम्हारा रब तुमपर दया करे, किन्तु यदि तुम फिर उसी पूर्व नीति की ओर पलटे तो हम भी पलटेंगे, और हमने जहन्नम को इनकार करनेवालों के लिए क़ैदख़ाना बना रखा है॥8॥
إِنَّ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ يَهۡدِي لِلَّتِي هِيَ أَقۡوَمُ وَيُبَشِّرُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱلَّذِينَ يَعۡمَلُونَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ أَنَّ لَهُمۡ أَجۡرٗا كَبِيرٗا ۝ 9
वास्तव में यह क़ुरआन वह मार्ग दिखाता है जो सबसे सीधा है और उन मोमिनों को, जो अच्छे कर्म करते हैं, शूभ सूचना देता है कि उनके लिए बड़ा बदला है॥9॥
وَأَنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ أَعۡتَدۡنَا لَهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا ۝ 10
और यह कि जो आख़िरत को नहीं मानते उनके लिए हमने दुखद यातना तैयार कर रखी है॥10॥
وَيَدۡعُ ٱلۡإِنسَٰنُ بِٱلشَّرِّ دُعَآءَهُۥ بِٱلۡخَيۡرِۖ وَكَانَ ٱلۡإِنسَٰنُ عَجُولٗا ۝ 11
मनुष्य उस प्रकार बुराई माँगता है जिस प्रकार उसकी प्रार्थना भलाई के लिए होनी चाहिए। मनुष्य है ही बड़ा उतावला!॥11॥
وَجَعَلۡنَا ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ ءَايَتَيۡنِۖ فَمَحَوۡنَآ ءَايَةَ ٱلَّيۡلِ وَجَعَلۡنَآ ءَايَةَ ٱلنَّهَارِ مُبۡصِرَةٗ لِّتَبۡتَغُواْ فَضۡلٗا مِّن رَّبِّكُمۡ وَلِتَعۡلَمُواْ عَدَدَ ٱلسِّنِينَ وَٱلۡحِسَابَۚ وَكُلَّ شَيۡءٖ فَصَّلۡنَٰهُ تَفۡصِيلٗا ۝ 12
हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाया है। फिर रात की निशानी को हमने प्रकाशहीन बनाया और दिन की निशानी को हमने प्रकाशमान बनाया, ताकि तुम अपने रब का अनुग्रह (रोज़ी) ढूँढ़ो और ताकि तुम वर्षों की गणना और हिसाब मालूम कर सको, और हर चीज़ को हमने अलग-अलग स्पष्ट कर रखा है॥12॥
وَكُلَّ إِنسَٰنٍ أَلۡزَمۡنَٰهُ طَٰٓئِرَهُۥ فِي عُنُقِهِۦۖ وَنُخۡرِجُ لَهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ كِتَٰبٗا يَلۡقَىٰهُ مَنشُورًا ۝ 13
हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है, और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे जिसको वह खुला हुआ पाएगा॥13॥
ٱقۡرَأۡ كِتَٰبَكَ كَفَىٰ بِنَفۡسِكَ ٱلۡيَوۡمَ عَلَيۡكَ حَسِيبٗا ۝ 14
"पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।"॥14॥
مَّنِ ٱهۡتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهۡتَدِي لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيۡهَاۚ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۗ وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّىٰ نَبۡعَثَ رَسُولٗا ۝ 15
जो कोई सीधा मार्ग अपनाए तो उसने अपने ही लिए सीधा मार्ग अपनाया और जो भटका तो वह अपने ही बुरे के लिए भटका। और कोई भी बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दें॥15॥
وَإِذَآ أَرَدۡنَآ أَن نُّهۡلِكَ قَرۡيَةً أَمَرۡنَا مُتۡرَفِيهَا فَفَسَقُواْ فِيهَا فَحَقَّ عَلَيۡهَا ٱلۡقَوۡلُ فَدَمَّرۡنَٰهَا تَدۡمِيرٗا ۝ 16
और जब हम किसी बस्ती को विनष्ट करने का इरादा कर लेते हैं तो उसके सुखभोगी लोगों को आदेश देते हैं तो (आदेश मानने के बजाए) वे वहाँ अवज्ञा करने लग जाते हैं, तब उनपर बात पूरी हो जाती है, फिर हम उन्हें बिलकुल उखाड़ फेंकते हैं॥16॥
وَكَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِنَ ٱلۡقُرُونِ مِنۢ بَعۡدِ نُوحٖۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِيرَۢا بَصِيرٗا ۝ 17
हमने नूह के पश्चाात् कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर दिया। तुम्हारा रब अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने, देखने के लिए काफ़ी है॥17॥
مَّن كَانَ يُرِيدُ ٱلۡعَاجِلَةَ عَجَّلۡنَا لَهُۥ فِيهَا مَا نَشَآءُ لِمَن نُّرِيدُ ثُمَّ جَعَلۡنَا لَهُۥ جَهَنَّمَ يَصۡلَىٰهَا مَذۡمُومٗا مَّدۡحُورٗا ۝ 18
जो कोई शीघ्र प्राप्त होनेवाली (दुनिया) को चाहता है उसके लिए हम उसी में जो कुछ किसी के लिए चाहते हैं शीघ्र प्रदान कर देते हैं। फिर उसके लिए हमने जहन्नम तैयार कर रखा है जिसमें वह दयालुता से वंचित होकर और ठुकराया हुआ प्रवेश करेगा॥18॥
وَمَنۡ أَرَادَ ٱلۡأٓخِرَةَ وَسَعَىٰ لَهَا سَعۡيَهَا وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَأُوْلَٰٓئِكَ كَانَ سَعۡيُهُم مَّشۡكُورٗا ۝ 19
और जो आख़िरत चाहता हो और उसके लिए ऐसा प्रयास भी करे जैसा कि उसके लिए प्रयास करना चाहिए और वह हो ईमानवाला, तो ऐसे ही लोग हैं जिनके प्रयास की क़द्र की जाएगी॥19॥
كُلّٗا نُّمِدُّ هَٰٓؤُلَآءِ وَهَٰٓؤُلَآءِ مِنۡ عَطَآءِ رَبِّكَۚ وَمَا كَانَ عَطَآءُ رَبِّكَ مَحۡظُورًا ۝ 20
इन्हें भी और इनको भी, प्रत्येक को हम तुम्हारे रब की देन में से सहायता पहुँचाए जा रहे हैं, और तुम्हारे रब की देन बन्द नहीं है॥20॥
ٱنظُرۡ كَيۡفَ فَضَّلۡنَا بَعۡضَهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۚ وَلَلۡأٓخِرَةُ أَكۡبَرُ دَرَجَٰتٖ وَأَكۡبَرُ تَفۡضِيلٗا ۝ 21
देखो, कैसे हमने उनके कुछ लोगों को कुछ के मुक़ाबले में आगे रखा है! और आख़िरत दर्जों की दृष्टि से सबसे बढ़कर है और श्रेष्ठ़ता की दृष्टि से भी वह सबसे बढ़-चढ़कर है॥21॥
لَّا تَجۡعَلۡ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ فَتَقۡعُدَ مَذۡمُومٗا مَّخۡذُولٗا ۝ 22
अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न बनाओ अन्यथा निन्दित और असहाय होकर बैठे रह जाओगे॥22॥
۞وَقَضَىٰ رَبُّكَ أَلَّا تَعۡبُدُوٓاْ إِلَّآ إِيَّاهُ وَبِٱلۡوَٰلِدَيۡنِ إِحۡسَٰنًاۚ إِمَّا يَبۡلُغَنَّ عِندَكَ ٱلۡكِبَرَ أَحَدُهُمَآ أَوۡ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُل لَّهُمَآ أُفّٖ وَلَا تَنۡهَرۡهُمَا وَقُل لَّهُمَا قَوۡلٗا كَرِيمٗا ۝ 23
तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें 'उँह' तक न कहो और न उन्हें झिझको, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो॥23॥
وَٱخۡفِضۡ لَهُمَا جَنَاحَ ٱلذُّلِّ مِنَ ٱلرَّحۡمَةِ وَقُل رَّبِّ ٱرۡحَمۡهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرٗا ۝ 24
और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ बिछाए रखो और कहो, "मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।"॥24॥
رَّبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِمَا فِي نُفُوسِكُمۡۚ إِن تَكُونُواْ صَٰلِحِينَ فَإِنَّهُۥ كَانَ لِلۡأَوَّٰبِينَ غَفُورٗا ۝ 25
जो कुछ तुम्हारे जी में है उसे तुम्हारा रब भली-भाँति जानता है। यदि तुम सुयोग्य और अच्छे हुए तो निश्चय ही वह भी ऐसे रुजू करनेवालों के लिए बड़ा क्षमाशील है॥25॥
وَءَاتِ ذَا ٱلۡقُرۡبَىٰ حَقَّهُۥ وَٱلۡمِسۡكِينَ وَٱبۡنَ ٱلسَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرۡ تَبۡذِيرًا ۝ 26
और नातेदार को उसका हक़ दो मुहताज और मुसाफ़िर को भी — और फ़ुज़ूलख़र्ची न करो॥26॥
إِنَّ ٱلۡمُبَذِّرِينَ كَانُوٓاْ إِخۡوَٰنَ ٱلشَّيَٰطِينِۖ وَكَانَ ٱلشَّيۡطَٰنُ لِرَبِّهِۦ كَفُورٗا ۝ 27
निश्चय ही फ़ु़ज़ूलख़र्ची करनेवाले शैतान के भाई हैं और शैतान अपने रब का बड़ा ही कृतघ्न है। — ॥27॥
وَإِمَّا تُعۡرِضَنَّ عَنۡهُمُ ٱبۡتِغَآءَ رَحۡمَةٖ مِّن رَّبِّكَ تَرۡجُوهَا فَقُل لَّهُمۡ قَوۡلٗا مَّيۡسُورٗا ۝ 28
किन्तु यदि तुम्हें अपने रब की दयालुता की खोज में, जिसकी तुम आशा रखते हो, उनसे1 कतराना भी पड़े, तो इस दशा में तुम उनसे नर्म बात करो॥28॥ ———————— 1. अर्थात् नातेदारों, मुहताजों, ग़रीबों, मुसाफ़िरों।
وَلَا تَجۡعَلۡ يَدَكَ مَغۡلُولَةً إِلَىٰ عُنُقِكَ وَلَا تَبۡسُطۡهَا كُلَّ ٱلۡبَسۡطِ فَتَقۡعُدَ مَلُومٗا مَّحۡسُورًا ۝ 29
और अपना हाथ न तो अपनी गरदन से बाँधे रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो कि निन्दित और असहाय होकर बैठ जाओ॥29॥
إِنَّ رَبَّكَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِعِبَادِهِۦ خَبِيرَۢا بَصِيرٗا ۝ 30
तुम्हारा रब जिसको चाहता है प्रचुर और फैली हुई रोज़ी प्रदान करता है और इसी प्रकार नपी-तुली भी। निस्संदेह वह अपने बन्दों की ख़बर और उनपर नज़र रखता है॥30॥
وَلَا تَقۡتُلُوٓاْ أَوۡلَٰدَكُمۡ خَشۡيَةَ إِمۡلَٰقٖۖ نَّحۡنُ نَرۡزُقُهُمۡ وَإِيَّاكُمۡۚ إِنَّ قَتۡلَهُمۡ كَانَ خِطۡـٔٗا كَبِيرٗا ۝ 31
और निर्धनता के भय से अपनी सन्तान की हत्या न करो, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी। वास्तव में उनकी हत्या बहुत ही बड़ा अपराध है॥31॥
وَلَا تَقۡرَبُواْ ٱلزِّنَىٰٓۖ إِنَّهُۥ كَانَ فَٰحِشَةٗ وَسَآءَ سَبِيلٗا ۝ 32
और व्यभिचार के निकट न जाओ। वह एक अश्लील कर्म और बुरा मार्ग है॥32॥
وَلَا تَقۡتُلُواْ ٱلنَّفۡسَ ٱلَّتِي حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلۡحَقِّۗ وَمَن قُتِلَ مَظۡلُومٗا فَقَدۡ جَعَلۡنَا لِوَلِيِّهِۦ سُلۡطَٰنٗا فَلَا يُسۡرِف فِّي ٱلۡقَتۡلِۖ إِنَّهُۥ كَانَ مَنصُورٗا ۝ 33
किसी जीव की हत्या न करो, जिसे (मारना) अल्लाह ने हराम ठहराया है। यह और बात है कि हक़ (न्याय) का तक़ाज़ा यही हो। और जिसकी अन्यायपूर्वक हत्या की गई हो, उसके उत्तराधिकारी को हमने अधिकार दिया है (कि वह हत्यारे से बदला ले सकता है), किन्तु वह हत्या के विषय में सीमा का उल्लंघन न करे। निश्चय ही उसकी सहायता की जाएगी॥33॥
وَلَا تَقۡرَبُواْ مَالَ ٱلۡيَتِيمِ إِلَّا بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ حَتَّىٰ يَبۡلُغَ أَشُدَّهُۥۚ وَأَوۡفُواْ بِٱلۡعَهۡدِۖ إِنَّ ٱلۡعَهۡدَ كَانَ مَسۡـُٔولٗا ۝ 34
और अनाथ के माल को हाथ न लगाओ सिवाय उत्तम रीति के, यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाए, और प्रतिज्ञा पूरी करो। प्रतिज्ञा के विषय में अवश्य पूछा जाएगा॥34॥
وَأَوۡفُواْ ٱلۡكَيۡلَ إِذَا كِلۡتُمۡ وَزِنُواْ بِٱلۡقِسۡطَاسِ ٱلۡمُسۡتَقِيمِۚ ذَٰلِكَ خَيۡرٞ وَأَحۡسَنُ تَأۡوِيلٗا ۝ 35
और जब नापकर दो, तो नाप पूरी रखो। और ठीक तराज़ू से तौलो, यही उत्तम और परिणाम की दृष्टि से भी अधिक अच्छा है॥35॥
وَلَا تَقۡفُ مَا لَيۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمٌۚ إِنَّ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡبَصَرَ وَٱلۡفُؤَادَ كُلُّ أُوْلَٰٓئِكَ كَانَ عَنۡهُ مَسۡـُٔولٗا ۝ 36
और जिस चीज़ का तुम्हें ज्ञान न हो उसके पीछे न लगो। निस्संदेह कान और आँख और दिल इनमें से प्रत्येक के विषय में पूछा जाएगा॥36॥
وَلَا تَمۡشِ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَرَحًاۖ إِنَّكَ لَن تَخۡرِقَ ٱلۡأَرۡضَ وَلَن تَبۡلُغَ ٱلۡجِبَالَ طُولٗا ۝ 37
और धरती में अकड़कर न चलो, न तो तुम धरती को फाड़ सकते हो और न लम्बे होकर पहाड़ों को पहुँच सकते हो॥37॥
كُلُّ ذَٰلِكَ كَانَ سَيِّئُهُۥ عِندَ رَبِّكَ مَكۡرُوهٗا ۝ 38
इनमें से प्रत्येक की बुराई तुम्हारे रब की दृष्टि में अप्रिय ही है॥38॥
ذَٰلِكَ مِمَّآ أَوۡحَىٰٓ إِلَيۡكَ رَبُّكَ مِنَ ٱلۡحِكۡمَةِۗ وَلَا تَجۡعَلۡ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ فَتُلۡقَىٰ فِي جَهَنَّمَ مَلُومٗا مَّدۡحُورًا ۝ 39
ये तत्वदर्शिता की वे बातें हैं, जिनकी प्रकाशना तुम्हारे रब ने तुम्हारी ओर की है। और देखो, अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न गढ़ना, अन्यथा जहन्नम में डाल दिए जाओगे निन्दित, ठुकराए हुए!॥39॥
أَفَأَصۡفَىٰكُمۡ رَبُّكُم بِٱلۡبَنِينَ وَٱتَّخَذَ مِنَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ إِنَٰثًاۚ إِنَّكُمۡ لَتَقُولُونَ قَوۡلًا عَظِيمٗا ۝ 40
क्या तुम्हारे रब ने तुम्हें तो बेटों के लिए ख़ास किया और स्वयं अपने लिए फ़रिश्तों को बेटियाँ बनाया? बहुत भारी बात है जो तुम कह रहे हो!॥40॥
وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ لِيَذَّكَّرُواْ وَمَا يَزِيدُهُمۡ إِلَّا نُفُورٗا ۝ 41
हमने इस क़ुरआन में विभिन्न ढंग से बात का स्पष्टीकरण किया कि वे चेतें, किन्तु इसमें उनकी नफ़रत ही बढ़ती है॥41॥
قُل لَّوۡ كَانَ مَعَهُۥٓ ءَالِهَةٞ كَمَا يَقُولُونَ إِذٗا لَّٱبۡتَغَوۡاْ إِلَىٰ ذِي ٱلۡعَرۡشِ سَبِيلٗا ۝ 42
कह दो, "यदि उसके साथ अन्य भी पूज्य-प्रभु होते, जैसा कि ये कहते हैं, तब तो वे सिंहासनवाले (के पद) तक पहुँचने का कोई मार्ग अवश्य तलाश करते"॥42॥
سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يَقُولُونَ عُلُوّٗا كَبِيرٗا ۝ 43
महिमावान है वह! और बहुत उच्च है उन बातों से जो वे कहते हैं!॥43॥
تُسَبِّحُ لَهُ ٱلسَّمَٰوَٰتُ ٱلسَّبۡعُ وَٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِيهِنَّۚ وَإِن مِّن شَيۡءٍ إِلَّا يُسَبِّحُ بِحَمۡدِهِۦ وَلَٰكِن لَّا تَفۡقَهُونَ تَسۡبِيحَهُمۡۚ إِنَّهُۥ كَانَ حَلِيمًا غَفُورٗا ۝ 44
सातों आकाश और धरती और जो कोई भी उनमें है सब उसकी तसबीह (महिमागान) करते हैं और ऐसी कोई चीज़ नहीं जो उसका गुणगान न करती हो। किन्तु तुम उनकी तसबीह को समझते नहीं। निश्चय ही वह अत्यन्त सहनशील, क्षमावान है॥44॥
وَإِذَا قَرَأۡتَ ٱلۡقُرۡءَانَ جَعَلۡنَا بَيۡنَكَ وَبَيۡنَ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ حِجَابٗا مَّسۡتُورٗا ۝ 45
जब तुम क़ुरआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के बीच, जो आख़िरत को नहीं मानते एक अदृश्य पर्दे की आड़ कर देते हैं॥45॥
وَجَعَلۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ أَكِنَّةً أَن يَفۡقَهُوهُ وَفِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرٗاۚ وَإِذَا ذَكَرۡتَ رَبَّكَ فِي ٱلۡقُرۡءَانِ وَحۡدَهُۥ وَلَّوۡاْ عَلَىٰٓ أَدۡبَٰرِهِمۡ نُفُورٗا ۝ 46
और उनके दिलों पर भी परदे डाल देते हैं कि वे समझ न सकें। और उनके कानों में बोझ (कि वे सुन न सकें)। और जब तुम क़ुरआन के माध्यम से अपने रब का वर्णन उसे अकेला बताते हुए करते हो तो वे नफ़रत से अपनी पीठ फेरकर चल देते हैं॥46॥
نَّحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا يَسۡتَمِعُونَ بِهِۦٓ إِذۡ يَسۡتَمِعُونَ إِلَيۡكَ وَإِذۡ هُمۡ نَجۡوَىٰٓ إِذۡ يَقُولُ ٱلظَّٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلٗا مَّسۡحُورًا ۝ 47
जब वे तुम्हारी ओर कान लगाते हैं तो हम भली-भाँति जानते हैं कि उनके कान लगाने का प्रयोजन क्या है और उसे भी जब वे आपस में कानाफूसियाँ करते है, जब वे ज़ालिम कहते हैं, "तुम लोग तो बस उस आदमी के पीछे चलते हो जो पक्का जादूगर है।"॥47॥
ٱنظُرۡ كَيۡفَ ضَرَبُواْ لَكَ ٱلۡأَمۡثَالَ فَضَلُّواْ فَلَا يَسۡتَطِيعُونَ سَبِيلٗا ۝ 48
देखो, वे कैसी मिसालें तुमपर चस्पाँ करते हैं! वे तो भटक गए हैं, अब कोई मार्ग नहीं पा सकते!॥48॥
وَقَالُوٓاْ أَءِذَا كُنَّا عِظَٰمٗا وَرُفَٰتًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ خَلۡقٗا جَدِيدٗا ۝ 49
वे कहते हैं, "क्या जब हम हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाएँगे, तो क्या हम फिर नए बनकर उठेंगे?"॥49॥
۞قُلۡ كُونُواْ حِجَارَةً أَوۡ حَدِيدًا ۝ 50
कह दो, "तुम पत्थर या लोहा हो जाओ,॥50॥
أَوۡ خَلۡقٗا مِّمَّا يَكۡبُرُ فِي صُدُورِكُمۡۚ فَسَيَقُولُونَ مَن يُعِيدُنَاۖ قُلِ ٱلَّذِي فَطَرَكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةٖۚ فَسَيُنۡغِضُونَ إِلَيۡكَ رُءُوسَهُمۡ وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هُوَۖ قُلۡ عَسَىٰٓ أَن يَكُونَ قَرِيبٗا ۝ 51
या कोई और चीज़ जो तुम्हारे जी में अत्यन्त विकट हो।" तब वे कहेंगे, "कौन हमें पलटाकर लाएगा?" कह दो, "वही जिसने तुम्हें पहली बार पैदा किया।" तब वे तुम्हारे आगे अपने सिरों को हिला-हिलाकर कहेंगे, "अच्छा तो वह कह होगा?" कह दो, "कदाचित कि वह निकट ही हो।"॥51॥
يَوۡمَ يَدۡعُوكُمۡ فَتَسۡتَجِيبُونَ بِحَمۡدِهِۦ وَتَظُنُّونَ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا قَلِيلٗا ۝ 52
जिस दिन वह तुम्हें पुकारेगा, तो तुम उसकी प्रशंसा करते हुए उसकी आज्ञा को स्वीकार करोगे और समझोगे कि तुम बस थोड़ी ही देर ठहरे रहे हो॥52॥
وَقُل لِّعِبَادِي يَقُولُواْ ٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُۚ إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ يَنزَغُ بَيۡنَهُمۡۚ إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ كَانَ لِلۡإِنسَٰنِ عَدُوّٗا مُّبِينٗا ۝ 53
मेरे बन्दों से कह दो कि "बात वही कहें जो उत्तम हो। शैतान तो उनके बीच उकसाकर फ़साद डालता रहता है। निस्संदेह शैतान मनुष्य का प्रत्यक्ष शत्रु है।"॥53॥
رَّبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِكُمۡۖ إِن يَشَأۡ يَرۡحَمۡكُمۡ أَوۡ إِن يَشَأۡ يُعَذِّبۡكُمۡۚ وَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ عَلَيۡهِمۡ وَكِيلٗا ۝ 54
तुम्हारा रब तुमसे भली-भाँति परिचित है। वह चाहे तो तुमपर दया करे या चाहे तो तुम्हें यातना दे। हमने तुम्हें उनकी ज़िम्मेदारी लेनेवाला कोई व्यक्ति बनाकर नहीं भेजा है (कि उन्हें अनिवार्यतः संमार्ग पर ला ही दो)॥54॥
وَرَبُّكَ أَعۡلَمُ بِمَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَلَقَدۡ فَضَّلۡنَا بَعۡضَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ عَلَىٰ بَعۡضٖۖ وَءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ زَبُورٗا ۝ 55
तुम्हारा रब उससे भी भली-भाँति परिचित है जो कोई आकाशों और धरती में है, और हमने कुछ नबियों को कुछ की अपेक्षा श्रेष्ठता दी और हमने ही दाऊद को ज़बूर प्रदान की थी॥55॥
قُلِ ٱدۡعُواْ ٱلَّذِينَ زَعَمۡتُم مِّن دُونِهِۦ فَلَا يَمۡلِكُونَ كَشۡفَ ٱلضُّرِّ عَنكُمۡ وَلَا تَحۡوِيلًا ۝ 56
कह दो, "तुम उससे इतर जिनको भी पूज्य-प्रभु समझते हो उन्हें पुकार कर देखो। वे न तुमसे कोई कष्ट दूर करने का अधिकार रखते हैं और न उसे बदलने का।"॥56॥
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ يَبۡتَغُونَ إِلَىٰ رَبِّهِمُ ٱلۡوَسِيلَةَ أَيُّهُمۡ أَقۡرَبُ وَيَرۡجُونَ رَحۡمَتَهُۥ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُۥٓۚ إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحۡذُورٗا ۝ 57
जिनको ये लोग पुकारते हैं वे तो स्वयं अपने रब का सामीप्य ढूँढ़ते हैं कि कौन उनमें से सबसे अधिक निकटता प्राप्त कर ले। और वे उसकी दयालुता की आशा रखते हैं और उसकी यातना से डरते रहते हैं। तुम्हारे रब की यातना तो है ही डरने की चीज़!॥57॥
وَإِن مِّن قَرۡيَةٍ إِلَّا نَحۡنُ مُهۡلِكُوهَا قَبۡلَ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ أَوۡ مُعَذِّبُوهَا عَذَابٗا شَدِيدٗاۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِي ٱلۡكِتَٰبِ مَسۡطُورٗا ۝ 58
कोई भी (अवज्ञाकारी) बस्ती ऐसी नहीं जिसे हम क़ियामत के दिन से पहले विनष्ट न कर दें या उसे कठोर यातना न दें। यह बात किताब में लिखी जा चुकी है॥58॥
وَمَا مَنَعَنَآ أَن نُّرۡسِلَ بِٱلۡأٓيَٰتِ إِلَّآ أَن كَذَّبَ بِهَا ٱلۡأَوَّلُونَۚ وَءَاتَيۡنَا ثَمُودَ ٱلنَّاقَةَ مُبۡصِرَةٗ فَظَلَمُواْ بِهَاۚ وَمَا نُرۡسِلُ بِٱلۡأٓيَٰتِ إِلَّا تَخۡوِيفٗا ۝ 59
हमें निशानियाँ (देकर नबी को) भेजने से इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि पहले के लोग उनको झुठला चुके हैं। और (उदाहरणार्थ) हमने समूद को स्पष्ट प्रमाण के रूप में ऊँटनी दी, किन्तु उन्होंने ग़लत नीति अपनाकर स्वयं ही अपनी जानों पर ज़ुल्म किया। हम निशानियाँ तो डराने ही के लिए भेजते हैं॥59॥
وَإِذۡ قُلۡنَا لَكَ إِنَّ رَبَّكَ أَحَاطَ بِٱلنَّاسِۚ وَمَا جَعَلۡنَا ٱلرُّءۡيَا ٱلَّتِيٓ أَرَيۡنَٰكَ إِلَّا فِتۡنَةٗ لِّلنَّاسِ وَٱلشَّجَرَةَ ٱلۡمَلۡعُونَةَ فِي ٱلۡقُرۡءَانِۚ وَنُخَوِّفُهُمۡ فَمَا يَزِيدُهُمۡ إِلَّا طُغۡيَٰنٗا كَبِيرٗا ۝ 60
जब हमने तुमसे कहा, "तुम्हारे रब ने लोगों को अपने घेरे में ले रखा है और जो अलौकिक दर्शन हमने तुम्हें कराया उसे तो हमने लोगों के लिए केवल एक आज़माइश बना दिया और उस वृक्ष को भी जिसे क़ुरआन में तिरस्कृत ठहराया गया है। हम उन्हें डराते हैं, किन्तु यह चीज़ उनकी बढ़ी हुई सरकशी ही को बढ़ा रही है।"॥60॥
وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِأٓدَمَ فَسَجَدُوٓاْ إِلَّآ إِبۡلِيسَ قَالَ ءَأَسۡجُدُ لِمَنۡ خَلَقۡتَ طِينٗا ۝ 61
याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा, "आदम को सजदा करो तो इबलीस को छोड़कर सबने सजदा किया।" उसने कहा, "क्या मैं उसे सजदा करूँ, जिसे तूने मिट्टी से बनाया है?"॥61॥
قَالَ أَرَءَيۡتَكَ هَٰذَا ٱلَّذِي كَرَّمۡتَ عَلَيَّ لَئِنۡ أَخَّرۡتَنِ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَأَحۡتَنِكَنَّ ذُرِّيَّتَهُۥٓ إِلَّا قَلِيلٗا ۝ 62
कहने लगा, "देख तो सही, उसे जिसको तूने मेरे मुक़ाबले में श्रेष्ठता प्रदान की है, यदि तूने मुझे क़ियामत के दिन तक मुहलत दे दी, तो मैं अवश्य ही उसकी सन्तान को वश में करके उसका उन्मूलन कर डालूँगा। केवल थोड़े ही लोग बच सकेंगे।"॥62॥
قَالَ ٱذۡهَبۡ فَمَن تَبِعَكَ مِنۡهُمۡ فَإِنَّ جَهَنَّمَ جَزَآؤُكُمۡ جَزَآءٗ مَّوۡفُورٗا ۝ 63
कहा, "जा, उनमें से जो भी तेरा अनुसरण करेगा, तो तुझ सहित ऐसे सभी लोगों का भरपूर बदला जहन्नम है॥63॥
وَٱسۡتَفۡزِزۡ مَنِ ٱسۡتَطَعۡتَ مِنۡهُم بِصَوۡتِكَ وَأَجۡلِبۡ عَلَيۡهِم بِخَيۡلِكَ وَرَجِلِكَ وَشَارِكۡهُمۡ فِي ٱلۡأَمۡوَٰلِ وَٱلۡأَوۡلَٰدِ وَعِدۡهُمۡۚ وَمَا يَعِدُهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ إِلَّا غُرُورًا ۝ 64
उनमें से जिस किसी पर तेरा बस चले उसके क़दम अपनी आवाज़ से उखाड़ दे और उनपर अपने सवार और अपने प्यादे (पैदल सेना) चढ़ा ला और माल और संतान में भी उनके साथ साझा लगा और उनसे वादे कर!" — किन्तु शैतान उनसे जो वादे करता है वह एक धोखे के सिवा और कुछ भी नहीं होता। —॥64॥
إِنَّ عِبَادِي لَيۡسَ لَكَ عَلَيۡهِمۡ سُلۡطَٰنٞۚ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ وَكِيلٗا ۝ 65
"निश्चय ही जो मेरे (सच्चे) बन्दे हैं उनपर तेरा कुछ भी ज़ोर नहीं चल सकता।" तुम्हारा रब इसके लिए काफ़ी है कि अपना मामला उसी को सौंप दिया जाए॥65॥
رَّبُّكُمُ ٱلَّذِي يُزۡجِي لَكُمُ ٱلۡفُلۡكَ فِي ٱلۡبَحۡرِ لِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِكُمۡ رَحِيمٗا ۝ 66
तुम्हारा रब तो वह है जो तुम्हारे लिए समुद्र में नौका चलाता है, ताकि तुम उसका अनुग्रह (आजीविका) तलाश करो। वह तुम्हारे हाल पर अत्यन्त दयावान है॥66॥
وَإِذَا مَسَّكُمُ ٱلضُّرُّ فِي ٱلۡبَحۡرِ ضَلَّ مَن تَدۡعُونَ إِلَّآ إِيَّاهُۖ فَلَمَّا نَجَّىٰكُمۡ إِلَى ٱلۡبَرِّ أَعۡرَضۡتُمۡۚ وَكَانَ ٱلۡإِنسَٰنُ كَفُورًا ۝ 67
जब समुद्र में तुमपर कोई आपदा आती है तो उसके सिवा वे सब, जिन्हें तुम पुकारते हो, गुम होकर रह जाते हैं, किन्तु फिर जब वह तुम्हें बचाकर ख़ुश्की (थल) पर पहुँचा देता है तो तुम उससे मुँह मोड़ जाते हो। मानव बड़ा ही अकृतज्ञ है॥67॥
أَفَأَمِنتُمۡ أَن يَخۡسِفَ بِكُمۡ جَانِبَ ٱلۡبَرِّ أَوۡ يُرۡسِلَ عَلَيۡكُمۡ حَاصِبٗا ثُمَّ لَا تَجِدُواْ لَكُمۡ وَكِيلًا ۝ 68
क्या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह कभी थल की ओर ले जाकर तुम्हें धँसा दे या तुमपर पथराव करनेवाली आँधी भेज दे; फिर अपना कोई कार्य-साधक न पाओ?॥68॥
أَمۡ أَمِنتُمۡ أَن يُعِيدَكُمۡ فِيهِ تَارَةً أُخۡرَىٰ فَيُرۡسِلَ عَلَيۡكُمۡ قَاصِفٗا مِّنَ ٱلرِّيحِ فَيُغۡرِقَكُم بِمَا كَفَرۡتُمۡ ثُمَّ لَا تَجِدُواْ لَكُمۡ عَلَيۡنَا بِهِۦ تَبِيعٗا ۝ 69
या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह फिर तुम्हें उसमें दोबारा ले जाए और तुमपर प्रचंड तूफ़ानी हवा भेज दे और तुम्हें तुम्हारे इनकार के बदले में डुबो दे। फिर तुम किसी को ऐसा न पाओ जो तुम्हारे लिए इसपर हमारा पीछा करनेवाला हो?॥69॥
۞وَلَقَدۡ كَرَّمۡنَا بَنِيٓ ءَادَمَ وَحَمَلۡنَٰهُمۡ فِي ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِ وَرَزَقۡنَٰهُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِ وَفَضَّلۡنَٰهُمۡ عَلَىٰ كَثِيرٖ مِّمَّنۡ خَلَقۡنَا تَفۡضِيلٗا ۝ 70
हमने आदम की संतान को श्रेष्ठ्ता प्रदान की और उन्हें थल और जल में सवारी दी और अच्छी पाक चीज़ों की उन्हें रोज़ी दी और अपने पैदा किए हुए बहुत-से प्राणियों की अपेक्षा उन्हें श्रेष्ठरता प्रदान की॥70॥
يَوۡمَ نَدۡعُواْ كُلَّ أُنَاسِۭ بِإِمَٰمِهِمۡۖ فَمَنۡ أُوتِيَ كِتَٰبَهُۥ بِيَمِينِهِۦ فَأُوْلَٰٓئِكَ يَقۡرَءُونَ كِتَٰبَهُمۡ وَلَا يُظۡلَمُونَ فَتِيلٗا ۝ 71
(उस दिन से डरो) जिस दिन हम मानव के प्रत्येक गिरोह को उसके अपने नायक के साथ बुलाएँगे। फिर जिसे उसका कर्मपत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया, तो ऐसे लोग अपना कर्मपत्र पढ़ेंगे और उनके साथ तनिक भी अन्याय न होगा॥71॥
وَمَن كَانَ فِي هَٰذِهِۦٓ أَعۡمَىٰ فَهُوَ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ أَعۡمَىٰ وَأَضَلُّ سَبِيلٗا ۝ 72
और जो यहाँ अंधा होकर रहा वह आख़िरत में भी अंधा ही रहेगा, बल्कि वह सबसे बढ़कर पथभ्रष्ट होगा॥72॥
وَإِن كَادُواْ لَيَفۡتِنُونَكَ عَنِ ٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ لِتَفۡتَرِيَ عَلَيۡنَا غَيۡرَهُۥۖ وَإِذٗا لَّٱتَّخَذُوكَ خَلِيلٗا ۝ 73
और वे तो लगते थे कि तुम्हें फ़ितने में डालकर उस चीज़ से हटा देने को हैं जिसकी प्रकाशना हमने तुम्हारी ओर की है, ताकि तुम उससे भिन्न चीज़ गढ़कर हमपर थोपो, और तब वे तुम्हें अपना घनिष्ट मित्र बना लेते॥73॥
وَلَوۡلَآ أَن ثَبَّتۡنَٰكَ لَقَدۡ كِدتَّ تَرۡكَنُ إِلَيۡهِمۡ شَيۡـٔٗا قَلِيلًا ۝ 74
यदि हम तुम्हें जमाव प्रदान न करते तो तुम उनकी ओर थोड़ा झुकने के निकट जा पहुँचते॥74॥
إِذٗا لَّأَذَقۡنَٰكَ ضِعۡفَ ٱلۡحَيَوٰةِ وَضِعۡفَ ٱلۡمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَيۡنَا نَصِيرٗا ۝ 75
उस समय हम तुम्हें जीवन में भी दोहरा मज़ा चखाते और मृत्यु के पश्चात् भी दोहरा मज़ा चखाते। फिर तुम हमारे मुक़ाबले में अपना कोई सहायक न पाते॥75॥
وَإِن كَادُواْ لَيَسۡتَفِزُّونَكَ مِنَ ٱلۡأَرۡضِ لِيُخۡرِجُوكَ مِنۡهَاۖ وَإِذٗا لَّا يَلۡبَثُونَ خِلَٰفَكَ إِلَّا قَلِيلٗا ۝ 76
और निश्चय ही उन्होंने चाल चली कि इस भू-भाग से तुम्हारे क़दम उखाड़ दें, ताकि तुम्हें यहाँ से निकालकर ही रहें। और ऐसा हुआ तो तुम्हारे पीछे ये भी रह थोड़े ही पाएँगे॥76॥
سُنَّةَ مَن قَدۡ أَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ مِن رُّسُلِنَاۖ وَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحۡوِيلًا ۝ 77
यही कार्य-प्रणाली हमारे उन रसूलों के विषय में भी रही है, जिन्हें हमने तुमसे पहले भेजा था, और तुम हमारी कार्य-प्रणाली में कोई अन्तर न पाओगे॥77॥
أَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ لِدُلُوكِ ٱلشَّمۡسِ إِلَىٰ غَسَقِ ٱلَّيۡلِ وَقُرۡءَانَ ٱلۡفَجۡرِۖ إِنَّ قُرۡءَانَ ٱلۡفَجۡرِ كَانَ مَشۡهُودٗا ۝ 78
नमाज़ क़ायम करो सूर्य के ढलने से लेकर रात के छा जाने तक और फ़ज्र (प्रभात) के क़ुरआन (अर्थात फ़ज्र की नमाज़) के पाबन्द रहो। निश्चय ही फ़ज्र का क़ुरआन पढ़ना हुज़ूरी की चीज़ है॥78॥
وَمِنَ ٱلَّيۡلِ فَتَهَجَّدۡ بِهِۦ نَافِلَةٗ لَّكَ عَسَىٰٓ أَن يَبۡعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامٗا مَّحۡمُودٗا ۝ 79
और रात के कुछ हिस्से में उस (क़ुरआन) के द्वारा जागरण किया करो, यह तुम्हारे लिए तद्अधिक (नफ़्ल) है। आशा है कि तुम्हारा रब तुम्हें उठाए, ऐसा उठाना जो प्रशंसित हो॥79॥
وَقُل رَّبِّ أَدۡخِلۡنِي مُدۡخَلَ صِدۡقٖ وَأَخۡرِجۡنِي مُخۡرَجَ صِدۡقٖ وَٱجۡعَل لِّي مِن لَّدُنكَ سُلۡطَٰنٗا نَّصِيرٗا ۝ 80
और कहो, "मेरे रब! तू मुझे ख़ूबी के साथ दाख़िल कर और ख़ूबी के साथ निकाल, और अपनी ओर से मुझे सहायक शक्ति प्रदान कर।"॥80॥
وَقُلۡ جَآءَ ٱلۡحَقُّ وَزَهَقَ ٱلۡبَٰطِلُۚ إِنَّ ٱلۡبَٰطِلَ كَانَ زَهُوقٗا ۝ 81
कह दो, "सत्य आ गया और असत्य मिट गया; असत्य तो मिट जानेवाला ही होता है।"॥81॥
وَنُنَزِّلُ مِنَ ٱلۡقُرۡءَانِ مَا هُوَ شِفَآءٞ وَرَحۡمَةٞ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ وَلَا يَزِيدُ ٱلظَّٰلِمِينَ إِلَّا خَسَارٗا ۝ 82
हम क़ुरआन के रूप में वह चीज़ उतार रहे हैं वह मोमिनों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) और दयालुता है, किन्तु ज़ालिमों के लिए तो वह बस घाटे ही में अभिवृद्धि करता है॥82॥
وَإِذَآ أَنۡعَمۡنَا عَلَى ٱلۡإِنسَٰنِ أَعۡرَضَ وَنَـَٔا بِجَانِبِهِۦ وَإِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ كَانَ يَـُٔوسٗا ۝ 83
मानव पर जब हम सुखद कृपा करते हैं तो वह मुँह फेरता और अपना पहलू बचाता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है, तो वह निराश होने लगता है॥83॥
قُلۡ كُلّٞ يَعۡمَلُ عَلَىٰ شَاكِلَتِهِۦ فَرَبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِمَنۡ هُوَ أَهۡدَىٰ سَبِيلٗا ۝ 84
कह दो, "हर एक अपने ढब पर काम कर रहा है; तो अब तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है कि कौन अधिक सीधे मार्ग पर है।"॥84॥
وَيَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلرُّوحِۖ قُلِ ٱلرُّوحُ مِنۡ أَمۡرِ رَبِّي وَمَآ أُوتِيتُم مِّنَ ٱلۡعِلۡمِ إِلَّا قَلِيلٗا ۝ 85
वे तुमसे रूह के विषय में पूछते हैं। कह दो, "रूह का सम्बन्‍ध तो मेरे रब के आदेश से है, किन्तु ज्ञान तुम्हें मिला थोड़ा ही है।"॥85॥
وَلَئِن شِئۡنَا لَنَذۡهَبَنَّ بِٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ بِهِۦ عَلَيۡنَا وَكِيلًا ۝ 86
यदि हम चाहें तो वह सब छीन लें जो हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना की है, फिर इसके लिए हमारे मुक़ाबले में अपना कोई समर्थक न पाओगे॥86॥
إِلَّا رَحۡمَةٗ مِّن رَّبِّكَۚ إِنَّ فَضۡلَهُۥ كَانَ عَلَيۡكَ كَبِيرٗا ۝ 87
यह तो बस तुम्हारे रब की दयालुता है। वास्तविकता यह है कि उसका तुमपर बड़ा अनुग्रह है॥87॥
قُل لَّئِنِ ٱجۡتَمَعَتِ ٱلۡإِنسُ وَٱلۡجِنُّ عَلَىٰٓ أَن يَأۡتُواْ بِمِثۡلِ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ لَا يَأۡتُونَ بِمِثۡلِهِۦ وَلَوۡ كَانَ بَعۡضُهُمۡ لِبَعۡضٖ ظَهِيرٗا ۝ 88
कह दो, "यदि मनुष्य और जिन्न इसके लिए इकट्ठे हो जाएँ कि क़ुरआन जैसी कोई चीज़ लाएँ तो वे इस जैसी कोई चीज़ न ला सकेंगे, चाहे वे आपस में एक-दूसरे के सहायक ही क्यों न हों।"॥88॥
وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلٖ فَأَبَىٰٓ أَكۡثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورٗا ۝ 89
हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए प्रत्येक तत्वदर्शिता की बात फेर-फेरकर बयान की, फिर भी अधिकतर लोगों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही॥89॥
وَقَالُواْ لَن نُّؤۡمِنَ لَكَ حَتَّىٰ تَفۡجُرَ لَنَا مِنَ ٱلۡأَرۡضِ يَنۢبُوعًا ۝ 90
और उन्होंने कहा, "हम तुम्हारी बात नहीं मानेंगे जब तक कि तुम हमारे लिए धरती से एक स्रोत प्रवाहित न कर दो,॥90॥
أَوۡ تَكُونَ لَكَ جَنَّةٞ مِّن نَّخِيلٖ وَعِنَبٖ فَتُفَجِّرَ ٱلۡأَنۡهَٰرَ خِلَٰلَهَا تَفۡجِيرًا ۝ 91
या फिर तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो और तुम उसके बीच बहती नहरें निकाल दो,॥91॥
أَوۡ تُسۡقِطَ ٱلسَّمَآءَ كَمَا زَعَمۡتَ عَلَيۡنَا كِسَفًا أَوۡ تَأۡتِيَ بِٱللَّهِ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ قَبِيلًا ۝ 92
या आकाश को टुकड़े-टुकड़े करके हम पर गिरा दो जैसा कि तुम्हारा दावा है, या अल्लाह और फ़रिश्तों ही को हमारे समझ ले आओ,॥92॥
أَوۡ يَكُونَ لَكَ بَيۡتٞ مِّن زُخۡرُفٍ أَوۡ تَرۡقَىٰ فِي ٱلسَّمَآءِ وَلَن نُّؤۡمِنَ لِرُقِيِّكَ حَتَّىٰ تُنَزِّلَ عَلَيۡنَا كِتَٰبٗا نَّقۡرَؤُهُۥۗ قُلۡ سُبۡحَانَ رَبِّي هَلۡ كُنتُ إِلَّا بَشَرٗا رَّسُولٗا ۝ 93
या तुम्हारे लिए स्वर्ण-निर्मित एक घर हो जाए या तुम आकाश में चढ़ जाओ, और हम तुम्हारे चढ़ने को भी कदापि न मानेंगे जब तक कि तुम हमपर एक किताब न उतार लाओ जिसे हम पढ़ सकें।" कह दो, "महिमावान है मेरा रब! क्या मैं एक संदेश लानेवाले मनुष्य के सिवा कुछ और भी हूँ?"॥93॥
وَمَا مَنَعَ ٱلنَّاسَ أَن يُؤۡمِنُوٓاْ إِذۡ جَآءَهُمُ ٱلۡهُدَىٰٓ إِلَّآ أَن قَالُوٓاْ أَبَعَثَ ٱللَّهُ بَشَرٗا رَّسُولٗا ۝ 94
लोगों को जबकि उनके पास मार्गदर्शन आया तो उनको ईमान लाने से बस इसी चीज़ ने रोक‍ा कि वे कहने लगे, "क्या अल्लाह ने एक मनुष्य को रसूल बनाकर भेज दिया?"॥94॥
قُل لَّوۡ كَانَ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَلَٰٓئِكَةٞ يَمۡشُونَ مُطۡمَئِنِّينَ لَنَزَّلۡنَا عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَلَكٗا رَّسُولٗا ۝ 95
कह दो, "यदि धरती में फ़रिश्ते आबाद होकर चलते-फिरते होते तो हम उनके लिए अवश्य आकाश से किसी फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर भेजते।"॥95॥
قُلۡ كَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدَۢا بَيۡنِي وَبَيۡنَكُمۡۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِعِبَادِهِۦ خَبِيرَۢا بَصِيرٗا ۝ 96
कह दो, "मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह ही एक गवाह काफ़ी है। निश्चय ही वह अपने बन्दों की पूरी ख़बर रखनेवाला, देखनेवाला है।"॥96॥
وَمَن يَهۡدِ ٱللَّهُ فَهُوَ ٱلۡمُهۡتَدِۖ وَمَن يُضۡلِلۡ فَلَن تَجِدَ لَهُمۡ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِهِۦۖ وَنَحۡشُرُهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ عُمۡيٗا وَبُكۡمٗا وَصُمّٗاۖ مَّأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ كُلَّمَا خَبَتۡ زِدۡنَٰهُمۡ سَعِيرٗا ۝ 97
जिसे अल्लाह ही मार्ग दिखाए वही मार्ग पानेवाला है और वह जिसे पथभ्रष्ट होने दे तो ऐसे लोगों के लिए उससे इतर तुम सहायक न पाओगे। क़ियामत के दिन हम उन्हें औंधे मुँह इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि वे अन्‍धे, गूँगे और बहरे होंगे। उनका ठिकाना जहन्नम है। जब भी उसकी आग धीमी पड़ने लगेगी तो हम उसे उनके लिए और भड़का देंगे॥97॥
ذَٰلِكَ جَزَآؤُهُم بِأَنَّهُمۡ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِنَا وَقَالُوٓاْ أَءِذَا كُنَّا عِظَٰمٗا وَرُفَٰتًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ خَلۡقٗا جَدِيدًا ۝ 98
यही उनका बदला है, इसलिए कि उन्होंने हमारी आयतों का इनकार किया और कहा, "क्या जब हम केवल हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाएँगे तो क्या हमें नए सिरे से पैदा करके उठा खड़ा किया जाएगा?"॥98॥
۞أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ قَادِرٌ عَلَىٰٓ أَن يَخۡلُقَ مِثۡلَهُمۡ وَجَعَلَ لَهُمۡ أَجَلٗا لَّا رَيۡبَ فِيهِ فَأَبَى ٱلظَّٰلِمُونَ إِلَّا كُفُورٗا ۝ 99
क्या उन्हें यह न सूझा कि जिस अल्लाह ने आकाशों और धरती को पैदा किया है उसे उन जैसों को भी पैदा करने की सामर्थ्य प्राप्त है? उसने तो उनके लिए एक समय निर्धारित कर रखा है जिसमें कोई सन्देह नहीं है। फिर भी ज़ालिमों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही॥99॥
قُل لَّوۡ أَنتُمۡ تَمۡلِكُونَ خَزَآئِنَ رَحۡمَةِ رَبِّيٓ إِذٗا لَّأَمۡسَكۡتُمۡ خَشۡيَةَ ٱلۡإِنفَاقِۚ وَكَانَ ٱلۡإِنسَٰنُ قَتُورٗا ۝ 100
कहो, "यदि कहीं मेरे रब की दयालुता के ख़ज़ाने तुम्हारे अधिकार में होते तो ख़र्च हो जाने के भय से तुम रोके ही रखते। वास्तव में इनसान तो दिल का बड़ा ही तंग है॥100॥
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَىٰ تِسۡعَ ءَايَٰتِۭ بَيِّنَٰتٖۖ فَسۡـَٔلۡ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ إِذۡ جَآءَهُمۡ فَقَالَ لَهُۥ فِرۡعَوۡنُ إِنِّي لَأَظُنُّكَ يَٰمُوسَىٰ مَسۡحُورٗا ۝ 101
हमने मूसा को नौ खुली निशानियाँ प्रदान की थीं। अब इसराईल की संतान से पूछ लो कि जब वह उनके पास आया और फ़िरऔन ने उससे कहा, "ऐ मूसा! मैं तो तुम्हें बड़ा जादूगर समझता हूँ।"॥101॥
قَالَ لَقَدۡ عَلِمۡتَ مَآ أَنزَلَ هَٰٓؤُلَآءِ إِلَّا رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ بَصَآئِرَ وَإِنِّي لَأَظُنُّكَ يَٰفِرۡعَوۡنُ مَثۡبُورٗا ۝ 102
उसने कहा, "तू भली-भाँति जानता है कि आकाशों और धरती के रब के सिवा किसी और ने इन (निशानियों) को स्पष्ट प्रमाण बनाकर नहीं उतारा है। और ऐ फ़िरऔन! मैं तो समझता हूँ कि तू विनष्ट होने को है।"॥102॥
فَأَرَادَ أَن يَسۡتَفِزَّهُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ فَأَغۡرَقۡنَٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ جَمِيعٗا ۝ 103
अन्ततः उसने चाहा कि उनको उस भू-भाग से उखाड़ फेंके, किन्तु हमने उसे और जो उसके साथ थे सभी को डूबो दिया॥103॥
وَقُلۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِۦ لِبَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱسۡكُنُواْ ٱلۡأَرۡضَ فَإِذَا جَآءَ وَعۡدُ ٱلۡأٓخِرَةِ جِئۡنَا بِكُمۡ لَفِيفٗا ۝ 104
और हमने उसके बाद इसराईल की संतान से कहा, "तुम इस भू-भाग में बसो। फिर जब आख़िरत का वादा आ पूरा होगा तो हम तुम सबको इकट्ठा ला उपस्थित करेंगे।"॥104॥
وَبِٱلۡحَقِّ أَنزَلۡنَٰهُ وَبِٱلۡحَقِّ نَزَلَۗ وَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ إِلَّا مُبَشِّرٗا وَنَذِيرٗا ۝ 105
सत्य के साथ हमने उसे अवतरित किया और सत्य के साथ वह अवतरित भी हुआ। और तुम्हें तो हमने केवल शुभ-सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा है॥105॥
وَقُرۡءَانٗا فَرَقۡنَٰهُ لِتَقۡرَأَهُۥ عَلَى ٱلنَّاسِ عَلَىٰ مُكۡثٖ وَنَزَّلۡنَٰهُ تَنزِيلٗا ۝ 106
और क़ुरआन को हमने थोड़ा-थोड़ा करके इसलिए अवतरित किया ताकि तुम ठहर-ठहरकर उसे लोगों को सुनाओ, और हमने उसे उत्तम रीति से क्रमशः उतारा है॥106॥
قُلۡ ءَامِنُواْ بِهِۦٓ أَوۡ لَا تُؤۡمِنُوٓاْۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ مِن قَبۡلِهِۦٓ إِذَا يُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ يَخِرُّونَۤ لِلۡأَذۡقَانِۤ سُجَّدٗاۤ ۝ 107
कह दो, "तुम उसे मानो या न मानो, जिन लोगों को इससे पहले ज्ञान दिया गया है, उन्हें जब वह पढ़कर सुनाया जाता है, तो वे ठोड़ियों के बल सजदे में गिर पड़ते हैं॥107॥
وَيَقُولُونَ سُبۡحَٰنَ رَبِّنَآ إِن كَانَ وَعۡدُ رَبِّنَا لَمَفۡعُولٗا ۝ 108
और कहते हैं, "महान और उच्च है हमारा रब! हमारे रब का वादा तो पूरा होकर ही रहता है।"॥108॥
وَيَخِرُّونَ لِلۡأَذۡقَانِ يَبۡكُونَ وَيَزِيدُهُمۡ خُشُوعٗا۩ ۝ 109
और वे रोते हुए ठोड़ियों के बल गिर जाते हैं और वह (क़ुरआन) उनकी विनम्रता को और बढ़ा देता है॥109॥
قُلِ ٱدۡعُواْ ٱللَّهَ أَوِ ٱدۡعُواْ ٱلرَّحۡمَٰنَۖ أَيّٗا مَّا تَدۡعُواْ فَلَهُ ٱلۡأَسۡمَآءُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ وَلَا تَجۡهَرۡ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتۡ بِهَا وَٱبۡتَغِ بَيۡنَ ذَٰلِكَ سَبِيلٗا ۝ 110
कह दो, "तुम अल्लाह को पुकारो या रहमान को पुकारो या जिस नाम से भी पुकारो, उसके लिए सब अच्छे ही नाम हैं।" और अपनी नमाज़ न बहुत ऊँची आवाज़ से पढ़ो और न उसे बहुत चुपके से पढ़ो, बल्कि इन दोनों के बीच मध्य मार्ग अपनाओ॥110॥
وَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي لَمۡ يَتَّخِذۡ وَلَدٗا وَلَمۡ يَكُن لَّهُۥ شَرِيكٞ فِي ٱلۡمُلۡكِ وَلَمۡ يَكُن لَّهُۥ وَلِيّٞ مِّنَ ٱلذُّلِّۖ وَكَبِّرۡهُ تَكۡبِيرَۢا ۝ 111
और कहो, "प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने न तो अपना कोई बेटा बनाया और न बादशाही में उसका कोई सहभागी है और न ऐसा ही है कि वह बेबस हो जिसके कारण बचाव के लिए उसका कोई सहायक मित्र हो।" और बड़ाई बयान करो उसकी, पूर्ण बड़ाई॥111॥