سُورَةُ طه
20. ता० हा०
(मक्का में उतरी-आयतें 135)
परिचय
उतरने का समय
इस सूरा के उतरने का समय सूरा-19 मरयम के समय के निकट ही का है। संभव है कि यह हबशा की ओर हिजरत के समय में या उसके बाद उतरी हो। बहरहाल यह बात निश्चित है कि हज़रत उमर (रजि०) के इस्लाम स्वीकार करने से पहले यह उतर चुकी थी। [क्योकि अपनी बहन फ़तिमा-बिन्ते-ख़त्ताब (रज़ि०) के घर पर यही सूरा ता० हा० पढ़कर वे मुसलमान हुए थे] और यह हबशा की हिजरत से थोड़े समय के बाद ही की घटना है।
विषय और वार्ता
सूरा का आरंभ इस तरह होता है कि ऐ मुहम्मद ! यह क़ुरआन तुमपर कुछ इसलिए नहीं उतारा गया है कि यों ही बैठे-बिठाए तुमको एक मुसीबत में डाल दिया जाए। तुमसे यह माँग नहीं है कि हठधर्म लोगों के दिलों में ईमान पैदा करके दिखाओ। यह तो बस एक नसीहत और याददिहानी है, ताकि जिसके मन में अल्लाह का डर हो वह सुनकर सीधा हो जाए।
इस भूमिका के बाद यकायक हज़रत मूसा (अलैहि०) का किस्सा छेड़ दिया गया है। जिस वातावरण में यह किस्सा सुनाया गया है, उसके हालात से मिल-जुलकर यह मक्कावालों से कुछ और बातें करता नज़र आता है जो उसके शब्दों से नहीं, बल्कि उसके सार-संदर्भ से प्रकट हो रही हैं। इन बातों की व्याख्या से पहले यह बात अच्छी तरह समझ लीजिए कि अरब में भारी तादाद में यहूदियों की उपस्थिति और अरबवालों पर यहूदियों की ज्ञानात्मक तथा मानसिक श्रेष्ठता के कारण, साथ ही रूम और हब्शा और ईसाई राज्यों के प्रभाव से भी, अरबों में सामान्य रूप से हज़रत मूसा (अलैहि०) को अल्लाह का नबी माना जाता था। इस वास्तविकता को नज़र में रखने के बाद अब देखिए कि वे बातें क्या हैं जो इस किस्से के संदर्भ से मक्कावालों को जताई गई हैं:
- अल्लाह किसी को नुबूवत (किसी सामान्य घोषणा के साथ प्रदान नहीं किया करता। नुबूवत तो जिसको भी दी गई है, कुछ इसी तरह रहस्य में रखकर दी गई है, जैसे हज़रत मूसा (अलैहि०) को दी गई थी। अब तुम्हें क्यों इस बात पर अचंभा है कि मुहम्मद (सल्ल०) यकायक नबी बनकर तुम्हारे सामने आ गए।
- जो बात आज मुहम्मद (सल्ल०) प्रस्तुत कर रहे हैं (यानी तौहीद और आख़िरत) ठीक वही बात नुबूवत के पद पर आसीन करते समय अल्लाह ने मूसा (अलैहि०) को सिखाई थी।
- फिर जिस तरह आज मुहम्मद (सल्ल०) को बिना किसी सरो-सामान और सेना के अकेले क़ुरैश के मुक़ाबले में सत्य की दावत का ध्वजावाहक बनाकर खड़ा कर दिया गया है, ठीक उसी तरह मूसा (अलैहि०) भी यकायक इतने बड़े काम पर लगा दिए गए थे कि जाकर फ़िरऔन जैसे सरकश बादशाह को सरकशी से रुक जाने को कहें। कोई फ़ौज उनके साथ नहीं भेजी गई थी।
- जो आपत्ति, सन्देह और आरोप, धोखाधड़ी और अत्याचार के हथकंडे मक्कावाले आज मुहम्मद (सल्ल०) के मुक़ाबले में इस्तेमाल कर रहे हैं, उनसे बढ़-चढ़कर वही सब हथियार फ़िरऔन ने मूसा (अलैहि०) के मुक़ाबले में इस्तेमाल किए थे। फिर देख लो कि किस तरह वह अपनी तमाम चालों में विफल हुआ और अन्तत: कौन प्रभावी होकर रहा । इस सिलसिले में स्वयं मुसलमानों को भी एक निश्शब्द तसल्ली दी गई है कि अपनी बेसरो-सामानी के बावजूद तुम ही प्रभावी रहोगे। इसी के साथ मुसलमानों के सामने मिस्र के जादूगरों का नमूना भी पेश किया गया है कि जब सत्य उनपर खुल गया तो वे बे-धड़क उसपर ईमान ले आए, और फिर फ़िरऔन के प्रतिशोध का डर उन्हें बाल-बराबर भी ईमान के रास्ते से न हटा सका।
- अन्त में बनी-इसराईल के इतिहास से एक गवाही पेश करते हुए यह भी बताया गया है कि देवताओं और उपास्यों के गढ़े जाने का आरंभ किस हास्यास्पद ढंग से हुआ करता है और यह कि अल्लाह के नबी इस घिनौनी चीज़ का नामो-निशान तक बाक़ी रखने के कभी पक्षधर नहीं रहे हैं। अत: आज इस शिर्क और बुतपरस्ती का जो विरोध मुहम्मद (सल्ल०) कर रहे हैं, वह नुबूवत के इतिहास में कोई पहली घटना नहीं है।
इस तरह मूसा (अलैहि०) का क़िस्सा सुनाकर उन तमाम बातों पर रौशनी डाली गई है जो उस समय उनकी और नबी (सल्ल.) के आपसी संघर्ष से ताल्लुक रखती थीं। इसके बाद एक संक्षिप्त उपदेश दिया गया है कि बहरहाल यह क़ुरआन एक उपदेश और याददिहानी है, इसपर कान धरोगे तो अपना ही भला करोगे, न मानोगे तो स्वयं बुरा अंजाम देखोगे।
फिर आदम (अलैहि०) का क़िस्सा बयान करके यह बात समझाई गई है कि जिस नीति पर तुम लोग जा रहे हो, यह वास्तव में शैतान की पैरवी है। ग़लती और उसपर हठ अपने पाँवों पर आप कुल्हाड़ी मारना है, जिसका नुक़सान आदमी को ख़ुद ही भुगतना पड़ेगा, किसी दूसरे का कुछ न बिगड़ेगा।
अन्त में नबी (सल्ल०) और मुसलमानों को समझया गया है कि अल्लाह किसी क़ौम को उसके कुफ़्र और इंकार पर तुरन्त नहीं पकड़ता, बल्कि संभलने के लिए काफ़ी मोहलत देता है। इसलिए घबराओ नहीं, सब के साथ इन लोगों की ज़्यादतियों को सहन करते चले जाओ और उपदेश का हक़ अदा करते रहो।
इसी सिलसिले में नमाज़ की ताक़ीद की गई है ताकि ईमानवालों में धैर्य, सहनशीलता, अल्लाह पर भरोसा, उसके फ़ैसले पर इत्मीनान और अपना जाइज़ा लेने के लिए वे गुण पैदा हों जो कि सत्य की ओर आह्वान का काम करने के लिए अपेक्षित हैं।
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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।
مَآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡقُرۡءَانَ لِتَشۡقَىٰٓ 2
हमने तुमपर यह क़ुरआन इस लिए नहीं उतारा कि तुम मशक़्क़त में पड़ जाओ ॥2॥
إِلَّا تَذۡكِرَةٗ لِّمَن يَخۡشَىٰ 3
यह तो बस एक याददिहानी है उसके लिए जो डरे, ॥3॥
تَنزِيلٗا مِّمَّنۡ خَلَقَ ٱلۡأَرۡضَ وَٱلسَّمَٰوَٰتِ ٱلۡعُلَى 4
भली-भाँति अवतरित हुआ है उस सत्ता की ओर से जिसने पैदा किया है धरती और उच्च आकाशों को। ॥4॥
ٱلرَّحۡمَٰنُ عَلَى ٱلۡعَرۡشِ ٱسۡتَوَىٰ 5
वह रहमान (करुणामय प्रभु) जो राजासन पर विराजमान हुआ॥5॥
لَهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَمَا تَحۡتَ ٱلثَّرَىٰ 6
उसी का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है और जो कुछ इन दोनों के मध्य है और जो कुछ आर्द्र मिट्टी के नीचे है॥6॥
وَإِن تَجۡهَرۡ بِٱلۡقَوۡلِ فَإِنَّهُۥ يَعۡلَمُ ٱلسِّرَّ وَأَخۡفَى 7
तुम चाहे बात पुकारकर कहो (या चुपके से), वह तो छिपी हुई और अत्यन्त गुप्त बात को भी जानता है॥7॥
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ لَهُ ٱلۡأَسۡمَآءُ ٱلۡحُسۡنَىٰ 8
अल्लाह, कि उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभू नहीं। उसके नाम बहुत ही अच्छे हैं।॥8॥
وَهَلۡ أَتَىٰكَ حَدِيثُ مُوسَىٰٓ 9
क्या तुम्हें मूसा की भी ख़बर पहुँची? ॥9॥
إِذۡ رَءَا نَارٗا فَقَالَ لِأَهۡلِهِ ٱمۡكُثُوٓاْ إِنِّيٓ ءَانَسۡتُ نَارٗا لَّعَلِّيٓ ءَاتِيكُم مِّنۡهَا بِقَبَسٍ أَوۡ أَجِدُ عَلَى ٱلنَّارِ هُدٗى 10
जबकि उसने एक आग देखी तो उसने अपने घरवालों से कहा, "ठहरो! मैंने एक आग देखी है, शायद कि तुम्हारे लिए उसमें से कोई अंगारा ले आऊँ या उस आग पर मैं मार्ग का पता पा लूँ।"॥10॥
فَلَمَّآ أَتَىٰهَا نُودِيَ يَٰمُوسَىٰٓ 11
फिर जब वह वहाँ पहुँचा तो पुकारा गया, "ऐ मूसा!॥11॥
إِنِّيٓ أَنَا۠ رَبُّكَ فَٱخۡلَعۡ نَعۡلَيۡكَ إِنَّكَ بِٱلۡوَادِ ٱلۡمُقَدَّسِ طُوٗى 12
मैं ही तेरा रब हूँ। अपने जूते उतार दे। तू पवित्र घाटी 'तुवा' में है॥12॥
وَأَنَا ٱخۡتَرۡتُكَ فَٱسۡتَمِعۡ لِمَا يُوحَىٰٓ 13
मैंने तुझे चुन लिया है। अतः सुन, जो कुछ प्रकाशना की जाती है॥13॥
إِنَّنِيٓ أَنَا ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّآ أَنَا۠ فَٱعۡبُدۡنِي وَأَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ لِذِكۡرِيٓ 14
निस्संदेह मैं ही अल्लाह हूँ। मेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः तू मेरी बन्दगी कर और मेरी याद के लिए नमाज़ क़ायम कर॥14॥
إِنَّ ٱلسَّاعَةَ ءَاتِيَةٌ أَكَادُ أُخۡفِيهَا لِتُجۡزَىٰ كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا تَسۡعَىٰ 15
निश्चय ही वह (क़ियामत की) घड़ी आनेवाली है — शीघ्र ही उसे लाऊँगा, उसे छिपाए रखता हूँ — ताकि प्रत्येक व्यक्ति, जो प्रयास वह करता है, उसका बदला पाए॥15॥
فَلَا يَصُدَّنَّكَ عَنۡهَا مَن لَّا يُؤۡمِنُ بِهَا وَٱتَّبَعَ هَوَىٰهُ فَتَرۡدَىٰ 16
अतः जो कोई उसपर ईमान नहीं लाता और अपनी वासना के पीछे पड़ा है, वह तुझे नमाज़ से रोक न दे, वरना तू विनष्ट हो जाएगा॥16॥
وَمَا تِلۡكَ بِيَمِينِكَ يَٰمُوسَىٰ 17
और ऐ मूसा! यह तेरे दाहिने हाथ में क्या है?" ॥17॥
قَالَ هِيَ عَصَايَ أَتَوَكَّؤُاْ عَلَيۡهَا وَأَهُشُّ بِهَا عَلَىٰ غَنَمِي وَلِيَ فِيهَا مَـَٔارِبُ أُخۡرَىٰ 18
उसने कहा, "यह मेरी लाठी है। मैं इसपर टेक लगाता हूँ और इससे अपनी बकरियों के लिए पत्ते झाड़ता हूँ और इससे मेरी दूसरी ज़रूरतें भी पूरी होती हैं।"॥18॥
قَالَ أَلۡقِهَا يَٰمُوسَىٰ 19
कहा, "डाल दे उसे, ऐ मूसा!" ॥19॥
فَأَلۡقَىٰهَا فَإِذَا هِيَ حَيَّةٞ تَسۡعَىٰ 20
अतः उसने उसे डाल दिया। सहसा क्या देखते हैं कि वह एक साँप है जो दौड़ रहा है॥20॥
قَالَ خُذۡهَا وَلَا تَخَفۡۖ سَنُعِيدُهَا سِيرَتَهَا ٱلۡأُولَىٰ 21
कहा, "इसे पकड़ ले और डर मत। हम इसे इसकी पहली हालत पर लौटा देंगे॥21॥
وَٱضۡمُمۡ يَدَكَ إِلَىٰ جَنَاحِكَ تَخۡرُجۡ بَيۡضَآءَ مِنۡ غَيۡرِ سُوٓءٍ ءَايَةً أُخۡرَىٰ 22
और अपने हाथ अपने बाज़ू की ओर समेट ले। वह बिना किसी ऐब के रौशन दूसरी निशानी के रूप में निकलेगा,॥22॥
لِنُرِيَكَ مِنۡ ءَايَٰتِنَا ٱلۡكُبۡرَى 23
इसलिए कि हम तुझे अपनी बड़ी निशानियाँ दिखाएँ॥23॥
ٱذۡهَبۡ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ إِنَّهُۥ طَغَىٰ 24
तू फ़िरऔन के पास जा। वह बहुत सरकश हो गया है।"॥24॥
قَالَ رَبِّ ٱشۡرَحۡ لِي صَدۡرِي 25
उसने निवेदन किया, "मेरे रब! मेरा सीना मेरे लिए खोल दे॥25॥
وَيَسِّرۡ لِيٓ أَمۡرِي 26
और मेरे काम को मेरे लिए आसान कर दे॥26॥
وَٱحۡلُلۡ عُقۡدَةٗ مِّن لِّسَانِي 27
और मेरी ज़बान की गिरह खोल दे,।॥27॥
ताकि वे मेरी बात समझ सके॥28॥
وَٱجۡعَل لِّي وَزِيرٗا مِّنۡ أَهۡلِي 29
और मेरे लिए अपने घरवालों में से एक सहायक नियुक्त कर दे,॥29॥
हारून को, जो मेरा भाई है॥30॥
ٱشۡدُدۡ بِهِۦٓ أَزۡرِي 31
उसके द्वारा मेरी कमर मज़बूत कर॥31॥
وَأَشۡرِكۡهُ فِيٓ أَمۡرِي 32
और उसे मेरे काम में शरीक कर दे,॥32॥
كَيۡ نُسَبِّحَكَ كَثِيرٗا 33
कि हम अधिक से अधिक तेरी तसबीह करें॥33॥
وَنَذۡكُرَكَ كَثِيرًا 34
और तुझे ख़ूब याद करें॥34॥
إِنَّكَ كُنتَ بِنَا بَصِيرٗا 35
निश्चय ही तू हमें ख़ूब देख रहा है।"॥35॥
قَالَ قَدۡ أُوتِيتَ سُؤۡلَكَ يَٰمُوسَىٰ 36
कहा, "दिया गया तुझे जो तूने माँगा, ऐ मूसा!॥36॥
وَلَقَدۡ مَنَنَّا عَلَيۡكَ مَرَّةً أُخۡرَىٰٓ 37
हम तो तुझपर एक बार और भी उपकार कर चुके हैं॥37॥
إِذۡ أَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰٓ أُمِّكَ مَا يُوحَىٰٓ 38
जब हमने तेरी माँ के दिल में यह बात डाली थी, जो अब प्रकाशना की जा रही है,॥38॥
أَنِ ٱقۡذِفِيهِ فِي ٱلتَّابُوتِ فَٱقۡذِفِيهِ فِي ٱلۡيَمِّ فَلۡيُلۡقِهِ ٱلۡيَمُّ بِٱلسَّاحِلِ يَأۡخُذۡهُ عَدُوّٞ لِّي وَعَدُوّٞ لَّهُۥۚ وَأَلۡقَيۡتُ عَلَيۡكَ مَحَبَّةٗ مِّنِّي وَلِتُصۡنَعَ عَلَىٰ عَيۡنِيٓ 39
कि ‘उसको संदूक़ में रख दे; फिर उसे दरिया में डाल दे; फिर दरिया उसे तट पर डाल दे कि उसे मेरा शत्रु और उसका शत्रु उठा ले।
मैंने अपनी ओर से तुझपर अपना प्रेम डाला। (ताकि तू सुरक्षित रहे) और ताकि मेरी आँख के सामने तेरा पालन-पोषण हो॥39॥
إِذۡ تَمۡشِيٓ أُخۡتُكَ فَتَقُولُ هَلۡ أَدُلُّكُمۡ عَلَىٰ مَن يَكۡفُلُهُۥۖ فَرَجَعۡنَٰكَ إِلَىٰٓ أُمِّكَ كَيۡ تَقَرَّ عَيۡنُهَا وَلَا تَحۡزَنَۚ وَقَتَلۡتَ نَفۡسٗا فَنَجَّيۡنَٰكَ مِنَ ٱلۡغَمِّ وَفَتَنَّٰكَ فُتُونٗاۚ فَلَبِثۡتَ سِنِينَ فِيٓ أَهۡلِ مَدۡيَنَ ثُمَّ جِئۡتَ عَلَىٰ قَدَرٖ يَٰمُوسَىٰ 40
याद कर जबकि तेरी बहन जाती और कहती थी, क्या मैं तुम्हें उसका पता बता दूँ जो इसका पालन-पोषण अपने ज़िम्मे ले ले?’ इस प्रकार हमने फिर तुझे तेरी माँ के पास पहुँचा दिया, ताकि उसकी आँख ठंडी हो और वह दुखी न हो। और याद कर, तूने एक व्यक्ति की हत्याा कर दी थी। फिर हमने तुझे उस ग़म से छुटकारा दिया। और हमने तुझे भली-भाँति परखा। फिर तू कई वर्ष मदयन के लोगों में ठहरा रहा। फिर ऐ मूसा! तू ख़ास समय पर आ गया है॥40॥
وَٱصۡطَنَعۡتُكَ لِنَفۡسِي 41
हमने तुझे अपने लिए तैयार किया है॥41॥
ٱذۡهَبۡ أَنتَ وَأَخُوكَ بِـَٔايَٰتِي وَلَا تَنِيَا فِي ذِكۡرِي 42
जा, तू और तेरा भाई मेरी निशानियों के साथ और मेरी याद में ढीले मत पड़ना॥42॥
ٱذۡهَبَآ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ إِنَّهُۥ طَغَىٰ 43
जाओ दोनों फ़िरऔन के पास। वह सरकश हो गया है॥43॥
فَقُولَا لَهُۥ قَوۡلٗا لَّيِّنٗا لَّعَلَّهُۥ يَتَذَكَّرُ أَوۡ يَخۡشَىٰ 44
उससे नर्म बात करना, कदाचित वह ध्यान दे या डरे।"॥44॥
قَالَا رَبَّنَآ إِنَّنَا نَخَافُ أَن يَفۡرُطَ عَلَيۡنَآ أَوۡ أَن يَطۡغَىٰ 45
दोनों ने कहा, "ऐ हमारे रब! हमें इसका भय है कि वह हमपर ज़्यादती करे या सरकशी करने लग जाए।"॥45॥
قَالَ لَا تَخَافَآۖ إِنَّنِي مَعَكُمَآ أَسۡمَعُ وَأَرَىٰ 46
कहा, "डरो नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ, सुनता और देखता हूँ॥46॥
فَأۡتِيَاهُ فَقُولَآ إِنَّا رَسُولَا رَبِّكَ فَأَرۡسِلۡ مَعَنَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ وَلَا تُعَذِّبۡهُمۡۖ قَدۡ جِئۡنَٰكَ بِـَٔايَةٖ مِّن رَّبِّكَۖ وَٱلسَّلَٰمُ عَلَىٰ مَنِ ٱتَّبَعَ ٱلۡهُدَىٰٓ 47
अतः जाओ उसके पास और कहो, ‘हम तेरे रब के रसूल हैं। इसराईल की संतान को हमारे साथ भेज दे। और उन्हें यातना न दे। हम तेरे पास तेरे रब की निशानी ले कर आए हैं। और सलामती है उसके लिए जो संमार्ग का अनुसरण करे!॥47॥
إِنَّا قَدۡ أُوحِيَ إِلَيۡنَآ أَنَّ ٱلۡعَذَابَ عَلَىٰ مَن كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ 48
निस्संदेह हमारी ओर प्रकाशना हुई है कि यातना उसके लिए है जो झुठलाए और मुँह फेरे।"॥48॥
قَالَ فَمَن رَّبُّكُمَا يَٰمُوسَىٰ 49
उसने कहा, "अच्छा, तुम दोनों का रब कौन है, ऐ मूसा?"॥49॥
قَالَ رَبُّنَا ٱلَّذِيٓ أَعۡطَىٰ كُلَّ شَيۡءٍ خَلۡقَهُۥ ثُمَّ هَدَىٰ 50
कहा, "हमारा रब वह है जिसने हर चीज़ को उसकी आकृति दी; फिर तदनुकूल निर्देशन किया।"॥50॥
قَالَ فَمَا بَالُ ٱلۡقُرُونِ ٱلۡأُولَىٰ 51
उसने कहा, "अच्छा तो उन नस्लों का क्या हाल है जो पहले थीं?"॥51॥
قَالَ عِلۡمُهَا عِندَ رَبِّي فِي كِتَٰبٖۖ لَّا يَضِلُّ رَبِّي وَلَا يَنسَى 52
कहा, "उसका ज्ञान मेरे रब के पास एक किताब में सुरक्षित है। मेरा रब न चूकता है और न भूलता है।"॥52॥
ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ مَهۡدٗا وَسَلَكَ لَكُمۡ فِيهَا سُبُلٗا وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَخۡرَجۡنَا بِهِۦٓ أَزۡوَٰجٗا مِّن نَّبَاتٖ شَتَّىٰ 53
"वही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को पालना (बिछौना) बनाया और उसमें तुम्हारे लिए रास्ते निकाले और आकाश से पानी उतारा। फिर हमने उसके द्वारा विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे निकाले॥53॥
كُلُواْ وَٱرۡعَوۡاْ أَنۡعَٰمَكُمۡۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّأُوْلِي ٱلنُّهَىٰ 54
खाओ और अपने चौपायों को भी चराओ! निस्संदेह इसमें बुद्धिमानों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं॥54॥
۞مِنۡهَا خَلَقۡنَٰكُمۡ وَفِيهَا نُعِيدُكُمۡ وَمِنۡهَا نُخۡرِجُكُمۡ تَارَةً أُخۡرَىٰ 55
उसी से हमने तुम्हें पैदा किया और उसी में हम तुम्हें लौटाते हैं और उसी से तुम्हें दूसरी बार निकालेंगे।"॥55॥
وَلَقَدۡ أَرَيۡنَٰهُ ءَايَٰتِنَا كُلَّهَا فَكَذَّبَ وَأَبَىٰ 56
और हमने फ़िरऔन को अपनी सब निशानियाँ दिखाईं, किन्तु उसने झुठलाया और इनकार किया।—॥56॥
قَالَ أَجِئۡتَنَا لِتُخۡرِجَنَا مِنۡ أَرۡضِنَا بِسِحۡرِكَ يَٰمُوسَىٰ 57
उसने कहा, "ऐ मूसा! क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि अपने जादू से हमको हमारे अपने भूभाग से निकाल दे?॥57॥
فَلَنَأۡتِيَنَّكَ بِسِحۡرٖ مِّثۡلِهِۦ فَٱجۡعَلۡ بَيۡنَنَا وَبَيۡنَكَ مَوۡعِدٗا لَّا نُخۡلِفُهُۥ نَحۡنُ وَلَآ أَنتَ مَكَانٗا سُوٗى 58
अच्छा, हम भी तेरे पास ऐसा ही जादू लाते हैं। अब हमारे और अपने बीच एक निश्चित स्थान ठहरा ले, कोई बीच की जगह, न हम इसके विरुद्ध जाएँ और न तू।"॥58॥
قَالَ مَوۡعِدُكُمۡ يَوۡمُ ٱلزِّينَةِ وَأَن يُحۡشَرَ ٱلنَّاسُ ضُحٗى 59
कहा, "उत्सव का दिन तुम्हारे वादे का है, और यह कि लोग दिन चढ़े इकट्ठे हो जाएँ।"॥59॥
فَتَوَلَّىٰ فِرۡعَوۡنُ فَجَمَعَ كَيۡدَهُۥ ثُمَّ أَتَىٰ 60
तब फ़िरऔन ने पलटकर अपने सारे हथकण्डे जुटाए। और (मुक़ाबले में) आ गया॥60॥
قَالَ لَهُم مُّوسَىٰ وَيۡلَكُمۡ لَا تَفۡتَرُواْ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبٗا فَيُسۡحِتَكُم بِعَذَابٖۖ وَقَدۡ خَابَ مَنِ ٱفۡتَرَىٰ 61
मूसा ने उन लोगों से कहा, "तबाही है तुम्हारी; झूठ गढ़कर अल्लाह पर न थोपो कि वह तुम्हें एक यातना से विनष्ट कर दे, और झूठ जिस किसी ने भी गढ़कर थोपा वह असफल रहा।"॥61॥
فَتَنَٰزَعُوٓاْ أَمۡرَهُم بَيۡنَهُمۡ وَأَسَرُّواْ ٱلنَّجۡوَىٰ 62
इसपर अपने मामले में उन्होंने परस्पर विचार विनिमय किया और चुपके-चुपके कानाफूसी की॥62॥
قَالُوٓاْ إِنۡ هَٰذَٰنِ لَسَٰحِرَٰنِ يُرِيدَانِ أَن يُخۡرِجَاكُم مِّنۡ أَرۡضِكُم بِسِحۡرِهِمَا وَيَذۡهَبَا بِطَرِيقَتِكُمُ ٱلۡمُثۡلَىٰ 63
कहने लगे, "ये दोनों जादूगर हैं, चाहते हैं कि अपने जादू से तुम्हें तुम्हारे भू-भाग से निकाल बाहर करें, और तुम्हारी उत्तम और उच्च प्रणाली को तहस-नहस करके रख दें।"॥63॥
فَأَجۡمِعُواْ كَيۡدَكُمۡ ثُمَّ ٱئۡتُواْ صَفّٗاۚ وَقَدۡ أَفۡلَحَ ٱلۡيَوۡمَ مَنِ ٱسۡتَعۡلَىٰ 64
अतः तुम सब मिलकर अपना उपाय जुटा लो, फिर पंक्तिबद्ध होकर आओ। आज जो प्रभावी रहा, वही सफल है।"॥64॥
قَالُواْ يَٰمُوسَىٰٓ إِمَّآ أَن تُلۡقِيَ وَإِمَّآ أَن نَّكُونَ أَوَّلَ مَنۡ أَلۡقَىٰ 65
वे बोले, "ऐ मूसा! या तो तुम फेंको या फिर हम पहले फेंकते हैं।"॥65॥
قَالَ بَلۡ أَلۡقُواْۖ فَإِذَا حِبَالُهُمۡ وَعِصِيُّهُمۡ يُخَيَّلُ إِلَيۡهِ مِن سِحۡرِهِمۡ أَنَّهَا تَسۡعَىٰ 66
कहा, "नहीं, बल्कि तुम्हीं फेंको।" फिर अचानक क्या देखते हैं कि उनकी रस्सियाँ और लाठियाँ उनके जादू से उनके ख़याल में दौड़ती हुई प्रतीत हुईं॥66॥
فَأَوۡجَسَ فِي نَفۡسِهِۦ خِيفَةٗ مُّوسَىٰ 67
और मूसा अपने जी में डरा॥67॥
قُلۡنَا لَا تَخَفۡ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡأَعۡلَىٰ 68
हमने कहा, "मत डर! निस्संदेह तू ही प्रभावी रहेगा।॥68॥
وَأَلۡقِ مَا فِي يَمِينِكَ تَلۡقَفۡ مَا صَنَعُوٓاْۖ إِنَّمَا صَنَعُواْ كَيۡدُ سَٰحِرٖۖ وَلَا يُفۡلِحُ ٱلسَّاحِرُ حَيۡثُ أَتَىٰ 69
और डाल दे जो तेरे दाहिने हाथ में है। जो कुछ उन्होंने रचा है वह उसे निगल जाएगा। जो कुछ उन्होंने रचा है, वह तो बस जादूगर का स्वांग है और जादूगर सफल नहीं होता, चाहे वह जैसे भी आए।"॥69॥
فَأُلۡقِيَ ٱلسَّحَرَةُ سُجَّدٗا قَالُوٓاْ ءَامَنَّا بِرَبِّ هَٰرُونَ وَمُوسَىٰ 70
अन्ततः जादूगर सजदे में गिर पड़े। बोले, "हम हारून और मूसा के रब पर ईमान ले आए।"॥70॥
قَالَ ءَامَنتُمۡ لَهُۥ قَبۡلَ أَنۡ ءَاذَنَ لَكُمۡۖ إِنَّهُۥ لَكَبِيرُكُمُ ٱلَّذِي عَلَّمَكُمُ ٱلسِّحۡرَۖ فَلَأُقَطِّعَنَّ أَيۡدِيَكُمۡ وَأَرۡجُلَكُم مِّنۡ خِلَٰفٖ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمۡ فِي جُذُوعِ ٱلنَّخۡلِ وَلَتَعۡلَمُنَّ أَيُّنَآ أَشَدُّ عَذَابٗا وَأَبۡقَىٰ 71
उसने कहा, "तुमने मान लिया उसको, इससे पहले कि मैं तुम्हें इसकी अनुज्ञा देता? निश्चय ही यह तुम सबका प्रमुख है जिसने तुम्हें जादू सिखाया है। अच्छा, अब मैं तुम्हारे हाथ और पाँव विपरीत दिशाओं से कटवा दूँगा और खजूर के तनों पर तुम्हें सूली दे दूँगा। तब तुम्हें अवश्य ही मालूम हो जाएगा कि हममें से किसकी यातना अधिक कठोर और स्थायी है!"॥71॥
قَالُواْ لَن نُّؤۡثِرَكَ عَلَىٰ مَا جَآءَنَا مِنَ ٱلۡبَيِّنَٰتِ وَٱلَّذِي فَطَرَنَاۖ فَٱقۡضِ مَآ أَنتَ قَاضٍۖ إِنَّمَا تَقۡضِي هَٰذِهِ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَآ 72
उन्होंने कहा, "जो स्पष्ट निशानियाँ हमारे सामने आ चुकी हैं उनके मुक़ाबले में सौगन्ध है उस सत्ता की जिसने हमें पैदा किया है, हम कदापि तुझे प्राथमिकता नहीं दे सकते। तो जो कुछ तू फ़ैसला करनेवाला है, कर ले। तू बस इसी सांसारिक जीवन का फ़ैसला कर सकता है॥72॥
إِنَّآ ءَامَنَّا بِرَبِّنَا لِيَغۡفِرَ لَنَا خَطَٰيَٰنَا وَمَآ أَكۡرَهۡتَنَا عَلَيۡهِ مِنَ ٱلسِّحۡرِۗ وَٱللَّهُ خَيۡرٞ وَأَبۡقَىٰٓ 73
हम तो अपने रब पर ईमान ले आए, ताकि वह हमारी ख़ताओं को माफ़ कर दे और इस जादू को भी जिसपर तूने हमें बाध्य किया। अल्लाह की उत्तम और शेष रहनेवाला है।" —॥73॥
إِنَّهُۥ مَن يَأۡتِ رَبَّهُۥ مُجۡرِمٗا فَإِنَّ لَهُۥ جَهَنَّمَ لَا يَمُوتُ فِيهَا وَلَا يَحۡيَىٰ 74
सत्य यह है कि जो कोई अपने रब के पास अपराधी बनकर आया उसके लिए जहन्नम है जिसमें न वह मरेगा और न जिएगा॥74॥
وَمَن يَأۡتِهِۦ مُؤۡمِنٗا قَدۡ عَمِلَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فَأُوْلَٰٓئِكَ لَهُمُ ٱلدَّرَجَٰتُ ٱلۡعُلَىٰ 75
और जो कोई उसके पास मोमिन होकर आया, जिसने अच्छे कर्म किए होंगे, तो ऐसे लोगों के लिए तो ऊँचे दर्जे हैं॥75॥
جَنَّٰتُ عَدۡنٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ وَذَٰلِكَ جَزَآءُ مَن تَزَكَّىٰ 76
अदन के बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। यह बदला है उसका जिसने स्वयं को विकसित किया —॥76॥
وَلَقَدۡ أَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنۡ أَسۡرِ بِعِبَادِي فَٱضۡرِبۡ لَهُمۡ طَرِيقٗا فِي ٱلۡبَحۡرِ يَبَسٗا لَّا تَخَٰفُ دَرَكٗا وَلَا تَخۡشَىٰ 77
और हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, "रातों रात मेरे बन्दों को लेकर निकल पड़ और उनके लिए दरिया में सूखा मार्ग निकाल ले। न तो तुझे पीछा किए जाने और न पकड़े जाने का भय हो और न किसी अन्य चीज़ से तुझे डर लगे।"॥77॥
فَأَتۡبَعَهُمۡ فِرۡعَوۡنُ بِجُنُودِهِۦ فَغَشِيَهُم مِّنَ ٱلۡيَمِّ مَا غَشِيَهُمۡ 78
फ़िरऔन ने अपनी सेना के साथ उनका पीछा किया। अन्ततः पानी उनपर छा गया, जैसाकि उसे उनपर छा जाना था॥78॥
وَأَضَلَّ فِرۡعَوۡنُ قَوۡمَهُۥ وَمَا هَدَىٰ 79
फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को पथभ्रष्ट किया और मार्ग न दिखाया॥79॥
يَٰبَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ قَدۡ أَنجَيۡنَٰكُم مِّنۡ عَدُوِّكُمۡ وَوَٰعَدۡنَٰكُمۡ جَانِبَ ٱلطُّورِ ٱلۡأَيۡمَنَ وَنَزَّلۡنَا عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَنَّ وَٱلسَّلۡوَىٰ 80
ऐ इसराईल की संतान! हमने तुम्हें तुम्हारे शत्रु से छुटकारा दिया और तुमसे तूर के दाहिने छोर का वादा किया और तुमपर ‘मन्न’ और ‘सलवा’ उतारा,॥80॥
كُلُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا رَزَقۡنَٰكُمۡ وَلَا تَطۡغَوۡاْ فِيهِ فَيَحِلَّ عَلَيۡكُمۡ غَضَبِيۖ وَمَن يَحۡلِلۡ عَلَيۡهِ غَضَبِي فَقَدۡ هَوَىٰ 81
"खाओ, जो कुछ पाक अच्छी-चीज़े हमने तुम्हें प्रदान की हैं, किन्तु इसमें हद से आगे न बढ़ो कि तुम पर मेरा प्रकोप टूट पड़े और जिस किसी पर मेरा प्रकोप टूटा, वह तो गिरकर ही रहा॥81॥
وَإِنِّي لَغَفَّارٞ لِّمَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا ثُمَّ ٱهۡتَدَىٰ 82
और जो तौबा कर ले और ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, फिर सीधे मार्ग पर चलता रहे, उसके लिए निश्चय ही मैं अत्यन्त क्षमाशील हूँ।" —॥82॥
۞وَمَآ أَعۡجَلَكَ عَن قَوۡمِكَ يَٰمُوسَىٰ 83
"और अपनी क़ौम को छोड़कर तुझे शीघ्र आने पर किस चीज़ ने उभारा, ऐ मूसा?"॥83॥
قَالَ هُمۡ أُوْلَآءِ عَلَىٰٓ أَثَرِي وَعَجِلۡتُ إِلَيۡكَ رَبِّ لِتَرۡضَىٰ 84
उसने कहा, "वे मेरे पीछे ही हैं और मैं जल्दी बढ़कर आया तेरी ओर, ऐ रब! ताकि तू राज़ी हो जाए।"॥84॥
قَالَ فَإِنَّا قَدۡ فَتَنَّا قَوۡمَكَ مِنۢ بَعۡدِكَ وَأَضَلَّهُمُ ٱلسَّامِرِيُّ 85
कहा, "अच्छा, तो हमने तेरे पीछे तेरी क़ौम के लोगों को आज़माइश में डाल दिया है। और सामरी ने उन्हें पथभ्रष्ट कर डाला।"॥85॥
فَرَجَعَ مُوسَىٰٓ إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ غَضۡبَٰنَ أَسِفٗاۚ قَالَ يَٰقَوۡمِ أَلَمۡ يَعِدۡكُمۡ رَبُّكُمۡ وَعۡدًا حَسَنًاۚ أَفَطَالَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡعَهۡدُ أَمۡ أَرَدتُّمۡ أَن يَحِلَّ عَلَيۡكُمۡ غَضَبٞ مِّن رَّبِّكُمۡ فَأَخۡلَفۡتُم مَّوۡعِدِي 86
तब मूसा अत्यन्त क्रोध और खेद में डूबा हुआ अपनी क़ौम के लोगों की ओर पलटा। कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! क्या तुमसे तुम्हारे रब ने अच्छा वादा नहीं किया था? क्या तुमपर लम्बी मुद्दत गुज़र गई या तुमने यही चाहा कि तुमपर तुम्हारे रब का प्रकोप ही टूटे कि तुमने मुझसे वादाख़िलाफ़ी की?"॥86॥
قَالُواْ مَآ أَخۡلَفۡنَا مَوۡعِدَكَ بِمَلۡكِنَا وَلَٰكِنَّا حُمِّلۡنَآ أَوۡزَارٗا مِّن زِينَةِ ٱلۡقَوۡمِ فَقَذَفۡنَٰهَا فَكَذَٰلِكَ أَلۡقَى ٱلسَّامِرِيُّ 87
उन्होंने कहा, "हमने आपसे किए हुए वादे के विरुद्ध अपने अधिकार से कुछ नहीं किया, बल्कि लोगों के ज़ेवरों के बोझ हम उठाए हुए थे, फिर हमने उनको (आग में) फेंक दिया, सामरी ने इसी तरह प्रेरित किया था।"॥87॥
فَأَخۡرَجَ لَهُمۡ عِجۡلٗا جَسَدٗا لَّهُۥ خُوَارٞ فَقَالُواْ هَٰذَآ إِلَٰهُكُمۡ وَإِلَٰهُ مُوسَىٰ فَنَسِيَ 88
और उसने उनके लिए एक बछड़ा ढालकर निकाला, एक धड़ जिसकी आवाज़ बैल की थी। फिर उन्होंने कहा, "यही तुम्हारा इष्ट-पूज्य है और मूसा का भी इष्ट -पूज्य, किन्तु वह भूल गया है।"॥88॥
أَفَلَا يَرَوۡنَ أَلَّا يَرۡجِعُ إِلَيۡهِمۡ قَوۡلٗا وَلَا يَمۡلِكُ لَهُمۡ ضَرّٗا وَلَا نَفۡعٗا 89
क्या वे देखते न थे कि न वह किसी बात का उन्हें उत्तर देता है और न उसे उनकी हानि का कुछ अधिकार प्राप्त है और न लाभ का?॥89॥
وَلَقَدۡ قَالَ لَهُمۡ هَٰرُونُ مِن قَبۡلُ يَٰقَوۡمِ إِنَّمَا فُتِنتُم بِهِۦۖ وَإِنَّ رَبَّكُمُ ٱلرَّحۡمَٰنُ فَٱتَّبِعُونِي وَأَطِيعُوٓاْ أَمۡرِي 90
और हारून इससे पहले उनसे कह भी चुका था कि "मेरी क़ौम के लोगो! तुम इसके कारण बस फ़ितने में पड़ गए हो। तुम्हारा रब तो रहमान (करुणामय) है। अतः तुम मेरा अनुसरण करो और मेरी बात मानो।"॥90॥
قَالُواْ لَن نَّبۡرَحَ عَلَيۡهِ عَٰكِفِينَ حَتَّىٰ يَرۡجِعَ إِلَيۡنَا مُوسَىٰ 91
उन्होंने कहा, "जब तक मूसा लौटकर हमारे पास न आ जाए हम तो इससे ही लगे बैठे रहेंगे।"॥91॥
قَالَ يَٰهَٰرُونُ مَا مَنَعَكَ إِذۡ رَأَيۡتَهُمۡ ضَلُّوٓاْ 92
उसने कहा, "ऐ हारून! जब तुमने देखा कि ये पथभ्रष्ट हो गए हैं तो किस चीज़ ने तुम्हें रोका ॥92॥
أَلَّا تَتَّبِعَنِۖ أَفَعَصَيۡتَ أَمۡرِي 93
कि तुमने मेरा अनुसरण न किया? क्या तुमने मेरे आदेश की अवहेलना की?"॥93॥
قَالَ يَبۡنَؤُمَّ لَا تَأۡخُذۡ بِلِحۡيَتِي وَلَا بِرَأۡسِيٓۖ إِنِّي خَشِيتُ أَن تَقُولَ فَرَّقۡتَ بَيۡنَ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ وَلَمۡ تَرۡقُبۡ قَوۡلِي 94
उसने कहा, "ऐ मेरी माँ के बेटे! मेरी दाढ़ी न पकड़ और न मेरा सिर! मैं डरा कि तू कहेगा कि तूने इसराईल की संतान में फूट डाल दी और मेरी बात पर ध्यान न दिया।"॥94॥
قَالَ فَمَا خَطۡبُكَ يَٰسَٰمِرِيُّ 95
(मूसा ने) कहा, "ऐ सामरी! तेरा क्या मामला है?"॥95॥
قَالَ بَصُرۡتُ بِمَا لَمۡ يَبۡصُرُواْ بِهِۦ فَقَبَضۡتُ قَبۡضَةٗ مِّنۡ أَثَرِ ٱلرَّسُولِ فَنَبَذۡتُهَا وَكَذَٰلِكَ سَوَّلَتۡ لِي نَفۡسِي 96
उसने कहा, "मुझे उसकी सूझ प्राप्त हुई जिसकी सूझ उन्हें प्राप्त न हुई। फिर मैंने रसूल के पद-चिन्ह से एक मुट्ठी (मिट्टी) उठा ली। फिर उसे डाल दिया और मेरे जी ने मुझे कुछ ऐसा ही सुझाया।"॥96॥
قَالَ فَٱذۡهَبۡ فَإِنَّ لَكَ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ أَن تَقُولَ لَا مِسَاسَۖ وَإِنَّ لَكَ مَوۡعِدٗا لَّن تُخۡلَفَهُۥۖ وَٱنظُرۡ إِلَىٰٓ إِلَٰهِكَ ٱلَّذِي ظَلۡتَ عَلَيۡهِ عَاكِفٗاۖ لَّنُحَرِّقَنَّهُۥ ثُمَّ لَنَنسِفَنَّهُۥ فِي ٱلۡيَمِّ نَسۡفًا 97
कहा, "अच्छा, तो जा! अब इस जीवन में तेरे लिए यही है कि कहता रहे, कोई छुए नहीं! और निश्चय ही तेरे लिए एक निश्चित वादा है जो तुझपर से कदापि न टलेगा। और देख अपने इष्ट-पूज्य को जिसपर तू रीझा-जमा बैठा था! हम उसे जला डालेंगे, फिर उसे चूर्ण-विचूर्ण करके दरिया में बिखेर देंगे।"॥97॥
إِنَّمَآ إِلَٰهُكُمُ ٱللَّهُ ٱلَّذِي لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۚ وَسِعَ كُلَّ شَيۡءٍ عِلۡمٗا 98
"तुम्हारा पूज्य-प्रभु तो बस वही अल्लाह है, जिसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। वह अपने ज्ञान से हर चीज़ पर हावी है।"॥98॥
كَذَٰلِكَ نَقُصُّ عَلَيۡكَ مِنۡ أَنۢبَآءِ مَا قَدۡ سَبَقَۚ وَقَدۡ ءَاتَيۡنَٰكَ مِن لَّدُنَّا ذِكۡرٗا 99
इस प्रकार गुज़रे हुए हालात की ख़बरें हम तुम्हें सुनाते हैं, और हमने तुम्हें अपने पास से एक याददिहानी (अनुस्मृति) प्रदान की है॥99॥
مَّنۡ أَعۡرَضَ عَنۡهُ فَإِنَّهُۥ يَحۡمِلُ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وِزۡرًا 100
जिस किसी ने उससे मुँह मोड़ा वह निश्चय ही क़ियामत के दिन एक बोझ उठाएगा॥100॥
خَٰلِدِينَ فِيهِۖ وَسَآءَ لَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ حِمۡلٗا 101
ऐसे लोग सदैव इसी वबाल में पड़े रहेंगे और क़ियामत के दिन उनके हक़ में यह बहुत ही बुरा बोझ सिद्ध होगा॥101॥
يَوۡمَ يُنفَخُ فِي ٱلصُّورِۚ وَنَحۡشُرُ ٱلۡمُجۡرِمِينَ يَوۡمَئِذٖ زُرۡقٗا 102
जिस दिन सूर फूँका जाएगा और हम अपराधियों को उस दिन इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि उनकी आँखे नीली पड़ गई होंगी॥102॥
يَتَخَٰفَتُونَ بَيۡنَهُمۡ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا عَشۡرٗا 103
वे आपस में चुपके-चुपके कहेंगे कि "तुम बस दस ही दिन ठहरे हो।"॥103॥
نَّحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا يَقُولُونَ إِذۡ يَقُولُ أَمۡثَلُهُمۡ طَرِيقَةً إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا يَوۡمٗا 104
हम भली-भाँति जानते हैं जो कुछ वे कहेंगे, जबकि उनका सबसे अच्छी राय रखनेवाला कहेगा, "तुम तो बस एक ही दिन ठहरे हो।"॥104॥
وَيَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡجِبَالِ فَقُلۡ يَنسِفُهَا رَبِّي نَسۡفٗا 105
वे तुमसे पर्वतों के विषय में पूछते हैं। कह दो, "मेरा रब उन्हें धूल की तरह उड़ा देगा,॥105॥
فَيَذَرُهَا قَاعٗا صَفۡصَفٗا 106
और धरती को एक समतल चटियल मैदान बनाकर छोड़ेगा॥106॥
لَّا تَرَىٰ فِيهَا عِوَجٗا وَلَآ أَمۡتٗا 107
तुम उसमें न कोई सिलवट देखोगे और न ऊँच-नीच।"॥107॥
يَوۡمَئِذٖ يَتَّبِعُونَ ٱلدَّاعِيَ لَا عِوَجَ لَهُۥۖ وَخَشَعَتِ ٱلۡأَصۡوَاتُ لِلرَّحۡمَٰنِ فَلَا تَسۡمَعُ إِلَّا هَمۡسٗا 108
उस दिन वे पुकारनेवाले के पीछे चल पड़ेंगे और उसके सामने कोई अकड़ न दिखाई जा सकेगी। आवाज़ें रहमान (करुणामय प्रभु) के सामने दब जाएँगी। एक हल्की मन्द आवाज़ के अतिरिक्त तुम कुछ न सुनोगे॥108॥
يَوۡمَئِذٖ لَّا تَنفَعُ ٱلشَّفَٰعَةُ إِلَّا مَنۡ أَذِنَ لَهُ ٱلرَّحۡمَٰنُ وَرَضِيَ لَهُۥ قَوۡلٗا 109
उस दिन सिफ़ारिश काम न आएगी। यह और बात है कि किसी के लिए रहमान अनुज्ञा दे और उसके लिए बात करने को पसन्द करे॥109॥
يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَلَا يُحِيطُونَ بِهِۦ عِلۡمٗا 110
वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है, किन्तु वे अपने ज्ञान से उसपर हावी नहीं हो सकते॥110॥
۞وَعَنَتِ ٱلۡوُجُوهُ لِلۡحَيِّ ٱلۡقَيُّومِۖ وَقَدۡ خَابَ مَنۡ حَمَلَ ظُلۡمٗا 111
चेहरे उस जीवन्त, शाश्वत सत्ता के आगे झुके होंगे। असफल हुआ वह जिसने ज़ुल्म का बोझ उठाया॥111॥
وَمَن يَعۡمَلۡ مِنَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَلَا يَخَافُ ظُلۡمٗا وَلَا هَضۡمٗا 112
किन्तु जो कोई अच्छे कर्म करे और हो वह मोमिन, तो उसे न तो किसी ज़ुल्म का भय होगा और न हक़ मारे जाने का॥112॥
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلۡنَٰهُ قُرۡءَانًا عَرَبِيّٗا وَصَرَّفۡنَا فِيهِ مِنَ ٱلۡوَعِيدِ لَعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ أَوۡ يُحۡدِثُ لَهُمۡ ذِكۡرٗا 113
और इस प्रकार हमने इसे अरबी क़ुरआन के रूप में अवतरित किया है और हमने इसमें तरह-तरह से चेतावनियाँ दी हैं ताकि वे डर रखें या यह उन्हें होश दिलाए॥113॥
فَتَعَٰلَى ٱللَّهُ ٱلۡمَلِكُ ٱلۡحَقُّۗ وَلَا تَعۡجَلۡ بِٱلۡقُرۡءَانِ مِن قَبۡلِ أَن يُقۡضَىٰٓ إِلَيۡكَ وَحۡيُهُۥۖ وَقُل رَّبِّ زِدۡنِي عِلۡمٗا 114
अतः सर्वोच्च है अल्लाह, सच्चा सम्राट! क़ुरआन के (फ़ैसले के) सिलसिले में जल्दी न करो जब तक कि वह पूरा न हो जाए। तेरी ओर उसकी प्रकाशना हो रही है। और कहो, "मेरे रब, मुझे ज्ञान में अभिवृद्धि प्रदान कर।"॥114॥
وَلَقَدۡ عَهِدۡنَآ إِلَىٰٓ ءَادَمَ مِن قَبۡلُ فَنَسِيَ وَلَمۡ نَجِدۡ لَهُۥ عَزۡمٗا 115
और हमने इससे पहले आदम से वचन लिया था, किन्तु वह भूल गया और हमने उसमें इरादे की मज़बूती न पाई॥115॥
وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِأٓدَمَ فَسَجَدُوٓاْ إِلَّآ إِبۡلِيسَ أَبَىٰ 116
और जब हमने फ़रिश्तों से कहा, "आदम को सजदा करो।" तो उन्होंने सजदा किया सिवाय इबलीस के, वह इनकार कर बैठा॥116॥
فَقُلۡنَا يَٰٓـَٔادَمُ إِنَّ هَٰذَا عَدُوّٞ لَّكَ وَلِزَوۡجِكَ فَلَا يُخۡرِجَنَّكُمَا مِنَ ٱلۡجَنَّةِ فَتَشۡقَىٰٓ 117
इसपर हमने कहा, "ऐ आदम! निश्चय ही यह तुम्हारा और तुम्हारी पत्नि का शत्रु है। ऐसा न हो कि यह तुम दोनों को जन्नत से निकलवा दे और तुम तकलीफ़ में पड़ जाओ॥117॥
إِنَّ لَكَ أَلَّا تَجُوعَ فِيهَا وَلَا تَعۡرَىٰ 118
तुम्हारे लिए तो ऐसा है कि न तुम यहाँ भूखे रहोगे और न नंगे॥118॥
وَأَنَّكَ لَا تَظۡمَؤُاْ فِيهَا وَلَا تَضۡحَىٰ 119
और यह कि न यहाँ प्यासे रहोगे और न धूप की तकलीफ़ उठाओगे।"॥119॥
فَوَسۡوَسَ إِلَيۡهِ ٱلشَّيۡطَٰنُ قَالَ يَٰٓـَٔادَمُ هَلۡ أَدُلُّكَ عَلَىٰ شَجَرَةِ ٱلۡخُلۡدِ وَمُلۡكٖ لَّا يَبۡلَىٰ 120
फिर शैतान ने उसे उकसाया। कहने लगा, "ऐ आदम! क्या मैं तुझे शाश्वत जीवन के वृक्ष का पता दूँ और ऐसे राज्य का जो कभी जीर्ण न हो?"॥120॥
فَأَكَلَا مِنۡهَا فَبَدَتۡ لَهُمَا سَوۡءَٰتُهُمَا وَطَفِقَا يَخۡصِفَانِ عَلَيۡهِمَا مِن وَرَقِ ٱلۡجَنَّةِۚ وَعَصَىٰٓ ءَادَمُ رَبَّهُۥ فَغَوَىٰ 121
अन्ततः उन दोनों ने उसमें से खा लिया जिसके परिणामस्वरूप उनकी छिपाने की चीज़ें उनके आगे खुल गईं और वे दोनों अपने ऊपर जन्नत के पत्ते जोड़-जोड़कर रखने लगे। और आदम ने अपने रब की अवज्ञा की तो वह मार्ग से भटक गया॥121॥
ثُمَّ ٱجۡتَبَٰهُ رَبُّهُۥ فَتَابَ عَلَيۡهِ وَهَدَىٰ 122
इसके पश्चात् उसके रब ने उसे चुन लिया और दोबारा उसकी ओर ध्यान दिया और उसका मार्गदर्शन किया॥122॥
قَالَ ٱهۡبِطَا مِنۡهَا جَمِيعَۢاۖ بَعۡضُكُمۡ لِبَعۡضٍ عَدُوّٞۖ فَإِمَّا يَأۡتِيَنَّكُم مِّنِّي هُدٗى فَمَنِ ٱتَّبَعَ هُدَايَ فَلَا يَضِلُّ وَلَا يَشۡقَىٰ 123
कहा, "तुम दोनों के दोनों यहाँ से उतरो! तुम्हारे कुछ लोग कुछ के शत्रु होंगे। फिर यदि मेरी ओर से तुम्हें मार्गदर्शन पहुँचे, तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुपालन किया वह न तो पथभ्रष्ट होगा और न तकलीफ़ में पड़ेगा॥123॥
وَمَنۡ أَعۡرَضَ عَن ذِكۡرِي فَإِنَّ لَهُۥ مَعِيشَةٗ ضَنكٗا وَنَحۡشُرُهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ أَعۡمَىٰ 124
और जिस किसी ने मेरी स्मृति से मुँह मोड़ा तो उसका जीवन तंग (संकीर्ण) होगा और क़ियामत के दिन हम उसे अन्धा उठाएँगे।"॥124॥
قَالَ رَبِّ لِمَ حَشَرۡتَنِيٓ أَعۡمَىٰ وَقَدۡ كُنتُ بَصِيرٗا 125
वह कहेगा, "ऐ मेरे रब! तूने मुझे अन्धा क्यों उठाया, जबकि मैं आँखोंवाला था?"॥125॥
قَالَ كَذَٰلِكَ أَتَتۡكَ ءَايَٰتُنَا فَنَسِيتَهَاۖ وَكَذَٰلِكَ ٱلۡيَوۡمَ تُنسَىٰ 126
वह कहेगा, "इसी प्रकार (तू संसार में अन्धा रहा था)। तेरे पास मेरी आयतें आई थीं तो तूने उन्हें भुला दिया था। उसी प्रकार आज तुझे भुलाया जा रहा है।"॥126॥
وَكَذَٰلِكَ نَجۡزِي مَنۡ أَسۡرَفَ وَلَمۡ يُؤۡمِنۢ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِۦۚ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَشَدُّ وَأَبۡقَىٰٓ 127
इसी प्रकार हम उसे बदला देते हैं जो मर्यादा का उल्लंघन करे और अपने रब की आयतों पर ईमान न लाए। और आख़िरत की यातना तो अत्यन्त कठोर और अधिक स्थायी है॥127॥
أَفَلَمۡ يَهۡدِ لَهُمۡ كَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّنَ ٱلۡقُرُونِ يَمۡشُونَ فِي مَسَٰكِنِهِمۡۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّأُوْلِي ٱلنُّهَىٰ 128
फिर क्या उनको इससे भी मार्ग न मिला कि हम उनसे पहले कितनी ही नस्लों को विनष्ट् कर चुके हैं जिनकी बस्तियों में वे चलते-फिरते हैं? निस्संदेह बुद्धिमानों के लिए इसमें बहुत-सी निशानियाँ है॥128॥
وَلَوۡلَا كَلِمَةٞ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَكَانَ لِزَامٗا وَأَجَلٞ مُّسَمّٗى 129
यदि तेरे रब की ओर से पहले ही एक बात निश्चित न हो गई होती और एक अवधि नियत न की जा चुकी होती तो अवश्य ही उन्हें यातना आ पकड़ती॥129॥
فَٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ قَبۡلَ طُلُوعِ ٱلشَّمۡسِ وَقَبۡلَ غُرُوبِهَاۖ وَمِنۡ ءَانَآيِٕ ٱلَّيۡلِ فَسَبِّحۡ وَأَطۡرَافَ ٱلنَّهَارِ لَعَلَّكَ تَرۡضَىٰ 130
अतः जो कुछ वे कहते हैं उसपर धैर्य से काम लो और अपने रब का गुणगान करो, सूर्योदय से पहले और उसके डूबने से पहले, और रात की घड़ियों में भी तसबीह करो और दिन के किनारों पर भी, ताकि तुम राज़ी हो जाओ॥130॥
وَلَا تَمُدَّنَّ عَيۡنَيۡكَ إِلَىٰ مَا مَتَّعۡنَا بِهِۦٓ أَزۡوَٰجٗا مِّنۡهُمۡ زَهۡرَةَ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا لِنَفۡتِنَهُمۡ فِيهِۚ وَرِزۡقُ رَبِّكَ خَيۡرٞ وَأَبۡقَىٰ 131
और उसकी ओर आँख उठा कर न देखो जो कुछ हमने उनमें से विभिन्न लोगों को उपभोग के लिए दे रखा है, ताकि हम उसके द्वारा उन्हें आज़माएँ। वह तो बस सांसारिक जीवन की शोभा है। तुम्हारे रब की रोज़ी उत्तम भी है और स्थायी भी॥131॥
وَأۡمُرۡ أَهۡلَكَ بِٱلصَّلَوٰةِ وَٱصۡطَبِرۡ عَلَيۡهَاۖ لَا نَسۡـَٔلُكَ رِزۡقٗاۖ نَّحۡنُ نَرۡزُقُكَۗ وَٱلۡعَٰقِبَةُ لِلتَّقۡوَىٰ 132
और अपने लोगों को नमाज़ का आदेश करो और स्वयं भी उसपर जमे रहो। हम तुमसे कोई रोज़ी नहीं माँगते। रोज़ी हम ही तुम्हें देते हैं, और अच्छा परिणाम तो धर्मपरायणता ही के लिए निश्चित है॥132॥
وَقَالُواْ لَوۡلَا يَأۡتِينَا بِـَٔايَةٖ مِّن رَّبِّهِۦٓۚ أَوَلَمۡ تَأۡتِهِم بَيِّنَةُ مَا فِي ٱلصُّحُفِ ٱلۡأُولَىٰ 133
और वे कहते हैं कि "यह अपने रब की ओर से हमारे पास कोई निशानी क्यों नहीं लाता?" क्या उनके पास उसका स्पष्ट प्रमाण नहीं आ गया, जो कुछ कि पहले के ग्रन्थों में उल्लिखित है?॥133॥
وَلَوۡ أَنَّآ أَهۡلَكۡنَٰهُم بِعَذَابٖ مِّن قَبۡلِهِۦ لَقَالُواْ رَبَّنَا لَوۡلَآ أَرۡسَلۡتَ إِلَيۡنَا رَسُولٗا فَنَتَّبِعَ ءَايَٰتِكَ مِن قَبۡلِ أَن نَّذِلَّ وَنَخۡزَىٰ 134
यदि हम उसके पहले इन्हें किसी यातना से विनष्ट कर देते तो ये कहते कि "ऐ हमारे रब, तूने हमारे पास कोई रसूल क्यों न भेजा कि इससे पहले कि हम अपमानित और रुसवा होते, तेरी आयतों का अनुपालन करने लगते?"॥134॥
قُلۡ كُلّٞ مُّتَرَبِّصٞ فَتَرَبَّصُواْۖ فَسَتَعۡلَمُونَ مَنۡ أَصۡحَٰبُ ٱلصِّرَٰطِ ٱلسَّوِيِّ وَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ 135
कह दो, "हर एक प्रतीक्षा में है। अतः अब तुम भी प्रतीक्षा करो। शीघ्र ही तुम जान लोगे कि कौन सीधे मार्गवाला है और किनको मार्गदर्शन प्राप्त है।"॥135॥