سُورَةُ الحَجِّ
- अल-हज
(मक्का में उतरी-आयतें 78)
परिचय
नाम
इस सूरा की सत्ताइसवीं आयत "व अज़्ज़िनु फ़िन्नासि बिल हज्जि” अर्थात् "लोगों में हज के लिए सामान्य घोषणा कर दो" से लिया गया है।
उतरने का समय
इस सूरा में मक्की और मदनी सूरतों की विशेषताएँ मिली-जुली पाई जाती हैं। इसी कारण टीकाकारों में इस बात पर मतभेद हो गया है कि यह मक्की है या मदनी, लेकिन हमारे नज़दीक इसके विषय और वर्णन-शैली का यह रंग इस कारण है कि इसका एक भाग मक्की काल के अन्त में और दूसरा भाग मदनी काल के आरंभ में उतरा है। इसलिए दोनों कालों की विशेषताएँ इसमें इकट्ठा हो गई हैं।
आरंभिक भाग का विषय और वर्णन-शैली स्पष्ट रूप से बताते हैं कि यह मक्का में उतरा है और अधिक संभावना यह है कि मक्की ज़िन्दगी के अन्तिम चरण में हिजरत से कुछ पहले उतरा हो। यह भाग आयत 24 "व हुदू इलत्तय्यिबि मिनल कौलि व हुदू इला सिरातिल हमीद” अर्थात् "उनको पाक बात स्वीकार करने की हिदायत दी गई और उन्हें प्रशंसनीय गुणों से विभूषित ईश्वर का मार्ग दिखाया गया" पर समाप्त होता है।
इसके बाद “इन्नल्लज़ी-न क-फ़-रू व यसुद्दू-न अन सबील्लिाहि" अर्थात् “जिन लोगों ने कुफ़्र (इंकार) किया और जो (आज) अल्लाह के मार्ग से रोक रहे हैं" से यकायक विषय का रंग बदल जाता है और साफ़ महसूस होता है कि यहाँ से आख़िर तक का भाग मदीना तैयबा में उतरा है। असंभव नहीं कि यह हिजरत के बाद पहले ही साल ज़िल-हिज्जा में उतरा हो, क्योंकि आयत 25 से 41 तक का विषय इसी बात का पता देता है और आयत 39-40 के उतरने का कारण भी इसकी पुष्टि करता है। उस समय मुहाजिरीन अभी ताज़ा-ताज़ा ही अपने घर-बार छोड़कर मदीने में आए थे। हज के ज़माने में उनको अपना शहर और हज का इज्तिमाअ (सम्मेलन) याद आ रहा होगा और यह बात बुरी तरह खल रही होगी कि क़ुरैश के मुशरिकों ने उनपर मस्जिदे-हराम का रास्ता तक बन्द कर दिया है। उस समय वे इस बात का भी इन्तिज़ार कर रहे होंगे कि जिन ज़ालिमों ने उनको घरों से निकाला, मस्जिदे-हराम की ज़ियारत (दर्शन) से वंचित किया और अल्लाह का रास्ता अपनाने पर उनका जीना तक दूभर कर दिया, उनके विरुद्ध जंग लड़ने की अनुमति मिल जाए। यह ठीक मनोवैज्ञानिक अवसर था इन आयतों के उतरने का। इनमें पहले तो हज का उल्लेख करते हुए यह बताया गया है कि यह मस्जिदे-हराम (प्रतिष्ठित मस्जिद अर्थात् काबा) इसलिए बनाई गई थी और यह हज का तरीक़ा इसलिए शुरू किया गया था कि दुनिया में एक अल्लाह की बन्दगी की जाए, मगर आज वहाँ शिर्क हो रहा है और एक अल्लाह की बन्दगी करनेवालों के लिए उसके रास्ते बन्द कर दिए गए हैं। इसके बाद मुसलमानों को अनुमति दे दी गई है कि वे इन ज़ालिमों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ें और उन्हें बे-दख़ल करके देश में वह कल्याणकारी व्यवस्था स्थापित करें जिसमें बुराइयाँ दबें और नेकियाँ फैलें। इब्ने-अब्बास, मुजाहिद, उर्वह-बिन-ज़ुबैर, ज़ैद-बिन-असलम, मुक़ातिल-बिन-हय्यान, क़तादा और दूसरे बड़े टीकाकारों का बयान है कि यह पहली आयत है जिसमें मुसलमानों को युद्ध की अनुमति दी गई और हदीस और सीरत की रिवायतों से प्रमाणित है कि इस अनुमति के बाद तुरन्त ही क़ुरैश के विरुद्ध व्यावहारिक गतिविधियाँ शुरू कर दी गईं और पहली मुहिम सफ़र 02 हि० में लाल सागर के तट की ओर रवाना हुई जो वद्दान की लड़ाई या अबवा की लड़ाई के नाम से मशहूर है।
विषय और वार्ताएँ
इस सूरा में तीन गिरोहों को संबोधित किया गया है-मक्का के मुशरिक, दुविधा और संकोच में पड़े मुसलमान और सच्चे ईमानवाले लोग। मुशरिकों से सम्बोधन मक्का के आरंभ में किया गया और मदीना में उसका क्रम पूर्ण हुआ। इस सम्बोधन में उनको पूरा बल देकर सचेत किया गया है कि तुमने ज़िद और हठधर्मी के साथ अपने निराधार अज्ञानतापूर्ण विचारों पर आग्रह किया, अल्लाह को छोड़कर उन उपास्यों पर भरोसा किया जिनके पास कोई शक्ति नहीं और अल्लाह के रसूल को झुठला दिया। अब तुम्हारा अंजाम वही कुछ होकर रहेगा जो तुमसे पहले इस नीति पर चलनेवालों का हो चुका है। नबी को झुठलाकर और अपनी क़ौम के सबसे अच्छे तत्त्वों को अत्याचार का निशाना बनाकर तुमने अपना ही कुछ बिगाड़ा है। इसके नतीजे में अल्लाह का जो प्रकोप तुमपर उतरेगा, उससे तुम्हारे बनावटी उपास्य तुम्हें न बचा सकेंगे। इस चेतावनी और डरावे के साथ समझाने-बुझाने का पहलू बिल्कुल खाली नहीं छोड़ दिया गया है। पूरी सूरा में जगह-जगह याददिहानी और उपदेश भी है और शिर्क के विरुद्ध और तौहीद और आखिरत के पक्ष में प्रभावी तर्क भी प्रस्तुत किए गए है। दुविधा और संकोच में पड़े मुसलमान, जो अल्लाह की बन्दगी तो क़ुबूल कर चुके थे मगर इस राह में कोई ख़तरा उठाने को तैयार नहीं थे, उनको सम्बोधित करते हुए कड़ी डाँट-फटकार की गई है। उनसे कहा गया कि यह आखिर कैसा ईमान है कि राहत, ख़ुशी, ऐश मिले तो अल्लाह तुम्हारा प्रभु और तुम उसके बन्दे, मगर जहाँ अल्लाह की राह में विपदा आई और कठिनाइयाँ सहन करनी पड़ीं, फिर न अल्लाह तुम्हारा प्रभु रहा और न तुम उसके बन्दे रहे, हालाँकि तुम अपनी इस नीति से किसी ऐसी विपत्ति और हानि और कष्ट को नहीं टाल सकते जो अल्लाह ने तुम्हारे भाग्य में लिख दिया हो। ईमानवालों से सम्बोधन दो तरीक़ों से किया गया है। एक सम्बोधन ऐसा है जिसमें वे स्वयं भी सम्बोधित हैं और अरब के आम लोग भी, दूसरे सम्बोधन में ईमानवाले सम्बोधित हैं।
पहले सम्बोधन में मक्का के मुशरिकों की इस नीति पर पकड़ की गई है कि उन्होंने मुसलमानों के लिए मस्जिदे-हराम (अर्थात काबा) का रास्ता बन्द कर दिया है, हालाँकि मस्जिदे-हराम (अर्थात् काबा) उनकी निजी सम्पत्ति नहीं है और वे किसी को हज से रोकने का अधिकार नहीं रखते। यह आपत्ति न केवल यह कि अपने आपमें सही थी, बल्कि राजनैतिक दृष्टि से यह क़ुरैश के विरुद्ध एक बहुत बड़ा हथियार भी था। इससे अरब के तमाम दूसरे क़बीलों के मन में यह प्रश्न पैदा कर दिया गया कि कुरैश हरम के मुजाविर हैं या मालिक? अगर आज अपनी निजी दुश्मनी के आधार पर वे गिरोह को हज से रोक देते और उसको सहन कर लिया जाता है, तो असंभव नहीं कि कल जिससे भी उनके सम्बन्ध बिगड़ें, उसको वे हरम की सीमाओं में प्रवेश करने से रोक दें और उसका उमरा और हज बन्द कर दें। इस सिलसिले में मस्जिदे-हराम का इतिहास बताते हुए एक ओर यह कहा गया है कि इबाहीम (अलैहि०) ने जब अल्लाह के आदेश से उसका निर्माण किया था तो सब लोगों का हज के लिए आम आह्वान किया था और वहाँ पहले दिन से स्थानीय निवासियों और बाहर से आनेवालों के अधिकार समान मान लिए गए थे। दूसरी ओर यह बताया गया कि यह घर शिर्क के लिए नहीं, बल्कि एक अल्लाह की बन्दगी के लिए बनाया गया था। अब यह क्या ग़ज़ब है कि वहाँ एक खुदा की बन्दगी पर तो रोक हो और बुतों की पूजा के लिए हो पूरी आज़ादी।
दूसरे सम्बोधन में मुसलमानों को कुरैश के ज़ुल्म का उत्तर ताक़त से देने की अनुमति दी गई है और साथ-साथ उनको यह भी बताया गया है कि जब तुम्हें सत्ता मिले तो तुम्हारा रवैया क्या होना चाहिए और अपने राज्य में तुमको किस उद्देश्य के लिए काम करना चाहिए। यह विषय सूरा के मध्य में भी है और अन्त में भी। अन्त में ईमानवालों के गिरोह के लिए "मुस्लिम” (आज्ञाकारी) के नाम विधिवत घोषणा करते हुए यह कहा गया है कि इब्राहीम के वास्तविक उत्तराधिकारी तो तुम लोग हो, तुम्हें इस सेवा के लिए चुन लिया गया है कि दुनिया में लोगों के सम्मुख सत्य की गवाही देने के पथ पर खड़े हो जाओ। अब तुम्हें नमाज़ क़ायम करके, ज़कात और ख़ैरात अदा करके अपने जीवन को श्रेष्ठ आदर्श जीवन बनाना चाहिए और अल्लाह के भरोसे पर अल्लाह के कलिमे को उच्च रखने के लिए 'जिहाद' करना चाहिए।
इस अवसर पर सूरा 2 (अल-बक़रा) और सूरा 8 (अल-अनफ़ाल) की भूमिकाओं पर भी दृष्टि डाल ली जाए तो समझने में अधिक आसानी होगी।
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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡۚ إِنَّ زَلۡزَلَةَ ٱلسَّاعَةِ شَيۡءٌ عَظِيمٞ 1
ऐ लोगो! अपने रब का डर रखो! निश्चय ही क़ियामत की घड़ी का भूकम्प बड़ी भयानक चीज़ है॥1॥
يَوۡمَ تَرَوۡنَهَا تَذۡهَلُ كُلُّ مُرۡضِعَةٍ عَمَّآ أَرۡضَعَتۡ وَتَضَعُ كُلُّ ذَاتِ حَمۡلٍ حَمۡلَهَا وَتَرَى ٱلنَّاسَ سُكَٰرَىٰ وَمَا هُم بِسُكَٰرَىٰ وَلَٰكِنَّ عَذَابَ ٱللَّهِ شَدِيدٞ 2
जिस जिन तुम उसे देखोगे, हाल यह होगा कि प्रत्येक दूध पिलानेवाली अपने उस बच्चे को भूल जाएगी और प्रत्येक गर्भवती आपना गर्भभार रख देगी। और लोगों को तुम नशे में देखोगे, हालाँकि वे नशे में न होंगे, बल्कि अल्लाह की यातना है ही बड़ी कठोर चीज़॥2॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يُجَٰدِلُ فِي ٱللَّهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَيَتَّبِعُ كُلَّ شَيۡطَٰنٖ مَّرِيدٖ 3
लोगों में कोई ऐसा भी है जो ज्ञान के बिना अल्लाह के विषय में झगड़ता है और प्रत्येक सरकश शैतान का अनुसरण करता है॥3॥
كُتِبَ عَلَيۡهِ أَنَّهُۥ مَن تَوَلَّاهُ فَأَنَّهُۥ يُضِلُّهُۥ وَيَهۡدِيهِ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلسَّعِيرِ 4
जबकि उसके लिए लिख दिया गया है कि जो उससे मित्रता का सम्बन्ध रखेगा उसे वह पथभ्रष्ट करके रहेगा और उसे दहकती आग की यातना की ओर ले जाएगा॥4॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِن كُنتُمۡ فِي رَيۡبٖ مِّنَ ٱلۡبَعۡثِ فَإِنَّا خَلَقۡنَٰكُم مِّن تُرَابٖ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةٖ ثُمَّ مِنۡ عَلَقَةٖ ثُمَّ مِن مُّضۡغَةٖ مُّخَلَّقَةٖ وَغَيۡرِ مُخَلَّقَةٖ لِّنُبَيِّنَ لَكُمۡۚ وَنُقِرُّ فِي ٱلۡأَرۡحَامِ مَا نَشَآءُ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى ثُمَّ نُخۡرِجُكُمۡ طِفۡلٗا ثُمَّ لِتَبۡلُغُوٓاْ أَشُدَّكُمۡۖ وَمِنكُم مَّن يُتَوَفَّىٰ وَمِنكُم مَّن يُرَدُّ إِلَىٰٓ أَرۡذَلِ ٱلۡعُمُرِ لِكَيۡلَا يَعۡلَمَ مِنۢ بَعۡدِ عِلۡمٖ شَيۡـٔٗاۚ وَتَرَى ٱلۡأَرۡضَ هَامِدَةٗ فَإِذَآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡهَا ٱلۡمَآءَ ٱهۡتَزَّتۡ وَرَبَتۡ وَأَنۢبَتَتۡ مِن كُلِّ زَوۡجِۭ بَهِيجٖ 5
ऐ लोगो! यदि तुम्हें दोबारा जी उठने के विषय में कोई संदेह हो तो देखो, हमने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर लोथड़े से, फिर मांस की बोटी से, जो बनावट में कोई पूर्ण दशा में भी होती है और अपूर्ण दशा में भी, ताकि हम तुमपर स्पष्ट कर दें, और हम जिसे चाहते हैं एक नियत समय तक गर्भाशयों में ठहराए रखते हैं। फिर तुम्हें एक बच्चे के रूप में निकाल लाते हैं। फिर (तुम्हारा पालन-पोषण होता है) ताकि तुम अपनी युवावस्था को प्राप्त हो, और तुममें से कोई तो पहले मर जाता है और कोई बुढ़ापे की जीर्ण अवस्था को पहुँचा दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप, जानने के बाद भी वह कुछ नहीं जानता। और तुम भूमि को देखते हो कि सूखी पड़ी है। फिर जहाँ हमने उसपर पानी बरसाया कि वह फबक उठी और वह उभर आई और उसने हर प्रकार की शोभायमान चीज़े उगाईं॥5॥
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡحَقُّ وَأَنَّهُۥ يُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَأَنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ 6
यह इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और वह मुर्दों को जीवित करता है, और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है॥6॥
وَأَنَّ ٱلسَّاعَةَ ءَاتِيَةٞ لَّا رَيۡبَ فِيهَا وَأَنَّ ٱللَّهَ يَبۡعَثُ مَن فِي ٱلۡقُبُورِ 7
और यह कि क़ियामत की घड़ी आनेवाली है, इसमें कोई सन्देह नहीं है, और यह कि अल्लाह उन्हें उठाएगा जो क़ब्रों में हैं॥7॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يُجَٰدِلُ فِي ٱللَّهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَلَا هُدٗى وَلَا كِتَٰبٖ مُّنِيرٖ 8
और लोगों में कोई ऐसा है जो किसी ज्ञान, मार्गदर्शन और प्रकाशमान किताब के बिना अल्लाह के विषय में (घमण्ड से) अपने पहलू मोड़ते हुए झगड़ता है, ॥8॥
ثَانِيَ عِطۡفِهِۦ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِۖ لَهُۥ فِي ٱلدُّنۡيَا خِزۡيٞۖ وَنُذِيقُهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ عَذَابَ ٱلۡحَرِيقِ 9
ताकि अल्लाह के मार्ग से भटका दे। उसके लिए दुनिया में भी रुसवाई है और क़ियामत के दिन हम उसे जलने की यातना का मज़ा चखाएँगे॥9॥
ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتۡ يَدَاكَ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَيۡسَ بِظَلَّٰمٖ لِّلۡعَبِيدِ 10
(कहा जाएगा) ''यह उसके कारण है जो तेरे हाथों ने आगे भेजा था और यह कि अल्लाह बन्दों पर तनिक भी ज़ुल्म करनेवाला नहीं॥10॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَعۡبُدُ ٱللَّهَ عَلَىٰ حَرۡفٖۖ فَإِنۡ أَصَابَهُۥ خَيۡرٌ ٱطۡمَأَنَّ بِهِۦۖ وَإِنۡ أَصَابَتۡهُ فِتۡنَةٌ ٱنقَلَبَ عَلَىٰ وَجۡهِهِۦ خَسِرَ ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةَۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡخُسۡرَانُ ٱلۡمُبِينُ 11
और लोगों में कोई ऐसा है जो एक किनारे पर रहकर अल्लाह की बन्दगी करता है। यदि उसे लाभ पहुँचा तो उससे संतुष्ट हो गया और यदि उसे कोई आज़माइश पेश आ गई तो औंधा होकर पलट गया। दुनिया भी खोई और आख़िरत भी। यही है खुला घाटा॥11॥
يَدۡعُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَضُرُّهُۥ وَمَا لَا يَنفَعُهُۥۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلضَّلَٰلُ ٱلۡبَعِيدُ 12
वह अल्लाह को छोड़कर उसे पुकारता है जो न उसे हानि पहुँचा सके और न उसे लाभ पहुँचा सके। यही है परले दर्जे की गुमराही॥12॥
يَدۡعُواْ لَمَن ضَرُّهُۥٓ أَقۡرَبُ مِن نَّفۡعِهِۦۚ لَبِئۡسَ ٱلۡمَوۡلَىٰ وَلَبِئۡسَ ٱلۡعَشِيرُ 13
वह उसको पुकारता है जिससे पहुँचनेवाली हानि उससे अपेक्षित लाभ की अपेक्षा अधिक निकट है। बहुत ही बुरा संरक्षक है वह और बहुत ही बुरा साथी!॥13॥
إِنَّ ٱللَّهَ يُدۡخِلُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَفۡعَلُ مَا يُرِيدُ 14
निश्चय ही अल्लाह उन लोगों को, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, ऐसे बाग़ों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। निस्संदेह अल्लाह जो चाहे करे॥14॥
مَن كَانَ يَظُنُّ أَن لَّن يَنصُرَهُ ٱللَّهُ فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ فَلۡيَمۡدُدۡ بِسَبَبٍ إِلَى ٱلسَّمَآءِ ثُمَّ لۡيَقۡطَعۡ فَلۡيَنظُرۡ هَلۡ يُذۡهِبَنَّ كَيۡدُهُۥ مَا يَغِيظُ 15
जो कोई यह समझता है कि अल्लाह दुनिया और आख़िरत में उसकी (रसूल की) हरगिज़ कोई सहायता न करेगा तो उसे चाहिए कि वह आकाश की ओर एक रस्सी ताने, फिर पूरा उपाय कर ले। फिर देख ले कि क्या उसका उपाय उस चीज़ को दूर कर सकता है जो उसे क्रोध में डाले हुए है॥15॥
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلۡنَٰهُ ءَايَٰتِۭ بَيِّنَٰتٖ وَأَنَّ ٱللَّهَ يَهۡدِي مَن يُرِيدُ 16
इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को स्पष्ट आयतों के रूप में अवतरित किया। और बात यह है कि अल्लाह जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है॥16॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِينَ هَادُواْ وَٱلصَّٰبِـِٔينَ وَٱلنَّصَٰرَىٰ وَٱلۡمَجُوسَ وَٱلَّذِينَ أَشۡرَكُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ يَفۡصِلُ بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ 17
जो लोग ईमान लाए और जो यहूदी हुए और साबिई और ईसाई और मजूस, और जिन लोगों ने शिर्क किया — इन सबके बीच अल्लाह क़ियामत के दिन फ़ैसला कर देगा। निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में हर चीज़ है॥17॥
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ يَسۡجُدُۤ لَهُۥۤ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ وَٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُ وَٱلنُّجُومُ وَٱلۡجِبَالُ وَٱلشَّجَرُ وَٱلدَّوَآبُّ وَكَثِيرٞ مِّنَ ٱلنَّاسِۖ وَكَثِيرٌ حَقَّ عَلَيۡهِ ٱلۡعَذَابُۗ وَمَن يُهِنِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن مُّكۡرِمٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَفۡعَلُ مَا يَشَآءُ۩ 18
क्या तुमनें देखा नहीं कि अल्लाह ही को सजदा करते हैं वे सब जो आकाशों में हैं और जो धरती में हैं, और सूर्य, चन्द्रमा, तारे, पहाड़, वृक्ष, जानवर और बहुत-से मनुष्य? और बहुत-से ऐसे हैं जिनपर यातना का औचित्य सिद्ध हो चुका है, और जिसे अल्लाह अपमानित करे उसे सम्मानित करनेवाला कोई नहीं। निस्संदेह अल्लाह जो चाहे करता है॥18॥
۞هَٰذَانِ خَصۡمَانِ ٱخۡتَصَمُواْ فِي رَبِّهِمۡۖ فَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ قُطِّعَتۡ لَهُمۡ ثِيَابٞ مِّن نَّارٖ يُصَبُّ مِن فَوۡقِ رُءُوسِهِمُ ٱلۡحَمِيمُ 19
ये दो प्रतिवादी हैं जो अपने रब के विषय में आपस में झगड़े। अतः जिन लोगों ने कुफ़्र किया उनके लिए आग के वस्त्र काटे जा चुके हैं। उनके सिरों पर खौलता हुआ पानी डाला जाएगा॥19॥
يُصۡهَرُ بِهِۦ مَا فِي بُطُونِهِمۡ وَٱلۡجُلُودُ 20
इससे जो कुछ उनके पेटों में है वह पिघल जाएगा, और खालें भी॥20॥
وَلَهُم مَّقَٰمِعُ مِنۡ حَدِيدٖ 21
और उनके लिए (सज़ा देने को) लोहे के गुर्ज़ होंगे॥21॥
كُلَّمَآ أَرَادُوٓاْ أَن يَخۡرُجُواْ مِنۡهَا مِنۡ غَمٍّ أُعِيدُواْ فِيهَا وَذُوقُواْ عَذَابَ ٱلۡحَرِيقِ 22
जब कभी भी वे घबराकर उससे निकलना चाहेंगे तो उसी में लौटा दिए जाएँगे और (कहा जाएगा,) "चखो दहकती आग की यातना का मज़ा!"॥22॥
إِنَّ ٱللَّهَ يُدۡخِلُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ يُحَلَّوۡنَ فِيهَا مِنۡ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٖ وَلُؤۡلُؤٗاۖ وَلِبَاسُهُمۡ فِيهَا حَرِيرٞ 23
निस्संदेह अल्लाह उन लोगों को, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, ऐसे बाग़ों में दाखि़ल करेगा जिनके नीचें नहरें बह रही होंगी। वहाँ वे सोने के कंगनों और मोती से आभूषित किए जाएँगे और वहाँ उनका लिबास (परिधान) रेशमी होगा॥23॥
وَهُدُوٓاْ إِلَى ٱلطَّيِّبِ مِنَ ٱلۡقَوۡلِ وَهُدُوٓاْ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلۡحَمِيدِ 24
निर्देशित किया गया उन्हें अच्छे पाक बोल की ओर और उनको प्रशंसित अल्लाह का मार्ग दिखाया गया॥24॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ ٱلَّذِي جَعَلۡنَٰهُ لِلنَّاسِ سَوَآءً ٱلۡعَٰكِفُ فِيهِ وَٱلۡبَادِۚ وَمَن يُرِدۡ فِيهِ بِإِلۡحَادِۭ بِظُلۡمٖ نُّذِقۡهُ مِنۡ عَذَابٍ أَلِيمٖ 25
(उनके लिए दुखद यातना है) जिन लोगों ने इनकार किया और वे अल्लाह के मार्ग से रोकते हैं, और प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से जिसे हमने सब लोगों के लिए ऐसा बनाया है कि उसमें बराबर है वहाँ का रहनेवाला और बाहर से आया हुआ, और जो व्यक्ति उस (प्रतिष्ठित मस्जिद) में कुटिलता अर्थात् ज़ुल्म के साथ कुछ करना चाहेगा उसे हम दुखद यातना का मज़ा चखाएँगे॥25॥
وَإِذۡ بَوَّأۡنَا لِإِبۡرَٰهِيمَ مَكَانَ ٱلۡبَيۡتِ أَن لَّا تُشۡرِكۡ بِي شَيۡـٔٗا وَطَهِّرۡ بَيۡتِيَ لِلطَّآئِفِينَ وَٱلۡقَآئِمِينَ وَٱلرُّكَّعِ ٱلسُّجُودِ 26
याद करो जब कि हमने इबराहीम के लिए इस घर (काबा) की जगह को ठिकाना बनाया इस आदेश के साथ कि "मेरे साथ किसी चीज़ को साझी न ठहराना और मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) करनेवालों और खड़े होने और झुकनेवालों और सजदा करनेवालों के लिए पाक-साफ़ रखना।"॥26॥
وَأَذِّن فِي ٱلنَّاسِ بِٱلۡحَجِّ يَأۡتُوكَ رِجَالٗا وَعَلَىٰ كُلِّ ضَامِرٖ يَأۡتِينَ مِن كُلِّ فَجٍّ عَمِيقٖ 27
और लोगों में हज के लिए आम एलान कर दो कि "वे प्रत्येक दूरवर्ती गहरे मार्ग से, पैदल भी और दुबली-दुबली ऊँटनियों पर, तेरे पास आएँ॥27॥
لِّيَشۡهَدُواْ مَنَٰفِعَ لَهُمۡ وَيَذۡكُرُواْ ٱسۡمَ ٱللَّهِ فِيٓ أَيَّامٖ مَّعۡلُومَٰتٍ عَلَىٰ مَا رَزَقَهُم مِّنۢ بَهِيمَةِ ٱلۡأَنۡعَٰمِۖ فَكُلُواْ مِنۡهَا وَأَطۡعِمُواْ ٱلۡبَآئِسَ ٱلۡفَقِيرَ 28
ताकि वे उन लाभों को देखें जो वहाँ उनके लिए रखे गए हैं। और कुछ ज्ञात और निश्चित दिनों में उन चौपाए अर्थात् मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें,1 जो उसने उन्हें दिए हैं। फिर उसमें से स्वयं भी खाओ और तंगहाल मुहताज को भी खिलाओ।"॥28॥
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1. अर्थात् अल्लाह का नाम लेकर उनको ज़िब्ह करें।
ثُمَّ لۡيَقۡضُواْ تَفَثَهُمۡ وَلۡيُوفُواْ نُذُورَهُمۡ وَلۡيَطَّوَّفُواْ بِٱلۡبَيۡتِ ٱلۡعَتِيقِ 29
फिर उन्हें चाहिए कि अपना मैल-कुचैल दूर करें और अपनी मन्नतें पूरी करें और इस पुरातन घर (काबा) का तवाफ़ (परिक्रमा) करें॥29॥
ذَٰلِكَۖ وَمَن يُعَظِّمۡ حُرُمَٰتِ ٱللَّهِ فَهُوَ خَيۡرٞ لَّهُۥ عِندَ رَبِّهِۦۗ وَأُحِلَّتۡ لَكُمُ ٱلۡأَنۡعَٰمُ إِلَّا مَا يُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡۖ فَٱجۡتَنِبُواْ ٱلرِّجۡسَ مِنَ ٱلۡأَوۡثَٰنِ وَٱجۡتَنِبُواْ قَوۡلَ ٱلزُّورِ 30
इन बातों का ध्यान रखो, और जो कोई अल्लाह द्वारा निर्धारित मर्यादाओं का आदर करे तो यह उसके रब के यहाँ उसी के लिए अच्छा है। और तुम्हारे लिए चौपाए हलाल (वैध) हैं, सिवाय उनके जो तुम्हें बताए गए हैं। तो बुतों की गन्दगी से बचो और बचो झूठी बात से ॥30॥
حُنَفَآءَ لِلَّهِ غَيۡرَ مُشۡرِكِينَ بِهِۦۚ وَمَن يُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَكَأَنَّمَا خَرَّ مِنَ ٱلسَّمَآءِ فَتَخۡطَفُهُ ٱلطَّيۡرُ أَوۡ تَهۡوِي بِهِ ٱلرِّيحُ فِي مَكَانٖ سَحِيقٖ 31
इस तरह कि अल्लाह ही की ओर के होकर रहो। उसके साथ किसी को साझी न ठहराओ, क्योंकि जो कोई अल्लाह के साथ साझी ठहराता है तो मानो वह आकाश से गिर पड़ा। फिर चाहे उसे पक्षी उचक ले जाएँ या वायु उसे किसी दूरवर्ती स्थान पर फेंक दे॥31॥
ذَٰلِكَۖ وَمَن يُعَظِّمۡ شَعَٰٓئِرَ ٱللَّهِ فَإِنَّهَا مِن تَقۡوَى ٱلۡقُلُوبِ 32
इन बातों का ख़याल रखो। और जो कोई अल्लाह की निशानियों का आदर करे, तो निस्संदेह वे (चीज़ें) दिलों के तक़वा (धर्मपरायणता) से सम्बन्ध रखती हैं॥32॥
لَكُمۡ فِيهَا مَنَٰفِعُ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى ثُمَّ مَحِلُّهَآ إِلَى ٱلۡبَيۡتِ ٱلۡعَتِيقِ 33
उनमें एक निश्चित समय तक तुम्हारे लिए फ़ायदे हैं। फिर उनको उस पुरातन घर तक (क़ुरबानी के लिए) पहुँचना है॥33॥
وَلِكُلِّ أُمَّةٖ جَعَلۡنَا مَنسَكٗا لِّيَذۡكُرُواْ ٱسۡمَ ٱللَّهِ عَلَىٰ مَا رَزَقَهُم مِّنۢ بَهِيمَةِ ٱلۡأَنۡعَٰمِۗ فَإِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞ فَلَهُۥٓ أَسۡلِمُواْۗ وَبَشِّرِ ٱلۡمُخۡبِتِينَ 34
और प्रत्येक समुदाय के लिए हमने क़ुरबानी का विधान किया, ताकि वे उन जानवरों अर्थात् मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें जो उसने उन्हें प्रदान किए हैं। अतः तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है। तो उसी के आज्ञाकारी बनकर रहो और विनम्रता अपनानेवालों को शुभ सूचना दे दो॥34॥
ٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَجِلَتۡ قُلُوبُهُمۡ وَٱلصَّٰبِرِينَ عَلَىٰ مَآ أَصَابَهُمۡ وَٱلۡمُقِيمِي ٱلصَّلَوٰةِ وَمِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ يُنفِقُونَ 35
ये वे लोग हैं कि जब अल्लाह को याद किया जाता है तो उनके दिल दहल जाते हैं और जो मुसीबत उनपर आती है उसपर धैर्य से काम लेते हैं और नमाज़ को क़ायम करते हैं, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं॥35॥
وَٱلۡبُدۡنَ جَعَلۡنَٰهَا لَكُم مِّن شَعَٰٓئِرِ ٱللَّهِ لَكُمۡ فِيهَا خَيۡرٞۖ فَٱذۡكُرُواْ ٱسۡمَ ٱللَّهِ عَلَيۡهَا صَوَآفَّۖ فَإِذَا وَجَبَتۡ جُنُوبُهَا فَكُلُواْ مِنۡهَا وَأَطۡعِمُواْ ٱلۡقَانِعَ وَٱلۡمُعۡتَرَّۚ كَذَٰلِكَ سَخَّرۡنَٰهَا لَكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ 36
(क़ुरबानी के) ऊँटों को हमने तुम्हारे लिए अल्लाह की निशानियों में से बनाया है। तुम्हारे लिए उनमें भलाई है। अतः खड़ा करके उनपर अल्लाह का नाम लो। फिर जब उनके पहलू भूमि से आ लगें तो उनमें से स्वयं भी खाओ और संतोष से बैठनेवालों को भी खिलाओ और माँगनेवालों को भी। ऐसा ही करो। हमने उनको तुम्हारे अधिकार में दे दिया है ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ॥36॥
لَن يَنَالَ ٱللَّهَ لُحُومُهَا وَلَا دِمَآؤُهَا وَلَٰكِن يَنَالُهُ ٱلتَّقۡوَىٰ مِنكُمۡۚ كَذَٰلِكَ سَخَّرَهَا لَكُمۡ لِتُكَبِّرُواْ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَىٰكُمۡۗ وَبَشِّرِ ٱلۡمُحۡسِنِينَ 37
न उनके माँस अल्लाह को पहुँचते है और न उनके रक्त। किन्तु उसे तुम्हारा तक़वा (धर्मपरायणता) पहुँचता है। इस प्रकार उसने उन्हें तुम्हारे अधिकार में दे दिया है, ताकि तुम अल्लाह की बड़ाई बयान करो इसपर कि उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया, और सुकर्मियों को शुभ-सूचना दे दो॥37॥
۞إِنَّ ٱللَّهَ يُدَٰفِعُ عَنِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ خَوَّانٖ كَفُورٍ 38
निश्चय ही अल्लाह उन लोगों की ओर से प्रतिरक्षा करता है जो ईमान लाए। निस्संदेह अल्लाह किसी विश्वासघाती, अकृतज्ञ को पसन्द नहीं करता॥38॥
أُذِنَ لِلَّذِينَ يُقَٰتَلُونَ بِأَنَّهُمۡ ظُلِمُواْۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ نَصۡرِهِمۡ لَقَدِيرٌ 39
सुन ली गई उनकी बात जिनके विरुद्ध युद्ध किया जा रहा है, क्योंकि उनपर ज़ुल्म किया गया — और निश्चय ही अल्लाह उनकी सहायता की पूरी सामर्थ्य रखता है। — ॥39॥
ٱلَّذِينَ أُخۡرِجُواْ مِن دِيَٰرِهِم بِغَيۡرِ حَقٍّ إِلَّآ أَن يَقُولُواْ رَبُّنَا ٱللَّهُۗ وَلَوۡلَا دَفۡعُ ٱللَّهِ ٱلنَّاسَ بَعۡضَهُم بِبَعۡضٖ لَّهُدِّمَتۡ صَوَٰمِعُ وَبِيَعٞ وَصَلَوَٰتٞ وَمَسَٰجِدُ يُذۡكَرُ فِيهَا ٱسۡمُ ٱللَّهِ كَثِيرٗاۗ وَلَيَنصُرَنَّ ٱللَّهُ مَن يَنصُرُهُۥٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ 40
ये वे लोग हैं जो अपने घरों से नाहक़ निकाले गए, केवल इसलिए कि वे कहते हैं कि "हमारा रब अल्लाह है।" यदि अल्लाह लोगों को एक-दूसरे के द्वारा हटाता न रहता तो मठ और गिरजा और यहूदी प्रार्थना-भवन और मस्जिदें, जिनमें अल्लाह का अधिक नाम लिया जाता है, सब ढहा दी जातीं। अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा, जो उसकी सहायता करेगा — निश्चय ही अल्लाह बड़ा बलवान, प्रभुत्वशाली है। —॥40॥
ٱلَّذِينَ إِن مَّكَّنَّٰهُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُاْ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَمَرُواْ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَنَهَوۡاْ عَنِ ٱلۡمُنكَرِۗ وَلِلَّهِ عَٰقِبَةُ ٱلۡأُمُورِ 41
ये वे लोग हैं कि यदि धरती में हम उन्हें सत्ता प्रदान करें तो वे नमाज़ का आयोजन करेंगे और ज़कात देंगे और भलाई का आदेश करेंगे और बुराई से रोकेंगे। और सब मामलों का अन्तिम परिणाम अल्लाह ही के हाथ में है॥41॥
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدۡ كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ وَعَادٞ وَثَمُودُ 42
यदि वे तुम्हें झुठलाते हैं तो उनसे पहले नूह की क़ौम, आद और समूद ॥42॥
وَقَوۡمُ إِبۡرَٰهِيمَ وَقَوۡمُ لُوطٖ 43
और इबराहीम की क़ौम, और लूत की क़ौम ॥43॥
وَأَصۡحَٰبُ مَدۡيَنَۖ وَكُذِّبَ مُوسَىٰۖ فَأَمۡلَيۡتُ لِلۡكَٰفِرِينَ ثُمَّ أَخَذۡتُهُمۡۖ فَكَيۡفَ كَانَ نَكِيرِ 44
और मदयनवाले भी झुठला चुके हैं और मूसा को भी झुठलाया जा चुका है। किन्तु मैंने इनकार करनेवालों को मुहलत दी, फिर उन्हें पकड़ लिया। तो कैसी रही मेरी सज़ा!॥44॥
فَكَأَيِّن مِّن قَرۡيَةٍ أَهۡلَكۡنَٰهَا وَهِيَ ظَالِمَةٞ فَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا وَبِئۡرٖ مُّعَطَّلَةٖ وَقَصۡرٖ مَّشِيدٍ 45
कितनी ही बस्तियाँ हैं जिन्हें हमने विनष्ट कर दिया इस दशा में कि वे ज़ालिम थीं, तो वे अपनी छतों के बल गिरी पड़ी हैं। और कितने ही परित्यक्त (उजाड़) कुएँ पड़े हैं और कितने ही पक्के महल भी!॥45॥
أَفَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَتَكُونَ لَهُمۡ قُلُوبٞ يَعۡقِلُونَ بِهَآ أَوۡ ءَاذَانٞ يَسۡمَعُونَ بِهَاۖ فَإِنَّهَا لَا تَعۡمَى ٱلۡأَبۡصَٰرُ وَلَٰكِن تَعۡمَى ٱلۡقُلُوبُ ٱلَّتِي فِي ٱلصُّدُورِ 46
क्या वे धरती में चले फिरे नहीं हैं कि उनके दिल होते जिनसे वे समझते या (कम से कम) कान होते जिनसे वे सुनते? बात यह है कि आँखें अंधी नहीं हो जातीं, बल्कि वे दिल अंधे हो जाते हैं जो सीनों में होते हैं॥46॥
وَيَسۡتَعۡجِلُونَكَ بِٱلۡعَذَابِ وَلَن يُخۡلِفَ ٱللَّهُ وَعۡدَهُۥۚ وَإِنَّ يَوۡمًا عِندَ رَبِّكَ كَأَلۡفِ سَنَةٖ مِّمَّا تَعُدُّونَ 47
और वे तुमसे यातना के लिए जल्दी मचा रहे हैं! अल्लाह कदापि अपने वादे के विरुद्ध न करेगा। किन्तु तुम्हारे रब के यहाँ एक दिन तुम्हारी गणना के अनुसार एक हजार वर्ष जैसा है॥47॥
وَكَأَيِّن مِّن قَرۡيَةٍ أَمۡلَيۡتُ لَهَا وَهِيَ ظَالِمَةٞ ثُمَّ أَخَذۡتُهَا وَإِلَيَّ ٱلۡمَصِيرُ 48
कितनी ही बस्तियाँ है जिनको मैंने मुहलत दी इस दशा में कि वे ज़ालिम थीं। फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया और अन्ततः आना तो मेरी ही ओर है॥48॥
قُلۡ يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّمَآ أَنَا۠ لَكُمۡ نَذِيرٞ مُّبِينٞ 49
कह दो, "ऐ लोगो! मैं तो तुम्हारे लिए बस एक साफ़-साफ़ सचेत करनेवाला हूँ।"॥49॥
فَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَرِزۡقٞ كَرِيمٞ 50
फिर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए क्षमादान और सम्मानपूर्वक आजीविका है॥50॥
وَٱلَّذِينَ سَعَوۡاْ فِيٓ ءَايَٰتِنَا مُعَٰجِزِينَ أُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَحِيمِ 51
किन्तु जिन लोगों ने हमारी आयतों को नीचा दिखाने की कोशिश की, वही भड़कती आगवाले हैं॥51॥
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ مِن رَّسُولٖ وَلَا نَبِيٍّ إِلَّآ إِذَا تَمَنَّىٰٓ أَلۡقَى ٱلشَّيۡطَٰنُ فِيٓ أُمۡنِيَّتِهِۦ فَيَنسَخُ ٱللَّهُ مَا يُلۡقِي ٱلشَّيۡطَٰنُ ثُمَّ يُحۡكِمُ ٱللَّهُ ءَايَٰتِهِۦۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ 52
तुमसे पहले जो रसूल और नबी भी हमने भेजा, तो जब भी उसने कोई कामना की तो शैतान ने उसकी कामना में विघ्न डाला। इस प्रकार जो कुठ भी शैतान विघ्न डालता है, अल्लाह उसे मिटा देता है।2 फिर अल्लाह अपनी आयतों को सुदृढ़ कर देता है। — अल्लाह सर्वज्ञ, बड़ा तत्वदर्शी है। —॥52॥
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2. हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से पहले पैग़म्बरी की शिक्षाओं में लोगों ने शैतान के बहकावे में आकर बहुत-सी ग़लत बातें सम्मिलित कर दीं, विशेष रूप से यहूदियों और बहुदेववादी जातियों ने ऐसी ही हरकतें की हैं। जब क़ुरआन अवतरित हुआ तो उसने ऐसी सभी ग़लत और गुमराही की बातों का खण्डन करके नबियों की वास्तविक शिक्षाओं को स्पष्ट कर दिया।
لِّيَجۡعَلَ مَا يُلۡقِي ٱلشَّيۡطَٰنُ فِتۡنَةٗ لِّلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ وَٱلۡقَاسِيَةِ قُلُوبُهُمۡۗ وَإِنَّ ٱلظَّٰلِمِينَ لَفِي شِقَاقِۭ بَعِيدٖ 53
ताकि शैतान के डाले हुए विघ्न को उन लोगों के लिए आज़माइश बना दे जिनके दिलों में रोग है और जिनके दिल कठोर हैं। — निस्संदेह ज़ालिम परले दर्ज के विरोध में ग्रस्त हैं। —॥53॥
وَلِيَعۡلَمَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَيُؤۡمِنُواْ بِهِۦ فَتُخۡبِتَ لَهُۥ قُلُوبُهُمۡۗ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَهَادِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ 54
और ताकि वे लोग जिन्हें ज्ञान मिला है, जान लें कि यह तुम्हारे रब की ओर से सत्य है। अतः वे इसपर ईमान लाएँ और उसके सामने उनके दिल झुक जाएँ, और निश्चय ही अल्लाह ईमान लानेवालों को अवश्य सीधा मार्ग दिखाता है॥54॥
وَلَا يَزَالُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي مِرۡيَةٖ مِّنۡهُ حَتَّىٰ تَأۡتِيَهُمُ ٱلسَّاعَةُ بَغۡتَةً أَوۡ يَأۡتِيَهُمۡ عَذَابُ يَوۡمٍ عَقِيمٍ 55
जिन लोगों ने इनकार किया वे सदैव इसकी ओर से संदेह में पड़े रहेंगे, यहाँ तक कि क़ियामत की घड़ी अचानक उनपर आ जाए या एक अशुभ दिन की यातना उनपर आ पहुँचे॥55॥
ٱلۡمُلۡكُ يَوۡمَئِذٖ لِّلَّهِ يَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡۚ فَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فِي جَنَّٰتِ ٱلنَّعِيمِ 56
उस दिन बादशाही अल्लाह ही की होगी। वह उनके बीच फ़ैसला कर देगा। अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे नेमत भरी जन्नतों में होंगे॥56॥
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا فَأُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ 57
और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, उनके लिए अपमानजनक यातना है॥57॥
وَٱلَّذِينَ هَاجَرُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ ثُمَّ قُتِلُوٓاْ أَوۡ مَاتُواْ لَيَرۡزُقَنَّهُمُ ٱللَّهُ رِزۡقًا حَسَنٗاۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَهُوَ خَيۡرُ ٱلرَّٰزِقِينَ 58
और जिन लोगों ने अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़ा, फिर मारे गए या मर गए, अल्लाह अवश्य उन्हें अच्छी आजीविका प्रदान करेगा। और निस्संदेह अल्लाह ही उत्तम आजीविका प्रदान करनेवाला है॥58॥
لَيُدۡخِلَنَّهُم مُّدۡخَلٗا يَرۡضَوۡنَهُۥۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَعَلِيمٌ حَلِيمٞ 59
वह उन्हें ऐसी जगह दाख़िल करेगा जिससे वे प्रसन्न हो जाएँगे। और निश्चय ही अल्लाह सर्वज्ञ, अत्यन्त सहनशील है॥59॥
۞ذَٰلِكَۖ وَمَنۡ عَاقَبَ بِمِثۡلِ مَا عُوقِبَ بِهِۦ ثُمَّ بُغِيَ عَلَيۡهِ لَيَنصُرَنَّهُ ٱللَّهُۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَعَفُوٌّ غَفُورٞ 60
यह बात तो सुन ली। और जो कोई बदला ले, वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया और फिर उसपर ज़्यादती की गई, तो अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा। निश्चय ही अल्लाह दरगुज़र करनेवाला (छोड़ देनेवाला), बहुत क्षमाशील है॥60॥
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ يُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِ وَأَنَّ ٱللَّهَ سَمِيعُۢ بَصِيرٞ 61
यह इसलिए कि अल्लाह ही है जो रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में पिरोता हुआ ले आता है। और यह कि अल्लाह सुनता, देखता है॥61॥
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ هُوَ ٱلۡبَٰطِلُ وَأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡعَلِيُّ ٱلۡكَبِيرُ 62
यह इसलिए भी कि अल्लाह ही सत्य है और जिसे वे उसको छोड़कर पुकारते हैं वे सब असत्य हैं, और यह कि अल्लाह ही सर्वोच्च, महान है॥62॥
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَتُصۡبِحُ ٱلۡأَرۡضُ مُخۡضَرَّةًۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٞ 63
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह आकाश से पानी बरसाता है तो धरती हरी-भरी हो जाती है? निस्संदेह अल्लाह सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है॥63॥
لَّهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَهُوَ ٱلۡغَنِيُّ ٱلۡحَمِيدُ 64
उसी का है जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है। निस्संदेह अल्लाह ही निस्पृह प्रशंसनीय है॥64॥
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَٱلۡفُلۡكَ تَجۡرِي فِي ٱلۡبَحۡرِ بِأَمۡرِهِۦ وَيُمۡسِكُ ٱلسَّمَآءَ أَن تَقَعَ عَلَى ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا بِإِذۡنِهِۦٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِٱلنَّاسِ لَرَءُوفٞ رَّحِيمٞ 65
क्या तुमने देखा नहीं कि धरती में जो कुछ भी है उसे अल्लाह ने तुम्हारे अधिकार में दे रखा है, और नौका को भी कि उसके आदेश से दरिया में चलती है, और उसने आकाश को धरती पर गिरने से रोक रखा है। उसकी अनुज्ञा हो तो बात दूसरी है। निस्संदेह अल्लाह लोगों के हक़ में बड़ा करुणाशील, दयावान है॥65॥
وَهُوَ ٱلَّذِيٓ أَحۡيَاكُمۡ ثُمَّ يُمِيتُكُمۡ ثُمَّ يُحۡيِيكُمۡۗ إِنَّ ٱلۡإِنسَٰنَ لَكَفُورٞ 66
और वही है जिसने तुम्हें जीवन प्रदान किया, फिर वही तुम्हें मृत्यु देता है और फिर वही तुम्हें जीवित करनेवाला है। निस्संदेह इनसान बड़ा ही अकृतज्ञ है॥66॥
لِّكُلِّ أُمَّةٖ جَعَلۡنَا مَنسَكًا هُمۡ نَاسِكُوهُۖ فَلَا يُنَٰزِعُنَّكَ فِي ٱلۡأَمۡرِۚ وَٱدۡعُ إِلَىٰ رَبِّكَۖ إِنَّكَ لَعَلَىٰ هُدٗى مُّسۡتَقِيمٖ 67
प्रत्येक समुदाय के लिए हमने बन्दगी की एक रीति निर्धारित कर दी है, जिसका पालन उसके लोग करते हैं। अतः इस मामले में वे तुमसे झगड़ने की राह न पाएँ। तुम तो अपने रब की ओर बुलाए जाओ। निस्संदेह तुम सीधे मार्ग पर हो॥67॥
وَإِن جَٰدَلُوكَ فَقُلِ ٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا تَعۡمَلُونَ 68
और यदि वे तुमसे झगड़ा करें तो कह दो कि "तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है॥68॥
ٱللَّهُ يَحۡكُمُ بَيۡنَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ فِيمَا كُنتُمۡ فِيهِ تَخۡتَلِفُونَ 69
अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच उस चीज़ का फ़ैसला कर देगा जिसमें तुम विभेद करते हो।"॥69॥
أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّ ذَٰلِكَ فِي كِتَٰبٍۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٞ 70
क्या तुम्हें नहीं मालूम कि अल्लाह जानता है जो कुछ आकाश और धरती में हैं? निश्चय ही वह (लोगों का कर्म) एक किताब में अंकित है। निस्संदेह वह (फ़ैसला करना) अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है॥70॥
وَيَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَمۡ يُنَزِّلۡ بِهِۦ سُلۡطَٰنٗا وَمَا لَيۡسَ لَهُم بِهِۦ عِلۡمٞۗ وَمَا لِلظَّٰلِمِينَ مِن نَّصِيرٖ 71
और वे अल्लाह को छोड़कर उनकी बन्दगी करते हैं जिनके लिए न तो उसने कोई प्रमाण उतारा और न उन्हें उनके विषय में कोई ज्ञान ही है। और इन ज़ालिमों क कोई सहायक नहीं॥71॥
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُنَا بَيِّنَٰتٖ تَعۡرِفُ فِي وُجُوهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلۡمُنكَرَۖ يَكَادُونَ يَسۡطُونَ بِٱلَّذِينَ يَتۡلُونَ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتِنَاۗ قُلۡ أَفَأُنَبِّئُكُم بِشَرّٖ مِّن ذَٰلِكُمُۚ ٱلنَّارُ وَعَدَهَا ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ 72
और जब उन्हें हमारी स्पष्ट आयतें सुनाई जाती हैं तो इनकार करनेवालों के चेहरों पर तुम्हें नागवारी प्रतीत होती है। लगता है कि अभी वे उन लोगों पर टूट पड़ेंगे जो उन्हें हमारी आयतें सुनाते हैं। कह दो, "क्या मैं तुम्हें इससे बुरी चीज़ की ख़बर दूँ? आग है वह -—अल्लाह ने इनकार करनेवालों से उसी का वादा कर रखा है — और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है।"॥72॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ضُرِبَ مَثَلٞ فَٱسۡتَمِعُواْ لَهُۥٓۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَن يَخۡلُقُواْ ذُبَابٗا وَلَوِ ٱجۡتَمَعُواْ لَهُۥۖ وَإِن يَسۡلُبۡهُمُ ٱلذُّبَابُ شَيۡـٔٗا لَّا يَسۡتَنقِذُوهُ مِنۡهُۚ ضَعُفَ ٱلطَّالِبُ وَٱلۡمَطۡلُوبُ 73
ऐ लोगो! एक मिसाल पेश की जाती है, उसे ध्यान से सुनो। अल्लाह से हटकर तुम जिन्हें पुकारते हो वे एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते। यद्यपि इसके लिए वे सब इकट्ठे हो जाएँ और यदि मक्खी उनसे कोई चीज़ छीन ले जाए तो उससे वे उसको छुड़ा भी नहीं सकते। बेबस और असहाय रहा चाहनेवाला भी (उपासक) और उसका अभीष्ट (उपास्य) भी।3॥73॥
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3. बेबस रहा कि अपने उपास्य को न पा सका।
مَا قَدَرُواْ ٱللَّهَ حَقَّ قَدۡرِهِۦٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ 74
उन्होंने अल्लाह की क़द्र ही नहीं पहचानी जैसी कि उसकी क़द्र पहचाननी चाहिए थी। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त बलवान, प्रभुत्वशाली है॥74॥
ٱللَّهُ يَصۡطَفِي مِنَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ رُسُلٗا وَمِنَ ٱلنَّاسِۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعُۢ بَصِيرٞ 75
अल्लाह फ़रिश्तों में से संदेशवाहक चुनता है, और मनुष्यों में से भी। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है॥75॥
يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ 76
वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते हैं॥76॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱرۡكَعُواْ وَٱسۡجُدُواْۤ وَٱعۡبُدُواْ رَبَّكُمۡ وَٱفۡعَلُواْ ٱلۡخَيۡرَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ۩ 77
ऐ ईमान लानेवालो! झुको और सजदा करो और अपने रब की बन्दगी करो और भलाई करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो॥77॥
وَجَٰهِدُواْ فِي ٱللَّهِ حَقَّ جِهَادِهِۦۚ هُوَ ٱجۡتَبَىٰكُمۡ وَمَا جَعَلَ عَلَيۡكُمۡ فِي ٱلدِّينِ مِنۡ حَرَجٖۚ مِّلَّةَ أَبِيكُمۡ إِبۡرَٰهِيمَۚ هُوَ سَمَّىٰكُمُ ٱلۡمُسۡلِمِينَ مِن قَبۡلُ وَفِي هَٰذَا لِيَكُونَ ٱلرَّسُولُ شَهِيدًا عَلَيۡكُمۡ وَتَكُونُواْ شُهَدَآءَ عَلَى ٱلنَّاسِۚ فَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱعۡتَصِمُواْ بِٱللَّهِ هُوَ مَوۡلَىٰكُمۡۖ فَنِعۡمَ ٱلۡمَوۡلَىٰ وَنِعۡمَ ٱلنَّصِيرُ 78
और परस्पर मिलकर जिहाद (जानतोड़ कोशिश) करो अल्लाह के मार्ग में, जैसा कि जिहाद का हक़ है। उसने तुम्हें चुन लिया है — और धर्म के मामले में तुमपर कोई तंगी और कठिनाई नहीं रखी। तुम्हारे बाप इबराहीम के पंथ को तुम्हारे लिए पसन्द किया। उसने इससे पहले तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी) रखा था और इस ध्येय से — ताकि रसूल तुमपर गवाह हो और तुम लोगों पर गवाह हो। अतः नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और अल्लाह को मज़बूती से पकड़े रहो। वही तुम्हारा संरक्षक है। तो क्या ही अच्छा संरक्षक है और क्या ही अच्छा सहायक!॥78॥