سُورَةُ الصَّافَّاتِ
37. अस-साफ़्फ़ात
(मक्का में उतरी, आयतें 182)
परिचय
नाम
पहली ही आयत के शब्द 'अस-साफ़्फात' (क़तार दर क़तार सफ़ (पंक्ति) बाँधनेवाले) से लिया गया है।
उतरने का समय
विषयों और शैली से पता चलता है कि यह सूरा शायद मक्की काल के मध्य में, बल्कि शायद इस मध्यकाल के भी अन्तिम समय में उतरी है। [जब विरोध पूर्णत: उग्र रूप धारण कर चुका था]।
विषय और वार्ता
उस समय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की तौहीद और आख़िरत की दावत का जवाब जिस तरह उपहास और हँसी-मज़ाक़ के साथ दिया जा रहा था और आपकी रिसालत के दावे को मानने से जिस तेज़ी के साथ इनकार किया जा रहा था, उसपर मक्का के काफ़िरों (इस्लाम-विरोधियों) को बड़े ज़ोरदार तरीक़े से सचेत किया गया है और अन्त में उन्हें साफ़-साफ़ ख़बरदार कर दिया गया है कि बहुत जल्द यही पैग़म्बर, जिसका तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो, तुम्हारे देखते-देखते तुमपर ग़ालिब आ जाएगा और तुम अल्लाह की फ़ौज को स्वयं अपने घर के आंगन में उतरा हुआ पाओगे (आयत 171-179)। यह नोटिस उस ज़माने में दिया गया था जब नबी (सल्ल०) की सफलता के चिह्न दूर-दूर तक कहीं नज़र न आते थे, बल्कि देखनेवाले तो यह समझ रहे थे कि यह आन्दोलन मक्का की घाटियों ही में दफ़न होकर रह जाएगा। लेकिन 15-16 साल से अधिक समय न बीता था कि मक्का की जीत के मौक़े पर ठीक वही कुछ पेश आ गया जिससे इनकारियों को सचेत किया गया था। चेतावनी के साथ-साथ अल्लाह ने इस सूरा में सत्य को अच्छी तरह समझाने और उसपर उभारने का हक़ भी पूरी तरह अदा कर दिया है। तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत के अक़ीदे की सत्यता पर संक्षेप में दिल में उतर जानेवाले तर्क दिए गए हैं। बहुदेववादियों की धारणाओं की आलोचना करके बताया गया है कि वे कैसी-कैसी बेकार बातों पर ईमान लाए बैठे हैं, इन गुमराहियों के बुरे नतीजों से आगाह किया है और यह भी बताया है कि ईमान और भले कामों के नतीजे कितने शानदार हैं। फिर [इसी सिलसिले में पिछले इतिहास की मिसालें दी हैं ] इस उद्देश्य से जो ऐतिहासिक वृत्तांतों का इस सूरा में वर्णन किया गया है, इनमें सबसे अधिक शिक्षाप्रद हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के पवित्र जीवन की यह महत्वपूर्ण घटना है कि वह अल्लाह का एक इशारा पाते ही अपने इकलौते बेटे को क़ुरबान करने पर तैयार हो गए थे। इसमें केवल कुरैश के उन इस्लाम विरोधियों ही के लिए सबक़ नहीं था जो हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के साथ अपने पारिवारिक संबंध पर गर्व किया करते फिरते थे, बल्कि उन मुसलमानों के लिए भी सबक़ था जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए थे। यह घटना सुनाकर उन्हें बता दिया गया कि इस्लाम की वास्तविकता और उसकी मूल आत्मा क्या है। सूरा की आख़िरी आयतें सिर्फ़ काफ़िरों (विधर्मियों) के लिए चेतावनी ही न थीं, बल्कि उन ईमानवालों के लिए विजयी और प्रभावी होने की शुभ-सूचना भी थीं, जो नबी (सल्ल०) के समर्थन और सहायता में अत्यंत हतोत्साहित कर देनेवाले हालात का मुक़ाबला कर रहे थे।
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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
وَٱلصَّٰٓفَّٰتِ صَفّٗا 1
गवाह है परा जमाकर पंक्तिबद्ध होनेवाले; ॥1॥
فَٱلزَّٰجِرَٰتِ زَجۡرٗا 2
फिर डाँटनेवाले; ॥2॥
فَٱلتَّٰلِيَٰتِ ذِكۡرًا 3
फिर यह ज़िक्र करनेवाले॥3॥
إِنَّ إِلَٰهَكُمۡ لَوَٰحِدٞ 4
कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला है।॥4॥
رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَرَبُّ ٱلۡمَشَٰرِقِ 5
वह आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है सबका रब है, और पूर्व दिशाओं का भी रब है।॥5॥
إِنَّا زَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِزِينَةٍ ٱلۡكَوَاكِبِ 6
हमने निकटवर्ती आकाश को अच्छे अलंकरण अर्थात् तारों से अलंकृत किया, (रात में मुसाफ़िरों को मार्ग दिखाने) ॥6॥
وَحِفۡظٗا مِّن كُلِّ شَيۡطَٰنٖ مَّارِدٖ 7
और प्रत्येक सरकश शैतान से सुरक्षित रखा है।॥7॥
لَّا يَسَّمَّعُونَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ ٱلۡأَعۡلَىٰ وَيُقۡذَفُونَ مِن كُلِّ جَانِبٖ 8
वे (शैतान) "मलए आला"1 की ओर कान नहीं लगा पाते और हर ओर से फेंक मारे जाते है, धुतकारने के लिए।॥8॥
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1. ऊपरी लोक के फ़रिश्तों का प्रतिष्ठित समूह।
دُحُورٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ وَاصِبٌ 9
और उनके लिए अनवरत यातना है।॥9॥
إِلَّا مَنۡ خَطِفَ ٱلۡخَطۡفَةَ فَأَتۡبَعَهُۥ شِهَابٞ ثَاقِبٞ 10
किन्तु यह और बात है कि कोई कुछ उचक ले, इस दशा में एक तेज़ दहकती उल्का ने उसे अपने पीछे कर लिया है।॥10॥
فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَهُمۡ أَشَدُّ خَلۡقًا أَم مَّنۡ خَلَقۡنَآۚ إِنَّا خَلَقۡنَٰهُم مِّن طِينٖ لَّازِبِۭ 11
अब उनसे पूछो कि उनके पैदा करने का काम अधिक कठिन है या उनका जिनको हमने पैदा किया। निस्सन्देह हमने उनको लेसदार मिट्टी से पैदा किया।॥11॥
بَلۡ عَجِبۡتَ وَيَسۡخَرُونَ 12
बल्कि तुम तो आश्चर्य में हो, और वे हैं कि मजा़क़ उडा रहे हैं।॥12॥
وَإِذَا ذُكِّرُواْ لَا يَذۡكُرُونَ 13
और जब उन्हें याद दिलाया जाता है तो वे याद नहीं करते,॥13॥
وَإِذَا رَأَوۡاْ ءَايَةٗ يَسۡتَسۡخِرُونَ 14
और जब कोई निशानी देखते हैं तो हँसी उड़ाते हैं॥14॥
وَقَالُوٓاْ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ مُّبِينٌ 15
और कहते हैं, "यह तो बस एक खुला जादू है।॥15॥
أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ 16
क्या जब हम मर चुके होंगे और मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे तो क्या फिर हम उठाए जाएँगे? ॥16॥
أَوَءَابَآؤُنَا ٱلۡأَوَّلُونَ 17
क्या और हमारे पहले के बाप-दादा भी?"॥17॥
قُلۡ نَعَمۡ وَأَنتُمۡ دَٰخِرُونَ 18
कह दो, "हाँ! और तुम अपमानित भी होगे।"॥18॥
فَإِنَّمَا هِيَ زَجۡرَةٞ وَٰحِدَةٞ فَإِذَا هُمۡ يَنظُرُونَ 19
वह तो बस एक झिड़की होगी, फिर क्या देखेंगे कि वे ताकने लगे हैं।॥19॥
وَقَالُواْ يَٰوَيۡلَنَا هَٰذَا يَوۡمُ ٱلدِّينِ 20
और वे कहेंगे, "ऐ अफ़सोस हमपर! यह तो बदले का दिन है।"॥20॥
هَٰذَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِ ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ 21
यह वही फ़ैसले का दिन है जिसे तुम झुठलाते रहे हो।॥21॥
۞ٱحۡشُرُواْ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ وَأَزۡوَٰجَهُمۡ وَمَا كَانُواْ يَعۡبُدُونَ 22
(कहा जाएगा,) "एकत्र करो उन लोगों को जिन्होंने ज़ुल्म किया और उनके जोड़ीदारों को भी, और उनको भी जिनकी अल्लाह से हटकर वे बन्दगी करते रहे हैं।।॥22॥
مِن دُونِ ٱللَّهِ فَٱهۡدُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلۡجَحِيمِ 23
फिर उन सबको भड़कती हुई आग की राह दिखाओ!"॥23॥
وَقِفُوهُمۡۖ إِنَّهُم مَّسۡـُٔولُونَ 24
और तनिक उन्हें ठहराओ, उनसे पूछना है, ॥24॥
مَا لَكُمۡ لَا تَنَاصَرُونَ 25
"तुम्हें क्या हो गया जो तुम एक-दूसरे की सहायता नहीं कर रहे हो?"॥25॥
بَلۡ هُمُ ٱلۡيَوۡمَ مُسۡتَسۡلِمُونَ 26
बल्कि वे तो आज बड़े आज्ञाकारी हो गए है॥26॥
وَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ 27
वे एक-दूसरे की ओर रुख़ करके पूछते हुए कहेंगे, ॥27॥
قَالُوٓاْ إِنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَأۡتُونَنَا عَنِ ٱلۡيَمِينِ 28
"तुम तो हमारे पास आते थे दाहिने से (और बाएँ से)"॥28॥
قَالُواْ بَل لَّمۡ تَكُونُواْ مُؤۡمِنِينَ 29
वे कहेंगे, "नहीं, बल्कि तुम स्वयं ही ईमानवाले न थे॥29॥
وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيۡكُم مِّن سُلۡطَٰنِۭۖ بَلۡ كُنتُمۡ قَوۡمٗا طَٰغِينَ 30
और हमारा तो तुमपर कोई ज़ोर न था, बल्कि तुम स्वयं ही सरकश लोग थे।॥30॥
فَحَقَّ عَلَيۡنَا قَوۡلُ رَبِّنَآۖ إِنَّا لَذَآئِقُونَ 31
अन्ततः हमपर हमारे रब की बात सत्यापित होकर रही। निस्सन्देह हमें (अपनी करतूत का) मजा़ चखना ही होगा,॥31॥
فَأَغۡوَيۡنَٰكُمۡ إِنَّا كُنَّا غَٰوِينَ 32
सो हमने तुम्हे बहकाया। निश्चय ही हम स्वयं बहके हुए थे।"॥32॥
فَإِنَّهُمۡ يَوۡمَئِذٖ فِي ٱلۡعَذَابِ مُشۡتَرِكُونَ 33
अतः वे सब उस दिन यातना में एक-दूसरे के सह-भागी होंगे।॥33॥
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَفۡعَلُ بِٱلۡمُجۡرِمِينَ 34
हम अपराधियों के साथ ऐसा ही किया करते हैं।॥34॥
إِنَّهُمۡ كَانُوٓاْ إِذَا قِيلَ لَهُمۡ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا ٱللَّهُ يَسۡتَكۡبِرُونَ 35
उनका हाल यह था कि जब उनसे कहा जाता कि "अल्लाह के सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं हैं।" तो वे घमंड में आ जाते थे॥35॥
وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِكُوٓاْ ءَالِهَتِنَا لِشَاعِرٖ مَّجۡنُونِۭ 36
और कहते थे, "क्या हम एक उन्मादी कवि के लिए अपने उपास्यों को छोड़ दें?"॥36॥
بَلۡ جَآءَ بِٱلۡحَقِّ وَصَدَّقَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ 37
"नहीं, बल्कि वह सत्य लेकर आया है और वह (पिछले) रसूलों की पुष्टि में है।।॥37॥
إِنَّكُمۡ لَذَآئِقُواْ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡأَلِيمِ 38
निश्चय ही तुम दुखद यातना का मज़ा चखोगे। —॥38॥
وَمَا تُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ 39
तुम बदला वही तो पाओगे जो तुम करते रहे हो।"॥39॥
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 40
अलबत्ता अल्लाह के उन बन्दों की बात और है जिनको उसने चुन लिया है।॥40॥
أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ رِزۡقٞ مَّعۡلُومٞ 41
वही लोग हैं जिनके लिए जानी-बूझी नियत रोज़ी है, ॥41॥
فَوَٰكِهُ وَهُم مُّكۡرَمُونَ 42
स्वादिष्ट फल।॥42॥
فِي جَنَّٰتِ ٱلنَّعِيمِ 43
और वे नेमत भरी जन्नतों॥43॥
عَلَىٰ سُرُرٖ مُّتَقَٰبِلِينَ 44
में सम्मानपूर्वक होंगे, तख़्तों पर आमने-सामने विराजमान होंगे;॥44॥
يُطَافُ عَلَيۡهِم بِكَأۡسٖ مِّن مَّعِينِۭ 45
उनके बीच विशुद्ध पेय का पात्र फिराया जाएगा, ॥45॥
بَيۡضَآءَ لَذَّةٖ لِّلشَّٰرِبِينَ 46
बिलकुल साफ़ उज्ज्वल, पीनेवालों के लिए सर्वथा स्वादिष्ट,॥46॥
لَا فِيهَا غَوۡلٞ وَلَا هُمۡ عَنۡهَا يُنزَفُونَ 47
न उसमें कोई ख़ुमार होगा और न वे उससे निढाल और मदहोश होंगे।॥47॥
وَعِندَهُمۡ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرۡفِ عِينٞ 48
और उनके पास निगाहें बचाए रखनेवाली, सुन्दर आँखोंवाली स्त्रियाँ होंगी, ॥48॥
كَأَنَّهُنَّ بَيۡضٞ مَّكۡنُونٞ 49
मानो वे सुरक्षित अंडे हैं।2 ॥49॥
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2. पाकदामन और सुन्दर स्त्रियों के लिए यह मिसाल अरब में प्रसिद्ध थी।
فَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ 50
फिर वे एक-दूसरे की ओर रुख़ करके आपस में पूछेंगे।॥50॥
قَالَ قَآئِلٞ مِّنۡهُمۡ إِنِّي كَانَ لِي قَرِينٞ 51
उनमें से एक कहनेवाला कहेगा, "मेरा एक साथी था;॥51॥
يَقُولُ أَءِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُصَدِّقِينَ 52
जो कहा करता था, क्या तुम भी पुष्टि करनेवालों में से हो?॥52॥
أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَدِينُونَ 53
क्या जब हम मर चुके होंगे और मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे तो क्या हम वास्तव में बदला पाएँगे?"॥53॥
قَالَ هَلۡ أَنتُم مُّطَّلِعُونَ 54
वह कहेगा, "क्या तुम झाँककर देखोगे?"॥54॥
فَٱطَّلَعَ فَرَءَاهُ فِي سَوَآءِ ٱلۡجَحِيمِ 55
फिर वह झाँकेगा तो उसे भड़कती हुई आग के बीच में देखेगा।॥55॥
قَالَ تَٱللَّهِ إِن كِدتَّ لَتُرۡدِينِ 56
कहेगा, "अल्लाह की क़सम! तुम तो मुझे तबाह ही करने को थे,॥56॥
وَلَوۡلَا نِعۡمَةُ رَبِّي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُحۡضَرِينَ 57
यदि मेरे रब की अनुकम्पा न होती तो अवश्य ही मैं भी पकड़कर हाज़िर किए गए लोगों में से होता।॥57॥
أَفَمَا نَحۡنُ بِمَيِّتِينَ 58
है ना अब ऐसा कि हम मरने के नहीं! ॥58॥
إِلَّا مَوۡتَتَنَا ٱلۡأُولَىٰ وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِينَ 59
हमें जो मृत्यु आनी थी वह बस पहले आ चुकी। और न हमें कोई यातना ही दी जाएगी!"॥59॥
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ 60
निश्चय ही यही बड़ी सफलता है।॥60॥
لِمِثۡلِ هَٰذَا فَلۡيَعۡمَلِ ٱلۡعَٰمِلُونَ 61
ऐसी किसी चीज़ के लिए कर्म करनेवालों को कर्म करना चाहिए।॥61॥
أَذَٰلِكَ خَيۡرٞ نُّزُلًا أَمۡ شَجَرَةُ ٱلزَّقُّومِ 62
क्या वह आतिथ्य अच्छा है या 'ज़क़्क़ूम'3 का वृक्ष?॥62॥
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3. अर्थात् थूहड़, सेंहुड़ या नागफनी का काँटेदार वृक्ष।
إِنَّا جَعَلۡنَٰهَا فِتۡنَةٗ لِّلظَّٰلِمِينَ 63
निश्चय ही हमने उस (वृक्ष) को ज़ालिमों के लिए परीक्षा बना दिया है।॥63॥
إِنَّهَا شَجَرَةٞ تَخۡرُجُ فِيٓ أَصۡلِ ٱلۡجَحِيمِ 64
वह एक वृक्ष है जो भड़कती हुई आग की तह से निकलता है।॥64॥
طَلۡعُهَا كَأَنَّهُۥ رُءُوسُ ٱلشَّيَٰطِينِ 65
उसके गाभे मानो शैतानों के सिर (साँपों के फन) हैं,॥65॥
فَإِنَّهُمۡ لَأٓكِلُونَ مِنۡهَا فَمَالِـُٔونَ مِنۡهَا ٱلۡبُطُونَ 66
तो वे उसे खाएँगे और उसी से पेट भरेंगे।॥66॥
ثُمَّ إِنَّ لَهُمۡ عَلَيۡهَا لَشَوۡبٗا مِّنۡ حَمِيمٖ 67
फिर उनके लिए उसपर खौलते हुए पानी का मिश्रण होगा।॥67॥
ثُمَّ إِنَّ مَرۡجِعَهُمۡ لَإِلَى ٱلۡجَحِيمِ 68
फिर उनकी वापसी भड़कती हुई आग की ओर होगी।॥68॥
إِنَّهُمۡ أَلۡفَوۡاْ ءَابَآءَهُمۡ ضَآلِّينَ 69
निश्चय ही उन्होंने अपने बाप-दादा को पथभ्रष्ट पाया।॥69॥
فَهُمۡ عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِمۡ يُهۡرَعُونَ 70
फिर वे उन्हीं के पद-चिन्हों पर दौड़ते रहे॥70॥
وَلَقَدۡ ضَلَّ قَبۡلَهُمۡ أَكۡثَرُ ٱلۡأَوَّلِينَ 71
और उनसे पहले भी पूर्ववर्ती लोगों में अधिकांश पथभ्रष्ट हो चुके हैं।॥71॥
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا فِيهِم مُّنذِرِينَ 72
हमने उनमें सचेत करनेवाले भेजे थे।॥72॥
فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُنذَرِينَ 73
तो अब देख लो उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ जिन्हें सचेत किया गया था।॥73॥
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 74
अलबत्ता अल्लाह के उन बन्दों की बात और है जिनको उसने चुन लिया है।॥74॥
وَلَقَدۡ نَادَىٰنَا نُوحٞ فَلَنِعۡمَ ٱلۡمُجِيبُونَ 75
नूह ने हमको पुकारा था, तो हम कैसे अच्छे हैं निवेदन स्वीकार करनेवाले!॥75॥
وَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ 76
हमने उसे और उसके लोगों को बड़ी घुटन और बेचैनी से छुटकारा दिया॥76॥
وَجَعَلۡنَا ذُرِّيَّتَهُۥ هُمُ ٱلۡبَاقِينَ 77
और हमने उसकी सन्तति (औलाद व अनुयायी) ही को बाक़ी रखा॥77॥
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ 78
और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका अच्छा ज़िक्र छोड़ा,॥78॥
سَلَٰمٌ عَلَىٰ نُوحٖ فِي ٱلۡعَٰلَمِينَ 79
कि "सलाम है नूह पर सम्पूर्ण संसारवालों में!"॥79॥
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 80
निस्सन्देह हम उत्तमकारों को ऐसा बदला देते हैं।॥80॥
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ 81
निश्चय ही वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था।॥81॥
ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ 82
फिर हमने दूसरों को डूबो दिया।॥82॥
۞وَإِنَّ مِن شِيعَتِهِۦ لَإِبۡرَٰهِيمَ 83
और इबराहीम भी उसी के सहधर्मियों में से था।॥83॥
إِذۡ جَآءَ رَبَّهُۥ بِقَلۡبٖ سَلِيمٍ 84
याद करो जब वह अपने रब के समक्ष भला-चंगा हृदय लेकर आया;॥84॥
إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَاذَا تَعۡبُدُونَ 85
जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "तुम किस चीज़ की पूजा करते हो?॥85॥
أَئِفۡكًا ءَالِهَةٗ دُونَ ٱللَّهِ تُرِيدُونَ 86
क्या अल्लाह से हटकर मनगढ़ंत उपास्यों को चाह रहे हो?॥86॥
فَمَا ظَنُّكُم بِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ 87
आख़िर सारे संसार के रब के विषय में तुम्हारा क्या गुमान है?"॥87॥
فَنَظَرَ نَظۡرَةٗ فِي ٱلنُّجُومِ 88
फिर उसने एक दृष्टि तारों पर डाली॥88॥
فَقَالَ إِنِّي سَقِيمٞ 89
और कहा, "मैं तो निढाल हूँ।"॥89॥
فَتَوَلَّوۡاْ عَنۡهُ مُدۡبِرِينَ 90
अतएव वे उसे छोड़कर चले गए,पीठ फेरकर।॥90॥
فَرَاغَ إِلَىٰٓ ءَالِهَتِهِمۡ فَقَالَ أَلَا تَأۡكُلُونَ 91
फिर वह आँख बचाकर उनके देवताओं की ओर गया और कहा, "क्या तुम खाते नहीं? ॥91॥
مَا لَكُمۡ لَا تَنطِقُونَ 92
तुम्हें क्या हुआ है कि तुम बोलते नहीं?"॥92॥
فَرَاغَ عَلَيۡهِمۡ ضَرۡبَۢا بِٱلۡيَمِينِ 93
फिर वह भरपूर हाथ मारते हुए उनपर पिल पड़ा।॥93॥
فَأَقۡبَلُوٓاْ إِلَيۡهِ يَزِفُّونَ 94
फिर वे लोग झपटते हुए उसकी ओर आए।॥94॥
قَالَ أَتَعۡبُدُونَ مَا تَنۡحِتُونَ 95
उसने कहा, "क्या तुम उनको पूजते हो जिन्हें स्वयं तराशते हो, ॥95॥
وَٱللَّهُ خَلَقَكُمۡ وَمَا تَعۡمَلُونَ 96
जबकि अल्लाह ने तुम्हे भी पैदा किया है और उनको भी, जिन्हें तुम बनाते हो?"॥96॥
قَالُواْ ٱبۡنُواْ لَهُۥ بُنۡيَٰنٗا فَأَلۡقُوهُ فِي ٱلۡجَحِيمِ 97
वे बोले, "उसके लिए एक मकान (अर्थात अग्निकुण्ड) तैयार करके उसे भड़कती आग में डाल दो!" ॥97॥
فَأَرَادُواْ بِهِۦ كَيۡدٗا فَجَعَلۡنَٰهُمُ ٱلۡأَسۡفَلِينَ 98
अतः उन्होंने उसके साथ एक चाल चलनी चाही, किन्तु हमने उन्हीं को नीचा दिखा दिया।॥98॥
وَقَالَ إِنِّي ذَاهِبٌ إِلَىٰ رَبِّي سَيَهۡدِينِ 99
उसने कहा, "मैं अपने रब की ओर जा रहा हूँ, वह मेरा मार्गदर्शन करेगा,॥99॥
رَبِّ هَبۡ لِي مِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ 100
"ऐ मेरे रब! मुझे कोई नेक संतान प्रदान कर।"॥100॥
فَبَشَّرۡنَٰهُ بِغُلَٰمٍ حَلِيمٖ 101
तो हमने उसे एक सहनशील पुत्र की शुभ सूचना दी।॥101॥
فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ ٱلسَّعۡيَ قَالَ يَٰبُنَيَّ إِنِّيٓ أَرَىٰ فِي ٱلۡمَنَامِ أَنِّيٓ أَذۡبَحُكَ فَٱنظُرۡ مَاذَا تَرَىٰۚ قَالَ يَٰٓأَبَتِ ٱفۡعَلۡ مَا تُؤۡمَرُۖ سَتَجِدُنِيٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلصَّٰبِرِينَ 102
फिर जब वह उसके साथ दौड़-धूप करने की अवस्था को पहुँचा तो उसने कहा, "ऐ मेरे प्रिय बेटे! मैं स्वप्न में देखता हूँ कि तुझे क़ुरबान कर रहा हूँ। तो अब देख, तेरा क्या विचार है?" उसने कहा, "ऐ मेरे बाप! जो कुछ आपको आदेश दिया जा रहा है उसे कर डालिए। अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान पाएँगे।"॥102॥
فَلَمَّآ أَسۡلَمَا وَتَلَّهُۥ لِلۡجَبِينِ 103
अन्ततः जब दोनों ने अपने आपको (अल्लाह के आगे) झुका दिया और उसने (इबाराहीम ने) उसे कनपटी के बल लिटा दिया (तो उस समय क्या दृश्य रहा होगा, सोचो!) ॥103॥
وَنَٰدَيۡنَٰهُ أَن يَٰٓإِبۡرَٰهِيمُ 104
और हमने उसे पुकारा, "ऐ इबराहीम! ॥104॥
قَدۡ صَدَّقۡتَ ٱلرُّءۡيَآۚ إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 105
तूने स्वप्न को सच कर दिखाया। निस्सन्देह हम उत्तमकारों को इसी प्रकार बदला देते है।"॥105॥
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡبَلَٰٓؤُاْ ٱلۡمُبِينُ 106
निस्सन्देह यह तो एक खुली हुई परीक्षा थी।॥106॥
وَفَدَيۡنَٰهُ بِذِبۡحٍ عَظِيمٖ 107
और हमने उसे (बेटे को) एक बड़ी क़ुरबानी के बदले में छुड़ा लिया,॥107॥
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ 108
और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका ज़िक्र छोड़ा, ॥108॥
سَلَٰمٌ عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ 109
कि "सलाम है इबराहीम पर।"॥109॥
كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 110
उत्तमकारों को हम ऐसा ही बदला देते हैं।॥110॥
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ 111
निश्चय ही वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था।॥111॥
وَبَشَّرۡنَٰهُ بِإِسۡحَٰقَ نَبِيّٗا مِّنَ ٱلصَّٰلِحِينَ 112
और हमने उसे इसहाक़ की शुभ सूचना दी, अच्छों में से एक नबी।॥112॥
وَبَٰرَكۡنَا عَلَيۡهِ وَعَلَىٰٓ إِسۡحَٰقَۚ وَمِن ذُرِّيَّتِهِمَا مُحۡسِنٞ وَظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ مُبِينٞ 113
और हमने उसे और इसहाक़ को बरकत दी। और उन दोनों की सन्तति में कोई तो उत्तमकार है और कोई अपने आप पर खुला ज़ुल्म करनेवाला।॥113॥
وَلَقَدۡ مَنَنَّا عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ 114
और हम मूसा और हारून पर भी उपकार कर चुके हैं॥114॥
وَنَجَّيۡنَٰهُمَا وَقَوۡمَهُمَا مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ 115
और हमने उन्हें और उनकी क़ौम को बड़ी घुटन और बेचैनी से छुटकारा दिया।॥115॥
وَنَصَرۡنَٰهُمۡ فَكَانُواْ هُمُ ٱلۡغَٰلِبِينَ 116
हमने उनकी सहायता की, तो वही प्रभावी रहे।॥116॥
وَءَاتَيۡنَٰهُمَا ٱلۡكِتَٰبَ ٱلۡمُسۡتَبِينَ 117
हमने उनको अत्यन्त स्पष्ट किताब प्रदान की।॥117॥
وَهَدَيۡنَٰهُمَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلۡمُسۡتَقِيمَ 118
और उन्हें सीधा मार्ग दिखाया।॥118॥
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِمَا فِي ٱلۡأٓخِرِينَ 119
और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उनका अच्छा ज़िक्र छोड़ा॥119॥
سَلَٰمٌ عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ 120
कि "सलाम है मूसा और हारून पर!"॥120॥
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 121
निस्सन्देह हम उत्तमकारों को ऐसा बदला देते हैं।॥121॥
إِنَّهُمَا مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ 122
निश्चय ही वे दोनों हमारे ईमानवाले बन्दों में से थे।॥122॥
وَإِنَّ إِلۡيَاسَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ 123
और निस्सन्देह इलयास भी रसूलों में से था।॥123॥
إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦٓ أَلَا تَتَّقُونَ 124
याद करो, जब उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?॥124॥
أَتَدۡعُونَ بَعۡلٗا وَتَذَرُونَ أَحۡسَنَ ٱلۡخَٰلِقِينَ 125
क्या तुम 'बअ्ल' (देवता) को पुकारते हो और सर्वोत्तम स्रष्टा को छोड़ देते हो; ॥125॥
ٱللَّهَ رَبَّكُمۡ وَرَبَّ ءَابَآئِكُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ 126
अपने रब और अपने अगले बाप-दादा के रब, अल्लाह को!"॥126॥
فَكَذَّبُوهُ فَإِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ 127
किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। सौ वे निश्चय ही पकड़कर हाज़िर किए जाएँगे।॥127॥
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 128
अल्लाह के बन्दों की बात और है जिनको उसने चुन लिया है।॥128॥
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ 129
और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका अच्छा ज़िक्र छोड़ा॥129॥
سَلَٰمٌ عَلَىٰٓ إِلۡ يَاسِينَ 130
कि "सलाम है इलयास पर!"॥130॥
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 131
निस्सन्देह हम उत्तमकारों को ऐसा ही बदला देते हैं।॥131॥
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ 132
निश्चय ही वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था।॥132॥
وَإِنَّ لُوطٗا لَّمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ 133
और निश्चय ही लूत भी रसूलों में से था।॥133॥
إِذۡ نَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥٓ أَجۡمَعِينَ 134
याद करो, जब हमने उसे और उसके सभी लोगों को बचा लिया, ॥134॥
إِلَّا عَجُوزٗا فِي ٱلۡغَٰبِرِينَ 135
सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में से थी।॥135॥
ثُمَّ دَمَّرۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ 136
फिर दूसरों को हमने तहस-नहस करके रख दिया।॥136॥
وَإِنَّكُمۡ لَتَمُرُّونَ عَلَيۡهِم مُّصۡبِحِينَ 137
और निस्सन्देह तुम उनपर (उनके क्षेत्र) से गुज़रते हो कभी सुबह करते हुए॥137॥
وَبِٱلَّيۡلِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ 138
और रात में भी। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?॥138॥
وَإِنَّ يُونُسَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ 139
और निस्सन्देह यूनुस भी रसूलो में से था।॥139॥
إِذۡ أَبَقَ إِلَى ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ 140
याद करो, जब वह भरी नौका की ओर भाग निकला, ॥140॥
فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ ٱلۡمُدۡحَضِينَ 141
फिर पर्ची डालने में शामिल हुआ और उसमें मात खाई,॥141॥
فَٱلۡتَقَمَهُ ٱلۡحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٞ 142
फिर उसे मछली ने निगल लिया और वह निन्दनीय दशा में ग्रस्त हो गया था।॥142॥
فَلَوۡلَآ أَنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلۡمُسَبِّحِينَ 143
अब यदि वह तसबीह करनेवाला न होता॥143॥
لَلَبِثَ فِي بَطۡنِهِۦٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ 144
तो उसी के भीतर उस दिन तक पड़ा रह जाता जबकि लोग उठाए जाएँगे।॥144॥
۞فَنَبَذۡنَٰهُ بِٱلۡعَرَآءِ وَهُوَ سَقِيمٞ 145
अन्ततः हमने उसे इस दशा में कि वह निढ़ाल था, साफ़ मैदान में डाल दिया।॥145॥
وَأَنۢبَتۡنَا عَلَيۡهِ شَجَرَةٗ مِّن يَقۡطِينٖ 146
हमने उसपर बेलदार वृक्ष उगाया था॥146॥
وَأَرۡسَلۡنَٰهُ إِلَىٰ مِاْئَةِ أَلۡفٍ أَوۡ يَزِيدُونَ 147
और हमने उसे एक लाख या उससे अधिक (लोगों) की ओर भेजा।॥147॥
فَـَٔامَنُواْ فَمَتَّعۡنَٰهُمۡ إِلَىٰ حِينٖ 148
फिर वे ईमान लाए तो हमने उन्हें एक अवधि तक सुख भोगने का अवसर दिया।॥148॥
فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَلِرَبِّكَ ٱلۡبَنَاتُ وَلَهُمُ ٱلۡبَنُونَ 149
अब उनसे पूछो, "क्या तुम्हारे रब के लिए तो बेटियाँ हों और उनके अपने लिए बेटे?॥149॥
أَمۡ خَلَقۡنَا ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ إِنَٰثٗا وَهُمۡ شَٰهِدُونَ 150
क्या हमने फ़रिश्तों को औरतें बनाया और यह उनकी आँखों देखी बात है?"॥150॥
أَلَآ إِنَّهُم مِّنۡ إِفۡكِهِمۡ لَيَقُولُونَ 151
सुन लो, निश्चय ही वे अपनी मनगढ़ंत कहते हैं॥151॥
وَلَدَ ٱللَّهُ وَإِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ 152
कि "अल्लाह के औलाद हुई है!" निश्चय ही वे झूठे हैं।॥152॥
أَصۡطَفَى ٱلۡبَنَاتِ عَلَى ٱلۡبَنِينَ 153
क्या उसने बेटों की अपेक्षा बेटियाँ चुन ली हैं? ॥153॥
مَا لَكُمۡ كَيۡفَ تَحۡكُمُونَ 154
तुम्हें क्या हो गया है? तुम कैसा फ़ैसला करते हो?॥154॥
أَفَلَا تَذَكَّرُونَ 155
तो क्या तुम होश से काम नहीं लेते?॥155॥
أَمۡ لَكُمۡ سُلۡطَٰنٞ مُّبِينٞ 156
क्या तुम्हारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण है? ॥156॥
فَأۡتُواْ بِكِتَٰبِكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ 157
तो लाओ अपनी किताब यदि तुम सच्चे हो।॥157॥
وَجَعَلُواْ بَيۡنَهُۥ وَبَيۡنَ ٱلۡجِنَّةِ نَسَبٗاۚ وَلَقَدۡ عَلِمَتِ ٱلۡجِنَّةُ إِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ 158
उन्होंने अल्लाह और जिन्नों के बीच नाता जोड़ रखा है, हालाँकि जिन्नों को भली-भाँति मालूम है कि वे अवश्य पकड़कर हाज़िर किए जाएँगे—॥158॥
سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ 159
महान और उच्च् है अल्लाह उससे जो वे बयान करते हैं। —॥159॥
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 160
अल्लाह के उन बन्दों की बात और है जिन्हें उसने चुन लिया।॥160॥
فَإِنَّكُمۡ وَمَا تَعۡبُدُونَ 161
अतः तुम और जिनको तुम पूजते हो वे, ॥161॥
مَآ أَنتُمۡ عَلَيۡهِ بِفَٰتِنِينَ 162
तुम सब अल्लाह के विरुद्ध किसी को बहका नहीं सकते,॥162॥
إِلَّا مَنۡ هُوَ صَالِ ٱلۡجَحِيمِ 163
सिवाय उसके जो जहन्न्म की भड़कती आग में पड़ने ही वाला हो।॥163॥
وَمَامِنَّآ إِلَّا لَهُۥ مَقَامٞ مَّعۡلُومٞ 164
और हमारी ओर से उसके लिए अनिवार्यतः एक ज्ञात और नियत स्थान है॥164॥
وَإِنَّا لَنَحۡنُ ٱلصَّآفُّونَ 165
और हम ही पंक्तिबद्ध करते हैं।॥165॥
وَإِنَّا لَنَحۡنُ ٱلۡمُسَبِّحُونَ 166
और हम ही महानता से अवगत कराते हैं।॥166॥
وَإِن كَانُواْ لَيَقُولُونَ 167
वे तो कहा करते थे कि, ॥167॥
لَوۡ أَنَّ عِندَنَا ذِكۡرٗا مِّنَ ٱلۡأَوَّلِينَ 168
"यदि हमारे पास पिछलों की कोई शिक्षा होती॥168॥
لَكُنَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 169
तो हम अल्लाह के चुने हुए बन्दे होते।"॥169॥
فَكَفَرُواْ بِهِۦۖ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ 170
किन्तु उन्होंने उसका इनकार कर दिया, तो अब जल्द ही वे जान लेंगे,॥170॥
وَلَقَدۡ سَبَقَتۡ كَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا ٱلۡمُرۡسَلِينَ 171
और हमारे अपने उन बन्दों के हक़ में, जो रसूल बनाकर भेजे गए, हमारी बात पहले ही निश्चित हो चुकी है॥171॥
إِنَّهُمۡ لَهُمُ ٱلۡمَنصُورُونَ 172
कि नियचय ही उन्हीं की सहायता की जाएगी।॥172॥
وَإِنَّ جُندَنَا لَهُمُ ٱلۡغَٰلِبُونَ 173
और निश्चय ही हमारी सेना ही प्रभावी रहेगी।॥173॥
فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ حِينٖ 174
अतः एक अवधि तक के लिए उनसे रुख़ फेर लो॥174॥
وَأَبۡصِرۡهُمۡ فَسَوۡفَ يُبۡصِرُونَ 175
और उन्हें देखते रहो। वे भी जल्द ही (अपना परिणाम) देख लेंगे।॥175॥
أَفَبِعَذَابِنَا يَسۡتَعۡجِلُونَ 176
क्या वे हमारी यातना के लिए जल्दी मचा रहे हैं?॥176॥
فَإِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمۡ فَسَآءَ صَبَاحُ ٱلۡمُنذَرِينَ 177
तो जब वह उनके आँगन में उतरेगी तो बड़ी ही बुरी सुबह होगी उन लोगों की जिन्हें सचेत किया जा चुका है!॥177॥
وَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ حِينٖ 178
एक अवधि तक के लिए उनसे रुख़ फेर लो॥178॥
وَأَبۡصِرۡ فَسَوۡفَ يُبۡصِرُونَ 179
और देखते रहो, वे जल्द ही देख लेंगे।॥179॥
سُبۡحَٰنَ رَبِّكَ رَبِّ ٱلۡعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ 180
महान और उच्च् है तुम्हारा रब, प्रताप का स्वामी, उन बातों से जो बयान करते है!॥180॥
وَسَلَٰمٌ عَلَى ٱلۡمُرۡسَلِينَ 181
और सलाम है रसूलों पर;॥181॥
وَٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ 182
औऱ सब प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के रब, के लिए है।॥182॥