سُورَةُ صٓ
38. सॉद
(मक्का में उतरी, आयतें 88)
परिचय
नाम
इस सूरा के शुरू ही के अक्षर 'सॉद' को इस सूरा का नाम दिया गया है।
उतरने का समय
जैसा की आगे चलकर बताया जाएगा कि कुछ रिवायतों के अनुसार यह सूरा उस समय उतरी थी, जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मक्का मुअज़्ज़मा में खुल्लम-खुल्ला दावत (आह्वान) का आरंभ किया था। कुछ दूसरी रिवायतें इसके उतरने को हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने के बाद की घटना बताती हैं। रिवायतों के एक और क्रम से मालूम होता है कि इसके उतरने का समय नुबूवत का दसवाँ या ग्यारहवाँ साल है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इमाम अहमद, नसई और तिर्मिज़ी आदि ने जो रिवायतें नक़्ल की हैं, उनका सारांश यह है कि जब अबू-तालिब बीमार हुए और कुरैश के सरदारों ने महसूस किया कि अब यह उनका अन्तिम समय है, तो उन्होंने आपस में मश्वरा किया कि चलकर उनसे बात करनी चाहिए। वे हमारा और अपने भतीजे का झगड़ा चुका जाएँ तो अच्छा हो। इस राय पर सब सहमत हो गए और क़ुरैश के लगभग पच्चीस सरदार, जिनमें अबू-जहल, अबू-सुफ़ियान, उमैया-बिन-ख़ल्फ़, आस-बिन-वाइल, अस्वद-बिन-मुत्तलिब, उक़बा-बिन-अबी-मुऐत, उतबा और शैबा शामिल थे, अबू-तालिब के पास पहुँचे। उन लोगों ने पहले तो अपनी सामान्य नीति के मुताबिक़ नबी (सल्ल०) के विरुद्ध अपनी शिकायतें बयान की, फिर कहा कि हम आपके सामने एक न्याय की बात रखने आए हैं। आपका भतीजा हमें हमारे दीन पर छोड़ दे और हम उसे उसके दीन पर छोड़ देते हैं, लेकिन वह हमारे उपास्यों का विरोध और उनकी निंदा न करे। इस शर्त पर आप हमसे उसका समझौता करा दें। अबू-तालिब ने नबी (सल्ल०) को बुलाया और आप (सल्ल०) को वह बात बताई जो क़ुरैश के सरदारों ने उनसे कही थी। नबी (सल्ल०) ने उत्तर में कहा, "चचा जान! मैं तो इनके सामने एक ऐसी बात पेश करता हूँ जिसे अगर ये मान लें तो अरब इनके अधीन हो जाए और ग़ैर-अरब इन्हें कर (Tax) देने लग जाएँ।" उन्होंने पूछा, “वह बात क्या है ?" आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, "ला इला-ह इल्लल्लाह" (नहीं है कोई उपास्य सिवाय अल्लाह के)। इसपर वे सब एक साथ उठ खड़े हुए और वे बातें कहते हुए निकल गए जो इस सूरा के शुरू के हिस्से में अल्लाह ने नक़्ल की हैं। इब्ने-सअद की रिवायत के अनुसार यह अबू-तालिब के मृत्यु-रोग की नहीं, बल्कि उस समय की घटना है, जब नबी (सल्ल०) ने सामान्य रूप से लोगों को सत्य की ओर बुलाना शुरू कर दिया था और मक्का में बराबर ये ख़बरें फ़ैलनी शुरू हो गई थीं कि आज फ़ुलाँ आदमी मुसलमान हो गया और कल फ़ुलाँ। ज़मख़शरी, राजी, नेशाबूरी (नेशापूरी) और कुछ दूसरे टीकाकार कहते हैं कि यह प्रतिनिधिमंडल अबूृ-तालिब के पास उस समय गया था जब हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने पर क़ुरैश के सरदार बौखला गए थे। (मानो यह हबशा की हिजरत के बाद की घटना है।)
विषय और वार्ता
ऊपर जिस बैठक का उल्लेख किया गया है, उसकी समीक्षा करते हुए इस सूरा की शुरुआत हुई है। इस्लाम विरोधियों और नबी (सल्ल०) की बातचीत को आधार बनाकर अल्लाह ने बताया है कि इन लोगों के इंकार का मूल कारण इस्लामी दावत की कोई कमी नहीं है, बल्कि उनका अपना घमंड, जलन और अंधी पैरवी पर दुराग्रह है। इसके बाद अल्लाह ने सूरा के शुरू के हिस्से में भी और आख़िरी वाक्यों में भी इस्लाम विरोधियों को साफ़-साफ़ चेतावनी दी है कि जिस आदमी का आज तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो, बहुत जल्द वही ग़ालिब आकर रहेगा, और वह समय दूर नहीं जब उसके आगे तुम सब नतमस्तक नज़र आओगे। फिर बराबर नौ पैग़म्बरों का उल्लेख करके, जिनमें हज़रत दाऊद और सुलैमान (अलैहि०) का क़िस्सा अधिक विस्तार से है, अल्लाह ने यह बात सुननेवालों के मन में बिठाई है कि उसके न्याय का क़ानून बिल्कुल बे-लाग है। ग़लत बात चाहे कोई भी करे, वह उसपर पकड़ करता है, और उसके यहाँ वही लोग पसन्द किए जाते हैं जो ग़लती पर हठ न करें, बल्कि उससे अवगत होते ही तौबा कर लें। इसके बाद आज्ञाकारी बन्दों और सरकश बन्दों के उस अंजाम का चित्र खींचा गया है जो वे परलोक में देखनेवाले हैं। अन्त में आदम (अलैहि०) और इबलीस के क़िस्से का उल्लेख किया गया है और उसका अभिप्राय क़ुरैश के इस्लाम विरोधियों को यह बताना है कि मुहम्मद (सल्ल.) के आगे झुकने से जो अहंकार तुम्हारे रास्ते की रुकावट बन रहा है, वही अहंकार आदम के आगे झुकने में इबलीस के लिए भी रुकावट बना था। इसलिए जो अंजाम इबलीस का होना है, वही अन्ततः तुम्हारा भी होना है।
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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
صٓۚ وَٱلۡقُرۡءَانِ ذِي ٱلذِّكۡرِ 1
सॅाद। क़सम है याददिहानी-वाले क़ुरआन की (जिसमें कोई कमी नहीं कि धर्म-विरोधी सत्य को न समझ सकें)॥1॥
بَلِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي عِزَّةٖ وَشِقَاقٖ 2
बल्कि जिन्होंने इनकार किया वे अहंकार और विरोध में पड़े हुए हैं॥2॥
كَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِن قَبۡلِهِم مِّن قَرۡنٖ فَنَادَواْ وَّلَاتَ حِينَ مَنَاصٖ 3
उनसे पहले हमने कितनी ही पीढ़ियों को विनष्ट किया तो वे लगे पुकारने! किन्तु वह समय हटने-बचने का न था।॥3॥
وَعَجِبُوٓاْ أَن جَآءَهُم مُّنذِرٞ مِّنۡهُمۡۖ وَقَالَ ٱلۡكَٰفِرُونَ هَٰذَا سَٰحِرٞ كَذَّابٌ 4
उन्होंने आश्चर्य किया इसपर कि उनके पास उन्हीं में से एक सचेतकर्ता आया और इनकार करनेवाले कहने लगे, "यह जादूगर है बड़ा झूठा॥4॥
أَجَعَلَ ٱلۡأٓلِهَةَ إِلَٰهٗا وَٰحِدًاۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيۡءٌ عُجَابٞ 5
क्या उसने सारे उपास्यों को अकेला एक उपास्य ठहरा दिया? निस्सन्देह यह तो बहुत अचम्भेवाली चीज़ है!"॥5॥
وَٱنطَلَقَ ٱلۡمَلَأُ مِنۡهُمۡ أَنِ ٱمۡشُواْ وَٱصۡبِرُواْ عَلَىٰٓ ءَالِهَتِكُمۡۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيۡءٞ يُرَادُ 6
और उनके सरदार (यह कहते हुए) चल खड़े हुए कि "चलते रहो और अपने उपास्यों पर जमे रहो। निस्सन्देह यह वांछिच चीज़ है॥6॥
مَا سَمِعۡنَا بِهَٰذَا فِي ٱلۡمِلَّةِ ٱلۡأٓخِرَةِ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا ٱخۡتِلَٰقٌ 7
यह बात तो हमने पिछले धर्म में सुनी ही नहीं। यह तो बस एक सोची समझी बात है।॥7॥
أَءُنزِلَ عَلَيۡهِ ٱلذِّكۡرُ مِنۢ بَيۡنِنَاۚ بَلۡ هُمۡ فِي شَكّٖ مِّن ذِكۡرِيۚ بَل لَّمَّا يَذُوقُواْ عَذَابِ 8
क्या हम सबमें से (चुनकर) इसी पर याददिहानी अवतरित हुई है?" नहीं, बल्कि वे मेरी याददिहानी के विषय में संदेह में हैं, बल्कि उन्होंने अभी तक मेरी यातना का मज़ा चखा ही नहीं है।॥8॥
أَمۡ عِندَهُمۡ خَزَآئِنُ رَحۡمَةِ رَبِّكَ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡوَهَّابِ 9
या तेरे प्रभुत्वशाली, बड़े दाता रब की दयालुता के ख़ज़ाने उनके पास हैं?॥9॥
أَمۡ لَهُم مُّلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَاۖ فَلۡيَرۡتَقُواْ فِي ٱلۡأَسۡبَٰبِ 10
या आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है, उन सबकी बादशाही उन्हीं की है? फिर तो चाहिए कि वे प्राप्त संसाधनों को काम में लाकर ऊपर चढ़ जाएँ।॥10॥
جُندٞ مَّا هُنَالِكَ مَهۡزُومٞ مِّنَ ٱلۡأَحۡزَابِ 11
वह एक साधारण सेना है (विनष्ट होनेवाले) दलों में से, वहाँ मात खाना जिसकी नियति है।॥11॥
كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ وَعَادٞ وَفِرۡعَوۡنُ ذُو ٱلۡأَوۡتَادِ 12
उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और मेख़ोंवाले फ़िरऔन ने झुठलाया॥12॥
وَثَمُودُ وَقَوۡمُ لُوطٖ وَأَصۡحَٰبُ لۡـَٔيۡكَةِۚ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلۡأَحۡزَابُ 13
और समूद और लूत की क़ौम और 'ऐकावाले' भी, ये हैं वे दल।॥13॥
إِن كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ ٱلرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ 14
उनमें से प्रत्येक ने रसूलों को झुठलाया, तो मेरी ओर से दण्ड अवश्यम्भावी होकर रहा।॥14॥
وَمَا يَنظُرُ هَٰٓؤُلَآءِ إِلَّا صَيۡحَةٗ وَٰحِدَةٗ مَّا لَهَا مِن فَوَاقٖ 15
इन्हें बस एक चीख़ की प्रतीक्षा है जिसमें तनिक भी अवकाश न होगा।॥15॥
وَقَالُواْ رَبَّنَا عَجِّل لَّنَا قِطَّنَا قَبۡلَ يَوۡمِ ٱلۡحِسَابِ 16
वे कहते हैं, "ऐ हमारे रब! हिसाब के दिन से पहले ही शीघ्र हमारा हिस्सा दे दे।"॥16॥
ٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَٱذۡكُرۡ عَبۡدَنَا دَاوُۥدَ ذَا ٱلۡأَيۡدِۖ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٌ 17
वे जो कुछ कहते हैं उसपर धैर्य से काम लो और ज़ोर व शक्तिवाले हमारे बन्दे दाऊद को याद करो। निश्चय ही वह (अल्लाह की ओर) बहुत रुजू करनेवाला था।॥17॥
إِنَّا سَخَّرۡنَا ٱلۡجِبَالَ مَعَهُۥ يُسَبِّحۡنَ بِٱلۡعَشِيِّ وَٱلۡإِشۡرَاقِ 18
हमने पर्वतों को उसके साथ वशीभूत कर दिया था कि सुबह और शाम तसबीह (महिमागान) करते रहें।॥18॥
وَٱلطَّيۡرَ مَحۡشُورَةٗۖ كُلّٞ لَّهُۥٓ أَوَّابٞ 19
और पक्षियों को भी, जो एकत्र हो जाते थे। प्रत्येक उसके आगे रुजू रहता।॥19॥
وَشَدَدۡنَا مُلۡكَهُۥ وَءَاتَيۡنَٰهُ ٱلۡحِكۡمَةَ وَفَصۡلَ ٱلۡخِطَابِ 20
हमने उसका राज्य सुदृढ़ कर दिया था, और उसे तत्वदर्शिता प्रदान की थी और निर्णायक बात कहने की क्षमता प्रदान की थी।॥20॥
۞وَهَلۡ أَتَىٰكَ نَبَؤُاْ ٱلۡخَصۡمِ إِذۡ تَسَوَّرُواْ ٱلۡمِحۡرَابَ 21
और क्या तुम्हें उन विवादियों की ख़बर पहुँची है? जब वे दीवार पर चढ़कर मेहराब (एकान्त कक्ष) में आ पहुँचे।॥21॥
إِذۡ دَخَلُواْ عَلَىٰ دَاوُۥدَ فَفَزِعَ مِنۡهُمۡۖ قَالُواْ لَا تَخَفۡۖ خَصۡمَانِ بَغَىٰ بَعۡضُنَا عَلَىٰ بَعۡضٖ فَٱحۡكُم بَيۡنَنَا بِٱلۡحَقِّ وَلَا تُشۡطِطۡ وَٱهۡدِنَآ إِلَىٰ سَوَآءِ ٱلصِّرَٰطِ 22
जब वे दाऊद के पास पहुँचे तो वह उनसे सहम गया। वे बोले कि "डरिए नहीं, हम दो विवादी हैं। हममें से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है; तो आप हमारे बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर दीजिए। और बात को दूर न डालिए और हमें ठीक मार्ग बता दीजिए।॥22॥
إِنَّ هَٰذَآ أَخِي لَهُۥ تِسۡعٞ وَتِسۡعُونَ نَعۡجَةٗ وَلِيَ نَعۡجَةٞ وَٰحِدَةٞ فَقَالَ أَكۡفِلۡنِيهَا وَعَزَّنِي فِي ٱلۡخِطَابِ 23
यह मेरा भाई है। इसके पास निन्यानवे दुंबियाँ हैं और मेरे पास एक दुंबी है। अब इसका कहना है कि ‘इसे भी मुझे सौंप दे’ और बातचीत में इसने मुझे दबा लिया।"॥23॥
قَالَ لَقَدۡ ظَلَمَكَ بِسُؤَالِ نَعۡجَتِكَ إِلَىٰ نِعَاجِهِۦۖ وَإِنَّ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلۡخُلَطَآءِ لَيَبۡغِي بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٍ إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَقَلِيلٞ مَّا هُمۡۗ وَظَنَّ دَاوُۥدُ أَنَّمَا فَتَنَّٰهُ فَٱسۡتَغۡفَرَ رَبَّهُۥ وَخَرَّۤ رَاكِعٗاۤ وَأَنَابَ۩ 24
उसने कहा, "इसने अपनी दुंबियों के साथ तेरी दुंबी को मिला लेने की माँग करके निश्चय ही तुझपर ज़ुल्म किया है। और निस्संदेह बहुत-से साथ मिलकर रहनेवाले एक-दूसरे पर ज़्यादती करते हैं, सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। किन्तु ऐसे लोग थोड़े ही हैं।" अब दाऊद समझ गया कि यह तो हमने उसे परीक्षा में डाला है। अतः उसने अपने रब से क्षमा-याचना की और झुककर (सीधे सजदे में) गिर पड़ा और रुजू हुआ।॥24॥
فَغَفَرۡنَا لَهُۥ ذَٰلِكَۖ وَإِنَّ لَهُۥ عِندَنَا لَزُلۡفَىٰ وَحُسۡنَ مَـَٔابٖ 25
तो हमने उसका वह क़ुसूर माफ़ कर दिया। और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः सामीप्य और उत्तम ठिकाना है।॥25॥
يَٰدَاوُۥدُ إِنَّا جَعَلۡنَٰكَ خَلِيفَةٗ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱحۡكُم بَيۡنَ ٱلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ ٱلۡهَوَىٰ فَيُضِلَّكَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَضِلُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدُۢ بِمَا نَسُواْ يَوۡمَ ٱلۡحِسَابِ 26
"ऐ दाऊद, हमने धरती में तुझे ख़लीफ़ा (उत्तराधिकारी) बनाया है। अतः तू लोगों के बीच हक़ के साथ फ़ैसला करना और अपनी इच्छा का अनुपालन न करना कि वह तुझे अल्लाह के मार्ग से भटका दे। जो लोग अल्लाह के मार्ग से भटकते हैं, निश्चय ही उनके लिए कठोर यातना है, क्योंकि वे हिसाब के दिन को भूले रहे। — ॥26॥
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَآءَ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا بَٰطِلٗاۚ ذَٰلِكَ ظَنُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنَ ٱلنَّارِ 27
हमने आकाश और धरती को और जो कुछ उनके बीच है, व्यर्थ नहीं पैदा किया। यह तो उन लोगों का गुमान है जिन्होंने इनकार किया। अतः आग में झोंके जाने के कारण इनकार करनेवालों की बड़ी दुर्गति है।॥27॥
أَمۡ نَجۡعَلُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ كَٱلۡمُفۡسِدِينَ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ نَجۡعَلُ ٱلۡمُتَّقِينَ كَٱلۡفُجَّارِ 28
(क्या हम उनको जो समझते हैं कि जगत् की संरचना व्यर्थ नहीं है, उनके समान कर देंगे जो जगत् को निरर्थक मानते हैं।) या हम उन लोगों को जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके समान कर देंगे जो ज़मीन में बिगाड़ पैदा करते हैं; या डर रखनेवालों को हम दुराचारियों जैसा कर देंगे? ॥28॥
كِتَٰبٌ أَنزَلۡنَٰهُ إِلَيۡكَ مُبَٰرَكٞ لِّيَدَّبَّرُوٓاْ ءَايَٰتِهِۦ وَلِيَتَذَكَّرَ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ 29
यह एक बरक़त वाली किताब है जिसे हमने तुम्हारी ओर अवतरित किया है, ताकि वे लोग इसकी आयतों पर सोच-विचार करें ताकि बुद्धि और समझवाले इससे शिक्षा ग्रहण करें। —॥29॥
وَوَهَبۡنَا لِدَاوُۥدَ سُلَيۡمَٰنَۚ نِعۡمَ ٱلۡعَبۡدُ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٌ 30
और हमने दाऊद को सुलैमान प्रदान किया। वह कितना अच्छा बन्दा था! निश्चय ही वह बहुत ही रुजू रहनेवाला था।॥30॥
إِذۡ عُرِضَ عَلَيۡهِ بِٱلۡعَشِيِّ ٱلصَّٰفِنَٰتُ ٱلۡجِيَادُ 31
याद करो, जबकि संध्या समय उसके सामने सधे हुए द्रुतगामी घोड़े हाज़िर किए गए॥31॥
فَقَالَ إِنِّيٓ أَحۡبَبۡتُ حُبَّ ٱلۡخَيۡرِ عَن ذِكۡرِ رَبِّي حَتَّىٰ تَوَارَتۡ بِٱلۡحِجَابِ 32
तो उसने कहा, "मैंने इनके प्रति प्रेम अपने रब की याद के कारण अपनाया है।" यहाँ तक कि वे (घोड़े) ओट में छिप गए।॥32॥
رُدُّوهَا عَلَيَّۖ فَطَفِقَ مَسۡحَۢا بِٱلسُّوقِ وَٱلۡأَعۡنَاقِ 33
"उन्हें मेरे पास वापस लाओ!" फिर वह उनकी पिंडलियों और गरदनों पर हाथ फेरने लगा।॥33॥
وَلَقَدۡ فَتَنَّا سُلَيۡمَٰنَ وَأَلۡقَيۡنَا عَلَىٰ كُرۡسِيِّهِۦ جَسَدٗا ثُمَّ أَنَابَ 34
निश्चय ही हमने सुलैमान को भी परीक्षा में डाला। और हमने उसके तख़्त पर एक धड़ डाल दिया। फिर वह रुजू हुआ।॥34॥
قَالَ رَبِّ ٱغۡفِرۡ لِي وَهَبۡ لِي مُلۡكٗا لَّا يَنۢبَغِي لِأَحَدٖ مِّنۢ بَعۡدِيٓۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡوَهَّابُ 35
उसने कहा, "ऐ मेरे रब, मुझे क्षमा कर दे और मुझे वह राज्य प्रदान कर, जो मेरे बाद किसी के लिए शोभनीय न हो। निश्चय ही तू बड़ा दाता है।"॥35॥
فَسَخَّرۡنَا لَهُ ٱلرِّيحَ تَجۡرِي بِأَمۡرِهِۦ رُخَآءً حَيۡثُ أَصَابَ 36
तब हमने हवा को उसके लिए वशीभूत कर दिया जो उसके आदेश से, जहाँ वह पहुँचना चाहता, सरलता-पूर्वक चलती थी।॥36॥
وَٱلشَّيَٰطِينَ كُلَّ بَنَّآءٖ وَغَوَّاصٖ 37
और शैतानों को भी (वशीभूत कर दिया), प्रत्येक निर्माता और ग़ोताख़ोर को॥37॥
وَءَاخَرِينَ مُقَرَّنِينَ فِي ٱلۡأَصۡفَادِ 38
और दूसरों को भी जो ज़जीरों में जकड़े हुए रहते।॥38॥
هَٰذَا عَطَآؤُنَا فَٱمۡنُنۡ أَوۡ أَمۡسِكۡ بِغَيۡرِ حِسَابٖ 39
"यह हमारी बेहिसाब देन है। अब एहसान करो या रोको।"॥39॥
وَإِنَّ لَهُۥ عِندَنَا لَزُلۡفَىٰ وَحُسۡنَ مَـَٔابٖ 40
और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः सामीप्य और उत्तम ठिकाना है।॥40॥
وَٱذۡكُرۡ عَبۡدَنَآ أَيُّوبَ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَسَّنِيَ ٱلشَّيۡطَٰنُ بِنُصۡبٖ وَعَذَابٍ 41
हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो जब उसने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।"॥41॥
ٱرۡكُضۡ بِرِجۡلِكَۖ هَٰذَا مُغۡتَسَلُۢ بَارِدٞ وَشَرَابٞ 42
"अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठण्डा (पानी) नहाने को और पीने को।"॥42॥
وَوَهَبۡنَا لَهُۥٓ أَهۡلَهُۥ وَمِثۡلَهُم مَّعَهُمۡ رَحۡمَةٗ مِّنَّا وَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ 43
और हमने उसे उसके परिजन दिए और उनके साथ वैसे ही और भी अपनी ओर से दयालुता के रूप में, और बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए शिक्षा के रूप में।॥43॥
وَخُذۡ بِيَدِكَ ضِغۡثٗا فَٱضۡرِب بِّهِۦ وَلَا تَحۡنَثۡۗ إِنَّا وَجَدۡنَٰهُ صَابِرٗاۚ نِّعۡمَ ٱلۡعَبۡدُ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٞ 44
"और अपने हाथ में तिनकों का एक मुट्ठा ले और उससे मार और अपनी क़सम न तोड़।" निश्चय ही हमने उसे धैर्यवान पाया, क्या ही अच्छा बन्दा! निस्सन्देह वह बड़ा ही रुजू रहनेवाला था।॥44॥
وَٱذۡكُرۡ عِبَٰدَنَآ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ أُوْلِي ٱلۡأَيۡدِي وَٱلۡأَبۡصَٰرِ 45
हमारे बन्दों इबराहीम और इसहाक़ और याक़ूब को भी याद करो जो हाथों (शक्ति) और निगाहोंवाले (ज्ञान-चक्षुवाले) थे।॥45॥
إِنَّآ أَخۡلَصۡنَٰهُم بِخَالِصَةٖ ذِكۡرَى ٱلدَّارِ 46
निस्सन्देह हमने उन्हें एक विशुद्ध बात के लिए विशुद्ध पाया, और वह वास्तविक घर (आख़िरत) की याद थी।॥46॥
وَإِنَّهُمۡ عِندَنَا لَمِنَ ٱلۡمُصۡطَفَيۡنَ ٱلۡأَخۡيَارِ 47
और निश्चय ही वे हमारे यहाँ चुने हुए नेक लोगों में से है।॥47॥
وَٱذۡكُرۡ إِسۡمَٰعِيلَ وَٱلۡيَسَعَ وَذَا ٱلۡكِفۡلِۖ وَكُلّٞ مِّنَ ٱلۡأَخۡيَارِ 48
इसमाईल और अल-यसअ और ज़ुलकिफ़्ल को भी याद करो। इनमें से प्रत्येक ही अच्छा रहा है।॥48॥
هَٰذَا ذِكۡرٞۚ وَإِنَّ لِلۡمُتَّقِينَ لَحُسۡنَ مَـَٔابٖ 49
यह एक याददिहानी है। और निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए अच्छा ठिकाना है।॥49॥
جَنَّٰتِ عَدۡنٖ مُّفَتَّحَةٗ لَّهُمُ ٱلۡأَبۡوَٰبُ 50
सदैव रहने के बाग़ हैं जिनके द्वार उनके लिए खुले होंगे।॥50॥
مُتَّكِـِٔينَ فِيهَا يَدۡعُونَ فِيهَا بِفَٰكِهَةٖ كَثِيرَةٖ وَشَرَابٖ 51
उनमें वे तकिया लगाए हुए होंगे। वहाँ वे बहुत-से मेवे और पेय मँगवाते होंगे।॥51॥
۞وَعِندَهُمۡ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرۡفِ أَتۡرَابٌ 52
और उनके पास निगाहें बचाए रखनेवाली स्त्रियाँ होंगी, जो समान अवस्था की होंगी।॥52॥
هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوۡمِ ٱلۡحِسَابِ 53
यह है वह चीज़, जिसका हिसाब के दिन के लिए तुमसे वादा किया जाता है।॥53॥
إِنَّ هَٰذَا لَرِزۡقُنَا مَا لَهُۥ مِن نَّفَادٍ 54
यह हमारा दिया है जो कभी समाप्त न होगा।॥54॥
هَٰذَاۚ وَإِنَّ لِلطَّٰغِينَ لَشَرَّ مَـَٔابٖ 55
एक ओर यह है, किन्तु सरकशों के लिए बहुत बुरा ठिकाना है;॥55॥
جَهَنَّمَ يَصۡلَوۡنَهَا فَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ 56
जहन्न्म, जिसमें वे प्रवेश करेंगे। तो वह बहुत ही बुरा विश्राम-स्थल है!॥56॥
هَٰذَا فَلۡيَذُوقُوهُ حَمِيمٞ وَغَسَّاقٞ 57
यह है, अब उन्हें इसे चखना है — खौलता हुआ पानी और रक्तयुक्त पीप, ॥57॥
وَءَاخَرُ مِن شَكۡلِهِۦٓ أَزۡوَٰجٌ 58
और इसी प्रकार की दूसरी और भी चीज़ें।॥58॥
هَٰذَا فَوۡجٞ مُّقۡتَحِمٞ مَّعَكُمۡ لَا مَرۡحَبَۢا بِهِمۡۚ إِنَّهُمۡ صَالُواْ ٱلنَّارِ 59
"यह एक भीड़ है जो तुम्हारे साथ घुसी चली आ रही है। कोई आवभगत उनके लिए नहीं। वे तो आग में पड़नेवाले हैं।"॥59॥
قَالُواْ بَلۡ أَنتُمۡ لَا مَرۡحَبَۢا بِكُمۡۖ أَنتُمۡ قَدَّمۡتُمُوهُ لَنَاۖ فَبِئۡسَ ٱلۡقَرَارُ 60
वे कहेंगे, "नहीं, बल्कि तुम। तुम्हारे लिए कोई आवभगत नहीं। तुम्हीं यह हमारे आगे लाए हो। तो बहुत ही बुरी है यह ठहरने की जगह!"॥60॥
قَالُواْ رَبَّنَا مَن قَدَّمَ لَنَا هَٰذَا فَزِدۡهُ عَذَابٗا ضِعۡفٗا فِي ٱلنَّارِ 61
वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! जो हमारे आगे यह (मुसीबत) लाया उसे आग में दोहरी यातना दे!"॥61॥
وَقَالُواْ مَا لَنَا لَا نَرَىٰ رِجَالٗا كُنَّا نَعُدُّهُم مِّنَ ٱلۡأَشۡرَارِ 62
और वे कहेंगे, "क्या बात है कि हम उन लोगों को नहीं देखते जिनकी गणना हम बुरों में करते थे?॥62॥
أَتَّخَذۡنَٰهُمۡ سِخۡرِيًّا أَمۡ زَاغَتۡ عَنۡهُمُ ٱلۡأَبۡصَٰرُ 63
क्या हमने यूँ ही उनका मज़ाक बनाया था, यह उनसे निगाहें चूक गई हैं?"॥63॥
إِنَّ ذَٰلِكَ لَحَقّٞ تَخَاصُمُ أَهۡلِ ٱلنَّارِ 64
निस्सन्देह आग में पड़नेवालों का यह आपस का झगड़ा तो अवश्य होना है।॥64॥
قُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ مُنذِرٞۖ وَمَا مِنۡ إِلَٰهٍ إِلَّا ٱللَّهُ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّارُ 65
कह दो, "मैं तो बस एक सचेत करनेवाला हूँ। कोई पूज्य-प्रभु नहीं सिवाय अल्लाह के, जो अकेला है, सबपर क़ाबू रखनेवाला;॥65॥
رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفَّٰرُ 66
आकाशों और धरती का रब है, और जो कुछ इन दोनों के बीच है उसका भी, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील।"॥66॥
قُلۡ هُوَ نَبَؤٌاْ عَظِيمٌ 67
कह दो, "वह एक बड़ी ख़बर है ॥67॥‘
أَنتُمۡ عَنۡهُ مُعۡرِضُونَ 68
जिसे तुम ध्यान में नहीं ला रहे हो।॥68॥
مَا كَانَ لِيَ مِنۡ عِلۡمِۭ بِٱلۡمَلَإِ ٱلۡأَعۡلَىٰٓ إِذۡ يَخۡتَصِمُونَ 69
मुझे 'मलए आला' (ऊपरी लोक के फ़रिश्तों ) का कोई ज्ञान नहीं था जब वे वाद-विवाद कर रहे थे॥69॥
إِن يُوحَىٰٓ إِلَيَّ إِلَّآ أَنَّمَآ أَنَا۠ نَذِيرٞ مُّبِينٌ 70
मेरी ओर तो बस इसलिए प्रकाशना की जाती है कि मैं खुल्लम-खुल्ला सचेत करनेवाला हूँ।"॥70॥
إِذۡ قَالَ رَبُّكَ لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ إِنِّي خَٰلِقُۢ بَشَرٗا مِّن طِينٖ 71
याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि "मैं मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करनेवाला हूँ।॥71॥
فَإِذَا سَوَّيۡتُهُۥ وَنَفَخۡتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُواْ لَهُۥ سَٰجِدِينَ 72
तो जब मैं उसको ठीक-ठाक कर दूँ, उसमें अपनी रूह फूँक दूँ, तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना।"॥72॥
فَسَجَدَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ كُلُّهُمۡ أَجۡمَعُونَ 73
तो सभी फ़रिश्तों ने सजदा किया, सिवाय इबलीस के।॥73॥
إِلَّآ إِبۡلِيسَ ٱسۡتَكۡبَرَ وَكَانَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ 74
उसने घमण्ड किया और इनकार करनेवालों में से हो गया।॥74॥
قَالَ يَٰٓإِبۡلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَن تَسۡجُدَ لِمَا خَلَقۡتُ بِيَدَيَّۖ أَسۡتَكۡبَرۡتَ أَمۡ كُنتَ مِنَ ٱلۡعَالِينَ 75
कहा, "ऐ इबलीस! तूझे किस चीज़ ने उसको सजदा करने से रोका जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया? क्या तूने घमण्ड किया, या तू कोई ऊँची हस्ती है?"॥75॥
قَالَ أَنَا۠ خَيۡرٞ مِّنۡهُ خَلَقۡتَنِي مِن نَّارٖ وَخَلَقۡتَهُۥ مِن طِينٖ 76
उसने कहा, "मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया और उसे मिट्टी से पैदा किया।"॥76॥
قَالَ فَٱخۡرُجۡ مِنۡهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٞ 77
कहा, "अच्छा, निकल जा यहाँ से, क्योंकि तू धुत्कारा हुआ है॥77॥
وَإِنَّ عَلَيۡكَ لَعۡنَتِيٓ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلدِّينِ 78
और निश्चय ही बदला दिए जाने के दिन तक तुझपर मेरी लानत है।"॥78॥
قَالَ رَبِّ فَأَنظِرۡنِيٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ 79
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहल्लत दे, जबकि लोग (जीवित करके) उठाए जाएँगे।"॥79॥
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ ٱلۡمُنظَرِينَ 80
कहा, "अच्छा, तुझे ज्ञात एवं ॥80॥
إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡوَقۡتِ ٱلۡمَعۡلُومِ 81
निश्चित समय तक मुहलत है।"॥81॥
قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغۡوِيَنَّهُمۡ أَجۡمَعِينَ 82
उसने कहा, "तेरे प्रताप की सौगन्ध! मैं अवश्य उन सब को बहकाकर रहूँगा, ॥82॥
إِلَّا عِبَادَكَ مِنۡهُمُ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 83
सिवाय उनमें से तेरे उन बन्दों के जो चुने हुए हैं।"॥83॥
قَالَ فَٱلۡحَقُّ وَٱلۡحَقَّ أَقُولُ 84
कहा, "तो यह सत्य है, और मैं सत्य ही कहता हूँ॥84॥
لَأَمۡلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنكَ وَمِمَّن تَبِعَكَ مِنۡهُمۡ أَجۡمَعِينَ 85
कि मैं जहन्नम को तुझसे और उन सबसे भर दूँगा जिन्होंने उनमें से तेरा अनुसरण किया होगा।"॥85॥
قُلۡ مَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٖ وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُتَكَلِّفِينَ 86
कह दो, "मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता, और न मैं अपनी ओर से बातें बनानेवालों में से हूँ।"॥86॥
إِنۡ هُوَ إِلَّا ذِكۡرٞ لِّلۡعَٰلَمِينَ 87
वह तो एक याददिहानी है सारे संसारवालों के लिए॥87॥
وَلَتَعۡلَمُنَّ نَبَأَهُۥ بَعۡدَ حِينِۭ 88
और थोड़ी ही अवधि के बाद उसकी दी हुई ख़बर तुम्हें मालूम हो जाएगी।॥88॥