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سُورَةُ القَمَرِ

54. अल-क़मर

(मक्का में उतरी, आयतें 55)

परिचय

नाम

पहली ही आयत के वाक्यांश "वन-शक़्क़ल- क़मर" अर्थात "और चाँद (क़मर) फट गया" से लिया गया है। अर्थ यह है कि वह सूरा जिस शब्द 'अल-क़मर' आया है।

उतरने का समय

इसमें चाँद के फटने की घटना का उल्लेख हुआ है, जिससे उसके उतरने का समय निश्चित हो जाता है। हदीस के ज्ञाता और क़ुरआन के टीकाकार सभी इसपर सहमत हैं कि यह घटना हिजरत के लगभग पांँच साल पहले मक्का मुअज़्ज़मा में मिना के स्थान पर घटी थी।

विषय और वार्ता

इसमें मक्का के इस्लाम विरोधियों की उस हठधर्मा पर चेतावनी दी गई है जो उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के आह्‍वान के मुक़ाबले में अपना रखी थी। चाँद के फटने की आश्चर्यजनक घटना इस बात का स्पष्ट प्रमाण थी कि जगत्-व्यवस्था न सदा से है, न सदा रहेगी, और न अमर है। वह छिन्न-भिन्न हो सकती है, बड़े-बड़े नक्षत्र और तारे फट सकते हैं और वह सब कुछ हो सकता है जिसका चित्रण क़ियामत के विस्तृत विवरण में क़ुरआन ने किया है। यही नहीं, बल्कि यह इस बात का पता भी दे रहा है कि जगत्-व्यवस्था के टूट-फूट की शुरुआत हो चुकी है और वह समय क़रीब है जब क़ियामत आएगी। मगर इस्लाम-विरोधियों ने इसे जादू का करिश्मा बताया और अपने इंकार पर जमे रहे। इसी हठधर्मी पर इस सूरा में उनकी निन्दा की गई है। वार्ता का आरंभ करते हुए कहा गया है कि ये लोग न समझाने से मानते हैं, न इतिहास से शिक्षा लेते हैं और न आँखों से खुली निशानियाँ देखकर ईमान लाते हैं। अब ये उसी समय मानेंगे जब क़ियामत वास्तव में आ जाएगी। इसके बाद उनके सामने नूह (अलैहि०) की क़ौम, आद, समूद, लूत (अलैहि०) की क़ौम और फ़िरऔन के लोगों का वृत्तान्त संक्षिप्त शब्दों में बयान करके बताया गया है कि अल्लाह के भेजे हुए रसूलों की चेतावनियों को झुठलाकर ये क़ौमें किस पीड़ाजनक यातना की शिकार हुईं और एक-एक क़ौम का क़िस्सा बयान करने के बाद बार-बार यह बात दोहराई गई है कि यह क़ुरआन शिक्षा का सहज आधार है, जिससे अगर कोई क़ौम शिक्षा ग्रहण करके सीधे रास्ते पर आ जाए तो उन यातनाओं की नौबत नहीं आ सकती जिनमें वे क़ौमें ग्रस्त हुईं। इसके बाद मक्का के इस्लाम-विरोधियों को सम्बोधित करके कहा गया है कि जिस रवैये पर दूसरी क़ौमें सज़ा पा चुकी हैं, वह रवैया अगर तुम अपनाओ तो आखिर क्यों न सज़ा पाओगे? और अगर तुम अपने जत्थे पर फूले हुए हो, तो बहुत जल्द तुम्हारा यह जत्था पराजित होकर भागता नज़र आएगा और इससे अधिक कठोर मामला तुम्हारे साथ क़ियामत के दिन होगा। अन्त में इस्लाम-विरोधियों को यह बताया गया है कि सर्वोच्च अल्लाह को क़ियामत लाने के लिए किसी बड़ी तैयारी की ज़रूरत नहीं है। उसका बस एक आदेश होते ही पलक झपकाते वह आ जाएगी, मगर हर चीज़ की तरह जगत्व्य-वस्था और मानव-जाति की भी एक नियति है। इस नियति के अनुसार जो समय इस काम के लिए निश्चित है, उसी समय पर वह होगा। यह नहीं हो सकता कि जब कोई चैलेंज करे तो उसे मनवाने के लिए क़ियामत ला खड़ी की जाए।

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سُورَةُ القَمَرِ
54. अल-क़मर
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
ٱقۡتَرَبَتِ ٱلسَّاعَةُ وَٱنشَقَّ ٱلۡقَمَرُ ۝ 1
वह घड़ी निकट आ लगी और चाँद फट गया;॥1॥
وَإِن يَرَوۡاْ ءَايَةٗ يُعۡرِضُواْ وَيَقُولُواْ سِحۡرٞ مُّسۡتَمِرّٞ ۝ 2
किन्तु हाल यह है कि यदि वे कोई निशानी देख भी लें तो टाल जाएँगे और कहेंगे, "यह तो जादू है, जो पहले से चला आ रहा है!"॥2॥
وَكَذَّبُواْ وَٱتَّبَعُوٓاْ أَهۡوَآءَهُمۡۚ وَكُلُّ أَمۡرٖ مُّسۡتَقِرّٞ ۝ 3
उन्होंने झुठलाया और अपनी इच्छाओं का अनुसरण किया; किन्तु हर मामले के लिए एक नियत अवधि है।॥3॥
وَلَقَدۡ جَآءَهُم مِّنَ ٱلۡأَنۢبَآءِ مَا فِيهِ مُزۡدَجَرٌ ۝ 4
उनके पास अतीत की ऐसी ख़बरें आ चुकी हैं, जिनमें ताड़ना अर्थात् पूर्णता तत्त्वदर्शिता है।॥4॥
حِكۡمَةُۢ بَٰلِغَةٞۖ فَمَا تُغۡنِ ٱلنُّذُرُ ۝ 5
किन्तु चेतावनियाँ उनके कुछ काम नहीं आ रही हैं! — ॥5॥
فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡۘ يَوۡمَ يَدۡعُ ٱلدَّاعِ إِلَىٰ شَيۡءٖ نُّكُرٍ ۝ 6
अतः उनसे रुख़ फेर लो — जिस दिन पुकारनेवाला एक अत्यन्त अप्रिय चीज़ की ओर पुकारेगा;॥6॥
خُشَّعًا أَبۡصَٰرُهُمۡ يَخۡرُجُونَ مِنَ ٱلۡأَجۡدَاثِ كَأَنَّهُمۡ جَرَادٞ مُّنتَشِرٞ ۝ 7
वे अपनी झुकी हुई निगाहों के साथ अपनी क़ब्रों से निकल रहे होंगे, मानो वे बिखरी हुई टिड्डियाँ हैं;॥7॥
مُّهۡطِعِينَ إِلَى ٱلدَّاعِۖ يَقُولُ ٱلۡكَٰفِرُونَ هَٰذَا يَوۡمٌ عَسِرٞ ۝ 8
दौड़ पड़ने को पुकारनेवाले की ओर। इनकार करनेवाले कहेंगे, "यह तो एक कठिन दिन है!"॥8॥
۞كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ فَكَذَّبُواْ عَبۡدَنَا وَقَالُواْ مَجۡنُونٞ وَٱزۡدُجِرَ ۝ 9
उनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया। उन्होंने हमारे बन्दे को झूठा ठहराया और कहा, "यह तो दीवाना है!" और वह बुरी तरह झिड़का गया।॥9॥
فَدَعَا رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَغۡلُوبٞ فَٱنتَصِرۡ ۝ 10
अन्त में उसने अपने रब को पुकारा कि "मैं दबा हुआ हूँ। अब तू बदला ले।" ॥10॥
فَفَتَحۡنَآ أَبۡوَٰبَ ٱلسَّمَآءِ بِمَآءٖ مُّنۡهَمِرٖ ۝ 11
तब हमने मूसलाधार बरसते हुए पानी से आकाश के द्वार खोल दिए;॥11॥
وَفَجَّرۡنَا ٱلۡأَرۡضَ عُيُونٗا فَٱلۡتَقَى ٱلۡمَآءُ عَلَىٰٓ أَمۡرٖ قَدۡ قُدِرَ ۝ 12
और धरती को प्रवाहित स्रोतों में परिवर्तित कर दिया और सारा पानी उस काम के लिए मिल गया जो नियत हो चुका था।॥12॥
وَحَمَلۡنَٰهُ عَلَىٰ ذَاتِ أَلۡوَٰحٖ وَدُسُرٖ ۝ 13
और हमने उसे एक तख़्तों और कीलोंवाली (नौका) पर सवार किया, ॥13॥
تَجۡرِي بِأَعۡيُنِنَا جَزَآءٗ لِّمَن كَانَ كُفِرَ ۝ 14
जो हमारी निगाहों के सामने चल रही थी — यह बदला था उस व्यक्ति के लिए जिसकी क़द्र नहीं की गई।॥14॥
وَلَقَد تَّرَكۡنَٰهَآ ءَايَةٗ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 15
हमने उसे एक निशानी बनाकर छोड़ दिया; फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? ॥15॥
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 16
फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? ॥16॥
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 17
और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?॥17॥
كَذَّبَتۡ عَادٞ فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 18
आद ने भी झुठलाया। फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरा डरावे?॥18॥
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا صَرۡصَرٗا فِي يَوۡمِ نَحۡسٖ مُّسۡتَمِرّٖ ۝ 19
निश्‍चय ही हमने एक निरन्तर अशुभ दिन में तेज़ प्रचंड ठंडी हवा भेजी, उसे उनपर मुसल्लत कर दिया, तो वह लोगों को उखाड़ फेंक रही थी॥19॥
تَنزِعُ ٱلنَّاسَ كَأَنَّهُمۡ أَعۡجَازُ نَخۡلٖ مُّنقَعِرٖ ۝ 20
मानो वे उखड़े हुए खजूर के तने हों।॥20॥
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 21
फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? ॥21॥
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 22
और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?॥22॥
كَذَّبَتۡ ثَمُودُ بِٱلنُّذُرِ ۝ 23
समूद ने चेतावनियों को झुठलाया; ॥23॥
فَقَالُوٓاْ أَبَشَرٗا مِّنَّا وَٰحِدٗا نَّتَّبِعُهُۥٓ إِنَّآ إِذٗا لَّفِي ضَلَٰلٖ وَسُعُرٍ ۝ 24
और कहने लगे, "एक अकेला आदमी, जो हम ही में से है, क्या हम उसके पीछे चलेंगे? तब तो वास्तव में हम गुमराही और दीवानगी में पड़ गए!॥24॥
أَءُلۡقِيَ ٱلذِّكۡرُ عَلَيۡهِ مِنۢ بَيۡنِنَا بَلۡ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٞ ۝ 25
"क्या हमारे बीच उसी पर याददिहानी उतरी है? नहीं, बल्कि वह तो परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्‍लाघी है।" — ॥25॥
سَيَعۡلَمُونَ غَدٗا مَّنِ ٱلۡكَذَّابُ ٱلۡأَشِرُ ۝ 26
"कल को ही वे जान लेंगे कि कौन परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्‍लाघी है। ॥26॥
إِنَّا مُرۡسِلُواْ ٱلنَّاقَةِ فِتۡنَةٗ لَّهُمۡ فَٱرۡتَقِبۡهُمۡ وَٱصۡطَبِرۡ ۝ 27
हम ऊँटनी को उनके लिए परीक्षा के रूप में भेज रहे है। अतः तुम उन्हें देखते जाओ और धैर्य से काम लो॥27॥
وَنَبِّئۡهُمۡ أَنَّ ٱلۡمَآءَ قِسۡمَةُۢ بَيۡنَهُمۡۖ كُلُّ شِرۡبٖ مُّحۡتَضَرٞ ۝ 28
और उन्हें सूचित कर दो कि पानी उनके बीच बाँट दिया गया है। हर एक पीने की बारी पर बारीवाला उपस्थित होगा।"॥28॥
فَنَادَوۡاْ صَاحِبَهُمۡ فَتَعَاطَىٰ فَعَقَرَ ۝ 29
अन्ततः उन्होंने अपने साथी को पुकारा तो उसने ज़िम्मा लिया, फिर उसने उसकी कूचें काट दीं।॥29॥
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 30
फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? ॥30॥
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ صَيۡحَةٗ وَٰحِدَةٗ فَكَانُواْ كَهَشِيمِ ٱلۡمُحۡتَظِرِ ۝ 31
हमने उनपर एक धमाका छोड़ा, फिर वे बाड़ लगानेवाले की रौंदी हुई बाड़ की तरह चूरा होकर रह गए।॥31॥
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 32
हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला?॥32॥
كَذَّبَتۡ قَوۡمُ لُوطِۭ بِٱلنُّذُرِ ۝ 33
लूत की क़ौम ने भी चेतावनियों को झुठलाया।॥33॥
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ حَاصِبًا إِلَّآ ءَالَ لُوطٖۖ نَّجَّيۡنَٰهُم بِسَحَرٖ ۝ 34
हमने लूत के घरवालों के सिवा उनपर पथराव करनेवाली तेज़ हवा भेजी।॥34॥
نِّعۡمَةٗ مِّنۡ عِندِنَاۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي مَن شَكَرَ ۝ 35
हमने अपनी विशेष अनुकम्पा से प्रातःकाल उन्हें बचा लिया। हम इसी तरह उस व्यक्ति को बदला देते हैं जो कृतज्ञता दिखाए।॥35॥
وَلَقَدۡ أَنذَرَهُم بَطۡشَتَنَا فَتَمَارَوۡاْ بِٱلنُّذُرِ ۝ 36
उसने तो उन्हें हमारी पकड़ से सावधान कर दिया था। किन्तु वे चेतावनियों के विषय में संदेह करते रहे।॥36॥
وَلَقَدۡ رَٰوَدُوهُ عَن ضَيۡفِهِۦ فَطَمَسۡنَآ أَعۡيُنَهُمۡ فَذُوقُواْ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 37
उन्होंने उसे फुसलाकर उसके पास से उसके अतिथियों को बुलाना चाहा। अन्ततः हमने उनकी आँखें मेट दीं, "लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!"॥37॥
وَلَقَدۡ صَبَّحَهُم بُكۡرَةً عَذَابٞ مُّسۡتَقِرّٞ ۝ 38
सुबह सवेरे ही एक अटल यातना उनपर आ पहुँची, ॥38॥
فَذُوقُواْ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 39
"लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!"॥39॥
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 40
और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?॥40॥
وَلَقَدۡ جَآءَ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ ٱلنُّذُرُ ۝ 41
और फ़िरऔनियों के पास चेतावनियाँ आईं;॥41॥
كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذۡنَٰهُمۡ أَخۡذَ عَزِيزٖ مُّقۡتَدِرٍ ۝ 42
उन्होंने हमारी सारी निशानियों को झुठला दिया। अन्ततः हमने उन्हें पकड़ लिया, जिस प्रकार एक ज़बरदस्त प्रभुत्वशाली पकड़ता है।॥42॥
أَكُفَّارُكُمۡ خَيۡرٞ مِّنۡ أُوْلَٰٓئِكُمۡ أَمۡ لَكُم بَرَآءَةٞ فِي ٱلزُّبُرِ ۝ 43
क्या तुम्हारे इनकार करनेवाले कुछ उन लोगों से अच्छे हैं या किताबों में तुम्हारे लिए कोई छुटकारा लिखा हुआ है?॥43॥
أَمۡ يَقُولُونَ نَحۡنُ جَمِيعٞ مُّنتَصِرٞ ۝ 44
या वे कहते हैं, "और हम मुक़ाबले की शक्ति रखनेवाले एक जत्था हैं?"॥44॥
سَيُهۡزَمُ ٱلۡجَمۡعُ وَيُوَلُّونَ ٱلدُّبُرَ ۝ 45
शीघ्र ही वह जत्था पराजित होकर रहेगा और वे पीठ दिखा जाएँगे।॥45॥
بَلِ ٱلسَّاعَةُ مَوۡعِدُهُمۡ وَٱلسَّاعَةُ أَدۡهَىٰ وَأَمَرُّ ۝ 46
नहीं, बल्कि वह घड़ी है जिसका समय उनके लिए नियत है, और वह बड़ी आपदावाली और कटु घड़ी है!॥46॥
إِنَّ ٱلۡمُجۡرِمِينَ فِي ضَلَٰلٖ وَسُعُرٖ ۝ 47
निस्संदेह अपराधी लोग गुमराही और दीवानेपन में पड़े हुए हैं।॥47॥
يَوۡمَ يُسۡحَبُونَ فِي ٱلنَّارِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ ذُوقُواْ مَسَّ سَقَرَ ۝ 48
जिस दिन वे अपने मुँह के बल आग में घसीटे जाएँगे, "चखो मज़ा आग की लपट का!"॥48॥
إِنَّا كُلَّ شَيۡءٍ خَلَقۡنَٰهُ بِقَدَرٖ ۝ 49
निश्‍चय ही हमने हर चीज़ एक अंदाज़े के साथ पैदा की है।॥49॥
وَمَآ أَمۡرُنَآ إِلَّا وَٰحِدَةٞ كَلَمۡحِۭ بِٱلۡبَصَرِ ۝ 50
और हमारा आदेश (और काम) तो बस एक दम की बात होती है, जैसे पलक का झपकना।॥50॥
وَلَقَدۡ أَهۡلَكۡنَآ أَشۡيَاعَكُمۡ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 51
और हम तुम्हारे जैसे लोगों को विनष्ट कर चुके हैं। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला?॥51॥
وَكُلُّ شَيۡءٖ فَعَلُوهُ فِي ٱلزُّبُرِ ۝ 52
जो कुछ उन्होंने किया है, वह पन्‍नों में अंकित है।॥52॥
وَكُلُّ صَغِيرٖ وَكَبِيرٖ مُّسۡتَطَرٌ ۝ 53
और हर छोटी और बड़ी चीज़ लिखित है।॥53॥
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي جَنَّٰتٖ وَنَهَرٖ ۝ 54
निश्‍चय ही डर रखनेवाले बाग़ों और नहरों के बीच होंगे, ॥54॥
فِي مَقۡعَدِ صِدۡقٍ عِندَ مَلِيكٖ مُّقۡتَدِرِۭ ۝ 55
प्रतिष्ठित स्थान पर, प्रभुत्वशाली सम्राट के निकट।॥55॥