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سُورَةُ الحَدِيدِ

57. अल-हदीद

(मदीना में उतरी, आयतें 29)

परिचय

नाम

आयत 25 के वाक्यांश "व अंज़ल-नल हदीद' अर्थात् "और हमने लोहा (हदीद) उतारा" से लिया गया है।

उतरने का समय

इसके मदनी सूरा होने में सभी टीकाकार एकमत हैं और इसके विषयों पर विचार करने से महसूस होता है कि शायद यह उहुद के युद्ध और हुदैबिया के समझौते के बीच किसी समय उतरी है। यह वह समय था जब इस्लाम को अपने अनुयायियों से केवल प्राण की क़ुरबानी ही की ज़रूरत न थी, बल्कि धन की क़ुरबानी की भी थी, और इस सूरा में इसी क़ुरबानी के लिए ज़ोरदार अपील की गई है। इस अनुमान की आयत 10 से और अधिक पुष्टि होती है।

विषय और वार्ता

इसका विषय अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करने पर उभारता है। यह सूरा इस उद्देश्य के लिए उतारी गई थी कि मुसलमानों को विशेष रूप से धन की क़ुरबानियों के लिए तैयार किया जाए और यह बात उनके मन में बिठा दी जाए कि ईमान [की मूल आत्मा और वास्तविकता] अल्लाह और उसके धर्म के लिए निष्ठावान होना है। जो व्यक्ति इस आत्मा से वंचित है और ख़ुदा और उसके धर्म की तुलना में अपनी जान-माल और अपने हित को अधिक प्रिय समझे, उसके ईमान की स्वीकृति खोखली है। इस उद्देश्य के लिए सबसे पहले अल्लाह के गुणों को बयान किया गया है, ताकि सुननेवालों को अच्छी तरह यह एहसास हो जाए कि इस महान हस्ती की ओर से उनको संबोधित किया जा रहा है। इसके बाद निम्नलिखित विषय-वस्तुएँ क्रमशः प्रस्तुत की गई हैं—

  1. ईमान का ज़रूरी तक़ाज़ा यह है कि आदमी ख़ुदा के रास्ते में माल ख़र्च करने से न कतराए।
  2. ख़ुदा की राह में जान-माल की क़ुरबानी देना यद्यपि हर हाल में अपना मूल्य रखता है,

मगर इन क़ुरबानियों का मूल्य मौक़ों की गंभीरता की दृष्टि से निश्चित होता है। जो लोग इस्लाम की कमज़ोरी की हालत में उसे उच्च करने के लिए जानें लड़ाएँ और माल खर्च करें, उनके दर्जे को वे लोग नहीं पहुँच सकते जो इस्लाम के प्रभावी होने की स्थिति में उसकी तदधिक उन्नति और आगे बढ़ाने के लिए जान-माल क़ुरबान करें।

  1. सत्य मार्ग में जो माल भी ख़र्च किया आए, वह अल्लाह के ज़िम्मे है, और अल्लाह न सिर्फ़ यह कि उसे कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर वापस देगा, बल्कि अपनी और से और अधिक प्रतिदान भी प्रदान करेगा।
  2. आख़िरत में ख़ुदा का नूर (प्रकाश) उन्हीं ईमानवालों को मिलेगा, जिन्होंने अल्लाह के मार्ग में अपना माल ख़र्च किया हो। रहे ये मुनाफ़िक़ (कपटाचारी) जो दुनिया में अपने ही हित को देखते रहे, आख़िरत में उनको ईमानवालों से अलग कर दिया जाएगा। वे प्रकाश से वंचित होंगे और उनका परिणाम वही होगा जो इंकार करनेवालों का होगा।
  3. मुसलमानों को उन अहले-किताब की तरह नहीं हो जाना चाहिए जिनके दिल लम्बे समय की ग़फ़लतों (बेसुधियों) की वजह से पत्थर हो गए हैं। वह ईमानवाला ही क्या जिसका दिल ख़ुदा की याद से न पिघले और उसके उतारे हुए सत्य के आगे न झुके।
  4. अल्लाह की दृष्टि में 'सिद्दीक़' (सत्यवान) और 'शहीद' (साक्षी) कैवल वे ईमानवाले हैं जो अपना माल किसी दिखावे की भावना के बिना सच्चे दिल से उसके मार्ग में ख़र्च करते हैं।
  5. दुनिया की ज़िन्दगी सिर्फ़ कुछ दिनों की बहार और एक धोखे का सामान है। यहाँ की साज-सजा और यहाँ का धन-दौलत, जिसमें लोग एक-दूसरे से बढ़ जाने की कोशिशें करते हैं, सब कुछ अस्थायी है। स्थायी जीवन वास्तव में आख़िरत की ज़िन्दगी है। तुम्हें एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करनी है तो यह कोशिश जन्नत की ओर दौड़ने में करो।
  6. दुनिया में सुख और दुख जो भी होता है, अल्लाह के पहले से लिखे हुए फ़ैसले के अनुसार होता है। ईमानवालों का चरित्र यह होना चाहिए कि दुख या मुसीबत आए तो हिम्मत न हार बैठें, और सुख आए तो इतराने न लगें।
  7. अल्लाह ने अपने रसूल खुली-खुली निशानियों और किताब और न्याय-तुला के साथ भेजे, ताकि लोग न्याय पर स्थिर रह सकें, और इसके साथ लोहा भी उतारा, ताकि सत्य को स्थापित करने और असत्य का सिर नीचा करने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाए। इस तरह अल्लाह यह देखना चाहता है कि इंसानों में से कौन लोग ऐसे निकलते हैं जो उसके धर्म के समर्थन और उसकी सहायता के लिए खड़े हों और उसके लिए जान लड़ा दें।
  8. अल्लाह की ओर से पहले पैग़म्बर आते रहे जिनकी दावत से कुछ लोग सीधी राह पर आए और अधिकतर अवज्ञाकारी बने रहे। फिर ईसा (अलैहि०) आए, जिनकी शिक्षा से लोगों में बहुत-से नैतिक गुण पैदा हुए, मगर उनकी उम्मत ने संन्यास की नई नीति अपना ली। अब सर्वोच्च अल्लाह ने मुहम्मद (सल्ल०) को भेजा है। उनपर जो लोग ईमान लाएँगे, अल्लाह उनको अपनी दयालुता का दोहरा हिस्सा देगा और उन्हें [सीधी राह दिखानेवाला] नूर (प्रकाश) प्रदान करेगा। अहले-किताब चाहे अपने आपको अल्लाह की कृपाओं का ठेकेदार समझते रहें, मगर अल्लाह की कृपा उसके अपने ही हाथ में है, उसे अधिकार है जिसे चाहे अपने उदार दान से सम्पन्न करे।

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سُورَةُ الحَدِيدِ
57. अल-हदीद
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 1
अल्लाह की तसबीह (महिमागान) की हर उस चीज़ ने जो आकाशों और धरती में है। वही प्रभुत्वशाली, तत्त्वदर्शी है।॥1॥
لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ يُحۡيِۦ وَيُمِيتُۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ ۝ 2
आकाशों और धरती की बादशाही उसी की है। वही जीवन प्रदान करता है और मृत्यु देता है, और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्‍त है।॥2॥
هُوَ ٱلۡأَوَّلُ وَٱلۡأٓخِرُ وَٱلظَّٰهِرُ وَٱلۡبَاطِنُۖ وَهُوَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٌ ۝ 3
वही आदि है और अन्त भी और वही व्यक्‍त है और अव्यक्‍त भी। और वह हर चीज़ को जानता है।॥3॥
هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٖ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ يَعۡلَمُ مَا يَلِجُ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَا يَخۡرُجُ مِنۡهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ وَمَا يَعۡرُجُ فِيهَاۖ وَهُوَ مَعَكُمۡ أَيۡنَ مَا كُنتُمۡۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ ۝ 4
वही है जिसने आकाशों और धरती को छह दिनों में पैदा किया; फिर सिंहासन पर विराजमान हुआ। वह जानता है जो कुछ धरती में प्रवेश करता है और जो कुछ उससे निकलता है, और जो कुछ आकाश से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है। और तुम जहाँ कहीं भी हो, वह तुम्हारे साथ है। और अल्लाह देखता है जो कुछ तुम करते हो।॥4॥
لَّهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ۝ 5
आकाशों और धरती की बादशाही उसी की है और अल्लाह ही की है ओर सारे मामले पलटते हैं।॥5॥
يُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِۚ وَهُوَ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 6
वह रात को दिन में दाख़िल कराता है और दिन को रात में दाख़िल कराता है, और वह सीनों में छिपी बात तक को जानता है।॥6॥
ءَامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَأَنفِقُواْ مِمَّا جَعَلَكُم مُّسۡتَخۡلَفِينَ فِيهِۖ فَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنكُمۡ وَأَنفَقُواْ لَهُمۡ أَجۡرٞ كَبِيرٞ ۝ 7
ईमान लाओ अल्लाह और उसके रसूल पर और उसमें से ख़र्च करो जिसका उसने तु्म्हें अधिकारी बनाया है। तो तुममें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने ख़र्च किया, उनके लिए बड़ा प्रतिदान है।॥7॥
وَمَا لَكُمۡ لَا تُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلرَّسُولُ يَدۡعُوكُمۡ لِتُؤۡمِنُواْ بِرَبِّكُمۡ وَقَدۡ أَخَذَ مِيثَٰقَكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 8
तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह पर ईमान नहीं लाते; जबकि रसूल तुम्हें निमंत्रण दे रहा है कि तुम अपने रब पर ईमान लाओ और वह तुमसे दृढ़ वचन भी ले चुका है यदि तुम मोमिन हो।॥8॥
هُوَ ٱلَّذِي يُنَزِّلُ عَلَىٰ عَبۡدِهِۦٓ ءَايَٰتِۭ بَيِّنَٰتٖ لِّيُخۡرِجَكُم مِّنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ بِكُمۡ لَرَءُوفٞ رَّحِيمٞ ۝ 9
वही है जो अपने बन्दों पर स्पष्ट आयतें उतार रहा है, ताकि वह तुम्हें अंधकारों से प्रकाश की ओर ले आए। और वास्तविकता यह है कि अल्लाह तुमपर अत्यन्त करुणामय, दयावान है।॥9॥
وَمَا لَكُمۡ أَلَّا تُنفِقُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلِلَّهِ مِيرَٰثُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ لَا يَسۡتَوِي مِنكُم مَّنۡ أَنفَقَ مِن قَبۡلِ ٱلۡفَتۡحِ وَقَٰتَلَۚ أُوْلَٰٓئِكَ أَعۡظَمُ دَرَجَةٗ مِّنَ ٱلَّذِينَ أَنفَقُواْ مِنۢ بَعۡدُ وَقَٰتَلُواْۚ وَكُلّٗا وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ ۝ 10
और तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अल्लाह के मार्ग में ख़र्च न करो, हालाँकि आकाशों और धरती की विरासत अल्लाह ही के लिए है? तुममें से जिन लोगों ने विजय से पूर्व ख़र्च किया और लड़े, वे परस्पर एक-दूसरे के समान नहीं हैं। वे तो दरजे में उनसे बढ़कर है जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और लड़े। यद्यपि अल्लाह ने प्रत्येक से अच्छा वादा किया है। अल्लाह उसकी ख़बर रखता है, जो कुछ तुम करते हो।॥10॥
مَّن ذَا ٱلَّذِي يُقۡرِضُ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنٗا فَيُضَٰعِفَهُۥ لَهُۥ وَلَهُۥٓ أَجۡرٞ كَرِيمٞ ۝ 11
कौन है जो अल्लाह को क़र्ज़ दे, अच्छा क़र्ज़ कि वह उसे उसके लिए कई गुना कर दे। और उसके लिए सम्मानित प्रतिदान है।॥11॥
يَوۡمَ تَرَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ يَسۡعَىٰ نُورُهُم بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَبِأَيۡمَٰنِهِمۖ بُشۡرَىٰكُمُ ٱلۡيَوۡمَ جَنَّٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ ۝ 12
जिस दिन तुम मोमिन पुरुषों और मोमिन स्त्रियों को देखोगे कि उनका प्रकाश उनके आगे-आगे दौड़ रहा है और उनके दाएँ हाथ में है। (कहा जाएगा,) "आज शुभ-सूचना है तुम्हारे लिए, ऐसी जन्‍नतों की जिनके नीचे नहरें बह रही हैं, जिनमें सदैव रहना है। वही बड़ी सफलता है।"॥12॥
يَوۡمَ يَقُولُ ٱلۡمُنَٰفِقُونَ وَٱلۡمُنَٰفِقَٰتُ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱنظُرُونَا نَقۡتَبِسۡ مِن نُّورِكُمۡ قِيلَ ٱرۡجِعُواْ وَرَآءَكُمۡ فَٱلۡتَمِسُواْ نُورٗاۖ فَضُرِبَ بَيۡنَهُم بِسُورٖ لَّهُۥ بَابُۢ بَاطِنُهُۥ فِيهِ ٱلرَّحۡمَةُ وَظَٰهِرُهُۥ مِن قِبَلِهِ ٱلۡعَذَابُ ۝ 13
जिस दिन कपटाचारी पुरुष और कपटाचारी स्त्रियाँ मोमिनों से कहेंगी, "तनिक हमारी प्रतिक्षा करो। हम भी तुम्हारे प्रकाश में से कुछ प्रकाश ले लें!" कहा जाएगा, "अपने पीछे लौट जाओ। फिर प्रकाश तलाश करो!" इतने में उनके बीच एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक द्वार होगा। उसके भीतर का हाल यह होगा कि उसमें दयालुता होगी और उसके बाहर का यह कि उस ओर से यातना होगी।॥13॥
يُنَادُونَهُمۡ أَلَمۡ نَكُن مَّعَكُمۡۖ قَالُواْ بَلَىٰ وَلَٰكِنَّكُمۡ فَتَنتُمۡ أَنفُسَكُمۡ وَتَرَبَّصۡتُمۡ وَٱرۡتَبۡتُمۡ وَغَرَّتۡكُمُ ٱلۡأَمَانِيُّ حَتَّىٰ جَآءَ أَمۡرُ ٱللَّهِ وَغَرَّكُم بِٱللَّهِ ٱلۡغَرُورُ ۝ 14
वे उन्हें पुकारकर कहेंगे, "क्या हम तुम्हारे साथी नहीं थे?" वे कहेंगे, "क्यों नहीं? किन्तु तुमने तो अपने आपको फ़ितने (गुमराही) में डाला और प्रतीक्षा करते रहे और संदेह में पड़े रहे और कामनाओं ने तुम्हें धोखे में डाले रखा, यहाँ तक कि अल्‍लाह का फै़सला आ गया और धोखेबाज़ (शैतान) ने तुम्‍हें अल्‍लाह के बारे में धोखे में डाले रखा।॥14॥
فَٱلۡيَوۡمَ لَا يُؤۡخَذُ مِنكُمۡ فِدۡيَةٞ وَلَا مِنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ مَأۡوَىٰكُمُ ٱلنَّارُۖ هِيَ مَوۡلَىٰكُمۡۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 15
"अब आज न तुमसे कोई फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) लिया जाएगा और न उन लोगों से जिन्होंने इनकार किया। तुम्हारा ठिकाना आग है, और वही तुम्हारी संरक्षिका है, और बहुत ही बुरी जगह है अन्त में पहुँचने की!"॥15॥
۞أَلَمۡ يَأۡنِ لِلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَن تَخۡشَعَ قُلُوبُهُمۡ لِذِكۡرِ ٱللَّهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ ٱلۡحَقِّ وَلَا يَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ مِن قَبۡلُ فَطَالَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡأَمَدُ فَقَسَتۡ قُلُوبُهُمۡۖ وَكَثِيرٞ مِّنۡهُمۡ فَٰسِقُونَ ۝ 16
क्या उन लोगों के लिए, जो ईमान लाए, अभी वह समय नहीं आया कि उनके दिल अल्लाह की याद के लिए और जो सत्य अवतरित हुआ है उसके लिए झुक जाएँ? और वे उन लोगों की तरह न हो जाएँ जिन्हें पहले किताब दी गई थी, फिर उनपर दीर्ध समय बीत गया। अन्ततः उनके दिल कठोर हो गए और उनमें से अधिकांश अवज्ञाकारी ही रहे।॥16॥
ٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يُحۡيِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۚ قَدۡ بَيَّنَّا لَكُمُ ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ۝ 17
जान लो, अल्लाह धरती को उसकी मृत्यु के पश्‍चात् जीवन प्रदान करता है। हमने तुम्हारे लिए आयतें खोल-खोलकर बयान कर दी हैं ताकि तुम बुद्धि से काम लो।॥17॥
إِنَّ ٱلۡمُصَّدِّقِينَ وَٱلۡمُصَّدِّقَٰتِ وَأَقۡرَضُواْ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنٗا يُضَٰعَفُ لَهُمۡ وَلَهُمۡ أَجۡرٞ كَرِيمٞ ۝ 18
निश्‍चय ही जो सदक़ा देनेवाले पुरुष और सदक़ा देनेवाली स्त्रियाँ हैं, और उन्होंने अल्लाह को अच्छा कर्ज़ दिया, उसे उसके लिए कई गुना कर दिया जाएगा। और उनके लिए सम्मानित प्रतिदान है।॥18॥
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦٓ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلصِّدِّيقُونَۖ وَٱلشُّهَدَآءُ عِندَ رَبِّهِمۡ لَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ وَنُورُهُمۡۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَآ أُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 19
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, वही अपने रब के यहाँ सिद्दीक़ और शहीद1 हैं। उनके लिए उनका प्रतिदान और उनका प्रकाश है। किन्तु जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही भड़कती आगवाले हैं॥19॥ ———————— 1. अर्थात् अत्यन्त सच्चे और सत्य के साथी।
ٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّمَا ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا لَعِبٞ وَلَهۡوٞ وَزِينَةٞ وَتَفَاخُرُۢ بَيۡنَكُمۡ وَتَكَاثُرٞ فِي ٱلۡأَمۡوَٰلِ وَٱلۡأَوۡلَٰدِۖ كَمَثَلِ غَيۡثٍ أَعۡجَبَ ٱلۡكُفَّارَ نَبَاتُهُۥ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَىٰهُ مُصۡفَرّٗا ثُمَّ يَكُونُ حُطَٰمٗاۖ وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِ عَذَابٞ شَدِيدٞ وَمَغۡفِرَةٞ مِّنَ ٱللَّهِ وَرِضۡوَٰنٞۚ وَمَا ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَآ إِلَّا مَتَٰعُ ٱلۡغُرُورِ ۝ 20
जान लो, सांसारिक जीवन तो बस एक खेल और तमाशा है और एक साज-सज्जा और तुम्हारा आपस में एक-दूसरे पर बड़ाई जताना, और धन और संतान में परस्पर एक-दूसरे से बढ़ा हुआ प्रदर्शित करना, वर्षा की मिसाल की तरह जिसकी वनस्पति ने किसान का दिल मोह लिया, फिर वह पक जाती है; फिर तुम उसे देखते हो कि वह पीली हो गई। फिर वह चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाती है, जबकि आख़िरत में कठोर यातना भी है और अल्लाह की क्षमा और प्रसन्‍नता भी। सांसारिक जीवन तो केवल धोखे की सुख-सामग्री है।॥20॥
سَابِقُوٓاْ إِلَىٰ مَغۡفِرَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ وَجَنَّةٍ عَرۡضُهَا كَعَرۡضِ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِ أُعِدَّتۡ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦۚ ذَٰلِكَ فَضۡلُ ٱللَّهِ يُؤۡتِيهِ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 21
अपने रब की क्षमा और उस जन्‍नत की ओर अग्रसर होने में एक-दूसरे से बाज़ी ले जाओ, जिसका विस्तार आकाश और धरती के विस्तार जैसा है, जो उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए हों। यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़े उदार अनुग्रह का मालिक है।॥21॥
مَآ أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٖ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فِيٓ أَنفُسِكُمۡ إِلَّا فِي كِتَٰبٖ مِّن قَبۡلِ أَن نَّبۡرَأَهَآۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٞ ۝ 22
जो मुसीबत भी धरती में आती है और तुम्हारे अपने ऊपर, वह अनिवार्यतः एक किताब में अंकित है, इससे पहले कि हम उसे अस्तित्व में लाएँ — निश्‍चय ही यह अल्लाह के लिए आसान है —॥22॥
لِّكَيۡلَا تَأۡسَوۡاْ عَلَىٰ مَا فَاتَكُمۡ وَلَا تَفۡرَحُواْ بِمَآ ءَاتَىٰكُمۡۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخۡتَالٖ فَخُورٍ ۝ 23
(यह बात तुम्हें इसलिए बता दी गई) ताकि तुम उस चीज़ का अफ़सोस न करो जो तुमसे जाती रहे और न उसपर फूल जाओ जो उसने तुम्हें प्रदान की हो। अल्लाह किसी इतरानेवाले, बड़ाई जतानेवाले को पसन्द नहीं करता।॥23॥
ٱلَّذِينَ يَبۡخَلُونَ وَيَأۡمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلۡبُخۡلِۗ وَمَن يَتَوَلَّ فَإِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡغَنِيُّ ٱلۡحَمِيدُ ۝ 24
जो स्वयं कंजूसी करते हैं और लोगों को भी कंजूसी करने पर उकसाते हैं, और जो कोई मुँह मोड़े, तो अल्लाह तो बेनियाज (निस्पृह) प्रशंसनीय है।॥24॥
لَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا رُسُلَنَا بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَأَنزَلۡنَا مَعَهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡمِيزَانَ لِيَقُومَ ٱلنَّاسُ بِٱلۡقِسۡطِۖ وَأَنزَلۡنَا ٱلۡحَدِيدَ فِيهِ بَأۡسٞ شَدِيدٞ وَمَنَٰفِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعۡلَمَ ٱللَّهُ مَن يَنصُرُهُۥ وَرُسُلَهُۥ بِٱلۡغَيۡبِۚ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٞ ۝ 25
निश्‍चय ही हमने अपने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा और उनके साथ किताब और तुला उतारी ताकि लोग इनसाफ़ पर क़ायम हों। और लोहा भी उतारा जिसमें बड़ी दहशत है और लोगों के लिए कितने ही लाभ हैं, और (किताब एवं तुला इसलिए भी उतारी) ताकि अल्लाह जान ले2 कि कौन परोक्ष में रहते हुए उसकी और उसके रसूलों की सहायता करता है। निश्‍चय ही अल्लाह शक्तिशाली, प्रभुत्वशाली है।॥25॥ ————————— 2. लोगों के समक्ष स्पष्ट कर दे।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحٗا وَإِبۡرَٰهِيمَ وَجَعَلۡنَا فِي ذُرِّيَّتِهِمَا ٱلنُّبُوَّةَ وَٱلۡكِتَٰبَۖ فَمِنۡهُم مُّهۡتَدٖۖ وَكَثِيرٞ مِّنۡهُمۡ فَٰسِقُونَ ۝ 26
हमने नूह और इबराहीम को भेजा और उन दोनों की सन्तति में पैग़म्बरी और क़िताब रख दी। फिर उनमें से किसी ने तो सन्मार्ग अपनाया; किन्तु उनमें से अधिकतर अवज्ञाकारी थे॥26॥
ثُمَّ قَفَّيۡنَا عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِم بِرُسُلِنَا وَقَفَّيۡنَا بِعِيسَى ٱبۡنِ مَرۡيَمَ وَءَاتَيۡنَٰهُ ٱلۡإِنجِيلَۖ وَجَعَلۡنَا فِي قُلُوبِ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ رَأۡفَةٗ وَرَحۡمَةٗۚ وَرَهۡبَانِيَّةً ٱبۡتَدَعُوهَا مَا كَتَبۡنَٰهَا عَلَيۡهِمۡ إِلَّا ٱبۡتِغَآءَ رِضۡوَٰنِ ٱللَّهِ فَمَا رَعَوۡهَا حَقَّ رِعَايَتِهَاۖ فَـَٔاتَيۡنَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنۡهُمۡ أَجۡرَهُمۡۖ وَكَثِيرٞ مِّنۡهُمۡ فَٰسِقُونَ ۝ 27
फिर उनके पीछ उन्हीं के पद-चिन्हों पर हमने अपने दूसरे रसूलों को भेजा और हमने उनके पीछे मरयम के बेटे ईसा को भेजा और उसे इंजील प्रदान की। और जिन लोगों ने उसका अनुसरण किया उनके दिलों में हमने करुणा और दया रख दी। रहा संन्यास, तो उसे उन्होंने स्वयं गढ़ा था। हमने उसे उनके लिए अनिवार्य नहीं किया था, यदि अनिवार्य की थी तो केवल अल्लाह की प्रसन्‍नता की चाहत। फिर वे उसका निर्वाह न कर सके जैसा कि उनका निर्वाह करना चाहिए था। अतः उन लोगों को, जो उनमें से वास्तव में ईमान लाए थे, उनका बदला हमने (उन्हें) प्रदान किया। किन्तु उनमें से अधिकतर अवज्ञाकारी ही हैं।॥27॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَءَامِنُواْ بِرَسُولِهِۦ يُؤۡتِكُمۡ كِفۡلَيۡنِ مِن رَّحۡمَتِهِۦ وَيَجۡعَل لَّكُمۡ نُورٗا تَمۡشُونَ بِهِۦ وَيَغۡفِرۡ لَكُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 28
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! अल्लाह का डर रखो और उसके रसूल पर ईमान लाओ। वह तुम्हें अपनी दयालुता का दोहरा हिस्सा प्रदान करेगा और तुम्हारे लिए एक प्रकाश कर देगा, जिसमें तुम चलोगे और तुम्हें क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।॥28॥
لِّئَلَّا يَعۡلَمَ أَهۡلُ ٱلۡكِتَٰبِ أَلَّا يَقۡدِرُونَ عَلَىٰ شَيۡءٖ مِّن فَضۡلِ ٱللَّهِ وَأَنَّ ٱلۡفَضۡلَ بِيَدِ ٱللَّهِ يُؤۡتِيهِ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 29
ताकि किताबवाले यह न समझें कि अल्लाह के अनुग्रह में से वे3 किसी चीज़ पर अधिकार न प्राप्‍त कर सकेंगे और यह कि अनुग्रह अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है।4 और अल्लाह महान अनुग्रह का मालिक है।॥29॥ ———————— 3. अर्थात् हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के अनुयायी। 4. अर्थात् अल्लाह के अनुग्रह पर उनका कोई अधिकार नहीं है। वह जिसे चाहता है, प्रदान करता है। अतएव यह वास्तविकता है कि उसने ईमानवालों पर अपना अनुग्रह किया है।