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سُورَةُ الأَعۡلَىٰ

87. अल-आला

(मक्का में उतरी, आयतें 19)

परिचय

नाम

पहली ही आयत 'सब्बिहिस-म रब्बिकल आला' (अपने सर्वोच्च रब के नाम की तसबीह करो) के शब्द 'अल-आला' (सर्वोच्च) को इस सूरा का नाम दिया गया।

उतरने का समय

इसके विषय से भी मालूम होता है कि यह बिल्कुल आरम्भिक काल की अवतरित सूरतों में से है और आयत 6 के ये शब्द भी कि 'हम तुम्हें पढ़वा देंगे, फिर तुम नहीं भूलोगे' यह बताते हैं कि यह सूरा उस काल में उतरी थी जब अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को अभी वह्य (प्रकाशना) ग्रहण करने का अच्छी तरह अभ्यास नहीं हुआ था और वह्य उतरते समय आपको आशंका होती थी कि कहीं मैं उसके शब्द भूल न जाऊँ।

विषय और वार्ता

इस छोटी-सी सूरा के तीन विषय हैं—

1. तौहीद (एकेश्वरवाद), 2. नबी (सल्ल०) को हिदायत, और 3. आख़िरत। पहली आयत में तौहीद की शिक्षा को इस एक वाक्य में समेट दिया गया है कि अल्लाह के नाम की तसबीह (गुणगान) की जाए, अर्थात् उसको किसी ऐसे नाम से याद न किया जाए जो अपने भीतर किसी प्रकार की कमी, कमज़ोरी, दोष या सृष्ट प्राणियों के समरूप होने का कोई पहलू रखता हो, क्योंकि दुनिया में जितने भी ग़लत और बिगड़े हुए अक़ीदे (धारणाएँ) पैदा हुए हैं, उन सबकी मूल में अल्लाह के बारे में कोई न कोई ग़लत धारणा मौजूद है, जिसने उस पवित्र सत्ता के लिए किसी ग़लत नाम का रूप ले लिया है। इसलिए अक़ीदे को सही करने के लिए सबसे पहली बात यह है कि प्रतापवान अल्लाह को सिर्फ़ उन अच्छे नामों ही से याद किया जाए जो उसके लिए उचित और उपयुक्त हैं। इसके बाद तीन आयतों में बताया गया है कि तुम्हारा रब, जिसके नाम की तसबीह का आदेश दिया जा रहा है, वह है जिसने सृष्टि की हर चीज़ को पैदा किया, उसका सन्तुलन स्थापित किया, उसका भाग्य बनाया, उसे उस काम को अंजाम देने की राह बताई, जिसके लिए वह पैदा की गई है। फिर दो आयतों में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को आदेश दिया गया है कि आप इस चिन्ता में न पड़ें कि यह क़ुरआन शब्दश: आपको कैसे याद रहेगा। इसको आपके हाफ़िज़े (स्मृति) में सुरक्षित कर देना हमारा काम है और इसका सुरक्षित रहना आपकी किसी निजी योग्यता का नतीजा नहीं, बल्कि हमारी उदार कृपा का नतीजा है, वरना हम चाहें तो इसे भुलवा दें। इसके बाद अल्लाह के रसूल (सल्ल०) से कहा गया है कि हर एक को सीधे रास्ते पर ले आने का काम आपके सिपुर्द नहीं किया गया है, बल्कि आपका काम बस सत्य का प्रचार कर देना है, और प्रचार का सीधा-साधा तरीक़ा यह है कि जो उपदेश सुनने और अपनाने के लिए तैयार हो उसे उपदेश दिया जाए, जो उसके लिए तैयार न हो उसके पीछे न पड़ा जाए। अन्त में वार्ता को इस बात पर समाप्त किया गया है कि सफलता सिर्फ़ उन लोगों के लिए है जो अक़ीदे, अख़्लाक़ और अमल की पाकीज़गी अपनाएँ और अपने रब का नाम याद करके नमाज़ पढ़ें। लेकिन लोगों का हाल यह है कि उन्हें सारी चिन्ता बस इसी दुनिया की है, हालाँकि वास्तविक चिन्ता आख़िरत की होनी चाहिए।

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سُورَةُ الأَعۡلَىٰ
87. अल-आला
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
سَبِّحِ ٱسۡمَ رَبِّكَ ٱلۡأَعۡلَى ۝ 1
तसबीह (महिमागान) करो अपने सर्वोच्‍च रब के नाम की, ॥1॥
ٱلَّذِي خَلَقَ فَسَوَّىٰ ۝ 2
जिसने पैदा किया, फिर ठीक-ठाक किया,॥2॥
وَٱلَّذِي قَدَّرَ فَهَدَىٰ ۝ 3
जिसने निर्धारित किया, फिर मार्ग दिखाया,॥3॥
وَٱلَّذِيٓ أَخۡرَجَ ٱلۡمَرۡعَىٰ ۝ 4
जिसने वनस्पति उगाई,॥4॥
فَجَعَلَهُۥ غُثَآءً أَحۡوَىٰ ۝ 5
फिर उसे ख़ूब घना और हरा-भरा कर दिया।॥5॥
سَنُقۡرِئُكَ فَلَا تَنسَىٰٓ ۝ 6
हम तुम्हें पढ़ा देंगे, फिर तुम भूलोगे नहीं।॥6॥
إِلَّا مَا شَآءَ ٱللَّهُۚ إِنَّهُۥ يَعۡلَمُ ٱلۡجَهۡرَ وَمَا يَخۡفَىٰ ۝ 7
बात यह है कि अल्लाह की इच्छा ही क्रियान्वित है। निश्‍चय ही वह जानता है खुले को भी और उसे भी जो छिपा रहे।॥7॥
وَنُيَسِّرُكَ لِلۡيُسۡرَىٰ ۝ 8
हम तुम्हें सहज ढंग से उस चीज़ का पात्र बना देंगे जो सहज एवं मृदुल (आरामदायक) है।॥8॥
فَذَكِّرۡ إِن نَّفَعَتِ ٱلذِّكۡرَىٰ ۝ 9
अतः याद दिलाओ, यदि याद दिलाना लाभप्रद हो!॥9॥
سَيَذَّكَّرُ مَن يَخۡشَىٰ ۝ 10
नसीहत हासिल कर लेगा जिसको डर होगा,॥10॥
وَيَتَجَنَّبُهَا ٱلۡأَشۡقَى ۝ 11
किन्तु उससे कतराएगा वह अत्यन्त दुर्भाग्यवाला,॥11॥
ٱلَّذِي يَصۡلَى ٱلنَّارَ ٱلۡكُبۡرَىٰ ۝ 12
जो बड़ी आग में पड़ेगा, ॥12॥
ثُمَّ لَا يَمُوتُ فِيهَا وَلَا يَحۡيَىٰ ۝ 13
फिर वह उसमें न मरेगा, न जिएगा।॥13॥
قَدۡ أَفۡلَحَ مَن تَزَكَّىٰ ۝ 14
सफल हो गया वह जिसने अपने आपको निखार लिया,॥14॥
وَذَكَرَ ٱسۡمَ رَبِّهِۦ فَصَلَّىٰ ۝ 15
और अपने रब के नाम का स्मरण किया, अतः नमाज़ अदा की।॥15॥
بَلۡ تُؤۡثِرُونَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا ۝ 16
नहीं, बल्कि तुम तो सांसारिक जीवन को प्राथमिकता देते हो,॥16॥
وَٱلۡأٓخِرَةُ خَيۡرٞ وَأَبۡقَىٰٓ ۝ 17
हालाँकि आख़िरत अधिक उत्तम और शेष रहनेवाली है।॥17॥
إِنَّ هَٰذَا لَفِي ٱلصُّحُفِ ٱلۡأُولَىٰ ۝ 18
निस्संदेह यही बात पहले की किताबों में भी है; ॥18॥
صُحُفِ إِبۡرَٰهِيمَ وَمُوسَىٰ ۝ 19
इबराईम और मूसा की किताबों में॥19॥