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سُورَةُ البَلَدِ

90. अल-बलद

(मक्का में उतरी, आयतें 20)

परिचय

नाम

पहली ही आयत ला ‘उक़सिमु बिहाज़ल ब-लदि' (नहीं, मैं क़सम खाता हूँ इस शहर अर्थात् मक्का की) के शब्द 'अल-बलद' को इसका नाम क़रार दिया गया है।

उतरने का समय

इसका विषय और वर्णनशैली मक्का के आरम्भिक काल की सूरतों जैसी है, मगर एक संकेत इसमें ऐसा मौजूद है जो पता देता है कि इसके उतरने का समय वह था जब मक्का के विधर्मी अल्लाह के रसूल (सल्ल०) की दुश्मनी पर तुल गए थे और आपके विरुद्ध हर जुल्म और ज़्यादती को उन्होंने अपने लिए वैध कर लिया था।

विषय और वार्ता

इस सूरा का विषय दुनिया में इंसान की, और इंसान के लिए दुनिया की सही हैसियत समझाना और यह बताना है कि अल्लाह ने इंसान के लिए सौभाग्य और दुर्भाग्य के दोनों रास्ते खोलकर रख दिए हैं। उनको देखने और उनपर चलने के साधन भी उसे जुटा दिए हैं। और अब यह इंसान की अपनी मेहनत और कोशिश पर है कि वह सौभाग्य की राह चलकर अच्छे अंजाम को पहुँचता है या दुर्भाग्य का रास्ता अपनाकर बुरा अंजाम भोगता है। सबसे पहले शहर मक्का और उसमें अल्लाह के रसूल (सल्ल०) पर आनेवाली मुसीबतें और आदम की पूरी संतान की हालत को इस तथ्य पर गवाह की हैसियत से पेश किया गया है कि यह दुनिया इंसान के लिए विश्रामालय नहीं है, बल्कि यहाँ इसका जन्म ही परिश्रम की हालत में हुआ है। इस विषय को अगर सूरा-53 नज्म की आयत 39 "इंसान के लिए कुछ नहीं, लेकिन वह जिसके लिए उसने कोशिश की" के साथ मिलाकर देखा जाए तो बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि दुनिया के इस कारख़ाने में इंसान का भविष्य उसकी कोशिश और मेहनत पर निर्भर करता है। इसके बाद इंसान का यह भ्रम दूर किया गया है कि ऊपर कोई सर्वोच्च सत्ता नहीं है जो उसके काम की निगरानी करनेवाली और उसकी पकड़ करनेवाली हो। फिर बताया गया है कि दुनिया में इंसान ने मान-सम्मान और महानता के कैसे ग़लत मानदंड बनाकर रखे हैं। जो आदमी अपनी बड़ाई की नुमाइश के लिए ढेरों माल लुटाता है, लोग उसकी ख़ूब प्रशंसा करते हैं, हालाँकि जो हस्ती उसके काम की निगरानी कर रही है वह यह देखती है कि उसने यह माल किन तरीक़ों से प्राप्त किया और किन रास्तों में किस नीयत और किन उद्देश्यों के लिए ख़र्च किया। इसके बाद अल्लाह फ़रमाता है कि हमने इंसान को ज्ञान के साधन और सोचने-समझने की क्षमताएँ देकर उसके सामने भलाई और बुराई के दोनों रास्ते खोलकर रख दिए हैं। एक रास्ता वह है जो नैतिक पतन की ओर जाता है, और उसपर जाने के लिए कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ता, बल्कि मन को बड़ा स्वाद मिलता है। दूसरा रास्ता नैतिक ऊँचाइयों की ओर जाता है जो एक दुर्गम घाटी की तरह है। उसपर चलने के लिए आदमी को अपनी इंद्रियों को मजबूर करना पड़ता है। फिर अल्लाह ने बताया है कि वह घाटी क्या है जिससे गुज़रकर आदमी ऊँचाइयों की ओर जा सकता है। इस रास्ते पर चलनेवालों का अंजाम यह है कि आदमी अल्लाह की दयालुताओं का पात्र हो, और इसके विपरीत दूसरा रास्ता अपनानेवालों का अंजाम जहन्नम (नरक) की आग है जिससे निकलने के सारे दरवाज़े बन्द है |

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سُورَةُ البَلَدِ
90. अल-बलद
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
لَآ أُقۡسِمُ بِهَٰذَا ٱلۡبَلَدِ ۝ 1
सुनो! मैं क़सम खाता हूँ इस नगर (मक्‍का) की — ॥1॥
وَأَنتَ حِلُّۢ بِهَٰذَا ٱلۡبَلَدِ ۝ 2
हाल यह है कि तुम इसी नगर में रह रहे हो — ॥2॥
وَوَالِدٖ وَمَا وَلَدَ ۝ 3
और जनक की और उसकी संतान की, ॥3॥
لَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ فِي كَبَدٍ ۝ 4
निस्संदेह हमने मनुष्य को पूर्ण अनुकूलता और सन्तुलित शक्ति सामर्थ्‍य के साथ पैदा किया।1॥4॥ ——————— 1. इसका यह अर्थ भी है : “निश्चय ही हमने मनुष्य को मशक़्क़त में पैदा किया।”
أَيَحۡسَبُ أَن لَّن يَقۡدِرَ عَلَيۡهِ أَحَدٞ ۝ 5
क्या वह समझता है कि उसपर किसी का बस न चलेगा?॥5॥
يَقُولُ أَهۡلَكۡتُ مَالٗا لُّبَدًا ۝ 6
कहता है कि "मैंने ढेरों माल उड़ा दिया।"॥6॥
أَيَحۡسَبُ أَن لَّمۡ يَرَهُۥٓ أَحَدٌ ۝ 7
क्या वह समझता है कि किसी ने उसे देखा नहीं?॥7॥
أَلَمۡ نَجۡعَل لَّهُۥ عَيۡنَيۡنِ ۝ 8
क्या हमने उसे नहीं दीं दो आँखें,॥8॥
وَلِسَانٗا وَشَفَتَيۡنِ ۝ 9
और एक ज़बान और दो होंठ?॥9॥
وَهَدَيۡنَٰهُ ٱلنَّجۡدَيۡنِ ۝ 10
और (क्या ऐसा नहीं है कि) हमने दिखाईं उसे दो ऊँचाइयाँ?॥10॥
فَلَا ٱقۡتَحَمَ ٱلۡعَقَبَةَ ۝ 11
किन्तु वह तो हुमककर घाटी में से गुज़रा ही नहीं (और न उसने मुक्ति का मार्ग पाया)। ॥11॥
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا ٱلۡعَقَبَةُ ۝ 12
और तुम्हें क्या मालूम कि वह घाटी क्या है!॥12॥
فَكُّ رَقَبَةٍ ۝ 13
किसी गरदन का छुड़ाना2 ॥13॥ ———————— 2. अर्थात किसी को ग़ुलामी से, राम से या किसी भी संकट से मुक्ति दिलाना।
أَوۡ إِطۡعَٰمٞ فِي يَوۡمٖ ذِي مَسۡغَبَةٖ ۝ 14
या भूख के दिन खाना खिलाना॥14॥
يَتِيمٗا ذَا مَقۡرَبَةٍ ۝ 15
किसी निकटवर्ती अनाथ को,॥15॥
أَوۡ مِسۡكِينٗا ذَا مَتۡرَبَةٖ ۝ 16
या धूल-धूसरित मुहताज को;॥16॥
ثُمَّ كَانَ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَتَوَاصَوۡاْ بِٱلصَّبۡرِ وَتَوَاصَوۡاْ بِٱلۡمَرۡحَمَةِ ۝ 17
फिर यह कि इस सब के साथ वह उन लोगों में से हो जो ईमान लाए और जिन्होंने एक-दूसरे को धैर्य की ताकीद की और एक-दूसरे को दया की ताकीद की॥17॥
أُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡمَيۡمَنَةِ ۝ 18
वही लोग हैं सौभाग्यशाली।॥18॥
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِنَا هُمۡ أَصۡحَٰبُ ٱلۡمَشۡـَٔمَةِ ۝ 19
रहे वे लोग जिन्होंने हमारी आयातों का इनकार किया, वे दुर्भाग्यशाली लोग हैं।॥19॥
عَلَيۡهِمۡ نَارٞ مُّؤۡصَدَةُۢ ۝ 20
उनपर आग होगी, जिसे बन्द कर दिया गया होगा।॥20॥