(42, 43) निस्सन्देह मेरे जो सच्चे बन्दे हैं उनपर तेरा बस न चलेगा। तेरा बस तो सिर्फ उन बहके हुए लोगों ही पर चलेगा जो तेरी पैरवी करें 24 और उन सबके लिए जहन्नम की धमकी है। 25
24. इस वाक्य के भी दो अर्थ हो सकते हैं। एक वह जो अनुवाद में अपनाया गया है और दूसरा अर्थ यह कि मेरे बन्दे (अर्थात आम इंसानों) पर तुझे कोई अधिकार प्राप्त न होगा कि तू उन्हें बलात् अवज्ञाकारी बना दे, अलबत्ता जो स्वयं ही बहके हुए हों और स्वयं ही तेरा पालन करना चाहें, उन्हें तेरे रास्ते पर जाने के लिए छोड़ दिया जाएगा, उन्हें हम बलपूर्वक उससे रोकने का यत्न न करेंगे।
पहले अर्थ की दृष्टि से विषय का सार यह होगा कि 'बन्दगी (आज्ञापालन) का तरीका अल्लाह तक पहुँचने का सीधा रास्ता है। जो लोग इस रास्ते को अपना लेंगे, उनपर शैतान का बस न चलेगा। उन्हें अल्लाह अपने लिए मुख्य कर लेगा, और शैतान स्वयं भी इकरार कर चुका है कि वे उसके फंदे में न फँसेंगे। अलबत्ता जो लोग स्वयं बन्दगी से विमुख होकर अपनी सफलता और सौभाग्य की राह गुम कर देंगे, वे इबलीस के हत्थे चढ़ जाएँगे और फिर जिधर-जिधर वह उन्हें फ़रेब देकर ले जाना चाहेगा, वे उसके पीछे भटकते और दूर से दूर तक निकलते चले जाएँगे।
दूसरे अर्थ की दृष्टि से इस व्याख्यान का सार यह होगा कि शैतान ने इंसानों को बहकाने के लिए अपनी रीति-नीति यह बताई कि वह धरती के जीवन को उनके लिए ख़ुशनुमा बनाकर उन्हें अल्लाह से ग़ाफ़िल और बन्दगी की राह से विमुख करेगा। अल्लाह ने इसकी पुष्टि करते हुए फ़रमाया कि यह शर्त मैंने मानी, और उसकी व्याख्या करते हुए यह बात भी स्पष्ट कर दी कि तुझे सिर्फ़ फ़रेब देने का अधिकार दिया जा रहा है, यह अधिकार नहीं दिया जा रहा है कि तू हाथ पकड़कर उन्हें बलात् अपनी राह पर खींच ले जाए। शैतान ने अपनी नोटिस से उन बन्दों को अलग किया जिन्हें अल्लाह अपने लिए मुख्य कर ले । इससे यह भ्रम पैदा हो रहा था कि शायद अल्लाह बिना किसी उचित कारण के यूँ ही जिसको चाहेगा मुख्य कर लेगा और वह शैतान की पकड़ से बच जाएगा। अल्लाह ने यह कहकर बात साफ़ कर दी कि जो स्वयं बहका हुआ होगा, वह तेरी पैरवी करेगा। दूसरे शब्दों में जो बहका हुआ न होगा, वही तेरा पालन न करेगा, और वही हमारा वह मुख्य बन्दा होगा जिसे हम ख़ालिस अपना कर लेंगे।
25. इस जगह यह किस्सा जिस उद्देश्य के लिए बयान किया गया है उसे समझने के लिए ज़रूरी है कि प्रसंग व स्पष्ट रूप से सन्दर्भ को मन में बिठा लिया जाए। पहले और दूसरे रुकूअ के विषय पर विचार करने से यह बात स्पष्ट रूप से समझ में आती है कि बयान के इस क्रम में आदम व इबलीस का यह किस्सा बयान करने का उद्देश्य इनकार करनेवालों को इस वास्तविकता पर सचेत करना है कि तुम अपने सदैव के दुश्मन शैतान के फंदे में फंस गए हो और उस पस्ती में गिरे चले जा रहे हो, जिसमें वह अपने द्वेष-भाव से तुम्हें गिराना चाहता है। इसके विपरीत यह नबी तुम्हें इसके फंदे से निकालकर उस ऊँचाई की ओर ले जाने का प्रयत्न कर रहा है जो वास्तव में इंसान होने की हैसियत से तुम्हारी स्वाभाविक जगह है, लेकिन तुम विचित्र मूर्ख लोग हो कि अपने शत्रु को मित्र और अपने हितैषी को शत्रु समझ रहे हो।
इसके साथ यह तथ्य भी इस किस्से से उनपर स्पष्ट किया गया है कि तुम्हारे लिए निजात का रास्ता केवल एक है, और वह अल्लाह की बन्दगी है। इस राह को छोड़कर तुम जिस राह पर भी जाओगे, वह शैतान की राह है जो सीधी जहन्नम की ओर जाती है।
तीसरी बात जो इस किस्से के ज़रिये से उनको समझाई गई है, यह है कि अपनी इस ग़लती के ज़िम्मेदार तुम स्वयं हो। शैतान का कोई काम इससे अधिक नहीं है कि वह प्रत्यक्ष सांसारिक जीवन से तुम्हें धोखा देकर तुमको बन्दगी की राह से हटाने की कोशिश करता है। उससे धोखा खाना तुम्हारा अपना कार्य है, जिसकी कोई ज़िम्मेदारी तुम्हारे अपने सिवा किसी और पर नहीं है । (इसको और अधिक व्याख्या के लिए देखिए क़ुरआन को सूरा-14, (इबराहीम), आयत 22, टिप्पणी 31)