(106) इसमें एक बड़ी ख़बर है उपासना करनेवाले लोगों के लिए।99
99. इस आयत का अर्थ कुछ लोग यह लेते हैं कि दुनिया के वर्तमान जीवन में ज़मीन की विरासत (अर्थात् हुकूमत और फरमारवाई और ज़मीन के साधनों पर उपयोग का अधिकार) सिर्फ़ भले लोगों को मिला करती है। फिर इस सर्वमान्य नियम से वे यह नतीजा निकालते हैं कि भले और बुरे के अन्तर का मापदण्ड ज़मीन की यही विरासत है। जिसको यह विरासत मिले, वह भला है और जिसको न मिले, वह बुरा। इसके बाद वे आगे बढ़कर उन क़ौमों पर निगाह डालते हैं जो दुनिया में पहले ज़मीन की वारिस रही हैं और आज इस विरासत को मालिक बनी हुई हैं। यहाँ वे देखते हैं कि ख़ुदा के इनकारी, मुशरिक, नास्तिक, अवज्ञाकारी, दुराचारी, सब यह विरासत पहले भी पाते रहे हैं और आज भी पा रहे हैं। यह देखकर वे यह राय बनाते हैं कि क़ुरआन का बयान किया हुआ मान्य नियम तो ग़लत नहीं हो सकता। अब अनिवार्यः ग़लती जो कुछ है, वह 'भले सदाचारी' के उस अर्थ में है जो अब तक मुसलमान समझते रहे हैं। चुनांचे वे 'सदाचार' की एक नई कल्पना है जिसके अनुसार ज़मीन के वारिस होनेवाले सब लोग समान रूप से सदाचारी करार पा सकें, इससे हटकर कि वह हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ और हज़रत उमर फ़ारूक़ हों या चंगेज़ और हलाकू। इस नई कल्पना की खोज डार्विन का विकास-सिद्धान्त उनका मार्गदर्शन करता है और वह क़ुरआन के सदाचार को धारणा को डार्वियनी धारणा सलाहियत' (Fitness) से ले जाकर मिला देते हैं।
इस नई व्याख्या के अनुसार इस आयत का अर्थ यह करार पाता है कि जो आदमी और गिरोह भी देशों को जीतने और उनपर ज़ोर और शक्ति के साथ अपना शासन चलाने और ज़मीन के साधनों का सफलता के साथ उपयोग करने की योग्यता रखता हो, वही अल्लाह का सदाचारी बन्दा है और उसका यह काम तमाम 'इबादत-गुज़ार इंसानों के लिए एक संदेश है कि 'इबादत' इस चीज़ का नाम है जो यह आदमी और गिरोह कर रहा है। अगर यह इबादत तुम नहीं करते और नतीजे में जमीन को विरासत से महरूम रह जाते हो, तो न तुम्हारी गिनती भले लोगों में हो सकती है और न तुमको अल्लाह का इबादत-गुज़ार बन्दा कहा जा सकता है।
[इन लोगों की यह व्याख्या क़ुरआन की समष्टीय शिक्षाओं के विरुद्ध है और संदर्भ से भी कोई अनुकूलता नहीं रखती] टीका के सही नियमों को दृष्टि में रखकर देखा जाए तो आयत का अर्थ स्पष्ट है कि क़ियामत में जब लोग दुबारा पैदा किए जाएंगे, जिसका उल्लेख इससे पहले की आयत में हुआ है, ज़मीन के वारिस केवल भले लोग होंगे और उस शाश्वत जीवन की व्यवस्था में वर्तमान जीवन की क्षणिक व्यवस्था की-सी स्थिति बाक़ी न रहेगी कि ज़मीन पर दुराचारियों और अत्याचारियों को भी कब्जा हासिल हो जाता है। यह विषय सूरा-23 मोमिनून, आयत 10-11 में भी बयान हुआ है और इससे अधिक खुले शब्दों में सूरा-39 जुमर के अन्त में बयान किया गया है जहाँ अल्लाह कियामत का उल्लेख करने के बाद नेक लोगों का अंजाम यह बताता है कि "और जिन लोगों ने अपने.रब के डर से तक़वा अपनाया था वे जन्नत की ओर गिरोह दर गिरोह ले जाए जाएंगे, यहाँ तक कि जब वे वहाँ पहुंच जाएंगे तो उनके लिए जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाएंगे और उनके प्रबंधक उनसे कहेंगे कि सलाम हो तुमको, तुम बहुत अच्छे रहे, आओ, अब इसमें हमेशा रहने के लिए दाखिल हो जाओ और वे कहेंगे कि प्रशंसा है उस अल्लाह की जिसने हमसे अपना वादा पूरा किया और हमको ज़मीन का वारिस कर दिया। अब हम जन्नत में जहाँ चाहें अपनी जगह बना सकते हैं। अत: सबसे अच्छा बदला है अमल करनेवालों के लिए।" देखिए, ये दोनों आयतें एक ही विषय का वर्णन कर रही हैं और दोनों जगह ज़मीन की विरासत का ताल्लुक आख़िरत की दुनिया से है, न कि इस दुनिया से।
अब ज़बूर को लीजिए जिसका हवाला इस आयत में दिया गया है। यद्यपि असली ज़बूर को प्रति कहीं मौजूद नहीं है, फिर भी जो ज़बूर इस समय मौजूद है, इसमें भी नेकी, सच्चाई और अल्लाह पर भरोसा करने के उपदेश के बाद कहा गया है- “क्योंकि दुराचारी काट डाले जाएंगे, लेकिन हलीम (सहनशीलता) वाले मुल्क के वारिस होंगे- उनको मोरास हमेशा के लिए होगी- सदाचारी जमीन के वारिस होंगे और उसमें हमेशा बसे रहेंगे।"37 दाऊद का मज़मूर, आयत 9-10,11-18-29) देखिए यहाँ सच्चे लोगों के लिए जमीन की हमेशा की विरासत का उल्लेख है और जाहिर है कि आसमानी किताबों के अनुसार हमेशगी और शाशवत जीवन का ताल्लुक आखिरत से है, न कि इस दुनिया की जिंदगी से । दुनिया में जमीन को क्षणिक विरासत जिस कायदे पर वितरित होती है, उसे सूरा-7 आराफ़ (आयत 128) में इस तरह बयान किया गया है कि "जमीन अल्लाह की है, अपने बन्दों में से जिसको चाहता है, उसका वारिस बनाता है।" अल्लाह के मंशा के तहत यह विरासत अल्लाह को माननेवाले और उसके इनकारी, सदाचारी और दुराचारी, फ़रमा-बरदार और नाफरमान सबको मिलती है, मगर कर्मों के बदले के रूप में नहीं, बल्कि परीक्षा के रूप में । जैसा कि इसी आयत के बाद दूसरी आयत में फ़रमाया," और वह तुमको ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाएगा, फिर देखेगा कि तुम कैसे कार्य करते हो।" इस विरासत में हमेशगी और शाश्वतता नहीं है। इसके विपरीत आखिरत में इसी ज़मीन का शाश्वत बन्दोबस्त होगा और क़ुरआन के बहुत से खुले कथनों की रोशनी में वह इस नियम पर होगा कि "ज़मीन अल्लाह की है और वह अपने बन्दों में से सिर्फ़ ईमानवाले सदाचारियों को इसका वारिस बनाएगा, परीक्षा के रूप में नहीं, बल्कि सदाचार की उस नीति के शाश्वत बदले के रूप में जो उन्होंने दुनिया में अपनाई (और अधिक व्याख्या के लिए देखिए, सूरा-24 अन-नूर, टिप्पणी 83)।