(113) और उसे और इसहाक़ को बरकत दी।67 अब इन दोनों की नस्ल में से कोई उत्तम कार्य करनेवाला है और कोई अपने आप पर खुला जुल्म करनेवाला है।68
67. यहाँ पहुँचकर यह प्रश्न हमारे सामने आता है कि हज़रत इबराहीम (अलैहि०) अपने जिन लड़के को क़ुर्बान करने के लिए तैयार हुए थे, वे कौन थे। [आज की बाइबिल इस प्रश्न के उत्तर में हजरत इसहाक का नाम लेती है। (उत्पत्ति 22 : 1-2) मगर स्वयं बाइबिल ही के दूसरे बयान इस दावे का खुला खंडन कर रहे हैं। (देखिए किताब उत्पत्ति 16 : 1-3, 11-16 और 17 : 15-25 तथा 21:5) इस्लामी उलमा में से भी एक गिरोह इसी बात को मानता है, जबकि दूसरे उलमा के नज़दीक यह लड़के हज़रत इसहाक नहीं, बल्कि हज़रत इस्माईल (अलैहि०) थे, और यही बात सही है। इसके तर्क नीचे दिए जा रहे हैं-
(1) ऊपर क़ुरआन मजीद में अल्लाह का यह इर्शाद गुज़र चुका है कि अपने देश से चलते समय हज़रत इबराहीम ने एक नेक बेटे के लिए दुआ की थी और उसके उत्तर में अल्लाह ने उनको एक सहनशील लड़के की शुभ-सूचना दी। प्रसंग-संदर्भ स्पष्ट बता रहा है कि यह शुभ-सूचना जिस लड़के की दी गई, वह आपका पहलौंटा बच्चा था। फिर यह भी कुरआन ही के वार्ताक्रम से स्पष्ट होता है कि वही बच्चा जब बाप के साथ दौड़ने-चलने के योग्य हुआ, तो उसे ज़ब्द करने का इशारा फ़रमाया गया। अब यह बात निश्चित रूप से सिद्ध है कि हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के पहलौटे बेटे हज़रत इस्माईल (अलैहि०) थे, न कि हज़रत इसहाक।
(2) क़ुरआन मजीद में जहाँ हज़रत इसहाक़ (अलैहि०) की शुभ-सूचना दी गई है वहाँ उनके लिए 'ग़ुलामे-अलीम' (ज्ञानवान लड़का) के शब्द प्रयुक्त हुए हैं। (सूरा-51, अज़-ज़ारियात, आयत 28) और (सूरा-15, अल-हिज्र, आयत 53) मगर यहाँ जिस लड़के की शुभ-सूचना दी गई है, उसके लिए 'गुलामे-हलीम' (सहनशील लड़के) के शब्द प्रयुक्त हुए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि दो लड़कों की दो खुली विशेषताएँ अलग-अलग थीं और ज़ब्ह का आदेश ज्ञानवाले लड़के के लिए नहीं, 'सहनशील' लड़के के लिए इस्तेमाल हुआ था।
(3) क़ुरआन मजीद में हज़रत इसहाक़ (अलैहि०) की पैदाइश की शुभ-सूचना देते हुए साथ ही साथ यह शुभ-सूचना भी दे दी गई थी कि उनके यहाँ याकूब जैसा बेटा होगा (सूरा-11 हूद, आयत 71) । अब स्पष्ट है कि जिस बेटे के जन्म की ख़बर देने के साथ ही यह ख़बर भी दी जा चुकी हो कि उसके यहाँ एक योग्य लड़का पैदा होगा, उसके बारे में अगर हज़रत इबराहीम (अलैहि०) को यह सपना दिखाया जाता कि आप उसे ज़ब्ह कर रहे हैं तो हज़रत इबराहीम (अलैहि०) इससे कभी यह न समझ सकते थे कि उस बेटे को क़ुरबान कर देने का संकेत किया जा रहा है।
(4) अल्लाह सारा किस्सा बयान करने के बाद आखिर में फ़रमाता है कि, 'हमने उसे इसहाक की शुभ- सूचना दी, एक नबी सदाचारियों में से।' इससे साफ़ मालूम होता है कि यह वही बेटा नहीं है जिसे ज़ब्ह करने का संकेत किया गया था, बल्कि पहले किसी और बेटे की शुभ सूचना दी गई, फिर वह जब बाप के साथ दौड़ने-चलने के योग्य हुआ तो उसे ज़व्ह करने का आदेश हुआ। फिर जब इबराहीम इस परीक्षा में सफल हो गए, तब उनको एक और बेटे इसहाक़ के पैदा होने की शुभ-सूचना दी गई। यह वार्ता-क्रम निश्चित रूप से निर्णाय कर देता है कि जिस बेटे को ज़व्ह करने का आदेश हुआ था, वह हज़रत इसहाक़ न थे, बल्कि वह उनसे कई वर्ष पहले पैदा हो चुके थे।
(5) भरोसेमंद रिवायतों से यह सिद्ध है कि हज़रत इस्माईल (अलैहि०) के फ़िये में जो मेंढा ज़व्ह किया गया था, उसके सींग ख़ाना काबा में हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर (रज़ि०) के ज़माने तक सुरक्षित थे। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरबानी की यह घटना शाम (सीरिया) में नहीं, बल्कि मक्का मुअज्जमा में घटित हुई थी और हज़रत इस्माईल (अलैहि०) के साथ घटित हुई थी, इसी लिए तो हज़रत इबराहीम व इस्माईल (अलैहि०) के द्वारा निर्माण किए गए ख़ाना काबा में उसकी यादगार सुरक्षित रखी गई थी।
(6) यह बात सदियों से अरब की रिवायतों में सुरक्षित थी कि कुरबानी की यह घटना मिना में घटित हुई थी, और यह सिर्फ़ रिवायत ही न थी, बल्कि उस वक़्त से नबी (सल्ल०) के समय तक हज के कामों में यह काम भी बराबर शामिल चला आ रहा था कि उसी मक़ामे-मिना में जाकर लोग उसी जगह पर, जहाँ हज़रत इबराहीम (अलैहि०) ने क़ुरबानी की थी, जानवर क़ुरबान किया करते थे। फिर जब नबी (सल्ल०) पैग़म्बर बनाकर भेजे गए, तो अपने भी इस तरीक़े को जारी रखा, यहाँ तक कि आज तक हज के मौके पर दस ज़िलहिज्जा को मिना में क़ुरबानियाँ की जाती हैं। साढ़े चार हज़ार वर्ष का यह लगातार कार्य इस बात का अकाट्य प्रमाण है कि हज़रत इबराहीम (अलैहि०) की इस क़ुरबानी की वारिस इस्माईल (अलैहि०) की संतान हुई है, न कि इसहाक (अलैहि०) की संतान।
68. यह वाक्य उस पूरे उद्देश्य पर रौशनी डालता है कि जिसके लिए हज़रत इबराहीम (अलैहि०) की क़ुरबानी का यह किस्सा यहाँ बयान किया गया है। हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के दो बेटों की नस्ल से दो बहुत बड़ी क़ौमें पैदा हुईं। एक बनी इस्राईल और दूसरे बनी इस्माईल। यहाँ अल्लाह उस परिवार की तारीख़ का सबसे ज़्यादा सुनहरा कारनामा सुनाने के बाद उन दोनों गिरोहों को यह एहसास दिलाता है कि तुम्हें दुनिया में यह जो कुछ श्रेय मिला है, वह ख़ुदापरस्ती (ईश्वरवादिता) और इख्लास (निष्ठा) और जौनसारी की उन शानदार रिवायतों की वजह से हुआ है जो तुम्हारे बाप-दादा इबराहीम व इस्माईल और इसहाक़ (अलैहि०) ने कायम की थीं। वह इन्हें बताता है कि हमने उनको जो बरकत दी और उनपर अपनी दया व कृपा की जो बारिशें बरसाईं, यह कोई अंधी बाँट न थी कि बस यूँ ही एक आदमी और उसके दो लड़कों को छाँटकर नवाज़ दिया गया हो, बल्कि उन्होंने अपने सच्चे मालिक के साथ अपनी वफ़ादारी के कुछप्रमाण जुटाए थे और इनकी बिना पर वे इन कृपाओं के हक़दार बने थे। अब तुम लोग सिर्फ़ इस श्रेय के आधार पर कि तुम उनकी सन्तान हो, इन कृपाओं के अधिकारी नहीं हो सकते। हम तो यह देखेंगे कि तुममें से अच्छे से अच्छा काम करनेवाला कौन है और ज़ालिम कौन? फिर जो जैसा होगा, उसके साथ वैसा ही मामला करेंगे।