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سُورَةُ القَمَرِ

54. अल-क़मर

(मक्का में उतरी, आयतें 55)

परिचय

नाम

पहली ही आयत के वाक्यांश "वन-शक़्क़ल- क़मर" अर्थात "और चाँद (क़मर) फट गया" से लिया गया है। अर्थ यह है कि वह सूरा जिस शब्द 'अल-क़मर' आया है।

उतरने का समय

इसमें चाँद के फटने की घटना का उल्लेख हुआ है, जिससे उसके उतरने का समय निश्चित हो जाता है। हदीस के ज्ञाता और क़ुरआन के टीकाकार सभी इसपर सहमत हैं कि यह घटना हिजरत के लगभग पांँच साल पहले मक्का मुअज़्ज़मा में मिना के स्थान पर घटी थी।

विषय और वार्ता

इसमें मक्का के इस्लाम विरोधियों की उस हठधर्मा पर चेतावनी दी गई है जो उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के आह्‍वान के मुक़ाबले में अपना रखी थी। चाँद के फटने की आश्चर्यजनक घटना इस बात का स्पष्ट प्रमाण थी कि जगत्-व्यवस्था न सदा से है, न सदा रहेगी, और न अमर है। वह छिन्न-भिन्न हो सकती है, बड़े-बड़े नक्षत्र और तारे फट सकते हैं और वह सब कुछ हो सकता है जिसका चित्रण क़ियामत के विस्तृत विवरण में क़ुरआन ने किया है। यही नहीं, बल्कि यह इस बात का पता भी दे रहा है कि जगत्-व्यवस्था के टूट-फूट की शुरुआत हो चुकी है और वह समय क़रीब है जब क़ियामत आएगी। मगर इस्लाम-विरोधियों ने इसे जादू का करिश्मा बताया और अपने इंकार पर जमे रहे। इसी हठधर्मी पर इस सूरा में उनकी निन्दा की गई है। वार्ता का आरंभ करते हुए कहा गया है कि ये लोग न समझाने से मानते हैं, न इतिहास से शिक्षा लेते हैं और न आँखों से खुली निशानियाँ देखकर ईमान लाते हैं। अब ये उसी समय मानेंगे जब क़ियामत वास्तव में आ जाएगी। इसके बाद उनके सामने नूह (अलैहि०) की क़ौम, आद, समूद, लूत (अलैहि०) की क़ौम और फ़िरऔन के लोगों का वृत्तान्त संक्षिप्त शब्दों में बयान करके बताया गया है कि अल्लाह के भेजे हुए रसूलों की चेतावनियों को झुठलाकर ये क़ौमें किस पीड़ाजनक यातना की शिकार हुईं और एक-एक क़ौम का क़िस्सा बयान करने के बाद बार-बार यह बात दोहराई गई है कि यह क़ुरआन शिक्षा का सहज आधार है, जिससे अगर कोई क़ौम शिक्षा ग्रहण करके सीधे रास्ते पर आ जाए तो उन यातनाओं की नौबत नहीं आ सकती जिनमें वे क़ौमें ग्रस्त हुईं। इसके बाद मक्का के इस्लाम-विरोधियों को सम्बोधित करके कहा गया है कि जिस रवैये पर दूसरी क़ौमें सज़ा पा चुकी हैं, वह रवैया अगर तुम अपनाओ तो आखिर क्यों न सज़ा पाओगे? और अगर तुम अपने जत्थे पर फूले हुए हो, तो बहुत जल्द तुम्हारा यह जत्था पराजित होकर भागता नज़र आएगा और इससे अधिक कठोर मामला तुम्हारे साथ क़ियामत के दिन होगा। अन्त में इस्लाम-विरोधियों को यह बताया गया है कि सर्वोच्च अल्लाह को क़ियामत लाने के लिए किसी बड़ी तैयारी की ज़रूरत नहीं है। उसका बस एक आदेश होते ही पलक झपकाते वह आ जाएगी, मगर हर चीज़ की तरह जगत्व्य-वस्था और मानव-जाति की भी एक नियति है। इस नियति के अनुसार जो समय इस काम के लिए निश्चित है, उसी समय पर वह होगा। यह नहीं हो सकता कि जब कोई चैलेंज करे तो उसे मनवाने के लिए क़ियामत ला खड़ी की जाए।

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سُورَةُ القَمَرِ
54. अल-क़मर
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील और अत्यन्त दयावान है।
ٱقۡتَرَبَتِ ٱلسَّاعَةُ وَٱنشَقَّ ٱلۡقَمَرُ
(1) क़ियामत की घड़ी क़रीब आ गई और चाँद फट गया।1
1. अर्थात् चाँद का फट जाना इस बात की निशानी है कि वह कियामत की घड़ी, जिसके आने की तुम लोगों को खबर दी जाती रही है, करीब आ लगी है और जगत-व्यवस्था के छिन्न-भिन्न होने का आरंभ हो चुका है। साथ ही यह घटना कि चाँद जैसा एक बड़ा गोला फटकर दो टुकड़े हो गया, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि जिस क्रियायत का तुमसे उल्लेख किया जा रहा है, वह घटित हो सकती है। स्पष्ट है कि जब चाँद फट सकता है तो धरती भी फट सकती है, तारों और ग्रहों के ग्रहपथ भी बदल सकते हैं। और आसमानों को यह सम्पूर्ण व्यवस्था छिन-भिन्न हो सकती है। कुछ लोगों ने इस वाक्य का अर्थ यह लिया है कि 'चाँद फट जाएगा। लेकिन अरबी भाषा की दृष्टि से भले ही यह अर्थ लेना संभव हो, वाक्य का सन्दर्भ इस अर्थ को स्वीकार करने से साफ़ इंकार करता है। वास्तविकता तो यह है कि चाँद के फटने की घटना कुरआन के स्पष्ट शब्दों से सिद्ध है और हदीस की रिवायतों पर वह निर्भर नहीं है, अलबत्ता रिवायतों से उसका विवरण मालूम होता है और पता चलता है कि यह कब और कैसे घटी थी। ये रिवायतें बुखारी, मुस्लिम, तिर्मिज़ी, अहमद, अबू अवाना, अबू दाऊद, तयालसी, अब्दुज्जाक, इने-जरीर, बैहक़ी, तबरानी, इब्ने-मर्दूया और अबू-नुऐम अस्फहानी ने बहुत-से उल्लेखों के साथ हज़रत अली, हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर, हज़रत हुजैफ़ा, हज़रत अनस बिन मालिक और हज़रत जुबैर बिन मुतइम (रजि०) से नकल की हैं। इनमें से तीन बुज़ुर्ग अर्थात् हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद, हज़रत हुजैफ़ा और हज़रत जुबैर बिन मुतइम (रजि०) स्पष्ट करते हैं कि वे इस घटना के चश्मदीद गवाह हैं। तमाम रिवायतों को जमा करने से इसका जो विवरण मिलता है, वह यह है कि यह हिजरत से लगभग 5 साल पहले की घटना है। चाँद के महीने की चौदहवीं रात थी। चाँद अभी-अभी निकला था, यकायक वह फटा और उसका एक टुकड़ा सामने की पहाड़ी के एक ओर और दूसरा टुकड़ा दूसरी ओर दिखाई दिया। यह स्थिति बस एक पल रही और फिर दोनों टुकड़े आपस में जुड़ गए। नबी (सल्ल०) उस समय मिना में तशरीफ रखते थे। आप (सल्ल.) ने लोगों से फ़रमाया, देखो और गवाह रहो। इस्लाम-विरोधियों ने कहा मोहमद ने हमपर जादू कर दिया था , इसलिए हमारी आँखों ने धोखा खाया। दूसरे लोग बोले, मोहमद हमपर जादू कर सकते थे, तमाम लोगों पर तो नहीं कर सकते थे । बाहर के लोगों को आने दो, उनसे पोंगे कि यह पाया उन्होंने भी देखी है या नहीं। बाहर से जब कुछ लोग आए तो उन्होंने गवाही दी कि वे भी यह दृश्‍य देख चुके हैं। आपति करनेवाले इसपर दो तरह की आपतियों करते हैं। एक तो उनके नजदीक ऐसा होना सम्भव ही नहीं है कि भाँद जैसे विशाल पिण्ड के दो टुकड़े फटकर अलग हो जाएँ और सैकड़ों मील की दूरी तक एक फिर आपस में जुड़ जाएँ। दूसरे वे कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ होता तो यह घटना दुनिया भर में मशहूर हो जाती, इतिहास में इसका उल्लेख होता और नक्षत्र विज्ञान की पुस्तकों में इसका वर्णन किया जाता। लेकिन वास्तव में ये दोनों आपत्तियाँ निराधार हैं। जहाँ तक इसके सम्भावित होने की बात है, पुराने समय में तो शायद वह पल भी सकती थी, लेकिन वर्तमान युग में ग्रहों की बनावट के बारे में इंसान को जो जानकारियाँ मिली हुई है, उसके आधार पर यह बात बिल्कुल संभव है कि एक ग्रह अपने आन्तरिक अग्निविस्फोट के कारण फट जाए और उस जबरदस्त विघटन की वजह से उसके दो टुकड़े दूर तक चले जाएँ और फिर अपने केन्द्र की चुम्बकीय शक्तियों के कारण वे एक दूसरे के साथ आ मिलें। रही दूसरी आपत्ति, तो वह इसलिए बेवजन है कि यह घटना अचानक बस एक क्षण के लिए घटी थी। ज़रूरी नहीं था कि उस विशेष क्षण में दुनिया भर की निगाहें चाँद की ओर लगी हुई हों। पूरी पृथ्वी पर उसे देखा सिर्फ़ अरब और उसके पूर्वी सिरे के देशों ही में उस वक्त चाँद निकला हुआ था। इतिहास लेखन की रुचि और कला भी उस समय तक इतनी विकसित न थी कि पूर्वी देशों में जिन लोगों ने उसे देखा होता, वे उसे अंकित कर लेते और किसी इतिहासकार के पास ये गवाहियाँ जमा होती और वह इतिहास की किताब में उनको लिख लेता। फिर भी मालाबार के इतिहासों में यह उल्लेख आया है कि उस रात वहाँ के एक राजा ने यह दृश्य देखा था। रहीं नक्षत्रशास्त्र की किताबें और जंतरियाँ, तो उनमें इसका उल्लेख होना सिर्फ उस स्थिति में अनिवार्य था, जबकि चाँद की रफ्तार और उसकी गति के रास्ते और उसके निकलने और डूबने के समयों में इससे कोई अन्तर पैदा हुआ होता। ऐसी कोई स्थिति चूँकि पैदा नहीं हुई. इसलिए पुराने समय के नक्षत्रशास्त्रियों का ध्यान इस ओर गया ही नहीं। उस ज़माने में वेधशालाएँ (Observatories) इस हद तक उन्नति नहीं कर सकी थीं कि आसमानों में घटनेवाली हर घटना का नोटिस लेती और उसको रिकार्ड में सुरक्षित कर लेतीं।
وَإِن يَرَوۡاْ ءَايَةٗ يُعۡرِضُواْ وَيَقُولُواْ سِحۡرٞ مُّسۡتَمِرّٞ ۝ 1
(2) मगर इन लोगों का हाल यह है कि चाहे कोई निशानी देख , मुंह मोड़ जाते हैं और कहते हैं, यह तो चलता हुआ जादू है।2
2. मूल अरबी शब्द है 'सिहरुममुस्तमिर्र'। इसके कई अर्थ हो सकते हैं। एक, यह कि ख़ुदा की पनाह ! रात व दिन की जादूगरी का जो सिलसिला मुहम्मद (सल्ल.) ने चला रखा है, यह जादू भी उसी में से है। दूसरा, यह कि यह पक्का जादू है, बड़ी महारत से दिखाया गया है। तीसरा, यह कि जिस तरह और जादू गुजर गए हैं, यह भी गुजर जाएगा, इसका कोई देर तक असर रहनेवाला नहीं है।
وَكَذَّبُواْ وَٱتَّبَعُوٓاْ أَهۡوَآءَهُمۡۚ وَكُلُّ أَمۡرٖ مُّسۡتَقِرّٞ ۝ 2
(3) पहोंने (इसको पी ) शवला दिया और अपने मन की इच्छा ही की पैरवी की।3 हर मामले को अन्ततः एक अंजाम पर पहुँचकर रहना है।4
3. क़ियामत को मान लेना चूंकि उनकी मन की इच्छाओं के विरुद्ध था, इसलिए [इस निशानी] के स्पष्ट रूप से देख लेने के बाद भी ये उसे मानने पर तैयार न हुए।
4. अर्थ यह है कि तमाम मामले अन्ततः एक अंजाम को पहुँचकर रहते हैं। इसी तरह तुम्हारे और मुहम्मद (सल्ल०) के इस संघर्ष का भी ज़रूरी तौर पर एक अंजाम है जिसपर यह पहुँचकर रहेगा। एक समय अवश्य ही ऐसा आना है, जब खुल्लम-खुल्ला यह प्रमाणित हो जाएगा कि वे सत्य पर थे और तुम पूरे तौर पर असत्य की पैरवी कर रहे थे। इसी तरह सत्यवादी अपने सत्यवादिता का और असत्यवादी अपनी असत्यवादिता का नतीजा भी एक दिन ज़रूर देखकर रहेंगे।
وَلَقَدۡ جَآءَهُم مِّنَ ٱلۡأَنۢبَآءِ مَا فِيهِ مُزۡدَجَرٌ ۝ 3
(4-5) इन लोगों के सामने (पिछली क़ौमों के) वे हालात आ चुके हैं जिनमें सरकशी से बाज़ रखने के लिए काफ़ी शिक्षाप्रद सामग्री है, और ऐसी तत्त्वदर्शिता जो नसीहत के उद्देश्य को व्यापक रूप से पूरा करती है, मगर चेतावनियाँ इनपर काम नहीं करतीं,
حِكۡمَةُۢ بَٰلِغَةٞۖ فَمَا تُغۡنِ ٱلنُّذُرُ ۝ 4
0
فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡۘ يَوۡمَ يَدۡعُ ٱلدَّاعِ إِلَىٰ شَيۡءٖ نُّكُرٍ ۝ 5
(6) अत: ऐ नबी! इनसे मुख फेर लो।5 जिस दिन पुकारनेवाला एक अत्यन्त अप्रिय6 चीज़ की ओर पुकारेगा,
5. दूसरे शब्दों में, इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो। जब इन्हें ज़्यादा से ज़्यादा उचित ढंग से समझाया जा चुका है, फिर भी ये अपनी हठधर्मी से बाज़ नहीं आते तो इन्हें इसी मूर्खता में पड़ा रहने दो। अब ये उसी समय मानेंगे, जब मरने के बाद कब्रों से निकलकर अपनी आँखों से सब कुछ देख लेंगे।
6. दूसरा अर्थ अनजानी चीज़ भी हो सकता है, अर्थात् ऐसी चीज़ जो कभी उनके सान-गुमान में भी न थी, जिसका कोई चित्र और विचार उनके मन में न था।
خُشَّعًا أَبۡصَٰرُهُمۡ يَخۡرُجُونَ مِنَ ٱلۡأَجۡدَاثِ كَأَنَّهُمۡ جَرَادٞ مُّنتَشِرٞ ۝ 6
(7) लोग डरी हुई निगाहों के साथ7 अपनी कब्रों से8 इस तरह निकलेंगे, मानो वे बिखरी हुई टिड्डियाँ हैं।
7. मूल अरबी शब्द हैं 'ख़ुश-श-अन अब्सारहुम' अर्थात् उनकी निगाहें ख़ुशूअ की हालत में होंगी। इसके कई अर्थ हो सकते हैं। एक यह कि उनपर भय छाया हुआ होगा। दूसरा यह कि अपमान और शर्मिंदगी उनसे झलक रही होगी, क्योंकि कब्रों से निकलते ही उन्हें महसूस हो जाएगा कि यह वही दूसरी ज़िंदगी है जिसका हम इंकार करते थे, जिसके लिए कोई तैयारी करके हम नहीं आए हैं, जिसमें अब अपराधी की हैसियत से हमें अपने ख़ुदा के सामने पेश होना है। तीसरा यह कि वे घबराए हुए उस भयावह दृश्य को देख रहे होंगे जो उनके सामने होगा, उससे नज़र हटाने का उन्हें होश न होगा।
8. क़ब्रों से तात्पर्य वही क़लें नहीं हैं जिनमें किसी व्यक्ति को ज़मीन खोदकर बाकायदा गाड़ा गया हो, बल्कि जिस जगह भी कोई व्यक्ति मरा था, या जहाँ भी उसकी मिट्टी पड़ी हुई थी, वहीं से वह महशर (इकट्ठा होने के मैदान) की ओर पुकारनेवाले की एक आवाज़ पर उठ खड़ा होगा।
مُّهۡطِعِينَ إِلَى ٱلدَّاعِۖ يَقُولُ ٱلۡكَٰفِرُونَ هَٰذَا يَوۡمٌ عَسِرٞ ۝ 7
(8) पुकारनेवाले की ओर दौड़े जा रहे होंगे और वही इंकार करनेवाले (जो दुनिया में इसका इंकार करते थे) उस समय कहेंगे कि यह दिन तो बड़ा कठिन है।
۞كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ فَكَذَّبُواْ عَبۡدَنَا وَقَالُواْ مَجۡنُونٞ وَٱزۡدُجِرَ ۝ 8
(9) इनसे पहले नूह की क़ौम झुठला चुकी है।9 उन्होंने हमारे बन्दे को झूठा ठहराया और कहा कि यह दीवाना है, और वह बुरी तरह झिड़का गया।10
9. अर्थात् इस ख़बर को झुठला चुकी है कि आख़िरत बरपा होनी है, जिसमें इंसान को अपने कर्मों का हिसाब देना होगा, उस नबी की नुबूवत को झुठला चुकी है जो अपनी कौम को इस सत्य से बाख़बर कर रहा था, और नबी की उस शिक्षा को झुठला चुकी है जो यह बताती थी कि आख़िरत की पूछ-गछ में सफल होने के लिए लोगों को क्या अक़ीदा और अमल अपनाना चाहिए और किस चीज़ से बचना चाहिए।
10. अर्थात् उन लोगों ने सिर्फ़ नबी को झुठलाने ही पर बस न किया, बल्कि उलटा उसे दीवाना करार दिया, उसको धमकियाँ दीं, उसपर लानत-मलामत की बौछार की, उसे डाँट-डपटकर सत्य-प्रचार से रोकने की कोशिश की और उसका जीना दूभर कर दिया।
فَدَعَا رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَغۡلُوبٞ فَٱنتَصِرۡ ۝ 9
(10) अन्ततः उसने अपने रब को पुकारा कि ''मैं दबा लिया गया, अब तू इनसे बदला ले।"
فَفَتَحۡنَآ أَبۡوَٰبَ ٱلسَّمَآءِ بِمَآءٖ مُّنۡهَمِرٖ ۝ 10
(11-12) तब हमने मूसलाधार वर्षा से आसमान के दरवाज़े खोल दिए और ज़मीन को फाड़कर स्रोतों में बदल दिया।11 और वह सारा पानी उस काम को पूरा करने के लिए मिल गया जो नियत हो चुका था।
11. अर्थात् अल्लाह के आदेश से ज़मीन इस तरह फूट बही कि मानो वह जमीन न थी, बल्कि बस स्रोत ही स्रोत थे।
وَفَجَّرۡنَا ٱلۡأَرۡضَ عُيُونٗا فَٱلۡتَقَى ٱلۡمَآءُ عَلَىٰٓ أَمۡرٖ قَدۡ قُدِرَ ۝ 11
0
وَحَمَلۡنَٰهُ عَلَىٰ ذَاتِ أَلۡوَٰحٖ وَدُسُرٖ ۝ 12
( 13-14) और नूह को हमने एक तख्तों और कीलोंवाली12 पर सवार कर दिया जो हमारी निगरानी में चल रही थी। यह था बदला उस व्यक्ति के लिए जिसकी नाक़द्री की गई थी।13
12. तात्पर्य है वह नाव जो तूफ़ान के आने से पहले ही अल्लाह के आदेशों के अनुसार हज़रत नूह (अलैहि०) ने बना ली थी।
13. मूल अरबी शब्द हैं, 'जजाअल लिमन का-न कुफ़िर' अर्थात् “यह सब कुछ उस व्यक्ति की ख़ातिर बदला लेने के लिए किया गया जिसका इंकार किया गया था।" कुफ़्र अगर इंकार के अर्थ में हो तो मतलब यह होगा कि 'जिसको बात मानने से इंकार किया गया था और अगर उसे नेमत की नाशुक्रो के अर्थ में लिया जाए तो मतलब यह होगा कि 'जिसका वुजूद एक नेमत था, मगर उसकी नाक़द्री की गई थी।'
تَجۡرِي بِأَعۡيُنِنَا جَزَآءٗ لِّمَن كَانَ كُفِرَ ۝ 13
0
وَلَقَد تَّرَكۡنَٰهَآ ءَايَةٗ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 14
(15) उस नाव को हमने एक निशानी बनाकर जोड़ दिया,14 फिर कोई है नसीहत क़बूल करनेवाला।
14. यह अर्थ भी हो सकता है कि हमने इस सजा को शिक्षाप्रद निशानी बनाकर छोड़ दिया। मगर हमारे नज़दीक प्राथमिकता-योग्य अर्थ यह है कि उस नाव को शिक्षाप्रद निशानी बना दिया गया। (अधिक विस्तार के लिए देखिए सूरा-7 अल-आराफ़, टिप्पणी 47; सूरा-11 हूद, टिप्पणी 46; सूरा-29 अल-अन्कबूत, टिप्पणी 25)
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 15
(16) देख लो, कैसा था मेरा अज़ाब और कैसो थों मेरो चेतावनियाँ ।
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 16
(17) हमने इस कुरआन को नसीहत के लिए सहज साधन बना दिया है." फिर क्या है,15 कोई नसीहत कबूल करनेवाला?
15. कुछ लोगों ने यस्सरनल कुरआन' के शब्दों से यह ग़लत अर्थ निकाल लिया है कि कुरआन एक आसान किताब है. इसे समझने के लिए किसी ज्ञान की जरूरत नहीं, यहाँ तक कि अरबी भाषा को जाने बिना ही जो आदमी चाहे इसकी व्याख्या कर सकता है और हदीस व फ़िक़ह से बेनियाज़ होकर उसकी आयतों से जो आदेश चाहे निकाल सकता है, हालाँक जिस सन्दर्भ में ये शब्द आए हैं उसे दृष्टि में रखकर देखा जाए तो मालूम होता है कि इस कथन का उद्देश्य लोगों को यह समझाना है कि नसीहत का एक साधन तो हैं वे शिक्षाप्रद यातनाएँ जो सरकश क़ौमों पर भेजी गई और दूसरा साधन है यह कुरआन जो दलीलों और नसीहतों से तुमको सीधा रास्ता बता रहा है। उस साधन के मुकाबले में नसीहत का यह साधन अधिक आसान है, फिर तुम क्यों इससे लाभ नहीं उठाते और अज़ाब ही देखने पर आग्रह किए जाते हो? यह तो सरासर अल्लाह की कृपा है कि अपने नबी के माध्यम से यह किताब भेजकर वह तुम्हें सचेत कर रहा है कि जिन राहों पर तुम लोग जा रहे हो, वह किस विनाश की ओर जाती है और तुम्हारी भलाई किस राह में है। नसीहत का यह रास्ता इसी लिए तो अपनाया गया है कि विनाश के गढ़े में गिरने से पहले तुम्हें उससे बचा लिया जाए। अब उससे अधिक मूर्ख और कौन होगा जो सीधी तरह समझाने से न माने और गढ़े में गिरकर ही यह माने कि वास्तव में यह गढ़ा है।
كَذَّبَتۡ عَادٞ فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 17
(18) आद ने झुठलाया, तो देख लो कि कैसा था मेरा अज़ाब और कैसी थी मेरी चेतावनियाँ।
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا صَرۡصَرٗا فِي يَوۡمِ نَحۡسٖ مُّسۡتَمِرّٖ ۝ 18
(19-20) हमने एक निरन्तर नहूसत (अशुभ)16 के दिन सख़्त तूफ़ानी हवा उनपर भेज दी जो लोगों को उठा-उठाकर इस तरह फेंक रही थी जैसे वे जड़ से उखड़े हुए खजूर के तने हों।
16. अर्थात् एक ऐसे दिन जिसकी अनिष्टता कई दिन तक बराबर जारी रही। सूरा-41 हा-मीम अस-सज्दा, आयत 16 में 'फ़ी अय्यामिन नहिसातिन' (कुछ अशुभ दिनों में) के शब्द आए हैं और सूरा-69 हाक़्क़ा, आयत 7 में फ़रमाया गया है कि हवा का यह तूफान लगातार सात रात और आठ दिन जारी रहा। प्रसिद्ध यह है कि जिस दिन यह अजाब शुरू हुआ, वह बुध का दिन था। इसी से लोगों में यह विचार फैल गया कि बुध का दिन अशुभ है और कोई काम उस दिन शुरू नहीं करना चाहिए। कुछ अत्यन्त कमजोर हदीसें भी इस सिलसिले में बयान की गई हैं, जिससे इस दिन के अशुभ होने का अक़ीदा आम लोगों के मन में बैठ गया है, जैसे इल्ने-मर्दूया और ख़तीब बादादी की यह रिवायत है कि 'महीने का अन्तिम बुध अशुभ (मनहूस) है, जिसकी अनिष्टता (नहूसत) बराबर जारी रहती है। इब्ने-जौजी (रह०) इस हदीस को पड़ी हुई कहते हैं। इने-रजव (रह०) ने कहा है कि यह रिवायत सही नहीं है। सखावी (रह०) कहते हैं कि जितने तरीकों से यह उल्लिखित है, वे सब कमज़ोर हैं। इसी तरह तबरानी की इस रिवायत को भी हदीस के आलिमों ने कमजोर कहा है कि बुध का दिन लगातार नहूसत का अशुभ दिन है। कुछ और रिवायतों में ये बातें भी आई हैं कि बुध को यात्रा न की जाए, लेन-देन न किया जाए, नाखुन न कटवाए जाएँ, बीमार की बीमारपुस न की जाए और यह कि कोढ़ और सफ़ेद दाग़ इसी दिन आरंभ होते हैं। मगर ये तमाम रिवायतें अत्यन्त कमज़ोर हैं और इनपर किसी अक़ीदे की नींव नहीं रखी जा सकती। शोधकर्ता मुनादी कहते हैं, "बदफाली (अपशगुन) के विचार से बुध के दिन को मनहूस (अशुभ) समझकर छोड़ना और ज्योतिषियों जैसे अक़ीदे इस बारे में रखना हराम, सख्त हराम है, क्योंकि सारे दिन अल्लाह के हैं, कोई दिन अपने आप में न लाभ पहुँचानेवाला है, न हानि।" अल्लामा आलूसी कहते हैं, “सारे दिन बराबर हैं, बुध में कोई विशेष बात नहीं। रात-दिन में कोई घड़ी ऐसी नहीं है जो किसी के लिए अच्छी और किसी दूसरे के लिए बुरी न हो। हर वक्त अल्लाह किसी के लिए अनुकूल और किसी के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ पैदा करता रहता है।"
تَنزِعُ ٱلنَّاسَ كَأَنَّهُمۡ أَعۡجَازُ نَخۡلٖ مُّنقَعِرٖ ۝ 19
0
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 20
(21) अत: देख लो कैसा था मेरा अज़ाब और कैसी थी मेरी चेतावनियाँ !
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 21
(22) हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिए सहज साधन बना दिया है, फिर क्या है कोई नसीहत स्वीकार करनेवाला?
كَذَّبَتۡ ثَمُودُ بِٱلنُّذُرِ ۝ 22
(23-24) समूद ने चेतावनियों को झुठलाया और कहने लगे, "एक अकेला आदमी जो हम ही में से है, क्या हम अब उसके पीछे चलें?17 उसका अनुपालन हम स्वीकार कर लें तो इसका अर्थ यह होगा कि हम बहक गए हैं और हमारी मत मारी गई है।
17. दूसरे शब्दों में, हज़रत सालेह (अलैहि०) के अनुपालन से इनका इंकार तीन कारणों से था। एक यह कि वे मनुष्य हैं, मनुष्यता से परे नहीं हैं कि हम उनकी बड़ाई मान लें। दूसरा यह कि वह हमारी अपनी ही क्रीम के एक व्यक्ति हैं, हमपर उनकी श्रेष्ठता का कोई कारण नहीं। तीसरा यह कि अकेले हैं। हमारे आम आदमियों में से एक आदमी हैं, कोई बड़े सरदार नहीं हैं जिसके साथ कोई बड़ा जत्था ही, फ़ौज हो, नौकर-चाकर हों और इस कारण हम उनको श्रेष्ठता बबुल कर लें। यही वह अज्ञान था जिसमें मक्‍का के इस्लाम-विरोधी गस्त थे। मुहम्मद (सल्ल०) को पैग़म्बर मानने से उनका इकार भी इसी कारण था कि आप (सल्ल०) बशर हैं, आम आदमियों की तरह बाजारों में चलते फिरते हैं, कल हमारे ही बीच पैदा हुए और आज यह दावा कर रहे हैं कि मुझे खुदा ने नबी बनाया है।
فَقَالُوٓاْ أَبَشَرٗا مِّنَّا وَٰحِدٗا نَّتَّبِعُهُۥٓ إِنَّآ إِذٗا لَّفِي ضَلَٰلٖ وَسُعُرٍ ۝ 23
0
أَءُلۡقِيَ ٱلذِّكۡرُ عَلَيۡهِ مِنۢ بَيۡنِنَا بَلۡ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٞ ۝ 24
(25) क्या हमारे बीच बस यही एक व्यक्ति था जिसपर ख़ुदा का ज़िक्र उतारा गया? नहीं, बल्कि यह परले दर्जे का झूठा और ख़द ही ग़लती पर है।"18
18. मूल में अरबी शब्द 'अशिर' प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ है ऐसा ख़ुंदपसन्द (अपनी बड़ाई चाहनेवाला) और गलत नीतिवाला व्यक्ति जिसकी बुद्धि में अपनी बड़ाई का पागलपन समा गया हो और इस कारण वह डोंगे मारता हो।
سَيَعۡلَمُونَ غَدٗا مَّنِ ٱلۡكَذَّابُ ٱلۡأَشِرُ ۝ 25
(26) (हमने अपने पैग़म्बर से कहा) "कल ही इन्हें मालूम हुआ जाता है कि कौन परले दर्जे का झूठा और खुद गलती पर है।
إِنَّا مُرۡسِلُواْ ٱلنَّاقَةِ فِتۡنَةٗ لَّهُمۡ فَٱرۡتَقِبۡهُمۡ وَٱصۡطَبِرۡ ۝ 26
(27) हा ऊँटनी को बनके लिए मिलना (आजमाइश) बनाकर भेज रहे हैं। अब तनिक वैध के साथ देख कि इनका नया अंजाम होता है।
وَنَبِّئۡهُمۡ أَنَّ ٱلۡمَآءَ قِسۡمَةُۢ بَيۡنَهُمۡۖ كُلُّ شِرۡبٖ مُّحۡتَضَرٞ ۝ 27
(28) इनको जता दे कि पानी इनके और ऊँटनी के बीच बाँदा जाएगा, और हर एक अपनी बारी के दिन पानी पर आएगा।''19
19. यह व्याख्या है इस कथन की कि हम ऊँटनी को उनके लिए फ़ितना बनाकर भेज रहे हैं।' वह फ़ितना यह था कि यकायक एक ऊँटनी लाकर उनके सामने खड़ी कर दी गई और उनसे कह दिया गया कि एक दिन यह अकेली पानी पिएगी और दूसरे दिन तुम सब लोग अपने लिए और अपने जानवरों के लिए पानी ले सकोगे। उसकी बारी के दिन तुममें से कोई व्यक्ति किसी स्रोत और कुएँ पर न स्वयं पानी लेने के लिए आए, ने अपने जानवरों को पिलाने के लिए लाए। यह चुनौती उस व्यक्ति की ओर से दी गई थी जिसके बारे में ये स्वयं कहते थे कि यह कोई बड़ी फ़ौज नहीं रखता, न कोई जत्था इसके पीछे है।
فَنَادَوۡاْ صَاحِبَهُمۡ فَتَعَاطَىٰ فَعَقَرَ ۝ 28
(29) अन्तत: उन लोगों ने अपने आदमी को पुकारा और उसने इस काम का बीड़ा उठाया और ऊँटनी को मार डाला।20
20. इन शब्दों से अपने आप यह स्थिति सामने आती है कि वह ऊँटनी एक मुद्दत तक उनकी बस्तियों में दनदनाती फिरी। उसकी बारी के दिन किसी को पानी पर आने की हिम्मत न होती थी। अन्ततः अपनी क़ौम के एक मनचले सरदार को उन्होंने पुकारा कि तू बड़ा बहादुर और निडर व्यक्ति है, बात-बात पर आस्तीनें चढ़ाकर मरने-मारने के लिए तैयार हो जाता है, तनिक हिम्मत करके इस ऊँटनी का क़िस्सा भी पाक कर दिखा। उनके बढ़ावे-चढ़ावे देने पर उसने यह मुहिम सर करने का बीड़ा उठा लिया और ऊँटनी को मार डाला। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि वे लोग इस ऊँटनी से बहुत भयभीत थे, उनको यह एहसास था कि इसके पीछे कोई असामान्य शक्ति है, उसपर हाथ डालते हुए वे डरते थे और इसी कारण सिर्फ़ एक ऊँटनी को मार डालना, ऐसी हालत में भी जबकि उसके पेश करनेवाले पैग़म्बर के पास कोई सेना न थी जिसका उन्हें डर होता, उनके लिए एक बड़ी मुहिम सर करने जैसा थी। (और अधिक व्याख्या के लिए देखिए सूरा-26 अल-आराफ, टिप्पणी 58; सूरा-26 अश-शुअरा, टिप्पणी 104-105)
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 29
(30) फिर देख लो कि कैसा था मेरा अज़ाब और कैसी थी मेरी चेतावनियाँ।
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ صَيۡحَةٗ وَٰحِدَةٗ فَكَانُواْ كَهَشِيمِ ٱلۡمُحۡتَظِرِ ۝ 30
(31) हमने उनपर बस एक ही धमाका छोड़ा और वे बाड़ेवाले की रौंदी हुई बाढ़ की तरह भुस होकर रह गए।21
21. जो लोग मवेशी पालते हैं, वे लोग अपने जानवरों के बाड़े की रक्षा के लिए लकड़ियों और झाड़ियों की एक बाढ़ बना देते हैं। इस बाढ़ की झाड़ियाँ धीरे-धीरे सूखकर झड़ जाती हैं और जानवरों के आने-जाने से कुचलकर उनका बुरादा बन जाता है। समूद क़ौम की कुचली हुई गली-सड़ी लाशों की मिसाल इसी बुरादे से दी गई है।
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 31
(32) हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिए सहज साधन बना दिया है, अब है कोई नसीहत क़बूल करनेवाला?
كَذَّبَتۡ قَوۡمُ لُوطِۭ بِٱلنُّذُرِ ۝ 32
(33-34) लूत की क़ौम ने चेतावनियों को झुठलाया और हमने पथराव करनेवाली हवा उसपर भेज दी। सिर्फ़ लूत के घरवाले उससे सुरक्षित रहे । उनको हमने अपने अनुग्रह से रात के पिछले पहर बचाकर निकाल दिया।
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ حَاصِبًا إِلَّآ ءَالَ لُوطٖۖ نَّجَّيۡنَٰهُم بِسَحَرٖ ۝ 33
0
نِّعۡمَةٗ مِّنۡ عِندِنَاۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي مَن شَكَرَ ۝ 34
(35) यह बदला देते हैं हम उस व्यक्ति को जो कृतज्ञ होता है।
وَلَقَدۡ أَنذَرَهُم بَطۡشَتَنَا فَتَمَارَوۡاْ بِٱلنُّذُرِ ۝ 35
(36) लूत ने अपनी क़ौम के लोगों को हमारी पकड़ से सावधान किया, मगर वे सारी चेतावनियों को संदिग्ध समझकर बातों में उड़ाते रहे ।
وَلَقَدۡ رَٰوَدُوهُ عَن ضَيۡفِهِۦ فَطَمَسۡنَآ أَعۡيُنَهُمۡ فَذُوقُواْ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 36
(37) फिर उन्होंने उसे अपने मेहमानों की हिफ़ाज़त से बाज़ रखने की कोशिश की। अन्ततः हमने उनकी आँखें मूंद दी कि चखो अब मेरे अज़ाब और मेरी चेतावनियों की मज़ा।22
22. इस क़िस्से का विवरण सूरा-11 हूद (आयत 77 से 83) और सूरा-15 हिज्र (आयत 61 से 74) में गुज़र चुका है। उनका सारांश यह है कि जब अल्लाह ने इस क़ौम पर अज़ाब भेजने का फ़ैसला किया तो कुछ फ़रिश्तों को अति सुन्दर लड़कों के रूप में हज़रत लूत (अलैहि०) के यहाँ मेहमान के तौर पर भेज दिया। उनको क़ौम के लोगों ने जब देखा कि उनके यहाँ इतने सुन्दर मेहमान आए हैं, तो वे उनके घर पर चढ़ दौड़े और उनसे मांग की कि वे अपने इन मेहमानों को कुकर्म के लिए उनके हवाले कर दें। हज़रत लूत (अलैहि०) ने उनकी बहुत खुशामद की, मगर वे न माने और घर में घुसकर ज़बरदस्ती मेहमानों को निकाल लेने की कोशिश की। इस आखिरी मरहले पर यकायक उनकी आँखें अंधी हो गईं। फिर फ़रिश्तों ने हज़रत लूत (अलैहि०) से कहा कि वह और उनके घरवाले सुबह होने से पहले इस बस्ती से निकल जाएं, और उनके निकलते ही उस क़ौम पर एक भयानक अज़ाब आ गया। बाइबल में भी यह घटना इसी तरह बयान की गई है, जो इस प्रकार है : "तब वे उस मर्द अर्थात् लूत पर पिल पड़े और नज़दीक आए ताकि किवाड़ तोड़ डालें, लेकिन उन मर्दो (अर्थात् फ़रिश्तों) ने अपने हाथ बढ़ाकर लूत को अपने पास घर में खींच लिया और दरवाज़ा बन्द कर दिया और उन मर्दो को जो घर के दरवाज़े पर थे, क्या छोटे, क्या बड़े, अंधा कर दिया, सो वे दरवाज़ा ढूँढते-ढूँढते थक गए।" (उत्पत्ति, 19 : 9 से 11)
وَلَقَدۡ صَبَّحَهُم بُكۡرَةً عَذَابٞ مُّسۡتَقِرّٞ ۝ 37
(38) सुबह सवेरे ही एक अटल अज़ाब ने उनको आ लिया।
فَذُوقُواْ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 38
(39) चखो मज़ा अब मेरे अजाब का और मेरी चेतावनियों का।
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 39
(40) हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिए सहज साधन बना दिया है। अत: है कोई नसीहत क़बूल करनेवाला?
وَلَقَدۡ جَآءَ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ ٱلنُّذُرُ ۝ 40
(41) और फ़िरऔन के लोगों के पास भी चेतावनियाँ आई थीं,
كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذۡنَٰهُمۡ أَخۡذَ عَزِيزٖ مُّقۡتَدِرٍ ۝ 41
(42) मगर उन्होंने हमारी सारी निशानियों को झुठला दिया। अन्ततः हमने उन्हें पकड़ा, जिस तरह कोई ज़बरदस्त सामर्थ्यवान पकड़ा करता है।
أَكُفَّارُكُمۡ خَيۡرٞ مِّنۡ أُوْلَٰٓئِكُمۡ أَمۡ لَكُم بَرَآءَةٞ فِي ٱلزُّبُرِ ۝ 42
(43) क्या तुम्हारे इंकार करनेवाले कुछ उन लोगों से बेहतर हैं?23 या आसमानी किताबों में तुम्हारे लिए कोई माफ़ी लिखी हुई है?
23. सम्बो धन है क़ुरैश के लोगों से। मतलब यह है कि तुममें आख़िर क्या खूबी है, कौन से हीरे-जवाहरात तुम्हारे लटके हुए हैं कि जिस इंकार, झुठलाने और हठधर्मी के रवैये पर दूसरी क़ौमों को सज़ा दी जा चुकी है, वही रवैया तुम अपनाओ तो तुम्हें सज़ा न दी जाए?
أَمۡ يَقُولُونَ نَحۡنُ جَمِيعٞ مُّنتَصِرٞ ۝ 43
(44) या इन लोगों का कहना यह है कि हम एक मज़बूत जत्था हैं, अपना बचाव कर लेंगे?
سَيُهۡزَمُ ٱلۡجَمۡعُ وَيُوَلُّونَ ٱلدُّبُرَ ۝ 44
(45) जल्द ही यह जत्था परास्त हो जाएगा और ये सब पीठ फेरकर भागते नज़र आएँगे।24
24. यह स्पष्ट भविष्यवाणी है जो हिजरत से पाँच साल पहले कर दी गई थी कि कुरैश का जत्था, जिसकी शक्ति पर उन्हें बड़ा दंभ था, बहुत जल्द मुसलमानों से पराजित हो जाएगा। उस समय कोई व्यक्ति यह सोच तक न सकता था कि निकट भविष्य में यह क्रान्ति कैसे होगी। मुसलमानों की विवशता का हाल यह था कि उनमें से एक गिरोह देश छोड़कर हबश में शरण ले चुका था और बाकी बचे हुए ईमानवाले शेबे-अबी तालिब (अबू तालिब की घाटी) में कैद थे जिन्हें कुरैश के बाइकाट और घेराव ने भूखों मार दिया था। इस हालत में कौन यह समझ सकता था कि सात ही वर्ष के अंदर नक्शा बदल जानेवाला है। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि०) के शिष्य इक्रिमा (रजि०) की रिवायत है कि हजरत उमर (रजि०) फ़रमाते थे, जब सूरा क़मर की यह आयत उतरी तो मैं चकित था कि आख़िर यह कौन-सा जत्था है जो पराजित हो जाएगा? मगर जब बद्र के युद्ध में शत्रु पराजित होकर भाग रहे थे, उस समय मैंने देखा कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) कवच पहने हुए आगे की ओर झपट रहे हैं और आप (सल्ल०) की ज़बान पर ये शब्द जारी हैं कि 'सयुह-ज़मुल जमझु व युवल्लूनद दुबुर०' (बहुत जल्द यह जत्था परास्त हो जाएगा और ये सब पीठ फेरकर भागते नज़र आएँगे) तब मेरी समझ में आया कि यह थी वह पराजय जिसकी ख़बर दी गई थी। (इब्ने-जरीर, इब्ने-अबी हातिम)
بَلِ ٱلسَّاعَةُ مَوۡعِدُهُمۡ وَٱلسَّاعَةُ أَدۡهَىٰ وَأَمَرُّ ۝ 45
(46) बल्कि इनसे निबटने के लिए असल वादे का वक़्त तो क़ियामत है और वह बड़ी आफ़त और ज़्यादा कड़वी घड़ी है।
إِنَّ ٱلۡمُجۡرِمِينَ فِي ضَلَٰلٖ وَسُعُرٖ ۝ 46
(47) ये अपराधी लोग वास्तव में भ्रम में पड़े हुए हैं और इनकी मति मारी गई है ।
يَوۡمَ يُسۡحَبُونَ فِي ٱلنَّارِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ ذُوقُواْ مَسَّ سَقَرَ ۝ 47
(48) जिस दिन ये मुँह के बल आग में घसीटे जाएँगे, उस दिन इनसे कहा जाएगा कि अब चखो जहन्नम की लपट का मज़ा।
إِنَّا كُلَّ شَيۡءٍ خَلَقۡنَٰهُ بِقَدَرٖ ۝ 48
(49) हमने हर चीज़ एक तक़दीर (अन्दाज़े) के साथ पैदा की है।25
25. अर्थात् दुनिया की कोई चीज़ भी अलल टप नहीं पैदा कर दी गई है, बल्कि हर चीज़ की एक नियति है जिसके अनुसार वह एक नियत समय पर बनती है, एक विशेष रूप अपनाती है, एक विशेष समय तक पलती-बदती है, एक विशेष अवधि तक बाक़ी रहती है और एक विशेष समय पर समाप्त हो जाती है। इसी विश्वव्यापी विधान के अनुसार स्वयं इस दुनिया की भी एक नियति है, जिसके अनुसार एक विशेष समय तक यह चल रही है और एक विशेष समय पर ही इसे समाप्त हो जाना है। जो समय इसकी समाप्ति के लिए निर्धारित कर दिया गया है, न उससे एक घड़ी पहले यह समाप्त होगी न उसके एक घड़ी बाद यह बाक़ी रहेगी। यह न अनादि और शाश्वत है कि हमेशा से हो और हमेशा बाक़ी रहे और न किसी बच्चे का खिलौना है कि जब तुम कहो उसी समय वह उसे तोड़-फोड़कर दिखा दे।
وَمَآ أَمۡرُنَآ إِلَّا وَٰحِدَةٞ كَلَمۡحِۭ بِٱلۡبَصَرِ ۝ 49
(50) और हमारा आदेश बस एक ही आदेश होता है और पलक झपकाते वह क्रियान्वित हो जाता है।26
26. अर्थात् क़ियामत बरपा करने के लिए हमें कोई बड़ी तैयारी नहीं करनी होगी और न उसे लाने में कोई बड़ा समय लगेगा। हमारी ओर से बस एक आदेश जारी होने की देर है। उसके जारी होते ही पलक झपकाते वह बरपा हो जाएगी।
وَلَقَدۡ أَهۡلَكۡنَآ أَشۡيَاعَكُمۡ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 50
(51) तुम असे बहुतों को हम तबाह कर चुके हैं,27 फिर है कोई नसीहत क़बूल करनेवाला?
27. अर्थात् अगर तुम यह समझते हो कि यह किसी तत्त्वदर्शी और न्यायी ख़ुदा की खुदाई नहीं, बल्कि किसी अंधे राजा को चौपट नगरी है जिसमें आदमी जो कुछ चाहे करता फिरे, कोई उससे पूछ-गच्छ करनेवाला नहीं है, तो तुम्हारी आँखें खोलने के लिए मानव-इतिहास मौजूद है जिसमें इसी रवैये पर चलनेवाली क़ौमें बराबर तबाह की जाती रही हैं।
وَكُلُّ شَيۡءٖ فَعَلُوهُ فِي ٱلزُّبُرِ ۝ 51
(52) जो कुछ उन्होंने किया है, वह सब दफ्तरों में अंकित है
وَكُلُّ صَغِيرٖ وَكَبِيرٖ مُّسۡتَطَرٌ ۝ 52
(53) और हर छोटी-बड़ी बात लिखी हुई मौजूद हैं।28
28. अर्थात् ये लोग इस भ्रम में न रहें कि इनका किया-धरा कहीं गायब हो गया है। नहीं, हर व्यक्ति, हर गिरोह और हर क़ौम का पूरा रिकार्ड सुरक्षित है और अपने समय पर वह सामने आ जाएगा।
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي جَنَّٰتٖ وَنَهَرٖ ۝ 53
(54) अवज्ञा से बचनेवाले निश्चय ही बागों और नहरों में होंगे,
فِي مَقۡعَدِ صِدۡقٍ عِندَ مَلِيكٖ مُّقۡتَدِرِۭ ۝ 54
(55) सच्ची प्रतिष्ठा की जगह, बड़े प्रभुत्वशाली बादशाह के क़रीब।