69. अल-हाक़्क़ा
(मक्का में उतरी, आयतें 52)
परिचय
नाम
सूरा के पहले शब्द 'अल-हाक़्क़ा' (होकर रहनेवाली) को इस सूरा का नाम क़रार दिया गया है।
उतरने का समय
इस सूरा की वार्ताओं से मालूम होता है कि यह [मक्का के आरम्भिक काल में उस समय] अवतरित हुई थी जब अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के प्रति विरोध ने अभी अधिक उग्र रूप धारण नहीं किया था।
विषय और वार्ता
आयत 1 से 37 तक परलोक का उल्लेख है और आगे सूरा के अंत तक क़ुरआन के अल्लाह की ओर से अवतरित होने और मुहम्मद (सल्ल०) के सच्चे रसूल होने का उल्लेख किया गया है। सूरा के पहले भाग का प्रारम्भ इस बात से हुआ है कि क़ियामत का आना और आख़िरत (परलोक) का घटित होना एक ऐसा तथ्य है जो अवश्य ही सामने आकर रहेगा। फिर आयत 4 से 12 तक यह बताया गया है कि पूर्व समय में जिन जातियों ने भी परलोक का इनकार किया है, वे अन्ततः ईश्वरीय यातना की भागी होकर रहीं। इसके बाद आयत 17 तक प्रलय (क़ियामत) का चित्रण किया गया है कि वह किस प्रकार घटित होगी। फिर आयत 18 से 37 तक यह बताया गया है कि उस दिन समस्त मनुष्य अपने प्रभु के न्यायालय में उपस्थित होंगे, जहाँ उनका कोई भेद छिपा न रह जाएगा। हरेक का कर्मपत्र उसके हाथ में दे दिया जाएगा। [सुकर्मी] अपना हिसाब दोषरहित देखकर प्रसन्न हो जाएँगे और उनके हिस्से में जन्नत (स्वर्ग) का शाश्वत सुख एवं आनन्द आएगा। इसके विपरीत जिन लोगों ने न ख़ुदा के अधिकार को माना और न उसके बन्दों का हक़ अदा किया, उन्हें ख़ुदा की पकड़ से बचानेवाला कोई न होगा और वे जहन्नम (नरक) की यातना में ग्रस्त हो जाएँगे। सूरा के दूसरे भाग (आयत 38 से सूरा के अन्त तक) में मक्का के इस्लाम-विरोधियों को सम्बोधित करते हुए कहा गया है कि तुम इस क़ुरआन को कवि और काहिन (भविष्यवक्ता) की वाणी कहते हो, हालाँकि यह अल्लाह की अवतरित की हुई वाणी है, जो एक प्रतिष्ठित सन्देशवाहक (रसूल) के मुख से उच्चारित हो रही है। रसूल (सन्देशवाहक) को इस वाणी में अपनी ओर से एक भी शब्द घटाने या बढ़ाने का अधिकार नहीं। यदि वह इसमें अपनी मनगढ़न्त कोई चीज़ सम्मिलित कर दे तो हम उसकी गर्दन की रग (या हृदय-नाड़ी) काट दें।
---------------------