(8) और जिसने कण भर बुराई की होगी, वह उसको देख लेगा।7
7. इस कथन का एक सीधा सादा अर्थ तो यह है, और यह बिल्कुल सही है कि आदमी की कोई कण-भर भी नेकी या बदी ऐसी नहीं होगी जो उसके कर्मपत्र में अंकित होने से रह गई हो। उसे वह बहरहाल देख लेगा। लेकिन अगर देखने से तात्पर्य उसकी इनाम या सज़ा देखना लिया जाए तो इसका यह अर्थ लेना बिल्कुल ग़लत है कि आखिरत में हर छोटी-से-छोटी नेकी का इनाम और हर छोटी-से-छोटी बुराई की सज़ा हर व्यक्ति को दी जाएगी और कोई व्यक्ति भी वहाँ अपनी किसी नेकी का इनाम और किसी बुराई की सज़ा पाने से न बचेगा, क्योंकि एक तो उसका अर्थ यह होगा कि एक-एक बुरे कर्म की सज़ा और एक-एक अच्छे कर्म का इनाम अलग-अलग दिया जाएगा। दूसरे इसका अर्थ यह भी है कि कोई बड़े-से-बड़ा सदाचारी ईमानवाला भी किसी छोटे-से-छोटे कुसूर की सज़ा पाने से न बचेगा और कोई सत्य का बदतरीन इंकारी और ज़ालिम और दुराचारी व्यक्ति भी किसी छोटे-से-छोटे अच्छे कर्म का इनाम पाए बिना न रहेगा। ये दोनों अर्थ कुरआन और हदीस की व्याख्याओं के भी विरुद्ध हैं, और बुद्धि भी इसे नहीं मानती कि यह न्यायसंगत है। इस सम्बन्ध में कुरआन मजीद सैद्धान्तिक दृष्टि से कुछ बातें स्पष्ट रूप से सामने रख देता है-
एक यह कि सत्य का इंकारी और मुशरिक और मुनाफ़िक के कर्म (अर्थात् वे कर्म जिनको नेकी समझा जाता है) नष्ट कर दिए गए। आखिरत में वे उनका कोई इनाम नहीं पा सकेंगे। उनका अगर कोई इनाम है भी तो वह दुनिया ही में उनको मिल जाएगा। उदाहरण के रूप में देखिए सूरा-7 अल-आराफ़ आयत 147; सूरा-9, अत-तौबा, आयत 17, 67-69; सूरा-11 हूद, आयत 15-16; सूरा-14 इबराहीम, आयत 183; सूरा-18 अल-कहफ़, आयत 104-1053 सूरा-24 अन-नूर, आयत 39; सूरा-25 अल-फ़ुरक़ान, आयत 23; सूरा-33 अल-अहजाब, आयत 19; सूरा-39 अज़-जुमर, आयत 65%; सूरा-46 अल-अहक्राफ़, आयत 20
दूसरे यह कि बदी की सज़ा उतनी ही दी जाएगी जितनी बदी है, मगर नेकियों का इनाम मूल कर्म से अधिक दिया जाएगा, बल्कि कहीं स्पष्ट किया गया है कि हर नेको का बदला उससे दस गुना है। और कहीं यह भी फ़रमाया गया है कि अल्लाह जितना चाहे नेकी का बदला बढ़ाकर दे। देखिए सूरा-2 अल-बकरा आयत 261; सूरा-6 अल-अनआम, आयत 160; सूरा-10 यूनुस, आयत 26-27; सूरा-24 अल-मोमिन, आयत 40 अन-नूर, आयत 38; सूरा-28 अल-क़सस, आयत 84; सूरा-34 अस-सबा, आयत 37; सूरा-40
तीसरे यह कि मोमिन अगर बड़े-बड़े गुनाहों से परहेज़ करेंगे तो उनके छोटे-छोटे गुनाह माफ़ कर दिए जाएँगे। सूरा-4 अन-निसा, आयत 31; सूरा-42 अश-शूरा, आयत 37; सूरा-53 अन-नज्म, आयत 321 चौथे यह कि सदाचारी ईमानवाले से हल्का हिसाब लिया जाएगा, उसकी बुराइयों को माफ़ कर दिया जाएगा और उसके अच्छे और उत्कृष्ट कर्मों की दृष्टि से उसको इनाम दिया जाएगा। सूरा 29 अल-अनकबूत, आयत 7; सूरा-39 अज़-जुमर, आयत 35; सूरा-46 अल-अहक़ाफ़, आयत 16; सूरा-84 अल-इनशिकाक़, आयत 8 । हदीसें भी इस मामले को बिल्कुल साफ़ कर देती हैं। उदाहरणस्वरूप हज़रत अबू अय्यूब अंसारी (रजि०) से अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने इस आयत के बारे में फ़रमाया था कि तुममें से जो व्यक्ति नेकी करेगा उसका बदला आख़िरत में है और जो किसी प्रकार की बुराई करेगा वह इसी दुनिया में उसकी सज़ा मुसीबतों और बीमारियों के रूप में भुगत लेगा। (इब्ने-मर्दूया) [इसी तरह काफ़िर के बारे में आप (सल्ल०) का कथन है कि] "दुनिया में उसकी भलाइयों का बदला चुका दिया जाता है, फिर जब क्रियामत होगी तो उसके हिसाब में कोई नेकी न होगी।" (इब्ने-जरीर) लेकिन नबी (सल्ल०) के कुछ कथनों से मालूम होता है कि काफ़िर की नेकी उसे जहन्नम के अज़ाब से तो नहीं बचा सकती, अलबत्ता जहन्नम में उसको वह कठोर सज़ा न दी जाएगी जो अत्याचारी और अवज्ञाकारी और दुराचारी काफ़िरों को दी जाएगी। जैसे हदीस में आया है कि हातिम ताई की दानशीलता की वजह से उसको हल्का अज़ाब दिया जाएगा। (रूहुल-मआनी) फिर भी यह आयत इंसान को एक बड़ी महत्त्वपूर्ण वास्तविकता पर सचेत करती है, और वह यह है कि हर छोटी-से-छोटी नेकी भी अपना एक वज़न और अपना एक मूल्य रखती है, और यही हाल बदी का भी है कि छोटी-से-छोटी बदी भी हिसाब में आनेवाली चीज़ है, यूँ ही नज़र-अंदाज़ कर देनेवाली चीज़ नहीं है। यही बात है जिसको बहुत-सी हदीसों में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने फ़रमाया है, जैसे-
(1) "दोज़ख़ की आग से बचो, भले ही वह खजूर का एक टुकड़ा देने या एक अच्छी बात कहने ही के ज़रिये से हो।" (बुख़ारी, मुस्लिम)
(2) "ऐ मुसलमान औरतो! कोई पड़ोसिन अपनी पड़ोसिन के यहाँ कोई चीज़ भेजने को तुच्छ न समझे, भले ही वह बकरी का एक खुर ही क्यों न हो।" (बुख़ारी)
(3) "खबरदार, छोटे गुनाहों से बचकर रहना, क्योंकि वे सब आदमी पर जमा हो जाएँगे, यहाँ तक कि उसे तबाह कर देंगे।" (मुस्नद अहमद)
छोटे गुनाहों और बड़े गुनाहों के अन्तर को समझने के लिए देखिए टीका सूरा-4 अन-निसा, टिप्पणी 53; सूरा-53 अन-नज़्म, टिप्पणी 32