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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

19. मरयम

(मक्का में उतरी-आयतें 98)

परिचय

नाम

इस सूरा का नाम आयत “वज़कुर फ़िल किताबि मर-य-म" से लिया गया है।

उतरने का समय

इस सूरा के उतरने का समय हबशा की हिजरत से पहले का है। विश्वसनीय रिवायतों से मालूम होता है कि मुसलमान मुहाजिर जब नज्जाशी के दरबार में बुलाए गए थे, उस समय हजरत जाफ़र (रज़ि०) ने यही सूरा भरे दरबार में तिलावत की (पढ़ी) थी।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

यह सूरा उस युग में उतरी थी जब क़ुरैश के सरदार मज़ाक उड़ाने, उपहास करने, लोभ देने, डराने और झूठे आरोपों का प्रचार करके इस्लामी आन्दोलन को दबाने में विफल होकर ज़ुल्मो-सितम, मार-पीट और आर्थिक दबाव के हथियार इस्तेमाल करने लगे थे। हर क़बीले के लोगों ने अपने-अपने क़बीले के नव-मुस्लिमों को तंग किया और तरह-तरह से सताकर उन्हें इस्लाम छोड़ने पर मजबूर करने की कोशिश की। इस सिलसिले में मुख्य रूप से ग़रीब लोग और वे गुलाम और दास जो क़ुरैशवालों के अधीन बनकर रहते थे, बुरी तरह पीसे गए। ये परिस्थितियाँ जब असहनीय हो गईं तो रजब, 45 आमुल-फ़ील (सन् 05 नब्वी) में नबी (सल्ल०) की अनुमति के साथ अधिकतर मुसलमान मक्का से हबशा हिजरत कर गए। पहले ग्यारह मर्दो और चार औरतों ने हबशा की राह ली। क़ुरैश के लोगों ने समुद्र-तट तक उनका पीछा किया, मगर सौभाग्य से शुऐबा के बन्दरगाह पर उनको ठीक समय पर हबशा के लिए नाव मिल गई और वे गिरफ़्तार होने से बच गए। फिर कुछ महीने के अन्दर कुछ लोगों ने हिजरत की, यहाँ तक कि 53 मर्द, 11 औरतें और 7 ग़ैर-क़ुरैशी मुसलमान हबशा में जमा हो गए और मक्का में नबी (सल्ल०) के साथ सिर्फ़ 40 आदमी रह गए थे।

इस हिजरत से मक्का के घर-घर में कोहराम मच गया, क्योंकि क़ुरैश के छोटे और बड़े परिवारों में से कोई ऐसा न था जिसके युवक इन मुहाजिरों में शामिल न हों। इसी लिए कोई घर न था जो इस घटना से प्रभावित न हुआ हो। कुछ लोग इसकी वजह से इस्लाम विरोध में पहले से अधिक कठोर हो गए और कुछ के दिलों पर इसका प्रभाव ऐसा हुआ कि अन्त में वे मुसलमान होकर रहे । चुनांँचे हज़रत उमर (रज़ि०) के इस्लाम-विरोध पर पहली चोट इसी घटना से लगी थी।

इस हिजरत के बाद क़ुरैश के सरदार सिर जोड़कर बैठे और उन्होंने तय किया कि अब्दुल्लाह-बिन-अबी-रबीआ (अबू जह्‍ल के माँ जाए भाई) और अम्र-बिन-आस को बहुत-से बहुमूल्य उपहार के साथ हबशा भेजा जाए और ये लोग किसी न किसी तरह नज्जाशी को इस बात पर तैयार करें कि वह मुहाजिरों को मक्का वापस भेज दे। चुनांँचे क़ुरैश के ये दोनों राजनयिक (दूत) मुसलमानों का पीछा करते हुए हबशा पहुँचे। पहले उन्होंने नज्जाशी के दरबारियों में ख़ूब उपहार बाँटकर [सबको अपने मिशन के समर्थन पर] राज़ी कर लिया, फिर नज्जाशी से मिले और उसको मूल्यवान भेंट देने के बाद उन मुहाजिरों की वापसी का निवेदन किया, जिसका उसके दरबारियों ने भरपूर समर्थन किया । मगर नज्जाशी ने बिगड़कर कहा कि “इस तरह तो मैं उन्हें हवाले नहीं करूँगा। जिन लोगों ने दूसरे देश को छोड़कर मेरे देश पर विश्वास किया और यहाँ शरण लेने के लिए आए, उनसे मैं विश्वासघात नहीं कर सकता। पहले मैं उन्हें बुलाकर जाँच करूँगा कि ये लोग उनके बारे में जो कुछ कहते हैं, उसकी वास्तविकता क्या है।” चुनांँचे नज्जाशी ने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के साथियों को अपने दरबार में बुला भेजा। नज्जाशी का सन्देश पाकर सब मुहाजिर जमा हुए और उन्होंने आपसी मश्‍वरे से एक साथ होकर फ़ैसला किया कि नबी (सल्ल०) ने हमें जो शिक्षा दी है, हम तो वही बिना कुछ घटाए-बढ़ाए सामने रख देंगे, भले ही नज्जाशी हमें रखे या निकाल दे। वे दरबार में पहुँचे तो नज्जाशी के सवाल करने पर हज़रत जाफ़र-बिन-अबी तालिब (रज़ि०) ने तत्काल एक भाषण देते हुए अरब की अज्ञानता के हालात, मुहम्मद (सल्ल०) का नबी बनाए जाने, इस्लाम की शिक्षाओं और मुसलमानों पर क़ुरैश के अत्याचारों को खोल-खोलकर बयान किया। नज्जाशी ने यह भाषण सुनकर कहा कि तनिक मुझे वह कलाम (वाणी) सुनाओ जो तुम कहते हो कि अल्लाह की ओर से तुम्हारे नबी पर उतरा है। हज़रत जाफ़र (रज़ि०) ने जवाब में सूरा मरयम का वह आरंभिक भाग सुनाया जो हज़रत यह्‍या और हज़रत ईसा (अलैहि०) से संबंधित है। नज्जाशी उसको सुनता रहा और रोता रहा, यहाँ तक कि उसकी दाढ़ी भीग गई। जब हज़रत जाफ़र (रजि०) ने तिलवात ख़त्म की तो उसने कहा, “निश्चय ही यह कलाम और जो कुछ ईसा लाए थे, दोनों एक ही स्रोत से निकले हैं। अल्लाह की क़सम! मैं तुम्हें उन लोगों के हवाले नहीं करूँगा"।

दूसरे दिन अम्र-बिन-आस ने नजाशी से कहा कि "तनिक इन लोगों को बुलाकर यह तो पूछिए कि मरयम के बेटे ईसा के बारे में उनका अक़ीदा (विश्वास) क्या है? ये लोग उनके बारे में एक बड़ी [भयानक] बात कहते हैं ।” नज्जाशी ने फिर मुहाजिरों को बुला भेजा और जब अम्र-बिन-आस द्वारा किया गया प्रश्न उनके सामने दोहराया तो जाफ़र-बिन-अबी तालिब (रज़ि०) ने उठकर बे-झिझक कहा कि “वे अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं और उसकी ओर से एक रूह और एक कलिमा हैं जिसे अल्लाह ने कुँवारी मरयम पर डाला।" नज्जाशी ने सुनकर एक तिनका धरती से उठाया और कहा, “अल्लाह की क़सम ! जो कुछ तुमने कहा ईसा उससे इस तिनके के बराबर भी ज़्यादा नहीं थे।" इसके बाद नज्जाशी ने क़ुरैश के भेजे हुए तमाम उपहार यह कहकर वापस कर दिए कि मैं घूस नहीं लेता और मुहाजिरों से कहा तुम बिल्कुल निश्चिन्त होकर रहो।

विषय और वार्ताएँ

इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दृष्टि में रखकर जब हम इस सूरा को देखते हैं तो उसमें पहली बात उभरकर हमारे सामने यह आती है कि यद्यपि मुसलमान एक उत्पीड़ित शरणार्थी गिरोह के रूप में अपना वतन छोड़कर दूसरे देश में जा रहे थे, मगर इस दशा में भी अल्लाह ने उनको दीन के मामले में तनिक भर भी लचक दिखाने की शिक्षा न दी, बल्कि चलते वक़्त राह में काम आनेवाले सामान के रूप में यह सूरा उनके साथ की ताकि ईसाइयों के देश में ईसा (अलैहि०) की बिल्कुल सही हैसियत प्रस्तुत करें और उनका अल्लाह का बेटा होने से साफ़ साफ़ इंकार कर दें।

आयत 1 से लेकर 40 तक हज़रत यहया और ईसा का क़िस्सा सुनाने के बाद फिर इससे आगे की आयतों में समय के हालात को देखते हुए हज़रत इबाहीम (अलैहि०) का किस्सा सुनाया गया है, क्योंकि ऐसे ही हालात में वे भी अपने बाप और परिवार और देशवालों के अत्याचारों से तंग आकर वतन से निकल खड़े हुए थे। इससे एक ओर मक्का के विधर्मियों को यह शिक्षा दी गई है कि आज हिजरत करनेवाले मुसलमान इबाहीम (अलैहि०) की पोजीशन में हैं और तुम लोग उन ज़ालिमों की स्थिति में हो जिन्होंने उनको घर से निकाला था। दूसरी ओर मुहाजिरों को यह शुभ-सूचना दी गई है कि जिस तरह इब्राहीम (अलैहि०) वतन से निकलकर नष्ट न हुए, बल्कि और अधिक उच्च पद पर आसीन हो गए, ऐसा ही भला अंजाम तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।

इसके बाद नबियों का उल्लेख किया गया है, जिसमें यह बताना अभिप्रेत है कि तमाम नबी वही दीन लेकर आए थे जो मुहम्मद (सल्ल०) लाए हैं। मगर नबियों के गुज़र जाने के बाद उनकी उम्मतें बिगड़ती रही है और आज अलग-अलग उम्मतों (समुदायो) में जो गुमराहियाँ पाई जा रही हैं, ये उसी बिगाड़ का फल हैं।

आयत 67 से अन्त तक मक्का के इस्लाम-शत्रुओं की पथभ्रष्टता की कड़ी आलोचना की गई है और कलाम (वाणी) समाप्त करते हुए ईमानवालों को शुभ-सूचना सुनाई गई है कि सत्य के शत्रुओं की सारी कोशिशों के बावजूद अन्तत: तुम लोकप्रिय बनकर रहोगे।

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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
19. मरयम
كٓهيعٓصٓ
(1) काफ़० हा० या० ऐन० साद०।
ذِكۡرُ رَحۡمَتِ رَبِّكَ عَبۡدَهُۥ زَكَرِيَّآ ۝ 1
(2) ज़िक्र है उस रहमत का जो तेरे रब ने अपने बन्दे ज़करीया पर की थी,
إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥ نِدَآءً خَفِيّٗا ۝ 2
(3) जबकि उसने अपने रब को चुपके-चुपके पुकारा।
قَالَ رَبِّ إِنِّي وَهَنَ ٱلۡعَظۡمُ مِنِّي وَٱشۡتَعَلَ ٱلرَّأۡسُ شَيۡبٗا وَلَمۡ أَكُنۢ بِدُعَآئِكَ رَبِّ شَقِيّٗا ۝ 3
(4) उसने अर्ज़ किया, “ऐ परवरदिगार! मेरी हड्डियाँ तक घुल गई हैं और सिर बुढ़ापे से भड़क उठा है। ऐ परवरदिगार! मैं कभी तुझसे दुआ माँगकर नामुराद नहीं रहा।
وَإِنِّي خِفۡتُ ٱلۡمَوَٰلِيَ مِن وَرَآءِي وَكَانَتِ ٱمۡرَأَتِي عَاقِرٗا فَهَبۡ لِي مِن لَّدُنكَ وَلِيّٗا ۝ 4
(5) मुझे अपने पीछे अपने भाई-बन्दों की बुराइयों का खौफ़ है और मेरी बीवी बाँझ है। तू मुझे अपने फ़ज़्ल-ख़ास से एक वारिस अता कर दे
يَرِثُنِي وَيَرِثُ مِنۡ ءَالِ يَعۡقُوبَۖ وَٱجۡعَلۡهُ رَبِّ رَضِيّٗا ۝ 5
(6) जो मेरा वारिस भी हो और आले-याक़ूब की मीरास भी पाए, और ऐ परवरदिगार! उसको एक पसंदीदा इनसान बना।”
يَٰزَكَرِيَّآ إِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلَٰمٍ ٱسۡمُهُۥ يَحۡيَىٰ لَمۡ نَجۡعَل لَّهُۥ مِن قَبۡلُ سَمِيّٗا ۝ 6
(7) (जवाब दिया गया) ऐ ज़करीया, हम तुझे एक लड़के की ख़ुशख़बरी देते हैं जिसका नाम यह्या होगा। हमने इस नाम का कोई आदमी इससे पहले पैदा नहीं किया।”
قَالَ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي غُلَٰمٞ وَكَانَتِ ٱمۡرَأَتِي عَاقِرٗا وَقَدۡ بَلَغۡتُ مِنَ ٱلۡكِبَرِ عِتِيّٗا ۝ 7
(8) अर्ज़ किया, “परवरदिगार! भला मेरे यहाँ कैसे बेटा होगा जबकि मेरी बीवी बाँझ है और मैं बूढ़ा होकर सूख चुका हूँ”,
قَالَ كَذَٰلِكَ قَالَ رَبُّكَ هُوَ عَلَيَّ هَيِّنٞ وَقَدۡ خَلَقۡتُكَ مِن قَبۡلُ وَلَمۡ تَكُ شَيۡـٔٗا ۝ 8
(9) जवाब मिला, “ऐसा ही होगा। तेरा रब1 फ़रमाता है कि यह तो मेरे लिए एक ज़रा-सी बात है, आख़िर इससे पहले मैं तुझे पैदा कर चुका हूँ जबकि तू कोई चीज़ न था।”
1. यानी तेरे बूढ़े होने और तेरी बीवी के बाँझ होने के बावजूद तेरे यहाँ लड़का पैदा होगा।
قَالَ رَبِّ ٱجۡعَل لِّيٓ ءَايَةٗۖ قَالَ ءَايَتُكَ أَلَّا تُكَلِّمَ ٱلنَّاسَ ثَلَٰثَ لَيَالٖ سَوِيّٗا ۝ 9
(10) ज़करीया ने कहा, “परवरदिगार! मेरे लिए कोई निशानी मुक़र्रर कर दे।” फ़रमाया, “तेरे लिए निशानी यह है कि तू पैहम तीन दिन लोगों से बात न कर सके।”
فَخَرَجَ عَلَىٰ قَوۡمِهِۦ مِنَ ٱلۡمِحۡرَابِ فَأَوۡحَىٰٓ إِلَيۡهِمۡ أَن سَبِّحُواْ بُكۡرَةٗ وَعَشِيّٗا ۝ 10
(11) चुनाँचे वह मेहराब से निकलकर अपनी क़ौम के सामने आया और उसने इशारे से उनको हिदायत की कि सुबह व शाम तसबीह करो।
يَٰيَحۡيَىٰ خُذِ ٱلۡكِتَٰبَ بِقُوَّةٖۖ وَءَاتَيۡنَٰهُ ٱلۡحُكۡمَ صَبِيّٗا ۝ 11
(12) “ऐ यहया! किताबे-इलाही को मज़बूत थाम ले।”2 हमने उसे बचपन ही में हुक्म3 से नवाज़ा,
2. बीच में यह तफ़सील छोड़ दी गई है कि इस फ़रमाने-इलाही के मुताबिक़ हज़रत यहया (अलैहि०) पैदा हुए और जवानी की उम्र को पहुँचे।
3. ‘हुक्म' यानी क़ुव्वते-फ़ैसला, क़ुव्वते-इजतिहाद, तफ़क़्क़ुह-फ़िद्दीन, मामलात में सही राय क़ायम करने की सलाहियत और अल्लाह की तरफ़ से मामलात में फ़ैसला देने का इख़्तियार।
وَحَنَانٗا مِّن لَّدُنَّا وَزَكَوٰةٗۖ وَكَانَ تَقِيّٗا ۝ 12
(13) और अपनी तरफ़ से उसको नर्मदिली और पाकीज़गी अता की, और वह बड़ा परहेज़गार
وَبَرَّۢا بِوَٰلِدَيۡهِ وَلَمۡ يَكُن جَبَّارًا عَصِيّٗا ۝ 13
(14) और अपने वालिदैन का हक़-शनास था। वह जब्बार न था और न नाफ़रमान।
وَسَلَٰمٌ عَلَيۡهِ يَوۡمَ وُلِدَ وَيَوۡمَ يَمُوتُ وَيَوۡمَ يُبۡعَثُ حَيّٗا ۝ 14
(15) सलाम उसपर जिस रोज़ कि वह पैदा हुआ और जिस दिन वह मरे और जिस रोज़ वह ज़िन्दा करके उठाया जाए।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ مَرۡيَمَ إِذِ ٱنتَبَذَتۡ مِنۡ أَهۡلِهَا مَكَانٗا شَرۡقِيّٗا ۝ 15
(16) और (ऐ नबी!) इस किताब में मरयम का हाल बयान करो, जबकि वह अपने लोगों से अलग होकर शरक़ी जानिब गोशानशीन हो गई थी4
4. यानी बैतुल-मक़दिस के मशरिक़ी हिस्से में।
فَٱتَّخَذَتۡ مِن دُونِهِمۡ حِجَابٗا فَأَرۡسَلۡنَآ إِلَيۡهَا رُوحَنَا فَتَمَثَّلَ لَهَا بَشَرٗا سَوِيّٗا ۝ 16
(17) और परदा डालकर उनसे छिप बैठी थी। इस हालत में हमने उसके पास अपनी रूह को (यानी फ़रिश्ते को) भेजा और वह उसके सामने एक पूरे इनसान की शक्ल में नमूदार हो गया।
5. यानी ‘एतिकाफ़' में बैठ गई थी।
فَكُلِي وَٱشۡرَبِي وَقَرِّي عَيۡنٗاۖ فَإِمَّا تَرَيِنَّ مِنَ ٱلۡبَشَرِ أَحَدٗا فَقُولِيٓ إِنِّي نَذَرۡتُ لِلرَّحۡمَٰنِ صَوۡمٗا فَلَنۡ أُكَلِّمَ ٱلۡيَوۡمَ إِنسِيّٗا ۝ 17
(26) पस तू खा और पी और अपनी आँखें ठण्डी कर। फिर अगर कोई आदमी तुझे नज़र आए तो उससे कह दे कि मैंने रहमान के लिए रोज़े की नज़्र मानी है, इसलिए आज मैं किसी से न बोलूँगी।”
قَالَتۡ إِنِّيٓ أَعُوذُ بِٱلرَّحۡمَٰنِ مِنكَ إِن كُنتَ تَقِيّٗا ۝ 18
(18) मरयम यकायक बोल उठी कि “अगर तू कोई ख़ुदा-तरस आदमी है तो मैं तुझसे ख़ुदा-ए-रहमान की पनाह माँगती हूँ।”
فَأَتَتۡ بِهِۦ قَوۡمَهَا تَحۡمِلُهُۥۖ قَالُواْ يَٰمَرۡيَمُ لَقَدۡ جِئۡتِ شَيۡـٔٗا فَرِيّٗا ۝ 19
(27) फिर वह उस बच्चे को लिए हुए अपनी क़ौम में आई। लोग कहने लगे, “ऐ मरयम! यह तो तूने बड़ा पाप कर डाला।
قَالَ إِنَّمَآ أَنَا۠ رَسُولُ رَبِّكِ لِأَهَبَ لَكِ غُلَٰمٗا زَكِيّٗا ۝ 20
(19) उसने कहा, “मैं तो तेरे रब का फ़िरिस्तादा हूँ और इसलिए भेजा गया हूँ कि तुझे एक पाकीज़ा लड़का दूँ।”
يَٰٓأُخۡتَ هَٰرُونَ مَا كَانَ أَبُوكِ ٱمۡرَأَ سَوۡءٖ وَمَا كَانَتۡ أُمُّكِ بَغِيّٗا ۝ 21
(28) ऐ हारून की बहन!9 न तेरा बाप कोई बुरा आदमी था और न तेरी माँ ही कोई बदकार औरत थी।”
9. यानी ख़ानदाने-हारून की बेटी। यह अरबी ज़बान का मुहावरा है कि किसी क़बीले के फ़र्द को उस क़बीले का भाई कहा जाता है। क़ौम के लोगों की इस बात का मतलब यह था कि हमारे सबसे ऊँचे मज़हबी घराने की लड़की, तूने यह क्या कर डाला!
قَالَتۡ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي غُلَٰمٞ وَلَمۡ يَمۡسَسۡنِي بَشَرٞ وَلَمۡ أَكُ بَغِيّٗا ۝ 22
(20) मरयम ने कहा, “मेरे यहाँ कैसे लड़का होगा जबकि मुझे किसी बशर ने छुआ तक नहीं है और मैं कोई बदकार औरत नहीं हूँ!”
فَأَشَارَتۡ إِلَيۡهِۖ قَالُواْ كَيۡفَ نُكَلِّمُ مَن كَانَ فِي ٱلۡمَهۡدِ صَبِيّٗا ۝ 23
(29) मरयम ने बच्चे की तरफ़ इशारा कर दिया। लोगों ने कहा, “हम इससे क्या बात करें जो गहवारे में पड़ा हुआ एक बच्चा है?”
قَالَ كَذَٰلِكِ قَالَ رَبُّكِ هُوَ عَلَيَّ هَيِّنٞۖ وَلِنَجۡعَلَهُۥٓ ءَايَةٗ لِّلنَّاسِ وَرَحۡمَةٗ مِّنَّاۚ وَكَانَ أَمۡرٗا مَّقۡضِيّٗا ۝ 24
(21) फ़रिश्ते ने कहा, “ऐसा ही होगा,6 तेरा रब फ़रमाता है कि ऐसा करना मेरे लिए बहुत आसान है और हम यह इसलिए करेंगे कि उस लड़के को लोगों के लिए एक निशानी बनाएँ7 और अपनी तरफ़ से एक रहमत। और यह काम होकर रहना है।”
6. यानी बग़ैर इसके कि कोई मर्द तुझे हाथ लगाए तेरे यहाँ बच्चा पैदा होगा।
7. यानी हम उस बच्चे को एक ज़िन्दा मोजिज़ा बना देना चाहते हैं।
قَالَ إِنِّي عَبۡدُ ٱللَّهِ ءَاتَىٰنِيَ ٱلۡكِتَٰبَ وَجَعَلَنِي نَبِيّٗا ۝ 25
(30) बच्चा बोल उठा, “मैं अल्लाह का बन्दा हूँ।10 उसने मुझे किताब दी, और नबी बनाया,
10. यह थी वह निशानी जिसका ज़िक्र इससे पहले आयत-21 में गुज़रा है। नौज़ाइदा बच्चे ने गहवारे में पड़े हुए बोलना शुरू कर दिया जिससे सबपर आशकारा हो गया कि वह किसी गुनाह का नतीजा नहीं है, बल्कि एक मोजिज़ा है जो अल्लाह ने दिखाया है। सूरा-3 आले- इमरान, आयत-46 और सूरा-5 माइदा, आयत-110 में भी फ़रमाया गया है कि हज़रत ईसा (अलैहि०) ने गहवारे में बात की थी।
۞فَحَمَلَتۡهُ فَٱنتَبَذَتۡ بِهِۦ مَكَانٗا قَصِيّٗا ۝ 26
(22) मरयम को उस बच्चे का हम्ल रह गया और वह इस हम्ल को लिए हुए एक दूर के मक़ाम पर चली गई।
فَأَجَآءَهَا ٱلۡمَخَاضُ إِلَىٰ جِذۡعِ ٱلنَّخۡلَةِ قَالَتۡ يَٰلَيۡتَنِي مِتُّ قَبۡلَ هَٰذَا وَكُنتُ نَسۡيٗا مَّنسِيّٗا ۝ 27
(23) फिर ज़चगी की तकलीफ़ ने उसे एक खजूर के दरख़्त के नीचे पहुँचा दिया। वह कहने लगी, “काश, मैं इससे पहले ही मर जाती और मेरा नाम व निशान न रहता!”8
8. इस कलाम के मौक़े व महल पर ग़ौर किया जाए तो मालूम होता है कि हज़रत मरयम (अलैहि०) ने यह बात ज़चगी की तकलीफ़ की बिना पर नहीं कही थी, बल्कि इस बिना पर कही थी कि बाप के बग़ैर जो बच्चा पैदा हुआ है उसे लेकर कहाँ जाएँ। इसी वजह से वे ज़माना-ए-हमल में अकेली एक दूर-दराज़ मक़ाम पर चली गई थीं, हालाँकि उनकी वालिदा और ख़ानदान के लोग वतन में मौजूद थे।
وَجَعَلَنِي مُبَارَكًا أَيۡنَ مَا كُنتُ وَأَوۡصَٰنِي بِٱلصَّلَوٰةِ وَٱلزَّكَوٰةِ مَا دُمۡتُ حَيّٗا ۝ 28
(31) और बाबरकत किया जहाँ भी मैं रहूँ, नमाज़ और ज़कात की पाबन्दी का हुक्म दिया जब तक मैं ज़िन्दा रहूँ,
فَنَادَىٰهَا مِن تَحۡتِهَآ أَلَّا تَحۡزَنِي قَدۡ جَعَلَ رَبُّكِ تَحۡتَكِ سَرِيّٗا ۝ 29
(24) फ़रिश्ते ने पाँयती से उसको पुकारकर कहा, “ग़म न कर, तेरे रब ने तेरे नीचे एक चश्मा रवाँ कर दिया है
وَبَرَّۢا بِوَٰلِدَتِي وَلَمۡ يَجۡعَلۡنِي جَبَّارٗا شَقِيّٗا ۝ 30
(32) और अपनी वालिदा का हक़ अदा करनेवाला बनाया,11 और मुझको जब्बार और शक़ी नहीं बनाया।
11. वालिदैन का हक़ अदा करनेवाला नहीं, बल्कि सिर्फ़ वालिदा का हक़ अदा करनेवाला फ़रमाया है। यह भी इस बात की दलील है कि हज़रत ईसा (अलैहि०) का बाप कोई न था और इसी की एक सरीह दलील यह है कि क़ुरआन में हर जगह उनको ईसा इब्ने-मरयम कहा गया है।
وَهُزِّيٓ إِلَيۡكِ بِجِذۡعِ ٱلنَّخۡلَةِ تُسَٰقِطۡ عَلَيۡكِ رُطَبٗا جَنِيّٗا ۝ 31
(25) और तू ज़रा इस दरख़्त के तने को हिला, तेरे ऊपर तरो-ताज़ा खजूरे टपक पड़ेंगी।
وَٱلسَّلَٰمُ عَلَيَّ يَوۡمَ وُلِدتُّ وَيَوۡمَ أَمُوتُ وَيَوۡمَ أُبۡعَثُ حَيّٗا ۝ 32
(33) सलाम है मुझपर जबकि मैं पैदा हुआ और जबकि मैं मरूँ और जबकि ज़िन्दा करके उठाया जाऊँ।”12
12. यह निशानी दिखाकर अल्लाह तआला ने उसी वक़्त बनी-इसराईल पर हुज्जत तमाम कर दी थी। यही वजह है कि जब जवान होकर हज़रत ईसा (अलैहि०) ने नुबूवत का काम शुरू किया और उस क़ौम ने न सिर्फ़ उनका इनकार किया, बल्कि उनकी जान के दर पै हो गई और उनकी वालिदा मोहतरमा पर ज़िना का इलज़ाम लगाने से भी न चूकी तो अल्लाह तआला ने उसको ऐसी सज़ा दी जो किसी क़ौम को नहीं दी गई।
ذَٰلِكَ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَۖ قَوۡلَ ٱلۡحَقِّ ٱلَّذِي فِيهِ يَمۡتَرُونَ ۝ 33
(34) यह है ईसा इब्ने-मरयम और यह है उसके बारे में वह सच्ची बात जिसमें लोग शक कर रहे हैं।
سُورَةُ مَرۡيَمَ
19. मरयम
مَا كَانَ لِلَّهِ أَن يَتَّخِذَ مِن وَلَدٖۖ سُبۡحَٰنَهُۥٓۚ إِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ ۝ 34
(35) अल्लाह का यह काम नहीं कि वह किसी को बेटा बनाए। वह पाक ज़ात है। वह जब किसी बात का फ़ैसला करता है तो कहता है कि हो जा, और बस वह हो जाती है।13
3. यह ईसाइयों पर इतमामे-हुज्जत है। मह्ज़ मोजिज़े से किसी का पैदा होना इस बात की दलील नहीं है कि मआज़ल्लाह उसे ख़ुदा का बेटा क़रार दिया जाए।
وَأَعۡتَزِلُكُمۡ وَمَا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَأَدۡعُواْ رَبِّي عَسَىٰٓ أَلَّآ أَكُونَ بِدُعَآءِ رَبِّي شَقِيّٗا ۝ 35
(48) मैं आप लोगों को भी छोड़ता हूँ और उन हस्तियों को भी जिन्हें आप लोग ख़ुदा को छोड़कर पुकारा करते हैं। मैं तो अपने रब ही को पुकारूँगा, उम्मीद है कि मैं अपने रब को पुकारकर नामुराद न रहूँगा।”
وَإِنَّ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُوهُۚ هَٰذَا صِرَٰطٞ مُّسۡتَقِيمٞ ۝ 36
(36) (और ईसा ने कहा था कि) “अल्लाह मेरा रब भी है और तुम्हारा रब भी, पस तुम उसी की बन्दगी करो, यही सीधी राह है,”
فَلَمَّا ٱعۡتَزَلَهُمۡ وَمَا يَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَهَبۡنَا لَهُۥٓ إِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَۖ وَكُلّٗا جَعَلۡنَا نَبِيّٗا ۝ 37
(49) पस जब वह उन लोगों से और उनके माबूदाने-ग़ैरुल्लाह से जुदा हो गया तो हमने उसको इसहाक़ और याक़ूब जैसी औलाद दी और हर एक को नबी बनाया
فَٱخۡتَلَفَ ٱلۡأَحۡزَابُ مِنۢ بَيۡنِهِمۡۖ فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن مَّشۡهَدِ يَوۡمٍ عَظِيمٍ ۝ 38
(37) मगर फिर मुख़्तलिफ़ गरोह बाहम इख़्तिलाफ़ करने लगे। सो जिन लोगों ने कुफ़्र किया उनके लिए वह वक़्त बड़ी तबाही का होगा जबकि वे एक बड़ा दिन देखेंगे।
أَسۡمِعۡ بِهِمۡ وَأَبۡصِرۡ يَوۡمَ يَأۡتُونَنَا لَٰكِنِ ٱلظَّٰلِمُونَ ٱلۡيَوۡمَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ ۝ 39
(38) जब वे हमारे सामने हाज़िर होंगे, उस रोज़ तो उनके कान भी ख़ूब सुन रहे होंगे और उनकी आँखें भी ख़ूब देखती होंगी, मगर आज ये ज़ालिम खुली गुमराही में मुब्तला हैं।
وَوَهَبۡنَا لَهُم مِّن رَّحۡمَتِنَا وَجَعَلۡنَا لَهُمۡ لِسَانَ صِدۡقٍ عَلِيّٗا ۝ 40
(50) और उनको अपनी रहमत से नवाज़ा और उनको सच्ची नामवरी अता की।
وَأَنذِرۡهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡحَسۡرَةِ إِذۡ قُضِيَ ٱلۡأَمۡرُ وَهُمۡ فِي غَفۡلَةٖ وَهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 41
(39) (ऐ नबी!) इस हालत में जबकि ये लोग ग़ाफ़िल हैं और ईमान नहीं ला रहे हैं, इन्हें उस दिन से डरा दो जबकि फ़ैसला कर दिया जाएगा और पछतावे के सिवा कोई चारा-ए-कार न होगा।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ مُوسَىٰٓۚ إِنَّهُۥ كَانَ مُخۡلَصٗا وَكَانَ رَسُولٗا نَّبِيّٗا ۝ 42
(51) और ज़िक्र करो इस किताब में मूसा का। वह एक चीदा शख़्स था और रसूल-नबी14 था।
14. ‘रसूल 'के मानी हैं 'फ़िरिस्तादा', 'भेजा हुआ'। 'नबी' के मानी में अहले-लुग़त के दरमियान इख़्तिलाफ़ है। बाज़ के नज़दीक नबी के मानी 'ख़बर देनेवाले' के हैं। और बाज़ के नज़दीक नबी का मतलब है 'बलंद मर्तबा' और 'आली मक़ाम'। पस किसी शख़्स को 'रसूल-नबी' कहने का मतलब या तो ‘आली मक़ाम पैग़म्बर' है या 'अल्लाह तआला की तरफ़ से ख़बरें देनेवाला पैग़म्बर।' क़ुरआन मजीद में ये दोनों अलफ़ाज़ बिल-उमूम हममानी इस्तेमाल हुए हैं। लेकिन बाज मक़ामात पर रसूल और नबी के अलफ़ाज़ इस तरह भी इस्तेमाल हुए हैं जिससे ज़ाहिर होता है कि इन दोनों में मर्तबे या काम की नौईयत के लिहाज़ से कोई इस्तिलाही फ़र्क़ है। मसलन सूरा-22 हज्ज, आयत-52 में फ़रमाया गया है— “हमने तुमसे पहले नहीं भेजा कोई रसूल और न नबी मगर।” ये अलफ़ाज़ साफ़ ज़ाहिर करते हैं कि रसूल और नबी दो अलग इस्तिलाहें हैं जिनके दरमियान कोई मानवी फ़र्क़ ज़रूर है। इसी बिना पर अहले-तफ़सीर में यह बहस चल पड़ी है कि इस फ़र्क़ की नौईयत क्या है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि क़तई दलाइल के साथ कोई भी रसूल और नबी की अलग-अलग हैसियतों का तअय्युन नहीं कर सका है। ज़्यादा-से-ज़्यादा जो बात यक़ीन के साथ कही जा सकती है वह यह है कि रसूल का लफ़्ज़ नबी की बनिस्बत ज़्यादा ख़ास है, यानी हर रसूल नबी भी होता है, मगर हर नबी रसूल नहीं होता। ब-अलफ़ाज़े-दीगर अम्बिया में से रसूल का लफ़्ज़ उन जलीलुल-क़द्र हस्तियों के लिए बोला गया है जिनको आम अम्बिया की बनिस्बत ज़्यादा अहम मंसब सिपुर्द किया गया था। इसी की ताईद उस हदीस से भी होती है जिसमें रसूलुल्लाह (सल्ल०) से रसूलों की तादाद पूछी गई तो आप (सल्ल०) ने 313 या 315 बताई और अम्बिया की तादाद पूछी गई तो आप (सल्ल०) ने एक लाख 24 हज़ार बताई।
وَيَقُولُ ٱلۡإِنسَٰنُ أَءِذَا مَا مِتُّ لَسَوۡفَ أُخۡرَجُ حَيًّا ۝ 43
(66) इनसान कहता है क्या वाक़ई जब मैं मर चुकूँगा तो फिर ज़िन्दा करके निकाल लाया जाऊँगा?
إِنَّا نَحۡنُ نَرِثُ ٱلۡأَرۡضَ وَمَنۡ عَلَيۡهَا وَإِلَيۡنَا يُرۡجَعُونَ ۝ 44
(40) आख़िरकार हम ही ज़मीन और उसकी सारी चीज़ों के वारिस होंगे और सब हमारी तरफ़ ही पलटाए जाएँगे।
وَنَٰدَيۡنَٰهُ مِن جَانِبِ ٱلطُّورِ ٱلۡأَيۡمَنِ وَقَرَّبۡنَٰهُ نَجِيّٗا ۝ 45
(52) हमने उसको तूर के दाहिनी जानिब से पुकारा और राज़ की गुफ़्तगू से उसको तक़र्रुब अता किया,
أَوَلَا يَذۡكُرُ ٱلۡإِنسَٰنُ أَنَّا خَلَقۡنَٰهُ مِن قَبۡلُ وَلَمۡ يَكُ شَيۡـٔٗا ۝ 46
(67) क्या इनसान को याद नहीं आता कि हम पहले उसको पैदा कर चुके हैं जबकि वह कुछ भी न था?
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ إِبۡرَٰهِيمَۚ إِنَّهُۥ كَانَ صِدِّيقٗا نَّبِيًّا ۝ 47
(41) और इस किताब में इबराहीम का क़िस्सा बयान करो, बेशक वह एक रास्तबाज़ इनसान और एक नबी था।
وَوَهَبۡنَا لَهُۥ مِن رَّحۡمَتِنَآ أَخَاهُ هَٰرُونَ نَبِيّٗا ۝ 48
(53) और अपनी मेहरबानी से उसके भाई हारून को नबी बनाकर उसे (मददगार के तौर पर) दिया।
فَوَرَبِّكَ لَنَحۡشُرَنَّهُمۡ وَٱلشَّيَٰطِينَ ثُمَّ لَنُحۡضِرَنَّهُمۡ حَوۡلَ جَهَنَّمَ جِثِيّٗا ۝ 49
(68) तेरे रब की क़सम! हम ज़रूर इन सबको और इनके साथ शयातीन को भी घेर लाएँगे, फिर जहन्नम के गिर्द लाकर इन्हें घुटनों के बल गिरा देंगे,
إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ يَٰٓأَبَتِ لِمَ تَعۡبُدُ مَا لَا يَسۡمَعُ وَلَا يُبۡصِرُ وَلَا يُغۡنِي عَنكَ شَيۡـٔٗا ۝ 50
(42) (इन्हें ज़रा उस मौक़े की याद दिलाओ) जबकि उसने अपने बाप से कहा कि “अब्बा जान! आप क्यों उन चीज़ों की इबादत करते हैं जो न सुनती हैं, न देखती हैं और न आपका कोई काम बना सकती हैं?
ثُمَّ لَنَنزِعَنَّ مِن كُلِّ شِيعَةٍ أَيُّهُمۡ أَشَدُّ عَلَى ٱلرَّحۡمَٰنِ عِتِيّٗا ۝ 51
(69) फिर हर गरोह में से हर उस शख़्स को छाँट लेंगे जो रहमान के मुक़ाबले में ज़्यादा सरकश बना हुआ था।
يَٰٓأَبَتِ إِنِّي قَدۡ جَآءَنِي مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَمۡ يَأۡتِكَ فَٱتَّبِعۡنِيٓ أَهۡدِكَ صِرَٰطٗا سَوِيّٗا ۝ 52
(43) अब्बा जान! मेरे पास एक ऐसा इल्म आया है जो आपके पास नहीं आया, आप मेरे पीछे चलें, मैं आपको सीधा रास्ता बताऊँगा।
ثُمَّ لَنَحۡنُ أَعۡلَمُ بِٱلَّذِينَ هُمۡ أَوۡلَىٰ بِهَا صِلِيّٗا ۝ 53
(70) फिर यह हम जानते हैं कि उनमें से कौन सबसे बढ़कर जहन्नम में झोंके जाने का मुस्तहिक़ है।
يَٰٓأَبَتِ لَا تَعۡبُدِ ٱلشَّيۡطَٰنَۖ إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ كَانَ لِلرَّحۡمَٰنِ عَصِيّٗا ۝ 54
(44) अब्बा जान! आप शैतान की बन्दगी न करें, शैतान तो रहमान का नाफ़रमान है।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ إِسۡمَٰعِيلَۚ إِنَّهُۥ كَانَ صَادِقَ ٱلۡوَعۡدِ وَكَانَ رَسُولٗا نَّبِيّٗا ۝ 55
(54) और इस किताब में इसमाईल का ज़िक्र करो। वह वादे का सच्चा था और रसूल-नबी था।
وَإِن مِّنكُمۡ إِلَّا وَارِدُهَاۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ حَتۡمٗا مَّقۡضِيّٗا ۝ 56
(71) तुममें से कोई ऐसा नहीं है जो जहन्नम पर वारिद न हो, यह तो एक तयशुदा बात है जिसे पूरा करना तेरे रब के ज़िम्मे है।
وَكَانَ يَأۡمُرُ أَهۡلَهُۥ بِٱلصَّلَوٰةِ وَٱلزَّكَوٰةِ وَكَانَ عِندَ رَبِّهِۦ مَرۡضِيّٗا ۝ 57
(55) वह अपने घरवालों को नमाज़ और ज़कात का हुक्म देता था और अपने रब के नज़दीक एक पसंदीदा इनसान था।
يَٰٓأَبَتِ إِنِّيٓ أَخَافُ أَن يَمَسَّكَ عَذَابٞ مِّنَ ٱلرَّحۡمَٰنِ فَتَكُونَ لِلشَّيۡطَٰنِ وَلِيّٗا ۝ 58
(45) अब्बा जान! मुझे डर है कि कहीं आप रहमान के अज़ाब में मुब्तला न हो जाएँ और शैतान के साथी बनकर रहें।”
ثُمَّ نُنَجِّي ٱلَّذِينَ ٱتَّقَواْ وَّنَذَرُ ٱلظَّٰلِمِينَ فِيهَا جِثِيّٗا ۝ 59
(72) फिर हम उन लोगों को बचा लेंगे जो (दुनिया में) मुत्तक़ी थे और ज़ालिमों को उसी में गिरा हुआ छोड़ देंगे।
قَالَ أَرَاغِبٌ أَنتَ عَنۡ ءَالِهَتِي يَٰٓإِبۡرَٰهِيمُۖ لَئِن لَّمۡ تَنتَهِ لَأَرۡجُمَنَّكَۖ وَٱهۡجُرۡنِي مَلِيّٗا ۝ 60
(46) बाप ने कहा, “इबराहीम! क्या तू माबूदों से फिर गया है? अगर तू बाज़ न आया तो मैं तुझे संगसार कर दूँगा।
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُنَا بَيِّنَٰتٖ قَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لِلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَيُّ ٱلۡفَرِيقَيۡنِ خَيۡرٞ مَّقَامٗا وَأَحۡسَنُ نَدِيّٗا ۝ 61
(73) इन लोगों को जब हमारी खुली-खुली आयात सुनाई जाती हैं तो इनकार करनेवाले ईमान लानेवालों से कहते हैं, “बताओ हम दोनों गरोहों में से कौन बेहतर हालत में है और किसकी मजलिसें ज़्यादा शानदार हैं?”16
16. कुफ़्फ़ारे-मक्का का इस्तिदलाल यह था कि देख लो, दुनिया में कौन अल्लाह के फल और उसकी नेमतों से नवाज़ा जा रहा है? किसके घर ज़्यादा शानदार हैं? किसका मेयारे-ज़िन्दगी ज़्यादा बलन्द है? किसकी महफ़िलें ज़्यादा ठाठ से जमती है? अगर ये सब कुछ हमें मुयस्सर है और तुम मुसलमान इससे महरूम हो तो ख़ुद सोच लो कि आख़िर यह कैसे मुमकिन था कि हम बातिल पर होते और यूँ मज़े उड़ाते और तुम हक़ पर होते और इस तरह ख़स्ता व माँदा रहते।
قَالَ سَلَٰمٌ عَلَيۡكَۖ سَأَسۡتَغۡفِرُ لَكَ رَبِّيٓۖ إِنَّهُۥ كَانَ بِي حَفِيّٗا ۝ 62
(47) बस तू हमेशा के लिए मुझसे अलग हो जा।” इबराहीम ने कहा, “सलाम है आपको! मैं अपने रब से दुआ करूँगा कि आपको माफ़ कर दे, मेरा रब मुझपर बड़ा ही मेहरबान है।
وَكَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّن قَرۡنٍ هُمۡ أَحۡسَنُ أَثَٰثٗا وَرِءۡيٗا ۝ 63
हालाँकि इनसे पहले हम कितनी ही ऐसी क़ौमों को हलाक कर चुके हैं जो इनसे ज़्यादा सरो-सामान रखती थीं और ज़ाहिरी शान व शौकत में इनसे बढ़ी हुई थीं।
قُلۡ مَن كَانَ فِي ٱلضَّلَٰلَةِ فَلۡيَمۡدُدۡ لَهُ ٱلرَّحۡمَٰنُ مَدًّاۚ حَتَّىٰٓ إِذَا رَأَوۡاْ مَا يُوعَدُونَ إِمَّا ٱلۡعَذَابَ وَإِمَّا ٱلسَّاعَةَ فَسَيَعۡلَمُونَ مَنۡ هُوَ شَرّٞ مَّكَانٗا وَأَضۡعَفُ جُندٗا ۝ 64
(75) इनसे कहो, “जो शख़्स गुमराही में मुब्तला होता है उसे रहमान ढील दिया करता है यहाँ तक कि जब ऐसे लोग वह चीज़ देख लेते हैं जिसका उनसे वादा किया गया है — ख़ाह वह अज़ाबे-इलाही हो या क़ियामत की घड़ी — तब उन्हें मालूम हो जाता है कि किसका हाल ख़राब है और किसका जत्था कमज़ोर!
وَيَزِيدُ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ٱهۡتَدَوۡاْ هُدٗىۗ وَٱلۡبَٰقِيَٰتُ ٱلصَّٰلِحَٰتُ خَيۡرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابٗا وَخَيۡرٞ مَّرَدًّا ۝ 65
(76) इसके बरअक्स जो लोग राहे-रास्त इख़्तियार करते हैं अल्लाह उनको रास्त-रवी में तरक़्क़ी अता फ़रमाता है और बाक़ी रह जानेवाली नेकियाँ ही तेरे रब के नज़दीक जज़ा और अंजाम के एतिबार से बेहतर हैं।”
أَفَرَءَيۡتَ ٱلَّذِي كَفَرَ بِـَٔايَٰتِنَا وَقَالَ لَأُوتَيَنَّ مَالٗا وَوَلَدًا ۝ 66
(77) फिर तूने देखा उस शख़्स को जो हमारी आयात को मानने से इनकार करता है और कहता है कि मैं तो माल और औलाद से नवाज़ा ही जाता रहूँगा?
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَيَجۡعَلُ لَهُمُ ٱلرَّحۡمَٰنُ وُدّٗا ۝ 67
(96) यक़ीनन जो लोग ईमान आए हैं और अमले-सॉलेह कर रहे हैं, अन-क़रीब रहमान उनके लिए दिलों में मुहब्बत पैदा कर देगा।17
17. यानी आज मक्का की गलियों में वे ज़लील व रुसवा किए जा रहे हैं, मगर यह हालत देरपा नहीं है। क़रीब है वह वक़्त जबकि अपने आमाले-सॉलेहा और अख़लाक़े-हसना की वजह से वे महबूबे-ख़लाइक़ होकर रहेंगे। दिल उनकी तरफ़ खिचेंगे। दुनिया उनके आगे पलकें बिछाएगी। फ़िस्क़ व फ़ुजूर, रऊनत और किब्र, झूठ और रियाकारी के बल पर जो सियासत व क़यादत चलती हो वह गर्दनों का चाहे झुका ले, दिलों को मुसख़्ख़र नहीं कर सकती। इसके बरअक्स जो लोग सदाक़त, दियानत, इख़लास और हुस्ने-अख़लाक़ के साथ राहे-रास्त की तरफ़ दावत दें, उनसे अव्वल-अव्वल चाहे दुनिया कितनी ही उपराए, आख़िरकार वे दिलों को मोह लेते हैं और बददियानत लोगों का झूठ ज़्यादा देर तक उनका रास्ता रोके नहीं रह सकता।
أَطَّلَعَ ٱلۡغَيۡبَ أَمِ ٱتَّخَذَ عِندَ ٱلرَّحۡمَٰنِ عَهۡدٗا ۝ 68
(78) क्या उसे ग़ैब का पता चल गया है या उसने रहमान से कोई अह्द ले रखा है?
فَإِنَّمَا يَسَّرۡنَٰهُ بِلِسَانِكَ لِتُبَشِّرَ بِهِ ٱلۡمُتَّقِينَ وَتُنذِرَ بِهِۦ قَوۡمٗا لُّدّٗا ۝ 69
(97) पस (नबी!) इस कलाम को हमने आसान करके तुम्हारी ज़बान में इसी लिए नाज़िल किया है कि तुम परहेज़गारों को ख़ुशख़बरी दे दो और हठधर्म लोगों को डरा दो।
كَلَّاۚ سَنَكۡتُبُ مَا يَقُولُ وَنَمُدُّ لَهُۥ مِنَ ٱلۡعَذَابِ مَدّٗا ۝ 70
(79) — हरगिज़ नहीं! जो कुछ यह बकता है उसे हम लिख लेंगे और इसके लिए सज़ा में और ज़्यादा इज़ाफ़ा करेंगे।
وَكَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّن قَرۡنٍ هَلۡ تُحِسُّ مِنۡهُم مِّنۡ أَحَدٍ أَوۡ تَسۡمَعُ لَهُمۡ رِكۡزَۢا ۝ 71
(98) इनसे पहले हम कितनी ही क़ौमों को हलाक कर चुके हैं, फिर आज कहीं तुम उनका निशान पाते हो या उनकी भनक भी कहीं सुनाई देती है?
وَنَرِثُهُۥ مَا يَقُولُ وَيَأۡتِينَا فَرۡدٗا ۝ 72
(80) जिस सरो-सामान और लाओ-लश्कर का यह ज़िक्र कर रहा है वह सब हमारे पास रह जाएगा और यह अकेला हमारे सामने हाज़िर होगा।
وَٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ ءَالِهَةٗ لِّيَكُونُواْ لَهُمۡ عِزّٗا ۝ 73
(81) इन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर अपने कुछ ख़ुदा बना रखे हैं कि वे इनके पुश्तीबान होंगे।
كَلَّاۚ سَيَكۡفُرُونَ بِعِبَادَتِهِمۡ وَيَكُونُونَ عَلَيۡهِمۡ ضِدًّا ۝ 74
(82) कोई पुश्तीबान न होगा। वे सब इनकी इबादत का इनकार करेंगे और उलटे इनके मुख़ालिफ़ बन जाएँगे।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّآ أَرۡسَلۡنَا ٱلشَّيَٰطِينَ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ تَؤُزُّهُمۡ أَزّٗا ۝ 75
(83) क्या तुम देखते नहीं हो कि हमने मुनकिरीने-हक़ पर शयातीन छोड़ रखे है जो उन्हें ख़ूब-ख़ूब (मुख़ालफ़ते-हक़ पर) उकसा रहे हैं?
فَلَا تَعۡجَلۡ عَلَيۡهِمۡۖ إِنَّمَا نَعُدُّ لَهُمۡ عَدّٗا ۝ 76
(84) अच्छा, तो अब इनपर नुज़ूले-अज़ाब के लिए बेताब न हो। हम इनके दिन गिन रहे हैं।
يَوۡمَ نَحۡشُرُ ٱلۡمُتَّقِينَ إِلَى ٱلرَّحۡمَٰنِ وَفۡدٗا ۝ 77
(85) वह दिन आनेवाला है जब मुत्तक़ी लोगों को हम मेहमानों की तरह रहमान के हुज़ूर पेश करेंगे,
وَنَسُوقُ ٱلۡمُجۡرِمِينَ إِلَىٰ جَهَنَّمَ وِرۡدٗا ۝ 78
(86) और मुजरिमों को प्यासे जानवरों की तरह जहन्नम की तरफ़ हाँक ले जाएँगे।
لَّا يَمۡلِكُونَ ٱلشَّفَٰعَةَ إِلَّا مَنِ ٱتَّخَذَ عِندَ ٱلرَّحۡمَٰنِ عَهۡدٗا ۝ 79
(87) उस वक़्त लोग कोई सिफ़ारिश लाने पर क़ादिर न होंगे बजुज़ उसके जिसने रहमान के हुज़ूर से परवाना हासिल कर लिया हो।
وَقَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱلرَّحۡمَٰنُ وَلَدٗا ۝ 80
(88) वे कहते हैं कि रहमान ने किसी को बेटा बनाया है।
لَّقَدۡ جِئۡتُمۡ شَيۡـًٔا إِدّٗا ۝ 81
(89) — सख़्त बेहूदा बात है जो तुम लोग गढ़ लाए हो।
تَكَادُ ٱلسَّمَٰوَٰتُ يَتَفَطَّرۡنَ مِنۡهُ وَتَنشَقُّ ٱلۡأَرۡضُ وَتَخِرُّ ٱلۡجِبَالُ هَدًّا ۝ 82
(90) क़रीब है कि आसमान फट पड़ें, ज़मीन शक़ हो जाए और पहाड़ गिर जाएँ,
أَن دَعَوۡاْ لِلرَّحۡمَٰنِ وَلَدٗا ۝ 83
(91) इस बात पर कि लोगों ने रहमान के लिए औलाद होने का दावा किया!
وَمَا يَنۢبَغِي لِلرَّحۡمَٰنِ أَن يَتَّخِذَ وَلَدًا ۝ 84
(92) रहमान की यह शान नहीं है कि वह किसी को बेटा बनाए।
إِن كُلُّ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ إِلَّآ ءَاتِي ٱلرَّحۡمَٰنِ عَبۡدٗا ۝ 85
(93) ज़मीन और आसमानों के अन्दर जो भी हैं सब उसके हुज़ूर बन्दों की हैसियत से पेश होनेवाले हैं।
لَّقَدۡ أَحۡصَىٰهُمۡ وَعَدَّهُمۡ عَدّٗا ۝ 86
(94) सबपर वह मुहीत है और उसने उनको शुमार कर रखा है।
وَكُلُّهُمۡ ءَاتِيهِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ فَرۡدًا ۝ 87
(95) सब क़ियामत के रोज़ फ़रदन-फ़रदन उसके सामने हाज़िर होंगे।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ إِدۡرِيسَۚ إِنَّهُۥ كَانَ صِدِّيقٗا نَّبِيّٗا ۝ 88
(56) और इस किताब में इदरीस का ज़िक्र करो। वह एक रास्तबाज़ इनसान और एक नबी था।
وَرَفَعۡنَٰهُ مَكَانًا عَلِيًّا ۝ 89
(57) और उसे हमने बलन्द मक़ाम पर उठाया था।
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ مِن ذُرِّيَّةِ ءَادَمَ وَمِمَّنۡ حَمَلۡنَا مَعَ نُوحٖ وَمِن ذُرِّيَّةِ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡرَٰٓءِيلَ وَمِمَّنۡ هَدَيۡنَا وَٱجۡتَبَيۡنَآۚ إِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُ ٱلرَّحۡمَٰنِ خَرُّواْۤ سُجَّدٗاۤ وَبُكِيّٗا۩ ۝ 90
(58) ये वे पैग़म्बर हैं जिनपर अल्लाह ने इनाम फ़रमाया आदम की औलाद में से, और उन लोगों की नस्ल से हैं जिन्हें हमने नूह के साथ कश्ती पर सवार किया था, और इबराहीम की नस्ल से और इसराईल की नस्ल से। और ये न लोगों में से थे जिनको हमने हिदायत बख़्शी और बरगुज़ीदा किया। उनका हाल यह था कि जब रहमान की आयात उनको सुनाई जातीं तो रोते हुए सजदे में गिर जाते थे।
۞فَخَلَفَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ خَلۡفٌ أَضَاعُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَٱتَّبَعُواْ ٱلشَّهَوَٰتِۖ فَسَوۡفَ يَلۡقَوۡنَ غَيًّا ۝ 91
(59) फिर उनके बाद नाख़लफ़ लोग उनके जानशीन हुए जिन्होंने नमाज़ को ज़ाया किया और ख़ाहिशाते-नफ़्स की पैरवी की, पस क़रीब है कि वे गुमराही के अंजाम से दोचार हों।
إِلَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَأُوْلَٰٓئِكَ يَدۡخُلُونَ ٱلۡجَنَّةَ وَلَا يُظۡلَمُونَ شَيۡـٔٗا ۝ 92
(60) अलबत्ता जो तौबा कर लें और ईमान ले आएँ और नेकअमली इख़्तियार कर लें वे जन्नत में दाख़िल होंगे और उनकी ज़र्रा बराबर हक़तल्फ़ी न होगी।
جَنَّٰتِ عَدۡنٍ ٱلَّتِي وَعَدَ ٱلرَّحۡمَٰنُ عِبَادَهُۥ بِٱلۡغَيۡبِۚ إِنَّهُۥ كَانَ وَعۡدُهُۥ مَأۡتِيّٗا ۝ 93
(61) उनके लिए हमेशा रहनेवाली जन्नतें हैं जिनका रहमान ने अपने बन्दों से दरपरदा वादा कर रखा है और यक़ीनन यह वादा पूरा होकर रहना है।
لَّا يَسۡمَعُونَ فِيهَا لَغۡوًا إِلَّا سَلَٰمٗاۖ وَلَهُمۡ رِزۡقُهُمۡ فِيهَا بُكۡرَةٗ وَعَشِيّٗا ۝ 94
(62) वहाँ वे कोई बेहूदा बात न सुनेंगे, जो कुछ भी सुनेंगे ठीक ही सुनेंगे। और उनका रिज़्क़ उन्हें पैहम सुब्ह व शाम मिलता रहेगा।
تِلۡكَ ٱلۡجَنَّةُ ٱلَّتِي نُورِثُ مِنۡ عِبَادِنَا مَن كَانَ تَقِيّٗا ۝ 95
(63) यह है वह जन्नत जिसका वारिस हम अपने बन्दों में से उसको बनाएँगे जो परहेज़गार रहा है।
وَمَا نَتَنَزَّلُ إِلَّا بِأَمۡرِ رَبِّكَۖ لَهُۥ مَا بَيۡنَ أَيۡدِينَا وَمَا خَلۡفَنَا وَمَا بَيۡنَ ذَٰلِكَۚ وَمَا كَانَ رَبُّكَ نَسِيّٗا ۝ 96
(64) (ऐ नबी!) हम तुम्हारे रब के हुक्म के बग़ैर नहीं उतरा करते।15 जो कुछ हमारे आगे है और जो कुछ पीछे है और जो कुछ उसके दरमियान है हर चीज़ का मालिक वही है और तुम्हारा रब भूलनेवाला नहीं है।
15. यहाँ मुतकल्लिम मलाइका हैं अगरचे कलाम अल्लाह तआला का है, यानी मलाइका रसूलुल्लाह (सल्ल०) से कह रहे हैं कि हम अपने इख़्तियार से नहीं आते, बल्कि अल्लाह जब भेजता है तब आते हैं।
رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا فَٱعۡبُدۡهُ وَٱصۡطَبِرۡ لِعِبَٰدَتِهِۦۚ هَلۡ تَعۡلَمُ لَهُۥ سَمِيّٗا ۝ 97
(65) वह रब है आसमानों का और ज़मीन का और उन सारी चीज़ों का जो आसमानों और ज़मीन के दरमियान हैं, पस तुम उसकी बन्दगी करो और उसी की बन्दगी पर साबित क़दम रहो। क्या है कोई हस्ती तुम्हारे इल्म में उसके हमपाया?