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سُورَةُ النَّمۡلِ

27. अन-नम्ल 

(मक्का में उतरी-आयतें 93)

परिचय

नाम

इस सूरा की आयत 18 में 'नम्ल' (चीटी) की घाटी का उल्लेख हुआ है। सूरा का नाम इसी से उद्धृत है।

उतरने का समय

विषय-वस्तु और वर्णन-शैली मक्का के मध्यकाल की सूरतों से पूरी तरह मिलती-जुलती है और इसकी पुष्टि रिवायतों से भी होती है। इब्‍ने-अब्बास (रजि०) और जाबिर-बिन-ज़ैद का बयान है कि 'पहले सूरा-26 (शुअरा) उतरी, फिर सूरा-27 (अन-नम्ल), फिर सूरा-28 (अल-क़सस)।'

विषय और वार्ताएँ

यह सूरा दो व्याख्यानों पर आधारित है। पहला व्याख्यान सूरा के आरम्भ से आयत 58 तक चला गया है। और दूसरा व्याख्यान आयत 59 से सूरा के अन्त तक । पहले व्याख्यान में बताया गया है कि कु़ुरआन की रहनुमाई से केवल वही लोग लाभ उठा सकते हैं जो इन सच्चाइयों को मान लें जिन्हें यह किताब इस विश्व की मौलिक सच्चाइयों की हैसियत से प्रस्तुत करती है और फिर मान लेने के बाद अपने व्यावहारिक जीवन में भी आज्ञापालन और पैरवी की नीति अपनाएँ, लेकिन इस राह पर आने और चलने में जो चीज़ सबसे बड़ी रुकावट होती है वह आख़िरत (परलोक) का इंकार है।

इस भूमिका के बाद तीन प्रकार के चरित्रों के नमूने प्रस्तुत किए गए हैं-

एक नमूना फ़िरऔन और समूद क़ौम के सरदारों और लूत (अलैहि०) की क़ौम के सरकशों (उद्दंडों) का है, जिनका चरित्र आख़िरत की फ़िक्र के प्रति उदासीनता और उसके नतीजे में अपने मन की बन्दगी से निर्मित हुआ था। ये लोग किसी निशानी को देखकर भी ईमान लाने को तैयार न हुए। ये उलटे उन लोगों के शत्रु हो गए जिन्होंने उनको भलाई एवं कल्याण की ओर बुलाया।

दूसरा नमूना हज़रत सुलैमान (अलै०) का है जिनको अल्लाह ने धन, राज्य और सुख-वैभव से बड़े पैमाने पर सम्पन्न किया था, लेकिन इस सबके बावजूद चूँकि वे अपने आपको अल्लाह के सामने उत्तरदायी समझते थे, इसलिए उनका सिर हर वक़्त अपने महान उपकारकर्ता (ईश्वर) के आगे झुका रहता था।

तीसरा नमूना सबा की मलिका (रानी) का है जो अरब के इतिहास की सुप्रसिद्ध धनी क़ौम की शासिका थी। उसके पास तमाम वे साधन इकट्ठा थे जो किसी इंसान को अहंकारी बना सकते हैं। फिर वह एक बहुदेववादी क़ौम से ताल्लुक रखती थी। बाप-दादा के पीछे चलने की वजह से भी और अपनी क़ौम में अपनी सरदारी बाक़ी रखने के लिए भी, उसके लिए बहुदेववादी धर्म को छोड़कर तौहीद का दीन (एकेश्वरवादी धर्म) अपनाना बहुत कठिन था। लेकिन जब उसपर सत्य खुल गया तो कोई चीज़ उसे सत्य अपनाने से न रोक सकी, क्योंकि उसकी गुमराही सिर्फ़ एक बहुदेववादी वातावरण में आँखें खोलने की वजह से थी। मन की दासता और इच्छाओं की ग़ुलामी का रोग उसपर छाया हुआ न था।

दूसरे व्याख्यान में सबसे पहले सृष्टि की कुछ अत्यन्त स्पष्ट और प्रसिद्ध सच्चाइयों की ओर इशारे करके मक्का के विधर्मियों से लगातार सवाल किया गया है कि बताओ, ये सच्चाइयाँ शिर्क की गवाहियाँ दे रही हैं या तौहीद [की?] इसके बाद विधर्मियों के असल रोग पर उंगली रख दी गई है कि जिस चीज़ ने उनको अंधा-बहरा बना रखा है, वह वास्तव में आख़िरत का इंकार है। इस वार्ता का अभिप्राय सोनेवालों को झिझोड़कर जगाना है। इसी लिए आयत 67 से सूरा के अन्त तक लगातार वे बातें कही गई हैं जो लोगों में आख़िरत की चेतना जगाएँ। अन्त में क़ुरआन की असल दावत, अर्थात् एक अल्लाह की बन्दगी की दावत, बहुत ही संक्षेप में मगर बड़ी ही प्रभावकारी शैली में प्रस्तुत करके लोगों को सचेत किया गया है कि इसे क़ुबूल करना तुम्हारे अपने लिए लाभप्रद और इसे रद्द करना तुम्हारे अपने लिए ही हानिकारक है।

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سُورَةُ النَّمۡلِ
27. अन-नम्ल
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكٗا مِّن قَوۡلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوۡزِعۡنِيٓ أَنۡ أَشۡكُرَ نِعۡمَتَكَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَٰلِدَيَّ وَأَنۡ أَعۡمَلَ صَٰلِحٗا تَرۡضَىٰهُ وَأَدۡخِلۡنِي بِرَحۡمَتِكَ فِي عِبَادِكَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 1
(19) सुलैमान उसकी बात पर मुस्कराते हुए हँस पड़ा और बोला, “ऐ मेरे रब, मुझे क़ाबू में3 रख कि मैं तेरे उस एहसान का शुक्र अदा करता रहूँ जो तूने मुझपर और मेरे वालिदैन पर किया है और ऐसा अमले-सॉलेह करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी रहमत से मुझको अपने सॉलेह बन्दों में दाख़िल कर।”
3. यानी जो अज़ीमुश्शान क़ुव्वतें और क़ाबिलियतें तूने मुझे दी हैं वे ऐसी हैं कि अगर मैं ज़रा सी ग़फ़लत में भी मुब्तला हो जाऊँ तो हद्दे-बन्दगी से निकलकर अपनी किबरियाई के ख़ब्त में न जाने कहाँ से कहाँ निकल जाऊँ। इसलिए ऐ मेरे परवरदिगार, तू मुझे क़ाबू में रख ताकि मैं काफ़िरे-नेमत बनने के बजाय शुक्रे-नेमत पर क़ायम रहूँ।
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
طسٓۚ تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡقُرۡءَانِ وَكِتَابٖ مُّبِينٍ
(1) ता० सीन०। (1) ता-सीन। ये आयात हैं क़ुरआन और किताबे-मुबीन (खुली किताब) की,1 ये आयात हैं कुरआन और स्पष्ट किताब की1
1. यानी उस किताब कि आयात जो अपनी तालीमात और अपने अहकाम और हिदायात को बिलकुल वाज़ेह तरीक़े से बयान करती हैं।
وَتَفَقَّدَ ٱلطَّيۡرَ فَقَالَ مَالِيَ لَآ أَرَى ٱلۡهُدۡهُدَ أَمۡ كَانَ مِنَ ٱلۡغَآئِبِينَ ۝ 2
(20) (एक और मौक़े पर) सुलैमान ने परिन्दों का जाइज़ा लिया और कहा, “क्या बात है कि मैं फ़ुलाँ हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ। क्या वह कहीं ग़ायब हो गया है?
هُدٗى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 3
(2) हिदायत और बशारत उन ईमान लानेवालों के लिए
لَأُعَذِّبَنَّهُۥ عَذَابٗا شَدِيدًا أَوۡ لَأَاْذۡبَحَنَّهُۥٓ أَوۡ لَيَأۡتِيَنِّي بِسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٖ ۝ 4
(21) मैं उसे सख़्त सज़ा दूँगा, या उसे ज़ब्ह कर दूँगा, वरना उसे मेरे सामने माक़ूल वजह पेश करनी होगी।
ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ يُوقِنُونَ ۝ 5
(3) जो नमाज़ क़ायम करते और ज़कात देते हैं, और फिर वे ऐसे लोग हैं जो आख़िरत पर पूरा यक़ीन रखते हैं।
فَمَكَثَ غَيۡرَ بَعِيدٖ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمۡ تُحِطۡ بِهِۦ وَجِئۡتُكَ مِن سَبَإِۭ بِنَبَإٖ يَقِينٍ ۝ 6
(22) कुछ ज़्यादा देर न गुज़री थी कि उसने आकर कहा, “मैंने वे मालूमात हासिल की हैं जो आपके इल्म में नहीं हैं। मैं सबा4 के मुताल्लिक़ यक़ीनी इत्तिला लेकर आया हूँ।
4. सबा जुनूबी अरब की मशहूर तिजारत पेशा क़ौम थी जिसका दारुल-हुकूमत मआरिब (सनआ से 55 मील दूर) था।
إِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمۡ أَعۡمَٰلَهُمۡ فَهُمۡ يَعۡمَهُونَ ۝ 7
(4) हक़ीक़त यह है कि जो लोग आख़िरत को नहीं मानते उनके लिए हमने उनके करतूतों को ख़ुशनुमा बना दिया है, इसलिए वे भटकते फिरते हैं।
إِنِّي وَجَدتُّ ٱمۡرَأَةٗ تَمۡلِكُهُمۡ وَأُوتِيَتۡ مِن كُلِّ شَيۡءٖ وَلَهَا عَرۡشٌ عَظِيمٞ ۝ 8
(23) मैंने वहाँ एक औरत देखी जो उस क़ौम की हुक्मराँ है। उसको हर तरह का सरो-सामान बख़्शा गया है और उसका तख़्त बड़ा ही अज़ीमुश्शान है।
قَالَ ٱلَّذِي عِندَهُۥ عِلۡمٞ مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن يَرۡتَدَّ إِلَيۡكَ طَرۡفُكَۚ فَلَمَّا رَءَاهُ مُسۡتَقِرًّا عِندَهُۥ قَالَ هَٰذَا مِن فَضۡلِ رَبِّي لِيَبۡلُوَنِيٓ ءَأَشۡكُرُ أَمۡ أَكۡفُرُۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشۡكُرُ لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيّٞ كَرِيمٞ ۝ 9
(40) जिस शख़्स के पास किताब का इल्म (ज्ञान) था वह बोला, “मैं आपकी पलक झपकने से पहले उसे लाए देता हूँ।”जूँ ही कि सुलैमान ने वह तख़्त अपने पास रखा हुआ देखा, वह पुकार उठा, “यह मेरे रब का फ़ज़्ल है ताकि वह मुझे आज़माए कि मैं शुक्र करता हूँ या काफ़िरे-नेमत बन जाता हूँ। और जो कोई शुक्र करता है तो उसका शुक्र उसके अपने ही लिए मुफ़ीद है, वरना कोई नाशुक्री करे तो मेरा रब बेनियाज़ और अपनी ज़ात में आप बुज़ुर्ग है।”
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَهُمۡ سُوٓءُ ٱلۡعَذَابِ وَهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ هُمُ ٱلۡأَخۡسَرُونَ ۝ 10
(5) ये वे लोग हैं जिनके लिए बुरी सज़ा है और आख़िरत में भी यही सबसे ज़्यादा ख़सारे में रहनेवाले हैं।
وَجَدتُّهَا وَقَوۡمَهَا يَسۡجُدُونَ لِلشَّمۡسِ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ أَعۡمَٰلَهُمۡ فَصَدَّهُمۡ عَنِ ٱلسَّبِيلِ فَهُمۡ لَا يَهۡتَدُونَ ۝ 11
(24) मैंने देखा कि वह और उसकी क़ौम अल्लाह के बजाय सूरज के आगे सजदा करती है।”—शैतान5 ने उनके आमाल उनके लिए ख़ुशनुमा बना दिए और उन्हें शाहे-राह से रोक दिया,
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى ٱلۡقُرۡءَانَ مِن لَّدُنۡ حَكِيمٍ عَلِيمٍ ۝ 12
(6) और (ऐ नबी) बेशक तुम यह क़ुरआन एक हकीम व अलीम हस्ती की तरफ़ से पा रहे हो।
قَالَ نَكِّرُواْ لَهَا عَرۡشَهَا نَنظُرۡ أَتَهۡتَدِيٓ أَمۡ تَكُونُ مِنَ ٱلَّذِينَ لَا يَهۡتَدُونَ ۝ 13
(41) सुलैमान8 ने कहा, “अनजान तरीक़े से उसका तख़्त उसके सामने रख दो, देखें वह सही बात तक पहुँचती है या उन लोगों में से है जो राहे-रास्त नहीं पाते।”
8. अब उस मौक़े का ज़िक्र शुरू होता है जब मलिका-ए-सबा हज़रत सुलैमान (अलैहि०) की मुलाक़ात के लिए हाज़िर हुई।
أَلَّاۤ يَسۡجُدُواْۤ لِلَّهِ ٱلَّذِي يُخۡرِجُ ٱلۡخَبۡءَ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَيَعۡلَمُ مَا تُخۡفُونَ وَمَا تُعۡلِنُونَ ۝ 14
(25) इस वजह से वे सीधा रास्ता नहीं पाते कि उस ख़ुदा को सजदा करें जो आसमानों और ज़मीन की पोशीदा चीज़ें निकालता है और वह सब कुछ जानता है जिसे तुम लोग छिपाते और ज़ाहिर करते हो।
5. अन्दाज़े-कलाम से ज़ाहिर हो रहा है कि यहाँ से आयत-26 के आख़िर तक हुदहुद के क़ौल पर अल्लाह तआला का अपना इज़ाफ़ा है।
إِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهۡلِهِۦٓ إِنِّيٓ ءَانَسۡتُ نَارٗا سَـَٔاتِيكُم مِّنۡهَا بِخَبَرٍ أَوۡ ءَاتِيكُم بِشِهَابٖ قَبَسٖ لَّعَلَّكُمۡ تَصۡطَلُونَ ۝ 15
(7) (इन्हें उस वक़्त का क़िस्सा सुनाओ) जब मूसा ने अपने घरवालों से कहा कि “मुझे एक आग-सी नज़र आई है, मैं अभी या तो वहाँ से कोई ख़बर लेकर आता हूँ या कोई अंगारा चुन लाता हूँ ताकि तुम लोग गर्म हो सको।”(7) (उन्हें उस समय का हाल सुनाओ) जब मूसा ने अपने घरवालों से कहा कि “मुझे एक आग-सी दिखाई दी है, मैं अभी या तो वहाँ से कोई सूचना लेकर आता हूँ या कोई अंगारा चुन लाता हूँ ताकि तुम लोग गर्म हो सको।”
فَلَمَّا جَآءَتۡ قِيلَ أَهَٰكَذَا عَرۡشُكِۖ قَالَتۡ كَأَنَّهُۥ هُوَۚ وَأُوتِينَا ٱلۡعِلۡمَ مِن قَبۡلِهَا وَكُنَّا مُسۡلِمِينَ ۝ 16
(42) मलिका जब हाज़िर हुई तो उससे कहा गया कि तेरा तख़्त ऐसा ही है? वह कहने लगी, “यह तो जैसे वही है। हम तो पहले ही जान गए थे और हमने सरे-इताअत झुका दिया था (या हम मुस्लिम हो चुके थे)।”9
9. यानी यह मोजिज़ा देखने से पहले ही सुलैमान (अलैहि०) के जो औसाफ़ और हालात हमें मालूम हो चुके थे उनकी बिना पर हमें यक़ीन हो गया था कि वे अल्लाह के नबी हैं, मह्ज़ एक सल्तनत के फ़रमाँरवा नहीं हैं।
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِيمِ۩ ۝ 17
(26) अल्लाह कि जिसके सिवा कोई मुस्तहिक़े-इबादत नहीं, जो अर्शे-अज़ीम का मालिक है।
وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعۡبُدُ مِن دُونِ ٱللَّهِۖ إِنَّهَا كَانَتۡ مِن قَوۡمٖ كَٰفِرِينَ ۝ 18
(43) उसको (ईमान लाने से) जिस चीज़ ने रोक रखा था वह उन माबूदों की इबादत थी जिन्हें वह अल्लाह के सिवा पूजती थी, क्योंकि वह एक काफ़िर क़ौम से थी।
فَلَمَّا جَآءَهَا نُودِيَ أَنۢ بُورِكَ مَن فِي ٱلنَّارِ وَمَنۡ حَوۡلَهَا وَسُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 19
(8) वहाँ जो पहुँचा तो निदा आई कि “मुबारक है वह जो इस आग में है और जो इसके माहौल में है। पाक है अल्लाह, सब जहानवालों का परवरदिगार।
۞قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقۡتَ أَمۡ كُنتَ مِنَ ٱلۡكَٰذِبِينَ ۝ 20
(27) सुलैमान ने कहा, “अभी हम देखे लेते हैं कि तूने सच कहा है या तू झूठ बोलनेवालों में से है।
يَٰمُوسَىٰٓ إِنَّهُۥٓ أَنَا ٱللَّهُ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 21
(9) ऐ मूसा, यह मैं हूँ अल्लाह, ज़बरदस्त और दाना।
قِيلَ لَهَا ٱدۡخُلِي ٱلصَّرۡحَۖ فَلَمَّا رَأَتۡهُ حَسِبَتۡهُ لُجَّةٗ وَكَشَفَتۡ عَن سَاقَيۡهَاۚ قَالَ إِنَّهُۥ صَرۡحٞ مُّمَرَّدٞ مِّن قَوَارِيرَۗ قَالَتۡ رَبِّ إِنِّي ظَلَمۡتُ نَفۡسِي وَأَسۡلَمۡتُ مَعَ سُلَيۡمَٰنَ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 22
(44) उससे कहा गया कि महल में दाख़िल हो। उसने जो देखा तो समझी कि पानी का हौज़ है और उतरने के लिए उसने अपने पाईंचे उठा लिए। सुलैमान ने कहा, “यह शीशे का चिकना फ़र्श है।”इसपर वह पुकार उठी, “ऐ मेरे रब, (आजतक) मैं अपने नफ़्स पर बड़ा ज़ुल्म करती रही, और अब मैंने सुलैमान के साथ सारे अल्लाह रब्बुल-आलमीन की इताअत क़ुबूल कर ली।”
ٱذۡهَب بِّكِتَٰبِي هَٰذَا فَأَلۡقِهۡ إِلَيۡهِمۡ ثُمَّ تَوَلَّ عَنۡهُمۡ فَٱنظُرۡ مَاذَا يَرۡجِعُونَ ۝ 23
(28) मेरा यह ख़त ले जा और इसे उन लोगों की तरफ़ डाल दे, फिर अलग हटकर देख कि वे क्या रद्दे-अमल ज़ाहिर करते हैं।”
وَأَلۡقِ عَصَاكَۚ فَلَمَّا رَءَاهَا تَهۡتَزُّ كَأَنَّهَا جَآنّٞ وَلَّىٰ مُدۡبِرٗا وَلَمۡ يُعَقِّبۡۚ يَٰمُوسَىٰ لَا تَخَفۡ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ۝ 24
(10) और फेंक तो ज़रा अपनी लाठी।” जूँ ही कि मूसा ने देखा लाठी साँप की तरह बल खा रही है तो पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर भी न देखा। “ऐ मूसा, डरो नहीं। मेरे हुज़ूर रसूल डरा नहीं करते,
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَآ إِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمۡ صَٰلِحًا أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ فَإِذَا هُمۡ فَرِيقَانِ يَخۡتَصِمُونَ ۝ 25
(45) और समूद की तरफ़ हमने उनके भाई सॉलेह को (यह पैग़ाम देकर) भेजा कि अल्लाह की बन्दगी करो, तो यकायक वे झगड़नेवाले दो मुतख़ासिम फ़रीक़ बन गए।
قَالَتۡ يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَؤُاْ إِنِّيٓ أُلۡقِيَ إِلَيَّ كِتَٰبٞ كَرِيمٌ ۝ 26
(29) मलिका बोली,6 “ऐ अहले-दरबार, मेरी तरफ़ एक बड़ा अहम ख़त फेंका गया है।
6. बीच का क़िस्सा छोड़कर अब उस वक़्त का ज़िक्र होता है जब हुदहुद ने ख़त मलिका के आगे फेंक दिया।
قَالَ يَٰقَوۡمِ لِمَ تَسۡتَعۡجِلُونَ بِٱلسَّيِّئَةِ قَبۡلَ ٱلۡحَسَنَةِۖ لَوۡلَا تَسۡتَغۡفِرُونَ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ۝ 27
(46) सॉलेह ने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो, भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी मचाते हो? क्यों नहीं अल्लाह से मग़फ़िरत तलब करते? शायद कि तुमपर रहम फ़रमाया जाए।”
إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسۡنَۢا بَعۡدَ سُوٓءٖ فَإِنِّي غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 28
(11) इल्ला यह कि किसी ने क़ुसूर किया हो। फिर अगर बुराई के बाद उसने भलाई से (अपने फ़ेल को) बदल लिया तो मैं माफ़ करनेवाला मेहरबान हूँ।
إِنَّهُۥ مِن سُلَيۡمَٰنَ وَإِنَّهُۥ بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ۝ 29
(30) वह सुलैमान की तरफ़ से है और अल्लाह, रहमान (30) वह सुलैमान की तरफ़ से है और अल्लाह रहमान व रहीम के नाम से शुरू किया गया है।और अत्यन्त दयावान् के नाम से आरंभ किया गया है।
قَالُواْ ٱطَّيَّرۡنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَۚ قَالَ طَٰٓئِرُكُمۡ عِندَ ٱللَّهِۖ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمٞ تُفۡتَنُونَ ۝ 30
(47) उन्होंने कहा, “हमने तो तुमको और तुम्हारे साथियों को बदशगुनी का निशान पाया है।” सॉलेह ने जवाब दिया, “तुम्हारे अच्छे और बुरे शगुन का सरे-रिश्ता तो अल्लाह के पास है। अस्ल बात यह है कि तुम लोगों की आज़माइश हो रही है।”
وَأَدۡخِلۡ يَدَكَ فِي جَيۡبِكَ تَخۡرُجۡ بَيۡضَآءَ مِنۡ غَيۡرِ سُوٓءٖۖ فِي تِسۡعِ ءَايَٰتٍ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَقَوۡمِهِۦٓۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمٗا فَٰسِقِينَ ۝ 31
(12) और ज़रा अपना हाथ अपने गरीबान में तो डालो। चमकता हुआ निकलेगा बग़ैर किसी तकलीफ़ के। ये (दो निशानियाँ) नौ निशानियों में से हैं फ़िरऔन और उसकी क़ौम की तरफ़ (ले जाने के लिए)। वे बड़े बदकिरदार लोग हैं।”
أَلَّا تَعۡلُواْ عَلَيَّ وَأۡتُونِي مُسۡلِمِينَ ۝ 32
(31) मज़मून यह है कि “मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और मुस्लिम होकर7 मेरे पास हाज़िर हो जाओ।”
7. यानी इस्लाम क़ुबूल करके, या ताबेअ-फ़रमान बनकर।
وَكَانَ فِي ٱلۡمَدِينَةِ تِسۡعَةُ رَهۡطٖ يُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا يُصۡلِحُونَ ۝ 33
(48) उस शहर में नौ जत्थेदार थे जो मुल्क में फ़साद फैलाते और कोई इस्लाह का काम न करते थे।
فَلَمَّا جَآءَتۡهُمۡ ءَايَٰتُنَا مُبۡصِرَةٗ قَالُواْ هَٰذَا سِحۡرٞ مُّبِينٞ ۝ 34
(13) मगर जब हमारी खुली-खुली निशानियाँ उन लोगों के सामने आईं तो उन्होंने कहा कि यह तो खुला जादू है।
قَالَتۡ يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَؤُاْ أَفۡتُونِي فِيٓ أَمۡرِي مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمۡرًا حَتَّىٰ تَشۡهَدُونِ ۝ 35
(32) (ख़त सुनाकर) मलिका ने कहा, “ऐ सरदाराने-क़ौम! मेरे इस मामले में मुझे मशवरा दो, मैं किसी मामले का फ़ैसला तुम्हारे बग़ैर नहीं करती हूँ।”
قَالُواْ تَقَاسَمُواْ بِٱللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُۥ وَأَهۡلَهُۥ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِۦ مَا شَهِدۡنَا مَهۡلِكَ أَهۡلِهِۦ وَإِنَّا لَصَٰدِقُونَ ۝ 36
(49) उन्होंने आपस में कहा, “ख़ुदा की क़सम खाकर अहद कर लो कि हम सॉलेह और उसके घरवालों पर शब-ख़ून मारेंगे और फिर उसके वली से कह देंगे10 कि हम उसके ख़ानदान की हलाकत के मौक़े पर मौजूद न थे, हम बिलकुल सच कहते हैं।”
10. यानी हज़रत सॉलेह (अलैहि०) के क़बीले के सरदार से, जिसको क़दीम क़बायली रस्मो-रिवाज के मुताबिक़ उनके ख़ून के दावे का हक़ पहुँचता था। यह वही पोज़ीशन थी जो नबी (सल्ल०) के ज़माने में आपके चचा अबू-तालिब को हासिल थी। कुफ़्फ़ारे-क़ुरैश भी इसी अन्देशे से हाथ रोकते थे कि अगर वे नबी (सल्ल०) को क़त्ल कर देंगे तो बनी-हाशिम के सरदार अबू-तालिब अपने क़बीले की तरफ़ से ख़ून का दावा लेकर उठेंगे।
قَالُواْ نَحۡنُ أُوْلُواْ قُوَّةٖ وَأُوْلُواْ بَأۡسٖ شَدِيدٖ وَٱلۡأَمۡرُ إِلَيۡكِ فَٱنظُرِي مَاذَا تَأۡمُرِينَ ۝ 37
(33) उन्होंने जवाब दिया, “हम ताक़तवर और लड़नेवाले लोग हैं। आगे फ़ैसला आपके हाथ में है। आप ख़ुद देख लें कि आपको क्या हुक्म देना है।”
وَجَحَدُواْ بِهَا وَٱسۡتَيۡقَنَتۡهَآ أَنفُسُهُمۡ ظُلۡمٗا وَعُلُوّٗاۚ فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُفۡسِدِينَ ۝ 38
(14) उन्होंने सरासर ज़ुल्म और ग़ुरूर की राह से उन निशानियों का इनकार किया, हालाँकि दिल उनके क़ायल हो चुके थे। अब देख लो कि उन मुफ़सिदों का अंजाम कैसा हुआ।
وَمَكَرُواْ مَكۡرٗا وَمَكَرۡنَا مَكۡرٗا وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 39
(50) यह चाल तो वे चले और फिर एक चाल हमने चली जिसकी उन्हें ख़बर न थी।
قَالَتۡ إِنَّ ٱلۡمُلُوكَ إِذَا دَخَلُواْ قَرۡيَةً أَفۡسَدُوهَا وَجَعَلُوٓاْ أَعِزَّةَ أَهۡلِهَآ أَذِلَّةٗۚ وَكَذَٰلِكَ يَفۡعَلُونَ ۝ 40
(34) मलिका ने कहा, “बादशाह जब किसी देश में घुस आते हैं तो उसे ख़राब और उसके इज़्ज़तवालों को ज़लील कर देते हैं। यही कुछ वे किया करते हैं।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ وَسُلَيۡمَٰنَ عِلۡمٗاۖ وَقَالَا ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِيرٖ مِّنۡ عِبَادِهِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 41
(15) (दूसरी तरफ़) हमने दाऊद व सुलैमान को इल्म अता किया और उन्होंने कहा कि शुक्र है उस ख़ुदा का जिसने हमको अपने बहुत-से मोमिन बन्दों पर फ़ज़ीलत अता की।
فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ مَكۡرِهِمۡ أَنَّا دَمَّرۡنَٰهُمۡ وَقَوۡمَهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 42
(51) अब देख लो कि उनकी चाल का अंजाम क्या हुआ। हमने तबाह करके रख दिया उनको और उनकी पूरी क़ौम को।
وَإِنِّي مُرۡسِلَةٌ إِلَيۡهِم بِهَدِيَّةٖ فَنَاظِرَةُۢ بِمَ يَرۡجِعُ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ۝ 43
(35) मैं उन लोगों की तरफ़ एक हदिया भेजती हूँ, फिर देखती हूँ कि मेरे एलची क्या जवाब लेकर पलटते हैं।”
وَوَرِثَ سُلَيۡمَٰنُ دَاوُۥدَۖ وَقَالَ يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ عُلِّمۡنَا مَنطِقَ ٱلطَّيۡرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَيۡءٍۖ إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 44
(16) और दाऊद का वारिस सुलैमान हुआ। और उसने कहा, “लोगो, हमें परिन्दों की बोलियाँ सिखाई गई हैं और हमें हर तरह की चीज़ें दी गई हैं,2 बेशक यह (अल्लाह का) नुमायाँ फ़ज़्ल है।”
2. यानी अल्लाह का दिया सब कुछ हमारे पास मौजूद है।
فَتِلۡكَ بُيُوتُهُمۡ خَاوِيَةَۢ بِمَا ظَلَمُوٓاْۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ ۝ 45
(52) वे उनके घर ख़ाली पड़े हैं उस ज़ुल्म की पादाश में जो वे करते थे, उसमें इबरत की एक निशानी है उन लोगों के लिए जो इल्म रखते हैं।
فَلَمَّا جَآءَ سُلَيۡمَٰنَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٖ فَمَآ ءَاتَىٰنِۦَ ٱللَّهُ خَيۡرٞ مِّمَّآ ءَاتَىٰكُمۚ بَلۡ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمۡ تَفۡرَحُونَ ۝ 46
(36) जब वह (मलिका का सफ़ीर) सुलैमान के यहाँ पहुँचा तो उसने कहा, “क्या तुम लोग माल से मेरी मदद करना चाहते हो? जो कुछ ख़ुदा ने मुझे दे रखा है वह उससे बहुत ज़्यादा है जो तुम्हें दिया है। तुम्हारा हदिया तुम्हीं को मुबारक रहे।
وَحُشِرَ لِسُلَيۡمَٰنَ جُنُودُهُۥ مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ وَٱلطَّيۡرِ فَهُمۡ يُوزَعُونَ ۝ 47
(17) सुलैमान के लिए जिन्न और इनसानों और परिन्दों के लश्कर जमा किए गए थे और वे पूरे ज़ब्त में रखे जाते थे।
وَأَنجَيۡنَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَكَانُواْ يَتَّقُونَ ۝ 48
(53) और बचा लिया हमने उन लोगों को जो ईमान लाए थे और नाफ़रमानी से परहेज़ करते थे।
ٱرۡجِعۡ إِلَيۡهِمۡ فَلَنَأۡتِيَنَّهُم بِجُنُودٖ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخۡرِجَنَّهُم مِّنۡهَآ أَذِلَّةٗ وَهُمۡ صَٰغِرُونَ ۝ 49
(37) (ऐ सफ़ीर) वापस जा अपने भेजनेवालों की तरफ़। हम उनपर ऐसे लश्कर लेकर आएँगे जिनका मुक़ाबला वे न कर सकेंगे और हम उन्हें ऐसी ज़िल्लत के साथ वहाँ से निकालेंगे कि वे ख़ार होकर रह जाएँगे।”
حَتَّىٰٓ إِذَآ أَتَوۡاْ عَلَىٰ وَادِ ٱلنَّمۡلِ قَالَتۡ نَمۡلَةٞ يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّمۡلُ ٱدۡخُلُواْ مَسَٰكِنَكُمۡ لَا يَحۡطِمَنَّكُمۡ سُلَيۡمَٰنُ وَجُنُودُهُۥ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 50
(18) (एक बार वह उनके साथ कूच कर रहा था), यहाँ तक कि जब ये सब चींटियों की वादी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, “ऐ चींटियो, अपने बिलों में घुस जाओ, कहीं ऐसा न हो कि सुलैमान और उसके लश्कर तुम्हें कुचल डालें और उन्हें ख़बर भी न हो।”
وَلُوطًا إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦٓ أَتَأۡتُونَ ٱلۡفَٰحِشَةَ وَأَنتُمۡ تُبۡصِرُونَ ۝ 51
(54) और लूत को हमने भेजा। याद करो वह वक़्त जब उसने अपनी क़ौम से कहा, “क्या तुम आँखों देखते बदकारी करते हो?11
11. यानी एक-दूसरे के सामने बदफ़ेली करते हो। इसकी सराहत आगे सूरा-29 (अनकबूत), आयत-29 में भी की गई है कि वे अपनी मजलिसों में यह बुरा काम करते थे।
قَالَ يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَؤُاْ أَيُّكُمۡ يَأۡتِينِي بِعَرۡشِهَا قَبۡلَ أَن يَأۡتُونِي مُسۡلِمِينَ ۝ 52
(38) सुलैमान ने कहा, “ऐ अहले-दरबार! तुममें से कौन उसका तख़्त मेरे पास लाता है, क़ब्ल इसके कि वे लोग मुतीअ होकर मेरे पास हाज़िर हों?”
أَئِنَّكُمۡ لَتَأۡتُونَ ٱلرِّجَالَ شَهۡوَةٗ مِّن دُونِ ٱلنِّسَآءِۚ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمٞ تَجۡهَلُونَ ۝ 53
(55) क्या तुम्हारा यही चलन है कि औरतों को छोड़कर मर्दों के पास शहवतरानी के लिए जाते हो? हक़ीक़त यह है कि तुम लोग सख़्त जहालत का काम करते हो।”
۞فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوۡمِهِۦٓ إِلَّآ أَن قَالُوٓاْ أَخۡرِجُوٓاْ ءَالَ لُوطٖ مِّن قَرۡيَتِكُمۡۖ إِنَّهُمۡ أُنَاسٞ يَتَطَهَّرُونَ ۝ 54
(56) मगर उसकी क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, “निकाल दो लूत के घरवालों को अपनी बस्ती से, ये बड़े पाकबाज़ बनते हैं।”(56) मगर उसकी क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, “निकाल दो लूत के घरवालों को अपनी बस्ती से, ये बड़े पवित्राचारी बनते हैं।”
فَأَنجَيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥٓ إِلَّا ٱمۡرَأَتَهُۥ قَدَّرۡنَٰهَا مِنَ ٱلۡغَٰبِرِينَ ۝ 55
(57) आख़िरकार हमने बचा लिया उसको और उसके घरवालों को, बजुज़ उसकी बीवी के जिसका पीछे रह जाना हमने तय कर दिया था,
وَأَمۡطَرۡنَا عَلَيۡهِم مَّطَرٗاۖ فَسَآءَ مَطَرُ ٱلۡمُنذَرِينَ ۝ 56
(58) और बरसाई उन लोगों पर एक बरसात, बहुत ही बुरी बरसात थी वह उन लोगों के लिए जो मुतनब्बेह किए जा चुके थे।
قُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ وَسَلَٰمٌ عَلَىٰ عِبَادِهِ ٱلَّذِينَ ٱصۡطَفَىٰٓۗ ءَآللَّهُ خَيۡرٌ أَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 57
(59) (ऐ नबी) कहो, हम्द है अल्लाह के लिए और सलाम उसके उन बन्दों पर जिन्हें उसने बरगुज़ीदा किया। (इनसे पूछो) अल्लाह बेहतर है या वे माबूद जिन्हें वे लोग उसका शरीक बना रहे हैं?
أَمَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَنۢبَتۡنَا بِهِۦ حَدَآئِقَ ذَاتَ بَهۡجَةٖ مَّا كَانَ لَكُمۡ أَن تُنۢبِتُواْ شَجَرَهَآۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ بَلۡ هُمۡ قَوۡمٞ يَعۡدِلُونَ ۝ 58
(60) भला वह कौन है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे लिए आसमान से पानी बरसाया फिर उसके ज़रिए से वे ख़ुशनुमा बाग़ उगाए जिनके दरख़्तों का उगाना तुम्हारे बस में न था? क्या अल्लाह के साथ कोई दूसरा ख़ुदा भी (इन कामों में शरीक) है? (नहीं), बल्कि यही लोग राहे-रास्त से हटकर चले जा रहे हैं।
وَمَآ أَنتَ بِهَٰدِي ٱلۡعُمۡيِ عَن ضَلَٰلَتِهِمۡۖ إِن تُسۡمِعُ إِلَّا مَن يُؤۡمِنُ بِـَٔايَٰتِنَا فَهُم مُّسۡلِمُونَ ۝ 59
(81) और न अंधों को रास्ता बताकर भटकने से बचा सकते हो। तुम तो अपनी बात उन्हीं लोगों को सुना सकते हो जो हमारी आयात पर ईमान लाते हैं और फिर फ़रमाँबरदार बन जाते हैं।
أَمَّن جَعَلَ ٱلۡأَرۡضَ قَرَارٗا وَجَعَلَ خِلَٰلَهَآ أَنۡهَٰرٗا وَجَعَلَ لَهَا رَوَٰسِيَ وَجَعَلَ بَيۡنَ ٱلۡبَحۡرَيۡنِ حَاجِزًاۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 60
(61) और वह कौन है जिसने ज़मीन को ठहरने की जगह बनाया और उसके अन्दर नदियाँ बहाईं और उसमें (पहाड़ों की) मेख़ें गाड़ दीं और पानी के दो ज़ख़ीरों के दरमियान परदे हाइल कर दिए? क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा भी (इन कामों में शरीक) है? नहीं, बल्कि उनमें से अकसर लोग नादान हैं।
۞وَإِذَا وَقَعَ ٱلۡقَوۡلُ عَلَيۡهِمۡ أَخۡرَجۡنَا لَهُمۡ دَآبَّةٗ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ تُكَلِّمُهُمۡ أَنَّ ٱلنَّاسَ كَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا لَا يُوقِنُونَ ۝ 61
(82) और जब हमारी बात पूरी होने का वक़्त उनपर आ पहुँचेगा तो हम उनके लिए एक जानवर ज़मीन से निकालेंगे जो उनसे कलाम करेगा कि लोग हमारी आयात पर यक़ीन नहीं करते थे।15
15. हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि०) का क़ौल है कि यह उस वक़्त होगा जब ज़मीन में कोई नेकी का हुक्म देनेवाला और बुराई से रोकनेवाला बाक़ी न रहेगा। एक हदीस हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०) से मनक़ूल है जिसमें वे कहते हैं कि यही बात उन्होंने ख़ुद हुज़ूर (सल्ल०) से सुनी थी। इससे मालूम हुआ कि जब इनसान ‘अम्र बिल-मारूफ़ व नही अनिल-मुनकर’ छोड़ देंगे तो क़ियामत क़ायम होने से पहले अल्लाह एक जानवर के ज़रिए आख़िरी मर्तबा हुज्जत क़ायम फ़रमाएगा। यह बात वाज़ेह नहीं है कि यह एक ही जानवर होगा या एक ख़ास क़िस्म की जिंसे-हैवान होगी जिसके अलग-अलग बहुत-से जानवर ज़मीन में फैल जाएँगे ‘दाब्बतुम-मिनल-अर्ज़' (एक जानवर ज़मीन से) के अलफ़ाज़ में दोनों मानों का एहतिमाल है। इस जानवर के निकलने का वक़्त कौन-सा होगा? इसके मुताल्लिक़ नबी-ए-करीम (सल्ल०) का इरशाद है, कि “आफ़ताब मग़रिब से तुलूअ होगा और एक रोज़ दिन-दहाड़े यह जानवर निकल आएगा।” रहा किसी जानवर का इनसानों से इनसानी ज़बान में बात करना, तो यह अल्लाह की क़ुदरत का एक करिश्मा है। वह जिस चीज़ को चाहे नुत्क़ की ताक़त बख़्श सकता है। क़ियामत से पहले तो वह एक जानवर ही को नुत्क़ बख़्शेगा, मगर जब वह क़ियामत आ जाएगी तो अल्लाह की अदालत में इनसान की आँख और कान और उसके जिस्म की खाल तक बोल उठेगी, जैसा कि क़ुरआन में ब-तसरीह बयान हुआ है (सूरा-41 हा-मीम अस-सजदा, आयात : 20-21)
أَمَّن يُجِيبُ ٱلۡمُضۡطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَيَكۡشِفُ ٱلسُّوٓءَ وَيَجۡعَلُكُمۡ خُلَفَآءَ ٱلۡأَرۡضِۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ قَلِيلٗا مَّا تَذَكَّرُونَ ۝ 62
(62) कौन है जो बेक़रार की दुआ सुनता है जबकि वह उसे पुकारे और कौन उसकी तकलीफ़ दूर करता है? और (कौन है जो) तुम्हें ज़मीन का ख़लीफ़ा बनाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा भी (यह काम करनेवाला) है? तुम लोग कम ही सोचते हो।
أَمَّن يَهۡدِيكُمۡ فِي ظُلُمَٰتِ ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِ وَمَن يُرۡسِلُ ٱلرِّيَٰحَ بُشۡرَۢا بَيۡنَ يَدَيۡ رَحۡمَتِهِۦٓۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ تَعَٰلَى ٱللَّهُ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 63
(63) और वह कौन है जो ख़ुश्की और समुन्दर की तारीकियों में तुमको रास्ता दिखाता है और कौन अपनी रहमत के आगे हवाओं को ख़ुशख़बरी लेकर भेजता है? क्या अल्लाह के साथ कोई दूसरा ख़ुदा भी (यह काम करता) है? बहुत बाला व बरतर है अल्लाह उस शिर्क से जो ये लोग करते हैं।
وَيَوۡمَ نَحۡشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةٖ فَوۡجٗا مِّمَّن يُكَذِّبُ بِـَٔايَٰتِنَا فَهُمۡ يُوزَعُونَ ۝ 64
(83) और ज़रा तसव्वुर करो उस दिन का जब हम हर उम्मत में से एक फ़ौज-की-फ़ौज उन लोगों की घेर लाएँगे जो हमारी आयात को झुठलाया करते थे, फिर उनको (उनकी क़िस्मों के लिहाज़ से दर्जा-ब-दर्जा) तरतीब दिया जाएगा।
أَمَّن يَبۡدَؤُاْ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ يُعِيدُهُۥ وَمَن يَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ قُلۡ هَاتُواْ بُرۡهَٰنَكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 65
(64) और वह कौन है जो ख़ल्क़ की इबतिदा करता है और फिर उसका इआदा करता है? और कौन तुमको आसमान और ज़मीन से रिज़्क़ देता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा भी (इन कामों में हिस्सेदार) है? कहो कि लाओ अपनी दलील अगर तुम सच्चे हो।
حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُو قَالَ أَكَذَّبۡتُم بِـَٔايَٰتِي وَلَمۡ تُحِيطُواْ بِهَا عِلۡمًا أَمَّاذَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 66
(84) यहाँ तक कि जब सब आ जाएँगे, तो (उनका रब उनसे) पूछेगा कि “तुमने मेरी आयात को झुठला दिया, हालाँकि तुमने उनका इल्मी इहाता न किया था? अगर यह नहीं तो और तुम क्या कर रहे थे?”
قُل لَّا يَعۡلَمُ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ ٱلۡغَيۡبَ إِلَّا ٱللَّهُۚ وَمَا يَشۡعُرُونَ أَيَّانَ يُبۡعَثُونَ ۝ 67
(65) इनसे कहो, अल्लाह के सिवा आसमानों और ज़मीन में कोई ग़ैब का इल्म नहीं रखता। और वे (तुम्हारे माबूद तो यह भी) नहीं जानते कि कब वे उठाए जाएँगे।
وَوَقَعَ ٱلۡقَوۡلُ عَلَيۡهِم بِمَا ظَلَمُواْ فَهُمۡ لَا يَنطِقُونَ ۝ 68
(85) और उनके ज़ुल्म की वजह से अज़ाब का वादा उनपर पूरा हो जाएगा, तब वे कुछ भी न बोल सकेंगे।
بَلِ ٱدَّٰرَكَ عِلۡمُهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِۚ بَلۡ هُمۡ فِي شَكّٖ مِّنۡهَاۖ بَلۡ هُم مِّنۡهَا عَمُونَ ۝ 69
(66) बल्कि आख़िरत का तो इल्म ही इन लोगों से गुम हो गया है, बल्कि ये उसकी तरफ़ से शक में हैं, बल्कि ये उससे अंधे हैं।
أَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّا جَعَلۡنَا ٱلَّيۡلَ لِيَسۡكُنُواْ فِيهِ وَٱلنَّهَارَ مُبۡصِرًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 70
(86) क्या उनको सुझाई न देता था कि हमने रात उनके लिए सुकून हासिल करने को बनाई थी और दिन को रौशन किया था? इसमें बहुत निशानियाँ थीं उन लोगों के लिए जो ईमान लाते थे।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَءِذَا كُنَّا تُرَٰبٗا وَءَابَآؤُنَآ أَئِنَّا لَمُخۡرَجُونَ ۝ 71
(67) ये मुनकिरीन कहते हैं, “क्या जब हम और हमारे बाप-दादा मिट्टी हो चुके होंगे तो हमें वाक़ई क़ब्रों से निकाला जाएगा?
وَيَوۡمَ يُنفَخُ فِي ٱلصُّورِ فَفَزِعَ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا مَن شَآءَ ٱللَّهُۚ وَكُلٌّ أَتَوۡهُ دَٰخِرِينَ ۝ 72
(87) और क्या गुज़रेगी उस दिन जबकि सूर फूँका जाएगा और हौल खा जाएँगे वे सब जो आसमानों और ज़मीन में हैं — सिवाए उन लोगों के जिन्हें अल्लाह इस हौल से बचाना चाहेगा —और सब कान दबाए उसके हुज़ूर हाज़िर हो जाएँगे।
لَقَدۡ وُعِدۡنَا هَٰذَا نَحۡنُ وَءَابَآؤُنَا مِن قَبۡلُ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّآ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 73
(68) ये ख़बरें हमको भी बहुत दी गई हैं और पहले हमारे आबाओ-अज्दाद को भी दी जाती रही हैं, मगर ये बस अफ़साने-ही-अफ़साने हैं जो अगले वक़्तों से सुनते चले आ रहे हैं।”
وَتَرَى ٱلۡجِبَالَ تَحۡسَبُهَا جَامِدَةٗ وَهِيَ تَمُرُّ مَرَّ ٱلسَّحَابِۚ صُنۡعَ ٱللَّهِ ٱلَّذِيٓ أَتۡقَنَ كُلَّ شَيۡءٍۚ إِنَّهُۥ خَبِيرُۢ بِمَا تَفۡعَلُونَ ۝ 74
(88) आज तू पहाड़ों को देखता है और समझता है कि ख़ूब जमे हुए हैं, मगर उस वक़्त ये बादलों की तरह उड़ रहे होंगे। यह अल्लाह की क़ुदरत का करिश्मा होगा जिसने हर चीज़ को हिकमत के साथ क़ायम किया है। वह ख़ूब जानता है कि तुम लोग क्या करते हो।
قُلۡ سِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 75
(69) कहो, ज़रा ज़मीन में चल-फिरकर देखो कि मुजरिमों का क्या अंजाम हो चुका है।
مَن جَآءَ بِٱلۡحَسَنَةِ فَلَهُۥ خَيۡرٞ مِّنۡهَا وَهُم مِّن فَزَعٖ يَوۡمَئِذٍ ءَامِنُونَ ۝ 76
(89) जो शख़्स भलाई लेकर आएगा उसे उससे ज़्यादा बेहतर सिला मिलेगा और ऐसे लोग उस दिन के हौल से महफ़ूज़ होंगे।
وَلَا تَحۡزَنۡ عَلَيۡهِمۡ وَلَا تَكُن فِي ضَيۡقٖ مِّمَّا يَمۡكُرُونَ ۝ 77
(70) ऐ नबी, इनके हाल पर रंज न करो और न इनकी चालों पर दिल दिल तंग हो
وَمَن جَآءَ بِٱلسَّيِّئَةِ فَكُبَّتۡ وُجُوهُهُمۡ فِي ٱلنَّارِ هَلۡ تُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 78
(90) और जो बुराई लिए हुए आएगा, ऐसे सब लोग औंधे मुँह आग में फेंके जाएँगे। क्या तुम लोग इसके सिवा कोई और बदला पा सकते हो कि जैसा करो वैसा भरो?
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 79
(71) — वे कहते हैं कि “यह धमकी कब पूरी होगी अगर तुम सच्चे हो?”
قُلۡ عَسَىٰٓ أَن يَكُونَ رَدِفَ لَكُم بَعۡضُ ٱلَّذِي تَسۡتَعۡجِلُونَ ۝ 80
(72) कहो, क्या अजब कि जिस अज़ाब के लिए तुम जल्दी मचा रहे हो, उसका एक हिस्सा तुम्हारे क़रीब ही आ लगा हो।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَشۡكُرُونَ ۝ 81
(73) हक़ीक़त यह है कि तेरा रब तो लोगों पर बहुत फ़ज़्ल फ़रमानेवाला है, मगर अकसर लोग शुक्र नहीं करते।
إِنَّمَآ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ رَبَّ هَٰذِهِ ٱلۡبَلۡدَةِ ٱلَّذِي حَرَّمَهَا وَلَهُۥ كُلُّ شَيۡءٖۖ وَأُمِرۡتُ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 82
(91) (ऐ नबी इनसे कहो,) “मुझे तो यही हुक्म दिया गया है कि इस शहर (मक्का) के रब की बन्दगी करूँ जिसने इसे हरम बनाया है और जो हर चीज़ का मालिक है। मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं मुस्लिम बनकर रहूँ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعۡلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمۡ وَمَا يُعۡلِنُونَ ۝ 83
(74) बिला शुबह तेरा रब ख़ूब जानता है जो कुछ उनके सीने अपने अन्दर छिपाए हुए हैं और जो कुछ वे ज़ाहिर करते हैं।
وَأَنۡ أَتۡلُوَاْ ٱلۡقُرۡءَانَۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهۡتَدِي لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَقُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُنذِرِينَ ۝ 84
(92) और यह क़ुरआन पढ़कर सुनाऊँ।” अब जो हिदायत इख़्तियार करेगा, वह अपने ही भले के लिए हिदायत इख़्तियार करेगा और जो गुमराह हो, उससे कह दो कि “मैं तो बस ख़बरदार करनेवाला हूँ।”
وَمَا مِنۡ غَآئِبَةٖ فِي ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِ إِلَّا فِي كِتَٰبٖ مُّبِينٍ ۝ 85
(75) आसमान व ज़मीन की कोई पोशीदा चीज़ ऐसी नहीं है जो एक वाज़ेह किताब में लिखी हुई मौजूद न हो।12
12. वाज़ेह किताब से मुराद है नविश्तए-तक़दीर।
وَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ فَتَعۡرِفُونَهَاۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ۝ 86
(93) इनसे कहो, “तारीफ़ अल्लाह ही के लिए है। अन-क़रीब वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखा देगा और तुम उन्हें पहचान लोगे और तेरा रब बेख़बर नहीं है उन कामों से जो तुम लोग करते हो।
إِنَّ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ يَقُصُّ عَلَىٰ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ أَكۡثَرَ ٱلَّذِي هُمۡ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 87
(76) यह वाक़िआ है कि यह क़ुरआन बनी-इसराईल को अकसर उन बातों की हक़ीक़त बताता है जिनमें वे इख़्तिलाफ़ रखते हैं
وَإِنَّهُۥ لَهُدٗى وَرَحۡمَةٞ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 88
(77) और यह हिदायत और रहमत है ईमान लानेवालों के लिए।
قَالَ عِفۡرِيتٞ مِّنَ ٱلۡجِنِّ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَۖ وَإِنِّي عَلَيۡهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٞ ۝ 89
(39) जिन्नों में से एक क़वी हैकल ने अर्ज़ किया, “मैं उसे हाज़िर कर दूँगा इससे पहले कि आप अपनी जगह से उठें। मैं इसकी ताक़त रखता हूँ और अमानतदार हूँ।”
إِنَّ رَبَّكَ يَقۡضِي بَيۡنَهُم بِحُكۡمِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 90
(78) यक़ीनन (इसी तरह) तेरा रब इन लोगों के दरमियान भी अपने हुक्म से फ़ैसला कर देगा13 और वह ज़बरदस्त और सब कुछ जाननेवाला है।
13. यानी क़ुरैश के कुफ़्फ़ार और अहले-ईमान के दरमियान।
فَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۖ إِنَّكَ عَلَى ٱلۡحَقِّ ٱلۡمُبِينِ ۝ 91
(79) पस ऐ नबी, अल्लाह पर भरोसा रखो, यक़ीनन तुम सरीह हक़ पर हो।
إِنَّكَ لَا تُسۡمِعُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَلَا تُسۡمِعُ ٱلصُّمَّ ٱلدُّعَآءَ إِذَا وَلَّوۡاْ مُدۡبِرِينَ ۝ 92
(80) तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते,14 न उन बहरों तक अपनी पुकार पहुँचा सकते हो जो पीठ फेरकर भागे जा रहे हों,
14. यानी ऐसे लोगों को जिनके ज़मीर मर चुके हैं और जिनमें ज़िद और हठधर्मी और रस्म-परस्ती ने हक़ व बातिल का फ़र्क़ समझने की कोई सलाहियत बाक़ी नहीं छोड़ी है।