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سُورَةُ القَصَصِ

28. अल-क़सस 

(मक्का में उतरी-आयतें 88)

परिचय

नाम

आयत 25 के इस वाक्य से लिया गया है, "व क़स-स अलैहिल क़-स-स" (और अपना सारा वृत्तांत, अल-क़सस, सुनाया) अर्थात् वह सूरा जिसमें 'अल-क़सस' का शब्द आया है।

उतरने का समय

सूरा-27 नम्ल के परिचय में इब्‍ने-अब्बास और जाबिर-बिन-ज़ैद (रज़ि०) का यह कथन हम नक़्ल कर चुके हैं कि सूरा-26 शुअरा, सूरा-27 नम्ल और सूरा-28 क़सस क्रमश: उतरी हैं। भाषा, वर्णन-शैली और विषय-वस्तुओं से भी यही महसूस होता है कि इन तीनों सूरतों के उतरने का समय क़रीब-क़रीब एक ही हैं। और इस लिहाज़ से भी इन तीनों में क़रीबी ताल्लुक़ है कि हज़रत मूसा (अलैहि०) के किस्से के अलग-अलग हिस्से जो इनमें बयान हुए हैं, वे आपस में मिलकर एक पूरा क़िस्सा बन जाते हैं।

विषय और वार्ताएँ

इसका विषय उन सन्देहों और आपत्तियों को दूर करना है जो नबी (सल्ल०) की रिसालत पर की जा रही थीं और बहानों को रद्द करना है जो आपपर ईमान न लाने के लिए पेश किए जा रहे थे। इस उद्देश्य के लिए सबसे पहले हज़रत मूसा (अलैहि०) का क़िस्सा बयान किया गया है जो उतरने के समय की परिस्थितियों से मिलकर अपने आप कुछ सच्चाइयाँ सुननेवालों के मन में बिठा देता है। एक यह कि अल्लाह जो कुछ करना चाहता है, उसके लिए वह ग़ैर-महसूस तरीक़े से साधन जुटा देता है। जिस बच्चे के हाथों अन्तत: फ़िरऔन का तख़्ता पलटना था, उसे अल्लाह ने स्वयं फ़िरऔन ही के घर में उसके अपने हाथों परवरिश करा दिया। दूसरे यह कि नुबूवत किसी आदमी को किसी बड़े जश्न और ज़मीन-आसमान से किसी भारी एलान के साथ नहीं दी जाती। तुमको आश्चर्य है कि मुहम्मद (सल्ल०) को चुपके से यह नुबूवत कहाँ से मिल गई और बैठे-बिठाए ये नबी कैसे बन गए। मगर जिन मूसा (अलैहि०) का तुम स्वयं हवाला देते हो कि “क्यों न दिया गया जो मूसा को दिया गया था" (आयत 48), उन्हें भी इसी तरह राह चलते नुबूवत मिल गई थी। तीसरे यह कि जिस बन्दे से अल्लाह कोई काम लेना चाहता है, कोई ताक़त प्रत्यक्ष में उसके पास नहीं होती, मगर बड़े-बड़े लाव-लश्कर और संसाधनोंवाले  अन्तत: उसके मुक़ाबले में धरे के धरे रह जाते हैं। जो तुलनात्मक अन्तर तुम अपने और मुहम्मद के बीच पा रहे हो, उससे बहुत ज्यादा अन्तर मूसा और फ़िरऔन की शक्ति के बीच था, मगर देख लो कि आखिर कौन जीता और कौन हारा। चौथे यह कि तुम लोग बार-बार मूसा का हवाला देते हो कि "मुहम्मद को वह कुछ क्यों न दिया गया जो मूसा को दिया गया था" अर्थात् (चमत्कारी) लाठी और चमकता हाथ और दूसरे खुले-खुले मोजिज़े (चमत्कार)। मगर तुम्हें कुछ मालूम भी है कि जिन लोगों को वे मोजिज़े दिखाए गए थे वे उन्हें देखकर भी ईमान न लाए, क्योंकि वे सत्य के विरुद्ध हठधर्मी और वैमनस्य में पड़े हुए थे। इसी रोग में आज तुम पड़े हुए हो। क्या तुम इसी तरह के मोजिज़े देखकर ईमान ले आओगे? फिर तुम्हें कुछ यह भी ख़बर है कि जिन लोगों ने वे मोजिज़े देखकर सत्य का इंकार किया था उनका अंजाम क्या हुआ? अन्तत: अल्लाह ने उन्हें तबाह करके छोड़ा। अब क्या तुम भी हठधर्मी के साथ मोजिज़ा माँगकर अपनी शामत बुलाना चाहते हो? ये वे बातें हैं जो किसी स्पष्टीकरण के रूप में बिना, आपसे आप हर उस आदमी के मन में उतर जाती थीं जो मक्का के अधर्मपूर्ण माहौल में इस क़िस्से को सुनता था, क्योंकि उस समय मुहम्मद (सल्ल०) और मक्का के विधर्मियों के बीच वैसा ही एक संघर्ष चल रहा था जैसा इससे पहले फ़िरऔन और हज़रत मूसा (अलैहि०) के दर्मियान बरपा हो चुका था। इसके बाद आयत-43 से मूल विषय पर प्रत्यक्ष रूप से वार्ता शुरू होती है। पहले इस बात को मुहम्मद (सल्ल०) को नुबूवत का एक सुबूत क़रार दिया जाता है कि आप उम्मी (अनपढ़) होने के बावजूद दो हज़ार वर्ष पहले गुज़री हुई एक ऐतिहासिक घटना को इस विस्तार के साथ हू-ब-हू सुना रहे हैं। फिर आप के नबी बनाए जाने को उन लोगों के हक़ में अल्लाह की एक रहमत (अनुकम्पा) क़रार दिया जाता है कि वे भुलावे में पड़े हुए थे और अल्लाह ने उनके मार्गदर्शन के लिए यह प्रबन्ध किया। फिर उनकी इस आपत्ति का उत्तर दिया जाता है, “यह नबी वह मोजिज़े क्यों न लाया जो इससे पहले मूसा लाये थे?" इनसे कहा जाता है कि मूसा ही को तुमने कब माना है कि अब इस नबी से मोजिज़े की माँग करते हो। आख़िर में मक्का के विधर्मियों की उस मूल आपत्ति को लिया जाता है जो नबी (सल्ल०) की बात न मानने के लिए वे पेश करते थे। उनका कहना यह था कि अगर हम अरबवालों के शिर्क के धर्म को छोड़कर तौहीद (एकेश्वरवाद) के इस नये दीन को अपना लें तो यकायक इस देश से हमारी धार्मिक, राजनैतिक और आर्थिक चौधराहट समाप्त हो जाएगी। यह चूंकि क़ुरैश के सरदारों के सत्य-विरोध का मूल प्रेरक था इसलिए अल्लाह ने इसपर सूरा के अन्त तक सविस्तार वार्ता की है

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سُورَةُ القَصَصِ
28. अल-क़सस
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
طسٓمٓ
(1) ता० सीम० मीम०।
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُبِينِ ۝ 1
(2) ये किताबे-मुबीन की आयात हैं।
نَتۡلُواْ عَلَيۡكَ مِن نَّبَإِ مُوسَىٰ وَفِرۡعَوۡنَ بِٱلۡحَقِّ لِقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 2
(3) हम मूसा और फ़िरऔन का कुछ हाल ठीक-ठीक तुम्हें सुनाते हैं, ऐसे लोगों के फ़ायदे के लिए जो ईमान लाएँ।
إِنَّ فِرۡعَوۡنَ عَلَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَجَعَلَ أَهۡلَهَا شِيَعٗا يَسۡتَضۡعِفُ طَآئِفَةٗ مِّنۡهُمۡ يُذَبِّحُ أَبۡنَآءَهُمۡ وَيَسۡتَحۡيِۦ نِسَآءَهُمۡۚ إِنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلۡمُفۡسِدِينَ ۝ 3
(4) वाक़िआ यह है कि फ़िरऔन ने ज़मीन में सरकशी की और उसके बाशिन्दों को गरोहों में तक़सीम कर दिया। उनमें से एक गरोह को वह ज़लील करता था, उसके लड़कों को क़त्ल करता और उसकी लड़कियों को जीता रहने देता था। फ़िल्वाक़े वह मुफ़सिद लोगों में से था।
وَنُرِيدُ أَن نَّمُنَّ عَلَى ٱلَّذِينَ ٱسۡتُضۡعِفُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَنَجۡعَلَهُمۡ أَئِمَّةٗ وَنَجۡعَلَهُمُ ٱلۡوَٰرِثِينَ ۝ 4
(5) और हम यह इरादा रखते थे कि मेहरबानी करें उन लोगों पर जो ज़मीन में ज़लील करके रखे गए थे और उन्हें पेशवा बना दें और उन्हीं को वारिस बनाएँ
وَنُمَكِّنَ لَهُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَنُرِيَ فِرۡعَوۡنَ وَهَٰمَٰنَ وَجُنُودَهُمَا مِنۡهُم مَّا كَانُواْ يَحۡذَرُونَ ۝ 5
(6) और ज़मीन में उनको इक़्तिदार बख़्शें और उनसे फ़िरऔन और हामान और उनके लश्करों को वही कुछ दिखला दें जिसका उन्हें डर था।
وَلَمَّا تَوَجَّهَ تِلۡقَآءَ مَدۡيَنَ قَالَ عَسَىٰ رَبِّيٓ أَن يَهۡدِيَنِي سَوَآءَ ٱلسَّبِيلِ ۝ 6
(22) (मिस्र से निकलकर) जब मूसा ने मदयन का रुख़ किया तो उसने कहा, “उम्मीद है कि मेरा रब मुझे ठीक रास्ते पर डाल देगा।”6
6. यानी ऐसे रास्ते पर जिससे मैं बख़ैरियत मदयन पहुँच जाऊँ।
وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰٓ أُمِّ مُوسَىٰٓ أَنۡ أَرۡضِعِيهِۖ فَإِذَا خِفۡتِ عَلَيۡهِ فَأَلۡقِيهِ فِي ٱلۡيَمِّ وَلَا تَخَافِي وَلَا تَحۡزَنِيٓۖ إِنَّا رَآدُّوهُ إِلَيۡكِ وَجَاعِلُوهُ مِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 7
(7) हमने मूसा की माँ को इशारा किया1 कि “इसको दूध पिला, फिर जब तुझे उसकी जान का ख़तरा हो तो इसे दरिया में डाल दे और कुछ ख़ौफ़ और दुख न कर, हम इसे तेरे ही पास वापस ले आएँगे और इसको पैग़म्बरों में शामिल करेंगे।”
1. बीच में यह ज़िक्र छोड़ दिया गया है कि इन्हीं हालात में एक इसराईली घर में वह बच्चा पैदा हो गया जिसको दुनिया ने मूसा (अलैहिस्सलाम) के नाम से जाना।
وَلَمَّا وَرَدَ مَآءَ مَدۡيَنَ وَجَدَ عَلَيۡهِ أُمَّةٗ مِّنَ ٱلنَّاسِ يَسۡقُونَ وَوَجَدَ مِن دُونِهِمُ ٱمۡرَأَتَيۡنِ تَذُودَانِۖ قَالَ مَا خَطۡبُكُمَاۖ قَالَتَا لَا نَسۡقِي حَتَّىٰ يُصۡدِرَ ٱلرِّعَآءُۖ وَأَبُونَا شَيۡخٞ كَبِيرٞ ۝ 8
(23) और जब वह मदयन के कुएँ पर पहुँचा, उसने देखा कि बहुत-से लोग अपने जानवरों को पानी पिला रहे हैं और उनसे अलग एक तरफ़ दो औरतें अपने जानवरों को रोक रही हैं। मूसा ने उन औरतों से पूछा, “तुम्हें क्या परेशानी है?” उन्होंने कहा, “हम अपने जानवरों को पानी नहीं पिला सकतीं, जब तक ये चरवाहे अपने जानवर न निकाल ले जाएँ और हमारे बाप एक बहुत बूढ़े आदमी हैं।”
فَسَقَىٰ لَهُمَا ثُمَّ تَوَلَّىٰٓ إِلَى ٱلظِّلِّ فَقَالَ رَبِّ إِنِّي لِمَآ أَنزَلۡتَ إِلَيَّ مِنۡ خَيۡرٖ فَقِيرٞ ۝ 9
(24) यह सुनकर मूसा ने उनके जानवरों को पानी पिला दिया, फिर एक साये की जगह जा बैठा और बोला, “परवरदिगार, जो ख़ैर भी तू मुझपर उतार दे मैं उसका मुहताज हूँ।”
وَقَالَ فِرۡعَوۡنُ يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَأُ مَا عَلِمۡتُ لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرِي فَأَوۡقِدۡ لِي يَٰهَٰمَٰنُ عَلَى ٱلطِّينِ فَٱجۡعَل لِّي صَرۡحٗا لَّعَلِّيٓ أَطَّلِعُ إِلَىٰٓ إِلَٰهِ مُوسَىٰ وَإِنِّي لَأَظُنُّهُۥ مِنَ ٱلۡكَٰذِبِينَ ۝ 10
(38) और फ़िरऔन ने कहा, “ऐ अहले-दरबार, मैं तो अपने सिवा तुम्हारे किसी ख़ुदा को नहीं जानता। हामान, ज़रा ईंटें पकवाकर मेरे लिए एक ऊँची इमारत तो बनवा, शायद कि उसपर चढ़कर मैं मूसा के ख़ुदा को देख सकूँ, मैं तो उसे झूठा समझता हूँ।”
فَجَآءَتۡهُ إِحۡدَىٰهُمَا تَمۡشِي عَلَى ٱسۡتِحۡيَآءٖ قَالَتۡ إِنَّ أَبِي يَدۡعُوكَ لِيَجۡزِيَكَ أَجۡرَ مَا سَقَيۡتَ لَنَاۚ فَلَمَّا جَآءَهُۥ وَقَصَّ عَلَيۡهِ ٱلۡقَصَصَ قَالَ لَا تَخَفۡۖ نَجَوۡتَ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 11
(25) (कुछ देर न गुज़री थी कि) उन दोनों औरतों में से एक शर्मो-हया के साथ चलती हुई उसके पास आई और कहने लगी, “मेरे वालिद आप को बुला रहे हैं, ताकि आपने हमारे लिए जानवरों को जो पानी पिलाया है उसका अज्र आपको दें।”मूसा जब उसके पास पहुँचा और अपना सारा क़िस्सा उसे सुनाया तो उसने कहा, “कुछ ख़ौफ़ न करो, अब तुम ज़ालिम लोगों से बच निकले हो।”
فَٱلۡتَقَطَهُۥٓ ءَالُ فِرۡعَوۡنَ لِيَكُونَ لَهُمۡ عَدُوّٗا وَحَزَنًاۗ إِنَّ فِرۡعَوۡنَ وَهَٰمَٰنَ وَجُنُودَهُمَا كَانُواْ خَٰطِـِٔينَ ۝ 12
(8) आख़िरकार फ़िरऔन के घरवालों ने उसे (दरिया से) निकाल लिया, ताकि वह उनका दुश्मन और उनके लिए सबबे-रंज बने। वाक़ई फ़िरऔन और हामान और उनके लश्कर (अपनी तदबीर में) बड़े ग़लत कार थे।
وَٱسۡتَكۡبَرَ هُوَ وَجُنُودُهُۥ فِي ٱلۡأَرۡضِ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّ وَظَنُّوٓاْ أَنَّهُمۡ إِلَيۡنَا لَا يُرۡجَعُونَ ۝ 13
(39) उसने और उसके लश्करों ने ज़मीन में बग़ैर किसी हक़ के अपनी बड़ाई का घमण्ड किया और समझे कि उन्हें कभी हमारी तरफ़ पलटना नहीं है।
وَقَالَتِ ٱمۡرَأَتُ فِرۡعَوۡنَ قُرَّتُ عَيۡنٖ لِّي وَلَكَۖ لَا تَقۡتُلُوهُ عَسَىٰٓ أَن يَنفَعَنَآ أَوۡ نَتَّخِذَهُۥ وَلَدٗا وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 14
(9) फ़िरऔन की बीवी ने (उससे) कहा, “यह मेरे और तेरे लिए आँखों की ठण्डक है, इसे क़त्ल न करो, क्या अजब कि यह हमारे लिए फ़ायदेमन्द साबित हो, या हम इसे बेटा ही बना लें।”और वे अंजाम से बेख़बर थे।
قَالَتۡ إِحۡدَىٰهُمَا يَٰٓأَبَتِ ٱسۡتَـٔۡجِرۡهُۖ إِنَّ خَيۡرَ مَنِ ٱسۡتَـٔۡجَرۡتَ ٱلۡقَوِيُّ ٱلۡأَمِينُ ۝ 15
(26) उन दोनों औरतों में से एक ने अपने बाप से कहा, “अब्बाजान, इस शख़्स को नौकर रख लीजिए, बेहतरीन आदमी जिसे आप मुलाज़िम रखें वही हो सकता है जो मज़बूत और अमानतदार हो।”
فَأَخَذۡنَٰهُ وَجُنُودَهُۥ فَنَبَذۡنَٰهُمۡ فِي ٱلۡيَمِّۖ فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 16
(40) आख़िरकार हमने उसे और उसके लश्करों को पकड़ा और समुन्दर में फेंक दिया। अब देख लो कि उन ज़ालिमों का कैसा अंजाम हुआ।
وَأَصۡبَحَ فُؤَادُ أُمِّ مُوسَىٰ فَٰرِغًاۖ إِن كَادَتۡ لَتُبۡدِي بِهِۦ لَوۡلَآ أَن رَّبَطۡنَا عَلَىٰ قَلۡبِهَا لِتَكُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 17
(10) उधर मूसा की माँ का दिल उड़ा जा रहा था। वह राज़ फ़ाश कर बैठती अगर हम उसकी ढाढ़स न बंधा देते, ताकि वह (हमारे वादे पर) ईमान लानेवालों में से हो।
قَالَ إِنِّيٓ أُرِيدُ أَنۡ أُنكِحَكَ إِحۡدَى ٱبۡنَتَيَّ هَٰتَيۡنِ عَلَىٰٓ أَن تَأۡجُرَنِي ثَمَٰنِيَ حِجَجٖۖ فَإِنۡ أَتۡمَمۡتَ عَشۡرٗا فَمِنۡ عِندِكَۖ وَمَآ أُرِيدُ أَنۡ أَشُقَّ عَلَيۡكَۚ سَتَجِدُنِيٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 18
(27) उसके बाप ने (मूसा से) कहा, “मैं चाहता हूँ कि अपनी इन दो बेटियों में से एक का निकाह तुम्हारे साथ कर दूँ, बशर्तेकि तुम आठ साल तक मेरे यहाँ मुलाज़िमत करो और अगर दस साल पूरे कर दो तो यह तुम्हारी मरज़ी है। मैं तुमपर सख़्ती करना नहीं चाहता। इनशा अल्लाह तुम मुझे नेक आदमी पाओगे।
وَجَعَلۡنَٰهُمۡ أَئِمَّةٗ يَدۡعُونَ إِلَى ٱلنَّارِۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَا يُنصَرُونَ ۝ 19
(41) हमने उन्हें जहन्नम की तरफ़ दावत देनेवाले पेशरौ बना दिया और क़ियामत के दिन वे कहीं से कोई मदद न पा सकेंगे।
قَالَ ذَٰلِكَ بَيۡنِي وَبَيۡنَكَۖ أَيَّمَا ٱلۡأَجَلَيۡنِ قَضَيۡتُ فَلَا عُدۡوَٰنَ عَلَيَّۖ وَٱللَّهُ عَلَىٰ مَا نَقُولُ وَكِيلٞ ۝ 20
(28) मूसा ने जवाब दिया, “यह बात मेरे और आपके दरमियान तय हो गई। इन दोनों मुद्दतों में से जो भी मैं पूरी कर दूँ, उसके बाद फिर कोई ज़्यादती मुझपर न हो और जो कुछ क़ौल व क़रार हम कर रहे हैं अल्लाह उसपर निगहबान है।”
وَأَتۡبَعۡنَٰهُمۡ فِي هَٰذِهِ ٱلدُّنۡيَا لَعۡنَةٗۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ هُم مِّنَ ٱلۡمَقۡبُوحِينَ ۝ 21
(42) हमने इस दुनिया में उनके पीछे लानत लगा दी और क़ियामत के दिन वे बड़ी क़बाहत में मुब्तला होंगे।
وَقَالَتۡ لِأُخۡتِهِۦ قُصِّيهِۖ فَبَصُرَتۡ بِهِۦ عَن جُنُبٖ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 22
(11) उसने बच्चे की बहन से कहा, इसके पीछे-पीछे जा। चुनाँचे वह अलग से उसको इस तरह देखती रही कि (दुश्मनों को) उसका पता न चला।
۞فَلَمَّا قَضَىٰ مُوسَى ٱلۡأَجَلَ وَسَارَ بِأَهۡلِهِۦٓ ءَانَسَ مِن جَانِبِ ٱلطُّورِ نَارٗاۖ قَالَ لِأَهۡلِهِ ٱمۡكُثُوٓاْ إِنِّيٓ ءَانَسۡتُ نَارٗا لَّعَلِّيٓ ءَاتِيكُم مِّنۡهَا بِخَبَرٍ أَوۡ جَذۡوَةٖ مِّنَ ٱلنَّارِ لَعَلَّكُمۡ تَصۡطَلُونَ ۝ 23
(29) जब मूसा ने मुद्दत पूरी कर दी और वह अपने घरवालों को लेकर चला तो तूर की जानिब उसको एक आग नज़र आई। उसने अपने घरवालों से कहा, “ठहरो, मैंने एक आग देखी है, शायद मैं वहाँ से कोई ख़बर ले आऊँ या उस आग से कोई अंगारा ही उठा लाऊँ जिससे तुम ताप सको।”
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ مِنۢ بَعۡدِ مَآ أَهۡلَكۡنَا ٱلۡقُرُونَ ٱلۡأُولَىٰ بَصَآئِرَ لِلنَّاسِ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٗ لَّعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ ۝ 24
(43) पिछली नस्लों को हलाक करने के बाद हमने मूसा को किताब अता की, लोगों के लिए बसीरतों का सामान बनाकर, हिदायत और रहमत बनाकर, ताकि शायद लोग सबक़ हासिल करें।
۞وَحَرَّمۡنَا عَلَيۡهِ ٱلۡمَرَاضِعَ مِن قَبۡلُ فَقَالَتۡ هَلۡ أَدُلُّكُمۡ عَلَىٰٓ أَهۡلِ بَيۡتٖ يَكۡفُلُونَهُۥ لَكُمۡ وَهُمۡ لَهُۥ نَٰصِحُونَ ۝ 25
(12) और हमने बच्चे पर पहले ही दूध पिलानेवालों की छातियाँ हराम कर रखी थीं। (यह हालत देखकर) उस लड़की ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें ऐसे घर का पता बताऊँ जिसके लोग उसकी परवरिश का ज़िम्मा लें और ख़ैरख़ाही के साथ उसे रखें?
فَلَمَّآ أَتَىٰهَا نُودِيَ مِن شَٰطِيِٕ ٱلۡوَادِ ٱلۡأَيۡمَنِ فِي ٱلۡبُقۡعَةِ ٱلۡمُبَٰرَكَةِ مِنَ ٱلشَّجَرَةِ أَن يَٰمُوسَىٰٓ إِنِّيٓ أَنَا ٱللَّهُ رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 26
(30) वहाँ पहुँचा तो वादी के दाहिने किनारे7 पर मुबारक ख़ित्ते में एक दरख़्त से पुकारा गया कि “ऐ मूसा, मैं ही अल्लाह हूँ, सारे जहानवालों का मालिक।”
7. यानी उस किनारे पर जो हज़रत मूसा (अलैहि०) के दाहिने हाथ की तरफ़ था।
وَمَا كُنتَ بِجَانِبِ ٱلۡغَرۡبِيِّ إِذۡ قَضَيۡنَآ إِلَىٰ مُوسَى ٱلۡأَمۡرَ وَمَا كُنتَ مِنَ ٱلشَّٰهِدِينَ ۝ 27
(44) (ऐ नबी) तुम उस वक़्त मग़रिबी गोशे में मौजूद न थे,9 जब हमने मूसा को यह फ़रमाने-शरीअत अता किया और न तुम शाहिदीन में शामिल थे,
9. मग़रिबी भाग से मु9. मग़रिबी गोशे से मुराद तूरे-सीना है जो हिजाज़ से मग़रिब की जानिब वाक़े है।राद तूरे-सीना (सीनीन) है जो हिजाज़ से मग़रिब की तरफ़ स्थित है।
فَرَدَدۡنَٰهُ إِلَىٰٓ أُمِّهِۦ كَيۡ تَقَرَّ عَيۡنُهَا وَلَا تَحۡزَنَ وَلِتَعۡلَمَ أَنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 28
(13) इस तरह हम मूसा को उसकी माँ के पास पलटा लाए, ताकि उसकी आँखें ठण्डी हों और वह ग़मगीन न हो और जान ले कि अल्लाह का वादा सच्चा था, मगर अकसर लोग इस बात को नहीं जानते।
وَلَٰكِنَّآ أَنشَأۡنَا قُرُونٗا فَتَطَاوَلَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡعُمُرُۚ وَمَا كُنتَ ثَاوِيٗا فِيٓ أَهۡلِ مَدۡيَنَ تَتۡلُواْ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتِنَا وَلَٰكِنَّا كُنَّا مُرۡسِلِينَ ۝ 29
(45) बल्कि उसके बाद (तुम्हारे ज़माने तक) हम बहुत-सी नस्लें उठा चुके हैं और उनपर बहुत ज़माना गुज़र चुका है। तुम अहले-मदयन के दरमियान भी मौजूद न थे कि उनको हमारी आयात सुना रहे होते, मगर (उस वक़्त की ये ख़बरें) भेजनेवाले हम हैं।
وَأَنۡ أَلۡقِ عَصَاكَۚ فَلَمَّا رَءَاهَا تَهۡتَزُّ كَأَنَّهَا جَآنّٞ وَلَّىٰ مُدۡبِرٗا وَلَمۡ يُعَقِّبۡۚ يَٰمُوسَىٰٓ أَقۡبِلۡ وَلَا تَخَفۡۖ إِنَّكَ مِنَ ٱلۡأٓمِنِينَ ۝ 30
(31) और (हुक्म दिया गया कि) फेंक दे अपनी लाठी। जूँ ही कि मूसा ने देखा कि वह लाठी साँप की तरह बल खा रही है, तो वह पीठ फेरकर भागा और उसने मुड़कर भी न देखा। (इरशाद हुआ), “मूसा, पलट आ और ख़ौफ़ न कर, तू बिलकुल महफ़ूज़ है।
وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُۥ وَٱسۡتَوَىٰٓ ءَاتَيۡنَٰهُ حُكۡمٗا وَعِلۡمٗاۚ وَكَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 31
(14) जब मूसा अपनी पूरी जवानी को पहुँच गया और उसका नशो-नुमा मुकम्मल हो गया तो हमने उसे हुक्म और इल्म अता किया, हम नेक लोगों को ऐसी ही जज़ा देते हैं।
وَمَا كُنتَ بِجَانِبِ ٱلطُّورِ إِذۡ نَادَيۡنَا وَلَٰكِن رَّحۡمَةٗ مِّن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوۡمٗا مَّآ أَتَىٰهُم مِّن نَّذِيرٖ مِّن قَبۡلِكَ لَعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ ۝ 32
(46) और तुम तूर के दामन में भी उस वक़्त मौजूद न थे जब हमने (मूसा को पहली बार) पुकारा था, मगर यह तुम्हारे रब की रहमत है (कि तुमको ये मालूमात दी जा रही हैं), ताकि तुम उन लोगों को मुतनब्बेह करो जिनके पास तुमसे पहले कोई मुतनब्बेह करनेवाला नहीं आया, शायद कि वे होश में आएँ।
ٱسۡلُكۡ يَدَكَ فِي جَيۡبِكَ تَخۡرُجۡ بَيۡضَآءَ مِنۡ غَيۡرِ سُوٓءٖ وَٱضۡمُمۡ إِلَيۡكَ جَنَاحَكَ مِنَ ٱلرَّهۡبِۖ فَذَٰنِكَ بُرۡهَٰنَانِ مِن رَّبِّكَ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِيْهِۦٓۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمٗا فَٰسِقِينَ ۝ 33
(32) अपना हाथ गिरेबान में डाल, चमकता हुआ निकलेगा बग़ैर किसी तकलीफ़ के। और ख़ौफ़ से बचने के लिए अपना बाज़ू भींच ले।8 ये दो रौशन निशानियाँ हैं तेरे रब की तरफ़ से फ़िरऔन और उसके दरबारियों के सामने पेश करने के लिए, वे बड़े नाफ़रमान लोग हैं।”
8. यानी जब कभी कोई ख़तरनाक मौक़ा ऐसा आए जिससे तुम्हारे दिल में ख़ौफ़ पैदा हो तो अपना बाज़ू भींच लिया करो, इससे तुम्हारा दिल क़वी हो जाएगा और रोब व दहशत की कोई कैफ़ियत तुम्हारे अन्दर बाक़ी न रहेगी।
وَدَخَلَ ٱلۡمَدِينَةَ عَلَىٰ حِينِ غَفۡلَةٖ مِّنۡ أَهۡلِهَا فَوَجَدَ فِيهَا رَجُلَيۡنِ يَقۡتَتِلَانِ هَٰذَا مِن شِيعَتِهِۦ وَهَٰذَا مِنۡ عَدُوِّهِۦۖ فَٱسۡتَغَٰثَهُ ٱلَّذِي مِن شِيعَتِهِۦ عَلَى ٱلَّذِي مِنۡ عَدُوِّهِۦ فَوَكَزَهُۥ مُوسَىٰ فَقَضَىٰ عَلَيۡهِۖ قَالَ هَٰذَا مِنۡ عَمَلِ ٱلشَّيۡطَٰنِۖ إِنَّهُۥ عَدُوّٞ مُّضِلّٞ مُّبِينٞ ۝ 34
(15) (एक दिन) वह शहर में ऐसे वक़्त दाख़िल हुआ जबकि शहर के लोग ग़फ़लत में थे। वहाँ उसने देखा कि दो आदमी लड़ रहे हैं। एक उसकी अपनी क़ौम का था और दूसरा उसकी दुश्मन क़ौम से ताल्लुक़ रखता था। उसकी क़ौम के आदमी ने दुश्मन क़ौमवाले के ख़िलाफ़ उसे मदद के लिए पुकारा। मूसा ने उसको एक घूँसा मारा और उसका काम तमाम कर दिया। (यह हरकत होते ही) मूसा ने कहा, “यह शैतान का किया-धरा है, वह सख़्त दुश्मन और खुला गुमराहकुन है।”
وَلَوۡلَآ أَن تُصِيبَهُم مُّصِيبَةُۢ بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيهِمۡ فَيَقُولُواْ رَبَّنَا لَوۡلَآ أَرۡسَلۡتَ إِلَيۡنَا رَسُولٗا فَنَتَّبِعَ ءَايَٰتِكَ وَنَكُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 35
(47) (और यह हमने इसलिए किया कि) कहीं ऐसा न हो कि उनके अपने किए करतूतों की बदौलत कोई मुसीबत जब उनपर आए तो वे कहें, “ऐ परवरदिगार, तूने क्यों न हमारी तरफ़ कोई रसूल भेजा कि हम तेरी आयात की पैरवी करते और अहले-ईमान में से होते।”
قَالَ رَبِّ إِنِّي قَتَلۡتُ مِنۡهُمۡ نَفۡسٗا فَأَخَافُ أَن يَقۡتُلُونِ ۝ 36
(33) मूसा ने अर्ज़ किया, “मेरे आक़ा, मैं तो उनका एक आदमी क़त्ल कर चुका हूँ, डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।
قَالَ رَبِّ إِنِّي ظَلَمۡتُ نَفۡسِي فَٱغۡفِرۡ لِي فَغَفَرَ لَهُۥٓۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 37
(16) फिर वह कहने लगा, “ऐ मेरे रब, मैंने अपने नफ़्स पर ज़ुल्म कर डाला, मेरी मग़फ़िरत फ़रमा दे।”चुनाँचे अल्लाह ने उसकी मग़फ़िरत फ़रमा दी,2 वह ग़फ़ूर व रहीम है।
2. मग़फ़िरत के मानी दरगुज़ करने और माफ़ करने के भी हैं, और सतर-पोशी करने के भी। हज़रत मूसा (अलैहि०) की दुआ का मतलब यह था कि मेरे इस गुनाह को (जिसे तू जानता है कि मैंने अमदन नहीं किया है) माफ़ भी फ़रमा दे और इसका परदा भी ढाँक दे ताकि दुश्मनों को इसका पता न चले।
وَأَخِي هَٰرُونُ هُوَ أَفۡصَحُ مِنِّي لِسَانٗا فَأَرۡسِلۡهُ مَعِيَ رِدۡءٗا يُصَدِّقُنِيٓۖ إِنِّيٓ أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ ۝ 38
(34) और मेरा भाई हारून मुझसे ज़्यादा ज़बान-आवर है, उसे मेरे साथ मददगार के तौर पर भेज, ताकि वह मेरी ताईद करे। मुझे अन्देशा है कि वे लोग मुझे झुठलाएँगे।”
فَلَمَّا جَآءَهُمُ ٱلۡحَقُّ مِنۡ عِندِنَا قَالُواْ لَوۡلَآ أُوتِيَ مِثۡلَ مَآ أُوتِيَ مُوسَىٰٓۚ أَوَلَمۡ يَكۡفُرُواْ بِمَآ أُوتِيَ مُوسَىٰ مِن قَبۡلُۖ قَالُواْ سِحۡرَانِ تَظَٰهَرَا وَقَالُوٓاْ إِنَّا بِكُلّٖ كَٰفِرُونَ ۝ 39
(48) मगर जब हमारे हाँ से हक़ उनके पास आ गया तो वे कहने लगे, “क्यों न दिया गया इसको वही कुछ जो मूसा को दिया गया था?” क्या ये लोग उसका इनकार नहीं कर चुके हैं जो इससे पहले मूसा को दिया गया था?10 उन्होंने कहा, “दोनों जादू हैं,11 जो एक-दूसरे की मदद करते हैं।” और कहा, “हम किसी को नहीं मानते।”
10. यानी कुफ़्फ़ारे-मक्का ने मूसा ही को कब माना था कि अब ये कहते हैं कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को वे मोजिज़ात क्यों न दिए गए जो हज़रत मूसा (अलैहि०) को दिए गए थे।
11. यानी क़ुरआन और तौरात दोनों।
قَالَ سَنَشُدُّ عَضُدَكَ بِأَخِيكَ وَنَجۡعَلُ لَكُمَا سُلۡطَٰنٗا فَلَا يَصِلُونَ إِلَيۡكُمَا بِـَٔايَٰتِنَآۚ أَنتُمَا وَمَنِ ٱتَّبَعَكُمَا ٱلۡغَٰلِبُونَ ۝ 40
(35) फ़रमाया, “हम तेरे भाई के ज़रिए से तेरा हाथ मज़बूत करेंगे और तुम दोनों को ऐसी सितवत बख़्शेंगे कि वे तुम्हारा कुछ न बिगाड़ सकेंगे। हमारी निशानियों के ज़ोर से ग़ल्बा तुम्हारा और तुम्हारे पैरुओं ही का होगा।”
قُلۡ فَأۡتُواْ بِكِتَٰبٖ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ هُوَ أَهۡدَىٰ مِنۡهُمَآ أَتَّبِعۡهُ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 41
(49) (ऐ नबी,) इनसे कहो, “अच्छा तो लाओ अल्लाह की तरफ़ से कोई किताब जो इन दोनों से ज़्यादा हिदायत बख़्शनेवाली हो, अगर तुम सच्चे हो, मैं उसी की पैरवी इख़्तियार करूँगा।”
فَلَمَّا جَآءَهُم مُّوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَا بَيِّنَٰتٖ قَالُواْ مَا هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ مُّفۡتَرٗى وَمَا سَمِعۡنَا بِهَٰذَا فِيٓ ءَابَآئِنَا ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 42
(36) फिर जब मूसा उन लोगों के पास हमारी खुली-खुली निशानियाँ लेकर पहुँचा तो उन्होंने कहा कि यह कुछ नहीं है मगर बनावटी जादू। और ये बातें तो हमने अपने बाप-दादा के ज़माने में कभी सुनीं ही नहीं।
فَإِن لَّمۡ يَسۡتَجِيبُواْ لَكَ فَٱعۡلَمۡ أَنَّمَا يَتَّبِعُونَ أَهۡوَآءَهُمۡۚ وَمَنۡ أَضَلُّ مِمَّنِ ٱتَّبَعَ هَوَىٰهُ بِغَيۡرِ هُدٗى مِّنَ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 43
(50) अब अगर वे तुम्हारा यह मुतालबा पूरा नहीं करते तो समझ लो कि अस्ल में ये अपनी ख़ाहिशात के पैरौ हैं, और उस शख़्स से बढ़कर कौन गुमराह होगा जो ख़ुदाई हिदायत के बग़ैर बस अपनी ख़ाहिशात की पैरवी करे? अल्लाह ऐसे ज़ालिमों को हरगिज़ हिदायत नहीं देता।
قَالَ رَبِّ بِمَآ أَنۡعَمۡتَ عَلَيَّ فَلَنۡ أَكُونَ ظَهِيرٗا لِّلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 44
(17) मूसा ने अह्द किया कि “ऐ मेरे रब, यह एहसान जो तूने मुझपर किया है3 इसके बाद अब मैं कभी मुजरिमों का मददगार न बनूँगा।”
3. यानी मेरा यह फ़ेल छिपा रह गया, और दुश्मन क़ौम के किसी फ़र्द ने मुझको नहीं देखा, और मुझे बच निकलने का मौक़ा मिल गया।
وَقَالَ مُوسَىٰ رَبِّيٓ أَعۡلَمُ بِمَن جَآءَ بِٱلۡهُدَىٰ مِنۡ عِندِهِۦ وَمَن تَكُونُ لَهُۥ عَٰقِبَةُ ٱلدَّارِۚ إِنَّهُۥ لَا يُفۡلِحُ ٱلظَّٰلِمُونَ ۝ 45
(37) मूसा ने जवाब दिया, “मेरा रब उस शख़्स के हाल से ख़ूब वाक़िफ़ है जो उसकी तरफ़ से हिदायत लेकर आया है और वही बेहतर जानता है कि आख़िरी अंजाम किसका अच्छा होना है, हक़ यह है कि ज़ालिम कभी फ़लाह नहीं पाते।”
۞وَلَقَدۡ وَصَّلۡنَا لَهُمُ ٱلۡقَوۡلَ لَعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ ۝ 46
(51) और (नसीहत की) बात पै-दर-पै हम उन्हें पहुँचा चुके हैं, ताकि वे ग़फ़लत से बेदार हों।
فَأَصۡبَحَ فِي ٱلۡمَدِينَةِ خَآئِفٗا يَتَرَقَّبُ فَإِذَا ٱلَّذِي ٱسۡتَنصَرَهُۥ بِٱلۡأَمۡسِ يَسۡتَصۡرِخُهُۥۚ قَالَ لَهُۥ مُوسَىٰٓ إِنَّكَ لَغَوِيّٞ مُّبِينٞ ۝ 47
(18) दूसरे दिन वह सुबह-सवेरे डरता और हर तरफ़ से ख़तरा भाँपता हुआ शहर में जा रहा था कि यकायक क्या देखता है कि वही आदमी जिसने कल उसे मदद के लिए पुकारा था, आज फिर उसे पुकार रहा है। मूसा ने कहा, “तू तो बड़ा ही बहका हुआ आदमी है।”
ٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ مِن قَبۡلِهِۦ هُم بِهِۦ يُؤۡمِنُونَ ۝ 48
(52) जिन लोगों को इससे पहले हमने किताब दी थी वे इस (क़ुरआन) पर ईमान लाते हैं।12
12. इससे मुराद यह नहीं है कि तमाम अहले-किताब (यहूदी और ईसाई) इसपर ईमान लाते हैं। बल्कि यह इशारा दरअस्ल उस वाक़िए की तरफ़ है जो इस सूरा के नुज़ूल के ज़माने में पेश आया था, और इससे अहले-मक्का को शर्म दिलानी मक़सूद है कि तुम अपने घर आई हुई नेमत को ठुकरा रहे हो हालाँकि दूर-दूर के लोग उसकी ख़बर सुनकर आ रहे हैं और उसकी क़द्र पहचानकर उससे फ़ायदा उठा रहे हैं। वह वाक़िआ जिसकी तरफ़ यह इशारा है, यह था कि हबश से 20 के क़रीब ईसाई रसूलुल्लाह (सल्ल०) के पास आए और क़ुरआन आपसे सुनकर ईमान ले आए।
وَإِذَا يُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا بِهِۦٓ إِنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّنَآ إِنَّا كُنَّا مِن قَبۡلِهِۦ مُسۡلِمِينَ ۝ 49
(53) और जब यह उनको सुनाया जाता है तो वे कहते हैं कि “हम इसपर ईमान लाए, यह वाक़ई हक़ है हमारे रब की तरफ़ से, हम तो पहले ही से मुस्लिम हैं।”
فَلَمَّآ أَنۡ أَرَادَ أَن يَبۡطِشَ بِٱلَّذِي هُوَ عَدُوّٞ لَّهُمَا قَالَ يَٰمُوسَىٰٓ أَتُرِيدُ أَن تَقۡتُلَنِي كَمَا قَتَلۡتَ نَفۡسَۢا بِٱلۡأَمۡسِۖ إِن تُرِيدُ إِلَّآ أَن تَكُونَ جَبَّارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَا تُرِيدُ أَن تَكُونَ مِنَ ٱلۡمُصۡلِحِينَ ۝ 50
(19) फिर जब मूसा ने इरादा किया कि दुश्मन क़ौम के आदमी पर हमला करे तो वह पुकार उठा,4 “ऐ मूसा, क्या आज तू मुझे उसी तरह क़त्ल करने लगा है जिस तरह कल एक आदमी को क़त्ल कर चुका है। तू इस मुल्क में जब्बार बनकर रहना चाहता है, इस्लाह करना नहीं चाहता।”
4. यह पुकारनेवाला वही इसराईली था जिसकी मदद के लिए हज़रत मूसा (अलैहि०) आगे बढ़े थे। उसको डाँटने के बाद जब आप मिस्री को मारने के लिए चले तो इसराईली ने समझा कि ये मुझे मारने आ रहे हैं, इसलिए उसने चीख़ना शुरू कर दिया और अपनी हिमाक़त से क़त्ल का राज़ फ़ाश कर डाला।
وَإِذَا سَمِعُواْ ٱللَّغۡوَ أَعۡرَضُواْ عَنۡهُ وَقَالُواْ لَنَآ أَعۡمَٰلُنَا وَلَكُمۡ أَعۡمَٰلُكُمۡ سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمۡ لَا نَبۡتَغِي ٱلۡجَٰهِلِينَ ۝ 51
(55) और जब उन्होंने बेहूदा बात सुनी तो यह कहकर उससे अलग हो गए कि “हमारे आमाल हमारे लिए और तुम्हारे आमाल तुम्हारे लिए, तुमको सलाम है, हम जाहिलों का-सा तरीक़ा इख़्तियार करना नहीं चाहते।”14
14. जब ये लोग ईमान ले आए तो अबू-जहल ने इनको गालियाँ दीं। इसी बात का ज़िक्र यहाँ हो रहा है।
أُوْلَٰٓئِكَ يُؤۡتَوۡنَ أَجۡرَهُم مَّرَّتَيۡنِ بِمَا صَبَرُواْ وَيَدۡرَءُونَ بِٱلۡحَسَنَةِ ٱلسَّيِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ يُنفِقُونَ ۝ 52
(54) ये वे लोग हैं जिन्हें उनका अज्र दो बार दिया जाएगा13 उस मज़बूती से जमे रहने के बदले जो उन्होंने दिखाई। वे बुराई को भलाई से दफ़ा करते हैं और जो कुछ रिज़्क़ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं।
13. यानी एक अज्र पिछली किताबों पर ईमान लाने का और दूसरा अज्र क़ुरआन पर ईमान लाने का।
وَجَآءَ رَجُلٞ مِّنۡ أَقۡصَا ٱلۡمَدِينَةِ يَسۡعَىٰ قَالَ يَٰمُوسَىٰٓ إِنَّ ٱلۡمَلَأَ يَأۡتَمِرُونَ بِكَ لِيَقۡتُلُوكَ فَٱخۡرُجۡ إِنِّي لَكَ مِنَ ٱلنَّٰصِحِينَ ۝ 53
(20) इसके बाद एक आदमी शहर के परले सिरे से दौड़ता हुआ आया और बोला,5 “मूसा, सरदारों में तेरे क़त्ल के मशवरे हो रहे हैं, यहाँ से निकल जा, मैं तेरा ख़ैरख़ाह हूँ।”
5. यानी इस दूसरे झगड़े में जब क़त्ल का राज़ फ़ाश हो गया और उस मिस्री ने जाकर ख़बर कर दी तब यह वाक़िआ पेश आया।
إِنَّكَ لَا تَهۡدِي مَنۡ أَحۡبَبۡتَ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَهۡدِي مَن يَشَآءُۚ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِٱلۡمُهۡتَدِينَ ۝ 54
(56) ऐ नबी, तुम जिसे चाहो उसे हिदायत नहीं दे सकते, मगर अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है और वह उन लोगों को ख़ूब जानता है जो हिदायत क़ुबूल करनेवाले हैं।
وَقَالُوٓاْ إِن نَّتَّبِعِ ٱلۡهُدَىٰ مَعَكَ نُتَخَطَّفۡ مِنۡ أَرۡضِنَآۚ أَوَلَمۡ نُمَكِّن لَّهُمۡ حَرَمًا ءَامِنٗا يُجۡبَىٰٓ إِلَيۡهِ ثَمَرَٰتُ كُلِّ شَيۡءٖ رِّزۡقٗا مِّن لَّدُنَّا وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 55
(57) वे कहते हैं, “अगर हम तुम्हारे साथ इस हिदायत की पैरवी इख़्तियार कर लें तो अपनी ज़मीन से उचक लिए जाएँगे।”15 क्या यह वाक़िआ नहीं है कि हमने एक अम्नवाले हरम को उनके लिए जाए-क़ियाम बना दिया जिसकी तरफ़ हर तरह के समरात खिंचे चले आते हैं, हमारी तरफ़ से रिज़्क़ के तौर पर? मगर इनमें से अकसर लोग जानते नहीं हैं।16
15. यह वह बात है जो कुफ़्फ़ारे-क़ुरैश इस्लाम क़ुबूल न करने के लिए उज़्र के तौर पर पेश करते थे। उनका मतलब यह था कि आज तो हम तमाम मुशरिकीन के मज़हबी पेशवा बने हुए हैं, लेकिन अगर हम ही मुहम्मद (सल्ल०) की बात मान लें तो सारा अरब हमारा दुश्मन हो जाएगा।
16. यह अल्लाह तआला की तरफ़ से उनके उज़्र का पहला जवाब है। इसका मतलब यह है कि यह 'हरम' जिसको अम्नो-अमान और जिसकी मर्कज़ियत की बदौलत आज तुम इस क़ाबिल हुए हो कि दुनिया भर का माले-तिजारत इस वादी-ए-ग़ैर ज़ी-ज़रअ में खिंचा चला आ रहा है, क्या इसको यह अम्न और यह मर्कज़ियत का मक़ाम तुम्हारी किसी तदबीर ने दिया है?
وَكَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِن قَرۡيَةِۭ بَطِرَتۡ مَعِيشَتَهَاۖ فَتِلۡكَ مَسَٰكِنُهُمۡ لَمۡ تُسۡكَن مِّنۢ بَعۡدِهِمۡ إِلَّا قَلِيلٗاۖ وَكُنَّا نَحۡنُ ٱلۡوَٰرِثِينَ ۝ 56
(58) और कितनी ही ऐसी बस्तियाँ हम तबाह कर चुके हैं, जिनके लोग अपनी मईशत पर इतरा गए थे। सो देख लो, वे उनके मसकन पड़े हुए हैं जिनमें उनके बाद कम ही कोई बसा है, आख़िरकार हम ही वारिस होकर रहे।17
17. यह उनके उज़्र का दूसरा जवाब है। इसका मतलब यह है कि जिस माल व दौलत और ख़ुशहाली पर इतराए हुए हो, और जिसके खो जाने के ख़तरे से बातिल पर जमना और हक़ से मुँह मोड़ना चाहते हो, यही चीज़़ कभी आद और समूद और दूसरी क़ौमों को भी हासिल थी। फिर क्या यह चीज़ उनको तबाही से बचा सकी?
فَخَرَجَ مِنۡهَا خَآئِفٗا يَتَرَقَّبُۖ قَالَ رَبِّ نَجِّنِي مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 57
(21) यह ख़बर सुनते ही मूसा डरता और सहमता निकल खड़ा हुआ और उसने दुआ की कि “ऐ मेरे रब, मुझे ज़ालिमों से बचा।”
وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهۡلِكَ ٱلۡقُرَىٰ حَتَّىٰ يَبۡعَثَ فِيٓ أُمِّهَا رَسُولٗا يَتۡلُواْ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتِنَاۚ وَمَا كُنَّا مُهۡلِكِي ٱلۡقُرَىٰٓ إِلَّا وَأَهۡلُهَا ظَٰلِمُونَ ۝ 58
(59) और तेरा रब बस्तियों को हलाक करनेवाला न था जब तक कि उनके मरकज़ में एक रसूल न भेज देता जो उनको हमारी आयात सुनाता। और हम बस्तियों को हलाक करनेवाले न थे जब तक कि उनके रहनेवाले ज़ालिम न हो जाते।18
18. यह उनके उज़्र का तीसरा जवाब है। पहले जो क़ौमें तबाह हुईं उनके लोग ज़ालिम हो चुके थे, मगर अल्लाह ने उनको तबाह करने से पहले अपने रसूल भेजकर उन्हें मुतनब्बेह किया, और जब उनके मुतनब्बेह करने पर भी वे अपनी टेढ़ी चाल से बाज़ न आए तो उन्हें हलाक कर दिया। यही मामला अब तुम्हें दरपेश है।
وَرَبُّكَ يَعۡلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمۡ وَمَا يُعۡلِنُونَ ۝ 59
(69) तेरा रब जानता है जो कुछ ये दिलों में छिपाए हुए हैं और जो कुछ ये ज़ाहिर करते हैं।
وَمَآ أُوتِيتُم مِّن شَيۡءٖ فَمَتَٰعُ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَزِينَتُهَاۚ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ خَيۡرٞ وَأَبۡقَىٰٓۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 60
(60) तुम लोगों को जो कुछ भी दिया गया है वह मह्ज़ दुनिया की ज़िन्दगी का सामान और उसकी ज़ीनत है और जो कुछ अल्लाह के पास है वह इससे बेहतर और बाक़ी रहनेवाला है। क्या तुम लोग अक़्ल से काम नहीं लेते?
وَهُوَ ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ لَهُ ٱلۡحَمۡدُ فِي ٱلۡأُولَىٰ وَٱلۡأٓخِرَةِۖ وَلَهُ ٱلۡحُكۡمُ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 61
(70) वही एक अल्लाह है जिसके सिवा कोई इबादत का हक़दार नहीं। उसी के लिए तारीफ़ है दुनिया में भी और आख़िरत में भी, हुकूमत उसी की है और उसी की तरफ़ तुम सब पलटाए जानेवाले हो।
أَفَمَن وَعَدۡنَٰهُ وَعۡدًا حَسَنٗا فَهُوَ لَٰقِيهِ كَمَن مَّتَّعۡنَٰهُ مَتَٰعَ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا ثُمَّ هُوَ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ مِنَ ٱلۡمُحۡضَرِينَ ۝ 62
(61) भला वह शख़्स जिससे हमने अच्छा वादा किया हो और वह उसे पानेवाला हो कभी उस शख़्स की तरह हो सकता है जिसे हमने सिर्फ़ हयाते-दुनिया का सामान दे दिया हो और फिर वह क़ियामत के दिन सज़ा के लिए पेश किया जानेवाला हो?
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِن جَعَلَ ٱللَّهُ عَلَيۡكُمُ ٱلَّيۡلَ سَرۡمَدًا إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ مَنۡ إِلَٰهٌ غَيۡرُ ٱللَّهِ يَأۡتِيكُم بِضِيَآءٍۚ أَفَلَا تَسۡمَعُونَ ۝ 63
(71) ऐ नबी! इनसे कहो, कभी तुम लोगों ने ग़ौर किया कि अगर अल्लाह क़ियामत तक तुमपर हमेशा के लिए रात तारी कर दे तो अल्लाह के सिवा वह कौन-सा माबूद है जो तुम्हें रौशनी ला दे? क्या तुम सुनते नहीं हो?
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِن جَعَلَ ٱللَّهُ عَلَيۡكُمُ ٱلنَّهَارَ سَرۡمَدًا إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ مَنۡ إِلَٰهٌ غَيۡرُ ٱللَّهِ يَأۡتِيكُم بِلَيۡلٖ تَسۡكُنُونَ فِيهِۚ أَفَلَا تُبۡصِرُونَ ۝ 64
(72) इनसे पूछो, कभी तुमने सोचा कि अगर अल्लाह क़ियामत तक तुमपर हमेशा के लिए दिन तारी कर दे तो अल्लाह के सिवा वह कौन-सा माबूद है जो तुम्हें रात ला दे, ताकि तुम उसमें सुकून हासिल कर सको? क्या तुमको सूझता नहीं?
إِنَّ ٱلَّذِي فَرَضَ عَلَيۡكَ ٱلۡقُرۡءَانَ لَرَآدُّكَ إِلَىٰ مَعَادٖۚ قُل رَّبِّيٓ أَعۡلَمُ مَن جَآءَ بِٱلۡهُدَىٰ وَمَنۡ هُوَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ ۝ 65
(85) ऐ नबी, यक़ीन जानो कि जिसने यह क़ुरआन तुमपर फ़र्ज़ किया है,23 वह तुम्हें एक बेहतरीन अंजाम को पहुँचानेवाला है। इन लोगों से कह दो कि “मेरा रब ख़ूब जानता है कि हिदायत लेकर कौन आया है और खुली गुमराही में कौन मुब्तला है।”
23. यानी इस क़ुरआन को ख़ल्क़े-ख़ुदा तक पहुँचाने और इसकी तालीम देने और इसकी हिदायत के मुताबिक़ दुनिया की इस्लाह करने की ज़िम्मेदारी तुमपर डाली है।
وَمِن رَّحۡمَتِهِۦ جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ لِتَسۡكُنُواْ فِيهِ وَلِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 66
(73) यह उसी की रहमत है कि उसने तुम्हारे लिए रात और दिन बनाए, ताकि तुम (रात में) सुकून हासिल करो और (दिन में) अपने रब का फ़ज़्ल (रिज़्क़) तलाश करो, शायद कि तुम शुक्रगुज़ार बनो।
وَمَا كُنتَ تَرۡجُوٓاْ أَن يُلۡقَىٰٓ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبُ إِلَّا رَحۡمَةٗ مِّن رَّبِّكَۖ فَلَا تَكُونَنَّ ظَهِيرٗا لِّلۡكَٰفِرِينَ ۝ 67
(86) तुम इस बात के हरगिज़ उम्मीदवार न थे कि तुमपर किताब नाज़िल की जाएगी, यह तो सिर्फ़ तुम्हारे रब के फ़ज़्ल से (तुमपर नाज़िल की गई है), पस तुम काफ़िरों के मददगार न बनो।
وَيَوۡمَ يُنَادِيهِمۡ فَيَقُولُ أَيۡنَ شُرَكَآءِيَ ٱلَّذِينَ كُنتُمۡ تَزۡعُمُونَ ۝ 68
(62) और (भूल न जाएँ ये लोग) उस दिन को जबकि वह इनको पुकारेगा और पूछेगा, “कहाँ हैं मेरे वे शरीक जिनका तुम गुमान रखते थे?”
وَيَوۡمَ يُنَادِيهِمۡ فَيَقُولُ أَيۡنَ شُرَكَآءِيَ ٱلَّذِينَ كُنتُمۡ تَزۡعُمُونَ ۝ 69
(74) (याद रखें ये लोग) वह दिन जबकि वह उन्हें पुकारेगा, फिर पूछेगा, “कहाँ हैं मेरे वे शरीक, जिनका तुम गुमान रखते थे?”
وَلَا يَصُدُّنَّكَ عَنۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ بَعۡدَ إِذۡ أُنزِلَتۡ إِلَيۡكَۖ وَٱدۡعُ إِلَىٰ رَبِّكَۖ وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 70
(87) और ऐसा कभी न होने पाए कि अल्लाह की आयात जब तुमपर नाज़िल हों तो कुफ़्फ़ार तुम्हें उनसे बाज़ रखें। अपने रब की तरफ़ दावत दो और हरगिज़ मुशरिकों में शामिल न हो
وَنَزَعۡنَا مِن كُلِّ أُمَّةٖ شَهِيدٗا فَقُلۡنَا هَاتُواْ بُرۡهَٰنَكُمۡ فَعَلِمُوٓاْ أَنَّ ٱلۡحَقَّ لِلَّهِ وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ ۝ 71
(75) और हम हर उम्मत में से एक गवाह निकाल लाएँगे, फिर कहेंगे कि “लाओ अब अपनी दलील।”उस वक़्त उन्हें मालूम हो जाएगा कि हक़ अल्लाह की तरफ़ है और गुम हो जाएँगे उनके वे सारे झूठ जो उन्होंने गढ़ रखे थे।
وَلَا تَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَۘ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۚ كُلُّ شَيۡءٍ هَالِكٌ إِلَّا وَجۡهَهُۥۚ لَهُ ٱلۡحُكۡمُ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 72
(88) और अल्लाह के साथ किसी दूसरे माबूद को न पुकारो। उसके सिवा कोई माबूद नहीं है। हर चीज़ हलाक होनेवाली है सिवाय उस ज़ात के। फ़रमाँरवाई उसी की है और उसी की तरफ़ तुम सब पलटाए जानेवाले हो।
۞إِنَّ قَٰرُونَ كَانَ مِن قَوۡمِ مُوسَىٰ فَبَغَىٰ عَلَيۡهِمۡۖ وَءَاتَيۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡكُنُوزِ مَآ إِنَّ مَفَاتِحَهُۥ لَتَنُوٓأُ بِٱلۡعُصۡبَةِ أُوْلِي ٱلۡقُوَّةِ إِذۡ قَالَ لَهُۥ قَوۡمُهُۥ لَا تَفۡرَحۡۖ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡفَرِحِينَ ۝ 73
(76) यह एक वाक़िआ है कि क़ारून मूसा की क़ौम का एक आदमी था, फिर वह अपनी क़ौम के ख़िलाफ़ बाग़ी हो गया और हमने उसको इतने ख़ज़ाने दे रखे थे कि उनकी कुंजियाँ ताक़तवर आदमियों की एक टीम मुशकिल से उठा सकती थी। एक बार जब उसकी क़ौम के लोगों ने उससे कहा, “फूल न जा, अल्लाह फूलनेवालों को पसन्द नहीं करता।
وَٱبۡتَغِ فِيمَآ ءَاتَىٰكَ ٱللَّهُ ٱلدَّارَ ٱلۡأٓخِرَةَۖ وَلَا تَنسَ نَصِيبَكَ مِنَ ٱلدُّنۡيَاۖ وَأَحۡسِن كَمَآ أَحۡسَنَ ٱللَّهُ إِلَيۡكَۖ وَلَا تَبۡغِ ٱلۡفَسَادَ فِي ٱلۡأَرۡضِۖ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُفۡسِدِينَ ۝ 74
(77) जो माल अल्लाह ने तुझे दिया है, उससे आख़िरत का घर बनाने की फ़िक्र कर और दुनिया में से भी अपना हिस्सा फ़रामोश न कर। एहसान कर जिस तरह अल्लाह ने तेरे साथ एहसान किया है और ज़मीन में फ़साद बरपा करने की कोशिश न कर, अल्लाह मुफ़िसदों को पसन्द नहीं करता।”
قَالَ إِنَّمَآ أُوتِيتُهُۥ عَلَىٰ عِلۡمٍ عِندِيٓۚ أَوَلَمۡ يَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ قَدۡ أَهۡلَكَ مِن قَبۡلِهِۦ مِنَ ٱلۡقُرُونِ مَنۡ هُوَ أَشَدُّ مِنۡهُ قُوَّةٗ وَأَكۡثَرُ جَمۡعٗاۚ وَلَا يُسۡـَٔلُ عَن ذُنُوبِهِمُ ٱلۡمُجۡرِمُونَ ۝ 75
(78) तो उसने कहा, “यह सब कुछ तो मुझे उस इल्म की बुनियाद पर दिया गया है जो मुझको हासिल है”— क्या उसको यह इल्म न था कि अल्लाह उससे पहले बहुत-से लोगों को हलाक कर चुका है जो उससे ज़्यादा क़ुव्वत और जमीअत रखते थे? मुजरिमों से तो उनके गुनाह नहीं पूछे जाते।21
21. यानी मुजिरम तो यही दावा किया करते हैं कि हम बड़े अच्छे लोग हैं। वे कब माना करते हैं कि उनके अन्दर कोई बुराई है। मगर उनकी सज़ा उनके अपने इतिराफ़ पर मुन्हसिर नहीं होती। उन्हें जब पकड़ा जाता है तो उनसे पूछकर नहीं पकड़ा जाता कि बताओ तुम्हारे गुनाह क्या हैं?
قَالَ ٱلَّذِينَ حَقَّ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقَوۡلُ رَبَّنَا هَٰٓؤُلَآءِ ٱلَّذِينَ أَغۡوَيۡنَآ أَغۡوَيۡنَٰهُمۡ كَمَا غَوَيۡنَاۖ تَبَرَّأۡنَآ إِلَيۡكَۖ مَا كَانُوٓاْ إِيَّانَا يَعۡبُدُونَ ۝ 76
(63) यह क़ौल जिसपर चस्पाँ होगा वे कहेंगे, “ऐ हमारे रब, बेशक यही लोग हैं जिनको हमने गुमराह किया था। इन्हें हमने उसी तरह गुमराह किया जैसे हम ख़ुद गुमराह हुए।19 हम आपके सामने बराअत का इज़हार करते हैं। ये हमारी तो बन्दगी नहीं करते थे।”20
19. इससे मुराद जिन्न और वे शयातीने-जिन्न व इंस हैं जिनको दुनिया में अल्लाह का शरीक बनाया गया था, जिनकी बात के मुक़ाबले में ख़ुदा और उसके रसूलों की बात को रद्द किया गया था, और जिनके एतिमाद पर सिराते-मुस्तक़ीम को छोड़कर ज़िन्दगी के ग़लत रास्ते इख़्तियार किए गए थे। ऐसे लोगों को ख़ाह किसी ने 'इलाह' और 'रब' कहा हो या न कहा हो, बहरहाल जब उनकी पैरवी व इताअत उस तरह की गई जैसी ख़ुदा की होनी चाहिए तो लाज़िमन उन्हें ख़ुदाई में शरीक किया गया।
20. यानी ये हमारे नहीं, बल्कि अपने ही नफ्स के बन्दे बने हुए थे।
فَخَرَجَ عَلَىٰ قَوۡمِهِۦ فِي زِينَتِهِۦۖ قَالَ ٱلَّذِينَ يُرِيدُونَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا يَٰلَيۡتَ لَنَا مِثۡلَ مَآ أُوتِيَ قَٰرُونُ إِنَّهُۥ لَذُو حَظٍّ عَظِيمٖ ۝ 77
(79) एक दिन वह अपनी क़ौम के सामने अपने पूरे ठाठ में निकला। जो लोग दुनिया की ज़िन्दगी के तलबगार थे वे उसे देखकर कहने लगे, “काश, हमें भी वही कुछ मिलता जो क़ारून को दिया गया है! यह तो बड़ा नसीबेवाला है!”
وَقَالَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ وَيۡلَكُمۡ ثَوَابُ ٱللَّهِ خَيۡرٞ لِّمَنۡ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحٗاۚ وَلَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ٱلصَّٰبِرُونَ ۝ 78
(80) मगर जो लोग इल्म रखनेवाले थे वे कहने लगे, “अफ़सोस तुम्हारे हाल पर, अल्लाह का सवाब बेहतर है उस शख़्स के लिए जो ईमान लाए और नेक अमल करे और यह दौलत नहीं मिलती मगर सब्र करनेवालों को।”
فَخَسَفۡنَا بِهِۦ وَبِدَارِهِ ٱلۡأَرۡضَ فَمَا كَانَ لَهُۥ مِن فِئَةٖ يَنصُرُونَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُنتَصِرِينَ ۝ 79
(81) आख़िरकार हमने उसे और उसके घर को ज़मीन में धँसा दिया। फिर कोई उसके हामियों का गरोह न था जो अल्लाह के मुक़ाबले में उसकी मदद को आता और न वह ख़ुद अपनी मदद आप कर सका।
وَأَصۡبَحَ ٱلَّذِينَ تَمَنَّوۡاْ مَكَانَهُۥ بِٱلۡأَمۡسِ يَقُولُونَ وَيۡكَأَنَّ ٱللَّهَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦ وَيَقۡدِرُۖ لَوۡلَآ أَن مَّنَّ ٱللَّهُ عَلَيۡنَا لَخَسَفَ بِنَاۖ وَيۡكَأَنَّهُۥ لَا يُفۡلِحُ ٱلۡكَٰفِرُونَ ۝ 80
(82) अब वही लोग, जो कल तक उसकी मंज़िलत की तमन्ना कर रहे थे, कहने लगे, “अफ़सोस, हम भूल गए थे कि अल्लाह अपने बन्दों में से जिसका रिज़्क़ चाहता है बढ़ा देता है और जिसे चाहता है नपा-तुला देता है। अगर अल्लाह ने हमपर एहसान न किया होता तो हमें भी ज़मीन में धँसा देता। अफ़सोस, हमको याद न रहा कि काफ़िर फ़लाह नहीं पाया करते।”
تِلۡكَ ٱلدَّارُ ٱلۡأٓخِرَةُ نَجۡعَلُهَا لِلَّذِينَ لَا يُرِيدُونَ عُلُوّٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فَسَادٗاۚ وَٱلۡعَٰقِبَةُ لِلۡمُتَّقِينَ ۝ 81
(83) वह आख़िरत का घर22 तो हम उन लोगों के लिए मख़सूस कर देंगे जो ज़मीन में अपनी बड़ाई नहीं चाहते और न फ़साद करना चाहते हैं। और अंजाम की भलाई मुत्तक़ीन ही के लिए है।
22. इससे मुराद है जन्नत जो हक़ीक़ी फ़लाह का मक़ाम है।
مَن جَآءَ بِٱلۡحَسَنَةِ فَلَهُۥ خَيۡرٞ مِّنۡهَاۖ وَمَن جَآءَ بِٱلسَّيِّئَةِ فَلَا يُجۡزَى ٱلَّذِينَ عَمِلُواْ ٱلسَّيِّـَٔاتِ إِلَّا مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 82
(84) जो कोई भलाई लेकर आएगा, उसके लिए उससे बेहतर भलाई है और जो बुराई लेकर आए तो बुराइयाँ करनेवालों को वैसा ही बदला मिलेगा जैसे अमल वे करते थे।
وَقِيلَ ٱدۡعُواْ شُرَكَآءَكُمۡ فَدَعَوۡهُمۡ فَلَمۡ يَسۡتَجِيبُواْ لَهُمۡ وَرَأَوُاْ ٱلۡعَذَابَۚ لَوۡ أَنَّهُمۡ كَانُواْ يَهۡتَدُونَ ۝ 83
(64) फिर इनसे कहा जाएगा कि पुकारो अब अपने ठहराए हुए शरीकों को। ये उन्हें पुकारेंगे मगर वे इनको कोई जवाब न देंगे। और ये लोग अज़ाब देख लेंगे। काश, ये हिदायत इख़्तियार करनेवाले होते!
وَيَوۡمَ يُنَادِيهِمۡ فَيَقُولُ مَاذَآ أَجَبۡتُمُ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 84
(65) और (फ़रामोश न करें ये लोग) वह दिन जबकि वह इनको पुकारेगा और पूछेगा कि “जो रसूल भेजे गए थे उन्हें तुमने क्या जवाब दिया था?”
فَعَمِيَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلۡأَنۢبَآءُ يَوۡمَئِذٖ فَهُمۡ لَا يَتَسَآءَلُونَ ۝ 85
(66) उस वक़्त कोई जवाब इनको न सूझेगा और न ये आपस में एक-दूसरे से पूछ ही सकेंगे।
فَأَمَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَعَسَىٰٓ أَن يَكُونَ مِنَ ٱلۡمُفۡلِحِينَ ۝ 86
(67) अलबत्ता जिसने आज तौबा कर ली और ईमान ले आया और नेक अमल किए वही यह तवक़्क़ो कर सकता है कि वहाँ फ़लाह पानेवालों में से होगा।
وَرَبُّكَ يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُ وَيَخۡتَارُۗ مَا كَانَ لَهُمُ ٱلۡخِيَرَةُۚ سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 87
(68) तेरा रब पैदा करता है जो कुछ चाहता है और (वह ख़ुद ही अपने काम के लिए जिसे चाहता है) मुन्तख़ब कर लेता है, यह इन्तिख़ाब इन लोगों के करने का काम नहीं है। अल्लाह पाक है और बहुत बालातर है उस शिर्क से जो ये लोग करते हैं।