31. लुक़मान
(मक्का में उतरी, आयतें 34)
परिचय
नाम
इस सूरा के दूसरे रुकूअ (आयत 12 से 19 तक) में वे नसीहतें बयान की गई हैं जो हकीम लुक़मान ने अपने बेटे को की थीं। इसी सम्पर्क से इसका नाम लुक़मान रखा गया है।
उतरने का समय
इसकी विषय वस्तुओं पर विचार करने से स्पष्ट होता है कि यह उस समय उतरी है जब इस्लामी सन्देश को दबाने और रोकने के लिए दमन और अत्याचार का आरंभ हो चुका था, लेकिन अभी विरोध के तूफ़ान ने पूरी तरह भयानक रूप धारण नहीं किया था। इसकी निशानदेही आयत 14-15 से होती है, जिनमें नए-नए मुसलमान होनेवाले नौजवानों को बताया गया है कि माँ-बाप के हक़ तो बेशक अल्लाह के बाद सबसे बढ़कर हैं, लेकिन अगर वे तुम्हें शिर्क की ओर पलटने पर विवश करें तो उनकी यह बात कदापि न मानना।
विषय और वार्ता
इस सूरा में लोगों को शिर्क (अनेकेश्वरवाद) का निरर्थक और अनुचित होना और तौहीद (ऐकेश्वरवाद) का सत्य, उचित एवं उपयोगी होना समझाया गया है और उन्हें दावत दी गई है कि बाप-दादा की अंधी पैरवी छोड़ दें। खुले मन से उस शिक्षा पर विचार करें जो मुहम्मद (सल्ल०) जगत् के स्वामी की ओर से पेश कर रहे हैं और खुली आँखों से देखें कि हर ओर जगत् में और स्वयं उनके अपने भीतर कैसी-कैसी खुली निशानियाँ उसके सत्य होने की गवाही दे रही हैं। इस सिलसिले में यह भी बताया गया है कि यह कोई नई आवाज़ नहीं है जो दुनिया में या स्वयं अरब के इलाक़ों में पहली बार उठी हो। पहले भी जो लोग ज्ञान और बुद्धि तथा सूझ-बूझ और विवेक रखते थे, वे यही बातें कहते थे, जो आज मुहम्मद (सल्ल०) कह रहे हैं। तुम्हारे अपने ही देश में लुक़मान नामक हकीम गुज़र चुका है, जिसकी समझ-बूझ और विवेक को [तुम ख़ुद भी मानते हो।] अब देख लो कि वह किस विश्वास और किस नैतिकता की शिक्षा देता था।
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وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَشۡتَرِي لَهۡوَ ٱلۡحَدِيثِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَيَتَّخِذَهَا هُزُوًاۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ 5
(6) और इनसानों ही में से कोई ऐसा भी है जो कलामे-दिलफ़रेब ख़रीदकर लाता है,2 ताकि लोगों को अल्लाह के रास्ते से इल्म के बग़ैर भटका दे और इस रास्ते की दावत को मज़ाक़ में उड़ा दे। ऐसे लोगों के लिए सख़्त ज़लील करनेवाला अज़ाब है।
2. अस्ल अलफ़ाज़ हैं ‘लहवल-हदीस’, यानी ऐसी बात जो आदमी को अपने अन्दर मशग़ूल करके हर दूसरी चीज़़ से ग़ाफ़िल कर दे। रिवायात में बयान हुआ है कि जब नबी (सल्ल०) की तबलीग़ के असरात क़ुरैश की सारी कोशिशों के बावजूद फैलने से न रुके तो उन्होंने ईरान से रुस्तम और असफ़न्दयार की कहानियाँ मँगवाकर दास्तान गोई का सिलसिला शुरू किया और गाने-बजानेवाली लौंडियों का इन्तिज़ाम किया ताकि लोग इन चीज़ों में मशग़ूल होकर हुज़ूर (सल्ल०) की बात न सुनें।
وَإِن جَٰهَدَاكَ عَلَىٰٓ أَن تُشۡرِكَ بِي مَا لَيۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمٞ فَلَا تُطِعۡهُمَاۖ وَصَاحِبۡهُمَا فِي ٱلدُّنۡيَا مَعۡرُوفٗاۖ وَٱتَّبِعۡ سَبِيلَ مَنۡ أَنَابَ إِلَيَّۚ ثُمَّ إِلَيَّ مَرۡجِعُكُمۡ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ 14
(15) लेकिन अगर वे तुझपर दबाव डालें कि मेरे साथ तू किसी ऐसे को शरीक करे जिसे तू नहीं जानता3 तो उनकी बात हरगिज़ न मान। दुनिया में उनके साथ नेक बरताव करता रह, मगर पैरवी उस शख़्स के रास्ते की कर जिसने मेरी तरफ़ रुजूअ किया है। फिर तुम सबको पलटना मेरी ही तरफ़ है, उस वक़्त मैं तुम्हें बता दूँगा कि तुम कैसे अमल करते रहे हो।
3. यानी जो तेरे इल्म में मेरा शरीक नहीं है।
يَٰبُنَيَّ أَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ وَأۡمُرۡ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَٱنۡهَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَآ أَصَابَكَۖ إِنَّ ذَٰلِكَ مِنۡ عَزۡمِ ٱلۡأُمُورِ 16
(17) बेटा, नमाज़ क़ायम कर, नेकी का हुक्म दे, बदी से मना कर, और जो मुसीबत भी पड़े, उसपर सब्र कर। ये वे बातें हैं जिनकी बड़ी ताकीद की गई है।4
4. दूसरा मतलब यह भी हो सकता है कि यह बड़े हौसले के कामों में से है।
أَلَمۡ تَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَأَسۡبَغَ عَلَيۡكُمۡ نِعَمَهُۥ ظَٰهِرَةٗ وَبَاطِنَةٗۗ وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يُجَٰدِلُ فِي ٱللَّهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَلَا هُدٗى وَلَا كِتَٰبٖ مُّنِيرٖ 19
(20) क्या तुम लोग नहीं देखते कि अल्लाह ने ज़मीन और आसमानों की सारी चीज़ें तुम्हारी ख़िदमत के लिए मुसख़्ख़र कर रखी हैं5 और अपनी खुली और छिपी नेमतें तुमपर तमाम कर दी हैं? इसपर हाल यह है कि इनसानों में से कुछ लोग हैं जो अल्लाह के बारे में झगड़ते हैं बग़ैर इसके कि उनके पास कोई इल्म हो, या हिदायत, या कोई रौशनी दिखानेवाली किताब।
5. किसी चीज़ को किसी के लिए मुसख़्ख़र करने की दो सूरतें हैं। एक यह कि वह चीज़ उसके ताबे कर दी जाए और उसे अधिकार दे दिया जाए कि जिस तरह से चाहे उसमें तसर्रुफ़ करे और जिस तरह चाहे उसे इस्तेमाल करे। दूसरी यह कि उस चीज़ को ऐसे ज़ाबिते का पाबन्द कर दिया जाए जिसकी बदौलत वह उस शख़्स के लिए नाफ़े हो जाए और उसके मफ़ाद की ख़िदमत करती रहे। ज़मीन और आसमान की तमाम चीज़़ों को अल्लाह ने इनसान के लिए एक ही मानी में मुसख़्ख़र नहीं कर दिया है, बल्कि बाज़ चीज़़ें पहले मानी में मुसख़्ख़र की हैं और बाज़ दूसरे मानी में। मसलन— हवा, पानी, मिट्टी, आग, नबातात, खनिज पदार्थ, मवेशी वग़ैरा बेशुमार चीज़़ें पहले मानी में हमारे लिए मुसख़्ख़र हैं, और चाँद, सूरज वग़ैरा दूसरे मानी में।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱتَّبِعُواْ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ بَلۡ نَتَّبِعُ مَا وَجَدۡنَا عَلَيۡهِ ءَابَآءَنَآۚ أَوَلَوۡ كَانَ ٱلشَّيۡطَٰنُ يَدۡعُوهُمۡ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلسَّعِيرِ 20
(21) और जब उनसे कहा जाता है कि पैरवी करो, उस चीज़ की जो अल्लाह ने नाज़िल की है तो कहते हैं कि हम तो उस चीज़ की पैरवी करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है। क्या ये उन्हीं की पैरवी करेंगे, चाहे शैतान उनको भड़कती हुई आग ही की तरफ़ क्यों न बुलाता रहा हो?
وَلَوۡ أَنَّمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ مِن شَجَرَةٍ أَقۡلَٰمٞ وَٱلۡبَحۡرُ يَمُدُّهُۥ مِنۢ بَعۡدِهِۦ سَبۡعَةُ أَبۡحُرٖ مَّا نَفِدَتۡ كَلِمَٰتُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٞ 26
(27) ज़मीन में जितने दरख़्त हैं, अगर वे सब-के-सब क़लम बन जाएँ और समुन्दर (दवात बन जाए) जिसे सात और समुन्दर रोशनाई मुहय्या करें, तब भी अल्लाह की बातें (लिखने से) ख़त्म न होंगी। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त और हकीम है।
6. यही मज़मून ज़ार मुख़्तलिफ़ अलफ़ाज़ में सूरा-18 कह्फ़, आयत-109 में गुज़र चुका है। इससे यह तसव्वुर दिलाना मक़सूद है कि जो ख़ुदा इतनी बड़ी कायनात को वुजूद में लाया है कि उसकी क़ुदरत के करिश्मों की कोई हद नहीं है। उसकी ख़ुदाई में आख़िर कोई ऐसा मख़लूक़ कैसे शरीक हो सकती है।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ يُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِيٓ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى وَأَنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ 28
(29) क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में? उसने सूरज और चाँद को मुसख़्ख़र कर रखा है। सब एक वक़्ते-मुक़र्रर तक चले जा रहे हैं।7 और (क्या तुम नहीं जानते कि) जो कुछ भी तुम करते हो अल्लाह उससे बाख़बर है?
7. यानी हर चीज़ की जो मुद्दते-उम्र मुक़र्रर कर दी गई है उसी वक़्त तक वह चल रही है। कोई चीज़ भी न अज़ली है न अब्दी।
وَإِذَا غَشِيَهُم مَّوۡجٞ كَٱلظُّلَلِ دَعَوُاْ ٱللَّهَ مُخۡلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَ فَلَمَّا نَجَّىٰهُمۡ إِلَى ٱلۡبَرِّ فَمِنۡهُم مُّقۡتَصِدٞۚ وَمَا يَجۡحَدُ بِـَٔايَٰتِنَآ إِلَّا كُلُّ خَتَّارٖ كَفُورٖ 31
(32) और जब (समुन्दर में) इन लोगों पर एक लहर सायबानों की तरह छा जाती है तो ये अल्लाह को पुकारते हैं अपने दीन को बिलकुल उसी के लिए ख़ालिस करके, फिर जब वह बचाकर इन्हें ख़ुश्की तक पहुँचा देता है तो इनमें से कोई इक़तिसाद बरतता है,8 और हमारी निशानियों का इनकार नहीं करता मगर हर वह शख़्स जो ग़द्दार और नाशुक्रा है।
8. इसके दो मतलब हो सकते हैं। इक़तिसाद को अगर रास्त-रवी के मानी में लिया जाए तो इसका मतलब यह होगा कि इनमें से कोई वह वक़्त गुज़क जाने के बाद भी तौहीद पर क़ायम रहता है, और अगर इसे तवस्सुत और एतिदाल के मानी में लिया जाए तो मतलब यह होगा कि कुछ लोग अपने शिर्क और दहरियत के अक़ीदे में उस शिद्दत पर क़ायम नहीं रहते या बाज़ लोगों के अन्दर इख़्लास की वह कैफ़ियत ठण्डी पड़ जाती है जो उस वक़्त पैदा हुई थी।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡ وَٱخۡشَوۡاْ يَوۡمٗا لَّا يَجۡزِي وَالِدٌ عَن وَلَدِهِۦ وَلَا مَوۡلُودٌ هُوَ جَازٍ عَن وَالِدِهِۦ شَيۡـًٔاۚ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِٱللَّهِ ٱلۡغَرُورُ 32
(33) लोगो, बचो अपने रब के ग़ज़ब से और डरो उस दिन से जबकि कोई बाप अपने बेटे की तरफ़ से बदला न देगा और न कोई बेटा ही अपने बाप की तरफ़ से कुछ बदला देनेवाला होगा। फ़िल-वाक़े अल्लाह का वादा सच्चा है।9 पस यह दुनिया की ज़िन्दगी तुम्हें धोखे में न डाले और न धोखेबाज़ तुमको अल्लाह के मामले में धोखा देने पाए।
9. यानी क़ियामत का वादा।
إِنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ ٱلۡغَيۡثَ وَيَعۡلَمُ مَا فِي ٱلۡأَرۡحَامِۖ وَمَا تَدۡرِي نَفۡسٞ مَّاذَا تَكۡسِبُ غَدٗاۖ وَمَا تَدۡرِي نَفۡسُۢ بِأَيِّ أَرۡضٖ تَمُوتُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرُۢ 33
(34) उस घड़ी का इल्म अल्लाह ही के पास है, वही बारिश बरसाता है, वही जानता है कि माँओं के पेटों में क्या परवरिश पा रहा है, कोई मुतनफ़्फ़िस नहीं जानता कि कल वह क्या कमाई करनेवाला है और न किसी शख़्स को यह ख़बर है कि किस सरज़मीन में उसको मौत आनी है, अल्लाह ही सब कुछ जाननेवाला और बाख़बर है।