35. फ़ातिर
(मक्का में उतरी, आयतें 45)
परिचय
नाम
पहली ही आयत का शब्द 'फ़ातिर' (बनानेवाला) को इस सूरा का शीर्षक बना दिया गया है, जिसका अर्थ केवल यह है कि यह वह सूरा है जिसमें ‘फ़ातिर' शब्द आया है।
उतरने का समय
वर्णनशैली के आन्तरिक साक्ष्यों से पता चलता है कि इस सूरा के उतरने का समय शायद मक्का मुअज़्ज़मा का मध्यकाल है और उसका भी वह भाग जिसमें विरोध में काफ़ी तेज़ी आ चुकी थी।
विषय और वार्ता
वार्ता का उद्देश्य यह है कि नबी (सल्ल०) की तौहीद की दावत (एकेश्वरवादी आमंत्रण) के मुक़ाबले में जो रवैया उस समय मक्कावालों और उनके सरदारों ने अपना रखा था, उसपर नसीहत के रूप में उनको चेतावनी दी और उनकी निंदा भी की जाए और शिक्षा देने की शैली में समझाया-बुझाया भी जाए। वार्ता का सार यह है कि मूर्खो! यह नबी जिस राह की ओर तुमको बुला रहा है, उसमें तुम्हारा अपना भला है । इसपर तुम्हारा क्रोध और उसको विफल करने के लिए तुम्हारी चालें वास्तव में उसके विरुद्ध नहीं, बल्कि तुम्हारे अपने विरुद्ध पड़ रही हैं। वह जो कुछ तुमसे कह रहा है, उसपर ध्यान तो दो कि उसमें ग़लत क्या बात है? वह शिर्क (बहुदेववाद) का खंडन करता है, वह तौहीद की दावत देता है, वह तुमसे कहता है कि दुनिया की इस ज़िन्दगी के बाद एक और ज़िन्दगी है जिसमें हर एक को अपने किए का नतीजा देखना होगा। तुम ख़ुद सोचो कि इन बातों पर तुम्हारे सन्देह और अचंभे कितने आधारहीन हैं। अब अगर इन पूर्ण तर्कसंगत और सत्य पर आधारित बातों को तुम नहीं मानते हो, तो इसमें नबी की क्या हानि है। शामत तो तुम्हारी अपनी ही आएगी। वार्ता-क्रम में बार-बार नबी (सल्ल०) को तसल्ली दी गई है कि आप जिस नसीहत का हक़ पूरी तरह अदा कर रहे हैं, तो गुमराही पर आग्रह करनेवालों के सीधा रास्ता स्वीकार न करने की कोई ज़िम्मेदारी आपके ऊपर नहीं आती। इसके साथ आपको यह भी समझा दिया गया है कि जो लोग नहीं मानना चाहते, उनके रवैये पर न आप दुखी हों और न उन्हें सीधे रास्ते पर लाने की चिन्ता में अपनी जान घुलाएँ, इसके बजाय आप अपना ध्यान उन लोगों पर लगाएँ जो बात सुनने के लिए तैयार हैं। ईमान अपनानेवालों को भी इसी सिलसिले में बड़ी शुभ सूचनाएँ दी गई हैं, ताकि उनके दिल मज़बूत हों और वे अल्लाह के वादों पर भरोसा करके सत्य-मार्ग पर जमे रहें।
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وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡبَحۡرَانِ هَٰذَا عَذۡبٞ فُرَاتٞ سَآئِغٞ شَرَابُهُۥ وَهَٰذَا مِلۡحٌ أُجَاجٞۖ وَمِن كُلّٖ تَأۡكُلُونَ لَحۡمٗا طَرِيّٗا وَتَسۡتَخۡرِجُونَ حِلۡيَةٗ تَلۡبَسُونَهَاۖ وَتَرَى ٱلۡفُلۡكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ 8
(12) और पानी के दोनों ज़ख़ीरे यकसाँ नहीं हैं। एक मीठा और प्यास बुझानेवाला है, पीने में ख़ुशगवार, और दूसरा सख़्त खारा की हल्क़ छील दे। मगर दोनों से तुम तरो-ताज़ा गोश्त हासिल करते हो, पानी के लिए ज़ीनत का सामान निकालते हो, और उसी पानी में तुम देखते हो कि कश्तियाँ उसका सीना चीरती चली जा रही हैं ताकि तुम अल्लाह का फ़ज़्ल तलाश करो और उसके शुक्रगुज़ार बनो।
مَن كَانَ يُرِيدُ ٱلۡعِزَّةَ فَلِلَّهِ ٱلۡعِزَّةُ جَمِيعًاۚ إِلَيۡهِ يَصۡعَدُ ٱلۡكَلِمُ ٱلطَّيِّبُ وَٱلۡعَمَلُ ٱلصَّٰلِحُ يَرۡفَعُهُۥۚ وَٱلَّذِينَ يَمۡكُرُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۖ وَمَكۡرُ أُوْلَٰٓئِكَ هُوَ يَبُورُ 11
(10) जो कोई इज़्ज़त चाहता हो उसे मालूम होना चाहिए कि इज़्ज़त सारी-की-सारी अल्लाह की है। उसके यहाँ जो चीज़ ऊपर चढ़ती है वह सिर्फ़ पाकीज़ा क़ौल है, और अमले-सॉलेह उसको ऊपर चढ़ाता है। रहे वे लोग जो बेहूदा चालबाज़ियाँ करते हैं, उनके लिए सख़्त अज़ाब है और उनका मक्र ख़ुद ही ग़ारत होनेवाला है।
وَٱللَّهُ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٖ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةٖ ثُمَّ جَعَلَكُمۡ أَزۡوَٰجٗاۚ وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَمَا يُعَمَّرُ مِن مُّعَمَّرٖ وَلَا يُنقَصُ مِنۡ عُمُرِهِۦٓ إِلَّا فِي كِتَٰبٍۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٞ 12
(11) अल्लाह ने तुमको मिट्टी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से, फिर तुम्हारे जोड़े बना दिए (यानी मर्द और औरत)। कोई औरत हामिला नहीं होती और न बच्चा जनती है मगर यह सब कुछ अल्लाह के इल्म में होता है। कोई उम्र पानेवाला उम्र नहीं पाता और न किसी की उम्र में कुछ कमी होती है मगर ये सब कुछ एक किताब में लिखा होता है। अल्लाह के लिए यह बहुत आसान काम है।
وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ وَإِن تَدۡعُ مُثۡقَلَةٌ إِلَىٰ حِمۡلِهَا لَا يُحۡمَلۡ مِنۡهُ شَيۡءٞ وَلَوۡ كَانَ ذَا قُرۡبَىٰٓۗ إِنَّمَا تُنذِرُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُم بِٱلۡغَيۡبِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفۡسِهِۦۚ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلۡمَصِيرُ 18
(18) कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। और अगर कोई लदा हुआ नफ़्स अपना बोझ उठाने के लिए पुकारेगा तो उसके बार का एक अदना हिस्सा भी बटाने के लिए कोई न आएगा, चाहे वह क़रीब-तरीन रिश्तेदार ही क्यों न हो। (ऐ नबी!) तुम सिर्फ़ उन्हीं लोगों को मुतनब्बेह कर सकते हो जो बेदेखे अपने रब से डरते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं। जो शख़्स भी पाकीज़गी इख़्तियार करता है अपनी ही भलाई के लिए करता है। और पलटना सबको अल्लाह ही की तरफ़ है।
ثُمَّ أَوۡرَثۡنَا ٱلۡكِتَٰبَ ٱلَّذِينَ ٱصۡطَفَيۡنَا مِنۡ عِبَادِنَاۖ فَمِنۡهُمۡ ظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ وَمِنۡهُم مُّقۡتَصِدٞ وَمِنۡهُمۡ سَابِقُۢ بِٱلۡخَيۡرَٰتِ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡكَبِيرُ 19
(32) फिर हमने इस किताब का वारिस बना दिया उन लोगों को जिन्हें हमने (इस विरासत के लिए) अपने बन्दों में से चुन लिया। अब कोई तो उनमें से अपने नफ़्स पर ज़ुल्म करनेवाला है, और कोई बीच की रास है, और कोई अल्लाह के इज़्न से नेकियों में सबक़त करनेवाला है, यही बहुत बड़ा फ़ज़ल है।
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَحۡيَآءُ وَلَا ٱلۡأَمۡوَٰتُۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُسۡمِعُ مَن يَشَآءُۖ وَمَآ أَنتَ بِمُسۡمِعٖ مَّن فِي ٱلۡقُبُورِ 26
(22) और न ज़िन्दे और मुर्दे मुसावी हैं। अल्लाह जिसे चाहता है सुनवाता है, मगर (ऐ नबी!) तुम उन लोगों को नहीं सुना सकते जो क़ब्रों में मदफ़्न हैं।1
1. यानी अल्लाह की मशीयत की तो बात ही दूसरी है, वह चाहे तो पत्थरों को समाअत बख़्श दे, लेकिन रसूल के बस का यह काम नहीं है कि जिन लोगों के सीने ज़मीर के मदफ़न बन चुके हों उनके दिलों में वह अपनी बात उतार सके और जो बात सुनना ही न चाहते हों उनके बहरे कानों को सदा-ए-हक़ सुना सके। वह तो उन्हीं लोगों को सुना सकता है जो माक़ूल बात पर कान धरने के लिए तैयार हों।
وَهُمۡ يَصۡطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَآ أَخۡرِجۡنَا نَعۡمَلۡ صَٰلِحًا غَيۡرَ ٱلَّذِي كُنَّا نَعۡمَلُۚ أَوَلَمۡ نُعَمِّرۡكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَآءَكُمُ ٱلنَّذِيرُۖ فَذُوقُواْ فَمَا لِلظَّٰلِمِينَ مِن نَّصِيرٍ 29
(37) वे वहाँ चीख़-चीख़कर कहेंगे कि “ऐ हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल ले ताकि हम नेक अमल करें उन आमाल से मुख़्तलिफ़ जो पहले करते रहे थे।” (उन्हें जवाब दिया जाएगा) “क्या हमने तुमको इतनी उम्र न दी थी जिसमें कोई सबक़ लेना चाहता तो सबक़ ले सकता था? और तुम्हारे पास मुतनब्बेह करनेवाला भी आ चुका था। अब मज़ा चखो, ज़ालिमों का यहाँ कोई मददगार नहीं है।”
هُوَ ٱلَّذِي جَعَلَكُمۡ خَلَٰٓئِفَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ فَمَن كَفَرَ فَعَلَيۡهِ كُفۡرُهُۥۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ كُفۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ إِلَّا مَقۡتٗاۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ كُفۡرُهُمۡ إِلَّا خَسَارٗا 33
(39) वही तो है जिसने तुमको ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाया है। अब जो कोई कुफ़्र करता है उसके कुफ़्र का वबाल उसी पर है, और काफ़िरों को उनका कुफ़्र इसके सिवा कोई तरक़्क़ी नहीं देता कि उनके रब का ग़ज़ब उनपर ज़्यादा-से-ज़्यादा भड़कता चला जाता है। काफ़िरों के लिए ख़सारे में इज़ाफ़े के सिवा कोई तरक्की नहीं।
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ شُرَكَآءَكُمُ ٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُواْ مِنَ ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ لَهُمۡ شِرۡكٞ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ أَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُمۡ كِتَٰبٗا فَهُمۡ عَلَىٰ بَيِّنَتٖ مِّنۡهُۚ بَلۡ إِن يَعِدُ ٱلظَّٰلِمُونَ بَعۡضُهُم بَعۡضًا إِلَّا غُرُورًا 35
(40) (ऐ नबी!) इनसे कहो, “कभी तुमने देखा भी है अपने उन शरीकों को जिन्हें तुम ख़ुदा को छोड़कर पुकारा करते हो? मुझे बताओ, उन्होंने ज़मीन में क्या पैदा किया है? या आसमानों में उनकी क्या शिर्कत है?” (अगर ये नहीं बता सकते तो इनसे पूछो) “क्या हमने इन्हें कोई तहरीर लिखकर दी है जिसकी बिना पर ये (अपने इस शिर्क के लिए) कोई साफ़ सनद रखते हों?” नहीं, बल्कि ये ज़ालिम एक-दूसरे को मह्ज़ फ़रेब के झाँसे दिए जा रहे हैं।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ وَٱلدَّوَآبِّ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ مُخۡتَلِفٌ أَلۡوَٰنُهُۥ كَذَٰلِكَۗ إِنَّمَا يَخۡشَى ٱللَّهَ مِنۡ عِبَادِهِ ٱلۡعُلَمَٰٓؤُاْۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ 38
(28) और इसी तरह इनसानों और जानवरों और मवेशियों के रंग भी मुख़्तलिफ़ हैं। हक़ीक़त यह है कि अल्लाह के बन्दों में से सिर्फ़ इल्म रखनेवाले लोग ही उससे डरते हैं2। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त और दरगुज़र फ़रमानेवाला है।
2. इससे मालूम हुआ कि आलिम मह्ज़ किताबख़्वाँ को नहीं कहते, बल्कि आलिम वह है जो ख़ुदा से डरनेवाला हो।
ٱسۡتِكۡبَارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَكۡرَ ٱلسَّيِّيِٕۚ وَلَا يَحِيقُ ٱلۡمَكۡرُ ٱلسَّيِّئُ إِلَّا بِأَهۡلِهِۦۚ فَهَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ ٱلۡأَوَّلِينَۚ فَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَبۡدِيلٗاۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَحۡوِيلًا 41
(43) ये ज़मीन में और ज़्यादा सरकशी करने लगे और बुरी-पुरी चालें चलने लगे, हालाँकि बुरी चालें अपने चलनेवालों ही को ले बैठती हैं। अब क्या ये लोग इसका इन्तिज़ार कर रहे हैं कि पिछली क़ौमों के साथ अल्लाह का जो तरीक़ा रहा है वही इनके साथ भी बरता जाए? यही बात है तो तुम अल्लाह के तरीक़े में हरगिज़ कोई तबदीली न पाओगे और तुम कभी न देखोगे कि अल्लाह की सुन्नत को उसके मुक़र्रर रास्ते से कोई ताक़त फेर सकती है।
أَوَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ وَكَانُوٓاْ أَشَدَّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُعۡجِزَهُۥ مِن شَيۡءٖ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَلَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَلِيمٗا قَدِيرٗا 43
(44) क्या ये लोग ज़मीन में कभी चले-फिरे नहीं हैं कि इन्हें उन लोगों का अंजाम नजर आता जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं और इनसे बहुत ज़्यादा ताक़तवर थे? अल्लाह को कोई चीज़ आजिज़ करनेवाली नहीं है, न आसमानों में और न ज़मीन में। वह सब कुछ जानता है और हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।