38. सॉद
(मक्का में उतरी, आयतें 88)
परिचय
नाम
इस सूरा के शुरू ही के अक्षर 'सॉद' को इस सूरा का नाम दिया गया है।
उतरने का समय
जैसा की आगे चलकर बताया जाएगा कि कुछ रिवायतों के अनुसार यह सूरा उस समय उतरी थी, जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मक्का मुअज़्ज़मा में खुल्लम-खुल्ला दावत (आह्वान) का आरंभ किया था। कुछ दूसरी रिवायतें इसके उतरने को हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने के बाद की घटना बताती हैं। रिवायतों के एक और क्रम से मालूम होता है कि इसके उतरने का समय नुबूवत का दसवाँ या ग्यारहवाँ साल है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इमाम अहमद, नसई और तिर्मिज़ी आदि ने जो रिवायतें नक़्ल की हैं, उनका सारांश यह है कि जब अबू-तालिब बीमार हुए और कुरैश के सरदारों ने महसूस किया कि अब यह उनका अन्तिम समय है, तो उन्होंने आपस में मश्वरा किया कि चलकर उनसे बात करनी चाहिए। वे हमारा और अपने भतीजे का झगड़ा चुका जाएँ तो अच्छा हो। इस राय पर सब सहमत हो गए और क़ुरैश के लगभग पच्चीस सरदार, जिनमें अबू-जहल, अबू-सुफ़ियान, उमैया-बिन-ख़ल्फ़, आस-बिन-वाइल, अस्वद-बिन-मुत्तलिब, उक़बा-बिन-अबी-मुऐत, उतबा और शैबा शामिल थे, अबू-तालिब के पास पहुँचे। उन लोगों ने पहले तो अपनी सामान्य नीति के मुताबिक़ नबी (सल्ल०) के विरुद्ध अपनी शिकायतें बयान की, फिर कहा कि हम आपके सामने एक न्याय की बात रखने आए हैं। आपका भतीजा हमें हमारे दीन पर छोड़ दे और हम उसे उसके दीन पर छोड़ देते हैं, लेकिन वह हमारे उपास्यों का विरोध और उनकी निंदा न करे। इस शर्त पर आप हमसे उसका समझौता करा दें। अबू-तालिब ने नबी (सल्ल०) को बुलाया और आप (सल्ल०) को वह बात बताई जो क़ुरैश के सरदारों ने उनसे कही थी। नबी (सल्ल०) ने उत्तर में कहा, "चचा जान! मैं तो इनके सामने एक ऐसी बात पेश करता हूँ जिसे अगर ये मान लें तो अरब इनके अधीन हो जाए और ग़ैर-अरब इन्हें कर (Tax) देने लग जाएँ।" उन्होंने पूछा, “वह बात क्या है ?" आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, "ला इला-ह इल्लल्लाह" (नहीं है कोई उपास्य सिवाय अल्लाह के)। इसपर वे सब एक साथ उठ खड़े हुए और वे बातें कहते हुए निकल गए जो इस सूरा के शुरू के हिस्से में अल्लाह ने नक़्ल की हैं। इब्ने-सअद की रिवायत के अनुसार यह अबू-तालिब के मृत्यु-रोग की नहीं, बल्कि उस समय की घटना है, जब नबी (सल्ल०) ने सामान्य रूप से लोगों को सत्य की ओर बुलाना शुरू कर दिया था और मक्का में बराबर ये ख़बरें फ़ैलनी शुरू हो गई थीं कि आज फ़ुलाँ आदमी मुसलमान हो गया और कल फ़ुलाँ। ज़मख़शरी, राजी, नेशाबूरी (नेशापूरी) और कुछ दूसरे टीकाकार कहते हैं कि यह प्रतिनिधिमंडल अबूृ-तालिब के पास उस समय गया था जब हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने पर क़ुरैश के सरदार बौखला गए थे। (मानो यह हबशा की हिजरत के बाद की घटना है।)
विषय और वार्ता
ऊपर जिस बैठक का उल्लेख किया गया है, उसकी समीक्षा करते हुए इस सूरा की शुरुआत हुई है। इस्लाम विरोधियों और नबी (सल्ल०) की बातचीत को आधार बनाकर अल्लाह ने बताया है कि इन लोगों के इंकार का मूल कारण इस्लामी दावत की कोई कमी नहीं है, बल्कि उनका अपना घमंड, जलन और अंधी पैरवी पर दुराग्रह है। इसके बाद अल्लाह ने सूरा के शुरू के हिस्से में भी और आख़िरी वाक्यों में भी इस्लाम विरोधियों को साफ़-साफ़ चेतावनी दी है कि जिस आदमी का आज तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो, बहुत जल्द वही ग़ालिब आकर रहेगा, और वह समय दूर नहीं जब उसके आगे तुम सब नतमस्तक नज़र आओगे। फिर बराबर नौ पैग़म्बरों का उल्लेख करके, जिनमें हज़रत दाऊद और सुलैमान (अलैहि०) का क़िस्सा अधिक विस्तार से है, अल्लाह ने यह बात सुननेवालों के मन में बिठाई है कि उसके न्याय का क़ानून बिल्कुल बे-लाग है। ग़लत बात चाहे कोई भी करे, वह उसपर पकड़ करता है, और उसके यहाँ वही लोग पसन्द किए जाते हैं जो ग़लती पर हठ न करें, बल्कि उससे अवगत होते ही तौबा कर लें। इसके बाद आज्ञाकारी बन्दों और सरकश बन्दों के उस अंजाम का चित्र खींचा गया है जो वे परलोक में देखनेवाले हैं। अन्त में आदम (अलैहि०) और इबलीस के क़िस्से का उल्लेख किया गया है और उसका अभिप्राय क़ुरैश के इस्लाम विरोधियों को यह बताना है कि मुहम्मद (सल्ल.) के आगे झुकने से जो अहंकार तुम्हारे रास्ते की रुकावट बन रहा है, वही अहंकार आदम के आगे झुकने में इबलीस के लिए भी रुकावट बना था। इसलिए जो अंजाम इबलीस का होना है, वही अन्ततः तुम्हारा भी होना है।
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قَالَ لَقَدۡ ظَلَمَكَ بِسُؤَالِ نَعۡجَتِكَ إِلَىٰ نِعَاجِهِۦۖ وَإِنَّ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلۡخُلَطَآءِ لَيَبۡغِي بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٍ إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَقَلِيلٞ مَّا هُمۡۗ وَظَنَّ دَاوُۥدُ أَنَّمَا فَتَنَّٰهُ فَٱسۡتَغۡفَرَ رَبَّهُۥ وَخَرَّۤ رَاكِعٗاۤ وَأَنَابَ۩ 16
(24) दाऊद ने जवाब दिया, “इस शख़्स ने अपनी दुंबियों के साथ तेरी दुंबी मिला लेने का मुतालबा करके यक़ीनन तुझपर ज़ुल्म किया और वाक़िआ यह है कि मिल-जुलकर साथ रहनेवाले लोग अकसर एक-दूसरे पर ज़्यादतियाँ करते रहते हैं, बस वही लोग इससे बचे हुए हैं जो ईमान रखते और अमले-सॉलेह करते हैं, और ऐसे लोग कम ही हैं।” (यह बात कहते-कहते दाऊद समझ गया कि यह तो हमने दरअस्ल उसकी आज़माइश की है चुनाँचे, उसने अपने रब से माफ़ी माँगी और सजदे में गिर गया और रुजूअ कर लिया।
فَغَفَرۡنَا لَهُۥ ذَٰلِكَۖ وَإِنَّ لَهُۥ عِندَنَا لَزُلۡفَىٰ وَحُسۡنَ مَـَٔابٖ 17
(25) तब हमने उसका वह क़ुसूर माफ़ किया6 और यक़ीनन हमारे यहाँ उसके लिए तक़र्रुब का मक़ाम और बेहतर अंजाम है।
6. इससे मालूम हुआ कि हज़रत दाऊद (अलैहि०) से क़ुसूर तो ज़रूर हुआ था, और वह कोई ऐसा क़ुसूर था जो दुबियोंवाले मुक़द्दमे से किसी तरह की मुमासलत रखता था, इसी लिए उसका फ़ैसला सुनाते हुए मअन उनको यह ख़याल आया कि यह मेरी आज़माइश हो रही है, लेकिन उस क़ुसूर की नौईयत ऐसी शदीद न थी कि उसे माफ़ न किया जाता, या अगर माफ़ किया जाता तो वे अपने मर्तबा-ए-बलन्द से गिरा दिए जाते। अल्लाह तआला यहाँ ख़ुद तसरीह फ़रमा रहा है कि जब उन्होंने सजदे में गिरकर तौबा की तो न सिर्फ़ यह कि उन्हें माफ़ कर दिया गया, बल्कि दुनिया व आख़िरत में उनको जो बलन्द मक़ाम हासिल था उसमें भी कोई फ़र्क़ न आया।
أَءُنزِلَ عَلَيۡهِ ٱلذِّكۡرُ مِنۢ بَيۡنِنَاۚ بَلۡ هُمۡ فِي شَكّٖ مِّن ذِكۡرِيۚ بَل لَّمَّا يَذُوقُواْ عَذَابِ 38
(8) क्या हमारे दरमियान बस यही एक शख़्स रह गया था जिसपर अल्लाह का ज़िक्र नाज़िल कर दिया गया?” अस्ल बात यह है कि ये मेरे ‘ज़िक्र’ पर शक कर रहे हैं,3 और ये सारी बातें इसलिए कर रहे है कि इन्होंने मेरे अज़ाब का मज़ा चखा नहीं है।
3. ब-अलफ़ाज़े-दीगर अल्लाह तआला फ़रमाता है कि ऐ मुहम्मद! वे लोग दरअसल तुम्हें नहीं झुठला रहे है, बल्कि मुझे झुठला रहे हैं, इन्हें शक तुम्हारी सदाक़त पर नहीं है मेरी तालीमात पर है।
وَٱذۡكُرۡ عَبۡدَنَآ أَيُّوبَ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَسَّنِيَ ٱلشَّيۡطَٰنُ بِنُصۡبٖ وَعَذَابٍ 56
(41) और हमारे बन्दे अय्यूब का ज़िक्र करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि शैतान ने मुझे तकलीफ़ और अज़ाब में डाल दिया है।8
8. इसका अह मतलब नहीं है कि शैतान ने मुझे बीमारी में मुब्तला कर दिया है और मेरे ऊपर मसाइब नाज़िल कर दिए हैं, बल्कि इसका सही मतलब यह है कि बीमारी की शिद्दत, माल व दौलत के ज़ियाअ, और अइज़्ज़ा व अक़रिहबा के मुँह मोड़ लेने से मैं जिस तकलीफ़ और अज़ाब में मुब्तला हूँ उससे बढ़कर तकलीफ़ और अज़ाब मेरे लिए यह है कि शैतान अपने वसवसों से मुझे तंग कर रहा है, वह इन हालात में मुझे अपने रब से मायूस करने की कोशिश करता है, मुझे अपने रब का नाशुक्रा बनाना चाहता है और इस बात के दर-पै है कि मैं दामने-सब्र हाथ से छोड़ बैठूँ।
وَخُذۡ بِيَدِكَ ضِغۡثٗا فَٱضۡرِب بِّهِۦ وَلَا تَحۡنَثۡۗ إِنَّا وَجَدۡنَٰهُ صَابِرٗاۚ نِّعۡمَ ٱلۡعَبۡدُ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٞ 62
(44) और अक़्ल व फ़िक्र रखनेवालों के लिए दर्स के तौर पर, (और हमने उससे कहा) “तिनकों का एक मुट्ठा ले और उससे मार दे, अपनी क़सम न तोड़।”9 हमने उसे साबिर पाया, बेहतरीन बन्दा, अपने रब की तरफ़ बहुत रुजूअ करनेवाला।
9. इन अलफा़ज़ पर ग़ौर करने से यह बात साफ़ ज़ाहिर होती है कि हज़रत अय्यूब (अलैहि०) ने बीमारी की हालत में नाराज़ होकर किसी को मारने की क़सम खाई थी (रिवायात यह है कि बीवी को मारने की क़सम खाई थी) और इस क़सम ही में उन्होंने यह भी कहा था कि तुझे इतने कोड़े मारूँगा। जब अल्लाह तआला ने उनको सेहते-कामिला अता फ़रमा दी और हालते-मरज़ का वह ग़ुस्सा दूर हो गया, जिसमें यह क़सम खाई गई थी, तो उनको यह परेशानी लाहिक़ हुई कि क़सम पूरी करता हूँ तो ख़ाह-मख़ाह एक बेगुनाह को मारना पड़ेगा, और क़सम तोड़ता हूँ तो यह भी एक गुनाह का इर्तिकाब है। इस मुशकिल से अल्लाह तआला ने उनको इस तरह निकाला कि उन्हें हुक्म दिया, एक झाड़ू लो जिसमें उत्तने हो तिनके हों जितने कोड़े तुमने मारने की क़सम खाई थी, और उस झाड़ू से उस शख़्स को बस एक ज़र्ब लगा दो ताकि तुम्हारी क़सम भी पूरी हो जाए और उसे नारवा तकलीफ़ भी न पहुँचे।