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سُورَةُ الجَاثِيَةِ

45. अल-जासिया

(मक्का में उतरी, आयतें 37)

परिचय

नाम

आयत 28 के वाक्यांश ‘व तरा कुल-ल उम्मतिन जासिया' अर्थात् “उस समय तुम हर गिरोह को घुटनों के बल गिरा (जासिया) देखोगे,” से लिया गया है। मतलब यह है कि यह वह सूरा है जिसमें शब्द 'जासिया’ आया है।

उतरने का समय

इसकी विषय-वस्तुओं से साफ़ महसूस होता है कि यह सूरा-44 अद-दुखान के बाद निकटवर्ती समय में उतरी है। इन दोनों सूरतों की विषय-वस्तुओं में ऐसी एकरूपता पाई जाती है कि जिससे ये दोनों सूरतें जुड़वाँ महसूस होती हैं।

विषय और वार्ता

इसका विषय तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत (परलोकवाद) के बारे में मक्का के इस्लाम-विरोधियों के सन्देहों और आपत्तियों का उत्तर देना और [उनके विरोधात्मक] रवैये पर उनको सचेत करना है। वार्ता की शुरुआत एकेश्वरवाद के प्रमाणों से की गई है। इस सिलसिले में इंसान के अपने अस्तित्त्व से लेकर ज़मीन और आसमान तक हर ओर फैली हुई अनगिनत निशानियों की ओर संकेत करके बताया गया है कि तुम जिधर भी दृष्टि उठाकर देखो, हर चीज़ उसी तौहीद की गवाही दे रही है जिसे मानने से तुम इंकार कर रहे हो। आगे चलकर आयत 12-13 में फिर कहा गया है कि इंसान इस दुनिया में जितनी चीज़ों से काम ले रहा है और जो अनगिनत चीज़ें और शक्तियाँ इस जगत् में उसके हित में सेवारत हैं [वे सब की सब एक ख़ुदा की दी हुई और वशीभूत की हुई हैं]। कोई व्यक्ति सही सोच-विचार से काम ले तो उसकी अपनी बुद्धि ही पुकार उठेगी कि वही अल्लाह इंसान का उपकारी है और उसी का यह अधिकार है कि इंसान उसका आभारी हो। इसके बाद मक्का के इस्लाम-विरोधियों की उस हठधर्मी, घमंड, उपहास और कुफ़्र के लिए दुराग्रह पर कड़ी निंदा की गई है जिससे वे क़ुरआन की दावत (आह्वान) का मुक़ाबला कर रहे थे, और उन्हें सचेत किया गया है कि यह क़ुरआन [एक बहुत बड़ी नेमत (वरदान) है, इसे रद्द कर देने का अंजाम अत्यन्त विनाशकारी होगा] । इसी सम्बन्ध में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) की पैरवी करनेवालों को आदेश दिया गया है कि ये अल्लाह से निडर लोग तुम्हारे साथ जो दुर्व्यवहार कर रहे हैं, उनपर क्षमा और सहनशीलता से काम लो। तुम धैर्य से काम लोगे तो अल्लाह ख़ुद उनसे निपटेगा और तुम्हें इस धैर्य का पुरस्कार देगा। फिर आख़िरत के अक़ीदे (धारणा) के बारे में इस्लाम-विरोधियों के अज्ञानपूर्ण विचारों की समीक्षा की गई है और उनके इस दावे के खंडन में कि मरने के बाद फिर कोई दूसरी जिंदगी नहीं है, अल्लाह ने निरन्तर कुछ प्रमाण दिए हैं। ये प्रमाण देने के बाद अल्लाह पूरे ज़ोर के साथ कहता है कि जिस तरह तुम आप से आप ज़िन्दा नहीं हो गए हो, बल्कि हमारे ज़िन्दा करने से ज़िन्दा हुए हो, इसी तरह तुम आप से आप नहीं मर जाते, बल्कि हमारे मौत देने से मरते हो, और एक वक़्त निश्चित रूप से ऐसा आना है, जब तुम सब एक ही समय में जमा किए जाओगे। जब वह समय आ जाएगा तो तुम स्वयं ही अपनी आँखों से देख लोगे कि अपने ख़ुदा के सामने पेश हो और तुम्हारा पूरा आमाल-नामा (कर्मपत्र) बिना घटाए-बढ़ाए तैयार है जो तुम्हारे एक-एक करतूत की गवाही दे रहा है। उस समय तुमको मालूम हो जाएगा कि आख़िरत के अक़ीदे (धारणा) का यह इंकार और उसका यह मज़ाक़ जो तुम उड़ा रहे हो, तुम्हें कितना महँगा पड़ा है।

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سُورَةُ الجَاثِيَةِ
45. अल-जासिया
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
حمٓ
(1) हा० मीम०।
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ ۝ 1
(2) इस किताब का नुज़ूल अल्लाह की तरफ़ से है जो ज़बरदस्त और हकीम है।
إِنَّ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ لَأٓيَٰتٖ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 2
(3) हक़ीकत यह है कि आसमानों और ज़मीन में बेशुमार निशानियाँ हैं ईमान लानेवालों के लिए।
وَءَاتَيۡنَٰهُم بَيِّنَٰتٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِۖ فَمَا ٱخۡتَلَفُوٓاْ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلۡعِلۡمُ بَغۡيَۢا بَيۡنَهُمۡۚ إِنَّ رَبَّكَ يَقۡضِي بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ فِيمَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 3
(17) और दीन के मामले में उन्हें वाज़ेह हिदायात दे दीं। फिर जो इख़्तिलाफ़ उनके दरमियान रूनुमा हुआ वह (नावाक़फ़ियत की वजह से नहीं बल्कि) इल्म आ जाने के बाद हुआ और इस बिना पर हुआ कि वे आपस में एक-दूसरे पर ज़्यादती करना चाहते थे। अल्लाह क़ियामत के रोज़ उन मामलात का फ़ैसला फ़रमा देगा जिनमें इख़्तिलाफ़ करते रहे हैं।
وَفِي خَلۡقِكُمۡ وَمَا يَبُثُّ مِن دَآبَّةٍ ءَايَٰتٞ لِّقَوۡمٖ يُوقِنُونَ ۝ 4
(4) और तुम्हारी अपनी पैदाइश मैं और उन हैवानात में जिनको अल्लाह (ज़मीन में) फैला रहा है, बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो यक़ीन लानेवाले हैं
ثُمَّ جَعَلۡنَٰكَ عَلَىٰ شَرِيعَةٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِ فَٱتَّبِعۡهَا وَلَا تَتَّبِعۡ أَهۡوَآءَ ٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 5
(18) इसके बाद अब (ऐ नबी!) हमने तुमको दीन के मामले में एक साफ़ शाहराह (शरीअत) पर क़ायम किया है। लिहाज़ा तुन इसी पर चलो और उन लोगों की ख़ाहिशात का इत्तिबाअ न करो जो इल्म नहीं रखते।
وَٱخۡتِلَٰفِ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مِن رِّزۡقٖ فَأَحۡيَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَا وَتَصۡرِيفِ ٱلرِّيَٰحِ ءَايَٰتٞ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ ۝ 6
(5) और शब व रोज़ के फ़र्क़ व इख़्तिलाफ़ में और उस रिज़्क़ में जिसे अल्लाह आसमान से नाज़िल फ़रमाता है फिर उसके ज़रिए से मुर्दा ज़मीन को जिला उठाता है, और हवाओं की गरदिश में बहुत-सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो अक़्ल से काम लेते हैं।
إِنَّهُمۡ لَن يُغۡنُواْ عَنكَ مِنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۚ وَإِنَّ ٱلظَّٰلِمِينَ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِيَآءُ بَعۡضٖۖ وَٱللَّهُ وَلِيُّ ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 7
(19) अल्लाह के मुक़ाबले में वे तुम्हारे कुछ भी काम नहीं आ सकते।2 ज़ालिम लोग एक-दूसरे के साथी हैं और मुत्तक़ियों का साथी अल्लाह है।
2. यानी अगर तुम उन्हें राज़ी करने के लिए अल्लाह के दीन में किसी क़िस्म का रद्दो-बदल करोगे तो अल्लाह के मुवाख़ज़े से वे तुम्हें न बचा सकेंगे।
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَيۡكَ بِٱلۡحَقِّۖ فَبِأَيِّ حَدِيثِۭ بَعۡدَ ٱللَّهِ وَءَايَٰتِهِۦ يُؤۡمِنُونَ ۝ 8
(6) ये अल्लाह की निशानियाँ हैं जिन्हें हम तुम्हारे सामने ठीक-ठीक बयान कर रहे हैं। अब आख़िर अल्लाह और उसकी आयात के बाद और कौन-सी बात है जिसपर ये लोग ईमान लाएँगे।
هَٰذَا بَصَٰٓئِرُ لِلنَّاسِ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٞ لِّقَوۡمٖ يُوقِنُونَ ۝ 9
(20) ये बसीरत की रौशनियाँ हैं सब लोगों के लिए और हिदायत और रहमत उन लोगों के लिए जो यक़ीन लाएँ।
وَيۡلٞ لِّكُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٖ ۝ 10
(7) तबाही है हर उस झूठे बद-आमाल शख़्स के लिए
وَقِيلَ ٱلۡيَوۡمَ نَنسَىٰكُمۡ كَمَا نَسِيتُمۡ لِقَآءَ يَوۡمِكُمۡ هَٰذَا وَمَأۡوَىٰكُمُ ٱلنَّارُ وَمَا لَكُم مِّن نَّٰصِرِينَ ۝ 11
(34) और उनसे कह दिया जाएगा कि “आज हम भी उसी तरह तुम्हें भुलाए देते हैं जिस तरह तुम इस दिन की मुलाक़ात को भूल गए थे। तुम्हारा ठिकाना अब दोज़ख़ है और कोई तुम्हारी मदद करनेवाला नहीं है।
أَمۡ حَسِبَ ٱلَّذِينَ ٱجۡتَرَحُواْ ٱلسَّيِّـَٔاتِ أَن نَّجۡعَلَهُمۡ كَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَوَآءٗ مَّحۡيَاهُمۡ وَمَمَاتُهُمۡۚ سَآءَ مَا يَحۡكُمُونَ ۝ 12
(21) क्या वे लोग जिन्होंने बुराइयों का इरतिकाब किया है यह समझे बैठे हैं कि हम उन्हें और ईमान लानेवालों और नेक अमल करनेवालों को एक जैसा कर देंगे कि उनका जीना और मरना यकसाँ हो जाए? बहुत बुरे हुक्म हैं जो ये लोग लगाते हैं!
يَسۡمَعُ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِ ثُمَّ يُصِرُّ مُسۡتَكۡبِرٗا كَأَن لَّمۡ يَسۡمَعۡهَاۖ فَبَشِّرۡهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٖ ۝ 13
(8) जिसके सामने अल्लाह की आयात पढ़ी जाती हैं, और वह उनको सुनता है, फिर पूरे ग़ुरुर के साथ अपने कुफ़्र पर इस तरह अड़ा रहता है कि गोया उसने उनको सुना ही नहीं। ऐसे शख़्स को दर्दनाक अज़ाब का मुज़दा सुना दो।
ذَٰلِكُم بِأَنَّكُمُ ٱتَّخَذۡتُمۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ هُزُوٗا وَغَرَّتۡكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَاۚ فَٱلۡيَوۡمَ لَا يُخۡرَجُونَ مِنۡهَا وَلَا هُمۡ يُسۡتَعۡتَبُونَ ۝ 14
(35) यह तुम्हारा अंजाम इसलिए हुआ है कि तुमने अल्लाह की आयात का मज़ाक़ बना लिया था और तुम्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने धोखे में डाल दिया था। लिहाज़ा आज न ये लोग दोज़ख़ से निकाले जाएँगे और न इनसे कहा जाएगा कि माफ़ी माँगकर अपने रब को राज़ी करो।”4
4. यह आख़िरी फ़िक़रा इस अंदाज़ में है जैसे कोई आक़ा अपने कुछ ख़ादिमों को डाँटने के बाद दूसरों से ख़िताब करके कहता है कि अच्छा, अब इन नालायक़ों की यह सज़ा है।
وَخَلَقَ ٱللَّهُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّ وَلِتُجۡزَىٰ كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 15
(22) अल्लाह ने तो आसमानों और ज़मीन को बरहक़ पैदा किया है और इसलिए किया है कि हर मुतनफ़्फ़िस को उसकी कमाई का बदला दिया जाए। लोगों पर ज़ुल्म हरगिज़ न किया जाएगा।
وَإِذَا عَلِمَ مِنۡ ءَايَٰتِنَا شَيۡـًٔا ٱتَّخَذَهَا هُزُوًاۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ ۝ 16
(9) हमारी आयात में से कोई बात जब उसके इल्म में आती है तो वह उनका मज़ाक़ बना लेता है। ऐसे सब लोगों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब है।
أَفَرَءَيۡتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَٰهَهُۥ هَوَىٰهُ وَأَضَلَّهُ ٱللَّهُ عَلَىٰ عِلۡمٖ وَخَتَمَ عَلَىٰ سَمۡعِهِۦ وَقَلۡبِهِۦ وَجَعَلَ عَلَىٰ بَصَرِهِۦ غِشَٰوَةٗ فَمَن يَهۡدِيهِ مِنۢ بَعۡدِ ٱللَّهِۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ۝ 17
(23) फिर क्या तुमने कभी उस शख़्स के हाल पर भी ग़ौर किया जिसने अपनी ख़ाहिशे-नफ़्स को अपना ख़ुदा बना लिया और अल्लाह ने इल्म के बावजूद उसे गुमराही में फेंक दिया3 और उसके दिल और कानों पर मुहर लगा दी और उसकी आँखों पर परदा डाल दिया? अल्लाह के बाद अब और कौन है जो उसे हिदायत दे? क्या तुम लोग कोई सबक़ नहीं लेते?
3. अस्ल अलफ़ाज़ हैं ‘अज़ल-लहुल-लाहु अला इल्मिन’। एक मतलब इन अलफ़ाज़ का यह हो सकता है कि वह शख़्स आलिम होने के बावजूद अल्लाह की तरफ़ से गुमराही में फेंका गया, क्योंकि वह ख़ाहिशे-नफ़्स का बन्दा बन गया था। दूसरा मतलब यह भी हो सकता है कि अल्लाह ने अपने इस इल्म की बिना पर कि वह अपने नफ़्स की ख़ाहिश को अपना ख़ुदा बना बैठा है, उसे गुमराही में फेंक दिया।
فَلِلَّهِ ٱلۡحَمۡدُ رَبِّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَرَبِّ ٱلۡأَرۡضِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 18
(36) पस तारीफ़ अल्लाह ही के लिए है जो ज़मीन और आसमानों का मालिक और सारे जहानवालों का परवरदिगार है।
مِّن وَرَآئِهِمۡ جَهَنَّمُۖ وَلَا يُغۡنِي عَنۡهُم مَّا كَسَبُواْ شَيۡـٔٗا وَلَا مَا ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡلِيَآءَۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٌ ۝ 19
(10) उनके आगे जहन्नम है। जो कुछ भी उन्होंने दुनिया में कमाया है उसमें से कोई चीज़ उनके किसी काम आएगी, न उनके वे सरपरस्त ही उनके लिए कुछ कर सकेंगे जिन्हें अल्लाह को छोड़कर उन्होंने अपना वली बना रखा है। उनके लिए बड़ा अज़ाब है।
وَقَالُواْ مَا هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا ٱلدُّنۡيَا نَمُوتُ وَنَحۡيَا وَمَا يُهۡلِكُنَآ إِلَّا ٱلدَّهۡرُۚ وَمَا لَهُم بِذَٰلِكَ مِنۡ عِلۡمٍۖ إِنۡ هُمۡ إِلَّا يَظُنُّونَ ۝ 20
(24) ये लोग कहते हैं कि “ज़िन्दगी बस यही हमारी दुनिया की ज़िन्दगी है, यहीं हमारा मरना और जीना है और गरदिशे-अय्याम के सिवा कोई चीज़ नहीं जो हमें हलाक करती हो।” दर-हक़ीक़त इस मामले में इनके पास कोई इल्म नहीं है। ये मह्ज़ गुमान की बिना पर ये बातें करते हैं।
هَٰذَا هُدٗىۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمۡ لَهُمۡ عَذَابٞ مِّن رِّجۡزٍ أَلِيمٌ ۝ 21
(11) यह क़ुरआन सरासर हिदायत है, और उन लोगों के लिए बला का दर्दनाक अज़ाब है जिन्होंने अपने रब की आयात को मानने से इनकार किया।
وَلَهُ ٱلۡكِبۡرِيَآءُ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 22
(37) ज़मीन और आसमानों में बड़ाई उसी के लिए है और वही ज़बरदस्त और दाना है।
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُنَا بَيِّنَٰتٖ مَّا كَانَ حُجَّتَهُمۡ إِلَّآ أَن قَالُواْ ٱئۡتُواْ بِـَٔابَآئِنَآ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 23
(25) और जब हमारी वाज़ेह आयात इन्हें सुनाई जाती हैं तो इनके पास कोई हुज्जत इसके सिवा नहीं होती कि उठा लाओ हमारे बाप-दादा को अगर तुम सच्चे हो।
۞ٱللَّهُ ٱلَّذِي سَخَّرَ لَكُمُ ٱلۡبَحۡرَ لِتَجۡرِيَ ٱلۡفُلۡكُ فِيهِ بِأَمۡرِهِۦ وَلِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 24
(12) वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे लिए समुन्दर को मुसख़्खर किया ताकि उसके हुक्म से कश्तियाँ उसमें चलें और तुम उसका फ़ज़्ल तलाश करो और शुक्रगुज़ार हो।
قُلِ ٱللَّهُ يُحۡيِيكُمۡ ثُمَّ يُمِيتُكُمۡ ثُمَّ يَجۡمَعُكُمۡ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَا رَيۡبَ فِيهِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 25
(26) (ऐ नबी!) इनसे कहो, “अल्लाह ही तुम्हें ज़िन्दगी बख़्शता है, फिर वही तुम्हें मौत देता है, फिर वही तुमको उस क़ियामत के दिन जमा करेगा जिसके आने में कोई शक नहीं, मगर अकसर लोग जानते नहीं हैं।”
وَسَخَّرَ لَكُم مَّا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا مِّنۡهُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 26
(13) उसने ज़मीन और आसमानों की सारी ही चीज़ों को तुम्हारे लिए मुसख़्खर कर दिया, सब कुछ अपने पास से।1 — इसमें बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ग़ौर व फ़िक्र करनेवाले हैं।
1. इसके दो मतलब हैं। एक यह कि अल्लाह का यह अतिया दुनिया के बादशाहों का-सा अतिया नहीं है जो रईयत से हासिल किया हुआ माल रईयत ही में से कुछ लोगों को बख़्श देते हैं, बल्कि कायनात की ये सारी नेमतें अल्लाह की अपनी पैदा-करदा हैं और उसने अपनी तरफ़ से ये इनसान को अता फ़रमाई हैं। दूसरे यह कि न इन नेमतों के पैदा करने में कोई अल्लाह का शरीक है न इन्हें इनसान के लिए मुसख़्ख़र करने में किसी और हस्ती का कोई दख़्ल। तन्हा अल्लाह ही उनका ख़ालिक़ है और उसी ने अपनी तरफ़ से वे इनसान को अता की हैं।
وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَيَوۡمَ تَقُومُ ٱلسَّاعَةُ يَوۡمَئِذٖ يَخۡسَرُ ٱلۡمُبۡطِلُونَ ۝ 27
(27) ज़मीन और आसमानों की बादशाही अल्लाह ही की है, और जिस रोज़ क़ियामत की घड़ी आ खड़ी होगी उस दिन बातिल-परस्त ख़सारे में पड़ जाएँगे।
قُل لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ يَغۡفِرُواْ لِلَّذِينَ لَا يَرۡجُونَ أَيَّامَ ٱللَّهِ لِيَجۡزِيَ قَوۡمَۢا بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 28
(14) (ऐ नबी!) ईमान लानेवालों से कह दो कि “जो लोग अल्लाह की तरफ़ से बुरे दिन आने का कोई अंदेशा नहीं रखते, उनकी हरकतों पर दागुज़र से काम लें ताकि अल्लाह ख़ुद एक गरोह को उसकी कमाई का बदला दे।
وَتَرَىٰ كُلَّ أُمَّةٖ جَاثِيَةٗۚ كُلُّ أُمَّةٖ تُدۡعَىٰٓ إِلَىٰ كِتَٰبِهَا ٱلۡيَوۡمَ تُجۡزَوۡنَ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 29
(28) उस वक़्त तुम हर गरोह को घुटनों के बल गिरा देखोगे। हर गरोह को पुकारा जाएगा कि आए और अपना नामा-ए-आमाल देखे। उनसे कहा जाएगा, “आज तुम लोगों को उन आमाल का बदला दिया जाएगा जो तुम करते रहे थे।
مَنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَسَآءَ فَعَلَيۡهَاۖ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ تُرۡجَعُونَ ۝ 30
(15) जो कोई नेक अमल करेगा अपने ही लिए करेगा और जो बुराई करेगा वह आप ही उसका ख़मियाज़ा भुगतेगा। फिर जाना तो सबको अपने रब ही की तरफ़ है।”
هَٰذَا كِتَٰبُنَا يَنطِقُ عَلَيۡكُم بِٱلۡحَقِّۚ إِنَّا كُنَّا نَسۡتَنسِخُ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 31
(29) यह हमारा तैयार कराया हुआ आमालनामा है जो तुम्हारे ऊपर ठीक-ठीक शहादत दे रहा है, जो कुछ भी तुम करते थे उसे हम लिखवाते जा रहे थे।”
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحُكۡمَ وَٱلنُّبُوَّةَ وَرَزَقۡنَٰهُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِ وَفَضَّلۡنَٰهُمۡ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 32
(16) इससे पहले बनी-इसराईल को हमने किताब और हुक्म और नुबूवत अता की थी। उनको हमने उम्दा सामाने-ज़ीस्त से नवाज़ा, दुनियाभर के लोगों पर उन्हें फ़ज़ीलत अता की,
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فَيُدۡخِلُهُمۡ رَبُّهُمۡ فِي رَحۡمَتِهِۦۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 33
(30) फिर जो लोग ईमान लाए थे और नेक अमल करते रहे थे उन्हें उनका रब अपनी रहमत में दाख़िल करेगा और यही सरीह कामयाबी है।
وَأَمَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَفَلَمۡ تَكُنۡ ءَايَٰتِي تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَٱسۡتَكۡبَرۡتُمۡ وَكُنتُمۡ قَوۡمٗا مُّجۡرِمِينَ ۝ 34
(31) और जिन लोगों ने कुफ़्र किया था (उनसे कहा जाएगा) “क्या मेरी आयात तुमको नहीं सुनाई जाती थीं? मगर तुमने तकब्बुर किया और मुजरिम बनकर रहे।
وَإِذَا قِيلَ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞ وَٱلسَّاعَةُ لَا رَيۡبَ فِيهَا قُلۡتُم مَّا نَدۡرِي مَا ٱلسَّاعَةُ إِن نَّظُنُّ إِلَّا ظَنّٗا وَمَا نَحۡنُ بِمُسۡتَيۡقِنِينَ ۝ 35
(32) और जब कहा जाता था कि अल्लाह का वादा बरहक़ है और क़ियामत के आने में कोई शक नहीं, तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते क़ियामत क्या होती है, हम तो बस एक गुमान-सा रखते हैं, यक़ीन हमको नहीं है।”
وَبَدَا لَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا عَمِلُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 36
(33) उस वक़्त उनपर उनके आमाल की बुराइयाँ खुल जाएँगी और वे उसी चीज़ के फेर में आ जाएँगे जिसका वे मज़ाक़ उड़ाया करते थे।