45. अल-जासिया
(मक्का में उतरी, आयतें 37)
परिचय
नाम
आयत 28 के वाक्यांश ‘व तरा कुल-ल उम्मतिन जासिया' अर्थात् “उस समय तुम हर गिरोह को घुटनों के बल गिरा (जासिया) देखोगे,” से लिया गया है। मतलब यह है कि यह वह सूरा है जिसमें शब्द 'जासिया’ आया है।
उतरने का समय
इसकी विषय-वस्तुओं से साफ़ महसूस होता है कि यह सूरा-44 अद-दुखान के बाद निकटवर्ती समय में उतरी है। इन दोनों सूरतों की विषय-वस्तुओं में ऐसी एकरूपता पाई जाती है कि जिससे ये दोनों सूरतें जुड़वाँ महसूस होती हैं।
विषय और वार्ता
इसका विषय तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत (परलोकवाद) के बारे में मक्का के इस्लाम-विरोधियों के सन्देहों और आपत्तियों का उत्तर देना और [उनके विरोधात्मक] रवैये पर उनको सचेत करना है। वार्ता की शुरुआत एकेश्वरवाद के प्रमाणों से की गई है। इस सिलसिले में इंसान के अपने अस्तित्त्व से लेकर ज़मीन और आसमान तक हर ओर फैली हुई अनगिनत निशानियों की ओर संकेत करके बताया गया है कि तुम जिधर भी दृष्टि उठाकर देखो, हर चीज़ उसी तौहीद की गवाही दे रही है जिसे मानने से तुम इंकार कर रहे हो। आगे चलकर आयत 12-13 में फिर कहा गया है कि इंसान इस दुनिया में जितनी चीज़ों से काम ले रहा है और जो अनगिनत चीज़ें और शक्तियाँ इस जगत् में उसके हित में सेवारत हैं [वे सब की सब एक ख़ुदा की दी हुई और वशीभूत की हुई हैं]। कोई व्यक्ति सही सोच-विचार से काम ले तो उसकी अपनी बुद्धि ही पुकार उठेगी कि वही अल्लाह इंसान का उपकारी है और उसी का यह अधिकार है कि इंसान उसका आभारी हो। इसके बाद मक्का के इस्लाम-विरोधियों की उस हठधर्मी, घमंड, उपहास और कुफ़्र के लिए दुराग्रह पर कड़ी निंदा की गई है जिससे वे क़ुरआन की दावत (आह्वान) का मुक़ाबला कर रहे थे, और उन्हें सचेत किया गया है कि यह क़ुरआन [एक बहुत बड़ी नेमत (वरदान) है, इसे रद्द कर देने का अंजाम अत्यन्त विनाशकारी होगा] । इसी सम्बन्ध में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) की पैरवी करनेवालों को आदेश दिया गया है कि ये अल्लाह से निडर लोग तुम्हारे साथ जो दुर्व्यवहार कर रहे हैं, उनपर क्षमा और सहनशीलता से काम लो। तुम धैर्य से काम लोगे तो अल्लाह ख़ुद उनसे निपटेगा और तुम्हें इस धैर्य का पुरस्कार देगा। फिर आख़िरत के अक़ीदे (धारणा) के बारे में इस्लाम-विरोधियों के अज्ञानपूर्ण विचारों की समीक्षा की गई है और उनके इस दावे के खंडन में कि मरने के बाद फिर कोई दूसरी जिंदगी नहीं है, अल्लाह ने निरन्तर कुछ प्रमाण दिए हैं। ये प्रमाण देने के बाद अल्लाह पूरे ज़ोर के साथ कहता है कि जिस तरह तुम आप से आप ज़िन्दा नहीं हो गए हो, बल्कि हमारे ज़िन्दा करने से ज़िन्दा हुए हो, इसी तरह तुम आप से आप नहीं मर जाते, बल्कि हमारे मौत देने से मरते हो, और एक वक़्त निश्चित रूप से ऐसा आना है, जब तुम सब एक ही समय में जमा किए जाओगे। जब वह समय आ जाएगा तो तुम स्वयं ही अपनी आँखों से देख लोगे कि अपने ख़ुदा के सामने पेश हो और तुम्हारा पूरा आमाल-नामा (कर्मपत्र) बिना घटाए-बढ़ाए तैयार है जो तुम्हारे एक-एक करतूत की गवाही दे रहा है। उस समय तुमको मालूम हो जाएगा कि आख़िरत के अक़ीदे (धारणा) का यह इंकार और उसका यह मज़ाक़ जो तुम उड़ा रहे हो, तुम्हें कितना महँगा पड़ा है।
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إِنَّهُمۡ لَن يُغۡنُواْ عَنكَ مِنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۚ وَإِنَّ ٱلظَّٰلِمِينَ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِيَآءُ بَعۡضٖۖ وَٱللَّهُ وَلِيُّ ٱلۡمُتَّقِينَ 7
(19) अल्लाह के मुक़ाबले में वे तुम्हारे कुछ भी काम नहीं आ सकते।2 ज़ालिम लोग एक-दूसरे के साथी हैं और मुत्तक़ियों का साथी अल्लाह है।
2. यानी अगर तुम उन्हें राज़ी करने के लिए अल्लाह के दीन में किसी क़िस्म का रद्दो-बदल करोगे तो अल्लाह के मुवाख़ज़े से वे तुम्हें न बचा सकेंगे।
ذَٰلِكُم بِأَنَّكُمُ ٱتَّخَذۡتُمۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ هُزُوٗا وَغَرَّتۡكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَاۚ فَٱلۡيَوۡمَ لَا يُخۡرَجُونَ مِنۡهَا وَلَا هُمۡ يُسۡتَعۡتَبُونَ 14
(35) यह तुम्हारा अंजाम इसलिए हुआ है कि तुमने अल्लाह की आयात का मज़ाक़ बना लिया था और तुम्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने धोखे में डाल दिया था। लिहाज़ा आज न ये लोग दोज़ख़ से निकाले जाएँगे और न इनसे कहा जाएगा कि माफ़ी माँगकर अपने रब को राज़ी करो।”4
4. यह आख़िरी फ़िक़रा इस अंदाज़ में है जैसे कोई आक़ा अपने कुछ ख़ादिमों को डाँटने के बाद दूसरों से ख़िताब करके कहता है कि अच्छा, अब इन नालायक़ों की यह सज़ा है।
أَفَرَءَيۡتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَٰهَهُۥ هَوَىٰهُ وَأَضَلَّهُ ٱللَّهُ عَلَىٰ عِلۡمٖ وَخَتَمَ عَلَىٰ سَمۡعِهِۦ وَقَلۡبِهِۦ وَجَعَلَ عَلَىٰ بَصَرِهِۦ غِشَٰوَةٗ فَمَن يَهۡدِيهِ مِنۢ بَعۡدِ ٱللَّهِۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ 17
(23) फिर क्या तुमने कभी उस शख़्स के हाल पर भी ग़ौर किया जिसने अपनी ख़ाहिशे-नफ़्स को अपना ख़ुदा बना लिया और अल्लाह ने इल्म के बावजूद उसे गुमराही में फेंक दिया3 और उसके दिल और कानों पर मुहर लगा दी और उसकी आँखों पर परदा डाल दिया? अल्लाह के बाद अब और कौन है जो उसे हिदायत दे? क्या तुम लोग कोई सबक़ नहीं लेते?
3. अस्ल अलफ़ाज़ हैं ‘अज़ल-लहुल-लाहु अला इल्मिन’। एक मतलब इन अलफ़ाज़ का यह हो सकता है कि वह शख़्स आलिम होने के बावजूद अल्लाह की तरफ़ से गुमराही में फेंका गया, क्योंकि वह ख़ाहिशे-नफ़्स का बन्दा बन गया था। दूसरा मतलब यह भी हो सकता है कि अल्लाह ने अपने इस इल्म की बिना पर कि वह अपने नफ़्स की ख़ाहिश को अपना ख़ुदा बना बैठा है, उसे गुमराही में फेंक दिया।
قُلِ ٱللَّهُ يُحۡيِيكُمۡ ثُمَّ يُمِيتُكُمۡ ثُمَّ يَجۡمَعُكُمۡ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَا رَيۡبَ فِيهِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ 25
(26) (ऐ नबी!) इनसे कहो, “अल्लाह ही तुम्हें ज़िन्दगी बख़्शता है, फिर वही तुम्हें मौत देता है, फिर वही तुमको उस क़ियामत के दिन जमा करेगा जिसके आने में कोई शक नहीं, मगर अकसर लोग जानते नहीं हैं।”
وَسَخَّرَ لَكُم مَّا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا مِّنۡهُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ 26
(13) उसने ज़मीन और आसमानों की सारी ही चीज़ों को तुम्हारे लिए मुसख़्खर कर दिया, सब कुछ अपने पास से।1 — इसमें बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ग़ौर व फ़िक्र करनेवाले हैं।
1. इसके दो मतलब हैं। एक यह कि अल्लाह का यह अतिया दुनिया के बादशाहों का-सा अतिया नहीं है जो रईयत से हासिल किया हुआ माल रईयत ही में से कुछ लोगों को बख़्श देते हैं, बल्कि कायनात की ये सारी नेमतें अल्लाह की अपनी पैदा-करदा हैं और उसने अपनी तरफ़ से ये इनसान को अता फ़रमाई हैं। दूसरे यह कि न इन नेमतों के पैदा करने में कोई अल्लाह का शरीक है न इन्हें इनसान के लिए मुसख़्ख़र करने में किसी और हस्ती का कोई दख़्ल। तन्हा अल्लाह ही उनका ख़ालिक़ है और उसी ने अपनी तरफ़ से वे इनसान को अता की हैं।
وَإِذَا قِيلَ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞ وَٱلسَّاعَةُ لَا رَيۡبَ فِيهَا قُلۡتُم مَّا نَدۡرِي مَا ٱلسَّاعَةُ إِن نَّظُنُّ إِلَّا ظَنّٗا وَمَا نَحۡنُ بِمُسۡتَيۡقِنِينَ 35
(32) और जब कहा जाता था कि अल्लाह का वादा बरहक़ है और क़ियामत के आने में कोई शक नहीं, तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते क़ियामत क्या होती है, हम तो बस एक गुमान-सा रखते हैं, यक़ीन हमको नहीं है।”