67. अल-मुल्क
(मक्का में उतरी, आयतें 30)
परिचय
नाम
पहले वाक्यांश “तबा-र-कल्लज़ी बियदिहिल मुल्क” अर्थात् “अत्यन्त श्रेष्ठ और उच्च है वह जिसके हाथ में (जगत् का) राज्य (अल मुल्क) है” के शब्द ‘अल-मुल्क' (राज्य) को इस सूरा का नाम दिया गया है।
उतरने का समय
विषय-वस्तुओं और वर्णन-शैली से साफ़ मालूम होता है कि यह मक्का मुअज़्ज़मा के आरम्भिक काल की अवतरित सूरतों में से है।
विषय और वार्ता
इसमें एक ओर संक्षिप्त रूप से इस्लाम की शिक्षाओं का परिचय कराया गया है और दूसरी ओर बड़े प्रभावशाली अन्दाज़ में उन लोगों को चौंकाया गया है जो बेसुध पड़े हुए थे। पहली पाँच आयतों में मनुष्य को यह आभास कराया गया है कि वह जिस जगत् में रहता है वह एक अत्यन्त व्यवस्थित और सुदृढ़ राज्य है। इस राज्य को अनस्तित्व से अस्तित्व अल्लाह ही ने प्रदान किया है और इसके प्रबन्ध एवं व्यवस्था और शासन के सभी अधिकार भी पूरे तौर से अल्लाह ही के हाथ में है। इसके साथ मनुष्य को यह भी बताया गया है कि इस अत्यन्त तत्त्वदर्शिता पर आधारित जगत् में वह निरुद्देश्य नहीं पैदा कर दिया गया है, बल्कि उसे यहाँ परीक्षा के लिए भेजा गया है, और इस परीक्षा में वह अपने अच्छे कर्म द्वारा ही सफल हो सकता है। आयत 6-11 तक कुफ़्र (इनकार) के उन भयावह परिणामों का उल्लेख किया गया है जो परलोक में सामने आनेवाले हैं। आयत 12-14 तक इस तथ्य को मन में बिठाया गया है कि स्रष्टा अपने सृष्ट जीवों से बेखबर नहीं हो सकता। वह तुम्हारी हर खुली और छिपी बात, यहाँ तक कि तुम्हारे मन के विचारों तक को जानता है। अत: नैतिकता का वास्तविक आधार यह है कि मनुष्य उस अलख ईश्वर की पूछगछ से डरकर बुराई से बचे। यह नीति जो लोग अपनाएँगे वही परलोक में कृपा और महान प्रतिदान के अधिकारी होंगे। आयत 15-23 तक सामने के उन सामान्य साधारण तथ्यों की ओर जिन्हें मनुष्य संसार की नित्य व्यवहृत वस्तुएँ (मामूलात) समझकर उन्हें ध्यान देने योग्य नहीं समझता, निरन्तर संकेत करके उनपर सोचने के लिए आमंत्रित किया गया है। [और लोगों की इस बात पर निन्दा की गई है कि] ये सारी वस्तुएँ तुम्हें सत्य का ज्ञान कराने के लिए मौजूद हैं, मगर इन्हें तुम पशुओं की भाँति देखते हो और सुनने और देखने की उस शक्ति और सोचने-समझनेवाले मस्तिष्कों से काम नहीं लेते जो मनुष्य होने की हैसियत से ईश्वर ने तुम्हें दिए हैं। इसी कारण सीधा मार्ग तुम्हें दिखाई नहीं देता। आयत 24-27 तक बताया गया है कि अन्त में तुम्हें अनिवार्यतः अपने ईश्वर की सेवा में उपस्थित होना है। नबी का कार्य यह नहीं है कि तुम्हें उसके [क्रियामत के] आने का समय और तिथि बताए, [जैसा कि तुम इसकी माँग कर रहे हो] । उसका कर्तव्य बस यह है कि तुम्हें उस आनेवाले समय से पहले ही सचेत कर दे। आयत 28-29 में मक्का के उन सत्य-विरोधियों की उन बातों का उत्तर दिया गया है जो वे नबी (सल्ल०) और आपके साथियों के विरुद्ध करते थे। वे नबी (सल्ल०) को कोसते थे और आपके लिए और ईमानवालों के लिए विनाश की प्रार्थनाएँ करते थे। इसपर कहा गया है कि तुम्हें सीधे मार्ग की ओर बुलानेवाले चाहे विनष्ट हों या अल्लाह उनपर दया करे, इससे तुम्हारा भाग्य कैसे बदल जाएगा? तुम अपनी चिन्ता करो। [तुम ईमानवालों को गुमराह समझ रहे हो, एक समय आएगा जब यह बात खुल जाएगी कि वास्तव में गुमराह कौन था? अन्त में लोगों के समक्ष यह प्रश्न रख दिया गया है कि अरब के मरुस्थलों और पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ तुम्हारा जीवन पूर्ण रूप से उस पानी पर निर्भर करता है जो किसी स्थान पर धरती से निकल आया है, वहाँ यदि यह जल धरती में उतरकर विलुप्त हो जाए तो ईश्वर के सिवा कौन तुम्हें यह अमृत जल लाकर दे सकता है?
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ٱلَّذِي خَلَقَ سَبۡعَ سَمَٰوَٰتٖ طِبَاقٗاۖ مَّا تَرَىٰ فِي خَلۡقِ ٱلرَّحۡمَٰنِ مِن تَفَٰوُتٖۖ فَٱرۡجِعِ ٱلۡبَصَرَ هَلۡ تَرَىٰ مِن فُطُورٖ 1
(3) जिसने तह-ब-तह सात आसमान बनाए। तुम रहमान की तख़लीक़ में किसी क़िस्म की बेरब्ती न पाओगे।3 फिर पलटकर देखो, कहीं तुम्हें कोई ख़लल नज़र आता है?4
3. अस्ल में ‘तफ़ावुत’ का लफ़्ज इस्तेमाल हुआ है, जिसके मानी है अदमे-तनासुब, एक चीज़ का दूसरी चीज़ से मेल न खाना। अनमेल, बेजोड़ होना।
4. अमल में लफ़्ज़ ‘फ़ुतूर’ इस्तेमाल हुआ है जिसके मानी हैं दरार, शिगाफ़, रख़्ना, फटा हुआ होना, टूटा-फूटा होना। मतलब यह है कि पूरी कायनात की बन्दिश ऐसी चुस्त है, और ज़मीन के एक ज़र्रे से लेकर अजीमुश्शान कहकशानों तक हर चीज़ ऐसी मरबूत है कि कहीं नज़्मे-कायनात का तसलसुल नहीं टूटता। तुम ख़ाह कितनी ही जुस्तजू कर लो, तुम्हें इसमें कोई रख़्ना नहीं मिल सकता।
وَلَقَدۡ زَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِمَصَٰبِيحَ وَجَعَلۡنَٰهَا رُجُومٗا لِّلشَّيَٰطِينِۖ وَأَعۡتَدۡنَا لَهُمۡ عَذَابَ ٱلسَّعِيرِ 3
(5) हमने तुम्हारे क़रीब के आसमान5 को अज़ीमुश्शान चराग़ों से आरास्ता किया है और उन्हें शयातीन को मार भगाने का ज़रिआ बना दिया है। इन शैतानों के लिए भड़कती हुई आग हमने मुहैया कर रखी है।
5. ‘क़रीब के आसमान’ से मुगद वह आसमान है जिसके तारों और सय्यारों को हम दूरबीन के बग़ैर बरहना आँखों से देखते है।
إِذَآ أُلۡقُواْ فِيهَا سَمِعُواْ لَهَا شَهِيقٗا وَهِيَ تَفُورُ 5
(7) जब ये उसमें फेंके जाएँगे तो उसके दहाड़ने की हौलनाक आवाज़ सुनेंगे6 और वह जोश खा रही होगी,
6. इसके मानी ये भी हो सकते हैं कि यह ख़ुद जहन्नम की आवाज़ होगी, और यह भी हो सकते हैं कि यह आवाज़ जहन्नम से आ रही होगी, जहाँ उन लोगों से पहले गिरे हुए लोग चीख़ें मार रहे होंगे।
ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلۡمَوۡتَ وَٱلۡحَيَوٰةَ لِيَبۡلُوَكُمۡ أَيُّكُمۡ أَحۡسَنُ عَمَلٗاۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفُورُ 7
(2) जिसने मौत और ज़िन्दगी को ईजाद किया ताकि तुम लोगों को आज़माकर देखे तुममें में कौन बेहतर अमल करनेवाला है,2 और वह ज़बरदस्त भी है और दरगुज़र फ़रमानेवाला भी।
2. यानी दुनिया में इनसानों के मरने और जीने का यह सिलसिला उसने इसलिए शुरु किया है कि उनका इमतिहान ले और यह देखे कि किस इनसान का अमल ज़्यादा बेहतर है।
أَفَمَن يَمۡشِي مُكِبًّا عَلَىٰ وَجۡهِهِۦٓ أَهۡدَىٰٓ أَمَّن يَمۡشِي سَوِيًّا عَلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ 11
(22) भला सोचो, जो शख़्स मुँह औंधाए चल रिहा हो10 वह ज़्यादा सही राह पानेवाला है या वह जो सिर उठाए सीधा एक हमवार सड़क पर चल रहा हो?
10. यानी जानवरों की तरह मुँह नीचा किए हुए उसी डगर पर चला जा रहा हो जिसपर किसी ने उसे डाल दिया हो।
قُلۡ هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنشَأَكُمۡ وَجَعَلَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَۚ قَلِيلٗا مَّا تَشۡكُرُونَ 13
(23) इनसे कहो, “अल्लाह ही है जिसने तुम्हें पैदा किया, तुमको सुनने और देखने की ताक़तें दीं और सोचने, समझनेवाले दिल दिए, मगर तुम कम ही शुक्र अदा करते हो।”11
11. यानी अल्लाह ने इल्म व अक़्ल और समाअत व बीनाई की ये नेमतें तुम्हें हक़-शनासी के लिए दी थीं। तुम नाशुक्री कर रहे हो कि इनसे और सारे काम तो लेते हो मगर बस वही एक काम नहीं लेते जिसके लिए ये दी गई थीं।
ءَأَمِنتُم مَّن فِي ٱلسَّمَآءِ أَن يَخۡسِفَ بِكُمُ ٱلۡأَرۡضَ فَإِذَا هِيَ تَمُورُ 19
(16) क्या तुम इससे बेख़ौफ़ हो कि वह जो आसमान में है,8 तुम्हें ज़मीन में धँसा दे और यकायक यह ज़मीन झकोले खाने लगे?
8. इसका यह मतलब नहीं है कि अल्लाह तआला आसमान में रहता है, बल्कि यह बात इस लिहाज़ से फ़रमाई गई है कि इनसान फ़ितरी तौर पर जब अल्लाह से रुजूअ करना चाहता है तो आसमान की तरफ़ देखता है। दुआ माँगता है तो आसमान की तरफ़ हाथ उठाता है। किसी आफ़त के मौक़े पर सब सहारों से मायूस होता है तो आसमान का रुख़ करके ख़ुदा से फ़रियाद करता है। कोई नागहानी बला आ पड़ती है तो कहता है वह ऊपर से नाज़िल हुई है। ग़ैर-मामूली तौर पर हासिल होनेवाली चीज़ के मुताल्लिक़ कहता है यह आलमे-बाला से आई है। अल्लाह तआला की भेजी हुई किताबों को कुतुबे-आसमानी या कुतुबे-समावी कहा जाता है। इन सारी बातों से ज़ाहिर होता है कि यह बात कुछ इनसान की फ़ितरत ही में है कि वह जब ख़ुदा का तसव्वुर करता है तो उसका ज़ेह्न नीचे ज़मीन की तरफ़ नहीं, बल्कि ऊपर आसमान की तरफ़ जाता है।
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِنۡ أَهۡلَكَنِيَ ٱللَّهُ وَمَن مَّعِيَ أَوۡ رَحِمَنَا فَمَن يُجِيرُ ٱلۡكَٰفِرِينَ مِنۡ عَذَابٍ أَلِيمٖ 24
(28) इनसे कहो, “कभी तुमने यह भी सोचा कि अल्लाह ख़ाह मुझे और मेरे साथियों को हलाक कर दे या हमपर रह्म करे, काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब से कौन बचा लेगा?”12
12. मक्का मुअज़्ज़मा में जब रसूलुल्लाह (सल्ल०) की दावत का आग़ाज़ हुआ और क़ुरैश के मुख़्तलिफ़ ख़ानदानों से ताल्लुक़ रखनेवाले अफ़राद ने इस्लाम क़ुबूल करना शुरू कर दिया तो घर-घर हुज़ूर (सल्ल०) और आप (सल्ल०) के साथियों को बद-दुआएँ दी जाने लगीं। जादू-टोने किए जाने लगे ताकि आप (सल्ल०) हलाक हो जाएँ। हत्ता कि क़त्ल के मंसूबे भी सोचे जाने लगे। इसपर यह फ़रमाया गया कि इनसे कहो, ख़ाह हम हलाक हों या ख़ुदा के फ़ज़्ल से ज़िन्दा रहें, इससे तुम्हें क्या हासिल होगा? तुम अपनी फ़िक्र करो कि ख़ुदा के अज़ाब से तुम कैसे बचोगे।
أَمَّنۡ هَٰذَا ٱلَّذِي هُوَ جُندٞ لَّكُمۡ يَنصُرُكُم مِّن دُونِ ٱلرَّحۡمَٰنِۚ إِنِ ٱلۡكَٰفِرُونَ إِلَّا فِي غُرُورٍ 26
(20) बताओ, आख़िर वह कौन-सा लश्कर तुम्हारे पास है जो रहमान के मुक़ाबले में तुम्हारी मदद कर सकता है?9 हक़ीक़त यह है कि ये मुनकिरीन धोखे में पड़े हुए हैं।
9. दूसरा तर्जमा यह भी हो सकता है कि “रहमान के सिवा वह कौन है जो तुम्हारा लश्कर बना हुआ तुम्हारी दस्तगीरी करता हो?”
قُلۡ هُوَ ٱلرَّحۡمَٰنُ ءَامَنَّا بِهِۦ وَعَلَيۡهِ تَوَكَّلۡنَاۖ فَسَتَعۡلَمُونَ مَنۡ هُوَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ 27
(29) इनसे कहो, “वह बड़ा रहीम है, उसी पर हम ईमान लाए हैं, और उसी पर हमारा भरोसा है, अन-क़रीब तुम्हें मालूम हो जाएगा कि सरीह गुमराही में पड़ा हुआ कौन है।”