70. अल-मआरिज
(मक्का में उतरी, आयतें 44)
परिचय
नाम
तीसरी आयत के शब्द 'ज़िल-मआरिज' (उत्थान की सीढ़ियों का मालिक) से उद्धृत है।
उतरने का समय
इसकी विषय-वस्तुएँ इसकी साक्षी हैं कि इसका अवतरण भी लगभग उन्हीं परिस्थितियों में हुआ है जिनमें सूरा-69 (अल-हाक़्क़ा) अवतरित हुई थी।
विषय और वार्ता
इसमें उन इस्लाम-विरोधियों (इनकार करनेवालों) को चेतावनी दी गई है और उन्हें उपदेश दिया गया है जो क़ियामत और आख़िरत (प्रलय एवं परलोक) की ख़बरों का मज़ाक़ उड़ाते थे और अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को चुनौती देते थे कि यदि तुम सच्चे हो तो वह क़ियामत ले आओ जिससे तुम हमें डराते हो। इस सूरा का सम्पूर्ण अभिभाषण इस चुनौती के जवाब में है। आरम्भ में कहा गया है कि माँगनेवाला यातना माँगता है। वह यातना इनकार करनेवालों पर अवश्य ही घटित होकर रहेगी। किन्तु वह अपने समय पर घटित होगी। अत: इनके मज़ाक़ उड़ाने पर धैर्य से काम लो। ये उसे दूर देख रहे हैं और हम उसे निकट देख रहे हैं। फिर बताया गया है कि क़ियामत, जिसके शीघ्र आने की माँग ये लोग हँसी और खेल समझकर कर रहे हैं, कैसी कष्टदायक वस्तु है और जब वह आएगी तो इन अपराधियों की कैसी बुरी गत होगी। इसके बाद लोगों को अवगत कराया गया है कि उस दिन इंसानों के भाग्य का निर्णय सर्वथा उनकी धारणा और नैतिक स्वभाव और कर्म के आधार पर किया जाएगा। जिन लोगों ने संसार में सत्य की ओर से मुँह मोड़ा है वे नरक के भागी होंगे और जो यहाँ ईश्वरीय यातना से डरे हैं, परलोक को माना है [अच्छे कर्म और अच्छे नैतिक स्वभाव से अपने आपको सुसज्जित कर रखा है,] उनका जन्नत (स्वर्ग) में प्रतिष्ठित स्थान होगा। अन्त में मक्का के उन इस्लाम-विरोधियों को, जो अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को देखकर आपका मज़ाक़ उड़ाने के लिए चारों ओर से टूटे पड़ते थे, सावधान किया गया है कि यदि तुम न मानोगे तो सर्वोच्च ईश्वर तुम्हारे स्थान पर दूसरे लोगों को ले आएगा और अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को नसीहत की गई है कि इनके मज़ाक़ की परवाह न करें। ये लोग यदि क़ियामत का अपमान देखने का हठ कर रहे हैं तो इन्हें इनके अपने अशिष्ट कार्यों में व्यस्त रहने दें, अपना बुरा परिणाम ये स्वयं देख लेंगे।
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