82. अल-इन्फ़ितार
(मक्का में उतरी, आयतें 19)
परिचय
नाम
पहली ही आयत के शब्द 'इन-फ़-त-रत' से लिया गया है। मूल अरबी शब्द 'इनफ़ितार' क्रियात्मक संज्ञा है, जिसका अर्थ है- 'फट जाना'। इस नाम का अर्थ यह है कि यह वह सूरा है जिसमें आसमान के फट जाने का उल्लेख हुआ है।
उतरने का समय
इसका और सूरा-87 अत-तकवीर का विषय एक-दूसरे से बहुत ही ज़्यादा मिलता-जुलता है। इससे मालूम होता है कि दोनों सूरतें लगभग एक ही समय में उतरी हैं।
विषय और वार्ता
इसका विषय आख़िरत है। अल्लाह के रसूल (सल्ल०) फ़रमाते हैं कि “जो आदमी चाहता हो कि क़ियामत के दिन को इस तरह देख ले, जैसे आँखों से देखा जाता है, तो वह सूरा-81 तकवीर, सूरा-82 इनफ़ितार और सूरा-84 इंशिक़ाक़ को पढ़ ले।" (हदीस : मुस्नदे-अहमद, तिरमिज़ी)
इसमें सबसे पहले क़ियामत के दिन का चित्रण किया गया है और यह बताया गया है कि जब वह सामने आ जाएगा तो हर आदमी के सामने उसका किया-धरा सब आ जाएगा। इसके बाद इंसान को एहसास दिलाया गया है कि जिस रब ने तुझको अस्तित्त्व प्रदान किया और जिसकी कृपा एवं दया के कारण आज तू तमाम जीवों से बेहतर शरीर और अंग लिए फिरता है, उसके बारे में यह धोखा तुझे कहाँ से लग गया कि वह सिर्फ़ कृपा ही करनेवाला है, न्याय करनेवाला नहीं है? फिर इंसान को सचेत कर दिया गया है कि तू किसी भ्रम में न पड़, तेरा पूरा कर्म-पत्र तैयार किया जा रहा है। अन्त में पूरे ज़ोर के साथ कहा गया है कि निश्चय ही बदले का दिन बरपा होनेवाला है, जिसमें नेक लोगों को जन्नत का सुख और आनन्द प्राप्त होगा और बुरे लोगों को जहन्नम का अज़ाब मिलेगा।
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