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سُورَةُ الفَاتِحَةِ

  1. (मक्‍का में उतरी-आयतें 7)

    परिचय

    नाम

    इसका नाम 'अल-फ़ातिहा' इसके विषय के अनुरूप है। 'फ़ातिहा' उस चीज़ को कहते हैं जिससे किसी विषय या किताब या किसी चीज़ की शुरुआत हो। दूसरे शब्दों में यों समझिए कि यह नाम 'प्राक्कथन' और 'प्रस्तावना' का पर्याय है।

    उतरने का समय

    यह हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) की नुवूवत के बिल्कुल आरंभिक काल की सूरा है, बल्कि विश्वसनीय कथनों से मालूम होता है कि सबसे पहली पूर्ण सूरा जो हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतरी वह यही है। इससे पहले कुछ अलग-अलग आयतें उतरी थीं जो सूरा 96 अलक़, सूरा-73 मुज्ज़म्मिल और सूरा-74 मुद्दस्सिर आदि में शामिल हैं।

    विषय

    वास्तव में यह सूरा एक दुआ है जो अल्लाह ने हर उस इंसान को सिखाई है जो उसकी किताब का अध्ययन करने जा रहा हो। किताब के शुरू में इसको रखने का मतलब यह है कि अगर तुम सचमुच इस किताब से फ़ायदा उठाना चाहते हो तो पहले जगत्-स्वामी से यह दुआ करो।

    इंसान स्वाभावतः उसी चीज़ की दुआ किया करता है जिसकी तलब और चाहत उसके मन में होती है, और उसी दशा में करता है जबकि उसे यह एहसास हो कि उसकी अभीष्ट वस्तु उस हस्ती के अधिकार में है जिससे वह दुआ कर रहा है। इसलिए क़ुरआन के शुरू में इस दुआ को सिखाकर मानो इंसान को यह बताया जा रहा है कि वह इस किताब को सत्य की तलब रखनेवाले की-सी भावना के साथ पढ़े और यह जान ले कि इल्म (ज्ञान) का स्रोत जगत् का प्रभु है, इसलिए उसी से मार्गदर्शन की दरख़ास्त करके पढ़ने की शुरुआत करे।

    इस विषय को समझ लेने के बाद यह बात स्वयं स्पष्ट हो जाती है कि क़ुरआन और सूरा फ़ातिहा के बीच वास्तविक संबंध किताब और उसके प्राक्कथन जैसा नहीं, बल्कि दुआ और दुआ के जवाब जैसा है। सूरा फ़ातिहा एक दुआ है बन्दे की ओर से और क़ुरआन उसका जवाब है ख़ुदा की ओर से। बन्दा दुआ करता है, "ऐ पालनहार ! मेरा मार्गदर्शन कर।" जवाब में पालनहार पूरा क़ुरआन उसके सामने रख देता है कि यह है वह हिदायत और मार्गदर्शन जिसकी दरख़ास्त तूने मुझसे की है।

     

     

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سُورَةُ الفَاتِحَةِ
1. सूरा अल-फ़ातिहा
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 1
(1) प्रशंसा1 अल्लाह ही के लिए है जो सारे जहान का रब2 है,
1. यह सूरा फ़ातिहा अल्लाह तआला ने बन्दों को सिखाई है ताकि वे अपनी ओर से इसको एक निवेदन के रूप में अपने रब के सामने प्रस्तुत करें।
2. यहाँ रब शब्द इस्तेमाल हुआ है। 'रब' शब्द अरबी भाषा में तीन अर्थों में बोला जाता है: (1) मालिक और स्वामी। (2) पालन-पोषण करनेवाला, ख़बर लेनेवाला और निरीक्षक (3) शासक, हाकिम, नियंता और प्रबन्धक अल्लाह इन सब अर्थों में विश्व का 'रब' है।
ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ۝ 2
(2) बड़ा ही मेहरबान और दया करनेवाला है,
مَٰلِكِ يَوۡمِ ٱلدِّينِ ۝ 3
(3) बदला दिए जाने के दिन का मालिक है।
إِيَّاكَ نَعۡبُدُ وَإِيَّاكَ نَسۡتَعِينُ ۝ 4
(4) हम तेरी ही बन्दगी3 करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं।
3. यहाँ इबादत शब्द आया है। 'इबादत' का शब्द भी अरबी भाषा में तीन अर्थों में इस्तेमाल होता है (1) पूजा और उपासना (2) आज्ञापालन (उपासना) और हुक्म मानना (3) बन्दगी और ग़ुलामी।
ٱهۡدِنَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلۡمُسۡتَقِيمَ ۝ 5
(5) हमें सीधा मार्ग दिखा,
صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنۡعَمۡتَ عَلَيۡهِمۡ غَيۡرِ ٱلۡمَغۡضُوبِ عَلَيۡهِمۡ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ ۝ 6
(6) उन लोगों का मार्ग जो तेरे कृपापात्र हुए, (7) जो प्रकोप के भागी नहीं हुए, जो भटके हुए नहीं हैं।4
4. बंदे की इसी दुआ का जवाब यह पूरा क़ुरआन है। बन्दा अपने रब से मार्गदर्शन की दुआ करता है, और रब इसके जवाब में यह क़ुरआन उसे प्रदान करता है।