Hindi Islam
Hindi Islam
×

Type to start your search

سُورَةُ النَّصۡرِ

110. अन-नस्र

(मदीना में उतरी—आयतें 3)

परिचय

नाम

पहली ही आयत 'इज़ा जा-अ नसरुल्लाह' (जब अल्लाह की मदद आ जाए) के शब्द 'नस्र' (मदद) को इस सूरा का नाम क़रार दिया गया है।

उतरने का समय

हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०) का बयान है कि यह क़ुरआन मजीद की अन्तिम सूरा है, अर्थात् इसके बाद कुछ आयतें तो उतरीं मगर कोई पूरी सूरा नबी (सल्ल०) पर नहीं उतरी (हदीस : मुस्लिम, नसई, तबरानी, इब्ने-अबी शैबा, इब्ने-मर्दूया)। हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-उमर (रज़ि०) की रिवायत है कि यह सूरा हिज्जतुल-विदाअ (नबी सल्ल० का अन्तिम हज) के मौक़े पर अय्यामे-तशरीक़ (क़ुरबानी के तीन दिन) के बीच में मिना नामक जगह पर उतरी और उसके बाद नबी (सल्ल०) ने अपनी ऊँटनी पर सवार होकर अपना प्रसिद्ध व्याख्यान दिया। (हदीस: तिर्मिज़ी, बज़्ज़ार, बैहक़ी) [इस व्याख्यान में लोगों को यह याद दिलाने के बाद कि] यह अय्यामे-तशरीक़ के बीच का दिन है और यह 'मशअरे-हराम' (विशिष्ट स्थान) है। नबी (सल्ल०) ने फ़रमाया, "मैं नहीं जानता, शायद इसके बाद मैं तुमसे न मिल सकूँ। ख़बरदार रहो, तुम्हारे ख़ून, तुम्हारी इज्ज़तें एक-दूसरे पर उसी तरह हराम हैं जिस तरह यह दिन और यह जगह हराम (प्रतिष्ठित) है, यहाँ तक कि तुम अपने रब के सामने हाज़िर हो और वह तुमसे तुम्हारे कामों के बारे में पूछ-गच्छ करे। सुनो! यह बात तुममें से क़रीबवाला दूरवाले तक पहुँचा दे। सुनो! क्या मैंने तुम्हें पहुँचा दिया?'' इसके बाद जब हम लोग मदीना वापस हुए तो कुछ अधिक दिन न बीते थे कि नबी (सल्ल०) का इन्तिक़ाल हो गया। इन दोनों रिवायतों को मिलाकर देखा जाए तो मालूम होता है कि सूरा नस्र के उतरने और अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के इन्तिक़ाल के मध्य तीन महीने कुछ दिन का अंतराल था, क्योंकि तारीख़ के हिसाब से हिज्जतुल-विदाअ और नबी (सल्ल०) के इन्तिक़ाल के बीच इतना ही समय बीता था। इब्ने-अब्बास (रज़ि०) का बयान है कि जब यह सूरा उतरी तो नबी (सल्ल०) ने फ़रमाया कि मुझे मेरी मृत्यु की ख़बर दे दी गई है और मेरा समय पूरा हो चुका है (हदीस : मुस्नदे-अहमद, इब्ने-जरीर, इब्नुल-मुंज़िर, इब्ने-मर्दूया)। दूसरी रिवायतें, जो हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०) से नक़्ल हुई हैं, उनमें बयान किया गया है कि इस सूरा के उतरने से नबी (सल्ल०) ने यह समझ लिया था कि आपको दुनिया से विदा होने की ख़बर दे दी गई है।

(हदीस मुस्लिम, मुस्नदे-अहमद, इब्ने-जरीर, तबरानी, नसाई)

विषय और वार्ता

जैसा कि ऊपर की रिवायत से मालूम होता है, इस सूरा में अल्लाह ने अपने रसूल (सल्ल०) को यह बताया था कि जब अरब में इस्लाम की फ़तह पूरी हो जाए और लोग अल्लाह के दीन में गिरोह के गिरोह प्रवेश करने लगें तो इसका अर्थ यह है कि वह काम पूर्ण हो गया जिसके लिए आप दुनिया में भेजे गए थे। इसके बाद आपको आदेश दिया गया कि आप अल्लाह की स्तुति और उसके गुण-गान में लग जाएँ कि उसकी कृपा से आप इतना बड़ा काम अंजाम देने में सफल हुए और उससे दुआ करें कि इस काम को अंजाम देने में जो भूल-चूक या कोताही भी आपसे हुई हो, उसे वह क्षमा कर दे। हज़रत आइशा (रज़ि०) फ़रमाती हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) अपने देहांत से पहले 'सुबहा-न-कल्लाहुम-म व बिहम्दि-क अस्तगफ़िरु-क व अतूबु इलै-क' [ तेरी स्तुति हो ऐ अल्लाह, मैं तुझसे क्षमा याचना करता हूँ और तेरी ओर लौटता हूँ।] (कुछ रिवायतों में ये शब्द हैं 'सुबहानल्लाहि व बिहम्दिही अस्तगफ़िरुल्लाहि व अतूबु इलैहि') बहुत ज़्यादा पढ़ा करते थे। मैंने अर्ज़ किया, "ऐ अल्लाह के रसूल! ये कैसे कलिमे हैं जो आपने अब पढ़ने शुरू कर दिए हैं?" फ़रमाया, "मेरे लिए एक निशानी तय कर दी गई है कि जब मैं उसे देखूँ तो ये शब्द कहा करूँ और वे हैं 'इज़ा जा-अ नसरुल्लाहि वल-फ़त्ह' [जब अल्लाह की मदद आ जाए और विजय प्राप्त हो जाए]" (हदीस : मुस्नदे-अहमद, मुस्लिम, इब्ने-जरीर)। [इसके अलावा कुछ और दुआओं के शब्द भी हदीसों में उल्लिखित हैं जो नबी (सल्ल०) अपने जीवन के अंतिम दिनों में बहुत ज़्यादा उच्चारित किया करते थे।] इब्ने-अब्बास (रज़ि०) का बयान है कि इस सूरा के उतरने के बाद अल्लाह के रसूल (सल्ल०) आख़िरत के लिए मशक़्क़त करने में इतना लग गए थे कि इससे पहले कभी न लगे थे। (हदीस नसाई, तबरानी, इब्ने-अबी-हातिम, इब्ने-मर्दूया)

---------------------

سُورَةُ النَّصۡرِ
110. अन-नस्र
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
إِذَا جَآءَ نَصۡرُ ٱللَّهِ وَٱلۡفَتۡحُ
(1) जब1 अल्लाह की मदद आ जाए और विजय प्राप्त हो जाए
1. विश्वसनीय उल्लेखों के अनुसार यह क़ुरआन की सबसे अन्तिम सूरा है जो नबी (सल्ल०) के देहान्त से लगभग 3 महीने पहले अवतरित हुई। इसके बाद कुछ आयतें तो अवतरित हुई मगर कोई पूरी सूरा अवतरित नहीं हुई।
وَرَأَيۡتَ ٱلنَّاسَ يَدۡخُلُونَ فِي دِينِ ٱللَّهِ أَفۡوَاجٗا ۝ 1
(2) और (ऐ नबी) तुम देख लो कि लोग दल के दल अल्लाह के दीन (ईश्वरीय धर्म) में प्रवेश कर रहे हैं,
فَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ وَٱسۡتَغۡفِرۡهُۚ إِنَّهُۥ كَانَ تَوَّابَۢا ۝ 2
(3) तो अपने रब की प्रशंसा के साथ उसकी तसबीह (गुणगान) करो, और उससे माफ़ी की दुआ माँगो।2 बेशक वह बड़ा तौबा क़ुबूल करनेवाला है।
2. यह भी उल्लेखों से मालूम होता है कि इस सूरा के अवतरण के बाद नबी (सल्ल०) अपने अन्तिम दिनों में बहुत ज़्यादा स्तुति (हम्द) और तसबीह और माफ़ी की दुआ करने लगे थे।