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سُورَةُ النَّاسِ

سُورَةُ النَّاسِ
114. अन-नास
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
قُلۡ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلنَّاسِ
(1) कहो, मैं पनाह माँगता हूँ, इनसानों के रब,
1. अर्थात् एक बार वसवसा डालकर जब बहकाने में सफल नहीं होता तो हट जाता है और फिर आकर वसवसा डालने लगता है, और यह कोशिश निरन्तर जारी रखता है।
مَلِكِ ٱلنَّاسِ ۝ 1
(2) इनसानों के बादशाह,
إِلَٰهِ ٱلنَّاسِ ۝ 2
(3) इनसानों के वास्तविक पूज्य की
مِن شَرِّ ٱلۡوَسۡوَاسِ ٱلۡخَنَّاسِ ۝ 3
(4) उस वसवसे (भ्रम) डालनेवाले की बुराई से जो बार-बार पलटकर आता है1,
ٱلَّذِي يُوَسۡوِسُ فِي صُدُورِ ٱلنَّاسِ ۝ 4
(5) जो लोगों के दिलों में वसवसे डालता है,
مِنَ ٱلۡجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ ۝ 5
(6) चाहे वह जिन्नों में से हो या इनसानों में से।2
2. अर्थात् यह वसवसे डालनेवाला चाहे इनसानों में से हो या जिन्नों (शैतानों) में से, दोनों को बुराई से बचने के लिए मैं पनाह माँगता हूँ।
۝ 6