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سُورَةُ الرَّعۡدِ

13. अर-रअद

(मक्का में उतरी- आयतें 43)

परिचय

नाम

आयत 13 के वाक्‍य ‘व युसब्बि‍हुर-रअ-दु बिहम्दिही वल-मलाइकतु मिन ख़ीफ़तिही’ के शब्‍द 'अर-रअ़द' (बादल की गरज) को इस सूरा का नाम क़रार दिया गया है। इस नाम का यह अर्थ नहीं है कि इस सूरा में बादल की गरज के बारे में बात की गई है, बल्कि यह केवल प्रतीक के रूप में स्पष्ट करता है कि यह वह सूरा है जिसमें शब्द 'अर-अद' आया है या जिसमें ‘रअद’ का उल्लेख हुआ है।

उतरने का समय

आयत 27 से 31 और आयत 38 से 43 तक के विषय गवाही देते हैं कि यह उसी समय की है जिसमें सूरा 10 यूनुस, सूरा-11 हूद और सूरा 7 आराफ़ उतरी हैं, अर्थात मक्का में निवास का अन्तिम युग। वर्णन शैली से स्पष्ट हो रहा है कि नबी (सल्ल०) को इस्लाम का सन्देश पहुँचाते हुए एक लंबी अवधि बीत चुकी है, विरोधी आपको परेशान करने और आपके मिशन को असफल बनाने के लिए तरह-तरह की चाले चलते रहे हैं, ईमानवाले बार-बार कामनाएँ कर रहे हैं कि काश, कोई मोजिज़ा (चमत्कार) दिखाकर ही इन लोगों को सीधे रास्ते पर लाया जाए, और अल्लाह मुसलमानों को समझा रहा है कि ईमान की राह दिखाने का यह तरीक़ा हमारे यहाँ प्रचलित नहीं है और अगर सत्य के विरोधियों की रस्सी लंबी की जा रही है तो यह ऐसी बात नहीं है जिससे तुम घबरा उठो। फिर आयत 31 से यह भी मालूम होता है कि बार-बार विरोधियों की हठधर्मी का ऐसा प्रदर्शन हो चुका है जिसके बाद यह कहना बिल्कुल उचित लगता है कि अगर क़ब्रों से मुर्दे भी उठकर आ जाएँ तो ये लोग न मानेंगे, बल्कि इस घटना की भी कोई न कोई व्याख्या कर डालेंगे। इन सब बातों से यही गुमान होता है कि यह सूरा मक्का के अन्तिम युग में उतरी होगी।

केन्द्रीय विषय

सूरा का उद्देश्य पहली ही आयत में प्रस्तुत कर दिया गया है, अर्थात् यह कि जो कुछ मुहम्मद (सल्ल०) प्रस्तुत कर रहे हैं, वही सत्य है, मगर यह लोगों की ग़लती है कि वे इसे नहीं मानते। सारा भाषण इसी केन्द्रीय विषय के चारों ओर घूमता है। इस सिलसिले में बार-बार अलग-अलग तरीक़ों से तौहीद, आख़िरत और रिसालत का सत्य होना सिद्ध किया गया है। उनपर ईमान लाने के नैतिक एवं आध्यात्मिक लाभ समझाए गए हैं, उनको न मानने की हानियाँ बताई गई हैं और यह मन में बिठाने की कोशिश की गई है कि कुफ़्र पूर्ण रूप से मूर्खता और अज्ञानता है। फिर चूँकि इस सारे वर्णन का उद्देश्य केवल दिमाग़ों को सन्तुष्ट करना ही नहीं है, दिलों को ईमान की ओर खींचना भी है, इसलिए निरे तार्किक प्रमाणों से काम नहीं लिया गया है, बल्कि एक-एक प्रमाण और एक-एक गवाही को प्रस्तुत करने के बाद ठहरकर तरह-तरह से डराया, धमकाया, सत्य की ओर उकसाया और प्यार से समझाया गया है, ताकि नासमझ लोग अपनी गुमराही भरी हठधर्मी से बाज़ आ जाएँ।

व्याख्यान के बीच में जगह-जगह विरोधियों की आपत्तियों का उल्लेख किए बिना इनके उत्तर दिए गए हैं और उन सन्देहों को दूर किया गया है जो मुहम्मद (सल्ल०) के सन्देश के बारे में लोगों के दिलों में पाए जाते थे, या विरोधियों की ओर से डाले जाते थे। इसके साथ ईमानवालों को भी, जो कई वर्षों के लम्बे और कठिन संघर्ष के कारण थके जा रहे थे और बेचैनी के साथ परोक्ष सहायता के इन्तिज़ार में थे, तसल्ली दी गई है।

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سُورَةُ الرَّعۡدِ
13. सूरा अर-रअद
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
الٓمٓرۚ تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِۗ وَٱلَّذِيٓ أُنزِلَ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَ ٱلۡحَقُّ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يُؤۡمِنُونَ
(1) अलिफ़० लाम० मीम० रा०। यह ईश्वरीय किताब की आयतें हैं, और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुमपर उतारा गया है वह बिलकुल सत्य है, मगर (तुम्हारी क़ौम के) ज़्यादातर लोग मान नहीं रहे हैं।
ٱللَّهُ ٱلَّذِي رَفَعَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ بِغَيۡرِ عَمَدٖ تَرَوۡنَهَاۖ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمّٗىۚ يُدَبِّرُ ٱلۡأَمۡرَ يُفَصِّلُ ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّكُم بِلِقَآءِ رَبِّكُمۡ تُوقِنُونَ ۝ 1
(2) वह अल्लाह ही है जिसने आसमानों को ऐसे सहारों के बिना क़ायम किया जो तुमको नज़र आते हों,1 फिर वह अपने राजसिंहासन पर विराजमान हुआ, और उसने सूरज और चाँद को एक नियम का पाबन्द बनाया, इस सारी व्यवस्था की हर चीज़ एक निश्चित समय तक के लिए चल रही है और अल्लाह ही इस सारे काम का नियंत्रण कर रहा है। वह निशानियाँ खोल-खोलकर बयान करता है2 शायद कि तुम अपने रब से मिलन का विश्वास करो।
1. दूसरे शब्दों में आसमानों को महसूस न होनेवाले और अदृश्य सहारों पर स्थापित किया। देखने में कोई चीज़ विस्तृत मंडल में ऐसी नहीं है जो इन अगणित नभ-पिण्डों को थामे हुए हो, मगर एक ग़ैर-महसूस ताक़त है जो हर एक को उसके स्थान और परिक्रमा पंथ पर रोके हुए है और इन विशालकाय पिण्डों को ज़मीन पर या एक दूसरे पर गिरने नहीं देती।
وَهُوَ ٱلَّذِي مَدَّ ٱلۡأَرۡضَ وَجَعَلَ فِيهَا رَوَٰسِيَ وَأَنۡهَٰرٗاۖ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ جَعَلَ فِيهَا زَوۡجَيۡنِ ٱثۡنَيۡنِۖ يُغۡشِي ٱلَّيۡلَ ٱلنَّهَارَۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 2
(3) और यही है जिसने यह ज़मीन फैला रखी है, इसमें पहाड़ों के खूँटे गाड़ रखे हैं और नदियाँ बहा दी हैं। उसी ने हर तरह के फलों के जोड़े पैदा किए हैं और वही दिन को रात से छिपाता है। इन सारी चीज़़ों में बड़ी निशानियाँ है उन लोगों के लिए जो सोच-विचार से काम लेते हैं।
2. अर्थात् इस बात की निशानियों कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) जिन वास्तविकताओं को सूचना दे रहे हैं वे वास्तव में सच्ची वास्तविकताएँ है। विश्व में हर ओर उनपर गवाही देनेवाले लक्षण मौजूद हैं। अगर लोग आँखें खोलकर देखें तो उन्हें दिखाई दे जाए कि क़ुरआन में जिन-जिन बातों को मानने का निमंत्रण दिया गया ज़मीन और आसमान में फैली हुई अगणित निशानियाँ उनको पुष्टि कर रही हैं।
وَفِي ٱلۡأَرۡضِ قِطَعٞ مُّتَجَٰوِرَٰتٞ وَجَنَّٰتٞ مِّنۡ أَعۡنَٰبٖ وَزَرۡعٞ وَنَخِيلٞ صِنۡوَانٞ وَغَيۡرُ صِنۡوَانٖ يُسۡقَىٰ بِمَآءٖ وَٰحِدٖ وَنُفَضِّلُ بَعۡضَهَا عَلَىٰ بَعۡضٖ فِي ٱلۡأُكُلِۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ ۝ 3
(4) और देखो, ज़मीन में अलग-अलग भू-भाग पाए जाते हैं जो एक-दूसरे से मिले हुए अवस्थित हैं। अंगूर के बाग़ हैं, खेतियाँ है, खजूर के पेड़ हैं जिनमें से कुछ इकहरे हैं और कुछ दोहरे। सबको एक ही पानी सिंचित करता है, मगर स्वाद में हम किसी को बहुत अच्छा बना देते हैं और किसी को उससे कम इन सब चीज़़ों में बहुत-सी निशानियाँ है उन लोगों के लिए जो बुद्धि से काम लेते हैं।
۞وَإِن تَعۡجَبۡ فَعَجَبٞ قَوۡلُهُمۡ أَءِذَا كُنَّا تُرَٰبًا أَءِنَّا لَفِي خَلۡقٖ جَدِيدٍۗ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ ٱلۡأَغۡلَٰلُ فِيٓ أَعۡنَاقِهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 4
(5) अब अगर तुम्हें आश्चर्य करना है तो आश्चर्य के योग्य लोगों का यह कथन है कि “जब हम मरकर मिट्टी हो जाएँगे तो क्या हम नए सिरे से पैदा किए जाएँगे?” ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने रब के साथ इनकार की नीति अपनाई है।3 ये वे लोग हैं जिनकी गरदनों में तौक़ पड़े हुए हैं।4 ये जहन्नमी हैं और जहन्नम में हमेशा रहेंगे।
3. अर्थात् इनका आख़िरत से इनकार वास्तव में अल्लाह से और उसकी शक्ति और तत्त्वदर्शिता से इनकार है। ये सिर्फ़ इतना ही नहीं कहते कि हमारा मिट्टी में मिल जाने के बाद दोबारा पैदा होना असंभव है, बल्कि इनके इसी कथन में यह विचार भी निहित है कि वह ईश्वर बेबस, निरुपाय, नादान और मूर्ख है जिसने इनको पैदा किया है, अल्लाह हमें ऐसी ग़लत धारणा से बचाए।
4. गरदन मैं तौक़ पड़ा होना क़ैदी होने की निशानी है। इन लोगों की गरदनों में तौक़ पड़े होने का मतलब यह है कि ये लोग अपने अज्ञान के, अपनी हठधर्मी के, अपनी इच्छाओं और वासनाओं के और अपने बाप-दादा के अन्धानुकरण के बन्दी बने हुए हैं। ये स्वतन्त्र रूप से सोच-विचार नहीं कर सकते। इन्हें इनके पक्षपात ने ऐसा जकड़ रखा है कि ये आख़िरत को नहीं मान सकते। यद्यपि उसका मानना सर्वथा बुद्धिसंगत और उचित है, और आख़िरत के इनकार पर जमे हुए हैं यद्यपि वह सर्वथा अनुचित है।
وَيَسۡتَعۡجِلُونَكَ بِٱلسَّيِّئَةِ قَبۡلَ ٱلۡحَسَنَةِ وَقَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِمُ ٱلۡمَثُلَٰتُۗ وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغۡفِرَةٖ لِّلنَّاسِ عَلَىٰ ظُلۡمِهِمۡۖ وَإِنَّ رَبَّكَ لَشَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ ۝ 5
(6) ये लोग भलाई से पहले बुराई के लिए जल्दी मचा रहे हैं।5 हालाँकि इनसे पहले (जो लोग इस नीति पर चले हैं, उनपर ख़ुदा के अज़ाब की) शिक्षाप्रद मिसालें गुज़र चुकी हैं। सच यह है कि तेरा रब लोगों की ज़्यादतियों के बावजूद इनके साथ माफ़ी से काम लेता है, और यह भी सत्य है कि तेरा रब सख़्त सज़ा देनेवाला है।
5. अर्थात् अज़ाब की माँग कर रहे हैं।
وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡلَآ أُنزِلَ عَلَيۡهِ ءَايَةٞ مِّن رَّبِّهِۦٓۗ إِنَّمَآ أَنتَ مُنذِرٞۖ وَلِكُلِّ قَوۡمٍ هَادٍ ۝ 6
(7) ये लोग जिन्होंने तुम्हारी बात मानने से इनकार कर दिया है, कहते हैं कि “इस व्यक्ति पर इसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों न उतरी?” — तुम तो सिर्फ़ सावधान करनेवाले हो, और हर क़ौम के लिए एक मार्गदर्शक हैं।
ٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا تَحۡمِلُ كُلُّ أُنثَىٰ وَمَا تَغِيضُ ٱلۡأَرۡحَامُ وَمَا تَزۡدَادُۚ وَكُلُّ شَيۡءٍ عِندَهُۥ بِمِقۡدَارٍ ۝ 7
(8) अल्लाह एक-एक गर्भवती के पेट को जानता है, जो कुछ उसमें बनता है उसे भी वह जानता है और जो कुछ उसमें कमी या बेशी होती है उसकी भी उसे ख़बर रहती है। हर चीज़़ के लिए उसके यहाँ एक मात्रा निश्चित है।
عَٰلِمُ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ ٱلۡكَبِيرُ ٱلۡمُتَعَالِ ۝ 8
(9) वह छिपी और खुली हर चीज़़ को जानता है। वह महान है और हर हाल में सर्वोच्च रहनेवाला है।
سَوَآءٞ مِّنكُم مَّنۡ أَسَرَّ ٱلۡقَوۡلَ وَمَن جَهَرَ بِهِۦ وَمَنۡ هُوَ مُسۡتَخۡفِۭ بِٱلَّيۡلِ وَسَارِبُۢ بِٱلنَّهَارِ ۝ 9
(10) तुममें से कोई व्यक्ति चाहे ज़ोर से बात करे या धीरे से, और कोई रात के अँधेरे में छिपा हुआ हो या दिन के उजाले में चल रहा हो, उसके लिए सब समान हैं।
لَهُۥ مُعَقِّبَٰتٞ مِّنۢ بَيۡنِ يَدَيۡهِ وَمِنۡ خَلۡفِهِۦ يَحۡفَظُونَهُۥ مِنۡ أَمۡرِ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُغَيِّرُ مَا بِقَوۡمٍ حَتَّىٰ يُغَيِّرُواْ مَا بِأَنفُسِهِمۡۗ وَإِذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِقَوۡمٖ سُوٓءٗا فَلَا مَرَدَّ لَهُۥۚ وَمَا لَهُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَالٍ ۝ 10
(11) हर व्यक्ति के आगे और पीछे उसके नियुक्त किए हुए निरीक्षक लगे हुए हैं जो अल्लाह के आदेश से उसकी देख-भाल कर रहे हैं। सच यह है कि अल्लाह किसी क़ौम की हालत को नहीं बदलता जब तक कि वह ख़ुद अपने गुणों को नहीं बदल देती। और जब अल्लाह किसी क़ौम की शामत लाने का फ़ैसला कर ले तो फिर वह किसी के टाले नहीं टल सकती, न अल्लाह के मुक़ाबले में ऐसी क़ौम का कोई समर्थक और सहायक हो सकता है।
هُوَ ٱلَّذِي يُرِيكُمُ ٱلۡبَرۡقَ خَوۡفٗا وَطَمَعٗا وَيُنشِئُ ٱلسَّحَابَ ٱلثِّقَالَ ۝ 11
(12) वही है जो तुम्हारे सामने बिजलियाँ चमकाता है जिन्हें देखकर तुम्हें आशंकाएँ भी होती हैं और आशाएँ भी बंधती हैं। वही है जो पानी से लदे हुए बादल उठाता है।
وَيُسَبِّحُ ٱلرَّعۡدُ بِحَمۡدِهِۦ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ مِنۡ خِيفَتِهِۦ وَيُرۡسِلُ ٱلصَّوَٰعِقَ فَيُصِيبُ بِهَا مَن يَشَآءُ وَهُمۡ يُجَٰدِلُونَ فِي ٱللَّهِ وَهُوَ شَدِيدُ ٱلۡمِحَالِ ۝ 12
(13) बादलों का गर्जन उसकी स्तुति के साथ उसकी पावनता बयान करता है6 और फ़रिश्ते उसके डर से काँपते उसकी पवित्रता का वर्णन करते हैं। वह कड़कती हुई बिजलियों को भेजता है और (बहुधा) उन्हें जिसपर चाहता है ठीक उस हालत में गिरा देता है जबकि लोग अल्लाह के बारे में झगड़ रहे होते हैं। वास्तव में उसकी चाल बड़ी ज़बरदस्त है।
لَهُۥ دَعۡوَةُ ٱلۡحَقِّۚ وَٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ لَا يَسۡتَجِيبُونَ لَهُم بِشَيۡءٍ إِلَّا كَبَٰسِطِ كَفَّيۡهِ إِلَى ٱلۡمَآءِ لِيَبۡلُغَ فَاهُ وَمَا هُوَ بِبَٰلِغِهِۦۚ وَمَا دُعَآءُ ٱلۡكَٰفِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَٰلٖ ۝ 13
(14) उसी को पुकारना सत्य है।7 रहीं वे दूसरी हस्तियाँ जिन्हें उसको छोड़कर ये लोग पुकारते हैं, वे उनकी दुआओं का कोई जवाब नहीं दे सकतीं। उन्हें पुकारना तो ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति पानी की ओर हाथ फैलाकर उससे निवेदन करे कि तू मेरे मुँह तक पहुँच जा, हालाँकि पानी उस तक पहुँचनेवाला नहीं। बस इसी तरह अधर्मियों की दुआएँ भी कुछ नहीं हैं मगर एक तीर बिना निशाने का!
7. पुकारने से मुराद अपनी ज़रूरतों में मदद के लिए पुकारना है। मतलब यह है कि आवश्यकता पूर्ति और कठिनाइयों को दूर करने के सारे अधिकार उसी के हाथ में हैं। इसलिए सिर्फ़ उसी से दुआएँ माँगना उचित है।
وَلِلَّهِۤ يَسۡجُدُۤ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ طَوۡعٗا وَكَرۡهٗا وَظِلَٰلُهُم بِٱلۡغُدُوِّ وَٱلۡأٓصَالِ۩ ۝ 14
(15) वह तो अल्लाह ही है जिसको ज़मीन और आसमान की हर चीज़़ स्वेच्छापूर्वक और विवशतापूर्वक सजदा कर रही है8 और सब चीज़़ों की परछाइयाँ भी सुबह और शाम उसके आगे झुकती हैं।9
8. सजदे से मुराद आज्ञापालन में झुकना, आदेशानुपालन और नतमस्तक होना है।
9. परछाइयों के सजदा करने से मुराद यह है कि चीज़़ों की छायाओं का सुबह और शाम के समय पश्चिम और पूरब की ओर गिरना इस बात का लक्षण है कि ये सब चीज़़ें किसी के आदेश को माननेवाली और किसी के क़ानून से कार्य में लगी हैं।
قُلۡ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ قُلِ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَٱتَّخَذۡتُم مِّن دُونِهِۦٓ أَوۡلِيَآءَ لَا يَمۡلِكُونَ لِأَنفُسِهِمۡ نَفۡعٗا وَلَا ضَرّٗاۚ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِي ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِيرُ أَمۡ هَلۡ تَسۡتَوِي ٱلظُّلُمَٰتُ وَٱلنُّورُۗ أَمۡ جَعَلُواْ لِلَّهِ شُرَكَآءَ خَلَقُواْ كَخَلۡقِهِۦ فَتَشَٰبَهَ ٱلۡخَلۡقُ عَلَيۡهِمۡۚ قُلِ ٱللَّهُ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖ وَهُوَ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّٰرُ ۝ 15
(16) इनसे पूछो, आसमान और ज़मीन का रब कौन है? — कहो, अल्लाह। फिर इनसे कहो कि जब वास्तविकता यह है तो क्या तुमने उसे छोड़कर ऐसे पूज्यों को अपना कार्यसाधक ठहरा लिया, जिन्हें ख़ुद अपने लिए भी किसी लाभ और हानि का अधिकार प्राप्त नहीं? कहो, क्या अन्धा और आँखोंवाला बराबर हुआ करता है? क्या प्रकाश और अँधेरे समान होते हैं? और अगर ऐसा नहीं तो क्या इनके ठहराए हुए साझीदारों ने भी अल्लाह की तरह कुछ पैदा किया है कि उसके कारण इनपर सृष्टि का मामला संदिग्ध हो गया? — कहो हर चीज़़ का स्रष्टा सिर्फ़ अल्लाह है और वह यकता है, सब पर प्रभावी!
أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَسَالَتۡ أَوۡدِيَةُۢ بِقَدَرِهَا فَٱحۡتَمَلَ ٱلسَّيۡلُ زَبَدٗا رَّابِيٗاۖ وَمِمَّا يُوقِدُونَ عَلَيۡهِ فِي ٱلنَّارِ ٱبۡتِغَآءَ حِلۡيَةٍ أَوۡ مَتَٰعٖ زَبَدٞ مِّثۡلُهُۥۚ كَذَٰلِكَ يَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡحَقَّ وَٱلۡبَٰطِلَۚ فَأَمَّا ٱلزَّبَدُ فَيَذۡهَبُ جُفَآءٗۖ وَأَمَّا مَا يَنفَعُ ٱلنَّاسَ فَيَمۡكُثُ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ كَذَٰلِكَ يَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡأَمۡثَالَ ۝ 16
(17) अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया और हर नदी-नाला अपनी समाई के अनुसार उसे लेकर चल निकला। फिर जब बाढ़ आई तो ऊपर झाग भी आ गए। और ऐसे ही झाग उन धातुओं पर भी उठते है जिन्हें ज़ेवर और बरतन आदि बनाने के लिए लोग पिघलाया करते हैं। इसी मिसाल से अल्लाह सत्य और असत्य के मामले को स्पष्ट करता है। जो झाग है वह उड़ जाया करता है और जो चीज़़ इनसानों के लिए लाभदायक है वह ज़मीन में ठहर जाती है। इसी तरह अल्लाह मिसालों से अपनी बात समझाता है।
لِلَّذِينَ ٱسۡتَجَابُواْ لِرَبِّهِمُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ وَٱلَّذِينَ لَمۡ يَسۡتَجِيبُواْ لَهُۥ لَوۡ أَنَّ لَهُم مَّا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦٓۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ سُوٓءُ ٱلۡحِسَابِ وَمَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ ۝ 17
(18) जिन लोगों ने अपने रब का आमंत्रण स्वीकार कर लिया उनके लिए भलाई है, और जिन्होंने उसे स्वीकार न किया वे अगर धरती के सारे धन के भी मालिक हों और उतना ही और ले आएँ तो वे अल्लाह की पकड़ से बचने के लिए उस सबको अर्थदण्ड (फ़िदया) के रूप में दे डालने पर तैयार हो जाएँगे। ये वे लोग हैं जिनसे बुरी तरह हिसाब लिया जाएगा और इनका ठिकाना जहन्नम है, बहुत ही बुरा ठिकाना।
۞أَفَمَن يَعۡلَمُ أَنَّمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَ ٱلۡحَقُّ كَمَنۡ هُوَ أَعۡمَىٰٓۚ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 18
(19) भला यह किस तरह संभव है कि वह व्यक्ति जो तुम्हारे रब के इस ग्रन्थ को जो उसने तुमपर उतारा है सत्य जानता है और वह व्यक्ति जो इस वास्तविकता की ओर से अन्धा है, दोनों समान हो जाएँ? नसीहत तो बुद्धिमान लोग ही क़ुबूल किया करते हैं।
ٱلَّذِينَ يُوفُونَ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ وَلَا يَنقُضُونَ ٱلۡمِيثَٰقَ ۝ 19
(20) और उनकी व्यवहार-नीति यह होती है कि अल्लाह के साथ अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करते हैं, उसे मज़बूत बाँधने के बाद तोड़ नहीं डालते।
وَٱلَّذِينَ يَصِلُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ وَيَخَافُونَ سُوٓءَ ٱلۡحِسَابِ ۝ 20
(21) और उनकी नीति यह होती है कि अल्लाह ने जिन-जिन नातों को जोड़े रखने का आदेश दिया है उन्हें जोड़े रखते हैं, अपने रब से डरते हैं और इस बात का डर रखते हैं कि कहीं उनसे बुरी तरह हिसाब न लिया जाए।
وَٱلَّذِينَ صَبَرُواْ ٱبۡتِغَآءَ وَجۡهِ رَبِّهِمۡ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ سِرّٗا وَعَلَانِيَةٗ وَيَدۡرَءُونَ بِٱلۡحَسَنَةِ ٱلسَّيِّئَةَ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ۝ 21
(22) उनका हाल यह होता है कि अपने रब की प्रसन्नता के लिए सब्र से काम लेते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं, हमारी दी हुई रोज़ी में से खुले और छिपे ख़र्च करते हैं, और बुराई को भलाई से दूर करते हैं। आख़िरत का घर उन्हीं लोगों के लिए है।
جَنَّٰتُ عَدۡنٖ يَدۡخُلُونَهَا وَمَن صَلَحَ مِنۡ ءَابَآئِهِمۡ وَأَزۡوَٰجِهِمۡ وَذُرِّيَّٰتِهِمۡۖ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ يَدۡخُلُونَ عَلَيۡهِم مِّن كُلِّ بَابٖ ۝ 22
(23) अर्थात् ऐसे बाग़ जो उनके स्थायी निवास स्थान होंगे। वे ख़ुद भी उनसे प्रवेश करेंगे और उनके बाप-दादा और उनकी पत्नियों और उनकी औलाद में से जो-जो नेक हैं वे भी उनके साथ वहाँ जाएँगे। फ़रिश्ते हर ओर से उनके स्वागत के लिए आएँगे और उनसे कहेंगे,
سَلَٰمٌ عَلَيۡكُم بِمَا صَبَرۡتُمۡۚ فَنِعۡمَ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ۝ 23
(24) “तुमपर सलामती है, तुमने दुनिया में जिस तरह सब्र से काम लिया उसके कारण आज तुम इसके अधिकारी हुए हो।” — अतः क्या ही अच्छा है यह आख़िरत का घर!
وَٱلَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهۡدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مِيثَٰقِهِۦ وَيَقۡطَعُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمُ ٱللَّعۡنَةُ وَلَهُمۡ سُوٓءُ ٱلدَّارِ ۝ 24
(25) रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को सुदृढ़ करने के बाद तोड़ डालते हैं, जो उन नातों को काटते हैं जिन्हें अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है, और जो ज़मीन में बिगाड़ फैलाते हैं वे फिटकार के योग्य है और उनके लिए आख़िरत में बहुत बुरा ठिकाना है।
ٱللَّهُ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ وَفَرِحُواْ بِٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَمَا ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا فِي ٱلۡأٓخِرَةِ إِلَّا مَتَٰعٞ ۝ 25
(26) अल्लाह जिसकी चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है, और जिसे चाहता है नपी-तुली रोज़ी देता है। ये लोग दुनिया की ज़िन्दगी में मग्न हैं, जबकि दुनिया की ज़िन्दगी आख़िरत के मुक़ाबले में बहुत थोड़ी सुख-सामग्री के सिवा कुछ भी नहीं।
وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡلَآ أُنزِلَ عَلَيۡهِ ءَايَةٞ مِّن رَّبِّهِۦۚ قُلۡ إِنَّ ٱللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِيٓ إِلَيۡهِ مَنۡ أَنَابَ ۝ 26
(27) ये लोग जिन्होंने (हज़रत मुहम्मद सल्ल० की पैग़म्बरी को मानने से) इनकार कर दिया है, कहते हैं, “इस व्यक्ति पर इसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों न उतरी?” – कहो, अल्लाह जिसे चाहता है गुमराह कर देता है और वह अपनी ओर आने का रास्ता उसी को दिखाता है जो उसकी ओर रुजू करे।
ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَتَطۡمَئِنُّ قُلُوبُهُم بِذِكۡرِ ٱللَّهِۗ أَلَا بِذِكۡرِ ٱللَّهِ تَطۡمَئِنُّ ٱلۡقُلُوبُ ۝ 27
(28) ऐसे ही लोग हैं वे जिन्होंने (इस नबी के बुलावे को) मान लिया है और उनके दिलों को अल्लाह की याद से इतमीनान हासिल होता है। सावधान रहो! अल्लाह की याद ही वह चीज़ है जिससे दिलों को इतमीनान हासिल हुआ करता है।
ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ طُوبَىٰ لَهُمۡ وَحُسۡنُ مَـَٔابٖ ۝ 28
(29) फिर जिन लोगों ने सत्य के आमंत्रण को माना और अच्छे कार्य किए वे ख़ुशनसीब हैं और उनके लिए अच्छा अंजाम है।
كَذَٰلِكَ أَرۡسَلۡنَٰكَ فِيٓ أُمَّةٖ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهَآ أُمَمٞ لِّتَتۡلُوَاْ عَلَيۡهِمُ ٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ وَهُمۡ يَكۡفُرُونَ بِٱلرَّحۡمَٰنِۚ قُلۡ هُوَ رَبِّي لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ عَلَيۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَإِلَيۡهِ مَتَابِ ۝ 29
(30) ऐ नबी, इसी शान से हमने तुमको रसूल बनाकर भेजा है10 एक ऐसी क़ौम में जिससे पहले बहुत सी क़ौमें गुज़र चुकी हैं, ताकि तुम इन लोगों को वह सन्देश सुनाओ जो हमने तुमपर उतारा है इस हाल में कि ये अपने अत्यन्त करुणामय ईश्वर के साथ इनकार की नीति अपनाए हुए है। इनसे कहो कि वही मेरा रब है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है, उसी पर मैंने भरोसा किया और उसी की ओर मुझे पलटकर जाना है।
10 अर्थात् किसी ऐसी निशानी के बिना जिसकी ये लोग माँग करते हैं।
وَلَوۡ أَنَّ قُرۡءَانٗا سُيِّرَتۡ بِهِ ٱلۡجِبَالُ أَوۡ قُطِّعَتۡ بِهِ ٱلۡأَرۡضُ أَوۡ كُلِّمَ بِهِ ٱلۡمَوۡتَىٰۗ بَل لِّلَّهِ ٱلۡأَمۡرُ جَمِيعًاۗ أَفَلَمۡ يَاْيۡـَٔسِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَن لَّوۡ يَشَآءُ ٱللَّهُ لَهَدَى ٱلنَّاسَ جَمِيعٗاۗ وَلَا يَزَالُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ تُصِيبُهُم بِمَا صَنَعُواْ قَارِعَةٌ أَوۡ تَحُلُّ قَرِيبٗا مِّن دَارِهِمۡ حَتَّىٰ يَأۡتِيَ وَعۡدُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُخۡلِفُ ٱلۡمِيعَادَ ۝ 30
(31) और क्या हो जाता अगर कोई ऐसा क़ुरआन उतार दिया जाता जिसके ज़ोर से पहाड़ चलने लगते, या ज़मीन फट जाती या मुरदे क़ब्रों से निकलकर बोलने लगते? (इस तरह की निशानियाँ दिखा देना कुछ मुश्किल नहीं है बल्कि सारा अधिकार ही अल्लाह के हाथ में है।11 फिर क्या ईमानवाले (अभी तक इनकार करनेवालों की माँग के जवाब में किसी निशानी के प्रकट होने की आस लगाए बैठे हैं और वे यह जानकर) निराश नहीं हो गए कि अगर अल्लाह चाहता तो सारे इनसानों को सीधे मार्ग पर लगा देता?12 जिन लोगों ने अल्लाह के साथ इनकार की नीति अपना रखी है उनपर उनकी करतूतों के कारण कोई न कोई आफ़त आती ही रहती है, या उनके घर के क़रीब कहीं उतरती है। यह सिलसिला चलता रहेगा यहाँ तक कि अल्लाह का वादा आ पूरा हो। यक़ीनन अल्लाह अपने वादे के विरुद्ध नहीं जाता।
11. अर्थात् निशानियों के न दिखाने का वास्तविक कारण यह नहीं है कि अल्लाह उनके दिखाने की सामर्थ्य नहीं रखता। बल्कि वास्तविक कारण यह है कि इन उपायों से काम लेना अल्लाह की मसलहत के ख़िलाफ़ है। इसलिए कि वास्तविक उद्देश्य तो सीधी राह से लगना है, न कि एक नबी की नबूवत (पैग़म्बरी) को मनवा लेना, और सीधी राह पाना इसके बिना संभव नहीं कि लोगों के विचार और अन्तदृष्टि का सुधार हो।
12. अर्थात् अगर समझ-बूझ के बिना सिर्फ़ एक अनुभवहीन ईमान अभीष्ट होता तो उसके लिए निशानियों दिखाने के तकल्लुफ़ की क्या ज़रूरत थी। यह काम तो इस तरह भी हो सकता था कि अल्लाह सारे इनसानों को ईमानवाला ही पैदा कर देता।
وَلَقَدِ ٱسۡتُهۡزِئَ بِرُسُلٖ مِّن قَبۡلِكَ فَأَمۡلَيۡتُ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ ثُمَّ أَخَذۡتُهُمۡۖ فَكَيۡفَ كَانَ عِقَابِ ۝ 31
(32) तुमसे पहले भी बहुत-से रसूलों की हँसी उड़ाई जा चुकी है, मगर मैंने हमेशा न माननेवालों को ढील दी और आख़िरकार उनको पकड़ लिया, फिर देख लो कि मेरी सज़ा कैसी कठोर थी।
أَفَمَنۡ هُوَ قَآئِمٌ عَلَىٰ كُلِّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡۗ وَجَعَلُواْ لِلَّهِ شُرَكَآءَ قُلۡ سَمُّوهُمۡۚ أَمۡ تُنَبِّـُٔونَهُۥ بِمَا لَا يَعۡلَمُ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَم بِظَٰهِرٖ مِّنَ ٱلۡقَوۡلِۗ بَلۡ زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ مَكۡرُهُمۡ وَصُدُّواْ عَنِ ٱلسَّبِيلِۗ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ ۝ 32
(33) फिर क्या वह जो एक-एक जीव की कमाई पर निगाह रखता है उसके मुक़ाबले में इन दुस्साहसों से काम लिया जा रहा है कि लोगों ने उसके कुछ साझीदार ठहरा रखे हैं? ऐ नबी इनसे कहो (अगर वास्तव में वे अल्लाह के अपने बनाए हुए साझीदार हैं तो) तनिक उनके नाम लो कि वे कौन हैं? — क्या तुम अल्लाह को एक नई बात की ख़बर दे रहे हो जिसे वह अपनी ज़मीन में नहीं जानता? या तुम लोग बस यों हो जो मुँह में आता है कह डालते हो? सच यह है कि जिन लोगो ने सत्य का आमंत्रण मानने से इनकार किया है उनके लिए उनकी मक्कारियाँ13 ख़ुशनुमा बना दी गई हैं और वे सीधे मार्ग से रोक दिए गए हैं, फिर जिसको अल्लाह गुमराही में फेंक दे उसे कोई राह दिखानेवाला नहीं है।
13. इस साझीदार बनाने को मक्कारी कहने का कारण यह है कि वास्तव में जिन तारों और उपग्रहों या फ़रिश्तों या आत्माओं या महापुरुषों को ईश्वरीय गुणों और अधिकारों से युक्त ठहराया गया है और जिनको अल्लाह के ख़ास हक़ में साझीदार बना लिया गया है, उनमें से किसी ने भी कभी न इन गुणों और अधिकारों का दावा किया, न इन हक़ों की माँग की, और न लोगों को यह शिक्षा दी कि तुम हमारे आगे पूजा की रोतियाँ अर्पित करो हम तुम्हारे काम बनाया करेंगे। यह तो चालाक लोगों का काम है कि उन्होंने जनसाधारण पर अपनी प्रभुता का सिक्का ज़माने के लिए और उनकी कमाइयों में हिस्सा बटाने के लिए कुछ बनावटी प्रभु गढ़ लिए, लोगों को उनका श्रद्धालु बनाया और अपने आपको किसी न किसी रूप में उनका प्रतिनिधि ठहराकर अपना उल्लू सीधा करना शुरू कर दिया।
لَّهُمۡ عَذَابٞ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَشَقُّۖ وَمَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن وَاقٖ ۝ 33
(34) ऐसे लोगों के लिए दुनिया की ज़िन्दगी में भी अज़ाब है, और आख़िरत का अज़ाब इससे भी ज़्यादा कठोर है। कोई ऐसा नहीं जो उन्हें अल्लाह से बचानेवाला हो।
۞مَّثَلُ ٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِي وُعِدَ ٱلۡمُتَّقُونَۖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ أُكُلُهَا دَآئِمٞ وَظِلُّهَاۚ تِلۡكَ عُقۡبَى ٱلَّذِينَ ٱتَّقَواْۚ وَّعُقۡبَى ٱلۡكَٰفِرِينَ ٱلنَّارُ ۝ 34
(35) परहेज़गार लोगों के लिए जिस जन्नत का वादा किया गया है उसकी शान यह है कि उसके नीचे नहरे बह रही हैं उसके फल चिरस्थायी हैं और उसकी छाया शाश्वत, यह अंजाम है डर रखनेवाले लोगों का। और सत्य को न माननेवालों का अंजाम यह है कि उनके लिए दोज़ख़ की आग है।
وَٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ يَفۡرَحُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَۖ وَمِنَ ٱلۡأَحۡزَابِ مَن يُنكِرُ بَعۡضَهُۥۚ قُلۡ إِنَّمَآ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ وَلَآ أُشۡرِكَ بِهِۦٓۚ إِلَيۡهِ أَدۡعُواْ وَإِلَيۡهِ مَـَٔابِ ۝ 35
(36) ऐ नबी, जिन लोगों को हमने पहले किताब दी थी वे इस किताब से जो हमने तुमपर अवतरित की है, प्रसन्न हैं और विभिन्न गिरोहों में कुछ लोग ऐसे भी है जो उसकी कुछ बातों को नहीं मानते। तुम स्पष्ट रूप से कह दो कि “मुझे तो सिर्फ़ अल्लाह की बन्दगी का आदेश दिया गया है और इससे रोका गया है कि किसी को उसका साझीदार ठहराऊँ, अतः मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मेरा रुजू (पलटना) है।”
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلۡنَٰهُ حُكۡمًا عَرَبِيّٗاۚ وَلَئِنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَآءَهُم بَعۡدَ مَا جَآءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَكَ مِنَ ٱللَّهِ مِن وَلِيّٖ وَلَا وَاقٖ ۝ 36
(37) इसी आदेश के साथ हमने यह अरबी में फ़रमान तुमपर उतारा है। अब अगर तुमने उस ज्ञान के होते हुए जो तुम्हारे पास आ चुका है लोगों की इच्छाओं के पीछे चले तो अल्लाह के मुक़ाबले में न कोई तुम्हारा सहायक है और न कोई उसकी पकड़ से तुमको बचा सकता है।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا رُسُلٗا مِّن قَبۡلِكَ وَجَعَلۡنَا لَهُمۡ أَزۡوَٰجٗا وَذُرِّيَّةٗۚ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن يَأۡتِيَ بِـَٔايَةٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ لِكُلِّ أَجَلٖ كِتَابٞ ۝ 37
(38) तुमसे पहले भी हम बहुत-से रसूल भेज चुके हैं और उनको हमने बीवी और बच्चोंवाला ही बनाया था14 और किसी रसूल की भी यह ताक़त न थी कि अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई निशानी ख़ुद ला दिखाता। हर युग के लिए एक किताब है।
14. यह एक एतिराज़ का जवाब है जो नबी (सल्ल०) पर किया जाता था। वे कहते थे कि यह अच्छा नबी है जो बीवी और बच्चे रखता है। भला पैग़म्बरों को भी विषय-वासनाओं से कोई सम्बन्ध हो सकता है। हालाँकि क़ुरैश के लोग स्वयं हज़रत इबराहीम (अलैहि०) और इसमाईल (अलैहि०) की सन्तान होने पर गर्व करते थे।
يَمۡحُواْ ٱللَّهُ مَا يَشَآءُ وَيُثۡبِتُۖ وَعِندَهُۥٓ أُمُّ ٱلۡكِتَٰبِ ۝ 38
(39) अल्लाह जो कुछ चाहता है मिटा देता है और जिस चीज़ को चाहता है क़ायम रखता है, मूल किताब उसी के पास है।15
15. यहाँ “उम्मुल-किताब” शब्द इस्तेमाल हुआ है। “उम्मुल-किताब” का अर्थ है, “मूल किताब” अर्थात् वह उद्गम और स्रोत जिससे सारी आसमानी किताबें निकली हैं।
وَإِن مَّا نُرِيَنَّكَ بَعۡضَ ٱلَّذِي نَعِدُهُمۡ أَوۡ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِنَّمَا عَلَيۡكَ ٱلۡبَلَٰغُ وَعَلَيۡنَا ٱلۡحِسَابُ ۝ 39
(40) और ऐ नबी, जिस बुरे परिणाम की धमकी हम इन लोगों को दे रहे हैं उसका कोई हिस्सा चाहे हम तुम्हारे जीते जी दिखा दें या उसके प्रकट होने से पहले हम तुम्हें उठा लें, हर हाल में तुम्हारा काम सिर्फ़ सन्देश पहुँचा देना है, और हिसाब लेना हमारा काम है।
أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّا نَأۡتِي ٱلۡأَرۡضَ نَنقُصُهَا مِنۡ أَطۡرَافِهَاۚ وَٱللَّهُ يَحۡكُمُ لَا مُعَقِّبَ لِحُكۡمِهِۦۚ وَهُوَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ ۝ 40
(41) क्या ये लोग देखते नहीं है कि हम इस भू-भाग पर चले आ रहे हैं और इसकी परिधि को हर ओर से सिकोड़ते चले आते हैं?16 अल्लाह शासन कर रहा है, कोई उसके फ़ैसलों का पुनरावलोकन करनेवाला नहीं है। और उसे हिसाब लेते कुछ देर नहीं लगती।
16. अर्थात् क्या तुम्हारे विरोधियों को दिखाई नहीं दे रहा है कि इस्लाम का प्रभाव अरब भू-खण्ड के कोन-कोने में फैलता जा रहा है और चारों ओर से इन लोगों पर क्षेत्र तंग होता चला जाता है? यह इनकी शामत के लक्षण नहीं हैं तो क्या है? अल्लाह का यह कहना कि “हम इस भू-भाग पर चले आ रहे हैं” एक अत्यन्त सुन्दर वर्णनशैली है। चूँकि सत्य का आहवान अल्लाह की ओर से होता है और अल्लाह उसके प्रस्तुत करनेवालों के साथ होता है, इसलिए किसी भू-भाग में इस सन्देश (दावत) के फैलने को अल्लाह यों अभिव्यंजित करता है कि हम ख़ुद उस भू-भाग में बढ़े चले आ रहे हैं।
وَقَدۡ مَكَرَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَلِلَّهِ ٱلۡمَكۡرُ جَمِيعٗاۖ يَعۡلَمُ مَا تَكۡسِبُ كُلُّ نَفۡسٖۗ وَسَيَعۡلَمُ ٱلۡكُفَّٰرُ لِمَنۡ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ۝ 41
(42) इनसे पहले जो लोग हुए हैं वे भी बड़ी-बड़ी चालें चल चुके हैं, मगर वास्तविक निर्णयकारी चाल तो पूरी की पूरी अल्लाह ही के हाथ में है। वह जानता है कि कौन क्या कुछ कमाई कर रहा है, और जल्दी ही ये सत्य को न माननेवाले देख लेंगे कि परिणाम किसका अच्छा होता है।
وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَسۡتَ مُرۡسَلٗاۚ قُلۡ كَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدَۢا بَيۡنِي وَبَيۡنَكُمۡ وَمَنۡ عِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلۡكِتَٰبِ ۝ 42
(43) ये इनकार करनेवाले कहते हैं कि तुम अल्लाह के भेजे हुए नहीं हो। कहो, “मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह की गवाही काफ़ी है और फिर उस व्यक्ति की गवाही जिसे आसमानी किताब का ज्ञान प्राप्त हो।"