- अल-हिज्र
(मक्का में उतरी-आयतें 99)
परिचय
नाम
आयत नम्बर 80 में हिज्र शब्द आया है, उसी को इस सूरा का नाम दे दिया गया है।
उतरने का समय
विषय और वर्णन-शैली से साफ़ पता चलता है कि इस सूरा के उतरने का समय सूरा-14 (इबराहीम) के समय से मिला हुआ है। इसकी पृष्ठभूमि में दो चीज़े बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देती हैं। एक यह कि नबी (सल्ल०) को सन्देश पहुँचाते हुए एक समय बीत चुका है और सम्बोधित क़ौम को निरन्तर हठधर्मी, उपहास, अवरोध और अत्याचार अपनी सीमा पार कर चुका है, जिसके बाद अब समझाने-बुझाने का अवसर कम और चेतावनी और धमकी का अवसर अधिक है। दूसरे यह कि अपनी क़ौम के इंकार, हठधर्मी और अवरोध के पहाड़ तोड़ते-तोड़ते नबी (सल्ल०) थके जा रहे हैं और दिल टूटने की दशा बार-बार आप पर छा रही है, जिसे देखकर अल्लाह आपको तसल्ली दे रहा है और आपकी हिम्मत बंधा रहा है।
वार्ताएँ और केन्द्रीय विषय
यही दो विषय इस सूरा में वर्णित हुए हैं। एक यह कि चेतावनी उन लोगों को दी गई जो नबी (सल्ल०) की दावत का इंकार कर रहे थे और आपका उपहास करते और आपके काम में तरह-तरह की रुकावटें पैदा करते थे और दूसरा यह कि नबी (सल्ल०) को तसल्ली और प्रोत्साहन दिया गया है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि यह सूरा समझाने और उपदेश देने से ख़ाली है। क़ुरआन में कहीं भी अल्लाह ने केवल चेतावनी या मात्र डॉट-फटकार से काम नहीं लिया है, कड़ी से कड़ी धमकियों और निन्दाओं के बीच भी वह समझाने-बुझाने और उपदेश देने में कमी नहीं करता। अत: इस सूरा में भी एक ओर तौहीद (एकेश्वरवाद) के प्रमाणों की ओर संक्षिप्त संकेत किए गए हैं और दूसरी ओर आदम और इबलोस का क़िस्सा सुनाकर नसीहत की गई है ।
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وَقَالُواْ يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِي نُزِّلَ عَلَيۡهِ ٱلذِّكۡرُ إِنَّكَ لَمَجۡنُونٞ 5
(6) ये लोग कहते हैं, “ऐ वह व्यक्ति, जिसपर यह ज़िक्र2 उतरा है3, तू निश्चय ही दीवाना है।
2. यहाँ “ज़िक्र शब्द इस्तेमाल हुआ है। यह शब्द क़ुरआन में परिभाषा के रूप में ईश्वरीय वाणी के लिए इस्तेमाल हुआ है जो सर्वथा उपदेश बनकर आती है। पहले जितनी किताबें नबियों पर उतरी थीं वे सब भी “ज़िक्र” थीं और यह क़ुरआन भी ज़िक्र है। “ज़िक्र” का मूल अर्थ है “याद दिलाना” “होशियार करना” और “नसीहत करना”।
3. यह वाक्य वे लोग व्यंग्य के रूप में कहते थे। उनको तो यह स्वीकार ही नहीं था कि यह अनुस्मारक (ज़िक्र) नबी (सल्ल०) पर उतरा है, न इसे स्वीकार करने के बाद वे आपको दीवाना कह सकते थे। वास्तव में उनके कहने का अर्थ यह था कि “ऐ वह व्यक्ति, जिसका दावा यह है कि मुझपर यह अनुस्मारक उत्तरा है।"
مَا نُنَزِّلُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَمَا كَانُوٓاْ إِذٗا مُّنظَرِينَ 7
(8) — हम फ़रिश्तों को यों ही नहीं उतार दिया करते। वे जब उतरते हैं तो हक़ के साथ उतरते हैं, फिर लोगों को मुहल नहीं दी जाती।4
4. अर्थात् फ़रिश्ते सिर्फ़ तमाशा दिखाने के लिए नहीं उतारे जाते कि जब किसी क़ौम ने कहा कि बुलाओ फ़रिश्तों को और वे तुरन्त आ उपस्थित हों। फ़रिश्तों को भेजने का समय तो वह अन्तिम समय होता है जब किसी क़ौम का फ़ैसला चुका देने का निश्चय कर लिया जाता है। “हक़ के साथ उतरते हैं” का अर्थ “हक़ लेकर उतरना” है। अर्थात् वे अल्लाह का न्यायानुकूल निर्णय लेकर आते हैं और उसे लागू करके छोड़ते हैं।
كَذَٰلِكَ نَسۡلُكُهُۥ فِي قُلُوبِ ٱلۡمُجۡرِمِينَ 11
(12) अपराधियों के दिलों में तो हम इस ज़िक्र को इसी तरह (सलाख़ की भाँति) गुज़ारते है।5
5. मूल में “नसलुकुहू” शब्द इस्तेमाल हुआ है। 'सलक' का अर्थ अरबी भाषा में किसी चीज़ को दूसरी चीज़़ में चलाना, गुज़ारना और पिरोना होता है, जैसे तागे को सुई के नाके में गुज़ारना। अतः आयत का अर्थ यह है कि ईमानवालों के अन्दर तो यह अनुस्मारक हृदय की ठंडक और आत्मा का आहार बनकर उतरता है, मगर अपराधियों के दिलों में यह फ़लीता बनकर लगता है और उनके अन्दर उसे सुनकर ऐसी आग भड़क उठती है, मानो एक गर्म सलाख़ थी जो छाती के पार हो गई।
وَلَقَدۡ جَعَلۡنَا فِي ٱلسَّمَآءِ بُرُوجٗا وَزَيَّنَّٰهَا لِلنَّٰظِرِينَ 15
(16) यह हमारी कार्य-कुशलता है कि आसमान में हमने बहुत-से मज़बूत क़िले6 बनाए,
6. मूल ग्रन्थ में 'बुरूज' शब्द इस्तेमाल हुआ है। बुर्ज अरबी भाषा में क़िले, महल और मज़बूत इमारत को कहते हैं। आगे जो कुछ कहा गया है उसपर विचार करने से ख़याल होता है कि शायद इससे मुराद ऊपरी लोक के वे क्षेत्र हैं जिनमें से हर क्षेत्र को अत्यन्त सुदृढ़ सीमाओं ने दूसरे क्षेत्र से अलग कर रखा है। इस अर्थ के अनुसार हम बुरूज को सुरक्षित क्षेत्रों के अर्थ में लेना ज़्यादा सही समझते हैं।
إِلَّا مَنِ ٱسۡتَرَقَ ٱلسَّمۡعَ فَأَتۡبَعَهُۥ شِهَابٞ مُّبِينٞ 17
(18) कोई शैतान उनमें राह नहीं पा सकता, यह और बात है कि कुछ सुन-गुन ले ले।7 और जब वह सुन-गुन लेने की कोशिश करता है तो एक प्रदीप्त अग्निशिखा उसका पीछा करती है।8
7. अर्थात् वे शैतान जो अपने मित्रों को ग़ैब (परोक्ष) की ख़बरें लाकर देने की कोशिश करते हैं उनके पास वास्तव में परोक्ष के ज्ञान के साधन बिलकुल नहीं हैं। ब्रह्माण्ड उनके लिए खुला नहीं पड़ा है कि जहाँ चाहें जाएँ और अल्लाह के रहस्य मालूम करें। वे सुन-गुन लेने की कोशिश ज़रूर करते हैं, लेकिन वास्तव में उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ता।
8. यहाँ “शिहाबुम-मुबीन” शब्द इस्तेमाल हुआ है जिसका अर्थ है प्रकाशमान ज्वाला। दूसरे स्थान पर क़ुरआन मजीद में इसके लिए 'शिहाबे-साक़िब' का शब्द इस्तेमाल हुआ है, अर्थात् 'अन्धकार को भेदनेवाली अग्निशिखा'। इससे मुराद ज़रूरी नहीं कि वह टूटनेवाला तारा ही हो जिसे हमारी भाषा में पारिभाषिक रूप में 'शिहाबे-साक़िब' (उल्का, तारा टूटना) कहा जाता है। संभव है कि ये दूसरी किसी क़िस्म की किरणें हों, उदाहरणार्थं ब्रह्माण्ड किरणें (cosmic rays) या उनसे भी ज़्यादा तेज़ कोई और तरह की चीज़़ जिसका अभी हमें ज्ञान न हुआ हो। फिर यह भी संभव है कि इससे मुराद यही टूटते तारे हों जिन्हें कभी-कभी हमारी आँखें ज़मीन की ओर गिरते हुए देखती है और यही ऊपरी लोक की ओर शैतानों की उड़ान में बाधक सिद्ध होते हो।
وَأَرۡسَلۡنَا ٱلرِّيَٰحَ لَوَٰقِحَ فَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَسۡقَيۡنَٰكُمُوهُ وَمَآ أَنتُمۡ لَهُۥ بِخَٰزِنِينَ 21
(22) फलदायक हवाओं को हम ही भेजते हैं, फिर आसमान से पानी बरसाते हैं, और उस पानी से तुम्हें सिंचित करते हैं। इस दौलत के ख़ज़ाने के अधिकारी तुम नहीं हो।9
9. अर्थात् तुम्हारे बाद हम ही बाक़ी रहनेवाले हैं। तुम्हें जो कुछ भी मिला हुआ है सिर्फ़ अस्थायी उपभोग के लिए मिला हुआ है। आख़िरकार हमारी दी हुई हर चीज़़ को यों ही छोड़कर तुम ख़ाली हाथ चले जाओगे और ये सब चीज़़ें ज्यों की त्यों हमारे ख़जाने में रह जाएँगी।
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ مِن صَلۡصَٰلٖ مِّنۡ حَمَإٖ مَّسۡنُونٖ 25
(26) हमने इनसान को सड़ी हुई मिट्टी के सूखे गारे से बनाया।10
10. यहाँ क़ुरआन इस बात को स्पष्ट करता है कि इनसान पाशविक जानवरों की स्थितियों से उन्नति करता हुआ इनसानियत के दायरे में नहीं आया है, जैसा कि नवीन युग के डारविनवाद से प्रभावित क़ुरआन के टीकाकार सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि उसकी सृष्टि का आरंभ सीधे पार्थिव पदार्थों से हुआ है जिनकी स्थिति को अल्लाह ने “सड़ी हुई मिट्टी के सूखे गारे” के शब्दों में स्पष्ट किया है। ये शब्द स्पष्टतः बताते हैं कि ख़मीर उठी हुई मिट्टी का एक पुतला बनाया गया था जो बनने के बाद सूखा और फिर उसके अन्दर रूह (आत्मा) फूँकी गई।
وَٱلۡجَآنَّ خَلَقۡنَٰهُ مِن قَبۡلُ مِن نَّارِ ٱلسَّمُومِ 26
(27) और उससे पहले जिन्नों को हम आग की लपट से पैदा कर चुके थे।11
11. यहाँ “समूम” शब्द इस्तेमाल हुआ है। 'समूम' गर्म हवा को कहते हैं और आग को 'समूम' से सम्बद्ध करने की स्थिति में इसका अर्थ आग के बजाय उच्च ताप के हो जाता है। इससे उन स्थलों की व्याख्या हो जाती है, जहाँ क़ुरआन मजीद में यह कहा गया है कि जिन्न आग से पैदा किए गए हैं।
قَالَ رَبِّ بِمَآ أَغۡوَيۡتَنِي لَأُزَيِّنَنَّ لَهُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَأُغۡوِيَنَّهُمۡ أَجۡمَعِينَ 38
(39) वह बोला, “मेरे रब, जैसा तूने मुझे बहकाया, उसी तरह अब मैं ज़मीन में उनके लिए मनमोहकता पैदा करके उन सबको बहका दूँगा,
إِنَّ عِبَادِي لَيۡسَ لَكَ عَلَيۡهِمۡ سُلۡطَٰنٌ إِلَّا مَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡغَاوِينَ 41
(42) बेशक जो मेरे वास्तविक बन्दे हैं उनपर तेरा बस न चलेगा। तेरा बस तो सिर्फ़ उन बहके हुए लोगों ही पर चलेगा जो तेरा अनुसरण करें,13
13. इस वाक्य का दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि मेरे बन्दों (अर्थात् सामान्य लोगों) पर तुझे कोई प्रभुत्व प्राप्त न होगा कि तू उन्हें ज़बरदस्ती अवज्ञाकारी बना दे, हाँ जो ख़ुद ही बहके हुए हों और ख़ुद ही तेरे पीछे चलना चाहें उन्हें तेरी राह पर जाने के लिए छोड़ दिया जाएगा, उन्हें हम ज़बरदस्ती इससे रोकने की कोशिश न करेंगे।
لَهَا سَبۡعَةُ أَبۡوَٰبٖ لِّكُلِّ بَابٖ مِّنۡهُمۡ جُزۡءٞ مَّقۡسُومٌ 43
(44) यह जहन्नम (जिससे इबलीस के अनुयायियों को डराया गया है) उसके सात दरवाज़े हैं, हर दरवाज़े के लिए उनमें से एक हिस्सा निश्चित कर दिया गया है।14
14. जहन्नम के ये दरवाज़े संभवतः उन गुमराहियों और गुनाहों के लिहाज़ से होंगे जिनको अपनाकर आदमी अपने लिए दोज़ख़ की राह खोलता है। उदाहरणार्थ: कोई नास्तिकता के रास्ते से दोज़ख़ की ओर जाता है, कोई अनेकेश्वरवाद के रास्ते से कोई कपटाचार के रास्ते से कोई इच्छाओं की दासताओं और अवज्ञा एवं दुस्साहस के रास्ते से, कोई अन्याय एवं अत्याचार और लोगों को सताने के रास्ते से कोई मार्ग भ्रष्टता के प्रचार और अधर्म की स्थापना के रास्ते से और कोई अश्लीलता और बुराई के प्रचार के मार्ग से। जिस व्यक्ति का जो अवगुण ज़्यादा उभरा हुआ होगा, उसी के अनुसार जहन्नम की ओर जाने के लिए उसका मार्ग निश्चित होगा।
قَالُواْ لَا تَوۡجَلۡ إِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلَٰمٍ عَلِيمٖ 52
(53) उन्होंने जवाब दिया, “डरो नहीं, हम तुम्हें एक ज्ञानी लड़के की ख़ुशख़बरी देते हैं।15
15. अर्थात् हज़रत इसहाक़ (अलैहि०) के जन्म की ख़ुशख़बरी जैसा कि सूरा 11 (हूद) में स्पष्टतः बयान हुआ है।
قَالَ هَٰٓؤُلَآءِ بَنَاتِيٓ إِن كُنتُمۡ فَٰعِلِينَ 70
(71) लूत ने (विवश होकर) कहा, “अगर तुम्हें कुछ करना ही है तो ये मेरी बेटियाँ मौजूद हैं!”16
16. व्याख्या के लिए देखें सूरा 11 (हूद), टिप्पणी 26, 27।
وَإِنَّهَا لَبِسَبِيلٖ مُّقِيمٍ 75
(76) और वह भू-भाग (जहाँ यह घटना घटित हुई थी) सार्वजनिक मार्ग पर स्थित है17,
17. अर्थात् हिजाज़ से सीरिया और इराक़ से मिस्र जाते हुए वह तबाह हुआ इलाक़ा रास्ते में पड़ता है और साधारणतया क़ाफ़िलों के लोग तबाही के उन लक्षणों को देखते हैं जो इस पूरे क्षेत्र में आज तक स्पष्टतः पाए जाते हैं।
فَٱنتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡ وَإِنَّهُمَا لَبِإِمَامٖ مُّبِينٖ 78
(79) तो देख लो कि हमने भी उनसे बदला लिया, और इन दोनों क़ौमों के उजड़े हुए क्षेत्र खुले रास्ते पर स्थित हैं19।
18. अर्थात् हज़रत शुऐब की क़ौम के लोग, ऐका 'तबूक' का प्राचीन नाम था।
19. मदयन और ऐकावालों का क्षेत्र भी हिजाज़ से फ़िलस्तीन और सीरिया जाते हुए रास्ते में पड़ता है।
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَآ إِلَّا بِٱلۡحَقِّۗ وَإِنَّ ٱلسَّاعَةَ لَأٓتِيَةٞۖ فَٱصۡفَحِ ٱلصَّفۡحَ ٱلۡجَمِيلَ 84
(85) हमने ज़मीन और आसमानों को और उनमें सब मौजूद चीज़़ों को सत्य के सिवा किसी अन्य आधार पर पैदा नहीं किया है, और फ़ैसले की घड़ी यक़ीनन आनेवाली है, अतः ऐ नबी, तुम (इन लोगों की अशिष्टताओं पर) शिष्टतानुकूल क्षमा से काम लो।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَٰكَ سَبۡعٗا مِّنَ ٱلۡمَثَانِي وَٱلۡقُرۡءَانَ ٱلۡعَظِيمَ 86
(87) हमने तुमको सात ऐसी आयतें दे रखी हैं जो बार-बार दोहराई जाने के योग्य हैं20 और तुम्हें महान क़ुरआन प्रदान किया है।
20 अर्थात् सूरा 1 (फ़ातिहा) की आयतें पहले के विद्वानों का यही मत है, बल्कि इमाम बुखारी ने दो “मरफ़ू"अ” रिवायतें भी इस बात के प्रमाण में प्रस्तुत की हैं कि स्वयं नबी (सल्ल०) ने 'सबउम-मिनल-मसानी' (सात दोहराई जानेवाली) से मुराद सूरा फ़ातिहा बताई है।