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سُورَةُ مَرۡيَمَ

19. मरयम

(मक्का में उतरी-आयतें 98)

परिचय

नाम

इस सूरा का नाम आयत “वज़कुर फ़िल किताबि मर-य-म" से लिया गया है।

उतरने का समय

इस सूरा के उतरने का समय हबशा की हिजरत से पहले का है। विश्वसनीय रिवायतों से मालूम होता है कि मुसलमान मुहाजिर जब नज्जाशी के दरबार में बुलाए गए थे, उस समय हजरत जाफ़र (रज़ि०) ने यही सूरा भरे दरबार में तिलावत की (पढ़ी) थी।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

यह सूरा उस युग में उतरी थी जब क़ुरैश के सरदार मज़ाक उड़ाने, उपहास करने, लोभ देने, डराने और झूठे आरोपों का प्रचार करके इस्लामी आन्दोलन को दबाने में विफल होकर ज़ुल्मो-सितम, मार-पीट और आर्थिक दबाव के हथियार इस्तेमाल करने लगे थे। हर क़बीले के लोगों ने अपने-अपने क़बीले के नव-मुस्लिमों को तंग किया और तरह-तरह से सताकर उन्हें इस्लाम छोड़ने पर मजबूर करने की कोशिश की। इस सिलसिले में मुख्य रूप से ग़रीब लोग और वे गुलाम और दास जो क़ुरैशवालों के अधीन बनकर रहते थे, बुरी तरह पीसे गए। ये परिस्थितियाँ जब असहनीय हो गईं तो रजब, 45 आमुल-फ़ील (सन् 05 नब्वी) में नबी (सल्ल०) की अनुमति के साथ अधिकतर मुसलमान मक्का से हबशा हिजरत कर गए। पहले ग्यारह मर्दो और चार औरतों ने हबशा की राह ली। क़ुरैश के लोगों ने समुद्र-तट तक उनका पीछा किया, मगर सौभाग्य से शुऐबा के बन्दरगाह पर उनको ठीक समय पर हबशा के लिए नाव मिल गई और वे गिरफ़्तार होने से बच गए। फिर कुछ महीने के अन्दर कुछ लोगों ने हिजरत की, यहाँ तक कि 53 मर्द, 11 औरतें और 7 ग़ैर-क़ुरैशी मुसलमान हबशा में जमा हो गए और मक्का में नबी (सल्ल०) के साथ सिर्फ़ 40 आदमी रह गए थे।

इस हिजरत से मक्का के घर-घर में कोहराम मच गया, क्योंकि क़ुरैश के छोटे और बड़े परिवारों में से कोई ऐसा न था जिसके युवक इन मुहाजिरों में शामिल न हों। इसी लिए कोई घर न था जो इस घटना से प्रभावित न हुआ हो। कुछ लोग इसकी वजह से इस्लाम विरोध में पहले से अधिक कठोर हो गए और कुछ के दिलों पर इसका प्रभाव ऐसा हुआ कि अन्त में वे मुसलमान होकर रहे । चुनांँचे हज़रत उमर (रज़ि०) के इस्लाम-विरोध पर पहली चोट इसी घटना से लगी थी।

इस हिजरत के बाद क़ुरैश के सरदार सिर जोड़कर बैठे और उन्होंने तय किया कि अब्दुल्लाह-बिन-अबी-रबीआ (अबू जह्‍ल के माँ जाए भाई) और अम्र-बिन-आस को बहुत-से बहुमूल्य उपहार के साथ हबशा भेजा जाए और ये लोग किसी न किसी तरह नज्जाशी को इस बात पर तैयार करें कि वह मुहाजिरों को मक्का वापस भेज दे। चुनांँचे क़ुरैश के ये दोनों राजनयिक (दूत) मुसलमानों का पीछा करते हुए हबशा पहुँचे। पहले उन्होंने नज्जाशी के दरबारियों में ख़ूब उपहार बाँटकर [सबको अपने मिशन के समर्थन पर] राज़ी कर लिया, फिर नज्जाशी से मिले और उसको मूल्यवान भेंट देने के बाद उन मुहाजिरों की वापसी का निवेदन किया, जिसका उसके दरबारियों ने भरपूर समर्थन किया । मगर नज्जाशी ने बिगड़कर कहा कि “इस तरह तो मैं उन्हें हवाले नहीं करूँगा। जिन लोगों ने दूसरे देश को छोड़कर मेरे देश पर विश्वास किया और यहाँ शरण लेने के लिए आए, उनसे मैं विश्वासघात नहीं कर सकता। पहले मैं उन्हें बुलाकर जाँच करूँगा कि ये लोग उनके बारे में जो कुछ कहते हैं, उसकी वास्तविकता क्या है।” चुनांँचे नज्जाशी ने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के साथियों को अपने दरबार में बुला भेजा। नज्जाशी का सन्देश पाकर सब मुहाजिर जमा हुए और उन्होंने आपसी मश्‍वरे से एक साथ होकर फ़ैसला किया कि नबी (सल्ल०) ने हमें जो शिक्षा दी है, हम तो वही बिना कुछ घटाए-बढ़ाए सामने रख देंगे, भले ही नज्जाशी हमें रखे या निकाल दे। वे दरबार में पहुँचे तो नज्जाशी के सवाल करने पर हज़रत जाफ़र-बिन-अबी तालिब (रज़ि०) ने तत्काल एक भाषण देते हुए अरब की अज्ञानता के हालात, मुहम्मद (सल्ल०) का नबी बनाए जाने, इस्लाम की शिक्षाओं और मुसलमानों पर क़ुरैश के अत्याचारों को खोल-खोलकर बयान किया। नज्जाशी ने यह भाषण सुनकर कहा कि तनिक मुझे वह कलाम (वाणी) सुनाओ जो तुम कहते हो कि अल्लाह की ओर से तुम्हारे नबी पर उतरा है। हज़रत जाफ़र (रज़ि०) ने जवाब में सूरा मरयम का वह आरंभिक भाग सुनाया जो हज़रत यह्‍या और हज़रत ईसा (अलैहि०) से संबंधित है। नज्जाशी उसको सुनता रहा और रोता रहा, यहाँ तक कि उसकी दाढ़ी भीग गई। जब हज़रत जाफ़र (रजि०) ने तिलवात ख़त्म की तो उसने कहा, “निश्चय ही यह कलाम और जो कुछ ईसा लाए थे, दोनों एक ही स्रोत से निकले हैं। अल्लाह की क़सम! मैं तुम्हें उन लोगों के हवाले नहीं करूँगा"।

दूसरे दिन अम्र-बिन-आस ने नजाशी से कहा कि "तनिक इन लोगों को बुलाकर यह तो पूछिए कि मरयम के बेटे ईसा के बारे में उनका अक़ीदा (विश्वास) क्या है? ये लोग उनके बारे में एक बड़ी [भयानक] बात कहते हैं ।” नज्जाशी ने फिर मुहाजिरों को बुला भेजा और जब अम्र-बिन-आस द्वारा किया गया प्रश्न उनके सामने दोहराया तो जाफ़र-बिन-अबी तालिब (रज़ि०) ने उठकर बे-झिझक कहा कि “वे अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं और उसकी ओर से एक रूह और एक कलिमा हैं जिसे अल्लाह ने कुँवारी मरयम पर डाला।" नज्जाशी ने सुनकर एक तिनका धरती से उठाया और कहा, “अल्लाह की क़सम ! जो कुछ तुमने कहा ईसा उससे इस तिनके के बराबर भी ज़्यादा नहीं थे।" इसके बाद नज्जाशी ने क़ुरैश के भेजे हुए तमाम उपहार यह कहकर वापस कर दिए कि मैं घूस नहीं लेता और मुहाजिरों से कहा तुम बिल्कुल निश्चिन्त होकर रहो।

विषय और वार्ताएँ

इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दृष्टि में रखकर जब हम इस सूरा को देखते हैं तो उसमें पहली बात उभरकर हमारे सामने यह आती है कि यद्यपि मुसलमान एक उत्पीड़ित शरणार्थी गिरोह के रूप में अपना वतन छोड़कर दूसरे देश में जा रहे थे, मगर इस दशा में भी अल्लाह ने उनको दीन के मामले में तनिक भर भी लचक दिखाने की शिक्षा न दी, बल्कि चलते वक़्त राह में काम आनेवाले सामान के रूप में यह सूरा उनके साथ की ताकि ईसाइयों के देश में ईसा (अलैहि०) की बिल्कुल सही हैसियत प्रस्तुत करें और उनका अल्लाह का बेटा होने से साफ़ साफ़ इंकार कर दें।

आयत 1 से लेकर 40 तक हज़रत यहया और ईसा का क़िस्सा सुनाने के बाद फिर इससे आगे की आयतों में समय के हालात को देखते हुए हज़रत इबाहीम (अलैहि०) का किस्सा सुनाया गया है, क्योंकि ऐसे ही हालात में वे भी अपने बाप और परिवार और देशवालों के अत्याचारों से तंग आकर वतन से निकल खड़े हुए थे। इससे एक ओर मक्का के विधर्मियों को यह शिक्षा दी गई है कि आज हिजरत करनेवाले मुसलमान इबाहीम (अलैहि०) की पोजीशन में हैं और तुम लोग उन ज़ालिमों की स्थिति में हो जिन्होंने उनको घर से निकाला था। दूसरी ओर मुहाजिरों को यह शुभ-सूचना दी गई है कि जिस तरह इब्राहीम (अलैहि०) वतन से निकलकर नष्ट न हुए, बल्कि और अधिक उच्च पद पर आसीन हो गए, ऐसा ही भला अंजाम तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।

इसके बाद नबियों का उल्लेख किया गया है, जिसमें यह बताना अभिप्रेत है कि तमाम नबी वही दीन लेकर आए थे जो मुहम्मद (सल्ल०) लाए हैं। मगर नबियों के गुज़र जाने के बाद उनकी उम्मतें बिगड़ती रही है और आज अलग-अलग उम्मतों (समुदायो) में जो गुमराहियाँ पाई जा रही हैं, ये उसी बिगाड़ का फल हैं।

आयत 67 से अन्त तक मक्का के इस्लाम-शत्रुओं की पथभ्रष्टता की कड़ी आलोचना की गई है और कलाम (वाणी) समाप्त करते हुए ईमानवालों को शुभ-सूचना सुनाई गई है कि सत्य के शत्रुओं की सारी कोशिशों के बावजूद अन्तत: तुम लोकप्रिय बनकर रहोगे।

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سُورَةُ مَرۡيَمَ
19. मरयम
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
كٓهيعٓصٓ
(1) काफ़० हा० या० ऐन० साद०।
ذِكۡرُ رَحۡمَتِ رَبِّكَ عَبۡدَهُۥ زَكَرِيَّآ ۝ 1
(2) वर्णन है उस दयालुता का जो तेरे रब ने अपने बन्दे ज़करीया पर दर्शाई थी,
إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥ نِدَآءً خَفِيّٗا ۝ 2
(3) जबकि उसने अपने रब को चुपके-चुपके पुकारा।
قَالَ رَبِّ إِنِّي وَهَنَ ٱلۡعَظۡمُ مِنِّي وَٱشۡتَعَلَ ٱلرَّأۡسُ شَيۡبٗا وَلَمۡ أَكُنۢ بِدُعَآئِكَ رَبِّ شَقِيّٗا ۝ 3
(4) उसने निवेदन किया, “ऐ पालनहार, मेरी हड्डियाँ तक घुल गई हैं और सिर बुढापे से भढ़क उठा है। ऐ पालनहार, मैं कभी तुझसे दुआ माँगकर असफल नहीं रहा।
وَإِنِّي خِفۡتُ ٱلۡمَوَٰلِيَ مِن وَرَآءِي وَكَانَتِ ٱمۡرَأَتِي عَاقِرٗا فَهَبۡ لِي مِن لَّدُنكَ وَلِيّٗا ۝ 4
(5) मुझे अपने पीछे अपने भाई-बन्धुओं की बुराइयों का डर है और मेरी बीवी बाँझ है।
يَرِثُنِي وَيَرِثُ مِنۡ ءَالِ يَعۡقُوبَۖ وَٱجۡعَلۡهُ رَبِّ رَضِيّٗا ۝ 5
(6) तू मुझे अपने विशेष अनुग्रह से एक उत्तराधिकारी प्रदान कर दे जो मेरा उत्तराधिकारी भी हो और याक़ूब के कुल का भी उत्तराधिकारी हो, और ऐ पालनहार, उसको एक प्रिय इनसान बना।” (7) (जवाब दिया गया) ऐ ज़करीया, हम तुझे एक लड़के की ख़ुशख़बरी देते हैं जिसका नाम यह्या होगा। हमने इस नाम का कोई आदमी इससे पहले पैदा नहीं किया।”
يَٰزَكَرِيَّآ إِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلَٰمٍ ٱسۡمُهُۥ يَحۡيَىٰ لَمۡ نَجۡعَل لَّهُۥ مِن قَبۡلُ سَمِيّٗا ۝ 6
(7) (जवाब दिया गया) ऐ ज़करीया, हम तुझे एक लड़के की ख़ुशख़बरी देते हैं जिसका नाम यह्या होगा। हमने इस नाम का कोई आदमी इससे पहले पैदा नहीं किया।”
قَالَ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي غُلَٰمٞ وَكَانَتِ ٱمۡرَأَتِي عَاقِرٗا وَقَدۡ بَلَغۡتُ مِنَ ٱلۡكِبَرِ عِتِيّٗا ۝ 7
(8) निवेदन किया, पालनहार, भला मेरे यहाँ कैसे बेटा होगा जबकि मेरी बीवी बाँझ है और मैं बूढ़ा होकर सूख चुका हूँ?"
قَالَ كَذَٰلِكَ قَالَ رَبُّكَ هُوَ عَلَيَّ هَيِّنٞ وَقَدۡ خَلَقۡتُكَ مِن قَبۡلُ وَلَمۡ تَكُ شَيۡـٔٗا ۝ 8
(9) जवाब मिला, “ऐसा ही होगा1। तेरा रब कहता है कि यह तो मेरे लिए एक तनिक सी बात है, आख़िर इससे पहले मैं तुझे पैदा कर चुका हूँ जबकि तू कोई चीज़़ न था।”
1. अर्थात् तेरे बूढ़े होने और तेरी बीवी के बाँझ होने के बावजूद तेरे यहाँ लड़का पैदा होगा।
قَالَ رَبِّ ٱجۡعَل لِّيٓ ءَايَةٗۖ قَالَ ءَايَتُكَ أَلَّا تُكَلِّمَ ٱلنَّاسَ ثَلَٰثَ لَيَالٖ سَوِيّٗا ۝ 9
(10) ज़करीया ने कहा, “पालनहार, मेरे लिए कोई निशानी निश्चित कर दे।” कहा, “तेरे लिए निशानी यह है कि तू लगातार तीन दिन लोगों से बात न कर सके।”
فَخَرَجَ عَلَىٰ قَوۡمِهِۦ مِنَ ٱلۡمِحۡرَابِ فَأَوۡحَىٰٓ إِلَيۡهِمۡ أَن سَبِّحُواْ بُكۡرَةٗ وَعَشِيّٗا ۝ 10
(11) अतः वह मेहराब से निकलकर अपनी क़ौम के लोगों के सामने आया और उसने इशारे से उनको आदेश दिया कि सुबह और शाम तसबीह करो।
يَٰيَحۡيَىٰ خُذِ ٱلۡكِتَٰبَ بِقُوَّةٖۖ وَءَاتَيۡنَٰهُ ٱلۡحُكۡمَ صَبِيّٗا ۝ 11
(12) “ऐ यहया, ईश्वरीय ग्रन्थ को मज़बूत धाम ले2।” हमने उसे बचपन ही में निर्णय शक्ति3 प्रदान की
2. बीच में यह विवरण छोड़ दिया गया है कि इस ईश्वरीय आदेश के अनुसार हज़रत यह्या पैदा हुए और जवानी की उम्र को पहुँचे।
3. यहाँ “हुक्म” शब्द इस्तेमाल हुआ है। “हुक्म” का अर्थ है निर्णय शक्ति, 'इजतिहाद' की शक्ति (अर्थात् धर्म 8 के मौलिक नियमों और शिक्षाओं के अन्तर्गत आवश्यकतानुसार विस्तृत विधि-विधान आदि के सूत्रपात की क्षमता), धर्म की गहरी समझ, मामलों में ठीक मत निर्धारित करने की योग्यता और अल्लाह की ओर से मामलों में फ़ैसला देने का अधिकार।
وَحَنَانٗا مِّن لَّدُنَّا وَزَكَوٰةٗۖ وَكَانَ تَقِيّٗا ۝ 12
(13) और अपनी ओर से उसको विनम्रता और पवित्रता प्रदान की और वह बड़ा परहेज़गार
وَبَرَّۢا بِوَٰلِدَيۡهِ وَلَمۡ يَكُن جَبَّارًا عَصِيّٗا ۝ 13
(14) और अपने माँ-बाप का हक़ पहचाननेवाला था। वह जाबिर (सरकश) न था और न अवज्ञाकारी
وَسَلَٰمٌ عَلَيۡهِ يَوۡمَ وُلِدَ وَيَوۡمَ يَمُوتُ وَيَوۡمَ يُبۡعَثُ حَيّٗا ۝ 14
(15) सलाम उसपर, जिस दिन कि वह पैदा हुआ और जिस दिन वह मरे और जिस दिन वह ज़िन्दा करके उठाया जाए।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ مَرۡيَمَ إِذِ ٱنتَبَذَتۡ مِنۡ أَهۡلِهَا مَكَانٗا شَرۡقِيّٗا ۝ 15
(16) और ऐ नबी, इस किताब में मरयम का हाल बयान करो, जबकि वह अपने लोगों से अलग होकर पूर्व की ओर एकान्तवासी हो गई थी4
4. अर्थात् बैतुल-मक़दिस के पूर्वी भाग में।
فَٱتَّخَذَتۡ مِن دُونِهِمۡ حِجَابٗا فَأَرۡسَلۡنَآ إِلَيۡهَا رُوحَنَا فَتَمَثَّلَ لَهَا بَشَرٗا سَوِيّٗا ۝ 16
(17) और परदा डालकर उनसे छिप बैठी थी।5 इस हालत में हमने उसके पास अपनी एक आत्मा को (अर्थात् फ़रिश्ते को) भेजा और वह उसके सामने एक पूरे इनसान के रूप में प्रकट हो गया।
5. अर्थात् 'एतिकाफ़' में बैठ गई थी।
قَالَتۡ إِنِّيٓ أَعُوذُ بِٱلرَّحۡمَٰنِ مِنكَ إِن كُنتَ تَقِيّٗا ۝ 17
(18) मरयम यकायक बोल उठी कि “अगर तू कोई ईश्वर से डरनेवाला आदमी है तो मैं तुझसे करुणामय ईश्वर की पनाह माँगती हूँ।”
قَالَ إِنَّمَآ أَنَا۠ رَسُولُ رَبِّكِ لِأَهَبَ لَكِ غُلَٰمٗا زَكِيّٗا ۝ 18
(19) उसने कहा, “मैं तो तेरे रब का भेजा हुआ हूँ और इसलिए भेजा गया हूँ कि तुझे एक पवित्र लड़का दूँ।”
قَالَتۡ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي غُلَٰمٞ وَلَمۡ يَمۡسَسۡنِي بَشَرٞ وَلَمۡ أَكُ بَغِيّٗا ۝ 19
(20) मरयम ने कहा, “मेरे यहाँ कैसे लड़का होगा जबकि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं है और मैं कोई बदकार औरत नहीं हूँ।”
قَالَ كَذَٰلِكِ قَالَ رَبُّكِ هُوَ عَلَيَّ هَيِّنٞۖ وَلِنَجۡعَلَهُۥٓ ءَايَةٗ لِّلنَّاسِ وَرَحۡمَةٗ مِّنَّاۚ وَكَانَ أَمۡرٗا مَّقۡضِيّٗا ۝ 20
(21) फ़रिश्ते ने कहा, “ऐसा ही होगा6, तेरा रब कहता है कि ऐसा करना मेरे लिए बहुत आसान है, और हम यह इसलिए करेंगे कि उस लड़के को लोगों के लिए एक निशानी बनाएँ7 और अपनी ओर से एक दयालुता। और यह काम होकर रहना है।"
6. अर्थात् बिना इसके कि कोई मर्द तुझे हाथ लगाए तेरे यहाँ बच्चा पैदा होगा।
7. अर्थात् हम उस बच्चे को एक ज़िन्दा चमत्कार बना देना चाहते हैं।
۞فَحَمَلَتۡهُ فَٱنتَبَذَتۡ بِهِۦ مَكَانٗا قَصِيّٗا ۝ 21
(22) मरयम को उस बच्चे का गर्भ रह गया और वह उस गर्भ को लिए हुए एक दूर के स्थान पर चली गई।
فَأَجَآءَهَا ٱلۡمَخَاضُ إِلَىٰ جِذۡعِ ٱلنَّخۡلَةِ قَالَتۡ يَٰلَيۡتَنِي مِتُّ قَبۡلَ هَٰذَا وَكُنتُ نَسۡيٗا مَّنسِيّٗا ۝ 22
(23) फिर प्रसव पीड़ा ने उसे एक खजूर के पेड़ के नीचे पहुँचा दिया। वह कहने लगी, “क्या ही अच्छा होता कि मैं इससे पहले ही मर जाती और मेरा नामो-निशान न रहता।”8
8. यह कथन जिस स्थिति और अवसर का है उसपर विचार किया जाए तो मालूम होता है कि हज़रत मरयम ने यह बात प्रसव पीड़ा के कारण नहीं कही थी, बल्कि इसलिए कही थी कि बाप के बिना जो बच्चा पैदा हुआ है उसे लेकर कहाँ जाएँ। इसी कारण वे गर्भ के समय में अकेली एक दूरवर्ती स्थान पर चली गई थीं हालाँकि उनकी माँ और ख़ानदान के लोग वतन में मौजूद थे।
فَنَادَىٰهَا مِن تَحۡتِهَآ أَلَّا تَحۡزَنِي قَدۡ جَعَلَ رَبُّكِ تَحۡتَكِ سَرِيّٗا ۝ 23
(24) फ़रिश्ते ने पाँयती से उसको पुकारकर कहा, “ग़म न कर तेरे रब ने तेरे नीचे एक स्रोत बहा दिया है
وَهُزِّيٓ إِلَيۡكِ بِجِذۡعِ ٱلنَّخۡلَةِ تُسَٰقِطۡ عَلَيۡكِ رُطَبٗا جَنِيّٗا ۝ 24
(25) और तू तनिक इस पेड़ के तने को हिला, तेरे ऊपर रस भरी ताज़ा खजूरें टपक पड़ेंगी।
فَكُلِي وَٱشۡرَبِي وَقَرِّي عَيۡنٗاۖ فَإِمَّا تَرَيِنَّ مِنَ ٱلۡبَشَرِ أَحَدٗا فَقُولِيٓ إِنِّي نَذَرۡتُ لِلرَّحۡمَٰنِ صَوۡمٗا فَلَنۡ أُكَلِّمَ ٱلۡيَوۡمَ إِنسِيّٗا ۝ 25
(26) अत: तू खा और पी और अपनी आँखें ठण्डी कर फिर अगर कोई आदमी तुझे दिखाई दे तो उससे कह दे कि “मैंने करुणामय (ईश्वर) के लिए रोज़े की मन्नत मानी है, इसलिए आज मैं किसी से न बोलूँगी।"
فَأَتَتۡ بِهِۦ قَوۡمَهَا تَحۡمِلُهُۥۖ قَالُواْ يَٰمَرۡيَمُ لَقَدۡ جِئۡتِ شَيۡـٔٗا فَرِيّٗا ۝ 26
(27) फिर वह उस बच्चे को लिए हुए अपनी क़ौम में आई। लोग कहने लगे, “ऐ मरयम, यह तो तूने बड़ा पाप कर डाला।
يَٰٓأُخۡتَ هَٰرُونَ مَا كَانَ أَبُوكِ ٱمۡرَأَ سَوۡءٖ وَمَا كَانَتۡ أُمُّكِ بَغِيّٗا ۝ 27
(28) ऐ हारून की बहन9, न तेरा बाप कोई बुरा आदमी था और न तेरी माँ ही कोई बदकार औरत थी।”
9. अर्थात् हारून के ख़ानदान की बेटी यह अरबी भाषा का मुहावरा है कि किसी क़बीले के व्यक्ति को उस क़बीले का भाई कहा जाता है। क़ौम के लोगों की इस बात का अर्थ यह था कि हमारे सबसे ऊँचे धार्मिक परिवार की लड़की, तूने यह क्या कर डाला?
فَأَشَارَتۡ إِلَيۡهِۖ قَالُواْ كَيۡفَ نُكَلِّمُ مَن كَانَ فِي ٱلۡمَهۡدِ صَبِيّٗا ۝ 28
(29) मरयम ने बच्चे की ओर इशारा कर दिया। लोगों ने कहा, “हम इससे क्या बात करें जो पालने में पड़ा हुआ एक बच्चा है?”
قَالَ إِنِّي عَبۡدُ ٱللَّهِ ءَاتَىٰنِيَ ٱلۡكِتَٰبَ وَجَعَلَنِي نَبِيّٗا ۝ 29
(30) बच्चा बोल उठा, “मैं अल्लाह का बन्दा हूँ।10 उसने मुझे किताब दी, और नबी बनाया,
10. यह थी वह निशानी जिसका उल्लेख इससे पहले आयत 21 में हो चुका है। नवजात बच्चे ने पालने में पड़े हुए बोलना शुरू कर दिया जिससे सब पर स्पष्ट हो गया कि वह किसी पाप का फल नहीं है, बल्कि एक चमत्कार है जो अल्लाह ने दिखाया है। क़ुरआन को सूरा 3 (आले इमरान) आयत 46 और सूरा 5 (माइदा)आयत 110 में भी कहा गया है कि हज़रत ईसा ने पालने में बात की थी।
وَجَعَلَنِي مُبَارَكًا أَيۡنَ مَا كُنتُ وَأَوۡصَٰنِي بِٱلصَّلَوٰةِ وَٱلزَّكَوٰةِ مَا دُمۡتُ حَيّٗا ۝ 30
(31) और बरकतवाला किया जहाँ भी मैं रहूँ, और नमाज़ और ज़कात की पाबन्दी का हुक्म दिया जब तक मैं ज़िन्दा रहूँ,
وَبَرَّۢا بِوَٰلِدَتِي وَلَمۡ يَجۡعَلۡنِي جَبَّارٗا شَقِيّٗا ۝ 31
(32) और अपनी माँ का हक़ अदा करनेवाला बनाया11, और मुझको ज़ालिम और अत्याचारी नहीं बनाया।
11. माँ-बाप का हक़ अदा करनेवाला नहीं, बल्कि सिर्फ़ माँ का हक़ अदा करनेवाला कहा है। यह भी इस बात का प्रमाण है कि हज़रत ईसा का बाप कोई न था और इसी का एक स्पष्ट प्रमाण यह है कि क़ुरआन में हर जगह उनको ईसा इब्ने-मरयम (मरयम का बेटा) कहा गया है।
وَٱلسَّلَٰمُ عَلَيَّ يَوۡمَ وُلِدتُّ وَيَوۡمَ أَمُوتُ وَيَوۡمَ أُبۡعَثُ حَيّٗا ۝ 32
(33) सलाम है मुझपर जबकि मैं पैदा हुआ और जबकि मैं मरूँ और जबकि ज़िन्दा करके उठाया जाऊँ।”12
12. यह निशानी दिखाकर अल्लाह ने उसी समय इसराईलियों पर हुज्जत पूरी कर दी थी। यही कारण है कि जब जवान होकर हज़रत ईसा (अलैहि०) ने पैग़म्बरी का काम शुरू किया और इस क़ौम ने न सिर्फ़ उनका इनकार किया बल्कि उनकी जान के पीछे पड़ गई और उनकी आदरणीय माँ पर व्यभिचार के आरोप लगाने से भी न चूकी तो अल्लाह ने उसको ऐसी सज़ा दी जो किसी क़ौम को नहीं दी गई।
ذَٰلِكَ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَۖ قَوۡلَ ٱلۡحَقِّ ٱلَّذِي فِيهِ يَمۡتَرُونَ ۝ 33
(34) यह है मरयम का बेटा ईसा और यह है उसके बारे में वह सच्ची बात जिसमें लोग शक कर रहे है।
مَا كَانَ لِلَّهِ أَن يَتَّخِذَ مِن وَلَدٖۖ سُبۡحَٰنَهُۥٓۚ إِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ ۝ 34
(35) अल्लाह का यह काम नहीं कि वह किसी को अपना बेटा बनाए। वह पवित्र ज़ात है। वह जब किसी बात का निर्णय करता है तो कहता है कि हो जा, और बस वह हो जाती है।13
13. यह ईसाइयों पर हुज्जत पूरी की गई है। सिर्फ़ चमत्कार से किसी का पैदा होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि (अल्लाह पनाह में रखे) उसे अल्लाह का बेटा घोषित किया जाए।
وَإِنَّ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُوهُۚ هَٰذَا صِرَٰطٞ مُّسۡتَقِيمٞ ۝ 35
(36) (और ईसा ने कहा था कि) “अल्लाह मेरा रब भी है और तुम्हारा रब भी, अत: तुम उसी की बन्दगी करो, यही सीधा मार्ग है।”
فَٱخۡتَلَفَ ٱلۡأَحۡزَابُ مِنۢ بَيۡنِهِمۡۖ فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن مَّشۡهَدِ يَوۡمٍ عَظِيمٍ ۝ 36
(37) मगर फिर विभिन्न गिरोह परस्पर विभेद करने लगे। अतः जिन लोगों ने इनकार किया उनके लिए वह समय बड़ी तबाही का होगा जबकि वे एक बड़ा दिन देखेंगे।
أَسۡمِعۡ بِهِمۡ وَأَبۡصِرۡ يَوۡمَ يَأۡتُونَنَا لَٰكِنِ ٱلظَّٰلِمُونَ ٱلۡيَوۡمَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ ۝ 37
(38) जब वे हमारे सामने हाज़िर होंगे उस दिन तो उनके कान भी ख़ूब सुन रहे होंगे और उनकी आँखे भी ख़ूब देखती होंगी, मगर आज ये ज़ालिम खुली गुमराही में पड़े हुए हैं।
وَأَنذِرۡهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡحَسۡرَةِ إِذۡ قُضِيَ ٱلۡأَمۡرُ وَهُمۡ فِي غَفۡلَةٖ وَهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 38
(39) ऐन इस हालत में जबकि ये लोग बेसुध हैं और ईमान नहीं ला रहे हैं, उन्हें उस दिन से डरा दो जबकि फ़ैसला कर दिया जाएगा और पछतावे के सिवा कोई उपाय न होगा।
إِنَّا نَحۡنُ نَرِثُ ٱلۡأَرۡضَ وَمَنۡ عَلَيۡهَا وَإِلَيۡنَا يُرۡجَعُونَ ۝ 39
(40) आख़िरकार हम ही ज़मीन और उसकी सारी चीज़़ों के वारिस होंगे और सब हमारी ओर ही पलटाए जाएँगे।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ إِبۡرَٰهِيمَۚ إِنَّهُۥ كَانَ صِدِّيقٗا نَّبِيًّا ۝ 40
(41) और इस किताब में इबराहीम का क़िस्सा बयान करो, बेशक वह एक सच्चा इनसान और एक नबी था।
إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ يَٰٓأَبَتِ لِمَ تَعۡبُدُ مَا لَا يَسۡمَعُ وَلَا يُبۡصِرُ وَلَا يُغۡنِي عَنكَ شَيۡـٔٗا ۝ 41
(42) (इन्हें तनिक उस अवसर की याद दिलाओ) जबकि उसने अपने बाप से कहा कि “अब्बाजान, आप क्यों उन चीज़़ों की उपासना करते हैं जो न सुनती हैं, न देखती है और न आपका कोई काम बना सकती हैं?
يَٰٓأَبَتِ إِنِّي قَدۡ جَآءَنِي مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَمۡ يَأۡتِكَ فَٱتَّبِعۡنِيٓ أَهۡدِكَ صِرَٰطٗا سَوِيّٗا ۝ 42
(43) अब्बाजान, मेरे पास एक ऐसा ज्ञान आया है जो आपके पास नहीं आया, आप मेरे पीछे चलें, मैं आपको सीधा मार्ग बताऊँगा।
يَٰٓأَبَتِ لَا تَعۡبُدِ ٱلشَّيۡطَٰنَۖ إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ كَانَ لِلرَّحۡمَٰنِ عَصِيّٗا ۝ 43
(44) अब्बाजान, आप शैतान की बन्दगी न करें, शैतान तो करुणामय (ईश्वर) का अवज्ञाकारी है।
يَٰٓأَبَتِ إِنِّيٓ أَخَافُ أَن يَمَسَّكَ عَذَابٞ مِّنَ ٱلرَّحۡمَٰنِ فَتَكُونَ لِلشَّيۡطَٰنِ وَلِيّٗا ۝ 44
(45) अब्बाजान, मुझे डर है कि कहीं आप करुणामय (ईश्वर) के अज़ाब में ग्रस्त न हो जाएँ और शैतान के साथी बनकर रहें।”
قَالَ أَرَاغِبٌ أَنتَ عَنۡ ءَالِهَتِي يَٰٓإِبۡرَٰهِيمُۖ لَئِن لَّمۡ تَنتَهِ لَأَرۡجُمَنَّكَۖ وَٱهۡجُرۡنِي مَلِيّٗا ۝ 45
(46) बाप ने कहा, “इबराहीम, क्या तू मेरे उपास्यों से फिर गया है? अगर तू बाज़ न आया तो मैं तुझे संगसार (पत्थर मारकर काम तमाम) कर दूँगा।
قَالَ سَلَٰمٌ عَلَيۡكَۖ سَأَسۡتَغۡفِرُ لَكَ رَبِّيٓۖ إِنَّهُۥ كَانَ بِي حَفِيّٗا ۝ 46
(47) बस तू हमेशा के लिए मुझसे अलग हो जा।” इबराहीम ने कहा, “सलाम है आपको मैं अपने रब से दुआ करूँगा कि आपको माफ़ कर दे, मेरा रब मुझपर बड़ा मेहरबान है।
وَأَعۡتَزِلُكُمۡ وَمَا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَأَدۡعُواْ رَبِّي عَسَىٰٓ أَلَّآ أَكُونَ بِدُعَآءِ رَبِّي شَقِيّٗا ۝ 47
(48) मैं आप लोगों को भी छोड़ता हूँ और उन हस्तियों को भी जिन्हें आप लोग अल्लाह को छोड़कर पुकारा करते हैं। मैं तो अपने रब ही को पुकारूँगा उम्मीद है कि मैं अपने रब को पुकारकर नामुराद न रहूँगा।”
فَلَمَّا ٱعۡتَزَلَهُمۡ وَمَا يَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَهَبۡنَا لَهُۥٓ إِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَۖ وَكُلّٗا جَعَلۡنَا نَبِيّٗا ۝ 48
(49) तो जब वह उन लोगों से और अल्लाह के अतिरिक्त उनके अन्य उपास्यों से जुदा हो गया तो हमने उसको इसहाक़ और याक़ूब जैसी औलाद दी और हर एक को नबी बनाया
وَوَهَبۡنَا لَهُم مِّن رَّحۡمَتِنَا وَجَعَلۡنَا لَهُمۡ لِسَانَ صِدۡقٍ عَلِيّٗا ۝ 49
(50) और उनपर अपनी दयालुता दर्शाई और उनको सच्ची ख्याति प्रदान की।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ مُوسَىٰٓۚ إِنَّهُۥ كَانَ مُخۡلَصٗا وَكَانَ رَسُولٗا نَّبِيّٗا ۝ 50
(51) और चर्चा करो इस किताब में मूसा की। वह एक चुना हुआ व्यक्ति था और रसूल-नबी था।14
14. ‘रसूल’ का अर्थ है ‘भेजा हुआ’। ‘नबी’ के अर्थ में भाषा शास्त्रियों के बीच मतभेद है। कुछ के मतानुसार नबी का अर्थ है ‘ख़बर देनेवाला’ और कुछ की दृष्टि में नबी का अर्थ है ‘उच्च पदस्थ’ और ‘सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित’। अतः किसी व्यक्ति को ‘रसूल-नबी’ कहने का अर्थ या तो ‘उच्च पदस्थ पैग़म्बर’ है, या ‘अल्लाह की ओर से ख़बरें देनेवाला पैग़म्बर’। क़ुरआन मजीद में ये दोनों शब्द आमतौर पर समान अर्थ में इस्तेमाल हुए हैं। लेकिन कुछ स्थानों पर रसूल और नबी के शब्द इस तरह भी इस्तेमाल हुए हैं जिससे व्यक्त होता है कि इन दोनों में दर्जे या कार्य भार की दृष्टि से कोई पारिभाषिक अन्तर है। मिसाल के तौर पर सूरा 22 (हज्ज), आयत 53 में कहा गया है, ‘हमने तुमसे पहले नहीं भेजा कोई रसूल और न नबी मगर’। ये शब्द साफ़ स्पष्ट करते हैं कि रसूल और नबी दो अलग परिभाषाएँ हैं जिनके बीच कोई आन्तरिक अन्तर ज़रूर है। इसी कारण टीकाकारों में यह वाद-विवाद चल पड़ा है कि यह अन्तर किस तरह का है। लेकिन सच्ची बात यह है कि अकाट्य प्रमाणों के साथ कोई भी रसूल और नबी की अलग-अलग हैसियतों को निश्चित नहीं कर सका है। ज़्यादा से ज़्यादा जो बात विश्वासपूर्वक कही जा सकती है वह यह है कि रसूल का शब्द नबी की अपेक्षा विशिष्ट है, अर्थात् हर रसूल नबी भी होता है, मगर हर नबी रसूल नहीं होता। दूसरे शब्दों में नबियों में से रसूल का शब्द उन प्रतापवान हस्तियों के लिए बोला गया है जिनको सामान्य नबियों की अपेक्षा ज़्यादा महत्त्वपूर्ण पद सौंपा गया था। इसी की पुष्टि उस हदीस से भी होती है जिसमें अल्लाह के रसूल (सल्ल०) से रसूलों की संख्या पूछी गई तो आपने 313 या 315 बताई और नबियों की संख्या पूछी गई तो आपने एक लाख 24 हज़ार बताई।
وَنَٰدَيۡنَٰهُ مِن جَانِبِ ٱلطُّورِ ٱلۡأَيۡمَنِ وَقَرَّبۡنَٰهُ نَجِيّٗا ۝ 51
(52) हमने उसको तूर की दाहिनी ओर से पुकारा और रहस्य की बातचीत से उसको सामीप्य प्रदान किया,
وَوَهَبۡنَا لَهُۥ مِن رَّحۡمَتِنَآ أَخَاهُ هَٰرُونَ نَبِيّٗا ۝ 52
(53) और अपनी दयालुता से उसके भाई हारून को नबी बनाकर उसे (सहायक के रूप में) दिया।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ إِسۡمَٰعِيلَۚ إِنَّهُۥ كَانَ صَادِقَ ٱلۡوَعۡدِ وَكَانَ رَسُولٗا نَّبِيّٗا ۝ 53
(54) और इस किताब में इसमाईल की चर्चा करो। वह वादे का सच्चा था और -नबी था।
وَكَانَ يَأۡمُرُ أَهۡلَهُۥ بِٱلصَّلَوٰةِ وَٱلزَّكَوٰةِ وَكَانَ عِندَ رَبِّهِۦ مَرۡضِيّٗا ۝ 54
(55) वह अपने घरवालों को नमाज़ और ज़कात का हुक्म देता था और अपने रब की दृष्टि में एक पसंदीदा इनसान था।
وَٱذۡكُرۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ إِدۡرِيسَۚ إِنَّهُۥ كَانَ صِدِّيقٗا نَّبِيّٗا ۝ 55
(56) और इस किताब में इदरीस की चर्चा करो वह एक सत्यवादी मनुष्य और एक नबी था
وَرَفَعۡنَٰهُ مَكَانًا عَلِيًّا ۝ 56
(57) और उसे हमने उच्च स्थान पर उठाया था।
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ مِن ذُرِّيَّةِ ءَادَمَ وَمِمَّنۡ حَمَلۡنَا مَعَ نُوحٖ وَمِن ذُرِّيَّةِ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡرَٰٓءِيلَ وَمِمَّنۡ هَدَيۡنَا وَٱجۡتَبَيۡنَآۚ إِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُ ٱلرَّحۡمَٰنِ خَرُّواْۤ سُجَّدٗاۤ وَبُكِيّٗا۩ ۝ 57
(58) ये वे पैग़म्बर हैं जो अल्लाह के कृपापात्र हुए आदम की सन्तान में से, और उन लोगों की नस्ल से जिन्हें हमने नूह के साथ नाव में सवार किया था और इबराहीम की नस्ल से और इसराईल की नस्ल से। और ये उन लोगों में से थे जिनको हमने मार्ग दिखाया और चुन लिया। उनका हाल यह था कि जब रहमान (करुणामय ईश्वर) की आयतें उनको सुनाई जातीं तो रोते हुए सजदे में गिर जाते थे।
۞فَخَلَفَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ خَلۡفٌ أَضَاعُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَٱتَّبَعُواْ ٱلشَّهَوَٰتِۖ فَسَوۡفَ يَلۡقَوۡنَ غَيًّا ۝ 58
(59) फिर उनके बाद वे बुरे लोग उनके उत्तराधिकारी हुए जिन्होंने नमाज़ को गँवाया और मन की इच्छाओं के पीछे चले, अतः क़रीब है कि गुमराही के परिणाम का उन्हें सामना करना पड़े।
إِلَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَأُوْلَٰٓئِكَ يَدۡخُلُونَ ٱلۡجَنَّةَ وَلَا يُظۡلَمُونَ شَيۡـٔٗا ۝ 59
(60) अलबत्ता जो तौबा कर लें और ईमान ले आएँ और अच्छा काम करें वे जन्नत में प्रवेश करेंगे और उनका तनिक भी हक़ मारा न जाएगा।
جَنَّٰتِ عَدۡنٍ ٱلَّتِي وَعَدَ ٱلرَّحۡمَٰنُ عِبَادَهُۥ بِٱلۡغَيۡبِۚ إِنَّهُۥ كَانَ وَعۡدُهُۥ مَأۡتِيّٗا ۝ 60
(61) उनके लिए हमेशा रहनेवाली जन्नतें हैं जिनका करुणामय (ईश्वर) ने अपने बन्दों से परोक्षतः वादा कर रखा है और निश्चय ही यह वादा पूरा होकर रहना है।
لَّا يَسۡمَعُونَ فِيهَا لَغۡوًا إِلَّا سَلَٰمٗاۖ وَلَهُمۡ رِزۡقُهُمۡ فِيهَا بُكۡرَةٗ وَعَشِيّٗا ۝ 61
(62) वहाँ वे कोई व्यर्थ बात न सुनेंगे, जो कुछ भी सुनेंगे ठीक ही सुनेंगे। और उनकी रोज़ी उन्हें निरन्तर सुबह और शाम मिलती रहेगी।
تِلۡكَ ٱلۡجَنَّةُ ٱلَّتِي نُورِثُ مِنۡ عِبَادِنَا مَن كَانَ تَقِيّٗا ۝ 62
(63) यह है वह जन्नत (स्वर्ग) जिसका वारिस हम अपने बन्दों में से उसको बनाएँगे जो संयमी (परहेज़गार) रहा है।
وَمَا نَتَنَزَّلُ إِلَّا بِأَمۡرِ رَبِّكَۖ لَهُۥ مَا بَيۡنَ أَيۡدِينَا وَمَا خَلۡفَنَا وَمَا بَيۡنَ ذَٰلِكَۚ وَمَا كَانَ رَبُّكَ نَسِيّٗا ۝ 63
(64) ऐ नबी, हम तुम्हारे रब की आज्ञा के बिना नहीं उतरा करते।15 जो कुछ हमारे आगे है और जो कुछ पीछे है और जो कुछ उसके बीच है हर चीज़़ का मालिक वही है और तुम्हारा रब भूलनेवाला नहीं है।
15. यहाँ बात करनेवाले फ़रिश्ते हैं यद्यपि वाणी अल्लाह की है, अर्थात् फ़रिश्ते अल्लाह के रसूल (सल्ल०) से कह रहे हैं कि हम अपने अधिकार से नहीं आते बल्कि अल्लाह जब भेजता है तब आते हैं।
رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا فَٱعۡبُدۡهُ وَٱصۡطَبِرۡ لِعِبَٰدَتِهِۦۚ هَلۡ تَعۡلَمُ لَهُۥ سَمِيّٗا ۝ 64
(65) वह रब है आसमानों का और ज़मीन का और उन सारी चीज़़ों का जो आसमानों और ज़मीन के बीच में है, अत: तुम उसकी बन्दगी करो और उसी की बन्दगी पर जमे रहो। क्या है कोई हस्ती तुम्हारे ज्ञान में उसकी समकक्ष?
وَيَقُولُ ٱلۡإِنسَٰنُ أَءِذَا مَا مِتُّ لَسَوۡفَ أُخۡرَجُ حَيًّا ۝ 65
(66) इनसान कहता है, क्या वास्तव में जब मैं मर चुकूँगा तो फिर ज़िन्दा करके निकाल लाया जाऊँगा?
أَوَلَا يَذۡكُرُ ٱلۡإِنسَٰنُ أَنَّا خَلَقۡنَٰهُ مِن قَبۡلُ وَلَمۡ يَكُ شَيۡـٔٗا ۝ 66
(67) क्या इनसान को याद नहीं आता कि हम पहले उसको पैदा कर चुके हैं जबकि वह कुछ भी न था?
فَوَرَبِّكَ لَنَحۡشُرَنَّهُمۡ وَٱلشَّيَٰطِينَ ثُمَّ لَنُحۡضِرَنَّهُمۡ حَوۡلَ جَهَنَّمَ جِثِيّٗا ۝ 67
(68) तेरे रब की क़सम, हम ज़रूर इन सबको और इनके साथ शैतानों को भी घेर लाएँगे, फिर जहन्नम के चारों ओर लाकर इन्हें घुटनों के बल गिरा देंगे,
ثُمَّ لَنَنزِعَنَّ مِن كُلِّ شِيعَةٍ أَيُّهُمۡ أَشَدُّ عَلَى ٱلرَّحۡمَٰنِ عِتِيّٗا ۝ 68
(69) फिर हर गिरोह में से हर उस व्यक्ति को छाँट लेंगे जो रहमान (करुणामय ईश्वर) के मुक़ाबले में ज़्यादा सरकश बना हुआ था,
ثُمَّ لَنَحۡنُ أَعۡلَمُ بِٱلَّذِينَ هُمۡ أَوۡلَىٰ بِهَا صِلِيّٗا ۝ 69
(70) फिर यह हम जानते हैं कि उनमें से कौन सबसे बढ़कर जहन्नम में झोंके जाने के योग्य है।
وَإِن مِّنكُمۡ إِلَّا وَارِدُهَاۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ حَتۡمٗا مَّقۡضِيّٗا ۝ 70
(71) तुममें से कोई ऐसा नहीं है जिसे जहन्नम पर पहुँचना न हो, यह तो एक निश्चित बात है जिसे पूरा करना तेरे रब के ज़िम्मे है।
ثُمَّ نُنَجِّي ٱلَّذِينَ ٱتَّقَواْ وَّنَذَرُ ٱلظَّٰلِمِينَ فِيهَا جِثِيّٗا ۝ 71
(72) फिर हम उन लोगों को बचा लेंगे जो (संसार में) डर रखनेवाले थे और ज़ालिमों को उसी में गिरा हुआ छोड़ देंगे।
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُنَا بَيِّنَٰتٖ قَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لِلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَيُّ ٱلۡفَرِيقَيۡنِ خَيۡرٞ مَّقَامٗا وَأَحۡسَنُ نَدِيّٗا ۝ 72
(73) इन लोगों को जब हमारी खुली-खुली आयतें सुनाई जाती हैं तो इनकार करनेवाले ईमान लानेवालों से कहते हैं, “बताओ हम दोनों गिरोहों में से कौन अच्छी हालत में है, और किसकी मजलिसें ज़्यादा शानदार हैं?16
16. मक्का के अधर्मियों का तर्क यह था कि देख लो, दुनिया में किसपर अल्लाह के अनुग्रह और उसकी नेमतों को वर्षा हो रही है? किसके घर ज़्यादा शानदार हैं? किसका जीवन-स्तर ज़्यादा ऊँचा है? किसकी महफ़िलें ज़्यादा ठाठ से जमती हैं? अगर ये सब कुछ हमें प्राप्त है और तुम मुसलमान इससे वंचित हो तो ख़ुद सोच लो कि आख़िर यह कैसे संभव था कि हम असत्य पर होते और यों मज़े उड़ाते और तुम सत्य पर होते और इस तरह दुखी और परेशान रहते।
وَكَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّن قَرۡنٍ هُمۡ أَحۡسَنُ أَثَٰثٗا وَرِءۡيٗا ۝ 73
(74) हालाँकि इनसे पहले हम कितनी ही ऐसी क़ौमों को तबाह कर चुके हैं जो इनसे ज़्यादा सरो-सामान रखती थीं और ज़ाहिरी शान-शौकत में इनसे बढ़ी हुई थीं।
قُلۡ مَن كَانَ فِي ٱلضَّلَٰلَةِ فَلۡيَمۡدُدۡ لَهُ ٱلرَّحۡمَٰنُ مَدًّاۚ حَتَّىٰٓ إِذَا رَأَوۡاْ مَا يُوعَدُونَ إِمَّا ٱلۡعَذَابَ وَإِمَّا ٱلسَّاعَةَ فَسَيَعۡلَمُونَ مَنۡ هُوَ شَرّٞ مَّكَانٗا وَأَضۡعَفُ جُندٗا ۝ 74
(75) इनसे कहो, जो व्यक्ति गुमराही में ग्रस्त होता है उसे रहमान (करुणामय) ढील दिया करता है यहाँ तक कि जब ऐसे लोग वह चीज़ देख लेते हैं जिसका उनसे वादा किया गया है— चाहे वह ईश्वरीय अज़ाब हो या क़ियामत की घड़ी — तब उन्हें मालूम हो जाता है कि किसका हाल ख़राब है और किसका जत्था कमज़ोर
وَيَزِيدُ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ٱهۡتَدَوۡاْ هُدٗىۗ وَٱلۡبَٰقِيَٰتُ ٱلصَّٰلِحَٰتُ خَيۡرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابٗا وَخَيۡرٞ مَّرَدًّا ۝ 75
(76) इसके विपरीत जो लोग सीधा मार्ग अपनाते हैं अल्लाह उनको सीधा मार्ग चलने के सिलसिले में उन्नति प्रदान करता है और बाक़ी रह जानेवाली नेकियाँ ही तेरे रब के निकट कर्म-फल और परिणाम की दृष्टि से उत्तम हैं।
أَفَرَءَيۡتَ ٱلَّذِي كَفَرَ بِـَٔايَٰتِنَا وَقَالَ لَأُوتَيَنَّ مَالٗا وَوَلَدًا ۝ 76
(77) फिर तूने देखा उस व्यक्ति को जो हमारी आयतों को मानने से इनकार करता है और कहता है कि मुझे तो धन और सन्तान दी ही जाती रहेगी?
أَطَّلَعَ ٱلۡغَيۡبَ أَمِ ٱتَّخَذَ عِندَ ٱلرَّحۡمَٰنِ عَهۡدٗا ۝ 77
(78) क्या उसे ग़ैब (परोक्ष) का पता चल गया है या उसने करुणामय (रहमान) से कोई प्रतिज्ञा करा ली है?
كَلَّاۚ سَنَكۡتُبُ مَا يَقُولُ وَنَمُدُّ لَهُۥ مِنَ ٱلۡعَذَابِ مَدّٗا ۝ 78
(79) – हरगिज़ नहीं, जो कुछ यह बकता है उसे हम लिख लेंगे और इसके लिए सज़ा में और ज़्यादा इज़ाफ़ा करेंगे।
وَنَرِثُهُۥ مَا يَقُولُ وَيَأۡتِينَا فَرۡدٗا ۝ 79
(80) जिस सरो-सामान और सेना की यह बात कर रहा है वह सब हमारे पास रह जाएगी और यह अकेला हमारे सामने हाज़िर होगा।
وَٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ ءَالِهَةٗ لِّيَكُونُواْ لَهُمۡ عِزّٗا ۝ 80
(81) इन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर अपने कुछ ख़ुदा बना रखे हैं कि वे इनके पृष्ठपोषक होंगे।
كَلَّاۚ سَيَكۡفُرُونَ بِعِبَادَتِهِمۡ وَيَكُونُونَ عَلَيۡهِمۡ ضِدًّا ۝ 81
(82) कोई पृष्ठपोषक न होगा। वे सब इनकी उपासना का इनकार करेंगे और उलटे इनके विरोधी बन जाएँगे।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّآ أَرۡسَلۡنَا ٱلشَّيَٰطِينَ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ تَؤُزُّهُمۡ أَزّٗا ۝ 82
(83) क्या तुम देखते नहीं कि हमने सत्य का इनकार करनेवालों पर शैतानों को छोड़ रखा है। जो उन्हें ख़ूब ख़ूब (सत्य के विरोध पर उकसा रहे हैं?
فَلَا تَعۡجَلۡ عَلَيۡهِمۡۖ إِنَّمَا نَعُدُّ لَهُمۡ عَدّٗا ۝ 83
(84) अच्छा, तो अब इनपर अज़ाब उतारने के लिए विकल न हो। हम इनके दिन गिन रहे है।
يَوۡمَ نَحۡشُرُ ٱلۡمُتَّقِينَ إِلَى ٱلرَّحۡمَٰنِ وَفۡدٗا ۝ 84
(85) वह दिन आनेवाला है जब डर रखनेवाले लोगों को हम मेहमानों की तरह करुणामय (रहमान) की सेवा में पेश करेंगे,
وَنَسُوقُ ٱلۡمُجۡرِمِينَ إِلَىٰ جَهَنَّمَ وِرۡدٗا ۝ 85
(86) और अपराधियों को प्यासे जानवरों की तरह जहन्नम की ओर हॉक ले जाएँगे।
لَّا يَمۡلِكُونَ ٱلشَّفَٰعَةَ إِلَّا مَنِ ٱتَّخَذَ عِندَ ٱلرَّحۡمَٰنِ عَهۡدٗا ۝ 86
(87) उस समय लोग कोई सिफ़ारिश न ला सकेंगे सिवाय उसके जिसने करुणामय (रहमान) के यहाँ से परवाना हासिल कर लिया हो।
وَقَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱلرَّحۡمَٰنُ وَلَدٗا ۝ 87
(88) वे कहते हैं कि करुणामय (रहमान) ने किसी को बेटा बनया है
لَّقَدۡ جِئۡتُمۡ شَيۡـًٔا إِدّٗا ۝ 88
(89) — बड़ी ही अनर्गल बात है जो तुम लोग गढ़ लाए हो।
تَكَادُ ٱلسَّمَٰوَٰتُ يَتَفَطَّرۡنَ مِنۡهُ وَتَنشَقُّ ٱلۡأَرۡضُ وَتَخِرُّ ٱلۡجِبَالُ هَدًّا ۝ 89
(90) क़रीब है कि आसमान फट पड़ें, ज़मीन फट जाए और पहाड़ गिर जाएँ,
أَن دَعَوۡاْ لِلرَّحۡمَٰنِ وَلَدٗا ۝ 90
(91) इस बात पर कि लोगों ने करुणामय (रहमान) के लिए सन्तान होने का दावा किया!
وَمَا يَنۢبَغِي لِلرَّحۡمَٰنِ أَن يَتَّخِذَ وَلَدًا ۝ 91
(92) करुणामय (रहमान) की प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है कि वह किसी को अपना बेटा बनाए।
إِن كُلُّ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ إِلَّآ ءَاتِي ٱلرَّحۡمَٰنِ عَبۡدٗا ۝ 92
(93) ज़मीन और आसमानों में जो भी है सब उसकी सेवा में बन्दों की हैसियत से पेश होने है
لَّقَدۡ أَحۡصَىٰهُمۡ وَعَدَّهُمۡ عَدّٗا ۝ 93
(94) सबको वह अपने घेरे में लिए हुए है और उसने उनको गिन रखा है।
وَكُلُّهُمۡ ءَاتِيهِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ فَرۡدًا ۝ 94
(95) सब क़ियामत के दिन अकेले-अकेले उसके सामने हाज़िर होंगे।
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَيَجۡعَلُ لَهُمُ ٱلرَّحۡمَٰنُ وُدّٗا ۝ 95
(96) यक़ीनन जो लोग ईमान ले आए हैं और अच्छे काम कर रहे हैं जल्द ही करुणामय (रहमान) उनके लिए दिलों में मुहब्बत पैदा कर देगा।17
17. अर्थात् आज मक्का की गलियों में वे अपमानित और रुसवा किए जा रहे हैं, मगर यह हालत देर तक रहनेवाली नहीं है। क़रीब है वह समय जबकि अपने अच्छे कर्मों और नैतिक गुणों के कारण वे लोकप्रिय होकर रहेंगे। दिल उनकी ओर खिंचेंगे, दुनिया उनके आगे पलकें बिछाएगी। दुष्कर्म एवं अवज्ञा, अभिमान और अहंकार, झूठ और मिथ्या प्रदर्शन के बल पर जो सरदारी और नेतृत्व चलता हो वह गरदनों को चाहे झुका ले, दिलों को नहीं जीत सकता। इसके विपरीत जो लोग सच्चाई, दियानत, सहृदयता और सुशीलता के साथ सीधे मार्ग की ओर बुलाएँ, उनसे आरम्भ में चाहे दुनिया कितनी ही मुँह मोड़े, आख़िरकार वे दिलों को मोह लेते हैं और विश्वासघाती लोगों का झूठ ज़्यादा देर तक उनका मार्ग रोके नहीं रह सकता।
فَإِنَّمَا يَسَّرۡنَٰهُ بِلِسَانِكَ لِتُبَشِّرَ بِهِ ٱلۡمُتَّقِينَ وَتُنذِرَ بِهِۦ قَوۡمٗا لُّدّٗا ۝ 96
(97) अतः ऐ नबी, इस वाणी को हमने सरल करके तुम्हारी भाषा में इसी लिए उतारा है कि तुम परहेज़गारों को ख़ुशख़बरी दे दो और हठधर्म लोगों को डरा दो।
وَكَمۡ أَهۡلَكۡنَا قَبۡلَهُم مِّن قَرۡنٍ هَلۡ تُحِسُّ مِنۡهُم مِّنۡ أَحَدٍ أَوۡ تَسۡمَعُ لَهُمۡ رِكۡزَۢا ۝ 97
(98) इनसे पहले हम कितनी ही क़ौमों को तबाह कर चुके हैं, फिर आज कहीं तुम उनका निशान पाते हो या उनकी भनक भी कहीं सुनाई देती है?