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سُورَةُ فَاطِرٍ

 35. फ़ातिर

(मक्का में उतरी, आयतें 45)

परिचय

नाम

पहली ही आयत का शब्द 'फ़ातिर' (बनानेवाला) को इस सूरा का शीर्षक बना दिया गया है, जिसका अर्थ केवल यह है कि यह वह सूरा है जिसमें ‘फ़ातिर' शब्द आया है।

उतरने का समय

वर्णनशैली के आन्तरिक साक्ष्यों से पता चलता है कि इस सूरा के उतरने का समय शायद मक्का मुअज़्ज़मा का मध्यकाल है और उसका भी वह भाग जिसमें विरोध में काफ़ी तेज़ी आ चुकी थी।

विषय और वार्ता

वार्ता का उद्देश्य यह है कि नबी (सल्ल०) की तौहीद की दावत (एकेश्वरवादी आमंत्रण) के मुक़ाबले में जो रवैया उस समय मक्कावालों और उनके सरदारों ने अपना रखा था, उसपर नसीहत के रूप में उनको चेतावनी दी और उनकी निंदा भी की जाए और शिक्षा देने की शैली में समझाया-बुझाया भी जाए। वार्ता का सार यह है कि मूर्खो! यह नबी जिस राह की ओर तुमको बुला रहा है, उसमें तुम्हारा अपना भला है । इसपर तुम्हारा क्रोध और उसको विफल करने के लिए तुम्हारी चालें वास्तव में उसके विरुद्ध नहीं, बल्कि तुम्हारे अपने विरुद्ध पड़ रही हैं। वह जो कुछ तुमसे कह रहा है, उसपर ध्यान तो दो कि उसमें ग़लत क्या बात है? वह शिर्क (बहुदेववाद) का खंडन करता है, वह तौहीद की दावत देता है, वह तुमसे कहता है कि दुनिया की इस ज़िन्दगी के बाद एक और ज़िन्दगी है जिसमें हर एक को अपने किए का नतीजा देखना होगा। तुम ख़ुद सोचो कि इन बातों पर तुम्हारे सन्देह और अचंभे कितने आधारहीन हैं। अब अगर इन पूर्ण तर्कसंगत और सत्य पर आधारित बातों को तुम नहीं मानते हो, तो इसमें नबी की क्या हानि है। शामत तो तुम्हारी अपनी ही आएगी। वार्ता-क्रम में बार-बार नबी (सल्ल०) को तसल्ली दी गई है कि आप जिस नसीहत का हक़ पूरी तरह अदा कर रहे हैं, तो गुमराही पर आग्रह करनेवालों के सीधा रास्ता स्वीकार न करने की कोई ज़िम्मेदारी आपके ऊपर नहीं आती। इसके साथ आपको यह भी समझा दिया गया है कि जो लोग नहीं मानना चाहते, उनके रवैये पर न आप दुखी हों और न उन्हें सीधे रास्ते पर लाने की चिन्ता में अपनी जान घुलाएँ, इसके बजाय आप अपना ध्यान उन लोगों पर लगाएँ जो बात सुनने के लिए तैयार हैं। ईमान अपनानेवालों को भी इसी सिलसिले में बड़ी शुभ सूचनाएँ दी गई हैं, ताकि उनके दिल मज़बूत हों और वे अल्लाह के वादों पर भरोसा करके सत्य-मार्ग पर जमे रहें।

 

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سُورَةُ فَاطِرٍ
35. फ़ातिर
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ فَاطِرِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ جَاعِلِ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ رُسُلًا أُوْلِيٓ أَجۡنِحَةٖ مَّثۡنَىٰ وَثُلَٰثَ وَرُبَٰعَۚ يَزِيدُ فِي ٱلۡخَلۡقِ مَا يَشَآءُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
(1) तारीफ़ अल्लाह ही के लिए है जो आसमानों और ज़मीन का बनानेवाला और फ़रिश्तों को सन्देशवाहक नियुक्त करनेवाला है, (ऐसे फ़रिश्ते) जिसकी दो-दो और तीन-तीन और चार-चार भुजाएँ हैं। वह अपनी सृष्टि सरंचना में जैसी चाहता है अभिवृद्धि करता है। यक़ीनन अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
مَّا يَفۡتَحِ ٱللَّهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحۡمَةٖ فَلَا مُمۡسِكَ لَهَاۖ وَمَا يُمۡسِكۡ فَلَا مُرۡسِلَ لَهُۥ مِنۢ بَعۡدِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 1
(2) अल्लाह जिस रहमत का दरवाज़ा भी लोगों के लिए खोल दे उसे कोई रोकनेवाला नहीं और जिसे वह बन्द कर दे उसे अल्लाह के बाद फिर कोई दूसरा खोलनेवाला नहीं। वह प्रभुत्वशाली और तत्त्वदर्शी है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡۚ هَلۡ مِنۡ خَٰلِقٍ غَيۡرُ ٱللَّهِ يَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُؤۡفَكُونَ ۝ 2
(3) लोगो, तुमपर अल्लाह के जो उपकार हैं उन्हें याद रखो। क्या अल्लाह के सिवा कोई और स्रष्टा भी है जो तुम्हें आसमान और ज़मीन से रोज़ी देता हो? — कोई उपास्य उसके सिवा नहीं, आख़िर तुम कहाँ से धोखा खा रहे हो?
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدۡ كُذِّبَتۡ رُسُلٞ مِّن قَبۡلِكَۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ۝ 3
(4) अब अगर (ऐ नबी) ये लोग तुम्हें झुठलाते हैं (तो यह कोई नई बात नहीं), तुमसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाए जा चुके है, और सारे मामले आख़िरकार अल्लाह ही की तरफ़ रुजू होनेवाले हैं।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِٱللَّهِ ٱلۡغَرُورُ ۝ 4
(5) लोगो, अल्लाह का वादा यक़ीनन सत्य है, अतः दुनिया की ज़िन्दगी तुम्हें धोखे में न डाले और न वह बड़ा धोखेबाज़ तुम्हे अल्लाह के बारे में धोखा देने पाए।
إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ لَكُمۡ عَدُوّٞ فَٱتَّخِذُوهُ عَدُوًّاۚ إِنَّمَا يَدۡعُواْ حِزۡبَهُۥ لِيَكُونُواْ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلسَّعِيرِ ۝ 5
(6) वास्तव में शैतान तुम्हारा दुश्मन है इसलिए तुम भी उसे अपना दुश्मन ही समझो। वह तो अपने अनुयायियों को अपनी राह पर इसलिए बुला रहा है कि वे दोज़ख़ वालों में शामिल हो जाएँ।
ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۖ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٞ كَبِيرٌ ۝ 6
(7) जो लोग इनकार करेंगे उनके लिए कठोर यातना है और जो ईमान लाएँगे और अच्छे कर्म करेंगे उनके लिए माफ़ी और बड़ा बदला है।
أَفَمَن زُيِّنَ لَهُۥ سُوٓءُ عَمَلِهِۦ فَرَءَاهُ حَسَنٗاۖ فَإِنَّ ٱللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۖ فَلَا تَذۡهَبۡ نَفۡسُكَ عَلَيۡهِمۡ حَسَرَٰتٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِمَا يَصۡنَعُونَ ۝ 7
(8) (भला कुछ ठिकाना है उस व्यक्ति की गुमराही का) जिसके लिए उसका बुरा कर्म ख़ुशनुमा बना दिया गया हो और वह उसे अच्छा समझ रहा हो? वास्तविकता यह है कि अल्लाह जिसे चाहता है गुमराही में डाल देता है और जिसे चाहता है सन्मार्ग दिखा देता है। अतः (ऐ नबी) चाहे-अनचाहे तुम्हारी जान इन लोगों के लिए ग़म और अफ़सोस में न घुले। जो कुछ ये कर रहे हैं, अल्लाह उसको ख़ूब जानता है।
وَٱللَّهُ ٱلَّذِيٓ أَرۡسَلَ ٱلرِّيَٰحَ فَتُثِيرُ سَحَابٗا فَسُقۡنَٰهُ إِلَىٰ بَلَدٖ مَّيِّتٖ فَأَحۡيَيۡنَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۚ كَذَٰلِكَ ٱلنُّشُورُ ۝ 8
(9) वह अल्लाह ही तो है जो हवाओं को भेजता है, फिर वह बादल उठाती हैं, फिर हम उसे एक उजाड़ इलाक़े की तरफ़ ले जाते हैं और उसके द्वारा उसी ज़मीन को जिला उठाते हैं जो मरी पड़ी थी। मरे हुए इनसानों का जी उठना भी इसी तरह होगा।
مَن كَانَ يُرِيدُ ٱلۡعِزَّةَ فَلِلَّهِ ٱلۡعِزَّةُ جَمِيعًاۚ إِلَيۡهِ يَصۡعَدُ ٱلۡكَلِمُ ٱلطَّيِّبُ وَٱلۡعَمَلُ ٱلصَّٰلِحُ يَرۡفَعُهُۥۚ وَٱلَّذِينَ يَمۡكُرُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۖ وَمَكۡرُ أُوْلَٰٓئِكَ هُوَ يَبُورُ ۝ 9
(10) जो कोई इज़्ज़त चाहता हो उसे मालूम होना चाहिए कि इज़्ज़त सारी की सारी अल्लाह की है। उसके यहाँ जो चीज़़ ऊपर चढ़ती है वह सिर्फ़ पाकीज़ा बात है, और अच्छा कर्म उसको ऊपर चढ़ाता है। रहे वे लोग जो बेहूदा चालबाज़ियाँ करते हैं, उनके लिए कठोर यातना है और उनकी चालबाज़ी ख़ुद ही विनष्ट होनेवाली है।
وَٱللَّهُ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٖ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةٖ ثُمَّ جَعَلَكُمۡ أَزۡوَٰجٗاۚ وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَمَا يُعَمَّرُ مِن مُّعَمَّرٖ وَلَا يُنقَصُ مِنۡ عُمُرِهِۦٓ إِلَّا فِي كِتَٰبٍۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٞ ۝ 10
(11) अल्लाह ने तुमको मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से फिर तुम्हारे जोड़े बना दिए (अर्थात् मर्द और औरत)। कोई औरत गर्भवती नहीं होती और न बच्चा जनती है, मगर यह सब कुछ अल्लाह के ज्ञान में होता है। कोई आयु को प्राप्त होनेवाला आयु को प्राप्त नहीं होता और न किसी की आयु में कुछ कमी होती है, मगर यह सब कुछ एक किताब में लिखा होता है। अल्लाह के लिए यह बहुत आसान काम है।
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡبَحۡرَانِ هَٰذَا عَذۡبٞ فُرَاتٞ سَآئِغٞ شَرَابُهُۥ وَهَٰذَا مِلۡحٌ أُجَاجٞۖ وَمِن كُلّٖ تَأۡكُلُونَ لَحۡمٗا طَرِيّٗا وَتَسۡتَخۡرِجُونَ حِلۡيَةٗ تَلۡبَسُونَهَاۖ وَتَرَى ٱلۡفُلۡكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 11
(12) और पानी के दोनों ज़ख़ीरे समान नहीं हैं। एक मीठा और प्यास बुझानेवाला है, पीने में रुचिकर, और दूसरा अत्यंत खारा कि गला छील दे। मगर दोनों से तुम तरोताज़ा गोश्त प्राप्त करते हो, पहनने के लिए सौन्दर्य का सामान निकालते हो, और उसी पानी में तुम देखते हो कि नौकाएँ उसका सीना चीरती चली जा रही हैं ताकि तुम अल्लाह का अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो और उसके कृतज्ञ बनो।
يُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمّٗىۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۚ وَٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ مَا يَمۡلِكُونَ مِن قِطۡمِيرٍ ۝ 12
(13) वह दिन के भीतर रात और रात के भीतर दिन को पिरोता हुआ ले आता है। चाँद और सूरज को उसने वशीभूत कर रखा है। यह सब कुछ एक नियत समय तक चला जा रहा है। वही अल्लाह (जिसके ये सारे काम हैं) तुम्हारा रब है। राज उसी का है। उसे छोड़कर जिन दूसरों को तुम पुकारते हो वे एक तिनके के मालिक भी नहीं हैं।
إِن تَدۡعُوهُمۡ لَا يَسۡمَعُواْ دُعَآءَكُمۡ وَلَوۡ سَمِعُواْ مَا ٱسۡتَجَابُواْ لَكُمۡۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يَكۡفُرُونَ بِشِرۡكِكُمۡۚ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثۡلُ خَبِيرٖ ۝ 13
(14) उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी दुआएँ सुन नहीं सकते और सुन लें तो उनका तुम्हें कोई जवाब नहीं दे सकते। और क़ियामत के दिन वे तुम्हारे शिर्क का इनकार कर देंगे। वस्तु-स्थिति की ऐसी सही ख़बर तुम्हें एक ख़बर रखनेवाले के सिवा कोई नहीं दे सकता।
۞يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ أَنتُمُ ٱلۡفُقَرَآءُ إِلَى ٱللَّهِۖ وَٱللَّهُ هُوَ ٱلۡغَنِيُّ ٱلۡحَمِيدُ ۝ 14
(15) लोगो, तुम ही अल्लाह के मुहताज हो और अल्लाह तो सम्पन्न और प्रशंस्य है।
إِن يَشَأۡ يُذۡهِبۡكُمۡ وَيَأۡتِ بِخَلۡقٖ جَدِيدٖ ۝ 15
(16) वह चाहे तो तुम्हें हटाकर कोई नई सृष्टि तुम्हारी जगह ले आए,
وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ بِعَزِيزٖ ۝ 16
(17) ऐसा करना अल्लाह के लिए कुछ भी कठिन नहीं।
وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ وَإِن تَدۡعُ مُثۡقَلَةٌ إِلَىٰ حِمۡلِهَا لَا يُحۡمَلۡ مِنۡهُ شَيۡءٞ وَلَوۡ كَانَ ذَا قُرۡبَىٰٓۗ إِنَّمَا تُنذِرُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُم بِٱلۡغَيۡبِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفۡسِهِۦۚ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 17
(18) कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। और अगर कोई लदा हुआ प्राणी अपना बोझ उठाने के लिए पुकारेगा तो उसके बोझ का एक छोटा हिस्सा भी बटाने के लिए कोई न आएगा चाहे वह बहुत ही क़रीब का नातेदार ही क्यों न हो। (ऐ नबी) तुम सिर्फ़ उन्हीं लोगों को सावधान कर सकते हो जो बिना देखे अपने रब से डरते है और नमाज़ क़ायम करते हैं। जो व्यक्ति भी पवित्रता ग्रहण करता है अपनी ही भलाई के लिए करता है। और पलटना सबको अल्लाह ही की ओर है।
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِيرُ ۝ 18
(19) अन्धा और आँखोंवाला बराबर नहीं हैं।
وَلَا ٱلظُّلُمَٰتُ وَلَا ٱلنُّورُ ۝ 19
(20) न अँधियारियाँ और प्रकाश समान हैं।
وَلَا ٱلظِّلُّ وَلَا ٱلۡحَرُورُ ۝ 20
(21) न ठण्डी छाँव और धूप की तपन एक जैसी है।
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَحۡيَآءُ وَلَا ٱلۡأَمۡوَٰتُۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُسۡمِعُ مَن يَشَآءُۖ وَمَآ أَنتَ بِمُسۡمِعٖ مَّن فِي ٱلۡقُبُورِ ۝ 21
(22) और न ज़िन्दे और मुर्दे बराबर हैं। अल्लाह जिसे चाहता है सुनवाता है, मगर (ऐ नबी) तुम उन लोगों को नहीं सुना सकते जो क़ब्रों में पड़े हुए हैं।1
1. अर्थात् अल्लाह की इच्छा को तो बात ही दूसरी है, वह चाहे तो पत्थरों को सुनने की शक्ति दे दे, लेकिन रसूल के बस का यह काम नहीं है कि जिन लोगों के सीने में अन्तरात्मा दफ़न हो चुकी हो उनके दिलों में वह अपनी बात उतार सके और जो बात सुनना ही न चाहते हों उनके बहरे कानों को सत्य की आवाज़ सुना सके। वह तो उन्हीं लोगों को सुना सकता है जो बुद्धिसंगत बात पर कान धरने के लिए तैयार हों।
إِنۡ أَنتَ إِلَّا نَذِيرٌ ۝ 22
(23) तुम तो बस एक सावधान करनेवाले हो।
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ بِٱلۡحَقِّ بَشِيرٗا وَنَذِيرٗاۚ وَإِن مِّنۡ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٞ ۝ 23
(24) हमने तुमको सत्य के साथ भेजा है ख़ुशख़बरी देनेवाला और डरानेवाला बनाकर और कोई समुदाय (उम्मत)) ऐसा नहीं हुआ है जिसमें कोई चेतावनी देनेवाला न आया हो।
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدۡ كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَبِٱلزُّبُرِ وَبِٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُنِيرِ ۝ 24
(25) अब अगर ये लोग तुम्हें झुठलाते हैं तो इनसे पहले गुज़रे हुए लोग भी झुठला चुके हैं। उनके पास उनके रसूल खुले प्रमाण और पुस्तकें और स्पष्ट आदेश देनेवाली किताब लेकर आए थे।
ثُمَّ أَخَذۡتُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۖ فَكَيۡفَ كَانَ نَكِيرِ ۝ 25
(26) फिर जिन लोगों ने न माना उनको मैने पकड़ लिया और देख लो कि मेरी सज़ा कैसी कठोर थी।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَخۡرَجۡنَا بِهِۦ ثَمَرَٰتٖ مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهَاۚ وَمِنَ ٱلۡجِبَالِ جُدَدُۢ بِيضٞ وَحُمۡرٞ مُّخۡتَلِفٌ أَلۡوَٰنُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٞ ۝ 26
(27) क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह आसमान से पानी बरसाता है और फिर उसके द्वारा हम तरह-तरह के फल निकाल लाते हैं जिनके रंग अलग-अलग होते हैं। पहाड़ों में भी सफ़ेद, लाल और गहरी काली धारियाँ पाई जाती है जिनके रंग अगल-अलग होते हैं।
وَأَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَيۡمَٰنِهِمۡ لَئِن جَآءَهُمۡ نَذِيرٞ لَّيَكُونُنَّ أَهۡدَىٰ مِنۡ إِحۡدَى ٱلۡأُمَمِۖ فَلَمَّا جَآءَهُمۡ نَذِيرٞ مَّا زَادَهُمۡ إِلَّا نُفُورًا ۝ 27
(42) ये लोग कड़ी-कड़ी क़समें खाकर कहा करते थे कि अगर कोई चेतावनी देनेवाला उनके यहाँ आ गया होता तो ये दुनिया की हर दूसरी क़ौम से बढ़कर सन्मार्ग पर होते। मगर जब चेतावनी देनेवाला इनके यहाँ आ गया तो उसके आगमन ने इनके अन्दर सत्य से फ़रार के सिवा किसी चीज़़ में अभिवृद्धि न की।
ٱسۡتِكۡبَارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَكۡرَ ٱلسَّيِّيِٕۚ وَلَا يَحِيقُ ٱلۡمَكۡرُ ٱلسَّيِّئُ إِلَّا بِأَهۡلِهِۦۚ فَهَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ ٱلۡأَوَّلِينَۚ فَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَبۡدِيلٗاۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَحۡوِيلًا ۝ 28
(43) ये ज़मीन में और ज़्यादा सरकशी करने लगे और बुरी-बुरी चालें चलने लगे, हालाँकि बुरी चालें अपने चलनेवालों ही को ले बैठती हैं। अब क्या ये लोग इसका इन्तिज़ार कर रहे हैं कि पिछले लोगों के साथ अल्लाह की जो रीति रही है वही इनके साथ भी अपनाई जाए? यही बात है तो तुम अल्लाह की रीति में हरगिज़ कोई परिवर्तन न पाओगे और तुम कभी न देखोगे कि अल्लाह की रीति (सुन्नत) को उसके नियत मार्ग से कोई शक्ति फेर सकती है।
أَوَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ وَكَانُوٓاْ أَشَدَّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُعۡجِزَهُۥ مِن شَيۡءٖ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَلَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَلِيمٗا قَدِيرٗا ۝ 29
(44) क्या ये लोग ज़मीन में कभी चले-फिरे नहीं हैं कि इन्हें उन लोगों का परिणाम दिखाई देता जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं और इनसे बहुत ज़्यादा शक्तिशाली थे? अल्लाह को कोई चीज़ विवश करनेवाली नहीं है, न आसमानों में और न ज़मीन में वह सब कुछ जानता है और उसे हर चीज़़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
وَلَوۡ يُؤَاخِذُ ٱللَّهُ ٱلنَّاسَ بِمَا كَسَبُواْ مَا تَرَكَ عَلَىٰ ظَهۡرِهَا مِن دَآبَّةٖ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمۡ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗىۖ فَإِذَا جَآءَ أَجَلُهُمۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِۦ بَصِيرَۢا ۝ 30
(45) अगर कहीं वह लोगों को उनके किए करतूतों पर पकड़ता तो ज़मीन में किसी जीवधारी को जीता न छोड़ता। मगर वह उन्हें एक नियत समय के लिए मुहलत दे रहा है। फिर जब उनका समय पूरा होगा तो अल्लाह अपने बन्दों को देख लेगा।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ وَٱلدَّوَآبِّ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ مُخۡتَلِفٌ أَلۡوَٰنُهُۥ كَذَٰلِكَۗ إِنَّمَا يَخۡشَى ٱللَّهَ مِنۡ عِبَادِهِ ٱلۡعُلَمَٰٓؤُاْۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ ۝ 31
(28) और इसी तरह इनसानों और जानवरों और चौपायों के रंग भी अलग-अलग हैं। वास्तविकता यह है कि अल्लाह के बन्दों में से सिर्फ़ ज्ञानवान लोग ही उससे डरते हैं।2 बेशक अल्लाह प्रभुत्वशाली और माफ़ करनेवाला है।
2. इससे मालूम हुआ कि ज्ञानी मात्र पोथी पढ़नेवालों को नहीं कहते, बल्कि ज्ञानवान वह है जो ईश्वर से डरनेवाला हो।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَتۡلُونَ كِتَٰبَ ٱللَّهِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ سِرّٗا وَعَلَانِيَةٗ يَرۡجُونَ تِجَٰرَةٗ لَّن تَبُورَ ۝ 32
(29) जो लोग अल्लाह की किताब को पढ़ते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं, और जो कुछ हमने उन्हें रोज़ी दी है उसमें से खुले और छिपे ख़र्च करते हैं, यक़ीनन वे एक ऐसे व्यापार के उम्मीदवार है जिसमें हरगिज़ घाटा न होगा।
لِيُوَفِّيَهُمۡ أُجُورَهُمۡ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ غَفُورٞ شَكُورٞ ۝ 33
(30) (इस व्यापार में उन्होंने अपना सब कुछ इसलिए खपाया है) ताकि अल्लाह उनके पारिश्रमिक पूरे के पूरे उनको दे और अतिरिक्त अपने उदार अनुग्रह से उनको प्रदान करे। बेशक अल्लाह माफ़ करनेवाला और गुणग्राहक है।
وَٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ هُوَ ٱلۡحَقُّ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِعِبَادِهِۦ لَخَبِيرُۢ بَصِيرٞ ۝ 34
(31) (ऐ नबी) जो किताब हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना (वह्य) के द्वारा भेजी है, वही सत्य है, पुष्टि करती हुई आई है उन किताबों की जो इससे पहले आई थीं। बेशक अल्लाह अपने बन्दों के हाल की ख़बर रखता है और हर चीज़ पर निगाह रखनेवाला है।
ثُمَّ أَوۡرَثۡنَا ٱلۡكِتَٰبَ ٱلَّذِينَ ٱصۡطَفَيۡنَا مِنۡ عِبَادِنَاۖ فَمِنۡهُمۡ ظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ وَمِنۡهُم مُّقۡتَصِدٞ وَمِنۡهُمۡ سَابِقُۢ بِٱلۡخَيۡرَٰتِ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡكَبِيرُ ۝ 35
(32) फिर हमने इस किताब का उत्तराधिकारी बना दिया उन लोगों को जिन्हें हमने (इस उत्तराधिकार के लिए) अपने बन्दों में से चुन लिया। अब कोई तो उनमें से अपने आप पर ज़ुल्म करनेवाला है, और कोई बीच की रास है, और कोई अल्लाह की अनुमति से नेकियों में अग्रसर रहनेवाला है, यही बहुत बड़ा अनुग्रह है।
جَنَّٰتُ عَدۡنٖ يَدۡخُلُونَهَا يُحَلَّوۡنَ فِيهَا مِنۡ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٖ وَلُؤۡلُؤٗاۖ وَلِبَاسُهُمۡ فِيهَا حَرِيرٞ ۝ 36
(33) हमेशा रहनेवाली जन्नते हैं जिनमें ये लोग प्रवेश करेंगे। वहाँ उन्हें सोने के कंगनों और मोतियों से आभूषित किया जाएगा, वहाँ उनका लिबास रेशम होगा,
وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِيٓ أَذۡهَبَ عَنَّا ٱلۡحَزَنَۖ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٞ شَكُورٌ ۝ 37
(34) और वे कहेंगे कि “शुक्र है उस अल्लाह का जिसने हमसे ग़म दूर कर दिया, यक़ीनन हमारा रब माफ़ करनेवाला और गुणग्राहक है,
ٱلَّذِيٓ أَحَلَّنَا دَارَ ٱلۡمُقَامَةِ مِن فَضۡلِهِۦ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٞ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٞ ۝ 38
(35) जिसने हमें अपने अनुग्रह से शाश्वत आवास की जगह ठहरा दिया, अब यहाँ न हमें कोई मशक़्क़त पेश आती है और न थकान छूती है।
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَهُمۡ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقۡضَىٰ عَلَيۡهِمۡ فَيَمُوتُواْ وَلَا يُخَفَّفُ عَنۡهُم مِّنۡ عَذَابِهَاۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي كُلَّ كَفُورٖ ۝ 39
(36) और जिन लोगों ने इनकार किया है उनके लिए जहन्नम की आग है। न उनका क़िस्सा ख़त्म कर दिया जाएगा कि मर जाएँ और न उनके लिए जहन्नम के अज़ाब में कोई कमी की जाएगी। इस तरह हम बदला देते हैं हर उस व्यक्ति को जो इनकार करनेवाला हो।
وَهُمۡ يَصۡطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَآ أَخۡرِجۡنَا نَعۡمَلۡ صَٰلِحًا غَيۡرَ ٱلَّذِي كُنَّا نَعۡمَلُۚ أَوَلَمۡ نُعَمِّرۡكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَآءَكُمُ ٱلنَّذِيرُۖ فَذُوقُواْ فَمَا لِلظَّٰلِمِينَ مِن نَّصِيرٍ ۝ 40
(37) वे वहाँ चिल्ला-चिल्लाकर कहेंगे कि “ऐ हमारे रब, हमें यहाँ से निकाल ले, ताकि हम अच्छे कर्म करें उन कर्मों से भिन्न जो पहले करते रहे थे।” (उन्हें जवाब दिया जाएगा) “क्या हमने तुमको इतनी उम्र न दी थी जिसमें कोई शिक्षा ग्रहण करना चाहता तो शिक्षा ग्रहण कर सकता था? और तुम्हारे पास चेतावनी देनेवाला भी आ चुका था। अब मज़ा चखो। ज़ालिमों का यहाँ कोई सहायक नहीं है।"
إِنَّ ٱللَّهَ عَٰلِمُ غَيۡبِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 41
(38) बेशक अल्लाह आसमानों और ज़मीन की हर छिपी चीज़़ से परिचित है, वह तो सीनों के छिपे हुए रहस्य तक जानता है।
هُوَ ٱلَّذِي جَعَلَكُمۡ خَلَٰٓئِفَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ فَمَن كَفَرَ فَعَلَيۡهِ كُفۡرُهُۥۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ كُفۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ إِلَّا مَقۡتٗاۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ كُفۡرُهُمۡ إِلَّا خَسَارٗا ۝ 42
(39) वही तो है जिसने तुमको ज़मीन में 'ख़लीफ़ा' बनाया है। अब जो कोई इनकार करता है उसके इनकार का वबाल उसी पर है, और इनकार करनेवालों को उनका इनकार इसके सिवा कोई उन्नति नहीं देता कि उनके रब का ग़ज़ब उनपर ज़्यादा से ज़्यादा भड़कता चला जाता है। इनकार करनेवालों के लिए घाटे में अभिवृद्धि के सिवा कोई उन्नति नहीं।
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ شُرَكَآءَكُمُ ٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُواْ مِنَ ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ لَهُمۡ شِرۡكٞ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ أَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُمۡ كِتَٰبٗا فَهُمۡ عَلَىٰ بَيِّنَتٖ مِّنۡهُۚ بَلۡ إِن يَعِدُ ٱلظَّٰلِمُونَ بَعۡضُهُم بَعۡضًا إِلَّا غُرُورًا ۝ 43
(40) (ऐ नबी) इनसे कहो, 'कभी तुमने देखा भी है अपने उन साझीदारों को जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारा करते हो? मुझे बताओ, उन्होंने ज़मीन में क्या पैदा किया है? या आसमानों में उनकी क्या साझेदारी है?” (अगर ये नहीं बता सकते तो इनसे पूछो) क्या हमने इन्हें कोई लेख्य लिखकर दिया है जिसके आधार पर ये (अपने इस बहुदेववाद के लिए) कोई साफ़ सनद रखते हों? नहीं, बल्कि ये ज़ालिम एक दूसरे को सिर्फ़ फ़रेब के झाँसे दिए जा रहे हैं।
۞إِنَّ ٱللَّهَ يُمۡسِكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ أَن تَزُولَاۚ وَلَئِن زَالَتَآ إِنۡ أَمۡسَكَهُمَا مِنۡ أَحَدٖ مِّنۢ بَعۡدِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ كَانَ حَلِيمًا غَفُورٗا ۝ 44
(41) वास्तविकता यह है कि अल्लाह ही है जो आसमानों और ज़मीन को टल जाने से रोके हुए है, और अगर वे टल जाएँ तो अल्लाह के बाद कोई दूसरा उन्हें थामनेवाला नहीं है। बेशक अल्लाह बड़ा सहनशील और माफ़ करनेवाला है।