37. अस-साफ़्फ़ात
(मक्का में उतरी, आयतें 182)
परिचय
नाम
पहली ही आयत के शब्द 'अस-साफ़्फात' (क़तार दर क़तार सफ़ (पंक्ति) बाँधनेवाले) से लिया गया है।
उतरने का समय
विषयों और शैली से पता चलता है कि यह सूरा शायद मक्की काल के मध्य में, बल्कि शायद इस मध्यकाल के भी अन्तिम समय में उतरी है। [जब विरोध पूर्णत: उग्र रूप धारण कर चुका था]।
विषय और वार्ता
उस समय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की तौहीद और आख़िरत की दावत का जवाब जिस तरह उपहास और हँसी-मज़ाक़ के साथ दिया जा रहा था और आपकी रिसालत के दावे को मानने से जिस तेज़ी के साथ इनकार किया जा रहा था, उसपर मक्का के काफ़िरों (इस्लाम-विरोधियों) को बड़े ज़ोरदार तरीक़े से सचेत किया गया है और अन्त में उन्हें साफ़-साफ़ ख़बरदार कर दिया गया है कि बहुत जल्द यही पैग़म्बर, जिसका तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो, तुम्हारे देखते-देखते तुमपर ग़ालिब आ जाएगा और तुम अल्लाह की फ़ौज को स्वयं अपने घर के आंगन में उतरा हुआ पाओगे (आयत 171-179)। यह नोटिस उस ज़माने में दिया गया था जब नबी (सल्ल०) की सफलता के चिह्न दूर-दूर तक कहीं नज़र न आते थे, बल्कि देखनेवाले तो यह समझ रहे थे कि यह आन्दोलन मक्का की घाटियों ही में दफ़न होकर रह जाएगा। लेकिन 15-16 साल से अधिक समय न बीता था कि मक्का की जीत के मौक़े पर ठीक वही कुछ पेश आ गया जिससे इनकारियों को सचेत किया गया था। चेतावनी के साथ-साथ अल्लाह ने इस सूरा में सत्य को अच्छी तरह समझाने और उसपर उभारने का हक़ भी पूरी तरह अदा कर दिया है। तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत के अक़ीदे की सत्यता पर संक्षेप में दिल में उतर जानेवाले तर्क दिए गए हैं। बहुदेववादियों की धारणाओं की आलोचना करके बताया गया है कि वे कैसी-कैसी बेकार बातों पर ईमान लाए बैठे हैं, इन गुमराहियों के बुरे नतीजों से आगाह किया है और यह भी बताया है कि ईमान और भले कामों के नतीजे कितने शानदार हैं। फिर [इसी सिलसिले में पिछले इतिहास की मिसालें दी हैं ] इस उद्देश्य से जो ऐतिहासिक वृत्तांतों का इस सूरा में वर्णन किया गया है, इनमें सबसे अधिक शिक्षाप्रद हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के पवित्र जीवन की यह महत्वपूर्ण घटना है कि वह अल्लाह का एक इशारा पाते ही अपने इकलौते बेटे को क़ुरबान करने पर तैयार हो गए थे। इसमें केवल कुरैश के उन इस्लाम विरोधियों ही के लिए सबक़ नहीं था जो हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के साथ अपने पारिवारिक संबंध पर गर्व किया करते फिरते थे, बल्कि उन मुसलमानों के लिए भी सबक़ था जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए थे। यह घटना सुनाकर उन्हें बता दिया गया कि इस्लाम की वास्तविकता और उसकी मूल आत्मा क्या है। सूरा की आख़िरी आयतें सिर्फ़ काफ़िरों (विधर्मियों) के लिए चेतावनी ही न थीं, बल्कि उन ईमानवालों के लिए विजयी और प्रभावी होने की शुभ-सूचना भी थीं, जो नबी (सल्ल०) के समर्थन और सहायता में अत्यंत हतोत्साहित कर देनेवाले हालात का मुक़ाबला कर रहे थे।
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فَٱلتَّٰلِيَٰتِ ذِكۡرًا 2
(3) फिर उनकी क़सम जो उपदेशप्रद वाणी सुनानेवाले है1,
1. ज़्यादातर टीकाकार इस बात पर सहमत हैं कि इन तीनों गिरोहों से मुराद फ़रिश्तों के गिरोह हैं जो अल्लाह के आदेशों का पालन करने के लिए हर समय तैयार रहते हैं, उसको अवज्ञा करनेवालों को डाँटते और फटकारते हैं और विभिन्न तरीक़ों से अल्लाह की याद दिलाते और उपदेशप्रद वाणी सुनाते हैं।
رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَرَبُّ ٱلۡمَشَٰرِقِ 4
(5) वह जो ज़मीन और आसमानों का और तमाम उन चीज़़ों का मालिक है जो ज़मीन और आसमान में हैं, और सारी पूर्वदिशाओं का मालिक।2
2. सूरज हमेशा एक ही उदय स्थल से नहीं निकलता बल्कि प्रत्येक दिन एक नए कोण से उदय होता है। और सारी ज़मीन पर वह एक ही समय में उदय नहीं हो जाता बल्कि ज़मीन के विभिन्न भागों पर विभिन्न समयों में उसका उदय हुआ करता है। इन कारणों से पूर्व दिशा के स्थान पर पूर्व दिशाओं का शब्द प्रयुक्त किया गया है, और इसके बाद पश्चिमों का उल्लेख नहीं किया गया, क्योंकि पूर्व दिशाओं का शब्द ख़ुद पश्चिमों को सिद्ध करता है।
لَّا يَسَّمَّعُونَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ ٱلۡأَعۡلَىٰ وَيُقۡذَفُونَ مِن كُلِّ جَانِبٖ 7
(8) ये शैतान सबसे उच्च दरवारवालों4 की बाते नहीं सुन सकते, हर तरफ़ से मारे और हाँके जाते हैं
4. इससे अभिप्रेत हैं ऊपरी लोक के प्राणी, अर्थात् फ़रिश्ते।
هَٰذَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِ ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ 20
(21) — यह वही फ़ैसले का दिन है जिसे तुम झुठलाया करते थे।5
5. हो सकता है कि यह बात उनसे ईमानेवाले कहें, हो सकता है कि यह फ़रिश्तों का कथन हो, हो सकता है कि क़ियामत के अवसर पर इकट्ठे होने के मैदान का सारा वातावरण उस समय अपनी स्थिति की ज़बान से यह कह रहा हो, और यह भी हो सकता है कि यह ख़ुद उन लोगों की अपनी ही दूसरी प्रतिक्रिया हो। अर्थात् अपने दिलों में वे अपने आप ही को सम्बोधित करके कहें कि दुनिया में ज़िन्दगी भर तुम यह समझते रहे कि कोई फ़ैसले का दिन नहीं आना है। अब आ गई तुम्हारी शामत, जिस दिन को झुठलाते थे वह सामने आ गया।
قَالُوٓاْ إِنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَأۡتُونَنَا عَنِ ٱلۡيَمِينِ 26
(28) (अनुयायी अपने पेशवाओं से) कहेंगे, “तुम हमारे पास सीधे रुख़7 से आते थे।”
7. मूल शब्द यहाँ 'यमीन' इस्तेमाल हुआ है। मुहावरे की दृष्टि से अगर इसको शक्ति और बल के अर्थ में लिया जाए तो अर्थ यह होगा कि तुम अपने ज़ोर से हमको गुमराही की ओर खींच ले गए। अगर इसको शुभ और भलाई के अर्थ में लिया जाए तो मतलब यह होगा कि तुमने हितैषी बनकर हमें धोखा दिया और अगर इसको क़सम के अर्थ में लिया जाए तो इसका अर्थ यह होगा कि तुमने क़समें खा-खाकर हमें सन्तुष्ट किया था कि सत्य वही है जो तुम पेश कर रहे हो।
إِنَّا جَعَلۡنَٰهَا فِتۡنَةٗ لِّلظَّٰلِمِينَ 61
(63) हमने उस पेड़ को ज़ालिमों के लिए परीक्षा बना दिया है।9
9. अर्थात् इनकार करनेवाले यह बात सुनकर क़ुरआन पर चोट करने और नबी (सल्ल०) को हँसी उड़ाने का एक नया अवसर पा लेते हैं। वे इस पर ठट्ठा मारकर कहते हैं, लो अब नई सुनो, जहन्नम की दहकती हुई आग में वृक्ष उगेगा।
فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ ٱلسَّعۡيَ قَالَ يَٰبُنَيَّ إِنِّيٓ أَرَىٰ فِي ٱلۡمَنَامِ أَنِّيٓ أَذۡبَحُكَ فَٱنظُرۡ مَاذَا تَرَىٰۚ قَالَ يَٰٓأَبَتِ ٱفۡعَلۡ مَا تُؤۡمَرُۖ سَتَجِدُنِيٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلصَّٰبِرِينَ 100
(102) वह लड़का जब उसके साथ दौड़-धूप करने की उम्र को पहुँच गया तो (एक दिन) इबराहीम ने उससे कहा “बेटा, मैं स्वप्न में देखता हूँ कि मैं तूझे ज़बह कर रहा हूँ, अब तू बता तेरा क्या विचार है?” उसने कहा, “अब्बाजान, जो कुछ आपको आदेश दिया जा रहा है उसे कर डालिए, आप अल्लाह ने चाहा तो मुझे सब्र करनेवालों में से पाएँगे।”
قَدۡ صَدَّقۡتَ ٱلرُّءۡيَآۚ إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 103
(105) तूने स्वप्न सच कर दिखाया।14 हम नेकी करनेवालों को ऐसा ही बदला देते हैं।
14. चूँकि स्वप्न में यह दिखाया गया था कि ज़बह कर रहे हैं, यह नहीं दिखाया गया था कि ज़बह कर दिया है, इसलिए जब हज़रत इबराहीम (अलैहि०) ने ज़बह करने की पूरी तैयारी कर ली तो कहा कि तूने अपना स्वप्न सच कर दिखाया।
وَفَدَيۡنَٰهُ بِذِبۡحٍ عَظِيمٖ 105
(107) और हमने एक बड़ी क़ुरबानी15 फ़िदये में देकर उस बच्चे को छुड़ा लिया।
15. “बड़ी क़ुरबानी” से मुराद एक मेंढा है जो उस समय अल्लाह के फ़रिश्ते ने हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के सामने पेश किया, ताकि बेटे के बदले उसको ज़बह कर दें। उसे बड़ी क़ुरबानी के शब्द से इसलिए व्यंजित किया गया। कि वह इबराहीम (अलैहि०) जैसे वफ़ादार बन्दे के लिए इबराहीम (अलैहि०) के सुपुत्र जैसे धैर्यवान और प्राण निछावर करनेवाले लड़के का फ़िदया था। इसके अतिरिक्त उसे “बड़ी क़ुरबानी” घोषित करने का एक कारण यह भी है कि क़ियामत तक के लिए अल्लाह ने यह प्रथा प्रचलित कर दी कि उसी तिथि को सब ईमानवाले दुनिया भर में जानवर क़ुरबान करें और वफ़ादारी और प्राणोत्सर्ग की इस महान घटना की याद ताज़ा करते रहे।
فَٱلۡتَقَمَهُ ٱلۡحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٞ 140
(142) आख़िरकार मछली ने उसे निगल लिया और वह मलामत किया हुआ था।17
17. इन वाक्यों पर विचार करने से जो वस्तुस्थिति समझ में आती है वह यह है कि (1) हज़रत यूनुस (अलैहि०) जिस नौका में सवार हुए थे वह अपनी गुंजाइश से ज़्यादा भरी हुई थी। (2) चिट्ठी (पर्ची) नौका में डाली गई, और संभवतः उस समय डाली गई जब समुद्री यात्रा के बीच यह महसूस किया कि बोझ की अधिकता के कारण सारे यात्रियों की जान ख़तरे में पड़ गई है। अतः चिट्ठी (पर्ची) इस उद्देश्य से डाली गई कि जिसका नाम चिट्ठी (पर्ची) डालने से निकले उसे पानी में फेंक दिया जाए। (3) चिट्ठी (पर्ची) डालने पर हज़रत यूनुस (अलैहि०) ही का नाम निकला अतएव वे समुद्र में फेंक दिए गए और एक मछली ने उन्हें निगल लिया। (4) इस मुसीबत में हज़रत यूनुस (अलैहि०) इसलिए ग्रस्त हुए कि उन्होंने अपने रब (अर्थात् अल्लाह) की अनुमति के बिना अपने उस स्थान से पलायन किया था जहाँ वे नियुक्त किए गए थे। इसी अर्थ का प्रमाणीकरण 'अ-ब-क' शब्द से होता है। क्योंकि अरबी भाषा में वह भाग जानेवाले ग़ुलाम के लिए बोला जाता है।
وَأَرۡسَلۡنَٰهُ إِلَىٰ مِاْئَةِ أَلۡفٍ أَوۡ يَزِيدُونَ 145
(147) इसके बाद हमने उसे एक लाख, या उससे ज़्यादा लोगों की ओर19 भेजा,
19. “एक लाख या उससे ज़्यादा” कहने का अर्थ यह नहीं है कि अल्लाह को उनकी संख्या में सन्देह था, बल्कि इसका मतलब यह है कि अगर कोई उनकी बस्ती को देखता तो यही अन्दाज़ा करता कि उस नगर की आबादी एक लाख से ज़्यादा ही होगी, कम न होगी।
وَجَعَلُواْ بَيۡنَهُۥ وَبَيۡنَ ٱلۡجِنَّةِ نَسَبٗاۚ وَلَقَدۡ عَلِمَتِ ٱلۡجِنَّةُ إِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ 156
(158) इन्होंने अल्लाह और फ़रिश्तों20 के बीच वंश का नाता बना रखा है, हालाँकि फ़रिश्ते ख़ूब जानते हैं कि ये लोग अपराधी के रूप में पेश होनेवाले हैं
20. यद्यपि शब्द “जिन्न” इस्तेमाल हुआ है लेकिन आगे के बयान से स्पष्ट है कि इससे मुराद फ़रिश्ते हैं। जिन्न का शाब्दिक अर्थ है गुप्त (अदृश्य) प्राणी।