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سُورَةُ غَافِرٍ

40. अल-मोमिन

(मक्का में उतरी, आयतें 85)

परिचय

नाम

आयत 28 के वाक्य “व क़ा-ल रजलुम-मोमिनुम-मिन आलि फ़िरऔ-न" ( फ़िरऔन के लोगों में से एक ईमान रखनेवाला व्यक्ति (अल-मोमिन) बोल उठा) से लिया गया है। अर्थात् वह सूरा जिसमें उस विशेष 'मोमिन' (ईमानमाले) का उल्लेख हुआ है। [इस सूरा का एक नाम ‘ग़ाफ़िर’ भी है, सूरा की आयत 3 में आए शब्द ‘ग़ाफ़िर’ से लिया गया है।]  

उतरने का समय

इब्‍ने-अब्‍बास और जाबिर-बिन-ज़ैद (रज़ि०) का बयान है कि यह सूरा, सूरा-39 ज़ुमर के बाद उतरी है और इसका जो स्थान क़ुरआन मजीद के वर्तमान क्रम में है, वही क्रम अवतरण के अनुसार भी है।

उतरने की परिस्थितियाँ

जिन परिस्थितियों में यह सूरा उतरी है, उनकी ओर स्पष्ट संकेत इसकी विषय वस्तु में मौजूद है। मक्का के इस्लाम-विरोधियों ने उस समय नबी (सल्ल०) के विरुद्ध दो प्रकार की कार्रवाइयाँ शुरू कर रखी थीं। एक यह कि हर ओर झगड़े और विवाद छेड़कर और नित नए मिथ्यारोपण द्वारा क़ुरआन की शिक्षा और इस्लाम की दावत और स्वयं नबी (सल्ल०) के बारे में अधिक से अधिक सन्देह और बुरे विचार आम लोगों के दिलों में पैदा कर दिए जाएँ। दूसरे यह कि आप (सल्ल०) की हत्या के लिए माहौल तैयार किया जाए। अतएव इस उद्देश्य के लिए वे निरंतर षड्‍यंत्र रच रहे थे।

विषय और वार्ता

परिस्थितियों के इन दोनों पहलुओं को अभिभाषण के आरंभ ही में स्पष्ट कर दिया गया है और फिर आगे का सम्पूर्ण अभिभाषण इन्हीं दोनों की एक अत्यन्त प्रभावी और शिक्षाप्रद समीक्षा है। हत्या के षड्‍यंत्र के जवाब में आले-फ़िरऔन में से एक मोमिन व्यक्ति का वृत्तान्त प्रस्तुत किया गया है (आयत 23 से लेकर 55 तक)। और इस वृत्तान्त के रूप में तीन गिरोहों को तीन अलग-अलग शिक्षाएँ दी गई हैं-

(1) इस्लाम-विरोधियों को बताया गया है कि जो कुछ तुम मुहम्मद (सल्ल०) के साथ करना चाहते हो, यहांँ कुछ अपनी शक्ति के भरोसे पर फ़िरऔन हज़रत मूसा (अलैहि०) के साथ करना चाहता था, अब क्या ये हरकतें करके तुम भी उसी परिणाम को देखना चाहते हो जिस परिणाम को उसे देखना पड़ा था?

(2) मुहम्मद (सल्ल०) और उनके अनुयायियों को शिक्षा दी गई है कि [इन ज़ालिमों की बड़ी से बड़ी भयावह धमकी] के जवाब में बस अल्लाह की पनाह माँग लो और इसके बाद बिल्कुल निर्भय होकर अपने काम में लग जाओ। इस तरह अल्लाह के भरोसे पर ख़तरों और आशंकाओं से बेपरवाह होकर काम करोगे तो आख़िरकार उसकी मदद आकर रहेगी और आज के फ़िरऔन भी वही कुछ देख लेंगे जो कल के फ़िरऔन देख चुके हैं।

(3) इन दो गिरोहों के अलावा एक तीसरा गिरोह भी समाज में मौजूद था और वह उन लोगों का गिरोह था जो दिलों में जान चुके थे कि सत्य मुहम्मद (सल्ल०) ही के साथ है। मगर यह जान लेने के बावजूद वे चुपचाप सत्य-असत्य के इस संघर्ष का तमाशा देख रहे थे। अल्लाह ने इस अवसर पर उनकी अन्तरात्मा को झिंझोड़ा है और उन्हें बताया है कि जब सत्य के शत्रु खुल्लम-खुल्ला तुम्हारी आँखों के सामने इतना बड़ा ज़ुल्म भरा क़दम उठाने पर तुल गए हैं, तो अफ़सोस है तुम पर अगर अब भी तुम बैठे तमाशा ही देखते रहो। इस हालत में जिस व्यक्ति की अन्तरात्मा बिल्‍कुल मर न चुकी हो उसे तो उठकर वह कर्तव्य निभाना चाहिए जो फ़िरऔन के भरे दरबार में उसके अपने दरबारियों में से एक सत्यवादी व्यक्ति ने उस समय निभाया था जब फ़िरऔन ने हज़रत मूसा (अलैहि०) को क़त्ल करना चाहा था। अब रहा इस्लाम-विरोधियों का वह तर्क-वितर्क जो सत्य को नीचा दिखाने के लिए मक्का मुअज़्ज़मा में रात-दिन जारी था, तो उसके उत्तर में एक ओर प्रमाणों के द्वारा तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत (परलोकवाद) की उन धारणाओं का सत्य होना सिद्ध किया गया है जो मुहम्मद (सल्ल०) और इस्लाम-विरोधियों के बीच झगड़े की असल जड़ थी। दूसरी ओर उन मूल प्रेरक तत्त्वों को स्पष्ट रूप से सामने लाया गया है जिनके कारण क़ुरैश के सरदार इतनी सरगर्मी के साथ नबी (सल्ल०) के विरुद्ध लड़ रहे थे। अतएव आयत 56 में यह बात किसी लाग-लपेट के बिना उनसे साफ़ कह दी गई है कि तुम्हारे इंकार का मूल कारण वह दंभ है, जो तुम्हारे दिलों में भरा हुआ है। तुम समझते हो कि अगर लोग मुहम्मद (सल्ल०) की पैग़म्बरी को मान लेंगे तो तुम्हारी बड़ाई कायम न रह सकेगी। इसी सिलसिले में विधर्मियों को बार-बार चेतावनियाँ दी गई हैं कि अगर अल्लाह की आयतों के मुक़ाबले में लड़ने-झगड़ने से बाज़ न आओगे तो उसी परिणाम का सामना करना पड़ेगा, जिसका सामना पिछली जातियों को करना पड़ा है।

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سُورَةُ غَافِرٍ
40. अल-मोमिन
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
حمٓ
(1) हा० मीम०।
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡعَلِيمِ ۝ 1
(2) इस किताब का अवतरण अल्लाह की ओर से है जो प्रभुत्वशाली है, सब कुछ जाननेवाला है,
غَافِرِ ٱلذَّنۢبِ وَقَابِلِ ٱلتَّوۡبِ شَدِيدِ ٱلۡعِقَابِ ذِي ٱلطَّوۡلِۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ إِلَيۡهِ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 2
(3) गुनाह माफ़ करनेवाला और तौबा क़ुबूल करनेवाला है, कठोर अज़ाब देनेवाला और बड़ा फ़ज़्लवाला है, कोई पूज्य उसके सिवा नहीं, उसी की ओर सबको पलटना है।
مَا يُجَٰدِلُ فِيٓ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ إِلَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَلَا يَغۡرُرۡكَ تَقَلُّبُهُمۡ فِي ٱلۡبِلَٰدِ ۝ 3
(4) अल्लाह की आयतों में झगड़े नहीं करते मगर सिर्फ़ वे लोग जिन्होंने इनकार किया है। इसके बाद दुनिया के मुल्कों में उनकी चलत-फिरत तुम्हें किसी धोखे में न डाले।
كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ وَٱلۡأَحۡزَابُ مِنۢ بَعۡدِهِمۡۖ وَهَمَّتۡ كُلُّ أُمَّةِۭ بِرَسُولِهِمۡ لِيَأۡخُذُوهُۖ وَجَٰدَلُواْ بِٱلۡبَٰطِلِ لِيُدۡحِضُواْ بِهِ ٱلۡحَقَّ فَأَخَذۡتُهُمۡۖ فَكَيۡفَ كَانَ عِقَابِ ۝ 4
(5) इनसे पहले नूह की क़ौम भी झुठला चुकी है, और उसके बाद बहुत-से दूसरे जत्थों ने भी यह काम किया है। हर क़ौम अपने रसूल पर झपटी ताकि उसे पकड़ ले। उन सबने असत्य के हथियारों से सत्य को नीचा दिखाने की कोशिश की, किन्तु आख़िरकार मैंने उनको पकड़ लिया, फिर देख लो कि मेरी सज़ा कैसी कठोर थी।
وَكَذَٰلِكَ حَقَّتۡ كَلِمَتُ رَبِّكَ عَلَى ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّهُمۡ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِ ۝ 5
(6) इसी प्रकार तेरे रब का यह फ़ैसला भी उन सब लोगों पर चस्पाँ हो चुका है जिन्होंने इनकार किया है कि वे जहन्नम में जानेवाले हैं।
ٱلَّذِينَ يَحۡمِلُونَ ٱلۡعَرۡشَ وَمَنۡ حَوۡلَهُۥ يُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَيُؤۡمِنُونَ بِهِۦ وَيَسۡتَغۡفِرُونَ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْۖ رَبَّنَا وَسِعۡتَ كُلَّ شَيۡءٖ رَّحۡمَةٗ وَعِلۡمٗا فَٱغۡفِرۡ لِلَّذِينَ تَابُواْ وَٱتَّبَعُواْ سَبِيلَكَ وَقِهِمۡ عَذَابَ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 6
(7) ईश-सिंहासन के उठानेवाले फ़रिश्ते, और वे जो सिंहासन के चारों तरफ़ हाज़िर रहते हैं सब अपने रब की तारीफ़ के साथ उसकी तसबीह (महिमागान) कर रहे हैं। वे उसपर ईमान रखते हैं और ईमान लानेवालों के हक़ में मग़फ़िरत (मोक्ष) की दुआ करते हैं। वे कहते हैं: “ऐ हमारे रब, तू अपनी दयालुता और अपने ज्ञान के साथ हर चीज़ पर छाया हुआ है, अतः माफ़ कर दे और जहन्नम के अज़ाब से बचा ले उन लोगों को जिन्होंने तौबा की है और तेरा मार्ग ग्रहण कर लिया है।
رَبَّنَا وَأَدۡخِلۡهُمۡ جَنَّٰتِ عَدۡنٍ ٱلَّتِي وَعَدتَّهُمۡ وَمَن صَلَحَ مِنۡ ءَابَآئِهِمۡ وَأَزۡوَٰجِهِمۡ وَذُرِّيَّٰتِهِمۡۚ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 7
(8) ऐ हमारे रब और दाख़िल कर उनको हमेशा रहनेवाली उन जन्नतों में जिनका तूने उनसे वादा किया है, और उनके माता-पिता और पत्नियों और सन्तान में से जो नेक हों (उनको भी वहाँ उनके साथ ही पहुँचा दे)। तू यक़ीनन सर्वशक्तिमान और तत्त्वदर्शी है।
وَقِهِمُ ٱلسَّيِّـَٔاتِۚ وَمَن تَقِ ٱلسَّيِّـَٔاتِ يَوۡمَئِذٖ فَقَدۡ رَحِمۡتَهُۥۚ وَذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ ۝ 8
(9) और बचा दे उनको बुराइयों से। जिसको तूने क़ियामत के दिन बुराइयों से बचा दिया उसपर तूने बड़ी दया की, यही बड़ी सफलता है।"
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يُنَادَوۡنَ لَمَقۡتُ ٱللَّهِ أَكۡبَرُ مِن مَّقۡتِكُمۡ أَنفُسَكُمۡ إِذۡ تُدۡعَوۡنَ إِلَى ٱلۡإِيمَٰنِ فَتَكۡفُرُونَ ۝ 9
(10) जिन लोगों ने इनकार किया है, क़ियामत के दिन उनको पुकारकर कहा जाएगा, “आज तुम्हें जितना ज़्यादा ग़ुस्सा अपने ऊपर आ रहा है, अल्लाह तुमपर उससे ज़्यादा ग़ुस्सा उस समय करता था जब तुम्हें ईमान की ओर बुलाया जाता था और तुम इनकार करते थे।”
قَالُواْ رَبَّنَآ أَمَتَّنَا ٱثۡنَتَيۡنِ وَأَحۡيَيۡتَنَا ٱثۡنَتَيۡنِ فَٱعۡتَرَفۡنَا بِذُنُوبِنَا فَهَلۡ إِلَىٰ خُرُوجٖ مِّن سَبِيلٖ ۝ 10
(11) वे कहेंगे, “ऐ हमारे रब, तूने वास्तव में हमें दो बार मौत और दो बार ज़िन्दगी दे दी1 अब हम अपने गुनाहों को क़ुबूल करते हैं, क्या अब यहाँ से निकलने की भी कोई राह है?”
1. दो बार मौत और दो बार ज़िन्दगी से मुराद वही चीज़ है जिसका उल्लेख सूरा 2 (बक़रा) आयत 28 में किया गया है।
ذَٰلِكُم بِأَنَّهُۥٓ إِذَا دُعِيَ ٱللَّهُ وَحۡدَهُۥ كَفَرۡتُمۡ وَإِن يُشۡرَكۡ بِهِۦ تُؤۡمِنُواْۚ فَٱلۡحُكۡمُ لِلَّهِ ٱلۡعَلِيِّ ٱلۡكَبِيرِ ۝ 11
(12) (जवाब मिलेगा) “यह हालत जिसमें तुम पड़े हो, इस कारण से है कि जब अकेले अल्लाह की ओर बुलाया जाता था तो तुम मानने से इनकार कर देते थे और जब उसके साथ दूसरों को मिलाया जाता तो तुम मान लेते थे। अब फ़ैसला महान और सर्वोच्च अल्लाह के हाथ है।"
هُوَ ٱلَّذِي يُرِيكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ وَيُنَزِّلُ لَكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ رِزۡقٗاۚ وَمَا يَتَذَكَّرُ إِلَّا مَن يُنِيبُ ۝ 12
(13) वही है जो तुमको अपनी निशानियाँ दिखाता है और आसमान से तुम्हारे लिए रोज़ी उतरता है2, मगर (इन निशानियों के निरीक्षण से) शिक्षा सिर्फ़ वही व्यक्ति ग्रहण करता है जो अल्लाह की ओर रुजू करनेवाला हो।
2. अर्थात् वर्षा करता है जो रोज़ी का कारण है, गर्मी और ठण्डक उतारता है जिसका रोज़ी की पैदावार में बड़ा हाथ है।
فَٱدۡعُواْ ٱللَّهَ مُخۡلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡكَٰفِرُونَ ۝ 13
(14) (अत: ऐ रुजू करनेवालो) अल्लाह ही को पुकारो अपने धर्म को उसी के लिए ख़ालिस (विशिष्ट) करके चाहे तुम्हारा यह कर्म इनकार करनेवालों को कितना ही नापसंद हो।
رَفِيعُ ٱلدَّرَجَٰتِ ذُو ٱلۡعَرۡشِ يُلۡقِي ٱلرُّوحَ مِنۡ أَمۡرِهِۦ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦ لِيُنذِرَ يَوۡمَ ٱلتَّلَاقِ ۝ 14
(15) यह ऊँचे दर्जेवाला सिंहासन का मालिक है। अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है अपने हुक्म से रूह उतार देता है ताकि वह मिलन के दिन से सावधान कर दे।
يَوۡمَ هُم بَٰرِزُونَۖ لَا يَخۡفَىٰ عَلَى ٱللَّهِ مِنۡهُمۡ شَيۡءٞۚ لِّمَنِ ٱلۡمُلۡكُ ٱلۡيَوۡمَۖ لِلَّهِ ٱلۡوَٰحِدِ ٱلۡقَهَّارِ ۝ 15
(16) वह दिन जबकि सब लोग बेपरदा होंगे, अल्लाह से उनकी कोई बात छिपी हुई न होगी। (उस दिन पुकारकर पूछा जाएगा) आज राज किसका है? (सारी दुनिया पुकार उठेगी) अल्लाह अकेले, प्रभुत्वशाली का।
ٱلۡيَوۡمَ تُجۡزَىٰ كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡۚ لَا ظُلۡمَ ٱلۡيَوۡمَۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ ۝ 16
(17) कहा जाएगा) आज हर जीव को उस कमाई का बदला दिया जाएगा जो उसने की थी, आज किसी पर कोई ज़ुल्म न होगा। और अल्लाह हिसाब लेने में बहुत तेज़ है।
وَأَنذِرۡهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡأٓزِفَةِ إِذِ ٱلۡقُلُوبُ لَدَى ٱلۡحَنَاجِرِ كَٰظِمِينَۚ مَا لِلظَّٰلِمِينَ مِنۡ حَمِيمٖ وَلَا شَفِيعٖ يُطَاعُ ۝ 17
(18) ऐ नबी, डरा दो इन लोगों को उस दिन से जो क़रीब आ लगा है। जब कलेजे मुँह को आ रहे होंगे और लोग चुपचाप ग़म के घूँट पिए खड़े होंगे ज़ालिमों का न कोई चाहनेवाला दोस्त होगा और न कोई सिफ़ारिश करनेवाला जिसकी बात मानी जाए।
يَعۡلَمُ خَآئِنَةَ ٱلۡأَعۡيُنِ وَمَا تُخۡفِي ٱلصُّدُورُ ۝ 18
(19) अल्लाह निगाहों की चोरी तक से परिचित है और वह रहस्य तक जानता है जो सीनों ने छिपा रखे हैं।
وَٱللَّهُ يَقۡضِي بِٱلۡحَقِّۖ وَٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ لَا يَقۡضُونَ بِشَيۡءٍۗ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡبَصِيرُ ۝ 19
(20) और अल्लाह ठीक-ठीक बेलाग फ़ैसला करेगा। रहे वे जिनको (ये बहुदेववादी) अल्लाह को छोड़कर पुकारते है, किसी का भी फ़ैसला करनेवाले नहीं है। यक़ीनन अल्लाह ही सब कुछ सुनने और देखनेवाला है।
۞أَوَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ كَانُواْ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَانُواْ هُمۡ أَشَدَّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗ وَءَاثَارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمۡ وَمَا كَانَ لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن وَاقٖ ۝ 20
(21) क्या ये लोग कभी ज़मीन में चले-फिरे नहीं है कि इन्हें उन लोगों का परिणाम दिखाई देता जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं? वे इनसे ज़्यादा बलशाली थे और इनसे ज़्यादा प्रबल चिह्‍न ज़मीन में छोड़ गए हैं। मगर अल्लाह ने उनके गुनाहों पर उन्हें पकड़ लिया और उनको अल्लाह से बचानेवाला कोई न था।
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانَت تَّأۡتِيهِمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَكَفَرُواْ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُۚ إِنَّهُۥ قَوِيّٞ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ ۝ 21
(22) यह उनका परिणाम इसलिए हुआ कि उनके पास उनके रसूल प्रत्यक्ष प्रमाण3 लेकर आए और उन्होंने मानने से इनकार कर दिया। आख़िरकार अल्लाह ने उनको पकड़ लिया। यक़ीनन वह बड़ी शक्तिवाला और सज़ा देने में बहुत सख़्त है।
3. स्पष्ट प्रमाण 'बैयिनात' से मुराद तीन चीज़़ें हैं। एक ऐसे स्पष्ट लक्षण और निशानियाँ जो अल्लाह की ओर से उनके नियुक्त होने की साक्षी थीं। दूसरे, ऐसे खुले प्रमाण जो उनकी पेश की हुई शिक्षाओं के सत्य होने को सिद्ध कर रहे थे। तीसरे, ज़िन्दगी की समस्याओं और मामलों के सम्बन्ध में ऐसे स्पष्ट आदेश जिन्हें देखकर हर समझदार और सभ्य आदमी यह जान सकता था कि ऐसी पवित्र शिक्षा कोई झूठा स्वार्थी आदमी नहीं दे सकता।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَا وَسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٍ ۝ 22
(23) हमने मूसा को फ़िरऔन और हामान और क़ारून की ओर
إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَهَٰمَٰنَ وَقَٰرُونَ فَقَالُواْ سَٰحِرٞ كَذَّابٞ ۝ 23
(24) अपनी निशानियों और नियुक्ति के स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा, मगर उन्होंने कहा, “जादूगर है, बहुत झूठा है।"
فَلَمَّا جَآءَهُم بِٱلۡحَقِّ مِنۡ عِندِنَا قَالُواْ ٱقۡتُلُوٓاْ أَبۡنَآءَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ وَٱسۡتَحۡيُواْ نِسَآءَهُمۡۚ وَمَا كَيۡدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَٰلٖ ۝ 24
(25) फिर जब वह हमारी ओर से सत्य उनके सामने ले आया तो उन्होंने कहा, “जो लोग ईमान लाकर इसके साथ शामिल हुए हैं उन सबके लड़कों को क़त्ल करो और लड़कियों को ज़िन्दा छोड़ दो।” मगर इनकार करनेवालों की चाल अकारथ हो गई।
وَقَالَ فِرۡعَوۡنُ ذَرُونِيٓ أَقۡتُلۡ مُوسَىٰ وَلۡيَدۡعُ رَبَّهُۥٓۖ إِنِّيٓ أَخَافُ أَن يُبَدِّلَ دِينَكُمۡ أَوۡ أَن يُظۡهِرَ فِي ٱلۡأَرۡضِ ٱلۡفَسَادَ ۝ 25
(26) एक दिन फ़िरऔन ने अपने दरबारियों से कहा, “छोड़ो मुझे, मैं इस मूसा को क़त्ल किए देता हूँ, और पुकार देखे यह अपने रब को मुझे आशंका है कि यह तुम्हारा धर्म बदल डालेगा, या देश में बिगाड़ पैदा करेगा।"
وَقَالَ مُوسَىٰٓ إِنِّي عُذۡتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُم مِّن كُلِّ مُتَكَبِّرٖ لَّا يُؤۡمِنُ بِيَوۡمِ ٱلۡحِسَابِ ۝ 26
(27) मूसा ने कहा, “मैंने तो हर उस अहंकारी के मुक़ाबले में जो हिसाब के दिन पर ईमान नहीं रखता अपने रब और तुम्हारे रब की पनाह ले ली है।"
وَقَالَ رَجُلٞ مُّؤۡمِنٞ مِّنۡ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ يَكۡتُمُ إِيمَٰنَهُۥٓ أَتَقۡتُلُونَ رَجُلًا أَن يَقُولَ رَبِّيَ ٱللَّهُ وَقَدۡ جَآءَكُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ مِن رَّبِّكُمۡۖ وَإِن يَكُ كَٰذِبٗا فَعَلَيۡهِ كَذِبُهُۥۖ وَإِن يَكُ صَادِقٗا يُصِبۡكُم بَعۡضُ ٱلَّذِي يَعِدُكُمۡۖ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي مَنۡ هُوَ مُسۡرِفٞ كَذَّابٞ ۝ 27
(28) इस अवसर पर फ़िरऔन के लोगों में से एक ईमान रखनेवाला व्यक्ति, जो अपना ईमान छिपाए हुए था, बोल उठा: “क्या तुम एक व्यक्ति को सिर्फ़ इसलिए क़त्ल कर दोगे कि वह कहता है कि मेरा रब अल्लाह है? जबकि वह तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारे पास स्पष्ट प्रमाण ले आया। अगर वह झूठा है तो उसका झूठ ख़ुद उसी पर पलट पड़ेगा। लेकिन अगर वह सच्चा है तो जिन भयंकर परिणामों से वह तुम्हें डराता है उनमें से कुछ तो तुमपर ज़रूर ही आ जाएँगे। अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को मार्ग नहीं दिखाता जो मर्यादाओं का उल्लंघन करनेवाला और बड़ा झूठा हो।
يَٰقَوۡمِ لَكُمُ ٱلۡمُلۡكُ ٱلۡيَوۡمَ ظَٰهِرِينَ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَمَن يَنصُرُنَا مِنۢ بَأۡسِ ٱللَّهِ إِن جَآءَنَاۚ قَالَ فِرۡعَوۡنُ مَآ أُرِيكُمۡ إِلَّا مَآ أَرَىٰ وَمَآ أَهۡدِيكُمۡ إِلَّا سَبِيلَ ٱلرَّشَادِ ۝ 28
(29) ऐ मेरी क़ौम के लोगो, आज तुम्हें बादशाही प्राप्त है और ज़मीन में तुम प्रभुत्वशाली हो, लेकिन अगर अल्लाह का अज़ाब हमपर आ गया तो फिर कौन है जो हमारी सहायता कर सकेगा?” फ़िरऔन ने कहा, “मैं तो तुम लोगों को वही राय दे रहा हूँ जो मुझे उचित दीख पड़ती है और मैं उसी मार्ग की ओर तुम्हारा पथप्रदर्शन करता हूँ जो ठीक है।"
وَقَالَ ٱلَّذِيٓ ءَامَنَ يَٰقَوۡمِ إِنِّيٓ أَخَافُ عَلَيۡكُم مِّثۡلَ يَوۡمِ ٱلۡأَحۡزَابِ ۝ 29
(30) वह व्यक्ति जो ईमान लाया था उसने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो, मुझे डर है कि कहीं तुमपर भी वह दिन न आ जाए जो इससे पहले बहुत से जत्थों पर आ चुका है,
مِثۡلَ دَأۡبِ قَوۡمِ نُوحٖ وَعَادٖ وَثَمُودَ وَٱلَّذِينَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡۚ وَمَا ٱللَّهُ يُرِيدُ ظُلۡمٗا لِّلۡعِبَادِ ۝ 30
(31) जैसा दिन नूह और आद और समूद की क़ौम और उनके बादवाली क़ौमों पर आया था। और यह वास्तविकता है कि अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म का कोई इरादा नहीं रखता।
وَيَٰقَوۡمِ إِنِّيٓ أَخَافُ عَلَيۡكُمۡ يَوۡمَ ٱلتَّنَادِ ۝ 31
(32) ऐ क़ौम, मुझे डर है कि कहीं तुमपर दुहाई और आर्त्तनाद का दिन न आ जाए
يَوۡمَ تُوَلُّونَ مُدۡبِرِينَ مَا لَكُم مِّنَ ٱللَّهِ مِنۡ عَاصِمٖۗ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ ۝ 32
(33) जब तुम एक दूसरे को पुकारोगे और भागे-भागे फिरोगे, मगर उस समय अल्लाह से बचानेवाला कोई न होगा। सच यह है कि जिसे अल्लाह भटका दे उसे फिर कोई मार्ग दिखानेवाला नहीं होता।
وَلَقَدۡ جَآءَكُمۡ يُوسُفُ مِن قَبۡلُ بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَمَا زِلۡتُمۡ فِي شَكّٖ مِّمَّا جَآءَكُم بِهِۦۖ حَتَّىٰٓ إِذَا هَلَكَ قُلۡتُمۡ لَن يَبۡعَثَ ٱللَّهُ مِنۢ بَعۡدِهِۦ رَسُولٗاۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ ٱللَّهُ مَنۡ هُوَ مُسۡرِفٞ مُّرۡتَابٌ ۝ 33
(34) इससे पहले यूसुफ़ तुम्हारे पास स्पष्ट प्रमाण लेकर आए थे मगर तुम उनकी लाई हुई शिक्षा की ओर से शक ही में पड़े रहे। फिर जब उनका देहान्त हो गया तो तुमने कहा, “अब उनके बाद अल्लाह कोई रसूल हरगिज़ न भेजेगा” इसी तरह4 अल्लाह उन सब लोगों को गुमराही में डाल देता है जो हद से गुज़रनेवाले और शक में पड़े होते हैं
4. प्रत्यक्षतः ऐसा लगता है कि आगे के ये कुछ वाक्य अल्लाह ने फ़िरऔनियों में के ईमानवाले व्यक्ति के कथन पर अभिवृद्धि और व्याख्या के रूप में कहे हैं।
ٱلَّذِينَ يُجَٰدِلُونَ فِيٓ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ بِغَيۡرِ سُلۡطَٰنٍ أَتَىٰهُمۡۖ كَبُرَ مَقۡتًا عِندَ ٱللَّهِ وَعِندَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْۚ كَذَٰلِكَ يَطۡبَعُ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ قَلۡبِ مُتَكَبِّرٖ جَبَّارٖ ۝ 34
(35) और अल्लाह की आयतों में झगड़े करते हैं बिना इसके कि उनके पास कोई सनद या प्रमाण आया हो। यह नीति अल्लाह और ईमान लानेवालों की दृष्टि में अत्यन्त अप्रिय है। इसी तरह अल्लाह हर अहंकारी और दमनकारी के दिल पर ठप्पा लगा देता है।
وَقَالَ فِرۡعَوۡنُ يَٰهَٰمَٰنُ ٱبۡنِ لِي صَرۡحٗا لَّعَلِّيٓ أَبۡلُغُ ٱلۡأَسۡبَٰبَ ۝ 35
(36) फ़िरऔन ने कहा, “ऐ हामान, मेरे लिए एक ऊँचा भवन बना ताकि मैं मार्गों तक पहुँच सकूँ,
أَسۡبَٰبَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ فَأَطَّلِعَ إِلَىٰٓ إِلَٰهِ مُوسَىٰ وَإِنِّي لَأَظُنُّهُۥ كَٰذِبٗاۚ وَكَذَٰلِكَ زُيِّنَ لِفِرۡعَوۡنَ سُوٓءُ عَمَلِهِۦ وَصُدَّ عَنِ ٱلسَّبِيلِۚ وَمَا كَيۡدُ فِرۡعَوۡنَ إِلَّا فِي تَبَابٖ ۝ 36
(37) आसमानों के मार्गों तक, और मूसा के ख़ुदा को झाँककर देखूँ। मुझे तो यह मूसा झूठा ही मालूम होता है।” — इस प्रकार फ़िरऔन के लिए उसका दुष्कर्म ख़ुशनुमा बना दिया गया और वह सन्मार्ग से रोक दिया गया। फ़िरऔन की सारी चालबाज़ी (उसके अपने) विनाश के मार्ग ही में लगी।
وَقَالَ ٱلَّذِيٓ ءَامَنَ يَٰقَوۡمِ ٱتَّبِعُونِ أَهۡدِكُمۡ سَبِيلَ ٱلرَّشَادِ ۝ 37
(38) वह व्यक्ति जो ईमान लाया था, बोला, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो, मेरी बात मानो, मैं तुम्हें ठीक मार्ग बताता हूँ।
يَٰقَوۡمِ إِنَّمَا هَٰذِهِ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا مَتَٰعٞ وَإِنَّ ٱلۡأٓخِرَةَ هِيَ دَارُ ٱلۡقَرَارِ ۝ 38
(39) ऐ क़ौम, यह दुनिया की ज़िन्दगी तो थोड़े दिनों की है, हमेशा ठहरने का स्थान तो आख़िरत ही है।
مَنۡ عَمِلَ سَيِّئَةٗ فَلَا يُجۡزَىٰٓ إِلَّا مِثۡلَهَاۖ وَمَنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا مِّن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَأُوْلَٰٓئِكَ يَدۡخُلُونَ ٱلۡجَنَّةَ يُرۡزَقُونَ فِيهَا بِغَيۡرِ حِسَابٖ ۝ 39
(40) जो बुराई करेगा उसको उतना ही बदला मिलेगा जितनी उसने बुराई की होगी और जो अच्छा कर्म करेगा चाहे वह मर्द हो या औरत शर्त यह है कि हो वह ईमानवाला, ऐसे सब लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे जहाँ उनको बेहिसाब रोज़ी दी जाएगी।
۞وَيَٰقَوۡمِ مَا لِيٓ أَدۡعُوكُمۡ إِلَى ٱلنَّجَوٰةِ وَتَدۡعُونَنِيٓ إِلَى ٱلنَّارِ ۝ 40
(41) ऐ क़ौमवालो, आख़िर यह क्या मामला है कि मैं तो तुम लोगों को मुक्ति की ओर बुलाता हूँ और तुम लोग मुझे आग की ओर आमंत्रित करते हो!
تَدۡعُونَنِي لِأَكۡفُرَ بِٱللَّهِ وَأُشۡرِكَ بِهِۦ مَا لَيۡسَ لِي بِهِۦ عِلۡمٞ وَأَنَا۠ أَدۡعُوكُمۡ إِلَى ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡغَفَّٰرِ ۝ 41
(42) तुम मुझे इस बात का आमंत्रण देते हो कि मैं अल्लाह के साथ इनकार की नीति अपनाऊँ और उसके साथ ऐसों को साझी ठहराऊँ जिन्हें मैं नहीं जानता5, हालाँकि मैं तुम्हें उस प्रभुत्वशाली क्षमाशील ईश्वर की ओर बुला रहा हूँ।
5. अर्थात् मुझे नहीं मालूम कि ईश्वरत्व में उनकी कोई साझीदारी है।
لَا جَرَمَ أَنَّمَا تَدۡعُونَنِيٓ إِلَيۡهِ لَيۡسَ لَهُۥ دَعۡوَةٞ فِي ٱلدُّنۡيَا وَلَا فِي ٱلۡأٓخِرَةِ وَأَنَّ مَرَدَّنَآ إِلَى ٱللَّهِ وَأَنَّ ٱلۡمُسۡرِفِينَ هُمۡ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِ ۝ 42
(43) नहीं, सत्य यह है और इसके विपरीत नहीं हो सकता कि जिनकी ओर तुम मुझे बुला रहे हो उनके लिए न दुनिया में कोई आमंत्रण है, न आख़िरत में6, और हम सबको पलटना अल्लाह ही की ओर है, और सीमा का उल्लंघन करनेवाले आग में जानेवाले हैं।
6. इस वाक्य के कई अर्थ हो सकते हैं। एक यह कि उनको न दुनिया में यह हक़ पहुँचता है और न आख़िरत में कि उनका प्रभुत्व स्वीकार करने के लिए लोगों को बुलावा दिया जाए। दूसरे यह कि उन्हें तो लोगों ने ज़बरदस्ती ईश बनाया है वरना वे ख़ुद न इस दुनिया में ईश्वरत्व के दावेदार हैं, न आख़िरत में यह दावा लेकर उठेंगे कि हम भी तो ईश्वर थे, तुमने हमें क्यों न माना। तीसरे यह कि उनको पुकारने का कोई लाभ न इस दुनिया में है न आख़िरत में, क्योंकि वे बिलकुल अधिकार नहीं रखते और उन्हें पुकारना निश्चित रूप से व्यर्थ है।
فَسَتَذۡكُرُونَ مَآ أَقُولُ لَكُمۡۚ وَأُفَوِّضُ أَمۡرِيٓ إِلَى ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ بَصِيرُۢ بِٱلۡعِبَادِ ۝ 43
(44) आज जो कुछ मैं कह रहा हूँ, जल्द ही वह समय आएगा जब तुम उसे याद करोगे और अपना मामला मैं अल्लाह को सौंपता हूँ, वह अपने बन्दों का निगहबान है। “
فَوَقَىٰهُ ٱللَّهُ سَيِّـَٔاتِ مَا مَكَرُواْۖ وَحَاقَ بِـَٔالِ فِرۡعَوۡنَ سُوٓءُ ٱلۡعَذَابِ ۝ 44
(45) आख़िरकार उन लोगों ने जो बुरी से बुरी चालें उस ईमानवाले के विरुद्ध चलीं, अल्लाह ने उन सबसे उसको बचा लिया7, और फ़िरऔन के साथी ख़ुद अत्यन्त बुरे अजाब के फेर में आ गए।
7. इससे मालूम होता है कि वह व्यक्ति फ़िरऔन के राज्य में इतने महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व का मालिक था कि भरे दरबार में फ़िरऔन के सामने यह सत्य कह जाने के बावजूद खुलेआम उसको सज़ा देने का साहस नहीं किया जा सकता था, इस कारण फ़िरऔन और उसके समर्थकों को उसे तबाह करने के लिए गुप्त उपाय करने पड़े, मगर उन उपायों को भी अल्लाह ने चलने न दिया।
ٱلنَّارُ يُعۡرَضُونَ عَلَيۡهَا غُدُوّٗا وَعَشِيّٗاۚ وَيَوۡمَ تَقُومُ ٱلسَّاعَةُ أَدۡخِلُوٓاْ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ أَشَدَّ ٱلۡعَذَابِ ۝ 45
(46) दोज़ख़ की आग है जिसके सामने सुबह और शाम वे पेश किए जाते हैं, और जब क़ियामत की घड़ी आ जाएगी तो आदेश होगा कि फ़िरऔन के लोगों को कठोरतम अज़ाब में दाख़िल करो।
وَإِذۡ يَتَحَآجُّونَ فِي ٱلنَّارِ فَيَقُولُ ٱلضُّعَفَٰٓؤُاْ لِلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُوٓاْ إِنَّا كُنَّا لَكُمۡ تَبَعٗا فَهَلۡ أَنتُم مُّغۡنُونَ عَنَّا نَصِيبٗا مِّنَ ٱلنَّارِ ۝ 46
(47) फिर तनिक विचार करो उस समय का जब ये लोग दोज़ख़ में एक दूसरे से झगड़ रहे होंगे। दुनिया में जो लोग कमज़ोर थे वे बड़े बननेवालों से कहेंगे कि “हम तुम्हारे अधीन थे, अब क्या यहाँ तुम जहन्नम को आग की तकलीफ़ के कुछ भाग से हमको बचा लोगे?”
قَالَ ٱلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُوٓاْ إِنَّا كُلّٞ فِيهَآ إِنَّ ٱللَّهَ قَدۡ حَكَمَ بَيۡنَ ٱلۡعِبَادِ ۝ 47
(48) वे बड़े बननेवाले जवाब देंगे, “हम सब यहाँ एक हाल में हैं, और अल्लाह बन्दों के बीच फ़ैसला कर चुका है।”
وَقَالَ ٱلَّذِينَ فِي ٱلنَّارِ لِخَزَنَةِ جَهَنَّمَ ٱدۡعُواْ رَبَّكُمۡ يُخَفِّفۡ عَنَّا يَوۡمٗا مِّنَ ٱلۡعَذَابِ ۝ 48
(49) फिर ये आग में पड़े हुए लोग जहन्नम के कार्यकर्ताओं से कहेंगे, “अपने रब से दुआ करो कि हमारे अज़ाब में बस एक दिन की कमी कर दे।”
قَالُوٓاْ أَوَلَمۡ تَكُ تَأۡتِيكُمۡ رُسُلُكُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِۖ قَالُواْ بَلَىٰۚ قَالُواْ فَٱدۡعُواْۗ وَمَا دُعَٰٓؤُاْ ٱلۡكَٰفِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَٰلٍ ۝ 49
(50) वे पूछेंगे, “क्या तुम्हारे पास रसूल स्पष्ट प्रमाण लेकर नहीं आते रहे थे?” वे कहेंगे, “हाँ” जहन्नम के कार्यकर्त्ता बोलेंगे, “फिर तो तुम ही दुआ करो, और इनकार करनेवालों की दुआ अकारथ ही जानेवाली है।”
إِنَّا لَنَنصُرُ رُسُلَنَا وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَيَوۡمَ يَقُومُ ٱلۡأَشۡهَٰدُ ۝ 50
(51) यक़ीन जानो कि हम अपने रसूलों और ईमान लानेवालों की सहायता इस दुनिया की ज़िन्दगी में भी अवश्य करते हैं और उस दिन भी करेंगे जब गवाह खड़े होंगे,
يَوۡمَ لَا يَنفَعُ ٱلظَّٰلِمِينَ مَعۡذِرَتُهُمۡۖ وَلَهُمُ ٱللَّعۡنَةُ وَلَهُمۡ سُوٓءُ ٱلدَّارِ ۝ 51
(52) जब ज़ालिमों को उनका उच्च (बहाना) पेश करना कुछ भी लाभदायक सिद्ध न होगा और उनपर फिटकार पड़ेगी और अत्यन्त बुरा ठिकाना उनके हिस्से में आएगा।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡهُدَىٰ وَأَوۡرَثۡنَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱلۡكِتَٰبَ ۝ 52
(53) आख़िर देख लो कि मूसा का हमने पथ-प्रदर्शन किया और इसराईल की सन्तान को उस किताब का उत्तराधिकारी बना दिया
هُدٗى وَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 53
(54) जो बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए मार्गदर्शन और नसीहत थी।
فَٱصۡبِرۡ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞ وَٱسۡتَغۡفِرۡ لِذَنۢبِكَ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ بِٱلۡعَشِيِّ وَٱلۡإِبۡكَٰرِ ۝ 54
(55) अतः ऐ नबी सब्र से काम लो, अल्लाह का वादा सच्चा है, अपने क़ुसूर की माफ़ी चाहो8 और सुबह और शाम को अपने रब की प्रशंसा के साथ उसकी तसबीह (महिमागान) करते रहो।
8. जिस संदर्भ में यह बात कही गई है, उसपर विचार करने से ऐसा लगता है कि इस स्थान पर “क़ुसूर” से मुराद अधैर्यता की वह मनोदशा है जो घोर विरोध के उस वातावरण में, विशेष रूप से अपने साथियों की उत्पीड़ा देख-देखकर, नबी (सल्ल०) के भीतर पैदा हो रही थी। आप चाहते थे कि जल्दी से कोई चमत्कार ऐसा दिखा दिया जाए जिससे इनकार करनेवाले मान जाएँ या अल्लाह की ओर से कोई ऐसी बात शीघ्र ही प्रकट हो जाए जिससे विद्रोह का यह तूफ़ान ठण्डा हो जाए। यह इच्छा अपने में कोई गुनाह न थी जिसपर किसी तौबा या माफ़ी माँगने की आवश्यकता होती, लेकिन जिस उच्च स्थान पर अल्लाह ने नबी (सल्ल०) को आसीन किया था, और जो भारी साहस एवं निश्चय उस स्थान को अपेक्षित था, उस दृष्टि से यह थोड़ा-सा अधैर्य भी अल्लाह को आपके पद से नीचे की चीज़़ दीख पड़ी, इसलिए कहा गया कि इस दुर्बलता पर अपने रब से माफी माँगो और चट्टान की-सी मज़बूती के साथ अपने स्थान पर जम जाओ जैसा कि तुम जैसे महान पदाधिष्ठित व्यक्ति को होना चाहिए।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُجَٰدِلُونَ فِيٓ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ بِغَيۡرِ سُلۡطَٰنٍ أَتَىٰهُمۡ إِن فِي صُدُورِهِمۡ إِلَّا كِبۡرٞ مَّا هُم بِبَٰلِغِيهِۚ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡبَصِيرُ ۝ 55
(56) वास्तविकता यह है कि जो लोग किसी सनद और तर्क के बिना, जो उनके पास आया हो, अल्लाह की आयतों में झगड़ रहे हैं उनके मन में अहंकार भरा हुआ है, मगर वे उस बड़ाई को पहुँचनेवाले नहीं है जिसका वे घमण्ड रखते हैं। बस अल्लाह की पनाह माँग लो, वह सब कुछ देखता और सुनता है।
لَخَلۡقُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ أَكۡبَرُ مِنۡ خَلۡقِ ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 56
(57) आसमानों और ज़मीन का पैदा करना इनसान को पैदा करने की अपेक्षा यक़ीनन अधिक बड़ा काम है, मगर ज़्यादातर लोग जानते नहीं हैं।
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِيرُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَلَا ٱلۡمُسِيٓءُۚ قَلِيلٗا مَّا تَتَذَكَّرُونَ ۝ 57
(58) और यह नहीं हो सकता कि अन्धा और आँखोंवाला समान हो जाए और ईमानदार व सदाचारी और दुराचारी बराबर ठहरें। मगर तुम लोग कम ही कुछ समझते हो।
إِنَّ ٱلسَّاعَةَ لَأٓتِيَةٞ لَّا رَيۡبَ فِيهَا وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 58
(59) यक़ीनन क़ियामत की घड़ी आनेवाली है, उसके आने में कोई शक नहीं, मगर ज़्यादातर लोग नहीं मानते।
وَقَالَ رَبُّكُمُ ٱدۡعُونِيٓ أَسۡتَجِبۡ لَكُمۡۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَسۡتَكۡبِرُونَ عَنۡ عِبَادَتِي سَيَدۡخُلُونَ جَهَنَّمَ دَاخِرِينَ ۝ 59
(60) तुम्हारा रब कहता है, “मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दुआएँ कबूल करूँगा9, जो लोग घमण्ड में आकर मेरी बन्दगी से मुँह मोड़ते हैं, ज़रूर वे अपमानित होकर जहन्नम में प्रवेश करेंगे।"10
9. अर्थात् दुआएँ क़ुबूल करने के सारे अधिकार मेरे पास हैं, अतः तुम दूसरों से दुआएँ न माँगो बल्कि मुझसे माँगो।
10. इस आयत में दो बातें विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं। एक यह कि दुआ (प्रार्थना) और इबादत (उपासना, बन्दगी) को यहाँ समानार्थक शब्दों के रूप में इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि पहले वाक्य में जिस चीज़ को दुआ को संज्ञा दी गई है उसी को दूसरे वाक्य में 'इबादत' के शब्द से व्यंजित किया गया है। इससे यह बात स्पष्ट हो गई है कि दुआ ठीक इबादत और इबादत की आत्मा है। दूसरे यह कि अल्लाह से दुआ न माँगनेवालों के लिए “घमण्ड में आकर मेरी इबादत से मुँह मोड़ते हैं” के शब्द इस्तेमाल किए गए हैं। इससे मालूम हुआ कि अल्लाह से दुआ माँगना ठीक बन्दगी का तक़ाज़ा है, और उससे मुँह मोड़ने का अर्थ यह है कि आदमी घमण्ड में पड़ा हुआ है।
ٱللَّهُ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّيۡلَ لِتَسۡكُنُواْ فِيهِ وَٱلنَّهَارَ مُبۡصِرًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَشۡكُرُونَ ۝ 60
(61) वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे लिए रात बनाई ताकि तुम उसमें शान्ति प्राप्त करो, और दिन को प्रकाशमान किया। वास्तविकता यह है कि अल्लाह लोगों के प्रति उदार अनुग्रहवाला है, मगर ज़्यादातर लोग शुक्र अदा नहीं करते।
ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖ لَّآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُؤۡفَكُونَ ۝ 61
(62) वही अल्लाह (जिसने तुम्हारे लिए यह कुछ किया है) तुम्हारा रब है। हर चीज़ का स्रष्टा है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। फिर तुम किधर से बहकाए जा रहे हो?
كَذَٰلِكَ يُؤۡفَكُ ٱلَّذِينَ كَانُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ يَجۡحَدُونَ ۝ 62
(63) इसी तरह वे सब लोग बहकाए जाते रहे हैं जो अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे।
ٱللَّهُ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ قَرَارٗا وَٱلسَّمَآءَ بِنَآءٗ وَصَوَّرَكُمۡ فَأَحۡسَنَ صُوَرَكُمۡ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡۖ فَتَبَارَكَ ٱللَّهُ رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 63
(64) वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को ठहरने का स्थान बनाया और ऊपर आसमान का गुंबद बना दिया। जिसने तुम्हारा रूप बनाया और बड़ा ही अच्छा बनाया। जिसने तुम्हें अच्छी स्वच्छ चीज़़ों की रोज़ी दी। वही अल्लाह (जिसके ये कार्य हैं) तुम्हारा रब है। बेहिसाब बरकतोंवाला है वह जगत् का स्वामी।
هُوَ ٱلۡحَيُّ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ فَٱدۡعُوهُ مُخۡلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَۗ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 64
(65) वही ज़िन्दा है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। उसी को तुम पुकारो अपने दीन (धर्म) को उसी के लिए ख़ालिस (विशुद्ध) करके सारी प्रशंसा अल्लाह सारे जहान के रब ही के लिए है।
۞قُلۡ إِنِّي نُهِيتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَمَّا جَآءَنِيَ ٱلۡبَيِّنَٰتُ مِن رَّبِّي وَأُمِرۡتُ أَنۡ أُسۡلِمَ لِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 65
(66) ऐ नबी, इन लोगों से कह दो कि मुझे तो उन हस्तियों की बन्दगी से रोक दिया गया है जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो। (मैं यह काम कैसे कर सकता हूँ) जबकि मेरे पास मेरे रब की ओर से स्पष्ट प्रमाण आ चुके हैं। मुझे आदेश दिया गया है कि मैं सारे जहान के रब के आगे नतमस्तक हो जाऊँ।
هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَكُم مِّن تُرَابٖ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةٖ ثُمَّ مِنۡ عَلَقَةٖ ثُمَّ يُخۡرِجُكُمۡ طِفۡلٗا ثُمَّ لِتَبۡلُغُوٓاْ أَشُدَّكُمۡ ثُمَّ لِتَكُونُواْ شُيُوخٗاۚ وَمِنكُم مَّن يُتَوَفَّىٰ مِن قَبۡلُۖ وَلِتَبۡلُغُوٓاْ أَجَلٗا مُّسَمّٗى وَلَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ۝ 66
(67) वही तो है जिसने तुमको मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर ख़ून के लोथड़े से, फिर वह तुम्हें बच्चे के रूप में निकालता है, फिर तुम्हें बढ़ाता है ताकि तुम अपनी पूरी शक्ति (प्रौढ़ता) को पहुँच जाओ, फिर और बढ़ाता है ताकि तुम बुढ़ापे को पहुँचो और तुममें से कोई पहले ही वापस बुला लिया जाता है। यह सब कुछ इसलिए किया जाता है ताकि तुम अपने निश्चित समय तक पहुँच जाओ, और इसलिए कि तुम सच्चाई को समझो।
هُوَ ٱلَّذِي يُحۡيِۦ وَيُمِيتُۖ فَإِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ ۝ 67
(68) वही है ज़िन्दगी देनेवाला, और वही मौत देनेवाला है। वह जिस बात का भी फ़ैसला करता है, बस एक आदेश देता है कि वह हो जाए और वह हो जाती है।
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يُجَٰدِلُونَ فِيٓ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ أَنَّىٰ يُصۡرَفُونَ ۝ 68
(69) तुमने देखा उन लोगों को जो अल्लाह की आयतों में झगड़े करते हैं, कहाँ से वे फिराए जा रहे हैं?
ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِٱلۡكِتَٰبِ وَبِمَآ أَرۡسَلۡنَا بِهِۦ رُسُلَنَاۖ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ ۝ 69
(70) ये लोग जो इस किताब को और उन सारी किताबों को झुठलाते हैं जो हमने अपने रसूलों के साथ भेजी थीं, जल्द ही इन्हें मालूम हो जाएगा
إِذِ ٱلۡأَغۡلَٰلُ فِيٓ أَعۡنَٰقِهِمۡ وَٱلسَّلَٰسِلُ يُسۡحَبُونَ ۝ 70
(71) जब तौक़ इनकी गरदनों में होंगे, और ज़ंजीरें, जिनसे पकड़कर वे खोलते हुए पानी की ओर खींचे जाएँगे
فِي ٱلۡحَمِيمِ ثُمَّ فِي ٱلنَّارِ يُسۡجَرُونَ ۝ 71
(72) और फिर दोज़ख की आग में झोंक दिए जाएँगे।
ثُمَّ قِيلَ لَهُمۡ أَيۡنَ مَا كُنتُمۡ تُشۡرِكُونَ ۝ 72
(73) फिर इनसे पूछा जाएगा कि “अब कहाँ हैं अल्लाह के सिवा वे दूसरे हैं ख़ुदा जिनको तुम साझी ठहराते थे?”
مِن دُونِ ٱللَّهِۖ قَالُواْ ضَلُّواْ عَنَّا بَل لَّمۡ نَكُن نَّدۡعُواْ مِن قَبۡلُ شَيۡـٔٗاۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ ٱللَّهُ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 73
(74) ये जवाब देंगे, “खोए गए वे हमसे, बल्कि हम इससे पहले किसी चीज़ को न पुकारते थे।” इस तरह अल्लाह इनकार करनेवालों का पथभ्रष्ट होना प्रमाणित कर देगा।
ذَٰلِكُم بِمَا كُنتُمۡ تَفۡرَحُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّ وَبِمَا كُنتُمۡ تَمۡرَحُونَ ۝ 74
(75) उनसे कहा जाएगा, “यह तुम्हारा परिणाम इसलिए हुआ है कि तुम ज़मीन में असत्य पर मग्न थे और फिर उसपर इतराते थे।
ٱدۡخُلُوٓاْ أَبۡوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ فَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 75
(76) अब जाओ, जहन्नम के द्वारों में प्रवेश कर जाओ, हमेशा तुमको वही रहना है, बहुत ही बुरा ठिकाना है अहंकारियों का।”
فَٱصۡبِرۡ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞۚ فَإِمَّا نُرِيَنَّكَ بَعۡضَ ٱلَّذِي نَعِدُهُمۡ أَوۡ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِلَيۡنَا يُرۡجَعُونَ ۝ 76
(77) अतः ऐ नबी, सब्र से काम लो, अल्लाह का वादा सच्चा है। अब चाहे हम तुम्हारे सामने ही इनको उन बुरे परिणामों का कोई अंश दिखा दें जिनसे हम इन्हें डरा रहे हैं या उससे पहले तुम्हें दुनिया से उठा लें, पलटकर आना तो इन्हें हमारी ही ओर है।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا رُسُلٗا مِّن قَبۡلِكَ مِنۡهُم مَّن قَصَصۡنَا عَلَيۡكَ وَمِنۡهُم مَّن لَّمۡ نَقۡصُصۡ عَلَيۡكَۗ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن يَأۡتِيَ بِـَٔايَةٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ فَإِذَا جَآءَ أَمۡرُ ٱللَّهِ قُضِيَ بِٱلۡحَقِّ وَخَسِرَ هُنَالِكَ ٱلۡمُبۡطِلُونَ ۝ 77
(78) ऐ नबी, तुमसे पहले हम बहुत-से रसूल भेज चुके हैं जिनमें से कुछ के हाल हमने तुमको बताए है और कुछ के नहीं बताए। किसी रसूल की भी यह शक्ति नहीं थी कि अल्लाह की अनुमति के बिना ख़ुद कोई निशानी ले आता। फिर जब अल्लाह का आदेश आ गया तो सत्य के अनुसार फ़ैसला कर दिया गया और उस समय दुराचारी लोग घाटे में पड़ गए।
ٱللَّهُ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَنۡعَٰمَ لِتَرۡكَبُواْ مِنۡهَا وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ۝ 78
(79) अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए ये चौपाए बनाए हैं, ताकि इनमें से किसी पर तुम सवार हो और किसी का गोश्त खाओ।
وَلَكُمۡ فِيهَا مَنَٰفِعُ وَلِتَبۡلُغُواْ عَلَيۡهَا حَاجَةٗ فِي صُدُورِكُمۡ وَعَلَيۡهَا وَعَلَى ٱلۡفُلۡكِ تُحۡمَلُونَ ۝ 79
(80) उनमें तुम्हारे लिए और भी बहुत-से लाभ हैं। वे इस काम भी आते हैं कि तुम्हारे दिलों में जहाँ जाने की ज़रूरत हो वहाँ तुम उनपर पहुँच सको। उनपर भी और नौकाओं पर भी तुम सवार किए जाते हो।
وَيُرِيكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ فَأَيَّ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ تُنكِرُونَ ۝ 80
(81) अल्लाह अपनी ये निशानियाँ तुम्हें दिखा रहा है, आख़िर तुम उसकी किन-किन निशानियों का इनकार करोगे।
أَفَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَانُوٓاْ أَكۡثَرَ مِنۡهُمۡ وَأَشَدَّ قُوَّةٗ وَءَاثَارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 81
(82) फिर क्या ये ज़मीन में चले-फिरे नहीं है कि इनको उन लोगों का परिणाम दिखाई देता जो इनसे पहले गुज़र चुके है? वे इनसे तादाद में ज़्यादा थे, इनसे बढ़कर शक्तिशाली थे, और ज़मीन में इनसे ज़्यादा भव्य स्मृति-चिह्न छोड़ गए हैं। जो कुछ कमाई उन्होंने की थी, आख़िर वह उनके किस काम आई?
فَلَمَّا جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَرِحُواْ بِمَا عِندَهُم مِّنَ ٱلۡعِلۡمِ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 82
(83) जब उनके रसूल उनके पास स्पष्ट प्रमाण लेकर आए तो वे उसी ज्ञान में मग्न रहे जो उनके अपने पास था, और फिर उसी चीज़ के फेर में आ गए जिसकी वे हँसी उड़ाते थे।
فَلَمَّا رَأَوۡاْ بَأۡسَنَا قَالُوٓاْ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَحۡدَهُۥ وَكَفَرۡنَا بِمَا كُنَّا بِهِۦ مُشۡرِكِينَ ۝ 83
(84) जब उन्होंने हमारा अज़ाब देख लिया तो पुकार उठे कि हमने मान लिया अल्लाह को जो अकेला है जिसका कोई साझी नहीं और हम इनकार करते हैं उन सब उपास्यों का जिन्हें हम उसका साझी ठहराते थे।
فَلَمۡ يَكُ يَنفَعُهُمۡ إِيمَٰنُهُمۡ لَمَّا رَأَوۡاْ بَأۡسَنَاۖ سُنَّتَ ٱللَّهِ ٱلَّتِي قَدۡ خَلَتۡ فِي عِبَادِهِۦۖ وَخَسِرَ هُنَالِكَ ٱلۡكَٰفِرُونَ ۝ 84
(85) मगर हमारा अज़ाब देख लेने के बाद उनका ईमान उनके लिए कुछ भी लाभदायक न हो सकता था, क्योंकि यही अल्लाह की नियत की हुई प्रणाली है जो हमेशा उसके बन्दों में कार्यान्वित रही है, और उस समय इनकार करनेवाले घाटे में पड़ गए।