50. क़ाफ़
(मक्का में उतरी, आयतें 45 )
परिचय
नाम
आरंभ ही के अक्षर ‘क़ाफ़' से लिया गया है। मतलब यह है कि वह सूरा जिसका आरंभ 'क़ाफ़' अक्षर से होता है।
उतरने का समय
किसी विश्वस्त उल्लेख से यह पता नहीं चलता कि यह ठीक किस काल में उतरी है, मगर विषय-वस्तुओं पर विचार करने से ऐसा महसूस होता है कि इसके उतरने का समय मक्का मुअज़्ज़मा का दूसरा काल-खण्ड है जो नुबूवत (पैग़म्बरी) के तीसरे साल से आरंभ होकर पाँचवें साल तक रहा। इस काल की विशेषताएँ हम सूरा-6 अनआम के प्राक्कथन में बयान कर चुके हैं।
विषय और वार्ता
विश्वस्त उल्लेखों से मालूम होता है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) प्राय: दोनों ईदों की नमाज़ों में इस सूरा को पढ़ा करते थे। कुछ और उल्लेखों में आया है कि फ़ज्र की नमाज़ में भी आप अधिकतर इसको पढ़ा करते थे। इससे यह बात स्पष्ट है कि नबी (सल्ल०) की दृष्टि में यह एक बड़ी महत्त्वपूर्ण सूरा थी। इसलिए आप अधिक से अधिक लोगों तक बार-बार इसकी वार्ताओं को पहुँचाने की व्यवस्था करते थे। इसके महत्त्व का कारण सूरा को ध्यानपूर्वक पढ़ने से आसानी के साथ समझ में आ जाता है। पूरी सूरा का विषय आख़िरत (परलोक) है। अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने जब मक्का मुअज़्ज़मा में अपनी दावत (पैग़ाम) का आरंभ किया तो लोगों को सबसे ज़्यादा आश्चर्य आप (सल्ल०) की जिस बात पर हुआ, वह यह थी कि मरने के बाद इंसान दोबारा उठाए जाएंँगे और उनको अपने कर्मों का हिसाब देना होगा। लोग कहते थे कि यह तो बिलकुल अनहोनी बात है, आख़िर यह कैसे सम्भव है कि जब हमारा कण-कण धरती में बिख़र चुका हो तो इन बिखरे हुए अंशों को हज़ारों साल बीत जाने के बाद फिर से इकट्ठा करके हमारा यह शरीर नए सिरे से बना दिया जाए और हम ज़िन्दा होकर उठ खड़े हों। इसके उत्तर में अल्लाह की ओर से यह अभिभाषण अवतरित हुआ। इसमें अति संक्षेप में, छोटे-छोटे वाक्यों में एक ओर आख़िरत की संभावना और उसके घटित होने की दलीलें दी गई हैं और दूसरी ओर लोगों को सचेत किया गया है कि तुम भले ही आश्चर्य करो या बुद्धि से परे समझो या झुठलाओ, बहरहाल इससे हक़ीक़त नहीं बदल सकती।
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بَلۡ عَجِبُوٓاْ أَن جَآءَهُم مُّنذِرٞ مِّنۡهُمۡ فَقَالَ ٱلۡكَٰفِرُونَ هَٰذَا شَيۡءٌ عَجِيبٌ 1
(2) बल्कि इन लोगों को आश्चर्य इस बात पर हुआ कि एक सावधान करनेवाला ख़ुद इन्हीं में से इनके पास आ गया।1 फिर इनकार करनेवाले कहने लगे, “यह तो आश्चर्यजनक बात है,
1. मतलब यह है कि मक्कावालों ने मुहम्मद (सल्ल०) की रिसालत (पैग़म्बरी) को मानने से किसी उचित आधार पर इनकार नहीं किया है, बल्कि इस सर्वथा अनुचित आधार पर इनकार किया है कि उनकी अपनी ही जिंस के एक इनसान, और उनकी अपनी ही क़ौम के एक व्यक्ति का अल्लाह की ओर से सावधान करनेवाला बनकर आ जाना उनकी दृष्टि में बड़ी आश्चर्य करने योग्य बात है।
أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗاۖ ذَٰلِكَ رَجۡعُۢ بَعِيدٞ 2
(3) क्या जब हम मर जाएँगे और मिट्टी हो जाएँगे (तो दोबारा उठाए जाएँगे)? यह वापसी तो बुद्धि से परे दूर की बात है।2
2. यह उन लोगों का दूसरा आश्चर्य था। पहला आश्चर्य इस बात पर था कि एक इनसान रसूल (पैग़म्बर) बनकर आया। और इसपर और भी आश्चर्य उन्हें इस बात पर हुआ कि सारे इनसान मरने के बाद नए सिरे से जीवित किए जाएँगे, और उन सबको इकट्ठा करके अल्लाह की अदालत में पेश किया जाएगा।
لَّقَدۡ كُنتَ فِي غَفۡلَةٖ مِّنۡ هَٰذَا فَكَشَفۡنَا عَنكَ غِطَآءَكَ فَبَصَرُكَ ٱلۡيَوۡمَ حَدِيدٞ 21
(22) इस चीज़़ की ओर से तू ग़फ़लत में था, हमने वह परदा हटा दिया जो तेरे आगे पड़ा हुआ था और आज तेरी निगाह बड़ी तेज़ है।3
3. अर्थात् अब तो तुझे ख़ूब दिखाई दे रहा है कि वह सब कुछ यहाँ मौजूद है जिसकी ख़बर अल्लाह के नबी तुझे देते थे।
۞قَالَ قَرِينُهُۥ رَبَّنَا مَآ أَطۡغَيۡتُهُۥ وَلَٰكِن كَانَ فِي ضَلَٰلِۭ بَعِيدٖ 26
(27) उसके साथी ने कहा5, “ऐ पालनहार, मैने इसको सरकश नहीं बनाया, बल्कि यह ख़ुद ही परले दरजे की गुमराही में पड़ा हुआ था।”
5. यहाँ साथी से मुराद वह शैतान है जो उस अवज्ञाकारी व्यक्ति के साथ दुनिया में लगा हुआ था।
يَوۡمَ نَقُولُ لِجَهَنَّمَ هَلِ ٱمۡتَلَأۡتِ وَتَقُولُ هَلۡ مِن مَّزِيدٖ 29
(30) वह दिन जबकि हम 'जहन्नम' से पूछेंगे कि क्या तू भर गई? और वह कहेगी, क्या और कुछ है?6
6. इसके दो अर्थ हो सकते हैं, एक यह कि “मेरे अन्दर अब और ज़्यादा आदमियों की गुंजाइश नहीं है।” दूसरा यह कि “और जितने अपराधी भी हैं उन्हें ले आइए।"
هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِكُلِّ أَوَّابٍ حَفِيظٖ 31
(32) कहा जाएगा, “यह है वह चीज़़ जिसका तुमसे वादा किया जाता था, हर उस व्यक्ति के लिए जो बहुत रुजू करनेवाला7 और बड़ी निगरानी करनेवाला था8 ,
7. इससे मुराद ऐसा व्यक्ति है जिसने अवज्ञा और अपनी इच्छाओं एवं वासनाओं की पैरवी का मार्ग त्यागकर आज्ञापालन और अल्लाह को प्रसन्नता प्राप्ति का मार्ग ग्रहण कर लिया हो, जो बहुत ज़्यादा अल्लाह को याद करनेवाला और अपने सभी मामलों में उसकी ओर रुजू करनेवाला हो।
8. इससे मुराद ऐसा व्यक्ति है जो अल्लाह की सीमाओं और उसके आदेशों और उसकी हुर्मतों और उसकी सौंपी हुई अमानतों की रक्षा करे, जो हर समय अपना जाइज़ा लेकर देखता रहे कि कहीं मैं अपनी कथनी या करनी में अपने रब की आज्ञा का उल्लंघन तो नहीं कर रहा हूँ।
وَمِنَ ٱلَّيۡلِ فَسَبِّحۡهُ وَأَدۡبَٰرَ ٱلسُّجُودِ 39
(40) और रात के समय फिर उसकी तसबीह (गुणगान) करो और सजदा गुज़ारियों से निवृत्त होने के बाद भी।9
9. रब की प्रशंसा और उसकी तसबीह (गुणगान) से मुराद यहाँ नमाज़ है। “सूर्योदय से पहले” फ़ज़्र की नमाज़ है। “सूर्यास्त से पहले दो नमाज़ें हैं, एक ज़ुह्र, दूसरी अस्र। “रात के समय” मग़रिब और इशा की नमाजें हैं और तीसरी तहज्जुद भी रात की तसबीह में सम्मिलित है।
وَٱسۡتَمِعۡ يَوۡمَ يُنَادِ ٱلۡمُنَادِ مِن مَّكَانٖ قَرِيبٖ 40
(41) और सुनो, जिस दिन पुकारनेवाला (हर व्यक्ति के) क़रीब ही से पुकारेगा10,
10 अर्थात् जो व्यक्ति जहाँ मरा पड़ा होगा या जहाँ भी दुनिया में उसकी मौत हुई थी, वहीं अल्लाह के मुनादी की आवाज़ उसको पहुँचेगी कि उठो और चलो अपने रब की तरफ़ अपना हिसाब देने के लिए। यह आवाज कुछ ऐसी होगी कि पूरी ज़मीन के चप्पे-पप्पे पर जो व्यक्ति भी ज़िन्दा होकर उठेगा यह महसूस करेगा कि पुकारनेवाले ने कहीं क़रीब ही से उसको पुकारा है।