7. अल-आराफ़
(मक्का में उतरी, आयतें 206)
नाम
इस सूरा का नाम आराफ़ इसलिए रखा गया है कि इसकी मूल अरबी की आयत 46 में एक स्थान पर 'आराफ़' शब्द आया है, मानो इसे 'सूरा आराफ़' कहने का अर्थ यह है कि “वह सूरा जिसमें ‘आराफ़' (बुलन्दियो) का उल्लेख हुआ है।"
अवतरणकाल
इसके विषयों पर विचार करने से स्पष्ट रूप से महसूस होता है कि इसका अवतरणकाल लगभग वहीं है जो छठवीं सूरा अनआम का है। इसलिए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए उस भूमिका पर एक दृष्टि डाल लेना पर्याप्त होगा जो हमने पिछली सूरा अनआम पर लिखी है।
वार्ताएँ
इस सूरा के व्याख्यान का केन्द्रीय विषय रसूल की पैरवी की ओर बुलाना है। समस्त वार्ता का उद्देश्य यह है कि सम्बोधित लोगों को अल्लाह के भेजे हुए पैग़म्बर की पैरवी करने पर तैयार किया जाए, लेकिन इस दावत में डरावे और चेतावनी का रंग अधिक स्पष्ट मिलता है, क्योंकि जिन लोगों को सम्बोधित किया है (अर्थात मक्कावाले) उन्हें समझाते-समझाते एक लंबा समय बीत चुका है और उनका न सुनना हठधर्मी और विरोधात्मक दुराग्रह इस सीमा को पहुँच चुका है कि बहुत जल्द पैग़म्बर को उनसे सम्बोधन बन्द करके दूसरों लोगों को संबोधित करने का आदेश मिलनेवाला है, इसलिए समझाने के अन्दाज़ में रसूल की पैरवी क़ुबूल करने की दावत देने के साथ उनको यह भी बताया जा रहा है कि जो नीति तुमने अपने पैग़म्बर के मुक़ाबले में अपना रखी है, ऐसी ही नीति तुमसे पहले की क़ौमें अपने पैग़म्बरों के मुकाबले में अपनाकर बहुत बुरा परिणाम देख चुकी हैं। फिर चूँकि उनपर बात सप्रमाण पूरी होने के क़रीब आ गई है, इसलिए व्याख्यान के अन्तिम भाग में आह्वान की दिशा उनसे हटकर किताबवालों [अर्थात यहूदी, ईसाई आदि] की ओर फिर गई है और एक जगह तमाम दुनिया के लोगों से सामान्य सम्बोधन भी किया गया है, जो इसकी निशानी है कि अब हिजरत क़रीब है और वह दौर जिसमें नबी का सम्बोधन पूर्णत: अपने निकटवर्ती लोगों से हुआ करता है, समाप्ति पर आ लगा है।
अभिभाषण के बीच में चूँकि सम्बोधन यहूदियों की ओर भी फिर गया है, इसलिए साथ-साथ रसूल की पैरवी की ओर बुलाने के इस पहलू को भी स्पष्ट कर दिया गया है कि पैग़म्बर पर ईमान लाने के बाद उसके साथ मुनाफ़िक़ों (कपटाचारियो) जैसी नीति अपनाने और सुनने और उसपर अमल करने की दृढ़ प्रतिज्ञा करने के बाद उसे तोड़ देने और सत्य-असत्य के अन्तर को जान लेने के बाद असत्यवाद में डूबे रहने का परिणाम क्या है।
सूरा के अन्त में नबी (सल्ल०) और आपके साथियों (सहाबा) को प्रचार-नीति के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं और मुख्य रूप से उन्हें नसीहत की गई है कि विरोधियों की भड़कानेवाली बातों और उनके जुल्मो-सितम के मुकाबले में सब्र और धैर्य से काम लें और भावनाओं के प्रवाह में आकर कोई ऐसा क़दम न उठाएँ जो मूल उद्देश्य को क्षति पहुँचानेवाला हो।
---------------------
كِتَٰبٌ أُنزِلَ إِلَيۡكَ فَلَا يَكُن فِي صَدۡرِكَ حَرَجٞ مِّنۡهُ لِتُنذِرَ بِهِۦ وَذِكۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِينَ 1
(2) यह एक किताब है जो तुम्हारी ओर उतारी गई है, अत: ऐ नबी, तुम्हारे दिल में इससे कोई झिझक न हो।1 इसके उतारने का उद्देश्य यह है कि तुम इसके द्वारा (इनकार करनेवालों को) डराओ और ईमान लानेवालों को नसीहत हो।
1. अर्थात् बिना किसी झिझक और डर के इसे लोगों तक पहुँचा दो और इसकी कुछ चिन्ता न करो कि विरोधी लोग इसका कैसा स्वागत करेंगे।
وَٱلۡوَزۡنُ يَوۡمَئِذٍ ٱلۡحَقُّۚ فَمَن ثَقُلَتۡ مَوَٰزِينُهُۥ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ 7
(8) और वज़न उस दिन बिलकुल सत्य होगा।2 जिनके पलड़े भारी होंगे वही सफलता प्राप्त करनेवाले होंगे
2. अर्थात् उस दिन अल्लाह की न्याय-तुला में सत्य के सिवा कोई चीज़ वज़नी न होगी और वज़न के सिवा कोई चीज़ सत्य न होगी, जिसके साथ जितना सत्य होगा उतना ही वज़नवाला होगा। और फ़ैसला जो कुछ भी होगा वज़न के अनुसार होगा, किसी दूसरी चीज़़ का तनिक भी विचार न किया जाएगा।
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَٰكُمۡ ثُمَّ صَوَّرۡنَٰكُمۡ ثُمَّ قُلۡنَا لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِأٓدَمَ فَسَجَدُوٓاْ إِلَّآ إِبۡلِيسَ لَمۡ يَكُن مِّنَ ٱلسَّٰجِدِينَ 10
(11) हमने तुम्हारी संरचना का आरंभ किया, फिर तुम्हारा रूप बनाया, फिर फ़रिश्तों से कहा आदम को सजदा करो। इस आदेश पर सबने सजदा किया मगर इबलीस सजदा करनेवालों में शामिल न हुआ।3
3. इसका यह अर्थ नहीं है कि इबलीस फ़रिश्तों में से था। वास्तविकता यह है कि जब ज़मीन का प्रबन्ध करनेवाले फ़रिश्तों को आदम (अलैहि०) के आगे सजदा करने का आदेश दिया गया तो इसका अर्थ यह था कि फ़रिश्तों के अतिरिक्त अन्य प्राणी भी आदम (अलैहि०) के आज्ञाकारी हो जाएँ जो फ़रिश्तों के प्रबन्ध के अन्तर्गत थे। इन प्राणियों में से सिर्फ़ इबलीस ने आगे बढ़कर यह घोषणा की कि वह आदम के आगे नहीं झुकेगा।
قَالَ فَٱهۡبِطۡ مِنۡهَا فَمَا يَكُونُ لَكَ أَن تَتَكَبَّرَ فِيهَا فَٱخۡرُجۡ إِنَّكَ مِنَ ٱلصَّٰغِرِينَ 12
(13) कहा “अच्छा, तू यहाँ से नीचे उतर। तुझे अधिकार नहीं है कि यहाँ बड़ाई का गर्व करे। निकल जा कि वास्तव में तू उन लोगों में से है जो ख़ुद अपना अपमान चाहते हैं।"4
4. मूल अरबी में यहाँ “साग़िरीन” शब्द इस्तेमाल हुआ है। “साग़िर” का अर्थ है 'वह जो अपमान, ज़िल्लत और छोटी हैसियत को ख़ुद अपनाए।' अतः अल्लाह के कहने का अर्थ यह था कि बन्दा और पैदा किया हुआ (मख़लूक़) होने के बावजूद तेरा अपनी बड़ाई के घमण्ड में पड़ने का यह अर्थ है कि तू ख़ुद अपमानित होना चाहता है।
وَيَٰٓـَٔادَمُ ٱسۡكُنۡ أَنتَ وَزَوۡجُكَ ٱلۡجَنَّةَ فَكُلَا مِنۡ حَيۡثُ شِئۡتُمَا وَلَا تَقۡرَبَا هَٰذِهِ ٱلشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ ٱلظَّٰلِمِينَ 18
(19) और ऐ आदम, तू और तेरी पत्नी, दोनों इस जन्नत में रहो, जहाँ जिस चीज़ को तुम्हारा मन चाहे खाओ, मगर इस पेड़ के पास न फटकना वरना ज़ालिमों में से हो जाओगे।"
فَوَسۡوَسَ لَهُمَا ٱلشَّيۡطَٰنُ لِيُبۡدِيَ لَهُمَا مَا وُۥرِيَ عَنۡهُمَا مِن سَوۡءَٰتِهِمَا وَقَالَ مَا نَهَىٰكُمَا رَبُّكُمَا عَنۡ هَٰذِهِ ٱلشَّجَرَةِ إِلَّآ أَن تَكُونَا مَلَكَيۡنِ أَوۡ تَكُونَا مِنَ ٱلۡخَٰلِدِينَ 19
(20) फिर शैतान ने उनको बहकाया ताकि उनकी गुप्त इन्द्रियाँ जो एक दूसरे से छुपाई गई थीं उनके सामने खोल दे। उसने उनसे कहा, “तुम्हारे रब ने तुम्हें जो इस पेड़ से रोका है इसका कारण इसके सिवा कुछ नहीं है कि कहीं तुम फ़रिश्ते न बन जाओ, या तुम्हें हमेशा की ज़िन्दगी प्राप्त न हो जाए।”
فَدَلَّىٰهُمَا بِغُرُورٖۚ فَلَمَّا ذَاقَا ٱلشَّجَرَةَ بَدَتۡ لَهُمَا سَوۡءَٰتُهُمَا وَطَفِقَا يَخۡصِفَانِ عَلَيۡهِمَا مِن وَرَقِ ٱلۡجَنَّةِۖ وَنَادَىٰهُمَا رَبُّهُمَآ أَلَمۡ أَنۡهَكُمَا عَن تِلۡكُمَا ٱلشَّجَرَةِ وَأَقُل لَّكُمَآ إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ لَكُمَا عَدُوّٞ مُّبِينٞ 21
(22) इस तरह धोखा देकर वह उन दोनों को धीरे-धीरे अपने ढब पर ले आया। आख़िरकार जब उन्होंने उस पेड़ का मज़ा चखा तो उनकी गुप्त इन्द्रियाँ एक दूसरे के सामने खुल गईं और वे अपने शरीरों को जन्नत के पत्तों से ढाँकने लगे। तब उनके रब ने उन्हें पुकारा, “क्या मैंने तुम्हें इस पेड़ से न रोका था और न कहा था कि शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है?”
قَالَا رَبَّنَا ظَلَمۡنَآ أَنفُسَنَا وَإِن لَّمۡ تَغۡفِرۡ لَنَا وَتَرۡحَمۡنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ 22
(23) दोनों बोल उठे, “ऐ रब हमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया, अब अगर तूने हमें माफ़ न किया और दया न की तो यक़ीनन हम तबाह हो जाएँगे।”5
5. इससे मालूम हुआ कि इनसान में लज्जा का मनोभाव एक प्राकृतिक मनोभाव है और इसका सर्वप्रथम सूचक वह लज्जा है जो अपने शरीर के विशिष्ट भागों को दूसरों के सामने खोलने में आदमी को स्वभावतः महसूस होती है, इसी लिए शैतान की पहली चाल जो उसने इनसान को इनसानी प्रकृति की सीधी राह से हटाने के लिए चली, यह थी कि उसके इस लज्जा के मनोभाव को आघात पहुँचाए और नग्नता के मार्ग से उसके लिए निर्लज्जता और बुराइयों का दरवाज़ा खोले और उसको वासनात्मक भावना के मामलों में भ्रष्ट कर दे। फिर इससे यह भी ज्ञात हुआ कि इनसान के भीतर उच्च स्थिति पर पहुँचने की एक स्वाभाविक प्यास मौजूद है। इसी लिए शैतान को उसके सामने हितैषी के भेस में आना पड़ा और यह कहना पड़ा कि मैं तुझे ज़्यादा ऊँची स्थिति की ओर ले जाना चाहता हूँ। फिर इससे यह भी मालूम हुआ कि इनसान का वास्तविक गुण जो उसे शैतान की अपेक्षा उत्तम बनाता है, वह यह है कि जब उससे ग़लती हो जाए तो वह लज्जित होकर अल्लाह से माफ़ी माँगे। इसके ख़िलाफ़ शैतान को जिस चीज़़ ने तिरस्कृत किया वह यह थी कि वह ग़लती करके अल्लाह के मुक़ाबले में अकड़ गया और विद्रोह पर उतर आया।
يَٰبَنِيٓ ءَادَمَ قَدۡ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكُمۡ لِبَاسٗا يُوَٰرِي سَوۡءَٰتِكُمۡ وَرِيشٗاۖ وَلِبَاسُ ٱلتَّقۡوَىٰ ذَٰلِكَ خَيۡرٞۚ ذَٰلِكَ مِنۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ لَعَلَّهُمۡ يَذَّكَّرُونَ 25
(26) ऐ आदम की संतान, हमने तुमपर वस्त्र (लिबास) उतारा है कि तुम्हारे शरीर के गुप्त अंगों को ढाँके और तुम्हारे लिए शरीर की रक्षा और सौंदर्य का साधन भी हो, और बेहतरीन वस्त्र परहेज़गारी का वस्त्र है। यह अल्लाह की निशानियों में से एक निशानी है, शायद कि लोग इससे शिक्षा ग्रहण करें।
يَٰبَنِيٓ ءَادَمَ لَا يَفۡتِنَنَّكُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ كَمَآ أَخۡرَجَ أَبَوَيۡكُم مِّنَ ٱلۡجَنَّةِ يَنزِعُ عَنۡهُمَا لِبَاسَهُمَا لِيُرِيَهُمَا سَوۡءَٰتِهِمَآۚ إِنَّهُۥ يَرَىٰكُمۡ هُوَ وَقَبِيلُهُۥ مِنۡ حَيۡثُ لَا تَرَوۡنَهُمۡۗ إِنَّا جَعَلۡنَا ٱلشَّيَٰطِينَ أَوۡلِيَآءَ لِلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ 26
(27) ऐ आदम की संतान, ऐसा न हो कि शैतान तुम्हें फिर उसी तरह प्रलोभन-परीक्षा (फ़ितने) में डाल दे जिस तरह उसने तुम्हारे माँ-बाप को जन्नत से निकलवाया था और उनके वस्त्र उनपर से उतरवा दिए थे ताकि उनके गुप्त अंग एक दूसरे के सामने खोले। वह और उसके साथी तुम्हें ऐसी जगह से देखते हैं जहाँ से तुम उन्हें नहीं देख सकते। इन शैतानों को हमने उन लोगों का सरपरस्त बना दिया है जो ईमान नहीं लाते।
وَإِذَا فَعَلُواْ فَٰحِشَةٗ قَالُواْ وَجَدۡنَا عَلَيۡهَآ ءَابَآءَنَا وَٱللَّهُ أَمَرَنَا بِهَاۗ قُلۡ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَأۡمُرُ بِٱلۡفَحۡشَآءِۖ أَتَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ 27
(28) ये लोग जब कोई शर्मनाक काम करते हैं तो कहते हैं हमने अपने बाप-दादा को इसी तरीक़े पर पाया है और अल्लाह ही ने हमें ऐसा करने का आदेश दिया है।6 इनसे कहो, अल्लाह बेहयाई का आदेश कभी नहीं दिया करता। क्या तुम अल्लाह का नाम लेकर वे बातें कहते हो जिनके विषय में तुम्हें ज्ञान नहीं है कि वे अल्लाह की ओर से हैं?
6. संकेत है अरबवालों के नग्न होकर काबा का तवाफ़ (परिक्रमा) करने की ओर। उनमें ज़्यादातर लोग हज के अवसर पर काबा की परिक्रमा नंगे होकर करते थे और उनकी औरतें इस मामले में उनके मर्दों से भी ज़्यादा निर्लज्ज और बेहया थीं, उनकी निगाह में यह एक धार्मिक कर्म था और नेक काम समझकर किया जाता था।
قُلۡ أَمَرَ رَبِّي بِٱلۡقِسۡطِۖ وَأَقِيمُواْ وُجُوهَكُمۡ عِندَ كُلِّ مَسۡجِدٖ وَٱدۡعُوهُ مُخۡلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَۚ كَمَا بَدَأَكُمۡ تَعُودُونَ 28
(29) ऐ नबी, इनसे कहो, मेरे रब ने तो सत्य और न्याय का आदेश दिया है, और उसका आदेश तो यह है कि हर इबादत में अपना रुख़ ठीक रखो, और उसी को पुकारो अपने धर्म को उसके लिए विशुद्ध करके। जिस तरह उसने तुम्हें अब पैदा किया है उसी तरह तुम फिर पैदा किए जाओगे।
۞يَٰبَنِيٓ ءَادَمَ خُذُواْ زِينَتَكُمۡ عِندَ كُلِّ مَسۡجِدٖ وَكُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ وَلَا تُسۡرِفُوٓاْۚ إِنَّهُۥ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُسۡرِفِينَ 30
(31) ऐ आदम की संतान, हर इबादत के अवसर पर अपनी सज्जा से सुशोभित रहो7 और खाओ पियो और सीमा से आगे न बढ़ो, अल्लाह सीमा से बढ़नेवालों को पसन्द नहीं करता।
7. यहाँ सज्जा से मुराद पूरा लिबास है। अल्लाह की इबादत में खड़े होने के लिए सिर्फ़ इतना ही काफ़ी नहीं है कि आदमी सिर्फ़ अपनी शर्मगाह छिपा ले बल्कि इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि सामर्थ्य के अनुसार वह अपना पूरा वस्त्र पहने जिसमें शर्मगाह भी छिप सके और सज्जा भी हो। आदमी किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति से मिलने के लिए जिस तरह अच्छा लिबास पहनता है उसी तरह अल्लाह की इबादत के लिए उसे अच्छा लिबास पहनना चाहिए।
قُلۡ مَنۡ حَرَّمَ زِينَةَ ٱللَّهِ ٱلَّتِيٓ أَخۡرَجَ لِعِبَادِهِۦ وَٱلطَّيِّبَٰتِ مِنَ ٱلرِّزۡقِۚ قُلۡ هِيَ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا خَالِصَةٗ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ كَذَٰلِكَ نُفَصِّلُ ٱلۡأٓيَٰتِ لِقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ 31
(32) ऐ नबी, इनसे कहो किसने अल्लाह की उस सज्जा को हराम कर दिया जिसे अल्लाह ने अपने बन्दों के लिए निकाला था और किसने अल्लाह की प्रदान की हुई पाक चीज़़ें हराम कर दीं? कहो, ये सारी चीज़़ें दुनिया की ज़िन्दगी में भी ईमान लानेवालों के लिए हैं, और क़ियामत के दिन तो ख़ास तौर से उन्हीं के लिए होंगी। इस तरह हम अपनी बातें साफ-साफ बयान करते हैं उन लोगों के लिए जो ज्ञानवान है।
قُلۡ إِنَّمَا حَرَّمَ رَبِّيَ ٱلۡفَوَٰحِشَ مَا ظَهَرَ مِنۡهَا وَمَا بَطَنَ وَٱلۡإِثۡمَ وَٱلۡبَغۡيَ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّ وَأَن تُشۡرِكُواْ بِٱللَّهِ مَا لَمۡ يُنَزِّلۡ بِهِۦ سُلۡطَٰنٗا وَأَن تَقُولُواْ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ 32
(33) ऐ नबी, इनसे कहो, मेरे रब ने जो चीज़़ें हराम ठहराई हैं वे तो ये हैं बेशर्मी के काम-चाहे खुले हों या छिपे—और गुनाह8 और सत्य के विरुद्ध ज़्यादती9 और यह कि अल्लाह के साथ तुम किसी ऐसे को साझीदार ठहराओ जिसके लिए उसने कोई प्रमाण नहीं उतारा और यह कि अल्लाह के नाम पर कोई ऐसी बात कहो जिसके विषय में तुम्हें ज्ञान न हो (कि वास्तव में उसी ने कही है)।
8. मूल ग्रन्थ में 'इसमुन' शब्द इस्तेमाल हुआ है जिसका मूल अर्थ है कोताही। और इससे मुराद है आदमी का अपने रब के आज्ञापालन में कोताही करना।
9. अर्थात् अपनी सीमा से आगे बढ़कर ऐसी सीमाओं में क़दम रखना जिनके अन्दर प्रवेश करने का आदमी को अधिकार न हो।
يَٰبَنِيٓ ءَادَمَ إِمَّا يَأۡتِيَنَّكُمۡ رُسُلٞ مِّنكُمۡ يَقُصُّونَ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِي فَمَنِ ٱتَّقَىٰ وَأَصۡلَحَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ 34
(35) (और यह बात अल्लाह ने सृष्टि के आरंभ ही में स्पष्ट रूप से कह दी थी कि ऐ आदम की संतान, याद रखो, अगर तुम्हारे पास ख़ुद तुम ही में से ऐसे रसूल आएँ जो तुम्हें मेरी आयतें सुना रहे हों तो जो कोई नाफ़रमानी से बचेगा और अपने रवैये (चाल-चलन) का सुधार कर लेगा उसके लिए किसी डर और रंज का अवसर नहीं है,
فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَوۡ كَذَّبَ بِـَٔايَٰتِهِۦٓۚ أُوْلَٰٓئِكَ يَنَالُهُمۡ نَصِيبُهُم مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُنَا يَتَوَفَّوۡنَهُمۡ قَالُوٓاْ أَيۡنَ مَا كُنتُمۡ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِۖ قَالُواْ ضَلُّواْ عَنَّا وَشَهِدُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ أَنَّهُمۡ كَانُواْ كَٰفِرِينَ 36
(37) आख़िर उससे बड़ा ज़ालिम और कौन होगा जो बिलकुल झूठी बातें गढ़कर अल्लाह पर मढ़े या अल्लाह की सच्ची आयतों को झुठलाए? ऐसे लोग अपने भाग्य के लिखे के अनुसार अपना हिस्सा पाते रहेंगे10, यहाँ तक कि वह घड़ी आ जाएगी जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते उनके प्राण ग्रस्त लेने के लिए पहुँचेंगे। उस समय वे उनसे पूछेंगे कि “बताओ, अब कहाँ है तुम्हारे वे पूज्य जिनको तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते थे?” कहेंगे कि “सब हमसे गुम हो गए।” और वे ख़ुद अपने विरुद्ध गवाही देंगे कि हम वास्तव में सत्य का इनकार करनेवाले थे।
10. अर्थात् दुनिया में जितने दिन उनकी मुहलत के निश्चित हैं, यहाँ रहेंगे और जिस तरह की बज़ाहिर अच्छी या बुरी ज़िन्दगी गुज़ारना उनके भाग्य में है गुज़ार लेंगे।
قَالَ ٱدۡخُلُواْ فِيٓ أُمَمٖ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِكُم مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ فِي ٱلنَّارِۖ كُلَّمَا دَخَلَتۡ أُمَّةٞ لَّعَنَتۡ أُخۡتَهَاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا ٱدَّارَكُواْ فِيهَا جَمِيعٗا قَالَتۡ أُخۡرَىٰهُمۡ لِأُولَىٰهُمۡ رَبَّنَا هَٰٓؤُلَآءِ أَضَلُّونَا فَـَٔاتِهِمۡ عَذَابٗا ضِعۡفٗا مِّنَ ٱلنَّارِۖ قَالَ لِكُلّٖ ضِعۡفٞ وَلَٰكِن لَّا تَعۡلَمُونَ 37
(38) अल्लाह कहेगा, जाओ तुम भी उसी जहन्नम में चले जाओ जिसमें तुमसे पहले गुज़रे हुए जिन्न और इनसान के गिरोह जा चुके हैं। हर गिरोह जब जहन्नम में प्रवेश करेगा तो वह अपने से पहले के गिरोह को धिक्कारता हुआ प्रवेश करेगा, यहाँ तक कि जब सब वहाँ जमा हो जाएँगे तो हर पीछेवाला गिरोह पहले गिरोह के विषय में कहेगा कि ऐ रब, ये लोग थे जिन्होंने हमको पथभ्रष्ट किया, अतः इन्हें आग का दोहरा अज़ाब दे। जवाब में कहा जाएगा, हर एक के लिए दोहरा ही अज़ाब है मगर तुम जानते नहीं हो11।
11. अर्थात् एक अज़ाब ख़ुद गुमराही अपनाने का और दूसरा अज़ाब दूसरों को गुमराह करने का। एक सज़ा अपने अपराधों की और दूसरी सज़ा दूसरों के लिए अपराधयुक्त व्यवसाय की मीरास छोड़ आने की।
وَنَزَعۡنَا مَا فِي صُدُورِهِم مِّنۡ غِلّٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهِمُ ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي هَدَىٰنَا لِهَٰذَا وَمَا كُنَّا لِنَهۡتَدِيَ لَوۡلَآ أَنۡ هَدَىٰنَا ٱللَّهُۖ لَقَدۡ جَآءَتۡ رُسُلُ رَبِّنَا بِٱلۡحَقِّۖ وَنُودُوٓاْ أَن تِلۡكُمُ ٱلۡجَنَّةُ أُورِثۡتُمُوهَا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ 42
(43) उनके हृदयों में एक दूसरे के ख़िलाफ़ जो मलिनता होगी उसे हम निकाल देंगे। उनके नीचे नहरें बहती होंगी और वे कहेंगे कि 'तारीफ़ अल्लाह ही के लिए है जिसने हमें यह मार्ग दिखाया, हम ख़ुद मार्ग न पा सकते थे अगर अल्लाह हमें मार्ग न दिखाता। हमारे रब के भेजे हुए रसूल वास्तव में सत्य ही लेकर आए थे।” उस समय आवाज़ आएगी कि “यह जन्नत, जिसके तुम वारिस बनाए गए हो, तुम्हें उन कर्मों के बदले में मिली है जो तुम करते रहे थे।"
وَنَادَىٰٓ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَنَّةِ أَصۡحَٰبَ ٱلنَّارِ أَن قَدۡ وَجَدۡنَا مَا وَعَدَنَا رَبُّنَا حَقّٗا فَهَلۡ وَجَدتُّم مَّا وَعَدَ رَبُّكُمۡ حَقّٗاۖ قَالُواْ نَعَمۡۚ فَأَذَّنَ مُؤَذِّنُۢ بَيۡنَهُمۡ أَن لَّعۡنَةُ ٱللَّهِ عَلَى ٱلظَّٰلِمِينَ 43
(44) फिर ये जन्नत के लोग दोज़ख़वालों से पुकारकर कहेंगे, “हमने उन सारे वादों को ठीक पाया जो हमारे रब ने हमसे किए थे। क्या तुमने भी उन वादों को ठीक पाया जो तुम्हारे रब ने किए थे?” वे जवाब देंगे, “हाँ” तब एक पुकारनेवाला उनके बीच पुकारेगा कि “अल्लाह की फिटकार उन ज़ालिमों पर
وَبَيۡنَهُمَا حِجَابٞۚ وَعَلَى ٱلۡأَعۡرَافِ رِجَالٞ يَعۡرِفُونَ كُلَّۢا بِسِيمَىٰهُمۡۚ وَنَادَوۡاْ أَصۡحَٰبَ ٱلۡجَنَّةِ أَن سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمۡۚ لَمۡ يَدۡخُلُوهَا وَهُمۡ يَطۡمَعُونَ 45
(46) उन दोनों गिरोहों के बीच एक ओट हायल होगी, जिसकी ऊँचाइयों पर कुछ और लोग होंगे। ये हर एक को उसके लक्षणों से पहचानेंगे और जन्नतवालों से पुकारकर कहेंगे कि “सलामती हो तुमपर।” ये लोग जन्नत में दाख़िल तो नहीं हुए मगर उसके उम्मीदवार होंगे12
12. अर्थात् ये ऊँचाइयोंवाले वे लोग होंगे जिनकी ज़िन्दगी के न तो सकारात्मक पहलू ही इतना प्रबल होगा कि जन्नत में दाख़िल हो सकें और न नकारात्मक पहलू ही इतना ख़राब होगा कि दोज़ख़ में झोंक दिए जाएँ। इसलिए वे जन्नत और दोज़ख़ के बीच एक सीमा पर रहेंगे और अल्लाह की कृपा से यह आस लगाए हुए होंगे कि उनके हिस्से में जन्नत आ जाए।
هَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّا تَأۡوِيلَهُۥۚ يَوۡمَ يَأۡتِي تَأۡوِيلُهُۥ يَقُولُ ٱلَّذِينَ نَسُوهُ مِن قَبۡلُ قَدۡ جَآءَتۡ رُسُلُ رَبِّنَا بِٱلۡحَقِّ فَهَل لَّنَا مِن شُفَعَآءَ فَيَشۡفَعُواْ لَنَآ أَوۡ نُرَدُّ فَنَعۡمَلَ غَيۡرَ ٱلَّذِي كُنَّا نَعۡمَلُۚ قَدۡ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ 52
(53) अब क्या ये लोग इसके सिवा किसी और बात के इन्तिज़ार में है कि वह अंजाम सामने आ जाए जिसकी यह किताब सूचना दे रही है? जिस दिन वह अंजाम सामने आ गया तो वहीं लोग जिन्होंने पहले उसकी उपेक्षा की थी कहेंगे कि “वास्तव में हमारे रब के रसूल सत्य लेकर आए थे, फिर क्या अब हमें कुछ सिफ़ारिशी मिलेंगे जो हमारे हक़ में सिफ़ारिश करें? या हमें दोबारा लौटा ही दिया जाए ताकि जो कुछ हम पहले करते थे उसकी जगह अब दूसरे तरीक़े पर काम करके दिखाएँ” — उन्होंने अपने आपको घाटे में डाल दिया और वे सारे झूठ जो उन्होंने गढ़ रखे थे आज उनसे गुम हो गए।
إِنَّ رَبَّكُمُ ٱللَّهُ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٖ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ يُغۡشِي ٱلَّيۡلَ ٱلنَّهَارَ يَطۡلُبُهُۥ حَثِيثٗا وَٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَ وَٱلنُّجُومَ مُسَخَّرَٰتِۭ بِأَمۡرِهِۦٓۗ أَلَا لَهُ ٱلۡخَلۡقُ وَٱلۡأَمۡرُۗ تَبَارَكَ ٱللَّهُ رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ 53
(54) वास्तव में तुम्हारा रब अल्लाह ही है जिसने आसमानों और ज़मीन को छः दिनों में पैदा किया13 फिर अपने राजसिंहासन पर विराजमान हुआ14 जो रात को दिन पर ढाँक देता है और फिर दिन रात के पीछे दौड़ा चला आता है। जिसने सूरज और चाँद और तारे पैदा किए, सब उसके आदेश के अधीन हैं। सावधान रहो! उसी की सृष्टि है और उसी का आदेश है।15 बड़ा बरकतवाला है16 अल्लाह, सारे जहानों का मालिक और पालनहार।
13. यहाँ दिन शब्द या तो इसी चौबीस घण्टे के दिन-रात का समानार्थी है जिसे दुनिया के लोग दिन कहते हैं, या फिर यह शब्द दौर अथवा युग के अर्थ में इस्तेमाल हुआ है।
14. अल्लाह के राजसिंहासन पर विराजमान होने की विस्तृत कैफ़ियत को समझना हमारे लिए संभव नहीं है। यह उपलक्षित (मुतशाबिहात) में से है जिनके अर्थ निश्चित नहीं किए जा सकते।
15. अर्थात् अल्लाह ही ने इस सारे जगत् को बनाया है और वही इसका शासक है, अपनी सृष्टि को उसने दूसरों के हवाले नहीं कर दिया है, न सृष्टि में किसी को यह अधिकार दिया है कि स्वतन्त्र होकर जो कुछ चाहे करे।
16. अल्लाह के निहायत बरकतवाला होने का अर्थ यह है कि उसकी विशेषताओं और भलाइयों की कोई सीमा नहीं है, बेहद और बेहिसाब भलाई उसकी ज़ात से फैल रही है।
وَلَا تُفۡسِدُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ بَعۡدَ إِصۡلَٰحِهَا وَٱدۡعُوهُ خَوۡفٗا وَطَمَعًاۚ إِنَّ رَحۡمَتَ ٱللَّهِ قَرِيبٞ مِّنَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ 55
(56) ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो जबकि उसका सुधार हो चुका है17 और अल्लाह ही को पुकारो खौफ़ के साथ और लालच के साथ, यक़ीनन अल्लाह की दयालुता अच्छे चरित्रवाले लोगों के क़रीब है।
17. अर्थात् सैकड़ों और हज़ारों वर्ष में अल्लाह के पैग़म्बरों और इनसानी समुदाय के सुधारकों की कोशिशों से इनसानी नैतिकता और संस्कृति में जो सुधार हुए हैं उनमें अपने ग़लत व्यवहारों से बिगाड़ पैदा न करो।
أَوَعَجِبۡتُمۡ أَن جَآءَكُمۡ ذِكۡرٞ مِّن رَّبِّكُمۡ عَلَىٰ رَجُلٖ مِّنكُمۡ لِيُنذِرَكُمۡۚ وَٱذۡكُرُوٓاْ إِذۡ جَعَلَكُمۡ خُلَفَآءَ مِنۢ بَعۡدِ قَوۡمِ نُوحٖ وَزَادَكُمۡ فِي ٱلۡخَلۡقِ بَصۜۡطَةٗۖ فَٱذۡكُرُوٓاْ ءَالَآءَ ٱللَّهِ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ 56
(69) क्या तुम्हें इस बात पर आश्चर्य हुआ कि तुम्हारे पास ख़ुद तुम्हारी अपनी क़ौम के एक आदमी के द्वारा तुम्हारे रब की याददिहानी आई ताकि वह तुम्हें सावधान करे? भूल न जाओ कि तुम्हारे रब ने नूह की क़ौम के बाद तुमको उसका उत्तराधिकारी बनाया और तुम्हें ख़ूब हृष्ट-पुष्ट किया, अतः अल्लाह के चमत्कारों को याद रखो,20 उम्मीद है कि सफलता प्राप्त करोगे।”
20. मूल ग्रन्थ में 'आलाअ' शब्द इस्तेमाल हुआ है जिसका अर्थ 'नेमतें' भी हैं और 'चमत्कारों की क्षमता' भी और 'सराहनीय गुण' भी।
قَالَ قَدۡ وَقَعَ عَلَيۡكُم مِّن رَّبِّكُمۡ رِجۡسٞ وَغَضَبٌۖ أَتُجَٰدِلُونَنِي فِيٓ أَسۡمَآءٖ سَمَّيۡتُمُوهَآ أَنتُمۡ وَءَابَآؤُكُم مَّا نَزَّلَ ٱللَّهُ بِهَا مِن سُلۡطَٰنٖۚ فَٱنتَظِرُوٓاْ إِنِّي مَعَكُم مِّنَ ٱلۡمُنتَظِرِينَ 58
(71) उसने कहा, “तुम्हारे रब की फिटकार तुमपर पड़ गई और उसका ग़ज़ब टूट पड़ा। क्या तुम मुझसे उन नामों पर झगड़ते हो जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं21, जिनके लिए अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा है? अच्छा तो तुम भी इन्तिज़ार करो और मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिज़ार करता हूँ।”
21. अर्थात् तुम किसी को वर्षा का और किसी को हवा का और किसी को धन सम्पत्ति का और किसी को बीमारों का रब कहते हो, हालाँकि इनमें से कोई भी वास्तव में किसी चीज़़ का रब नहीं है, ये सब सिर्फ़ नाम हैं जो तुमने रख लिए हैं, जो इनके लिए झगड़ता है वह वास्तव में मात्र कुछ नामों के लिए झगड़ता है न कि किसी सत्य के लिए।
وَإِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمۡ صَٰلِحٗاۚ قَالَ يَٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرُهُۥۖ قَدۡ جَآءَتۡكُم بَيِّنَةٞ مِّن رَّبِّكُمۡۖ هَٰذِهِۦ نَاقَةُ ٱللَّهِ لَكُمۡ ءَايَةٗۖ فَذَرُوهَا تَأۡكُلۡ فِيٓ أَرۡضِ ٱللَّهِۖ وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوٓءٖ فَيَأۡخُذَكُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ 60
(73) और समूद की ओर हमने उनके भाई सालेह को भेजा22 उसने कहा, “ऐ क़ौम के भाइयो अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है। तुम्हारे पास तुम्हारे रब का खुला प्रमाण आ गया है। यह अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी के रूप में है23, अतः इसे छोड़ दो कि अल्लाह की ज़मीन में चरती फिरे। इसको किसी बुरे इरादे से हाथ न लगाना, नहीं तो एक दर्दनाक अज़ाब तुम्हें आ लेगा।
22. समूद क़ौम का निवास क्षेत्र उत्तरी पश्चिमी अरब का वह इलाक़ा था जो आज भी अल-हिज्र के नाम से याद किया जाता है। वर्तमान समय में मदीना और तबूक के बीच एक स्थान है जिसे 'मदायने-सालेह' कहते हैं। यही समूद की राजधानी थी और प्राचीन काल में हिज्र कहलाता था। अब तक वहाँ समूद के कुछ भवन मौजूद हैं जो उन्होंने पहाड़ खोदकर बनाए थे।
قَالَ ٱلۡمَلَأُ ٱلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُواْ مِن قَوۡمِهِۦ لِلَّذِينَ ٱسۡتُضۡعِفُواْ لِمَنۡ ءَامَنَ مِنۡهُمۡ أَتَعۡلَمُونَ أَنَّ صَٰلِحٗا مُّرۡسَلٞ مِّن رَّبِّهِۦۚ قَالُوٓاْ إِنَّا بِمَآ أُرۡسِلَ بِهِۦ مُؤۡمِنُونَ 62
(75) उसकी क़ौम के सरदारों ने जो बड़े बने हुए थे, कमज़ोर तबक़े के उन लोगों से जो ईमान ले आए थे, कहा: “क्या तुम वास्तव में यह जानते हो कि सालेह अपने रब का पैग़म्बर है?” उन्होंने जवाब दिया : “बेशक, जिस सन्देश के साथ वह भेजा गया है उसे हम मानते हैं।”
فَعَقَرُواْ ٱلنَّاقَةَ وَعَتَوۡاْ عَنۡ أَمۡرِ رَبِّهِمۡ وَقَالُواْ يَٰصَٰلِحُ ٱئۡتِنَا بِمَا تَعِدُنَآ إِن كُنتَ مِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ 64
(77) फिर उन्होंने उस ऊँटनी को मार डाला24 और पूरी ढिठाई के साथ अपने रब के आदेश का उल्लंघन किया, और सालेह से कह दिया कि “ले आ वह अज़ाब जिसकी तू हमें धमकी देता है अगर तू वास्तव में पैग़म्बरों में से है।”
24. यद्यपि मारा एक व्यक्ति ने था जैसा कि सूरा-54 (क़मर) और सूरा-91 (शम्स) में बयान हुआ है, लेकिन चूँकि पूरी क़ौम उस अपराधी की तरफ़दार और सहायक थी और वह वास्तव में इस अपराध में क़ौम की इच्छा का उपकरण था इसलिए इल्ज़ाम पूरी क़ौम पर लगाया गया है।
وَلُوطًا إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦٓ أَتَأۡتُونَ ٱلۡفَٰحِشَةَ مَا سَبَقَكُم بِهَا مِنۡ أَحَدٖ مِّنَ ٱلۡعَٰلَمِينَ 67
(80) और लूत को हमने पैग़म्बर बनाकर भेजा, फिर याद करो जब उसने अपनी क़ौम से कहा25, “क्या तुम ऐसे निर्लज्ज हो गए हो कि वह अश्लील काम करते हो जो तुमसे पहले दुनिया में किसी ने नहीं किया?
25. हज़रत लूत (अलैहि०) हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के भतीजे थे, और यह क़ौम, जिसके मार्गदर्शन के लिए वे भेजे गए थे, उस इलाक़े में रहती थी जहाँ अब मृत सागर स्थित है।
وَأَمۡطَرۡنَا عَلَيۡهِم مَّطَرٗاۖ فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُجۡرِمِينَ 71
(84) और उस क़ौम पर बरसाई एक बारिश26, फिर देखो उन अपराधियों का क्या अंजाम हुआ।
26. वर्षा से मुराद यहाँ पानी की वर्षा नहीं, बल्कि पत्थरों की वर्षा है जैसा कि दूसरे स्थानों पर क़ुरआन मजीद में बयान हुआ है।
وَإِلَىٰ مَدۡيَنَ أَخَاهُمۡ شُعَيۡبٗاۚ قَالَ يَٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرُهُۥۖ قَدۡ جَآءَتۡكُم بَيِّنَةٞ مِّن رَّبِّكُمۡۖ فَأَوۡفُواْ ٱلۡكَيۡلَ وَٱلۡمِيزَانَ وَلَا تَبۡخَسُواْ ٱلنَّاسَ أَشۡيَآءَهُمۡ وَلَا تُفۡسِدُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ بَعۡدَ إِصۡلَٰحِهَاۚ ذَٰلِكُمۡ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ 72
(85) और मदयनवालों27 को ओर हमने उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, “ऐ क़ौम के भाइयो, अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है। तुम्हारे पास तुम्हारे रब का स्पष्ट मार्गदर्शन आ गया है, अतः नाप और तौल पूरे करो, लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो, और ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो जबकि उसका सुधार हो चुका है, इसी में तुम्हारी भलाई है। अगर तुम वास्तव में ईमानवाले (आस्थावान) हो।28
27. मदयन का असल इलाक़ा हिजाज़ के उत्तर-पश्चिम और फ़िलस्तीन के दक्षिण में लाल सागर और अक़बा खाड़ी के किनारे पर स्थित था, मगर प्रायद्वीप सीना के पूर्वी तट पर भी उसका कुछ सिलसिला फैला हुआ था। यह बड़े पैमाने पर व्यापार करनेवाली एक क़ौम थी। प्राचीन काल में जो व्यापारिक राजपथ लाल सागर के किनारे यमन से मक्का और यंबूअ होते हुए सीरिया तक जाता था, और एक दूसरा व्यापारिक राजमार्ग जो इराक़ से मिस्र की ओर जाता था उसके ठीक चौराहे पर उस क़ौम की बस्तियाँ स्थित थीं।
28. इस वाक्य से साफ़ ज़ाहिर होता है कि ये लोग ख़ुद ईमान के दावेदार थे।
وَإِن كَانَ طَآئِفَةٞ مِّنكُمۡ ءَامَنُواْ بِٱلَّذِيٓ أُرۡسِلۡتُ بِهِۦ وَطَآئِفَةٞ لَّمۡ يُؤۡمِنُواْ فَٱصۡبِرُواْ حَتَّىٰ يَحۡكُمَ ٱللَّهُ بَيۡنَنَاۚ وَهُوَ خَيۡرُ ٱلۡحَٰكِمِينَ 74
(87) अगर तुममें से एक गिरोह उस शिक्षा पर जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ, ईमान लाता है और दूसरा ईमान नहीं लाता, तो सब के साथ देखते रहो यहाँ तक कि अल्लाह हमारे बीच फ़ैसला कर दे, और वही सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है।"
۞قَالَ ٱلۡمَلَأُ ٱلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُواْ مِن قَوۡمِهِۦ لَنُخۡرِجَنَّكَ يَٰشُعَيۡبُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَكَ مِن قَرۡيَتِنَآ أَوۡ لَتَعُودُنَّ فِي مِلَّتِنَاۚ قَالَ أَوَلَوۡ كُنَّا كَٰرِهِينَ 75
(88) उसकी क़ौम के सरदारों ने, जो अपनी बड़ाई के घमण्ड में पड़े थे, उससे कहा कि “ऐ शुऐब हम तुझे और उन लोगों को जो तेरे साथ ईमान लाए हैं अपनी बस्ती से निकाल देंगे वरना तुम लोगों को हमारे पन्थ में वापस आना होगा।” शुऐब ने जवाब दिया, “क्या ज़बरदस्ती हमें फेरा जाएगा, चाहे हम राज़ी न हों?
قَدِ ٱفۡتَرَيۡنَا عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا إِنۡ عُدۡنَا فِي مِلَّتِكُم بَعۡدَ إِذۡ نَجَّىٰنَا ٱللَّهُ مِنۡهَاۚ وَمَا يَكُونُ لَنَآ أَن نَّعُودَ فِيهَآ إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُ رَبُّنَاۚ وَسِعَ رَبُّنَا كُلَّ شَيۡءٍ عِلۡمًاۚ عَلَى ٱللَّهِ تَوَكَّلۡنَاۚ رَبَّنَا ٱفۡتَحۡ بَيۡنَنَا وَبَيۡنَ قَوۡمِنَا بِٱلۡحَقِّ وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلۡفَٰتِحِينَ 76
(89) हम अल्लाह पर झूठ गढ़नेवाले होंगे अगर तुम्हारे पन्थ में पलट आएँ जबकि अल्लाह हमें उससे छुटकारा दे चुका है। हमारे लिए तो उसकी ओर पलटना अब किसी तरह संभव नहीं, यह और बात है कि अल्लाह हमारा रब ही ऐसा चाहे। हमारे रब का ज्ञान हर चीज़ पर हावी है, उसी पर हमने भरोसा कर लिया है। ऐ रब, हमारे और हमारी क़ौमवालों के बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर दे और तू सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है।”
وَقَالَ ٱلۡمَلَأُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن قَوۡمِهِۦ لَئِنِ ٱتَّبَعۡتُمۡ شُعَيۡبًا إِنَّكُمۡ إِذٗا لَّخَٰسِرُونَ 77
(90) उसकी क़ौम के सरदारों ने, जो उसकी बात मानने से इनकार कर चुके थे, आपस में कहा, “अगर तुम शुऐब के अनुयायी हुए तो बरबाद हो जाओगे।29
29. यह बात सिर्फ़ शुऐब की क़ौम के सरदारों ही तक सीमित नहीं है। हर ज़माने में बिगड़े हुए लोगों ने सत्य, सत्यवादिता और ईमानदारी की नीति अपनाने में ऐसे ही ख़तरों को महसूस किया है। हर ज़माने के फ़सादियों का यही विचार रहा है कि व्यापार और राजनीति और दूसरे सांसारिक मामले झूठ और बेईमानी और अनैतिकता के बिना नहीं चल सकते, ईमानदारी अपनाने का अर्थ अपनी दुनिया बरबाद कर लेना है।
ثُمَّ بَدَّلۡنَا مَكَانَ ٱلسَّيِّئَةِ ٱلۡحَسَنَةَ حَتَّىٰ عَفَواْ وَّقَالُواْ قَدۡ مَسَّ ءَابَآءَنَا ٱلضَّرَّآءُ وَٱلسَّرَّآءُ فَأَخَذۡنَٰهُم بَغۡتَةٗ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ 82
(95) फिर हमने उनकी बदहाली को ख़ुशहाली से बदल दिया यहाँ तक कि वे ख़ूब फले-फूले और कहने लगे कि “हमारे पूर्वजों पर भी अच्छे और बुरे दिन आते ही रहे हैं। आख़िरकार हमने उन्हें अचानक पकड़ लिया और उन्हें ख़बर तक न हुई।30
30. एक-एक नबी और एक-एक क़ौम का मामला अलग-अलग बयान करने के बाद अब उस व्यापक विधान का वर्णन किया जा रहा है जो हर ज़माने में अल्लाह ने नबियों के भेजे जाने के अवसर पर अपनाया है, और वह यह है कि जब किसी क़ौम में कोई नबी भेजा गया तो पहले उसको मुसीबतों और संकटों में डाला गया, ताकि उसके कान शिक्षा ग्रहण के लिए खुल जाएँ और वह अपने ईश्वर के आगे विनम्रतापूर्वक झुक जाने पर तैयार हो जाए। फिर जब इस अनुकूल वातावरण में भी उसका दिल सत्य के स्वीकार करने की ओर न झुका तो उसे ख़ुशहाली की आजमाइश में डाल दिया गया और यहाँ से उसकी बरबादी की भूमिका शुरू हो गई। पैग़म्बर की बात न सुनने के बावजूद जब उसपर नेमतों की वर्षा हुई तो उसने समझा कि ऊपर कोई ईश्वर नहीं है जो पकड़नेवाला हो और 'हम जैसा कोई नहीं' की हवा उसके दिमाग़ में भर गई। इस चीज़़ ने आख़िरकार उसे ईश्वरीय अज़ाब में डाल दिया।
أَفَأَمِنُواْ مَكۡرَ ٱللَّهِۚ فَلَا يَأۡمَنُ مَكۡرَ ٱللَّهِ إِلَّا ٱلۡقَوۡمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ 86
(99) क्या ये लोग अल्लाह की चाल से निर्भय हैं? हालाँकि अल्लाह की चाल31 से वही क़ौम निर्भय होती है। जो तबाह होनेवाली हो।
31. यहाँ 'मक्र' शब्द इस्तेमाल हुआ है जिसका अरबी भाषा में अर्थ है गुप्त उपाय करना, अर्थात् किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी चाल चलना कि जब तक उसपर निर्णयकारी चोट न पड़ जाए उस समय तक उसे ख़बर न हो कि उसकी शामत आने वाली है, बल्कि वाह्य स्थिति को देखते हुए वह यही समझता रहे कि सब अच्छा है।
أَوَلَمۡ يَهۡدِ لِلَّذِينَ يَرِثُونَ ٱلۡأَرۡضَ مِنۢ بَعۡدِ أَهۡلِهَآ أَن لَّوۡ نَشَآءُ أَصَبۡنَٰهُم بِذُنُوبِهِمۡۚ وَنَطۡبَعُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ فَهُمۡ لَا يَسۡمَعُونَ 87
(100) और क्या उन लोगों को जो पिछले ज़मीन में बसनेवालों के बाद ज़मीन के वारिस होते हूँ, इस तथ्य ने कुछ शिक्षा न दी कि अगर हम चाहें तो उनके गुनाहों पर उन्हें पकड़ सकते है (मगर वे शिक्षाप्रद सच्चाइयों की उपेक्षा करते हैं) और हम उनके दिलों पर ठप्पा लगा देते हैं, फिर वे कुछ नहीं सुनते।
تِلۡكَ ٱلۡقُرَىٰ نَقُصُّ عَلَيۡكَ مِنۡ أَنۢبَآئِهَاۚ وَلَقَدۡ جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَمَا كَانُواْ لِيُؤۡمِنُواْ بِمَا كَذَّبُواْ مِن قَبۡلُۚ كَذَٰلِكَ يَطۡبَعُ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِ ٱلۡكَٰفِرِينَ 88
(101) ये क़ौमें जिनकी कहानियाँ हम तुम्हें सुना रहे हैं (तुम्हारे सामने मिसाल के तौर पर मौजूद हैं) उनके रसूल उनके पास खुली-खुली निशानियाँ लेकर आए, मगर जिस चीज़ को वे एक बार झुठला चुके थे फिर उसे वे माननेवाले न थे। देखो इस तरह हम सत्य के इनकार करनेवालों के दिलों पर ठप्पा लगा देते हैं।
ثُمَّ بَعَثۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِم مُّوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَآ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِيْهِۦ فَظَلَمُواْ بِهَاۖ فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُفۡسِدِينَ 90
(103) फिर उन क़ौमों के बाद (जिनका उल्लेख ऊपर किया गया) हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ फ़िरऔन32 और उसकी क़ौम के सरदारों के पास भेजा मगर उन्होंने भी हमारी निशानियों के साथ ज़ुल्म किया, तो देखो उन फ़सादियों का क्या अंजाम हुआ।
32. फ़िरऔन शब्द का अर्थ है “सूरज देवता की संतान।” मिस्र के प्राचीन लोग सूर्य को जो उनका महादेव या 'रब्बे-आला' था 'रअ' कहते थे और फ़िरऔन का सम्बन्ध उसी से जोड़ा जाता था। यह किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं था, बल्कि मिस्र के बादशाहों की उपाधि थी जैसे रूस के बादशाहों की उपाधि 'ज़ार' और ईरान के बादशाहों का लक़ब 'किसरा' था।
يُرِيدُ أَن يُخۡرِجَكُم مِّنۡ أَرۡضِكُمۡۖ فَمَاذَا تَأۡمُرُونَ 97
(110) तुम्हें तुम्हारी ज़मीन (देश) से बेदख़ल करना चाहता है33, अब कहो क्या कहते हो?”
33. मूसा (अलैहि०) का पैग़म्बरी का दावा करना अपने में ख़ुद ही यह अर्थ रखता था कि वे वास्तव में पूरी जीवन प्रणाली को सामूहिक रूप से परिवर्तित करना चाहते हैं, जिनमें ज़रूरी तौर पर देश का राजनैतिक विधान भी सम्मिलित है। क्योंकि जग के पालनकर्त्ता रब का प्रतिनिधि कभी अधीन और प्रजा बनकर रहने के लिए नहीं आता, बल्कि वह तो ऐसा व्यक्ति बनने के लिए आता है जिसका आज्ञाकारी हुआ जाए और जिसे अधिकारी स्वीकार किया जाए। और किसी अधर्मी के शासनाधिकार को स्वीकार करना उसकी पैग़म्बरो की हैसियत के पूर्णतः विरुद्ध है। यही कारण है कि हज़रत मूसा (अलैहि०) के मुँह से पैग़म्बरी का दावा सुनते ही फ़िरऔन और उसके राज्य मन्त्रियों आदि के सामने राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्रान्ति का ख़तरा प्रकट हो गया, और उन्होंने समझ लिया कि अगर इस व्यक्ति की बात चली तो शासनाधिकार और सत्ता हमारे हाथ से निकल जाएगी।
رَبِّ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ 109
(122) उस रब को जिसे मूसा और हारून मानते हैं।”34
34. इस तरह अल्लाह ने फिरऔनियों की चाल को उलटा उन्हीं पर पलट दिया। उन्होंने देश के सारे कुशल जादूगरों को बुलाकर सबके सामने इसलिए प्रदर्शन कराया था कि जनसाधारण को हज़रत मूसा के जादूगर होने का विश्वास दिलाएँ या कम से कम सन्देह ही में डाल दें। लेकिन इस मुक़ाबले में पराजित होने के बाद ख़ुद उनके अपने बुलाए हुए कला कुशल व्यक्तियों ने एकमत होकर यह फ़ैसला कर दिया कि हज़रत मूसा (अलैहि०) जो चीज़ पेश कर रहे हैं वह हरगिज़ जादू नहीं है, बल्कि यक़ीनन सारे जहान के रब की शक्ति का चमत्कार है। जिसके आगे किसी जादू का ज़ोर नहीं चल सकता।
وَمَا تَنقِمُ مِنَّآ إِلَّآ أَنۡ ءَامَنَّا بِـَٔايَٰتِ رَبِّنَا لَمَّا جَآءَتۡنَاۚ رَبَّنَآ أَفۡرِغۡ عَلَيۡنَا صَبۡرٗا وَتَوَفَّنَا مُسۡلِمِينَ 113
(126) तू जिस बात का हमसे बदला लेना चाहता है वह इसके सिवा कुछ नहीं कि हमारे रब की निशानियाँ जब हमारे सामने आ गईं तो हमने उन्हें मान लिया। ऐ रब, हमपर सब्र उंडेल दे और हमें दुनिया से उठा तो इस हाल में कि हम तेरे आज्ञाकारी हों।”35
35. फ़िरऔन ने पाँसा पलटते देखकर आख़िरी चाल यह चली थी कि घोषित कर दे कि सारा मामला मूसा (अलैहि०) और जादूगरों की साज़िश है और फिर जादूगरों को शारीरिक यातना और क़त्ल को धमकी देकर उनसे अपने इस आरोप को स्वीकार करा ले। लेकिन यह चाल भी उलटी पड़ी। जादूगरों ने अपने आपको हर सज़ा के लिए प्रस्तुत करके सिद्ध कर दिया कि उनका मूसा (अलैहि०) की सच्चाई को मान लेना किसी साज़िश का नहीं, बल्कि सत्य की सच्ची स्वीकृति का नतीजा था। यहाँ यह बात भी देखने योग्य है कि कुछ थोड़े ही समय में ईमान ने उन जादूगरों के चरित्र में कितनी बड़ी क्रान्ति पैदा कर दी। अभी थोड़ी देर पहले इन्हीं जादूगरों की नीचता का यह हाल था कि अपने पैतृक धर्म के समर्थन और सहायता के लिए घरों से चलकर आए थे और फ़िरऔन से पूछ रहे थे कि अगर हमने अपने धर्म को मूसा के हमले से बचा लिया तो सरकार से हमें इनाम तो मिलेगा ना? या अब जो ईमान की नेमत नसीब हुई तो उन्हीं की सत्यप्रियता और साहस यहाँ तक पहुँच गया कि थोड़ी देर पहले जिस बादशाह के आगे लालच के मारे बिछे जा रहे थे अब उसकी महिमा और प्रताप को ठोकर मार रहे हैं और उन बुरी से बुरी सज़ाओं को भुगतने के लिए तैयार हैं जिनकी धमकी वह दे रहा है मगर उस सत्य को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं जिसकी सत्यता उनपर प्रकट हो चुकी है।
وَقَالَ ٱلۡمَلَأُ مِن قَوۡمِ فِرۡعَوۡنَ أَتَذَرُ مُوسَىٰ وَقَوۡمَهُۥ لِيُفۡسِدُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَيَذَرَكَ وَءَالِهَتَكَۚ قَالَ سَنُقَتِّلُ أَبۡنَآءَهُمۡ وَنَسۡتَحۡيِۦ نِسَآءَهُمۡ وَإِنَّا فَوۡقَهُمۡ قَٰهِرُونَ 114
(127) फ़िरऔन से उसकी क़ौम के सरदारों ने कहा, “क्या तू मूसा और उसकी क़ौम को यों ही छोड़ देगा कि देश में बिगाड़ फैलाएँ और वे तेरी और तेरे पूज्य प्रभुओं की बन्दगी छोड़ बैठे?” फ़िरऔन ने जवाब दिया, “मैं उनके बेटों को क़त्ल कराऊँगा और उनकी औरतों को जीता रहने दूँगा।36 हमारी सत्ता की पकड़ उनपर मज़बूत है।"
36. स्पष्ट रहे कि ज़ुल्म का एक दौर वह था जो हज़रत मूसा (अलैहि०) के जन्म से पहले जारी हुआ था, और ज़ुल्म का दूसरा दौर यह है जो हज़रत मूसा (अलैहि०) की पैग़म्बरी के बाद शुरू हुआ, दोनों कालों में यह बात शामिल थी कि इसराईलियों के बेटों को क़त्ल कराया गया, और उनकी बेटियों को जीता छोड़ दिया गया, ताकि धीरे-धीरे उनकी नस्ल का अन्त हो जाए और यह क़ौम दूसरी क़ौमों में गुम होकर रह जाए।
قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِ ٱسۡتَعِينُواْ بِٱللَّهِ وَٱصۡبِرُوٓاْۖ إِنَّ ٱلۡأَرۡضَ لِلَّهِ يُورِثُهَا مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۖ وَٱلۡعَٰقِبَةُ لِلۡمُتَّقِينَ 115
(128) मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, “अल्लाह से मदद माँगो और सब्र करो, ज़मीन अल्लाह की हैं, अपने बन्दों में से जिसको चाहता है उसका वारिस बना देता है37, और आख़िरी कामयाबी उन्हीं के लिए है जो उससे डरते हुए काम करें”
37. इस ज़माने में कुछ लोग इस आयत से यह बात कि “ज़मीन अल्लाह की है” निकाल लेते हैं और बाद का यह हिस्सा कि “जिसको वह चाहता है उसका वारिस बना देता है” छोड़ देते हैं।
قَالُوٓاْ أُوذِينَا مِن قَبۡلِ أَن تَأۡتِيَنَا وَمِنۢ بَعۡدِ مَا جِئۡتَنَاۚ قَالَ عَسَىٰ رَبُّكُمۡ أَن يُهۡلِكَ عَدُوَّكُمۡ وَيَسۡتَخۡلِفَكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرَ كَيۡفَ تَعۡمَلُونَ 116
(129) उसकी क़ौम के लोगों ने कहा, “तेरे आने से पहले भी हम सताए जाते थे और अब तेरे आने पर भी सताए जा रहे हैं।” उसने जवाब दिया, “क़रीब है वह समय कि तुम्हारा रब तुम्हारे दुश्मन को तबाह कर दे और तुमको ज़मीन में अधिकारी (खलीफ़ा) बनाए, फिर देखे कि तुम कैसे कर्म करते हो।"
فَإِذَا جَآءَتۡهُمُ ٱلۡحَسَنَةُ قَالُواْ لَنَا هَٰذِهِۦۖ وَإِن تُصِبۡهُمۡ سَيِّئَةٞ يَطَّيَّرُواْ بِمُوسَىٰ وَمَن مَّعَهُۥٓۗ أَلَآ إِنَّمَا طَٰٓئِرُهُمۡ عِندَ ٱللَّهِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ 118
(131) मगर उनकी हालत यह थी कि जब अच्छा समय आता तो कहते कि हम इसी के अधिकारी हैं और जब बुरा समय आता तो मूसा और उसके साथियों को अपने लिए अपशकुन ठहराते, हालाँकि वास्तव में उनका अपशकुन तो अल्लाह के पास था, मगर उनमें से ज़्यादातर ज्ञानहीन थे।
فَأَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمُ ٱلطُّوفَانَ وَٱلۡجَرَادَ وَٱلۡقُمَّلَ وَٱلضَّفَادِعَ وَٱلدَّمَ ءَايَٰتٖ مُّفَصَّلَٰتٖ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ وَكَانُواْ قَوۡمٗا مُّجۡرِمِينَ 120
(133) आख़िरकार हमने उनपर तूफ़ान भेजा, टिड्डी दल छोड़े, सुरसुरियाँ फैलाईं, मेंढक निकाले और ख़ून की बारिश की। ये सब निशानियाँ अलग-अलग करके दिखाईं। मगर वे सरकशी ही दिखाए चले गए और वे बड़े ही अपराधी लोग थे।
وَلَمَّا وَقَعَ عَلَيۡهِمُ ٱلرِّجۡزُ قَالُواْ يَٰمُوسَى ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ بِمَا عَهِدَ عِندَكَۖ لَئِن كَشَفۡتَ عَنَّا ٱلرِّجۡزَ لَنُؤۡمِنَنَّ لَكَ وَلَنُرۡسِلَنَّ مَعَكَ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ 121
(134) जब कभी उनपर विपत्ति आती तो कहते, “ऐ मूसा, तुझे अपने रब की ओर से जो पद प्राप्त है उसके आधार पर हमारे लिए दुआ कर, अगर इस बार तू हमपर से यह विपत्ति टलवा दे तो हम तेरी बात मान लेंगे और इसराईल की सन्तान को तेरे साथ भेज देंगे।”
وَأَوۡرَثۡنَا ٱلۡقَوۡمَ ٱلَّذِينَ كَانُواْ يُسۡتَضۡعَفُونَ مَشَٰرِقَ ٱلۡأَرۡضِ وَمَغَٰرِبَهَا ٱلَّتِي بَٰرَكۡنَا فِيهَاۖ وَتَمَّتۡ كَلِمَتُ رَبِّكَ ٱلۡحُسۡنَىٰ عَلَىٰ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ بِمَا صَبَرُواْۖ وَدَمَّرۡنَا مَا كَانَ يَصۡنَعُ فِرۡعَوۡنُ وَقَوۡمُهُۥ وَمَا كَانُواْ يَعۡرِشُونَ 124
(137) और उनकी जगह हमने उन लोगों को जो कमज़ोर बनाकर रखे गए थे, उस भू-भाग के पूरब और पश्चिम का उत्तराधिकारी बना दिया जिसे हमने बरकतों से मालामाल किया था।38 इस तरह इसराईल की सन्तान के प्रति तेरे रब का अच्छा वादा पूरा हुआ, क्योंकि उन्होंने सब्र से काम लिया था और हमने फ़िरऔन और उसकी क़ौम का वह सब कुछ बरबाद कर दिया जो वे बनाते और चढ़ाते थे।
38. अर्थात् इसराईल की सन्तान को फ़िलस्तीन के भू-भाग का वारिस बना दिया। क़ुरआन मजीद में विभिन्न स्थानों पर फ़िलस्तीन और सीरिया ही की ज़मीन के लिए ये शब्द प्रयोग किए गए हैं कि हमने इस भू-भाग में बरकतें रखी हैं।
وَجَٰوَزۡنَا بِبَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱلۡبَحۡرَ فَأَتَوۡاْ عَلَىٰ قَوۡمٖ يَعۡكُفُونَ عَلَىٰٓ أَصۡنَامٖ لَّهُمۡۚ قَالُواْ يَٰمُوسَى ٱجۡعَل لَّنَآ إِلَٰهٗا كَمَا لَهُمۡ ءَالِهَةٞۚ قَالَ إِنَّكُمۡ قَوۡمٞ تَجۡهَلُونَ 125
(138) इसराईलियों को हमने समुद्र से पार करा दिया, फिर वे चले और रास्ते में एक ऐसी क़ौम के पास से होकर गए जो अपनी कुछ मूर्तियों की भक्त बनी हुई थी। कहने लगे, “ऐ मूसा, हमारे लिए भी कोई ऐसा ही पूज्य बना दे जैसे कि इन लोगों के पूज्य हैं।”39 मूसा ने कहा, “तुम लोग बड़ी नादानी की बातें करते हो।
39. यह क़ौम यद्यपि मुस्लिम (आज्ञाकारी) थी मगर मिस्र में सदियों तक एक मूर्ति पूजनेवाली क़ौम के बीच रहने का यह प्रभाव था।
۞وَوَٰعَدۡنَا مُوسَىٰ ثَلَٰثِينَ لَيۡلَةٗ وَأَتۡمَمۡنَٰهَا بِعَشۡرٖ فَتَمَّ مِيقَٰتُ رَبِّهِۦٓ أَرۡبَعِينَ لَيۡلَةٗۚ وَقَالَ مُوسَىٰ لِأَخِيهِ هَٰرُونَ ٱخۡلُفۡنِي فِي قَوۡمِي وَأَصۡلِحۡ وَلَا تَتَّبِعۡ سَبِيلَ ٱلۡمُفۡسِدِينَ 129
(142) हमने मूसा को तीस रात-दिन के लिए (सीना पहाड़ पर) बुलाया और बाद में दस दिन और बढ़ा दिए, इस तरह उसके रब की निर्धारित अवधि पूरे चालीस दिन हो गई। मूसा ने चलते हुए अपने भाई हारून से कहा “मेरे पीछे तुम मेरी क़ौम में मेरी जगह रहना और ठीक काम करते रहना और बिगाड़ पैदा करनेवालों के तरीक़े पर न चलना।”
وَلَمَّا جَآءَ مُوسَىٰ لِمِيقَٰتِنَا وَكَلَّمَهُۥ رَبُّهُۥ قَالَ رَبِّ أَرِنِيٓ أَنظُرۡ إِلَيۡكَۚ قَالَ لَن تَرَىٰنِي وَلَٰكِنِ ٱنظُرۡ إِلَى ٱلۡجَبَلِ فَإِنِ ٱسۡتَقَرَّ مَكَانَهُۥ فَسَوۡفَ تَرَىٰنِيۚ فَلَمَّا تَجَلَّىٰ رَبُّهُۥ لِلۡجَبَلِ جَعَلَهُۥ دَكّٗا وَخَرَّ مُوسَىٰ صَعِقٗاۚ فَلَمَّآ أَفَاقَ قَالَ سُبۡحَٰنَكَ تُبۡتُ إِلَيۡكَ وَأَنَا۠ أَوَّلُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ 130
(143) जब वह हमारे निश्चित किए हुए समय पर पहुँचा और उसके रब ने उससे बातचीत की तो उसने प्रार्थना की “ऐ रब मुझे देखने को शक्ति दे कि मैं तुझे देखूँ।” कहा, “तू मुझे नहीं देख सकता। हाँ, तनिक सामने के पहाड़ की ओर देख। अगर वह अपनी जगह स्थिर रह जाए तो अलबत्ता तू मुझे देख सकेगा।” तो उसका रब जब पहाड़ पर आलोकित हुआ तो उसे चकनाचूर कर दिया और मूसा मूर्छित होकर गिर पड़ा। जब होश में आया तो बोला, “पाक है तेरी ज़ात, मैं तेरे सामने तौबा करता हूँ और सबसे पहले ईमान लानेवाला मैं हूँ।”
سَأَصۡرِفُ عَنۡ ءَايَٰتِيَ ٱلَّذِينَ يَتَكَبَّرُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّ وَإِن يَرَوۡاْ كُلَّ ءَايَةٖ لَّا يُؤۡمِنُواْ بِهَا وَإِن يَرَوۡاْ سَبِيلَ ٱلرُّشۡدِ لَا يَتَّخِذُوهُ سَبِيلٗا وَإِن يَرَوۡاْ سَبِيلَ ٱلۡغَيِّ يَتَّخِذُوهُ سَبِيلٗاۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا وَكَانُواْ عَنۡهَا غَٰفِلِينَ 133
(146) मैं अपनी निशानियों से उन लोगों की निगाहे फेर दूँगा जो नाहक़ ज़मीन में बड़े बनते हैं, वे चाहे कोई निशानी देख लें कभी उसपर ईमान नहीं लाएँगे, अगर सीधा मार्ग उनके सामने आए तो उसे अपनाएँगे नहीं और अगर टेढ़ा मार्ग दिखाई दे तो उसपर चल पड़ेंगे, इसलिए कि उन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया और उनसे बेपरवाही करते रहे।
وَٱتَّخَذَ قَوۡمُ مُوسَىٰ مِنۢ بَعۡدِهِۦ مِنۡ حُلِيِّهِمۡ عِجۡلٗا جَسَدٗا لَّهُۥ خُوَارٌۚ أَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّهُۥ لَا يُكَلِّمُهُمۡ وَلَا يَهۡدِيهِمۡ سَبِيلًاۘ ٱتَّخَذُوهُ وَكَانُواْ ظَٰلِمِينَ 135
(148) मूसा के पीछे उसकी क़ौम के लोगों ने अपने ज़ेवरों से एक बछड़े का पुतला बनाया जिसमें से बैल की-सी आवाज़ निकलती थी। क्या उन्हें दिखाई न देता था कि वह न उनसे बोलता है न किसी मामले में उनका मार्गदर्शन करता है? मगर फिर भी उन्होंने उसे पूज्य बना लिया और वे बड़े ज़ालिम थे।40
40. यह उस मिस्री प्रभाव का दूसरा प्रदर्शन था जिसे लिए हुए इसराईली मिस्र से निकले थे। मिस्र में गाय की पूजा और उसे पवित्र मानने की जो प्रथा थी। उससे यह क़ौम इतनी अधिक प्रभावित हो चुकी थी कि पैग़म्बर के पीठ मोड़ते ही उसने पूजा के लिए एक कृत्रिम बछड़ा बना डाला।
وَلَمَّا رَجَعَ مُوسَىٰٓ إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ غَضۡبَٰنَ أَسِفٗا قَالَ بِئۡسَمَا خَلَفۡتُمُونِي مِنۢ بَعۡدِيٓۖ أَعَجِلۡتُمۡ أَمۡرَ رَبِّكُمۡۖ وَأَلۡقَى ٱلۡأَلۡوَاحَ وَأَخَذَ بِرَأۡسِ أَخِيهِ يَجُرُّهُۥٓ إِلَيۡهِۚ قَالَ ٱبۡنَ أُمَّ إِنَّ ٱلۡقَوۡمَ ٱسۡتَضۡعَفُونِي وَكَادُواْ يَقۡتُلُونَنِي فَلَا تُشۡمِتۡ بِيَ ٱلۡأَعۡدَآءَ وَلَا تَجۡعَلۡنِي مَعَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ 137
(150) उधर से मूसा क्रोध और दुख से भरा हुआ अपनी क़ौम की ओर पलटा आते ही उसने कहा, “बहुत बुरा उत्तराधिकार निभाया तुम लोगों ने मेरे पीछे! क्या तुम इतना भी सब्र से काम न ले सके कि अपने रब के आदेश का इन्तिज़ार कर लेते?” और तख़्तियाँ फेंक दीं और अपने भाई (हारून) के सिर के बाल पकड़कर उसे खींचा। हारून ने कहा, “ऐ मेरी माँ के बेटे, इन लोगों ने मुझे दबा लिया और क़रीब था कि मुझे मार डालते। अत: तू दुश्मनों को मुझपर हँसने का मौक़ा न दे और इस ज़ालिम गिरोह के साथ मुझे सम्मिलित न कर।"
وَٱخۡتَارَ مُوسَىٰ قَوۡمَهُۥ سَبۡعِينَ رَجُلٗا لِّمِيقَٰتِنَاۖ فَلَمَّآ أَخَذَتۡهُمُ ٱلرَّجۡفَةُ قَالَ رَبِّ لَوۡ شِئۡتَ أَهۡلَكۡتَهُم مِّن قَبۡلُ وَإِيَّٰيَۖ أَتُهۡلِكُنَا بِمَا فَعَلَ ٱلسُّفَهَآءُ مِنَّآۖ إِنۡ هِيَ إِلَّا فِتۡنَتُكَ تُضِلُّ بِهَا مَن تَشَآءُ وَتَهۡدِي مَن تَشَآءُۖ أَنتَ وَلِيُّنَا فَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَاۖ وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلۡغَٰفِرِينَ 142
(155) और उसने अपनी क़ौम के सत्तर आदमियों को चुना, ताकि वे (उसके साथ) हमारे नियत किए हुए समय पर हाज़िर हों।41 जब उन लोगों को एक प्रचण्ड भूकम्प ने आ पकड़ा तो मूसा ने निवेदन किया, “ऐ मेरे सरकार, आप चाहते तो पहले ही इनको और मुझे तबाह कर सकते थे। क्या आप उस अपराध में जो हममें से कुछ नादानों ने किया था हम सबको तबाह कर देंगे? यह तो आपकी डाली हुई एक परीक्षा थी जिसके द्वारा आप जिसे चाहते हैं गुमराही में डाल देते हैं और जिसे चाहते हैं राह पर लगा देते हैं। हमारे सरपरस्त तो आप ही है। अतः हमें माफ़ कर दीजिए और हमपर दया कीजिए, आप सबसे बढ़कर माफ़ करनेवाले हैं।
41. यह तलबी इस ग़रज़ से हुई थी कि क़ौम के 70 प्रतिनिधि सीना पर्वत पर अल्लाह के सामने हाज़िर होकर क़ौम की ओर से गाय-पूजा के अपराध की माफ़ी माँगें और नए सिरे से प्रतिज्ञाबद्ध हों कि वे अल्लाह के आज्ञाकारी बन कर रहेंगे।
وَإِذۡ قِيلَ لَهُمُ ٱسۡكُنُواْ هَٰذِهِ ٱلۡقَرۡيَةَ وَكُلُواْ مِنۡهَا حَيۡثُ شِئۡتُمۡ وَقُولُواْ حِطَّةٞ وَٱدۡخُلُواْ ٱلۡبَابَ سُجَّدٗا نَّغۡفِرۡ لَكُمۡ خَطِيٓـَٰٔتِكُمۡۚ سَنَزِيدُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ 143
(161) याद करो वह समय जब उनसे कहा गया था कि “इस बस्ती में जाकर बस जाओ और इसकी पैदावार से अपनी इच्छानुसार रोज़ी प्राप्त करो और 'हित्ततुन हित्ततुन' कहते जाओ, और शहर के दरवाज़े में सजदा करते हुए दाख़िल हो, हम तुम्हारी ख़ताओं को माफ़ कर देंगे और उत्तमकारों को और भी ज़्यादा देंगे।”
وَسۡـَٔلۡهُمۡ عَنِ ٱلۡقَرۡيَةِ ٱلَّتِي كَانَتۡ حَاضِرَةَ ٱلۡبَحۡرِ إِذۡ يَعۡدُونَ فِي ٱلسَّبۡتِ إِذۡ تَأۡتِيهِمۡ حِيتَانُهُمۡ يَوۡمَ سَبۡتِهِمۡ شُرَّعٗا وَيَوۡمَ لَا يَسۡبِتُونَ لَا تَأۡتِيهِمۡۚ كَذَٰلِكَ نَبۡلُوهُم بِمَا كَانُواْ يَفۡسُقُونَ 145
(163) और तनिक इनसे उस बस्ती का हाल भी पूछो जो समुद्र के तट पर स्थित थी।44 उन्हें याद दिलाओ वह घटना कि वहाँ के लोग 'सब्त' (सप्ताह) के दिन ईश्वरीय आदेशों की अवहेलना करते थे और यह कि मछलियाँ 'सब्त' ही के दिन उभर उभरकर सतह पर उनके सामने आती थीं और 'सब्त' के सिवा बाक़ी दिनों में नहीं आती थीं। यह इसलिए होता था कि हम उनकी अवज्ञाओं के कारण उनको परीक्षा में डाल रहे थे।
44. शोधकर्ताओं का ज़्यादा रुझान इस ओर है कि यह स्थान ऐला या ऐलात या ऐलूत था जहाँ अब इसराईल के यहूदी राज्य ने इसी नाम की एक बन्दरगाह बनाई है और जिसके क़रीब ही जोर्डन की मशहूर बन्दरगाह अक़बा स्थित है।
فَلَمَّا عَتَوۡاْ عَن مَّا نُهُواْ عَنۡهُ قُلۡنَا لَهُمۡ كُونُواْ قِرَدَةً خَٰسِـِٔينَ 148
(166) फिर जब वे पूरी सरकशी के साथ वही काम किए चले गए जिससे उन्हें रोका गया था, तो हमने कहा, बन्दर हो जाओ45 अपमानित और तिरस्कृत।
45. इस बयान से मालूम हुआ कि इस बस्ती में तीन तरह के लोग मौजूद थे। एक वे जो धड़ल्ले से ईश्वरीय आदेशों की अवहेलना कर रहे थे। दूसरे वे जो ख़ुद तो अवहेलना नहीं करते थे, मगर इस अवहेलना को चुपचाप बैठे देख रहे थे और उपदेशकों से कहते थे कि इन अभागों को समझाना व्यर्थ है। तीसरे वे जिनका आस्था सम्बन्धी आत्मगौरव और स्वाभिमान ईश्वरीय मर्यादाओं के इस खुल्लम-खुल्ला निरादर को सहन न कर सकता था और वे इस विचार से नेकी का हुक्म देने और बुराई से रोकने में लगे हुए थे कि शायद वे अपराधी लोग उनके समझाने से सीधे मार्ग पर आ जाएँ और अगर वे सीधे मार्ग पर न आएँ तब भी हम अपनी हद तक तो अपना कर्तव्य निभाकर अल्लाह के सामने अपने बरी होने का प्रमाण तो प्रस्तुत कर ही दें। इस परिस्थिति में जब इस बस्ती पर अल्लाह की ओर से अज़ाब आया तो क़ुरआन मजीद कहता है कि इन तीनों गिरोहों में से सिर्फ़ तीसरा गिरोह ही उससे बचाया गया, क्योंकि उसी ने अल्लाह के सामने अपना उज़्र पेश करने की चिन्ता की थी और वही था जिसने अपने बरी होने का प्रमाण जुटा रखा था। बाक़ी दोनों गिरोहों की गिनती ज़ालिमों में हुई और वे अपने अपराध की हद तक अज़ाब में गिरफ्तार हुए। अलबत्ता बन्दर सिर्फ़ वे लोग बनाए गए जो पूरी उद्दण्डता के साथ आदेश की अवहेलना करते चले गए थे।
فَخَلَفَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ خَلۡفٞ وَرِثُواْ ٱلۡكِتَٰبَ يَأۡخُذُونَ عَرَضَ هَٰذَا ٱلۡأَدۡنَىٰ وَيَقُولُونَ سَيُغۡفَرُ لَنَا وَإِن يَأۡتِهِمۡ عَرَضٞ مِّثۡلُهُۥ يَأۡخُذُوهُۚ أَلَمۡ يُؤۡخَذۡ عَلَيۡهِم مِّيثَٰقُ ٱلۡكِتَٰبِ أَن لَّا يَقُولُواْ عَلَى ٱللَّهِ إِلَّا ٱلۡحَقَّ وَدَرَسُواْ مَا فِيهِۗ وَٱلدَّارُ ٱلۡأٓخِرَةُ خَيۡرٞ لِّلَّذِينَ يَتَّقُونَۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ 151
(169) फिर अगली नस्लों के बाद ऐसे अयोग्य लोगों ने इनका स्थान लिया जो ईश्वरीय ग्रन्थ के उत्तराधिकारी होकर इसी अधम संसार के लाभ समेटते हैं और कह देते हैं कि उम्मीद है हमें माफ़ कर दिया जाएगा, और अगर वही दुनिया की तुच्छ चीज़़ें सामने आती हैं तो फिर लपककर उसे ले लेते है। क्या इनसे किताब की प्रतिज्ञा नहीं कराई जा चुकी है कि अल्लाह के नाम पर वही बात कहें जो सत्य हो? और ये ख़ुद पढ़ चुके हैं जो किताब में लिखा है। आख़िरत का निवास-स्थान तो अल्लाह का डर रखनेवालों के लिए ही बेहतर है46, क्या तुम इतनी-सी बात नहीं समझते?
46. इस आयत के दो अनुवाद हो सकते हैं। एक वह जो हमने ऊपर मूल में किया है। दूसरा यह कि “अल्लाह का डर रखनेवाले लोगों के लिए तो आख़िरत का निवास स्थान ही बेहतर है।"
وَإِذۡ أَخَذَ رَبُّكَ مِنۢ بَنِيٓ ءَادَمَ مِن ظُهُورِهِمۡ ذُرِّيَّتَهُمۡ وَأَشۡهَدَهُمۡ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ أَلَسۡتُ بِرَبِّكُمۡۖ قَالُواْ بَلَىٰ شَهِدۡنَآۚ أَن تَقُولُواْ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ إِنَّا كُنَّا عَنۡ هَٰذَا غَٰفِلِينَ 154
(172) और ऐ नबी, लोगों को याद दिलाओ वह समय जबकि तुम्हारे रब ने आदम के बेटों की पीठों से उनकी नस्ल को निकाला था और उन्हें ख़ुद उनके ऊपर गवाह बनाते हुए पूछा था, “क्या मै तुम्हारा रब नहीं हूँ?” उन्होंने कहा, “ज़रूर आप ही हमारे रब हैं, हम इसपर गवाही देते हैं47।” यह हमने इसलिए किया कि कहीं तुम क़ियामत के दिन यह न कह दो कि “हम तो इस बात से बेख़बर थे",
وَلَوۡ شِئۡنَا لَرَفَعۡنَٰهُ بِهَا وَلَٰكِنَّهُۥٓ أَخۡلَدَ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ وَٱتَّبَعَ هَوَىٰهُۚ فَمَثَلُهُۥ كَمَثَلِ ٱلۡكَلۡبِ إِن تَحۡمِلۡ عَلَيۡهِ يَلۡهَثۡ أَوۡ تَتۡرُكۡهُ يَلۡهَثۚ ذَّٰلِكَ مَثَلُ ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَاۚ فَٱقۡصُصِ ٱلۡقَصَصَ لَعَلَّهُمۡ يَتَفَكَّرُونَ 158
(176) अगर हम चाहते तो उसे उन आयतों के द्वारा उच्चता प्रदान करते, मगर वह तो ज़मीन ही की ओर झुककर रह गया और अपनी वासना ही के पीछे पड़ा रहा, अतः उसकी हालत कुत्ते जैसी हो गई कि तुम उसपर आक्रमण करो तब भी जीभ लटकाए रहे और उसे छोड़ दो तब भी जीभ लटकाए रहे।49 यही मिसाल है। उन लोगों की जो हमारी आयतों को झुठलाते हैं।
49. तफ़सीर लिखनेवालों ने नबी (सल्ल०) के नुबूबत-काल और उससे पहले के इतिहास के विभिन्न व्यक्तियों पर इस मिसाल को फ़िट किया है लेकिन सच यह है कि वह विशेष व्यक्ति तो परदे में है जो इस मिसाल में सामने था, अलबत्ता यह मिसाल हर उस व्यक्ति पर फ़िट होती है जिसमें ये गुण पाए जाते हों। अल्लाह उसकी हालत की उपमा कुत्ते से देता है जिसकी हर समय लटकी जीभ और टपकती हुई राल एक न बुझनेवाली लोभ की आग और कभी न तृप्त होनेवाली नीयत का पता देती है। यह उपमा देने का आधार वही है जिसके कारण हम अपनी भाषा में ऐसे व्यक्ति को जो दुनिया के लोभ में अंधा हो रहा हो, दुनिया का कुत्ता कहते हैं।
وَلَقَدۡ ذَرَأۡنَا لِجَهَنَّمَ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ لَهُمۡ قُلُوبٞ لَّا يَفۡقَهُونَ بِهَا وَلَهُمۡ أَعۡيُنٞ لَّا يُبۡصِرُونَ بِهَا وَلَهُمۡ ءَاذَانٞ لَّا يَسۡمَعُونَ بِهَآۚ أُوْلَٰٓئِكَ كَٱلۡأَنۡعَٰمِ بَلۡ هُمۡ أَضَلُّۚ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡغَٰفِلُونَ 161
(179) और यह सत्य है कि बहुत-से जिन्न और इनसान ऐसे हैं जिनको हमने जहन्नम ही के लिए पैदा किया है। उनके पास दिल हैं मगर वे उनसे सोचते नहीं। उनके पास आँखें हैं मगर वे उनसे देखते नहीं। उनके पास कान हैं मगर वे उनसे सुनते नहीं। वे जानवरों के समान हैं, बल्कि उनसे भी ज़्यादा गए-गुज़रे, ये वे लोग हैं जो ग़फ़लत में खोए गए हैं।50
50. अर्थात् हमने तो उन्हें पैदा किया था दिल, दिमाग़, आँखें और कान देकर मगर ज़ालिमों ने उनसे कोई काम न लिया और अपनी ग़लतकारियों के कारण आख़िरकार जहन्नम के लायक़ बनकर रहे।
وَلِلَّهِ ٱلۡأَسۡمَآءُ ٱلۡحُسۡنَىٰ فَٱدۡعُوهُ بِهَاۖ وَذَرُواْ ٱلَّذِينَ يُلۡحِدُونَ فِيٓ أَسۡمَٰٓئِهِۦۚ سَيُجۡزَوۡنَ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ 162
(180) अल्लाह अच्छे नामों का अधिकारी है, उसको अच्छे ही नामों से पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो जो उसके नाम रखने में सच्चाई से हट जाते हैं। जो कुछ वे करते हैं उसका बदला वे पाकर रहेंगे।51
51. “अच्छे नामों” से मुराद वे नाम हैं जिनसे अल्लाह की महानता एवं उच्चता और पवित्रता तथा उसके उत्कृष्ट गुणों की अभिव्यक्ति होती हो। अल्लाह के नाम रखने में सत्यता से हटना यह है कि अल्लाह को ऐसे नाम दिए जाएँ जो उसके दर्जे से गिरे हुए हों, जो उसकी प्रतिष्ठा और आदर के विपरीत हों, जिनसे अवगुण उससे सम्बद्ध होते हों, या जिनसे उसको पवित्र एवं सर्वोच्च सत्ता के बारे में किसी ग़लत धारणा को अभिव्यक्ति होती हो।
أَوَلَمۡ يَتَفَكَّرُواْۗ مَا بِصَاحِبِهِم مِّن جِنَّةٍۚ إِنۡ هُوَ إِلَّا نَذِيرٞ مُّبِينٌ 166
(184) और क्या इन लोगों ने कभी सोचा नहीं? इनके साथी पर पागलपन का कोई प्रभाव नहीं है।52 वह तो एक सावधान करनेवाला है जो (बुरा परिणाम सामने आने से पहले) साफ़-साफ़ चेतावनी दे रहा है।
52. साथी से मुराद हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) हैं। आपको मक्कावालों का साथी इसलिए कहा गया है कि आप उनके लिए कोई अजनबी और अपरिचित न थे। उन्हीं लोगों में पैदा हुए उन्हीं के बीच रहे-बसे, बच्चे से जवान और जवान से बूढ़े हुए, पैग़म्बरों से पहले सारी क़ौम आपको एक अत्यन्त शुद्ध प्रकृति और बुद्धिमान व्यक्ति की हैसियत से जानती थी। पैग़म्बरी के बाद जब आपने अल्लाह का सन्देश पहुँचाना शुरू किया तो अचानक आपको विक्षिप्त और दीवाना कहने लगी। विदित है कि यह दीवानापन उन बातों के आधार पर नहीं घोषित किया गया था जो आप नबी होने से पहले करते थे, बल्कि उन्हीं बातों के आधार पर किया जा रहा था जिनका आपने नबी होने के बाद प्रचार शुरू किया। इसी कारण कहा जा रहा है कि उन लोगों ने कभी सोचा भी है, आख़िर इन बातों में से कौन-सी बात दीवानेपन और उन्माद की है?
يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلسَّاعَةِ أَيَّانَ مُرۡسَىٰهَاۖ قُلۡ إِنَّمَا عِلۡمُهَا عِندَ رَبِّيۖ لَا يُجَلِّيهَا لِوَقۡتِهَآ إِلَّا هُوَۚ ثَقُلَتۡ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ لَا تَأۡتِيكُمۡ إِلَّا بَغۡتَةٗۗ يَسۡـَٔلُونَكَ كَأَنَّكَ حَفِيٌّ عَنۡهَاۖ قُلۡ إِنَّمَا عِلۡمُهَا عِندَ ٱللَّهِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ 169
(187) ये लोग तुमसे पूछते हैं कि आख़िर वह क़ियामत की घड़ी कब उतरेगी? कहो, “उसका ज्ञान मेरे रब ही के पास है। उसे अपने समय पर वही प्रकट करेगा। आसमानों और ज़मीन में वह बड़ा कठिन समय होगा। वह तुमपर अचानक आ जाएगा।” ये लोग उसके सम्बन्ध में तुमसे इस तरह पूछते हैं मानो तुम उसको खोज में लगे हुए हो। कहो, “उसका ज्ञान तो सिर्फ़ अल्लाह को है मगर ज़्यादातर लोग इस हकीक़त से बेख़बर है।”
قُل لَّآ أَمۡلِكُ لِنَفۡسِي نَفۡعٗا وَلَا ضَرًّا إِلَّا مَا شَآءَ ٱللَّهُۚ وَلَوۡ كُنتُ أَعۡلَمُ ٱلۡغَيۡبَ لَٱسۡتَكۡثَرۡتُ مِنَ ٱلۡخَيۡرِ وَمَا مَسَّنِيَ ٱلسُّوٓءُۚ إِنۡ أَنَا۠ إِلَّا نَذِيرٞ وَبَشِيرٞ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ 170
(188) ऐ नबी, उनसे कहो कि “मुझे अपने आपके लिए किसी लाभ और हानि का अधिकार प्राप्त नहीं, अल्लाह ही जो कुछ चाहता है वह होता है। और अगर मुझे परोक्ष (ग़ैब) का ज्ञान होता तो मैं बहुत-से लाभ अपने लिए प्राप्त कर लेता और मुझे कभी कोई हानि न पहुँचती। मैं तो सिर्फ़ एक सचेतकर्त्ता और ख़ुशख़बरी सुनानेवाला हूँ उन लोगों के लिए जो मेरी बात मानें।"
۞هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ وَجَعَلَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا لِيَسۡكُنَ إِلَيۡهَاۖ فَلَمَّا تَغَشَّىٰهَا حَمَلَتۡ حَمۡلًا خَفِيفٗا فَمَرَّتۡ بِهِۦۖ فَلَمَّآ أَثۡقَلَت دَّعَوَا ٱللَّهَ رَبَّهُمَا لَئِنۡ ءَاتَيۡتَنَا صَٰلِحٗا لَّنَكُونَنَّ مِنَ ٱلشَّٰكِرِينَ 171
(189) वह अल्लाह ही है जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी की जाति से उसका जोड़ा बनाया ताकि उसके पास सुकून हासिल करे। फिर जब मर्द ने औरत को ढाँक लिया तो उसे एक हलका-सा गर्भ रह गया जिसे लिए-लिए वह चलती-फिरती रही। फिर जब वह बोझल हो गई तो दोनों ने मिलकर अल्लाह, अपने रब से, दुआ की कि अगर तूने हमको अच्छा-सा बच्चा दिया तो हम तेरे कृतज्ञ होंगे।
فَلَمَّآ ءَاتَىٰهُمَا صَٰلِحٗا جَعَلَا لَهُۥ شُرَكَآءَ فِيمَآ ءَاتَىٰهُمَاۚ فَتَعَٰلَى ٱللَّهُ عَمَّا يُشۡرِكُونَ 172
(190) मगर जब अल्लाह ने उनको एक भला-चंगा बच्चा दे दिया तो वह उसकी देन में दूसरों को उसका साझीदार ठहराने लगे।53 अल्लाह बहुत उच्च है उन शिर्क (बहुदेववाद) की बातों से जो ये लोग करते हैं।
53. मतलब यह है कि औलाद देनेवाला तो अल्लाह है। अगर अल्लाह औरत के पेट में बन्दर या साँप या कोई विचित्र जीव पैदा कर दे या बच्चे को पेट में ही अंधा, बहरा, लंगड़ा, लूला बना दे या उसको शारीरिक एवं बौद्धिक और मानसिक शक्तियों में कोई दोष या कमी रख दे तो किसी में यह ताक़त नहीं है कि अल्लाह के इस ढाँचे को बदल डाले। इस सच्चाई से मुशरिक भी उसी तरह परिचित हैं जिस तरह एकेश्वरवादी लोग। अतएव यही कारण है कि गर्भ की अवधि में सारी आशाएँ अल्लाह ही से बंधी होती हैं कि वह भला-चंगा बच्चा पैदा करेगा। लेकिन जब उम्मीद पूरी होती है और चाँद सा बच्चा नसीब हो जाता है तो कृतज्ञता दिखलाने के लिए भेंट और चढ़ावे (नज़्रें और नियाज़ें) किसी देवी, किसी अवतार, किसी वली और किसी हज़रत के नाम पर चढ़ाई जाती हैं और बच्चे को ऐसे नाम दिए जाते हैं कि मानो वे अल्लाह के सिवा किसी और की कृपा का परिणाम है।
وَإِن تَدۡعُوهُمۡ إِلَى ٱلۡهُدَىٰ لَا يَتَّبِعُوكُمۡۚ سَوَآءٌ عَلَيۡكُمۡ أَدَعَوۡتُمُوهُمۡ أَمۡ أَنتُمۡ صَٰمِتُونَ 175
(193) अगर तुम उन्हें सीधी राह पर आने का निमन्त्रण दो तो वे तुम्हारे पीछे न आएँ। तुम चाहे उन्हें पुकारो या चुप रहो, दोनों स्थितियों में तुम्हारे लिए समान ही रहे।54
54. अर्थात् इन मुशरिकों के झूठे देवताओं का हाल यह है कि सीधी राह दिखाना और अपने उपासकों का मार्गदर्शन करना तो अलग रहा, वे बेचारे तो किसी मार्गदर्शक के अनुयायी बनने के भी योग्य नहीं, यहाँ तक कि किसी पुकारनेवाले की पुकार का जवाब तक नहीं दे सकते।
وَإِذَا لَمۡ تَأۡتِهِم بِـَٔايَةٖ قَالُواْ لَوۡلَا ٱجۡتَبَيۡتَهَاۚ قُلۡ إِنَّمَآ أَتَّبِعُ مَا يُوحَىٰٓ إِلَيَّ مِن رَّبِّيۚ هَٰذَا بَصَآئِرُ مِن رَّبِّكُمۡ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٞ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ 185
(203) ऐ नबी, जब तुम इन लोगों के सामने कोई निशानी (अर्थात् चमत्कार) प्रस्तुत नहीं करते तो ये कहते हैं कि तुमने अपने लिए कोई निशानी क्यों नहीं चुन ली? इनसे कहो, “मैं तो सिर्फ़ उस प्रकाशना (वह्य) का अनुसरण करता हूँ जो मेरे रब ने मेरी ओर भेजी है। ये प्रतिभा (बसीरत) के प्रकाश है तुम्हारे रब की ओर से और मार्गदर्शन और दयालुता है उन लोगों के लिए जो इसे स्वीकार करें।
إِنَّ ٱلَّذِينَ عِندَ رَبِّكَ لَا يَسۡتَكۡبِرُونَ عَنۡ عِبَادَتِهِۦ وَيُسَبِّحُونَهُۥ وَلَهُۥ يَسۡجُدُونَۤ۩ 188
(206) जिन फ़रिश्तों को तुम्हारे रब के यहाँ क़रीब होने का स्थान प्राप्त है वे कभी अपनी बड़ाई के घमण्ड में आकर उसकी बन्दगी और सेवा से मुँह नहीं मोड़ते, और उसका महिमागान (तसबीह) करते हैं, और उसके आगे झुके रहते हैं।55
55. इस जगह आदेश यह है कि जो व्यक्ति इस आयत को पढ़े या सुने वह सजदा करे। क़ुरआन मजीद में 14 ऐसे स्थान है जहाँ सजदे की आयतें आई है।
وَهُوَ ٱلَّذِي يُرۡسِلُ ٱلرِّيَٰحَ بُشۡرَۢا بَيۡنَ يَدَيۡ رَحۡمَتِهِۦۖ حَتَّىٰٓ إِذَآ أَقَلَّتۡ سَحَابٗا ثِقَالٗا سُقۡنَٰهُ لِبَلَدٖ مَّيِّتٖ فَأَنزَلۡنَا بِهِ ٱلۡمَآءَ فَأَخۡرَجۡنَا بِهِۦ مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِۚ كَذَٰلِكَ نُخۡرِجُ ٱلۡمَوۡتَىٰ لَعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ 189
(57) और वह अल्लाह ही है जो हवाओं को अपनी दयालुता के आगे-आगे ख़ुशख़बरी लिए हुए भेजता है, फिर जब वे पानी से लदे हुए बादल उठा लेती हैं तो उन्हें किसी निर्जीव भू-भाग की ओर चला देता है और वहाँ मेंह बरसाकर (उसी मरी हुई भूमि से) तरह-तरह के फल निकाल लाता है। देखो, इस तरह हम मुर्दों को मौत की हालत से निकालते हैं, शायद कि तुम इस निरीक्षण से शिक्षा ग्रहण करो।
لَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ فَقَالَ يَٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرُهُۥٓ إِنِّيٓ أَخَافُ عَلَيۡكُمۡ عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ 191
(59) हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा।18 उसने कहा, “ऐ क़ौम के भाइयो, अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है। मैं तुम्हारे लिए एक भयंकर दिन के अज़ाब से डरता हूँ।"
18. हज़रत नूह (अलैहि०) की क़ौम उस इलाक़े में रहती थी जिसे आज हम इराक़ के नाम से जानते हैं।
۞وَإِلَىٰ عَادٍ أَخَاهُمۡ هُودٗاۚ قَالَ يَٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرُهُۥٓۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ 197
(65) और आद की ओर हमने उनके भाई हूद को भेजा।19 उसने कहा, “ऐ क़ौम के भाइयों, अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई ख़ुदा नहीं है। फिर क्या तुम ग़लत नीति अपनाने से परहेज़ न करोगे?”
19. आद क़ौम का असल निवास स्थान अहक़ाफ़ का इलाक़ा था जो हिजाज़, यमन और यमामा के बीच स्थित है। यहाँ से फैलकर इन लोगों ने यमन के पश्चिमी तटों और उमान और हज़रमौत से इराक़ तक अपनी ताक़त का सिक्का जारी कर दिया था।
۞وَٱكۡتُبۡ لَنَا فِي هَٰذِهِ ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٗ وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِ إِنَّا هُدۡنَآ إِلَيۡكَۚ قَالَ عَذَابِيٓ أُصِيبُ بِهِۦ مَنۡ أَشَآءُۖ وَرَحۡمَتِي وَسِعَتۡ كُلَّ شَيۡءٖۚ فَسَأَكۡتُبُهَا لِلَّذِينَ يَتَّقُونَ وَيُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلَّذِينَ هُم بِـَٔايَٰتِنَا يُؤۡمِنُونَ 201
(156) और हमारे लिए इस दुनिया की भलाई भी लिख दीजिए और आख़िरत की भी। हम आपकी ओर पलट आए।” जवाब में कहा गया, “सज़ा तो मैं जिसे चाहता हूँ देता हूँ, मगर मेरी दयालुता हर चीज़ पर छाई हुई है और उसे मैं उन लोगों के हक़ में लिखूँगा जो नाफ़रमानी से बचेंगे, ज़कात (दान) देंगे, और मेरी आयतों पर ईमान लाएँगे।”
ٱلَّذِينَ يَتَّبِعُونَ ٱلرَّسُولَ ٱلنَّبِيَّ ٱلۡأُمِّيَّ ٱلَّذِي يَجِدُونَهُۥ مَكۡتُوبًا عِندَهُمۡ فِي ٱلتَّوۡرَىٰةِ وَٱلۡإِنجِيلِ يَأۡمُرُهُم بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَىٰهُمۡ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَيُحِلُّ لَهُمُ ٱلطَّيِّبَٰتِ وَيُحَرِّمُ عَلَيۡهِمُ ٱلۡخَبَٰٓئِثَ وَيَضَعُ عَنۡهُمۡ إِصۡرَهُمۡ وَٱلۡأَغۡلَٰلَ ٱلَّتِي كَانَتۡ عَلَيۡهِمۡۚ فَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِهِۦ وَعَزَّرُوهُ وَنَصَرُوهُ وَٱتَّبَعُواْ ٱلنُّورَ ٱلَّذِيٓ أُنزِلَ مَعَهُۥٓ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ 202
(157) (अतः आज यह दयालुता उन लोगों का हिस्सा है) जो इस पैग़म्बर, उम्मी नबी का अनुसरण करें42 जिसका ज़िक्र उन्हें अपने यहाँ तौरात और इंजील में लिखा हुआ मिलता है। वह उन्हें नेकी का हुक्म देता है, बुराई से रोकता है, उनके लिए पाक चीज़़ें हलाल और नापाक चीज़़ें हराम करता है, और उनपर से वह बोझ उतारता है जो उनपर लदे हुए थे और वे बन्धन खोलता है जिनमें वे जकड़े हुए थे।43 अतः जो लोग इसपर ईमान लाएँ और इसकी सहायता और समर्थन करें और उस प्रकाश का अनुसरण ग्रहण करें जो इसके साथ अवतरित हुआ है, वही सफल होनेवाले हैं।
42. यहाँ नबी (सल्ल०) के लिए 'उम्मी' शब्द यहूदी पारिभाषिक शब्द के रूप में इस्तेमाल हुआ है। इसराईली अपने सिवा दूसरी सभी क़ौमों को उम्मी (Gentiles) कहते थे और उनका क़ौमी गर्व और अहंकार किसी उम्मी की पेशवाई स्वीकार करना तो अलग रहा, इसपर भी तैयार न था कि उम्मियों के लिए अपने बराबर इनसानी अधिकार ही स्वीकार कर लें। अतएव क़ुरआन में उनका यह कथन उद्धृत किया गया है कि “उम्मियों के माल मार खाने में हमारी कोई पकड़ नहीं है” (3:75)। अतः अल्लाह उन्हीं पारिभाषिक शब्दों का इस्तेमाल करके कहता है कि अब तो इसी उम्मी के साथ तुम्हारा भाग्य जुड़ा हुआ है। इसका अनुसरण करोगे तो मेरी दयालुता से हिस्सा पाओगे। वरना वही ग़ज़ब तुम्हारे लिए निश्चित है जिसमें शताब्दियों से घिरे चले आ रहे हो।
43. अर्थात् उनके धार्मिक विधान के पंडितों ने अपने क़ानूनी छिद्रान्वेषणों से, उनके संसार त्यागी संन्यासियों ने अपने वैराग्य की अतिशयता से और उनके अशिक्षित जनसाधारण ने अपने अन्धविश्वासों और मनगढ़ंत नियमों और पाबन्दियों से उनकी ज़िन्दगी को जिन बोझों तले दबा रखा है और जिन जकड़बन्दियों में कस रखा है, यह पैग़म्बर वे सारे बोझ उतार देता है और वे सारे बन्धन तोड़कर ज़िन्दगी को आज़ाद कर देता है।
قُلۡ يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنِّي رَسُولُ ٱللَّهِ إِلَيۡكُمۡ جَمِيعًا ٱلَّذِي لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ يُحۡيِۦ وَيُمِيتُۖ فَـَٔامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِ ٱلنَّبِيِّ ٱلۡأُمِّيِّ ٱلَّذِي يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَكَلِمَٰتِهِۦ وَٱتَّبِعُوهُ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ 203
(158) ऐ नबी (मुहम्मद) कहो, “ऐ इनसानो, मैं तुम सबकी ओर उस अल्लाह का पैग़म्बर हूँ जो ज़मीन और आसमानों की बादशाही का मालिक है, उसके सिवा कोई ईश्वर नहीं है, वही ज़िन्दगी प्रदान करता है और वहीं मौत देता है, अतः ईमान लाओ अल्लाह पर और उसके भेजे हुए उम्मी नबी पर जो अल्लाह और उसके आदेशों को मानता है, और उसके अनुयायी बनो, उम्मीद है कि तुम सीधा मार्ग पा लोगे।"
وَقَطَّعۡنَٰهُمُ ٱثۡنَتَيۡ عَشۡرَةَ أَسۡبَاطًا أُمَمٗاۚ وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ إِذِ ٱسۡتَسۡقَىٰهُ قَوۡمُهُۥٓ أَنِ ٱضۡرِب بِّعَصَاكَ ٱلۡحَجَرَۖ فَٱنۢبَجَسَتۡ مِنۡهُ ٱثۡنَتَا عَشۡرَةَ عَيۡنٗاۖ قَدۡ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسٖ مَّشۡرَبَهُمۡۚ وَظَلَّلۡنَا عَلَيۡهِمُ ٱلۡغَمَٰمَ وَأَنزَلۡنَا عَلَيۡهِمُ ٱلۡمَنَّ وَٱلسَّلۡوَىٰۖ كُلُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا رَزَقۡنَٰكُمۡۚ وَمَا ظَلَمُونَا وَلَٰكِن كَانُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ 205
(160) और हमने उस क़ौम को बारह घरानों में बाँट करके उन्हें स्थायी गिरोहों का रूप दे दिया था और जब मूसा से उसकी क़ौम ने पानी माँगा तो हमने उसको इशारा किया कि अमुक चट्टान पर अपनी लाठी मारो, तो उस चट्टान से यकायक बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपने पानी लेने की जगह निश्चित कर ली। हमने उनपर बादल की छाया की और उनपर 'मन्न' और 'सलवा' उतारा—"खाओ वे पाक भली चीज़़ें जो हमने तुमको प्रदान की हैं।” मगर इसके बाद उन्होंने जो कुछ किया तो हमपर ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि आप अपने ऊपर ज़ुल्म करते रहे।