71. नूह
(मक्का में उतरी, आयते 28)
परिचय
नाम
'नूह' इस सूरा का नाम भी है और विषय-वस्तु की दृष्टि से इसका शीर्षक भी, क्योंकि इसमें प्रारम्भ से अन्त तक हज़रत नूह (अलै०) ही का क़िस्सा बयान किया गया है।
उतरने का समय
यह भी मक्का मुअज़्ज़मा के आरम्भिक काल की अवतरित सूरतों में से है, जब अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के आह्वान और प्रचार के मुक़ाबले में मक्का के इस्लाम-विरोधियों का विरोध बड़ी हद तक प्रचण्ड रूप धारण कर चुका था।
विषय और वार्ता
इसमें हज़रत नूह (अलै०) का क़िस्सा मात्र कथा-वाचन के लिए बयान नहीं किया गया है, बल्कि इससे अभीष्ट मक्का के इस्लाम-विरोधियों को सावधान करना है कि तुम मुहम्मद (सल्ल०) के साथ वही नीति अपना रहे हो जो हज़रत नूह (अलैहि०) के साथ उनकी जाति के लोगों ने अपनाई थी। इस नीति को तुमने त्याग न दिया तो तुम्हें भी वही परिणाम देखना पड़ेगा जो उन लोगों ने देखा था। पहली आयत में बताया गया है कि हज़रत नूह (अलैहि०) को जब अल्लाह ने पैग़म्बरी के पद पर आसीन किया था, उस समय क्या सेवा उन्हें सौंपी गई थी। आयत 2 से 4 तक में संक्षिप्त रूप से यह बताया गया है कि उन्होंने अपने आह्वान का आरम्भ किस तरह किया और अपनी जाति के लोगों के समक्ष क्या बात रखी। फिर दीर्घकालों तक आह्वान एवं प्रसार के कष्ट उठाने के बाद जो वृत्तान्त हज़रत नूह (अलैहि०) ने अपने प्रभु की सेवा में प्रस्तुत किया वह आयत 5 से 20 तक में वर्णित है। इसके बाद हज़रत नूह (अलैहि०) का अन्तिम निवेदन आयत 21 से 24 तक में अंकित है जिसमें वे अपने प्रभु से निवेदन करते हैं कि यह जाति मेरी बात निश्चित रूप से रद्द कर चुकी है। अब समय आ गया है कि इन लोगों को मार्ग पाने के अवसर से वंचित कर दिया जाए। यह हज़रत नूह (अलैहि०) की ओर से किसी अधैर्य का प्रदर्शन न था, बल्कि सैकड़ों वर्ष तक अत्यन्त कठिन परिस्थितियों में सत्य के प्रचार के कर्तव्य का निर्वाह करने के बाद जब वे अपनी जाति के लोगों से पूर्णत: निराश हो गए तो उन्होंने अपनी यह धारणा बना ली कि अब इस जाति के सीधे मार्ग पर आने की कोई सम्भावना शेष नहीं है। यह विचार ठीक-ठीक वही था जो स्वयं अल्लाह का अपना निर्णय था। अत: इसके फ़ौरन बाद आयत 25 में कहा गया है कि उस जाति पर उसकी करतूतों के कारण ईश्वरीय यातना अवतरित हुई। अन्त की आयतों में हज़रत नूह (अलैहि०) की वह प्रार्थना प्रस्तुत की गई है जो उन्होंने ठीक यातना उतरने के समय अपने प्रभु से की थी। इसमें वे अपने लिए और सब ईमानवालों के लिए मुक्ति की प्रार्थना करते हैं और अपनी जाति के सत्य-विरोधियों के विषय में अल्लाह से निवेदन करते हैं कि उनमें से किसी को धरती पर बसने के लिए जीवित न छोड़ा जाए, क्योंकि उनमें अब कोई भलाई शेष नहीं रही। उनके वंशज में से जो भी उठेगा, विधर्मी और दुराचारी ही उठेगा। इस सूरा का अध्ययन करते हुए हज़रत नूह (अलैहि०) के क़िस्से के वे विस्तृत वर्णन दृष्टि में रहने चाहिएँ जो इससे पहले क़ुरआन मजीद में वर्णित हो चुके हैं। (देखिए क़ुरआन सूरा-7 अल-आराफ़, आयत 59-64; सूरा-10 यूनुस, आयत 71-73; सूरा-11 हूद, आयत 25-49; सूरा-23 अल-मोमिनून, आयत 23-31; सूरा-26 अश-शुअरा, आयत 105-122; सूरा-29 अल-अन्कबूत, आयत 14-15; सूरा-37 अस-साफ़्फ़ात, आयत 75-82; सूरा-54 अल-क़मर, आयत 9-16)
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وَقَالُواْ لَا تَذَرُنَّ ءَالِهَتَكُمۡ وَلَا تَذَرُنَّ وَدّٗا وَلَا سُوَاعٗا وَلَا يَغُوثَ وَيَعُوقَ وَنَسۡرٗا 5
(23) इन्होंने कहा हरगिज़ न छोड़ो अपने पूज्यों को, और न छोड़ो वद्द और सुवाअ को, और न यग़ूस और यऊक़ और नस्र को8
8. नूह (अलैहि०) की क़ौम के पूज्यों में से यहाँ उन पूज्यों के नाम लिए गए हैं जिन्हें बाद में अरबवालों ने भी पूजना शुरू कर दिया था और इस्लाम के आरंभिक समय में अरब में जगह-जगह उनके मन्दिर बने हुए थे।
وَقَدۡ أَضَلُّواْ كَثِيرٗاۖ وَلَا تَزِدِ ٱلظَّٰلِمِينَ إِلَّا ضَلَٰلٗا 6
(24) इन्होंने बहुत लोगों को भ्रष्ट किया है, और तू भी इन ज़ालिमों को गुमराही के सिवा किसी चीज़़ में उन्नति न दे।9
9. हज़रत नूह (अलैहि०) की यह बद्दुआ किसी बेसब्री या अधीरता के कारण न थी, बल्कि यह उस समय उनके मुख से निकली थी जब सदियों तक धर्म प्रचार का हक़ अदा करने के बाद वे अपनी क़ौम से पूर्णतः निराश हो चुके थे।
يَغۡفِرۡ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمۡ وَيُؤَخِّرۡكُمۡ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمًّىۚ إِنَّ أَجَلَ ٱللَّهِ إِذَا جَآءَ لَا يُؤَخَّرُۚ لَوۡ كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ 13
(4) अल्लाह तुम्हारे गुनाहों को माफ़ करेगा और तुम्हें एक निश्चित समय तक बाक़ी रखेगा।1 सत्य यह है कि अल्लाह का नियत किया हुआ समय जब आ जाता है तो फिर टाला नहीं जाता,2 काश तुम्हें इसका ज्ञान हो।"
1. अर्थात् अगर तुमने ये तीन बातें मान लीं तो तुम्हें दुनिया में उस समय तक जीने की मुहलत दे दी जाएगी जो अल्लाह तआला ने तुम्हारी प्राकृतिक मौत के लिए निश्चित की है।
2. इस दूसरे समय से मुराद वह समय है जो अल्लाह ने किसी क़ौम पर अज़ाब उतारने के लिए निश्चित कर दिया हो। इसके सम्बन्ध में विभिन्न स्थानों पर क़ुरआन मजीद में यह बात स्पष्टतः बयान की गई है कि जब किसी क़ौम के हक़ में अज़ाब उतारने का फ़ैसला लागू हो जाता है, उसके बाद वह ईमान भी ले आए तो उसे माफ़ नहीं किया जाता।
قَالَ رَبِّ إِنِّي دَعَوۡتُ قَوۡمِي لَيۡلٗا وَنَهَارٗا 14
(5) उसने3 निवेदन किया, ऐ मेरे रब मैंने अपनी क़ौम के लोगों को रात और दिन पुकारा
3. बीच में एक दीर्घकाल का इतिहास छोड़कर अब हज़रत नूह (अलैहि०) को वह दुआ उद्धृत की जा रही है जो उन्होंने अपनी पैग़म्बरी के अन्तिम दौर में अल्लाह तआला के सामने पेश की।
وَإِنِّي كُلَّمَا دَعَوۡتُهُمۡ لِتَغۡفِرَ لَهُمۡ جَعَلُوٓاْ أَصَٰبِعَهُمۡ فِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَٱسۡتَغۡشَوۡاْ ثِيَابَهُمۡ وَأَصَرُّواْ وَٱسۡتَكۡبَرُواْ ٱسۡتِكۡبَارٗا 16
(7) और जब भी मैंने उनको बुलाया ताकि तू उन्हें माफ़ कर दे, उन्होंने कानों में उँगलियाँ ठूँस लीं और अपने कपड़ों से मुँह ढाँक4 लिए और अपनी नीति पर अड़ गए और बड़ा घमण्ड किया।
4. मुँह ढाँकने का उद्देश्य या तो यह था कि वे हज़रत नूह (अलैहि०) की बात सुनना तो अलग रहा, आपकी शक्ल भी देखना पसन्द न करते थे, या फिर यह हरकत वे इसलिए करते थे कि आपके सामने से गुज़रते हुए मुँह छिपाकर निकल जाए और इसकी नौबत ही न आने दें कि आप उन्हें पहचानकर उनसे बात करने लगें।
مَّا لَكُمۡ لَا تَرۡجُونَ لِلَّهِ وَقَارٗا 22
(13) तुम्हें क्या हो गया है कि अल्लाह के लिए तुम किसी गौरव की आशा नहीं रखते5
5. मतलब यह है कि दुनिया के छोटे-छोटे रईसों और सरदारों के सम्बन्ध में तो तुम यह समझते हो कि उनकी प्रतिष्ठा के विपरीत कोई हरकत करना ख़तरनाक है, मगर अल्लाह विश्व के सम्राट के सम्बन्ध में तुम यह उम्मीद नहीं रखते कि वह भी कोई प्रतिष्ठित और गौरववान सत्ता होगा। उसके विरुद्ध तुम विद्रोह करते हो, उसके प्रभुत्व में दूसरों को साझी ठहराते हो, उसके हुक्म की अवज्ञाएँ करते हो, और उससे तुम्हें यह आशंका नहीं होती कि वह इसकी सज़ा देगा।
وَٱللَّهُ أَنۢبَتَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ نَبَاتٗا 26
(17) और अल्लाह ने तुमको ज़मीन से अद्भुत रूप से उगाया,7
7. यहाँ धरती के पदार्थों से इनसान की पैदाइश को वनस्पतियों के उगने की उपमा दी गई है। जिस तरह किसी समय इस पिंड पर वनस्पतियाँ मौजूद न हों और फिर अल्लाह तआला ने यहाँ उनको उगाया, उसी तरह एक समय था जब ज़मीन पर इनसान का कोई अस्तित्व न था, फिर अल्लाह तआला ने यहाँ उसकी पौध लगाई।