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وَجَزَىٰهُم بِمَا صَبَرُواْ جَنَّةٗ وَحَرِيرٗا

76. अद-दह्‍र

(मक्का में उतरी, आयतें 31)

परिचय

नाम

इस सूरा का नाम 'अद-दह्‍र' (काल) भी है और 'अल-इंसान' (इंसान) भी। दोनों नाम पहली ही आयत के शब्दों 'हल अता अलल-इंसानि' और 'हीनुम-मिनद्दहरि' से उदधृत हैं।

उतरने का समय

अधिकतर टीकाकार इसे मक्की बताते हैं। लेकिन कुछ दूसरे टीकाकारों ने पूरी सूरा को मदनी कहा है और कुछ लोगों का कथन यह है कि यह सूरा है तो मक्की, किन्तु आयतें 8-10 मदीने में उतरी हैं। जहाँ तक इस सूरा की विषय-वस्तुओं और वर्णन-शैली का संबंध है, वह मदनी सूरतों की विषय-वस्तुओं और वर्णन-शैली से बहुत भिन्न है, बल्कि इसपर विचार करने से साफ़ महसूस होता है कि यह न सिर्फ़ मक्की है, बल्कि मक्का मुअज़्ज़मा के भी उस ज़माने में उतरी है जो सूरा-74 मुद्दस्सिर की आरंभिक सात आयतों के बाद शुरू हुआ था।

विषय और वार्ता

इस सूरा का विषय इंसान को दुनिया में उसकी वास्तविक हैसियत से अवगत कराना है और यह बताना है कि अगर वह अपनी इस हैसियत को ठीक-ठीक समझकर शुक्र (कृतज्ञता) की नीति अपनाए तो उसका अंजाम क्या होगा और कुफ़्र (इंकार) की राह पर चले तो किस अंजाम से वह दोचार होगा। इसमें सबसे पहले इंसान को याद दिलाया गया है कि एक समय ऐसा था जब वह कुछ न था, फिर एक मिश्रित वीर्य से उसका तुच्छ-सा प्रारम्भ किया गया जो आगे चलकर इस धरती पर 'सर्वश्रेष्ठ प्राणी' बना। इसके बाद इंसान को सावधान किया गया है कि हम [तुझे] दुनिया में रखकर तेरी परीक्षा लेना चाहते हैं, इसलिए दूसरी मख़लूक (सृष्ट-जीवों) के विपरीत तुझे समझ-बूझ रखनेवाला बनाया गया और तेरे सामने शुक्र और कुफ़्र के दोनों रास्ते खोलकर रख दिए गए। ताकि यहाँ काम करने का जो समय तुझे दिया गया है उसमें तू दिखा दे कि इस परीक्षा से तू शुक्रगुज़ार बन्दा बनकर निकला है या नाशुक्रा बन्दा बनकर। फिर सिर्फ़ एक आयत में दो-टूक तरीक़े से बता दिया गया है कि जो लोग इस परीक्षा से नाशुक्रे (काफ़िर) बनकर निकलेंगे उन्हें आख़िरत में क्या अंजाम देखना होगा। इसके बाद आयत 5 से 22 तक लगातार उन इनामों का विवरण दिया गया है जिन्हें वे लोग अपने रब के यहाँ पाएँगे जिन्होंने यहाँ बन्दगी का हक़ अदा किया है। इन आयतों में सिर्फ़ उनके उत्तम प्रतिदानों को बताना ही काफ़ी नहीं समझा गया है, बल्कि संक्षेप में यह भी बताया गया है कि उनके वे क्या कर्म हैं जिनके कारण वे इस प्रतिदान के अधिकारी होंगे। इसके बाद आयत 23 से सूरा के अन्त तक अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को सम्बोधित करके तीन बातें कही गई हैं। एक यह कि वास्तव में यह हम ही हैं जो इस क़ुरआन को थोड़ा-थोड़ा करके तुमपर उतार रहे हैं और इसका उद्देश्य नबी (सल्ल०) को नहीं, बल्कि काफ़िरों (इनकारियों) को सावधान करना है कि यह क़ुरआन मुहम्मद (सल्ल०) ख़ुद अपने दिल से नहीं गढ़ रहे हैं, बल्कि इसके उतारनेवाले 'हम हैं' और हमारी तत्त्वदर्शिता ही इसका तक़ाज़ा करती है कि इसे एक साथ नहीं, बल्कि थोड़ा-थोड़ा करके उतारें।

दूसरी बात यह है कि सब्र के साथ अपना सन्देश पहुँचाने का दायित्व पूरा करते चले जाओ और कभी उन दुष्कर्मी और सत्य के इंकारी लोगों में से किसी के दबाव में न आओ। तीसरी बात यह कि रात-दिन अल्लाह को याद करो, नमाज़ पढ़ो और रातें अल्लाह की इबादत में गुज़ारो। क्योंकि यही वह चीज़ है जिससे कुफ़्र (अधर्म) के अतिक्रमण के मुक़ाबले में अल्लाह की ओर बुलानेवालों को स्थिरता प्राप्त होती है। फिर एक वाक्य में इस्लाम-विरोधियों की ग़लत नीति का मूल कारण बयान किया गया है कि वे आख़िरत को भूलकर दुनिया पर मोहित हो गए हैं और दूसरे वाक्य में उनको सचेत किया गया है कि तुम ख़ुद नहीं बन गए हो, हमने तुम्हें बनाया है और यह बात हर समय हमारे सामर्थ्य में है कि जो कुछ हम तुम्हारे साथ करना चाहें, कर सकते हैं । अन्त में वार्ता इसपर समाप्त की गई है कि यह एक उपदेश की बात है, अब जिसका जी चाहे इसे ग्रहण करके अपने रब का रास्ता अपना ले। मगर दुनिया में इंसान की चाहत पूरी नहीं हो सकती जब तक अल्लाह न चाहे और अल्लाह की चाहत अंधा-धुंध नहीं है। वह जो कुछ भी चाहता है, अपने ज्ञान और अपनी तत्त्वदर्शिता के आधार पर चाहता है। इस ज्ञान और तत्त्वदर्शिता के आधार पर जिसे वह अपनी दयालुता का हक़दार समझता है उसे अपनी दयालुता में दाख़िल कर लेता है और जिसे वह ज़ालिम पाता है उसके लिए दर्दनाक अज़ाब की व्यवस्था उसने कर रखी है।

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وَجَزَىٰهُم بِمَا صَبَرُواْ جَنَّةٗ وَحَرِيرٗا ۝ 1
(12) और उनके सब्र5 के बदले में उन्हें जन्नत और रेशमी वस्त्र प्रदान करेगा।
5. सब्र का शब्द यहाँ इस अर्थ में इस्तेमाल किया गया है कि ईमान लाने के बाद वे मरते दम तक अल्लाह के आदेशों का पालन करते रहे और उसको अवज्ञा से बचते रहे।
مُّتَّكِـِٔينَ فِيهَا عَلَى ٱلۡأَرَآئِكِۖ لَا يَرَوۡنَ فِيهَا شَمۡسٗا وَلَا زَمۡهَرِيرٗا ۝ 2
(13) वहाँ वे ऊँची मसनदों पर तकिए लगाए बैठे होंगे। न उन्हें धूप की गर्मी सताएगी न जाड़े की ठंड।
وَدَانِيَةً عَلَيۡهِمۡ ظِلَٰلُهَا وَذُلِّلَتۡ قُطُوفُهَا تَذۡلِيلٗا ۝ 3
(14) जन्नत की छाँव उनपर झुकी हुई छाया कर रही होगी, और उसके फल हर समय उनके बस में होंगे (कि जिस तरह चाहे उन्हें तोड़ लें)।
وَيُطَافُ عَلَيۡهِم بِـَٔانِيَةٖ مِّن فِضَّةٖ وَأَكۡوَابٖ كَانَتۡ قَوَارِيرَا۠ ۝ 4
(15) उनके आगे चाँदी के बरतन6 और शीशे के प्याले गर्दिश कराए जा रहे होंगे, शीशे भी वे जो चाँदी की क़िस्म के होंगे7,
6. सूरा 43 जुख़रुफ़, आयत 71 में कहा गया है कि उनके आगे सोने के बरतन गर्दिश कराए जा रहे होंगे। इससे मालूम हुआ कि कभी वहाँ सोने के बरतन प्रयोग होंगे और कभी चाँदी के।
7. अर्थात् वह होगी तो चाँदी मगर शीशे की तरह अत्यन्त साफ़ होगी।
قَوَارِيرَاْ مِن فِضَّةٖ قَدَّرُوهَا تَقۡدِيرٗا ۝ 5
(16) और उनको (जन्नत के प्रबन्धकों ने) ठीक अन्दाज़े के अनुसार भरा होगा।
وَيُسۡقَوۡنَ فِيهَا كَأۡسٗا كَانَ مِزَاجُهَا زَنجَبِيلًا ۝ 6
(17) उनको वहाँ ऐसे पेय के प्याले पिलाए जाएँगे जिसमें सोंठ का मिश्रण होगा8,
8. अरबवाले चूँकि शराब के साथ सोंठ मिले हुए पानी के मिश्रण को पसन्द करते थे, इसलिए कहा गया कि वहाँ उनको वह पेय पिलाया जाएगा जिसमें सोंठ का मिश्रण होगा।
عَيۡنٗا فِيهَا تُسَمَّىٰ سَلۡسَبِيلٗا ۝ 7
(18) यह जन्नत का एक स्रोत होगा जिसे सल्सबील कहा जाता है।
۞وَيَطُوفُ عَلَيۡهِمۡ وِلۡدَٰنٞ مُّخَلَّدُونَ إِذَا رَأَيۡتَهُمۡ حَسِبۡتَهُمۡ لُؤۡلُؤٗا مَّنثُورٗا ۝ 8
(19) उनको सेवा के लिए ऐसे लड़के दौड़ते फिर रहे होंगे जो हमेशा लड़के ही रहेंगे। तुम उन्हें देखो तो समझो कि मोती हैं जो बिखेर दिए गए हैं।
وَإِذَا رَأَيۡتَ ثَمَّ رَأَيۡتَ نَعِيمٗا وَمُلۡكٗا كَبِيرًا ۝ 9
(20) वहाँ जिधर भी तुम निगाह डालोगे नेमतें ही नेमतें और एक बड़े राज्य की सामग्री तुम्हें दिखाई देगी।
عَٰلِيَهُمۡ ثِيَابُ سُندُسٍ خُضۡرٞ وَإِسۡتَبۡرَقٞۖ وَحُلُّوٓاْ أَسَاوِرَ مِن فِضَّةٖ وَسَقَىٰهُمۡ رَبُّهُمۡ شَرَابٗا طَهُورًا ۝ 10
(21) उनके ऊपर बारीक रेशम के हरे वस्त्र और अतलस और दीबा के कपड़े होंगे, उनको चाँदी के कंगन पहनाए जाएँगे9, और उनका रब उनको अत्यन्त पवित्र पेय पिलाएगा।
9. सूरा 22 (हज) आयत 23, और सूरा 35 (फ़ातिर) आयत 33 में बयान हुआ है कि उन्हें वहाँ सोने के कंगन पहनाए जाएँगे। इससे मालूम हुआ कि अपनी इच्छा और पसन्द के अनुसार जब वे चाहेंगे सोने के कंगन पहनेंगे, जब चाहेंगे चाँदी के कंगन पहन लेंगे, और जब चाहेंगे दोनों को मिलाकर इस्तेमाल करेंगे।
إِنَّ هَٰذَا كَانَ لَكُمۡ جَزَآءٗ وَكَانَ سَعۡيُكُم مَّشۡكُورًا ۝ 11
(22) यह है तुम्हारा बदला और तुम्हारी कारगुज़ारी क़द्र के योग्य ठहरी है।
إِنَّا نَحۡنُ نَزَّلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡقُرۡءَانَ تَنزِيلٗا ۝ 12
(23) ऐ नबी, हमने ही तुमपर यह क़ुरआन थोड़ा-थोड़ा करके उतारा है10,
10. यहाँ सम्बोधन देखने में नबी (सल्ल०) से है, लेकिन वास्तव में जवाब इनकार करनेवालों की एक आपत्ति का दिया जा रहा है। वे कहते थे कि मुहम्मद (सल्ल०) यह क़ुरआन ख़ुद सोच-सोचकर बना रहे हैं, वरना अल्लाह की ओर से कोई आदेश आता तो इकट्ठा एक ही बार आ जाता।
فَٱصۡبِرۡ لِحُكۡمِ رَبِّكَ وَلَا تُطِعۡ مِنۡهُمۡ ءَاثِمًا أَوۡ كَفُورٗا ۝ 13
(24) अत: तुम अपने रब के हुक्म पर सब्र11 करो, और इनमें से किसी दुराचारी और सत्य का इनकार करनेवाले की बात न मानो।
11. अर्थात् तुम्हारे रब ने जिस महान कार्य पर तुम्हें नियुक्त किया है उसकी कठिनाइयों और परेशानियों पर सब्र करो। जो कुछ भी तुमपर बीत जाए उसे साहस के साथ सहन करते चले जाओ और जमे हुए पाँव लड़खड़ाने न दो।
وَٱذۡكُرِ ٱسۡمَ رَبِّكَ بُكۡرَةٗ وَأَصِيلٗا ۝ 14
(25) अपने रब का नाम सुबह और शाम याद करो,
وَمِنَ ٱلَّيۡلِ فَٱسۡجُدۡ لَهُۥ وَسَبِّحۡهُ لَيۡلٗا طَوِيلًا ۝ 15
(26) रात को भी उसके सामने सजदा करते रहो, और रात के लम्बे समयों में उसकी तसबीह (गुणगान) करते रहो।12
12. जब अल्लाह की याद का आदेश समय निर्धारण के साथ दिया जाता है तो इससे मुराद नमाज़ होती है। इस आयत में सबसे पहले कहा 'व-ज़कुरिस-म रब्बि-क बुक-र-तौं व असीला' (अपने रब का नाम सुबह और शाम याद करते रहो) बुक्रह अरबी भाषा में सुबह को कहते हैं और असील का शब्द दिन ढलने (ज़वाल) के समय से सूर्यास्त तक के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें 'ज़ुह्‍र' और 'अस्र' के समय आ जाते हैं। फिर कहा 'व मिनल्लैलि फ़सजुद लहू' (रात को भी उसके सामने सजदा करते रहो)। रात का समय सूर्यास्त के बाद आरंभ हो जाता है, इसलिए रात को सजदा करने के आदेश में 'मग़रिब' और 'इशा' दोनों समयों की नमाज़ें शामिल हो जाती हैं। इसके बाद यह इरशाद कि रात के लम्बे समयों में उसकी तसबीह करते रहो 'तहज्जुद' की नमाज़ की ओर साफ़ संकेत करता है।
إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ يُحِبُّونَ ٱلۡعَاجِلَةَ وَيَذَرُونَ وَرَآءَهُمۡ يَوۡمٗا ثَقِيلٗا ۝ 16
(27) ये लोग तो जल्दी प्राप्त होनेवाली चीज़़ (दुनिया) से प्रेम रखते हैं और आगे जो भारी दिन आनेवाला है उसकी उपेक्षा कर देते हैं।
نَّحۡنُ خَلَقۡنَٰهُمۡ وَشَدَدۡنَآ أَسۡرَهُمۡۖ وَإِذَا شِئۡنَا بَدَّلۡنَآ أَمۡثَٰلَهُمۡ تَبۡدِيلًا ۝ 17
(28) हम ही ने इनको पैदा किया है और इनके जोड़-बन्द मज़बूत किए हैं, और हम जब चाहें इनके रूपों को बदलकर रख दें।
إِنَّ هَٰذِهِۦ تَذۡكِرَةٞۖ فَمَن شَآءَ ٱتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِيلٗا ۝ 18
(29) यह एक नसीहत है, अब जिसका जी चाहे अपने रब की ओर जाने का मार्ग अपना ले।
وَمَا تَشَآءُونَ إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمٗا ۝ 19
(30) और तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होता जब तक अल्लाह न चाहे यक़ीनन अल्लाह बड़ा ज्ञाता और तत्त्वदर्शी हैं,
يُدۡخِلُ مَن يَشَآءُ فِي رَحۡمَتِهِۦۚ وَٱلظَّٰلِمِينَ أَعَدَّ لَهُمۡ عَذَابًا أَلِيمَۢا ۝ 20
(31) अपनी दयालुता में जिसको चाहता है दाख़िल करता है, और ज़ालिमों के लिए उसने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है।
سُورَةُ الإِنسَانِ
76. अद-दह्‍र
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
هَلۡ أَتَىٰ عَلَى ٱلۡإِنسَٰنِ حِينٞ مِّنَ ٱلدَّهۡرِ لَمۡ يَكُن شَيۡـٔٗا مَّذۡكُورًا
(1) क्या इनसान पर अनन्त काल का एक ऐसा समय भी बीता है जब वह कोई उल्लेखनीय वस्तु न था?1
1. इसका उद्देश्य सवाल नहीं है, बल्कि इनसान से यह बात स्वीकार करानी है कि हाँ, उसपर ऐसा एक समय गुज़र चुका है और इससे बढ़कर उसे यह सोचने पर भी मज़बूर करना है कि अगर पहले वह अस्तित्वहीन स्थिति से अस्तित्व में लाया जा चुका है तो उसका दोबारा पैदा होना क्यों असंभव हो।
إِنَّا خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ مِن نُّطۡفَةٍ أَمۡشَاجٖ نَّبۡتَلِيهِ فَجَعَلۡنَٰهُ سَمِيعَۢا بَصِيرًا ۝ 21
(2) हमने इनसान को एक मिश्रित वीर्य से पैदा किया, ताकि उसकी परीक्षा लें और इस उद्देश्य के लिए हमने उसे सुनने और देखनेवाला बनाया।2
2. अर्थात् उसे चेतनायुक्त और समझ-बूझवाला बनाया।
إِنَّا هَدَيۡنَٰهُ ٱلسَّبِيلَ إِمَّا شَاكِرٗا وَإِمَّا كَفُورًا ۝ 22
(3) हमने उसे मार्ग दिखा दिया, चाहे कृतज्ञता दिखानेवाला बने या इनकार करनेवाला।3
3. अर्थात् इनकार और कृतज्ञता का अधिकार उसे देते हुए यह बता दिया कि इनकार का मार्ग कौन-सा है और कृतज्ञता का कौन-सा?
إِنَّآ أَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ سَلَٰسِلَاْ وَأَغۡلَٰلٗا وَسَعِيرًا ۝ 23
(4) इनकार करनेवालों के लिए हमने ज़ंजीरें और तौक़ और भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है।
إِنَّ ٱلۡأَبۡرَارَ يَشۡرَبُونَ مِن كَأۡسٖ كَانَ مِزَاجُهَا كَافُورًا ۝ 24
(5) नेक लोग (जन्नत में) पेय के ऐसे जाम पिएँगे जिनमें कपूर जल का मिश्रण होगा,
عَيۡنٗا يَشۡرَبُ بِهَا عِبَادُ ٱللَّهِ يُفَجِّرُونَهَا تَفۡجِيرٗا ۝ 25
(6) यह एक बहता स्रोत होगा जिसके पानी के साथ अल्लाह के बन्दे पेय पिएँगे और जहाँ चाहेंगे आसानी के साथ उसकी शाखाएँ निकाल लेंगे।
يُوفُونَ بِٱلنَّذۡرِ وَيَخَافُونَ يَوۡمٗا كَانَ شَرُّهُۥ مُسۡتَطِيرٗا ۝ 26
(7) वे लोग होंगे जो (दुनिया में नज़्र7 पूरी करते हैं, और उस दिन से डरते हैं जिसकी आफ़त हर ओर फैली हुई होगी,
4. नज़्र का अर्थ है ईश्वर से यह प्रतिज्ञा करना कि इनसान उसकी प्रसन्नता के लिए अनिवार्य कर्तव्य से ज़्यादा अमुक कार्य करेगा।
وَيُطۡعِمُونَ ٱلطَّعَامَ عَلَىٰ حُبِّهِۦ مِسۡكِينٗا وَيَتِيمٗا وَأَسِيرًا ۝ 27
(8) और अल्लाह के प्रेम में मुहताज और अनाथ और क़ैदी को खाना खिलाते हैं,
إِنَّمَا نُطۡعِمُكُمۡ لِوَجۡهِ ٱللَّهِ لَا نُرِيدُ مِنكُمۡ جَزَآءٗ وَلَا شُكُورًا ۝ 28
(9) (और उनसे कहते हैं कि) “हम तुम्हें सिर्फ़ अल्लाह के लिए खिला रहे हैं, हम तुमसे न कोई बदला चाहते हैं न शुक्रिया,
إِنَّا نَخَافُ مِن رَّبِّنَا يَوۡمًا عَبُوسٗا قَمۡطَرِيرٗا ۝ 29
(10) हमें तो अपने रब से उस दिन के अज़ाब का डर लगा हुआ है जो सख़्त मुसीबत का अत्यन्त लम्बा दिन होगा।
فَوَقَىٰهُمُ ٱللَّهُ شَرَّ ذَٰلِكَ ٱلۡيَوۡمِ وَلَقَّىٰهُمۡ نَضۡرَةٗ وَسُرُورٗا ۝ 30
(11) अतः अल्लाह तआला उन्हें उस दिन की बुराई से बचा लेगा और उन्हें ताज़गी और आनन्द प्रदान करेगा