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سُورَةُ اللَّيۡلِ

92. अल-लैल

(मक्का में उतरी, आयतें 21)

परिचय

नाम

पहले ही शब्द 'वल्लैल' (क़सम है रात की) को इस सूरा का नाम क़रार दिया गया है।

उतरने का समय

इस सूरा का विषय सूरा-91 अश-शम्स से इतना ज़्यादा मिलता-जुलता है कि ये दोनों सूरतें एक-दूसरे की व्याख्या महसूस होती हैं। एक ही बात है, जिसे सूरा अश-शम्स में एक तरीक़े से समझाया गया है और इस सूरा में दूसरे तरीक़े से। इससे अनुमान होता है कि ये दोनों सूरतें लगभग एक ही समय में उतरी हैं।

विषय और वार्ता

इसका विषय ज़िन्दगी के दो भिन्न रास्तों का अन्तर और उनके अंजाम और नतीजों का अलग-अलग होना बयान करना है। विषय की दृष्टि से इस सूरा के दो भाग हैं : पहला भाग शुरू से आयत 11 तक है और दूसरा भाग आयत 12 सें आख़िर तक।

पहले भाग में सबसे पहले यह बताया गया है कि मानव-जाति के सभी लोग, क़ौमें और गिरोह दुनिया में जो भी कोशिश और काम कर रहे हैं, वे अनिवार्य रूप से अपने नैतिक स्वरूप की दृष्टि से उसी तरह भिन्न हैं जिस तरह दिन रात से और नर मादा से भिन्न है। इसके बाद क़ुरआन की छोटी सूरतों की सामान्य वार्ता-शैली के अनुसार तीन विशेषताएँ एक प्रकार की और तीन विशेषताएँ दूसरे प्रकार की कोशिशों और कामों के एक बड़े संग्रह में से लेकर नमूने के तौर पर पेश की गई हैं। पहली प्रकार की विशेषताएँ ये हैं कि आदमी भलाई के कामों में माल दे, ख़ुदा का डर और परहेज़गारी अपनाए और भलाई को भलाई माने। दूसरे प्रकार की विशेषताएँ ये हैं कि वह कंजूसी करे, अल्लाह की ख़ुशी-नाख़ुशी की परवाह न करे और भली बात को झुठला दे। फिर बताया गया है कि ये दोनों रवैये जो खुले तौर पर एक-दूसरे से अलग हैं, अपने नतीजों की दृष्टि से कदापि बराबर नहीं हैं, बल्कि जितने ज़्यादा ये स्वरूप और प्रकार की दृष्टि से एक दूसरे के विपरीत हैं, उतना ही इनके नतीजे भी एक-दूसरे के भिन्न हैं। पहले तरीक़े को जो आदमी या गिरोह अपनाएगा, अल्लाह उसके लिए ज़िन्दगी के साफ़ और सीधे रास्ते को आसान कर देगा, यहाँ तक कि उसके लिए नेकी (अच्छे काम) करना आसान और बदी (बुरे काम) करना कठिन हो जाएगा। और दूसरे रवैये को जो भी अपनाएगा अल्लाह उसके लिए ज़िन्दगी के विकट और कठिन रास्ते को आसान कर देगा, यहाँ तक कि उसके लिए बदी करना आसान और नेकी करना मुश्किल हो जाएगा। दूसरे भाग में भी इसी संक्षेप के साथ तीन तथ्य बयान किए गए हैं।

एक यह कि अल्लाह ने दुनिया के इस परीक्षा-स्थल में इंसान को बेख़बर नहीं छोड़ा है, बल्कि उसने यह बता देना अपने ज़िम्मे ले लिया है कि ज़िन्दगी के विभिन्न रास्तों में से सीधा रास्ता कौन-सा है। दूसरा तथ्य यह बयान किया गया है कि दुनिया और आख़िरत दोनों का मालिक अल्लाह ही है। दुनिया माँगोगे तो वह भी उससे ही मिलेगी और आख़िरत माँगोगे तो उसका देनेवाला भी वही है। यह फ़ैसला करना तुम्हारा अपना काम है कि तुम उससे क्या माँगते हो? तीसरा तथ्य यह बयान किया गया है कि जो अभागा उस भलाई को झुठलाएगा, जिसे रसूल और [ख़ुदा की] किताब के ज़रिए से पेश किया जा रहा है, उसके लिए भड़कती हुई आग तैयार है, और जो ख़ुदा से डरनेवाला आदमी पूरी नि:स्वार्थता के साथ सिर्फ़ अपने रब की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अपना माल भलाई के रास्ते में लगाएगा, उसका रब उससे प्रसन्न होगा और उसे इतना कुछ देगा कि वह प्रसन्न हो जाएगा।

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سُورَةُ اللَّيۡلِ
92. अल-लैल
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
وَٱلَّيۡلِ إِذَا يَغۡشَىٰ
(1) क़सम है रात की जबकि वह छा जाए,
وَٱلنَّهَارِ إِذَا تَجَلَّىٰ ۝ 1
(2) और दिन की जबकि वह प्रकाशमान हो,
وَمَا خَلَقَ ٱلذَّكَرَ وَٱلۡأُنثَىٰٓ ۝ 2
(3) और उस सत्ता की जिसने नर और मादा को पैदा किया,
إِنَّ سَعۡيَكُمۡ لَشَتَّىٰ ۝ 3
(4) वास्तव में तुम लोगों के प्रयास विभिन्न प्रकार के हैं1।
1. अर्थात् जिस तरह रात और दिन और नर और मादा एक-दूसरे से भिन्न हैं, और उनके लक्षण और परिणाम परस्पर विरोधी हैं, उसी तरह तुम लोग जिन राहों और उद्देश्यों में प्रयत्नशील हो वे भी अपनी क़िस्मों की दृष्टि से विभिन्न और अपने परिणाम की दृष्टि से परस्पर विरोधी हैं।
فَأَمَّا مَنۡ أَعۡطَىٰ وَٱتَّقَىٰ ۝ 4
(5) तो जिसने (अल्लाह के मार्ग में) धन दिया और (अल्लाह की अवज्ञा से) परहेज़ किया,
وَصَدَّقَ بِٱلۡحُسۡنَىٰ ۝ 5
(6) और भलाई को सत्य माना,
فَسَنُيَسِّرُهُۥ لِلۡيُسۡرَىٰ ۝ 6
(7) उसको हम सहज मार्ग के लिए सुविधा देंगे।2
2. अर्थात् उस मार्ग पर चलना उसके लिए आसान कर देंगे जो मानव प्रकृति के अनुकूल है।
وَأَمَّا مَنۢ بَخِلَ وَٱسۡتَغۡنَىٰ ۝ 7
(8) और जिसने कंजूसी की और (अपने अल्लाह से) बेपरवाही बरती
وَكَذَّبَ بِٱلۡحُسۡنَىٰ ۝ 8
(9) और भलाई को झुठलाया,
فَسَنُيَسِّرُهُۥ لِلۡعُسۡرَىٰ ۝ 9
(10) उसको हम कठिन मार्ग के लिए सुविधा देंगे।3
3. अर्थात् प्रकृति के विरुद्ध चलना उसके लिए आसान कर देंगे।
وَمَا يُغۡنِي عَنۡهُ مَالُهُۥٓ إِذَا تَرَدَّىٰٓ ۝ 10
(11) और उसका धन आख़िर उसके किस काम आएगा जबकि वह तबाह हो जाए?
إِنَّ عَلَيۡنَا لَلۡهُدَىٰ ۝ 11
(12) निस्संदेह, रास्ता बताना हमारे ज़िम्मे है,
وَإِنَّ لَنَا لَلۡأٓخِرَةَ وَٱلۡأُولَىٰ ۝ 12
(13) और वास्तव में आख़िरत और दुनिया, दोनों के हम ही मालिक हैं।
فَأَنذَرۡتُكُمۡ نَارٗا تَلَظَّىٰ ۝ 13
(14) अतः मैंने तुमको सावधान कर दिया है भड़कती हुई आग से।
لَا يَصۡلَىٰهَآ إِلَّا ٱلۡأَشۡقَى ۝ 14
(15) उसमें नहीं झुलसेगा मगर वह अत्यन्त दुराचारी
ٱلَّذِي كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ ۝ 15
(16) जिसने झुठलाया और मुँह फेरा
وَسَيُجَنَّبُهَا ٱلۡأَتۡقَى ۝ 16
(17) और उससे दूर रखा जाएगा वह अत्यन्त परहेज़गार
ٱلَّذِي يُؤۡتِي مَالَهُۥ يَتَزَكَّىٰ ۝ 17
(18) जो पवित्र होने के ध्येय से अपना धन देता है।
وَمَا لِأَحَدٍ عِندَهُۥ مِن نِّعۡمَةٖ تُجۡزَىٰٓ ۝ 18
(19) उसपर किसी का कोई एहसान नहीं है जिसका बदला उसे देना हो।
إِلَّا ٱبۡتِغَآءَ وَجۡهِ رَبِّهِ ٱلۡأَعۡلَىٰ ۝ 19
(20) वह तो सिर्फ़ अपने महान रब की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए यह काम करता है।
وَلَسَوۡفَ يَرۡضَىٰ ۝ 20
(21) और ज़रूर वह (उससे) प्रसन्न होगा।
بِّسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।