(8) फिर ज़रूर उस दिन तुमसे इन नेमतों के बारे में जवाब तलब किया जाएगा।4
4. इस जुमले में ‘फिर’ का लफ़्ज़ इस मानी में नहीं है कि जहन्नम में डाले जाने के बाद जवाब तलब किया जाएगा। बल्कि इसका मतलब यह है कि फिर यह ख़बर भी हम तुम्हें दिए देते हैं कि तुमसे इन नेमतों के बारे में सवाल किया जाएगा। और ज़ाहिर है कि यह सवाल अल्लाह की अदालत में हिसाब लेने के वक़्त होगा। इसकी सबसे बड़ी दलील यह है कि कई हदीसों में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) से यह बात नक़्ल हुई है कि अल्लाह तआला ने जो नेमतें बन्दों को दी हैं उनके बारे में जवाबदेही ईमानवाले और ग़ैर-ईमानवाले सब ही को करनी होगी। यह अलग बात है कि जिन लोगों ने नेमत की नाशुक्री नहीं की और शुक्रगुज़ार बनकर रहे वे इस पूछ-गछ में कामयाब रहेंगे, और जिन लोगों ने अल्लाह की नेमतों का हक़ अदा नहीं किया और अपनी बातों या अमल से, या दोनों से उनकी नाशुक्री की वे इसमें नाकाम होंगे।
हज़रत जाबिर-बिन-अब्दुल्लाह (रज़ि०) की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) हमारे यहाँ तशरीफ़ लाए और हमने आप (सल्ल०) को तरोताज़ा खजूरें खिलाईं और ठण्डा पानी पिलाया। इसपर रसूल (सल्ल०) ने फ़रमाया, “ये उन नेमतों में से हैं जिनके बारे में तुमसे सवाल किया जाएगा।” (हदीस : मुसनदे-अहमद, नसई, इब्ने-जरीर, इब्नुल-मुंज़िर, इब्ने-मरदुवैह, अब्द-बिन-हुमैद, बैहक़ी)।
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने हज़रत अबू-बक्र (रज़ि०) और हज़रत उमर (रज़ि०) से कहा कि चलो अबुल-हैसम-बिन-तैहान अनसारी के यहाँ चलें। चुनाँचे उनको लेकर आप (सल्ल०) इब्ने-तैहान के बाग़ में तशरीफ़ ले गए। उन्होंने लाकर खजूरों का एक गुच्छा रख दिया। नबी (सल्ल०) ने फ़रमाया, “तुम ख़ुद क्यों न खजूरें तोड़ लाए?” उन्होंने कहा, “मैं चाहता था कि आप लोग ख़ुद छाँट-छाँटकर खजूरें खाएँ।” चुनाँचे उन्होंने खजूरें खाईं और ठण्डा पानी पिया। खा-पी चुकने के बाद नबी (सल्ल०) ने फ़रमाया, “उस हस्ती की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, ये उन नेमतों में से है जिनके बारे में तुम्हें क़ियामत के दिन जवाबदेही करनी होगी। यह ठण्डी छाँव, ये ठण्डी खजूरें, यह ठण्डा पानी।” (इस क़िस्से को अलग-अलग तरीक़ों से मुस्लिम, इब्ने-माजा, अबू-दाऊद, तिरमिज़ी, नसई, इब्ने-जरीर और अबू-याला वग़ैरा से नक़्ल किया है, जिनमें से कुछ में उन अनसारी बुज़ुर्ग का नाम लिया गया है और कुछ में सिर्फ़ अनसार में से एक शख़्स कहा गया है। इस क़िस्से को अलग-अलग तरीक़ों से कई तफ़सीलात के साथ इब्ने-अबी-हातिम ने हज़रत उमर (रज़ि०) से और इमाम अहमद ने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम अबू-उसैब से नक़्ल किया है। इब्ने-हिब्बान और इब्ने-मरदुवैह ने हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०) से एक रिवायत नक़्ल की है, जिससे मालूम होता है कि लगभग इसी तरह का वाक़िआ हज़रत अबू-अय्यूब अनसारी (रज़ि०) के यहाँ पेश आया था।)
इन हदीसों से यह बात साफ़ हो जाती है कि सवाल सिर्फ़ ग़ैर-ईमानवालों ही से नहीं, नेक ईमानवालों से भी होगा। रहीं अल्लाह की वे नेमतें जो उसने इनसान को दी हैं तो वे बेहद और बेहिसाब हैं, उनको गिना नहीं जा सकता, बल्कि बहुत-सी नेमतें तो ऐसी हैं कि इनसान को उनकी ख़बर भी नहीं है। क़ुरआन मजीद में फ़रमाया गया है—
“अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनो तो तुम उनको पूरी तरह गिन नहीं सकते।” (सूरा-14 इबराहीम, आयत-34)
इन नेमतों में से बेहद और बेहिसाब नेमतें तो वे हैं जो अल्लाह तआला ने सीधे तौर से इनसान की दी हैं, और बहुत-सी नेमतें वे हैं जो इनसान को उसकी अपनी कोशिश के ज़रिए से दी जाती हैं। इनसान की कोशिश से हासिल होनेवाली नेमतों के बारे में उसको जवाबदेही करनी पड़ेगी कि उसने उनको किन तरीक़ों से हासिल किया और किन रास्तों में ख़र्च किया। अल्लाह तआला की तरफ़ से सीधे तौर पर दी गई नेमतों के बारे में उसे हिसाब देना होगा कि उनको उसने किस तरह इस्तेमाल किया। और कुल मिलाकर तमाम नेमतों के बारे में उसको बताना पड़ेगा कि क्या उसने इस बात को माना था कि ये नेमतें अल्लाह की दी हुई हैं और इनपर दिल, ज़बान और अमल से उसका शुक्र अदा किया था? या यह समझा था कि ये सब कुछ उसे इत्तिफ़ाक़ से मिल गया है? या यह समझा था कि बहुत-से ख़ुदा इनके देनेवाले हैं? या यह अक़ीदा रखा था कि ये हैं तो ख़ुदा ही की नेमतें मगर इनके देने में बहुत-सी दूसरी हस्तियों का भी दख़ल है और इस बुनियाद पर उन्हें माबूद (उपास्य) ठहरा लिया था और उन्हीं के शुक्रिए अदा किए थे?