(18) कोई शैतान इनमें राह नहीं पा सकता, सिवाय इसके कि कुछ सुन-गुन ले ले।11 और जब वह सुन-गुन लेने की कोशिश करता है तो एक रौशन शोला उसका पीछा करता है।12
11. यानी वे शैतान जो अपने साथियों को ग़ैब (परोक्ष) की ख़बरें लाकर देने की कोशिश करते हैं, जिनकी मदद से बहुत-से काहिन, जोगी, आमिल और फ़क़ीर-नुमा बहरूपिये ग़ैब की बातें जानने का ढोंग रचाया करते हैं, उनके पास हक़ीक़त में ग़ैब की बातें जानने के ज़रिए बिलकुल नहीं हैं। वे कुछ सुनगुन लेने की कोशिश ज़रूर करते हैं, क्योंकि उनकी बनावट इनसानों के मुक़ाबले में फ़रिश्तों की बनावट से कुछ ज़्यादा क़रीब है, लेकिन हक़ीक़त में उनके पल्ले कुछ पड़ता नहीं है।
12. अस्ल अरबी आयत में 'शिहाबुम-मुबीन' लफ़्ज़ का इस्तेमाल हुआ है जिसके मानी हैं 'रौशन शोला,' दूसरी जगह क़ुरआन मजीद में इसके लिए 'शिहाबे-साक़िब' लफ़्ज़ का इस्तेमाल हुआ है, यानी 'अंधेरे को छेदनेवाला शोला’। इससे मुराद ज़रूरी नहीं कि वह टूटनेवाला तारा ही हो जिसे हमारी ज़बान में 'शिहाबे-साक़िब' (उलका पिंड) कहा जाता है। मुमकिन है कि ये दूसरी तरह की किरणें हों, जैसे कायनाती किरणें (Cosmic Rays) या उनसे भी ज़्यादा तेज़ किसी और क़िस्म की जो अभी हमारी जानकारी में न आई हों। और यह भी हो सकता है कि यही शिहाबे-साक़िब मुराद हों जिन्हें कभी-कभी हमारी आँखें ज़मीन की तरफ़ गिरते हुए देखती हैं। मौजूदा दौर के जाइज़े से यह मालूम हुआ है कि दूरबीन से दिखाई देनेवाले शिहाबे-साक़िब जो इस फैली हुई फ़ज़ा से ज़मीन की तरफ़ आते दिखाई देते हैं, उनकी तादाद का औसत 10 खरब रोज़ाना है, जिनमें से दो करोड़ के लगभग हर रोज़ ज़मीन के ऊपरी इलाक़े में दाख़िल होते हैं। और मुश्किल से एक ज़मीन की सतह पहुँचता है। उनकी रफ़्तार ऊपरी फ़ज़ा में लगभग 26 मील प्रति सेकेण्ड होती है और कई बार 50 मील प्रति सेकेण्ड तक देखी गई है। कई बार ऐसा भी हुआ है कि नंगी आँखों ने भी टूटनेवाले तारों की ग़ैर-मामूली बारिश देखी हैं। चुनाँचे यह चीज़ रिकॉर्ड पर मौजूद है कि 13 नवम्बर 1833 ई० को उत्तरी अमेरिका के पूर्वी इलाक़े में सिर्फ़ एक जगह पर आधी रात से लेकर सुबह तक दो लाख शिहाबे-साक़िब गिरते हुए देखे गए। (इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, 1946 ई०, भाग-15, पृष्ठ-337-339)। हो सकता है कि यही बारिश ऊपरी दुनिया की तरफ़ शैतानों की उड़ान में रुकावट बनती हो, क्योंकि ज़मीन की ऊपरी हदों से गुज़रकर फैली हुई फ़ज़ा में 10 खरब रोज़ाना के औसत से टूटनेवाले तारों की बरसात उनके लिए उस फ़ज़ा को पार करना बिलकुल नामुमकिन बना देती होगी।
इससे कुछ उन ‘महफ़ूज़ क़िलों' की बनावट का अन्दाज़ा भी हो सकता है जिनका ज़िक्र ऊपर हुआ है। बज़ाहिर फ़ज़ा बिलकुल साफ़-सुथरी है, जिसमें कहीं कोई दीवार या छत बनी दिखाई नहीं देती, लेकिन अल्लाह तआला ने इसी फ़ज़ा में कई इलाक़ों को कुछ ऐसी नज़र न आनेवाली दीवारों से घेर रखा है जो एक इलाक़े को दूसरे इलाक़ों की आफ़तों से महफ़ूज़ रखती हैं। यह इन्हीं दीवारों की बरकत है कि जो शिहाबे-साक़िब दस खरब रोज़ाना के औसत से ज़मीन की तरफ़ गिरते हैं वे सब जलकर भस्म हो जाते हैं और मुश्किल से एक ज़मीन की सतह तक पहुँच सकता है। दुनिया में शिहाबी पत्थरों (Meteorites) के जो नमूने पाए जाते हैं और दुनिया के अजाइब घरों में मौजूद हैं, उनमें सबसे बड़ा 645 पौंड का एक पत्थर है जो गिरकर 11 फ़ुट ज़मीन में घुस गया था। इसके अलावा एक जगह पर 36.5 टन का लोहे का एक टुकड़ा पाया गया है जिसके वहाँ मौजूद होने की कोई वजह वैज्ञानिक इसके सिवा बयान नहीं कर सके हैं कि यह भी आसमान से गिरा हुआ है। अन्दाज़ा कीजिए कि अगर ज़मीन की ऊपरी सीमाओं को मज़बूत दीवारों से सुरक्षित न कर दिया गया होता तो इन टूटनेवाले तारों की बारिश ज़मीन का क्या हाल कर देती, यही दीवारें हैं जिनके लिए क़ुरआन मजीद ने 'बुरूज' (सुरक्षित क़िलों) का लफ़्ज इस्तेमाल किया है।